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नीलकंठेश्वर मंदिर का इतिहास: शिव भक्ति, वास्तुकला और रहस्यमय तथ्य | जानें इसकी अनोखी कहानी!

नीलकंठेश्वर मंदिर की अनसुनी कहानी: भारत की प्राचीन धरोहर और आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र!

भारत के मंदिर न केवल आध्यात्मिक केंद्र होते हैं, बल्कि वे भारतीय इतिहास, संस्कृति और कला के ज्वलंत प्रमाण भी हैं। ऐसे ही गौरवशाली मंदिरों में से एक है नीलकंठेश्वर मंदिर, जो मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले में स्थित है। यह मंदिर 11वीं शताब्दी मे परमार वंश के राजा उदयादित्य (1059-1080 ई.) द्वारा बनवाया गया था और इसे भगवान शिव को समर्पित किया गया है।

अपनी अद्भुत नक्काशी, ऐतिहासिक महत्व और धार्मिक आस्था के कारण यह मंदिर अनगिनत श्रद्धालुओं और इतिहास प्रेमियों को आकर्षित करता है।

नीलकंठेश्वर मंदिर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

परमार वंश मध्य भारत में एक प्रभावशाली राजवंश था, जिसने 9वीं से 14वीं शताब्दी तक मालवा क्षेत्र में शासन किया। इस वंश के शासक कला, संस्कृति और धर्म के संरक्षक माने जाते थे।

राजा उदयादित्य और उनका योगदान

राजा उदयादित्य, जो परमार वंश के एक शक्तिशाली शासक थे, ने इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में करवाया। यह वह समय था जब भारतीय स्थापत्य कला अपने शिखर पर थी, और मंदिरों का निर्माण एक राजधर्म माना जाता था। उदयादित्य ने अन्य मंदिरों का भी निर्माण करवाया, लेकिन नीलकंठेश्वर मंदिर विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उस समय की उत्कृष्ट कारीगरी को दर्शाता है।

वास्तुकला और शिल्पकला

नीलकंठेश्वर मंदिर नागर शैली में बना हुआ है, जो उत्तर भारत के मंदिरों की प्रमुख शैली मानी जाती है। इसकी संरचना, नक्काशी और मूर्तियाँ इस मंदिर को विशिष्ट बनाती हैं।

मंदिर की संरचना

मंदिर के विभिन्न भाग इस प्रकार हैं:

(i) गर्भगृह

नीलकंठेश्वर मंदिर का सबसे पवित्र भाग गर्भगृह (Sanctum Sanctorum) है, जहाँ भगवान शिव का लिंग स्थापित है। यह शिवलिंग भगवान नीलकंठ (शिव के विषपान के बाद के स्वरूप) को समर्पित है।

(ii) मंडप (सभामंडप और अंतराल)

गर्भगृह के सामने एक मंडप (Hall) बना हुआ है, जहाँ श्रद्धालु पूजा-अर्चना के लिए एकत्र होते हैं। यह मंडप स्तंभों से सुसज्जित है, जिन पर उत्कृष्ट नक्काशी की गई है।

(iii) शिखर (Tower / Spire)

नीलकंठेश्वर मंदिर का शिखर नागर शैली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यह ऊँचा और अलंकृत होता है, जो दूर से ही भव्यता का आभास कराता है। शिखर की नक्काशी में देवी-देवताओं, अप्सराओं और अन्य पौराणिक पात्रों के चित्रण मिलते हैं।

(iv) बाहरी दीवारों की नक्काशी

नीलकंठेश्वर मंदिर की बाहरी दीवारों पर अति सूक्ष्म नक्काशी की गई है। यहाँ पर विभिन्न देवी-देवताओं, गंधर्वों, अप्सराओं, पशु-पक्षियों, और सामाजिक जीवन के दृश्य उत्कीर्ण हैं।

नीलकंठेश्वर मंदिर की मूर्तिकला और धार्मिक चित्रण

नीलकंठेश्वर मंदिर की मूर्तियाँ तत्कालीन धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का प्रतिबिंब हैं। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण नक्काशियों का वर्णन किया गया है:

(i) शिव के विभिन्न रूप

नटराज शिव – यह प्रतिमा भगवान शिव के नृत्य रूप को दर्शाती है।

अर्धनारीश्वर – यह शिव और पार्वती के संयुक्त स्वरूप को दिखाती है।

गजासुर संहार – इस नक्काशी में भगवान शिव एक हाथी के रूप में असुर को पराजित कर रहे हैं।

(ii) पौराणिक दृश्य

समुद्र मंथन – यह वह दृश्य दर्शाता है जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया और भगवान शिव ने विष का पान किया।

रामायण और महाभारत के दृश्य – दीवारों पर राम, सीता, हनुमान और अर्जुन-कृष्ण के चित्रण भी देखे जा सकते हैं।

(iii) सामाजिक जीवन के दृश्य

नीलकंठेश्वर मंदिर की दीवारों पर तत्कालीन समाज की झलक भी देखने को मिलती है। यहाँ संगीतकार, नर्तक, योद्धा और राजसी जीवन से जुड़े चित्रण भी मिलते हैं।

धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

भगवान शिव भारतीय संस्कृति में प्रमुख देवता माने जाते हैं, और नीलकंठ के रूप में उनकी पूजा विशेष रूप से श्रावण मास, महाशिवरात्रि और अन्य शिव पर्वों के दौरान की जाती है।

(i) विशेष अनुष्ठान और पूजा-पद्धति

1. रुद्राभिषेक – भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रुद्राभिषेक अनुष्ठान किया जाता है।

2. जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक – भक्त यहाँ शिवलिंग पर जल और दूध चढ़ाते हैं।

3. महाशिवरात्रि उत्सव – इस दिन यहाँ विशाल मेले का आयोजन होता है और हजारों भक्त आते हैं।

नीलकंठेश्वर मंदिर का इतिहास: शिव भक्ति, वास्तुकला और रहस्यमय तथ्य | जानें इसकी अनोखी कहानी!
नीलकंठेश्वर मंदिर का इतिहास: शिव भक्ति, वास्तुकला और रहस्यमय तथ्य | जानें इसकी अनोखी कहानी!
नीलकंठेश्वर मंदिर की वर्तमान स्थिति और संरक्षण

नीलकंठेश्वर मंदिर समय के साथ कुछ हद तक क्षतिग्रस्त हो चुका है, लेकिन अभी भी इसकी भव्यता बनी हुई है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इसके संरक्षण और जीर्णोद्धार के लिए कई प्रयास किए हैं।

(i) संरक्षण के प्रयास

नीलकंठेश्वर मंदिर की दीवारों को संरक्षित करने के लिए नियमित सफाई और मरम्मत की जा रही है।

स्थानीय प्रशासन और श्रद्धालु भी इसकी देखरेख में सहयोग कर रहे हैं।

पर्यटन और सांस्कृतिक महत्त्व

नीलकंठेश्वर मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल भी है। इतिहास प्रेमी, शोधकर्ता और कला के विद्यार्थी यहाँ अध्ययन और अनुसंधान के लिए आते हैं।

(i) कैसे पहुँचें?

1. निकटतम रेलवे स्टेशन: अशोकनगर रेलवे स्टेशन

2. निकटतम हवाई अड्डा: ग्वालियर हवाई अड्डा

3. सड़क मार्ग: मंदिर तक बस और टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है।

नीलकंठेश्वर मंदिर का सांस्कृतिक प्रभाव

नीलकंठेश्वर मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, कला और समाज का एक अभिन्न हिस्सा है। इसकी भव्यता और पौराणिक महत्त्व इसे एक ऐतिहासिक धरोहर बनाते हैं।

(i) लोककथाएँ और मंदिर से जुड़े रहस्य

भारत में हर ऐतिहासिक नीलकंठेश्वर मंदिर के साथ कुछ रहस्य और लोककथाएँ जुड़ी होती हैं। नीलकंठेश्वर मंदिर भी इससे अछूता नहीं है।

शिव के नीलकंठ स्वरूप की कथा

कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन के दौरान हलाहल विष निकला, तो देवताओं और असुरों में हाहाकार मच गया। इस विष से सृष्टि के विनाश का खतरा था। तभी भगवान शिव ने करुणा दिखाते हुए इस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया और वे “नीलकंठ” कहलाए। यह मंदिर इसी स्वरूप को समर्पित है।

एक अद्भुत ध्वनि संरचना

स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, मंदिर के मुख्य गुंबद में ऐसी ध्वनि संरचना है कि यदि आप गर्भगृह के अंदर किसी भी मंत्र का उच्चारण करते हैं, तो वह पूरे मंदिर में गूंजता है।

नीलकंठेश्वर मंदिर से जुड़े प्रमुख उत्सव और आयोजन

नीलकंठेश्वर मंदिर पूरे वर्ष विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सवों का केंद्र बना रहता है। यहाँ विशेष रूप से महाशिवरात्रि और श्रावण मास के दौरान भक्तों का तांता लगा रहता है।

(i) महाशिवरात्रि का भव्य उत्सव

महाशिवरात्रि के दिन इस मंदिर में हजारों श्रद्धालु एकत्र होते हैं। इस दिन भगवान शिव को बेलपत्र, धतूरा और जल चढ़ाया जाता है। मंदिर में रात्रि जागरण, भजन-कीर्तन और शिव तांडव स्तोत्र का पाठ किया जाता है।

(ii) श्रावण मास के सोमवार

श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर गंगाजल और पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। इस दौरान कई भक्त कांवड़ यात्रा करके गंगा जल लेकर आते हैं और भगवान शिव को अर्पित करते हैं।

(iii) कार्तिक पूर्णिमा

इस दिन मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना होती है। माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव के दर्शन करने से सभी पापों का नाश होता है।

नीलकंठेश्वर मंदिर और आध्यात्मिकता

इस मंदिर की एक विशेषता यह भी है कि यहाँ न केवल भक्त आते हैं, बल्कि ध्यान और योग करने वाले साधक भी यहाँ आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव करने आते हैं।

(i) मंदिर का आध्यात्मिक प्रभाव

कहा जाता है कि इस मंदिर में बैठकर ध्यान करने से मन को अत्यधिक शांति मिलती है।

यहाँ की ऊर्जा साधना के लिए उपयुक्त मानी जाती है।

मंदिर की संरचना इस प्रकार बनाई गई है कि यह सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करता है।

(ii) पंचतत्व और शिवलिंग की शक्ति

हिंदू धर्म में शिवलिंग को पंचतत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) का प्रतीक माना जाता है। यह मंदिर इन पंचतत्वों को संतुलित रखने का केंद्र माना जाता है, जिससे यहाँ आने वाले श्रद्धालु मानसिक और शारीरिक शुद्धि का अनुभव करते हैं।

नीलकंठेश्वर मंदिर से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

1. अनूठी ध्वनि प्रणाली: मंदिर की दीवारों और स्तंभों की बनावट ऐसी है कि यहाँ गूंजने वाली ध्वनि से आध्यात्मिक ऊर्जा महसूस होती है।

2. प्राचीन जलस्रोत: मंदिर परिसर में एक पुराना जलस्रोत है, जिसके पानी को पवित्र माना जाता है।

3. शिवलिंग की रहस्यमयी आकृति: स्थानीय मान्यता है कि मंदिर में स्थित शिवलिंग धीरे-धीरे बड़ा हो रहा है।

4. सूर्य की किरणों का प्रभाव: महाशिवरात्रि के दिन सूर्य की पहली किरण सीधे शिवलिंग पर पड़ती है, जिससे इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।

नीलकंठेश्वर मंदिर और आधुनिक काल

(i) वर्तमान में मंदिर की स्थिति

वर्तमान में यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में है। समय के साथ मंदिर की कुछ संरचनाएँ क्षतिग्रस्त हो गई थीं, लेकिन अब इन्हें धीरे-धीरे पुनः स्थापित किया जा रहा है।

(ii) डिजिटल प्रचार-प्रसार

आज के डिजिटल युग में इस मंदिर की जानकारी सोशल मीडिया, यूट्यूब और वेबसाइटों के माध्यम से दुनिया भर में फैलाई जा रही है। श्रद्धालु ऑनलाइन दर्शन और पूजा की सुविधा भी प्राप्त कर सकते हैं।

पर्यटन और नीलकंठेश्वर मंदिर

नीलकंठेश्वर मंदिर धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, इसलिए यह पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है।

(i) किन लोगों को अवश्य जाना चाहिए?

इतिहास और वास्तुकला में रुचि रखने वालों के लिए यह मंदिर एक अनमोल धरोहर है।

श्रद्धालुओं के लिए यह मंदिर आस्था और भक्ति का केंद्र है।

ध्यान और योग करने वालों के लिए यह स्थान अत्यंत शांतिपूर्ण है।

(ii) मंदिर यात्रा के लिए सर्वश्रेष्ठ समय

अक्टूबर से मार्च: यह समय मौसम के लिहाज से सबसे अनुकूल होता है।

श्रावण मास और महाशिवरात्रि: इस समय मंदिर में विशेष कार्यक्रम होते हैं, लेकिन भारी भीड़ रहती है।

(iii) मंदिर के पास अन्य दर्शनीय स्थल

उदयगिरि गुफाएँ: यहाँ प्राचीन भारतीय मूर्तिकला के अद्भुत उदाहरण देखने को मिलते हैं।

सांची स्तूप: यदि आप इतिहास प्रेमी हैं, तो यह जगह भी देखने लायक है।

भीमबेटका की गुफाएँ: प्रागैतिहासिक चित्रों के लिए प्रसिद्ध हैं।

नीलकंठेश्वर मंदिर का संरक्षण और भविष्य

नीलकंठेश्वर मंदिर भारतीय इतिहास और संस्कृति की एक अनमोल धरोहर है, जिसे संरक्षित करना हमारा कर्तव्य है। समय के साथ मंदिर की संरचना पर प्राकृतिक और मानवीय प्रभावों का असर पड़ा है, लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और स्थानीय प्रशासन इसके संरक्षण में जुटे हुए हैं।

(i) मंदिर के संरक्षण के लिए उठाए गए कदम

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा रखरखाव:

इस मंदिर को संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है और इसके पुनर्निर्माण एवं संरक्षण के लिए विशेष अभियान चलाए जा रहे हैं।

मंदिर की सफाई एवं सौंदर्यीकरण:

मंदिर परिसर में समय-समय पर सफाई अभियान चलाए जाते हैं, ताकि इसकी सुंदरता बनी रहे।

स्थानीय प्रशासन और श्रद्धालुओं की भागीदारी:

मंदिर को संरक्षित रखने में स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। वे स्वेच्छा से योगदान देकर इसके रखरखाव में सहायता करते हैं।

डिजिटल जागरूकता:

सोशल मीडिया और सरकारी वेबसाइटों के माध्यम से इस मंदिर के इतिहास और इसके संरक्षण की जानकारी लोगों तक पहुँचाई जा रही है।

नीलकंठेश्वर मंदिर से जुड़ी कुछ प्रमुख चुनौतियाँ

हालांकि नीलकंठेश्वर मंदिर एक ऐतिहासिक धरोहर है, लेकिन इसके संरक्षण और सुरक्षा को लेकर कुछ चुनौतियाँ भी हैं।

(i) प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव

समय के साथ वर्षा, भूकंप और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण मंदिर की दीवारों और मूर्तियों पर असर पड़ा है। कुछ जगहों पर नक्काशी धुंधली हो गई है और पत्थर का क्षरण हो रहा है।

(ii) अवैध गतिविधियाँ और अतिक्रमण

कुछ बाहरी तत्वों द्वारा अवैध अतिक्रमण और अव्यवस्थित निर्माण कार्य मंदिर की ऐतिहासिकता को नुकसान पहुँचा सकते हैं। सरकार द्वारा इस पर नियंत्रण के लिए विशेष कानून लागू किए जा रहे हैं।

(iii) जागरूकता की कमी

आज भी कई लोग इस मंदिर के ऐतिहासिक महत्व से अनजान हैं। यदि इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए, तो न केवल इसकी देखभाल अच्छी होगी, बल्कि इसे वैश्विक पहचान भी मिलेगी।

नीलकंठेश्वर मंदिर को विश्व धरोहर में शामिल करने की संभावना

अगर उचित प्रयास किए जाएँ, तो यह मंदिर यूनेस्को (UNESCO) की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया जा सकता है। इसके लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिए—

1. सरकारी स्तर पर प्रयास:

भारत सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।

2. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार:

मंदिर की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुँचाने के लिए डॉक्युमेंट्री और शोध कार्य किए जाने चाहिए।

3. पर्यटन को बढ़ावा देना:

यदि इस स्थान को आधिकारिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए, तो यहाँ अधिक से अधिक लोगों का आगमन होगा, जिससे इसके संरक्षण के लिए आर्थिक सहायता भी मिल सकेगी।

4. स्थानीय समुदाय की भागीदारी:

स्थानीय लोगों को मंदिर के रखरखाव और संरक्षण में सक्रिय रूप से शामिल करना आवश्यक है।

नीलकंठेश्वर मंदिर का इतिहास: शिव भक्ति, वास्तुकला और रहस्यमय तथ्य | जानें इसकी अनोखी कहानी!

नीलकंठेश्वर मंदिर: आध्यात्मिकता और भारतीय संस्कृति का प्रतीक

यह मंदिर केवल पत्थरों से बनी एक संरचना नहीं, बल्कि भारतीय आध्यात्मिकता और संस्कृति की जीवंत पहचान है। यह हमें यह याद दिलाता है कि हमारी संस्कृति कितनी समृद्ध और गौरवशाली रही है।

(i) भारतीय दर्शन और शिव तत्व

भगवान शिव भारतीय संस्कृति के मूल आधारों में से एक हैं। वे सृजन और विनाश के देवता हैं, जो जीवन के संतुलन को दर्शाते हैं। नीलकंठेश्वर मंदिर इसी शिव तत्व की झलक प्रस्तुत करता है।

(ii) कला, स्थापत्य और विज्ञान का संगम

यह मंदिर सिर्फ धार्मिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं, बल्कि इसमें प्राचीन भारतीय वास्तुकला और विज्ञान का भी अद्भुत मिश्रण देखा जा सकता है।

(iii) श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र

मंदिर की शांत और दिव्य वातावरण में आकर भक्तों को मानसिक और आध्यात्मिक शांति का अनुभव होता है। यह स्थल न केवल पूजा-अर्चना के लिए, बल्कि ध्यान और साधना के लिए भी उपयुक्त है।

मंदिर का भविष्य और हमारी भूमिका

नीलकंठेश्वर मंदिर हमारे गौरवशाली अतीत की निशानी है। हमें इसे न केवल एक धार्मिक स्थल, बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी देखना चाहिए। इसके संरक्षण और प्रचार-प्रसार में हम सभी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।

(i) हमारी जिम्मेदारी क्या होनी चाहिए?

मंदिर की स्वच्छता और सुरक्षा में योगदान देना।

इसके संरक्षण से जुड़ी सरकारी योजनाओं का समर्थन करना।

मंदिर की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाना।

डिजिटल माध्यमों (ब्लॉग, सोशल मीडिया) से इस मंदिर के बारे में जागरूकता फैलाना।

(ii) सरकार और प्रशासन की भूमिका

मंदिर को आधिकारिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना।

विश्व धरोहर सूची में शामिल करवाने के लिए प्रयास करना।

आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके मंदिर की मरम्मत और संरक्षण कार्य को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष: नीलकंठेश्वर मंदिर – शिव भक्ति का प्रतीक

नीलकंठेश्वर मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह भारत की समृद्ध संस्कृति, वास्तुकला और आध्यात्मिकता का एक जीवंत प्रमाण भी है। इस मंदिर में आकर न केवल शिवभक्तों को आत्मिक शांति मिलती है, बल्कि इतिहास प्रेमियों को प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला का अद्भुत अनुभव भी होता है।

मुख्य बातें:

1. ऐतिहासिक महत्व: यह मंदिर 11वीं शताब्दी में परमार राजा उदयादित्य द्वारा निर्मित किया गया था।

2. वास्तुकला: इसमें नागर शैली की उत्कृष्ट कारीगरी देखने को मिलती है।

3. धार्मिक महत्व: यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और महाशिवरात्रि तथा श्रावण मास में विशेष पूजा होती है।

4. संरक्षण: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और स्थानीय प्रशासन इसके संरक्षण में जुटे हुए हैं।

5. पर्यटन: इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है।

6. भविष्य: यदि सही प्रयास किए जाएँ, तो यह मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल हो सकता है।

अंततः, नीलकंठेश्वर मंदिर केवल एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, इतिहास और आध्यात्मिकता की अनमोल धरोहर है। हमें इसे सहेजना और संरक्षित रखना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस गौरवशाली इतिहास को देख और समझ सकें।

निष्कर्ष

नीलकंठेश्वर मंदिर भारत की अद्भुत स्थापत्य कला, धार्मिक आस्था और ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक है। यह मंदिर न केवल भगवान शिव के भक्तों के लिए बल्कि इतिहास, वास्तुकला और आध्यात्मिकता में रुचि रखने वालों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

मुख्य बिंदु:

यह मंदिर 11वीं शताब्दी में परमार वंश के राजा उदयादित्य द्वारा बनवाया गया था।

इसकी वास्तुकला नागर शैली की उत्कृष्ट कृति मानी जाती है।

मंदिर की नक्काशी में शिव, विष्णु, पार्वती, गणेश और अन्य पौराणिक चरित्रों का चित्रण किया गया है।

महाशिवरात्रि, श्रावण मास और कार्तिक पूर्णिमा पर यहाँ विशेष पूजा-अर्चना होती है।

यह स्थल आध्यात्मिक शांति के लिए भी प्रसिद्ध है।

अगर आप कभी मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले में जाएँ, तो इस दिव्य और ऐतिहासिक मंदिर के दर्शन अवश्य करें। यह केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और विरासत का एक अनमोल खजाना है।

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