शुरुआत में किला चूने के पत्थरों (white limestone) से बना था, बाद में लाल बलुआ पत्थर से रंग करवाया गया — इसलिए इसे “Red Fort” कहा गया।

लाल किले की डिजाइन में तीन संस्कृतियों का अनोखा मेल है — जो इसे दुनिया में अद्वितीय बनाता है।

किले में पानी की नहरें और फव्वारे इस तरह बनाए गए थे कि गर्मी में भी अंदर ठंडक बनी रहती थी — इसे “नहर-ए-बहिश्त” कहा जाता था।

किले के नीचे से चांदनी चौक और यमुना किनारे तक गुप्त रास्ते थे, जो युद्ध के समय निकलने के लिए इस्तेमाल होते थे।

किले में बने ‘शाही बुर्ज़’ के पास एक गुप्त तहखाना था, जहाँ सम्राट का निजी खजाना रखा जाता था।

किले के अंदर बनी मोती मस्जिद शाहजहाँ के बेटे औरंगज़ेब ने खुद के लिए बनवाई थी, जहाँ वह शांति से नमाज़ पढ़ता था।

जहाँ शाहजहाँ का प्रसिद्ध ‘तख़्त-ए-ताऊस’ (Peacock Throne) था, वहाँ अब सिर्फ उसका स्थान बचा है। इसे नादिरशाह लूटकर ले गया।

यहाँ एक विशेष पानी की घड़ी (Water Clock) थी जो दरबार में समय बताने के लिए उपयोग होती थी।

1947 में जब नेहरू ने यहीं से तिरंगा फहराया, तभी से हर साल 15 अगस्त को प्रधानमंत्री यहीं से राष्ट्र को संबोधित करते हैं।

1947 में जब नेहरू ने यहीं से तिरंगा फहराया, तभी से हर साल 15 अगस्त को प्रधानमंत्री यहीं से राष्ट्र को संबोधित करते हैं।