Trump का बड़ा दावा: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में रिपब्लिकन बैठक में एक महत्वपूर्ण घोषणा की हैं जिसमें उन्होंने अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी (USAID) द्वारा भारत में मतदाता भागीदारी बढ़ाने के लिए आवंटित राशि $21 मिलियन (लगभग 182 करोड़ रुपये) के अनुदान को रद्द कर दिया गया है। उन्होंने इस अनुदान को ‘किकबैक स्कीम’ नाम दिया, जिससे भारत और अमेरिका के बीच कूटनीतिक संबंधों बीच तनाव की स्तिथि उत्पन्न हो गयी है।
Trump का आरोप: भारत के लिए रद्द हुआ $21M USAID ग्रांट ‘किकबैक स्कीम’?
Trump का बयान और विवाद की शुरुआत
16 फरवरी 2025 को, अमेरिकी सरकारी दक्षता विभाग (DOGE) ने एक अधिसूचना जारी की, जिसमें USAID द्वारा विभिन्न देशों में वितरित किए गए अनुदानों का लेखा जोखा था।
इस सूची में ‘भारत में मतदाता मतदान’ के लिए आवंटित धनराशि $21 मिलियन का उल्लेख था। इसके बाद, मियामी में एक रिपब्लिकन गवर्नर्स एसोसिएशन की बैठक आयोजित हुई
जिसमें, अमेरिकी राष्ट्रपति Donald Trump ने इस अनुदान पर सवाल उठाते हुए कहा, “हम भारत में मतदान बढ़ाने के लिए $21 मिलियन धनराशि क्यों खर्च कर रहे हैं? अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के इस बयान से दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों मे तनाव की स्तिथि बन गयी हैं | Read more…

भारत की प्रतिक्रिया
Trump के इस बयान के बाद, भारत सरकार ने इसे गंभीरता से लिया हैं। भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जयसवाल ने एक प्रेस वार्ता में कहा, “हमने अमेरिकी प्रशासन द्वारा जारी की गई जानकारी देखी है,
जो कुछ USAID गतिविधियों और फंडिंग से संबंधित है। ये जानकारी भारत जैसे लोकतंत्र के लिए बेहद चिंताजनक है और इससे भारत के आंतरिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप की आशंका बढ़ सकती है।
इससे संबंधित विभाग और एजेंसियां इस मामले की गहनता पूर्वक जांच कर रही हैं।”
राजनीतिक विवाद और मीडिया रिपोर्ट्स
इस मुद्दे ने भारत में राजनीतिक मुद्दों को लकेर हलचल मचा दी है। वहीं दूसरी ओर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने एक-दूसरे पर विदेशी फंडिंग से लाभ उठाने के आरोप लगाए हैं।
भाजपा के वरिष्ठ प्रवक्ता अमित मालवीय ने कहा, “मतदाता मतदान के लिए $21 मिलियन? यह निश्चित रूप से भारत की चुनावी प्रक्रिया में बाहरी हस्तक्षेप है।
इससे किसे लाभ होगा? निश्चित रूप से सत्तारूढ़ पार्टी को नहीं!” इस मामले को अभी पूरी तरह सुनिश्चित नहीं किया जा चुका हैं कि मामले की असली हकीकत क्या हैं?
हालांकि, भारत की मीडिया एजेंसी के अनुसार $21 मिलियन वास्तव में भारत के लिए नहीं, बल्कि बांग्लादेश के लिए आवंटित किए गए थे। रिपोर्ट में
यह भी कहा गया है कि यह राशि बांग्लादेश में राजनीतिक और नागरिक सहभागिता को बढ़ावा देने के लिए जनवरी 2024 के चुनावों से पहले वितरित की गई थी।
USAID और DOGE की भूमिका
USAID एक अमेरिकी सरकारी एजेंसी है, जो विकासशील देशों को सहायता प्रदान करती है। इस एजेंसी का मुख्य उद्देश्य गरीबी, बीमारी, अकाल और आपदाओं में मदद करना है।
वहीं, DOGE (Department of Government Efficiency) अमेरिकी सरकार का एक विभाग है, जो सरकारी खर्चों की दक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है।
एलन मस्क के नेतृत्व में, DOGE ने हाल ही में कई अनुदानों की समीक्षा की और उन्हें रद्द करने का निर्णय लिया, जिसमें ‘भारत में मतदाता मतदान’ के लिए $21 मिलियन का अनुदान भी शामिल था।
एलन मस्क की प्रतिक्रिया
DOGE के प्रमुख एलन मस्क ने भी इस मुद्दे पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने X पोर्टल पर ट्वीट करते हुए कहा कि, “USAID ने भारत में मतदान बढ़ाने के लिए $21 मिलियन आवंटित किए थे।
यह समझ से परे है कि अमेरिकी करदाताओं का पैसा इस तरह के उद्देश्यों के लिए क्यों इस्तेमाल हो रहा है।” उनके इस बयान ने विवाद की स्तिथि को ओर ज्यादा और बिगाड़ दिया हैं |
भारत-अमेरिका संबंधों पर प्रभाव
इस विवाद के चलते भारत और अमेरिका के बीच कूटनीतिक संबंधों में तनाव की स्तिथि पैदा हो गयी है। भारत ने अमेरिकी प्रशासन से इस मामले में स्पष्टीकरण की मांग की है।
वहीं, अमेरिकी अधिकारियों ने भी इस मुद्दे पर आंतरिक तौर पर समीक्षा शुरू कर दी है। इस मामले पर विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के विवाद दोनों देशों के बीच विश्वास को प्रभावित कर सकते हैं और भविष्य में द्विपक्षीय सहयोग पर असर डाल सकते हैं।
आगे की संभावनाएँ
यह विवाद सिर्फ भारत और अमेरिका के राजनीतिक संबंधों तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे दोनों देशों की जनता के बीच भी सवाल उठने लगे हैं। आइए जानते हैं कि इस मामले में आगे क्या संभावनाएँ बन सकती हैं:
1. भारत सरकार की जाँच और संभावित कदम
भारत सरकार इस मामले की गहराई से जाँच कर रही है। अगर यह साबित हो जाता है कि USAID का यह फंड वास्तव में भारत के किसी राजनीतिक दल या चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था, तो भारत सरकार निम्नलिखित कदम उठा सकती है:
विदेशी अनुदानों की जाँच: भारतीय चुनाव आयोग और प्रवर्तन निदेशालय (ED) विदेशी अनुदानों की निगरानी बढ़ा सकते हैं।
नए नियम लागू हो सकते हैं: भारत सरकार विदेशी फंडिंग से जुड़े कानूनों को और कठोर बना सकती है, खासकर चुनावी प्रक्रियाओं में। जिससे इस विवाद की गहराई तक पंहुचा जा सके |
अमेरिका से आधिकारिक स्पष्टीकरण की माँग: भारतीय विदेश मंत्रालय अमेरिकी सरकार से इस मामले की औपचारिक स्पष्टीकरण की माँग कर सकता है और कूटनीतिक चैनलों के माध्यम से इस मुद्दे को उठाया जा सकता है।
2. अमेरिका की प्रतिक्रिया और संभावित प्रभाव
अमेरिकी प्रशासन इस मुद्दे को दबाने की कोशिश कर सकता है या फिर यह तर्क दे सकता है कि यह अनुदान पूरी तरह पारदर्शी प्रक्रिया के तहत दिया गया था। लेकिन चूँकि यह मामला राष्ट्रपति Trump द्वारा सार्वजनिक रूप से उठाया गया है, इसलिए कुछ संभावित परिणाम हो सकते हैं:
Trump प्रशासन इस पर और कड़े कदम उठा सकता है, जिसमें अन्य विदेशी अनुदानों की भी समीक्षा हो सकती है।
अमेरिकी कांग्रेस इस मामले की जाँच शुरू कर सकती है कि USAID किन देशों को और किन उद्देश्यों के लिए फंडिंग देता है।
अमेरिका और भारत के व्यापारिक संबंधों पर असर पड़ सकता है, क्योंकि कूटनीतिक तनाव का असर आर्थिक नीतियों पर भी पड़ता है।
3. भारतीय राजनीति में उठ रहे सवाल
इस मामले ने भारत में सत्ताधारी और विपक्षी दलों के बीच नई बहस छेड़ दी है। कुछ मुख्य सवाल जो उठाए जा रहे हैं:
क्या भारत में चुनावों को प्रभावित करने के लिए विदेशी फंडिंग का उपयोग हो रहा है?
क्या USAID जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों को भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप करने दिया जाना चाहिए?
क्या भारत को विदेशी अनुदानों को स्वीकार करने की नीति में बदलाव करने की जरूरत है?
4. क्या भारत को अमेरिका पर निर्भरता कम करनी चाहिए?
यह विवाद इस बड़े सवाल को भी जन्म देता है कि क्या भारत को अमेरिका पर अपनी राजनीतिक और आर्थिक निर्भरता कम करनी चाहिए? इस मामले को लेकर कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि:
भारत को आत्मनिर्भर बनने और विदेशी सहायता पर कम निर्भर होने की जरूरत है।
अमेरिकी नीतियों से प्रभावित होने के बजाय भारत को अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर जोर देना चाहिए।
भारत को अपने चुनावी और संवैधानिक ढांचे को मजबूत करना चाहिए, ताकि बाहरी हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश न रहे। Click here
निष्कर्ष:
यह विवाद सिर्फ एक अनुदान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों की जटिलता को उजागर करता है।
भारत को स्पष्ट करना होगा कि वह किसी भी विदेशी हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं करेगा।
अमेरिका को भी यह तय करना होगा कि वह भारत जैसे लोकतांत्रिक देश की संप्रभुता का सम्मान करता है या नहीं।
इस विवाद से दोनों देशों के बीच राजनयिक बातचीत बढ़ सकती है, और भविष्य में भारत को विदेशी फंडिंग को लेकर सख्त नियम बनाने की जरूरत पड़ सकती है।