आपदा प्रबंधन 2024: सरकार की नई रणनीति और 'Zero Casualty' मिशन की पूरी सच्चाई!

आपदा प्रबंधन 2024: सरकार की नई रणनीति और ‘Zero Casualty’ मिशन की पूरी सच्चाई!

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आपदा प्रबंधन 2024: मोदी सरकार की नई योजना से कितना बदलेगा भारत?

भारत एक विशाल और विविधतापूर्ण भौगोलिक क्षेत्र वाला देश है, जहाँ विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक और मानवजनित आपदाएँ समय-समय पर देश की सामाजिक और आर्थिक संरचना को प्रभावित करती हैं। बाढ़, चक्रवात, भूकंप, भूस्खलन, सूखा और औद्योगिक दुर्घटनाएँ यहाँ की आम समस्याएँ हैं। इनसे निपटने के लिए सरकार ने आपदा प्रबंधन को एकीकृत और सुदृढ़ करने के लिए विभिन्न कदम उठाए हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने आपदा प्रबंधन में ‘जीरो कैजुअल्टी’ (शून्य मृत्यु) के लक्ष्य को प्राथमिकता दी है। इसके तहत न केवल आपदाओं से निपटने के लिए बेहतर तैयारी की जा रही है, बल्कि आपदा पूर्वानुमान, राहत और पुनर्वास कार्यों में भी सुधार लाया जा रहा है।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की भूमिका

भारत में आपदा प्रबंधन को एक संगठित रूप देने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की स्थापना 2005 में आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत की गई थी।

NDMA का मुख्य उद्देश्य देश में आपदा न्यूनीकरण (Disaster Mitigation), तैयारी (Preparedness), प्रतिक्रिया (Response) और पुनर्वास (Rehabilitation) की नीति बनाना और उनका क्रियान्वयन करना है।

NDMA के अंतर्गत राज्यों और जिलों में भी आपदा प्रबंधन समितियों का गठन किया गया है, जिससे आपदा के समय त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया दी जा सके। NDMA के कार्यों में शामिल हैं:

  1. आपदा न्यूनीकरण की नीति बनाना
  2. संबंधित एजेंसियों का समन्वय
  3. आपदा प्रबंधन से जुड़े प्रशिक्षण कार्यक्रमों का संचालन
  4. संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान और उनके लिए विशेष योजनाएँ बनाना
  5. आपदा पूर्वानुमान और चेतावनी प्रणाली का सुदृढ़ीकरण

मोदी सरकार के प्रमुख कदम

1. जीरो कैजुअल्टी लक्ष्य और त्वरित प्रतिक्रिया प्रणाली

मोदी सरकार ने आपदा प्रबंधन में ‘जीरो कैजुअल्टी’ यानी शून्य मृत्यु दर का लक्ष्य रखा है। इसका अर्थ यह है कि किसी भी प्राकृतिक या मानवजनित आपदा में किसी भी नागरिक की जान न जाए। इसके लिए सरकार ने कुछ प्रमुख रणनीतियाँ अपनाई हैं:

पूर्व चेतावनी प्रणाली (Early Warning System): सटीक मौसम भविष्यवाणी प्रणाली विकसित की गई है, जिससे चक्रवात, बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं।

राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) की मजबूती: मोदी सरकार ने NDRF की दक्षता को बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया है, जिससे आपदाओं के समय त्वरित और प्रभावी कार्रवाई की जा सके।

स्थानीय प्रशासन का सशक्तिकरण: राज्यों और जिलों में आपदा प्रबंधन इकाइयों को अधिक संसाधन और प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है, जिससे वे संकट के समय प्रभावी निर्णय ले सकें।

2. स्मार्ट टेक्नोलॉजी और डेटा एनालिटिक्स का उपयोग

सरकार ने आपदा प्रबंधन में डिजिटल तकनीक और डेटा एनालिटिक्स को बढ़ावा दिया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की मदद से सैटेलाइट इमेजिंग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और बिग डेटा का उपयोग करके प्राकृतिक आपदाओं का सटीक पूर्वानुमान लगाया जा रहा है।

भूकंप और चक्रवात चेतावनी प्रणाली: IMD ने नई तकनीकों के माध्यम से चक्रवातों की सटीक चेतावनी देने की क्षमता विकसित की है, जिससे समय रहते लोगों को सुरक्षित निकाला जा सकता है।

ड्रोन और रोबोटिक्स का उपयोग: आपदाओं के बाद बचाव कार्यों में ड्रोन और रोबोट तकनीक का प्रयोग बढ़ाया गया है, जिससे कठिन इलाकों में भी राहत कार्य सुचारू रूप से किए जा सकते हैं।

3. बाढ़ और चक्रवात प्रबंधन में सुधार

भारत में बाढ़ और चक्रवात सबसे आम आपदाओं में से एक हैं। मोदी सरकार ने इनके प्रबंधन के लिए कई ठोस कदम उठाए हैं:

जल निकासी और बाढ़ नियंत्रण योजनाएँ: नदियों के जल स्तर की निगरानी के लिए रियल-टाइम फ्लड फोरकास्टिंग सिस्टम विकसित किया गया है।

चक्रवात पूर्व चेतावनी प्रणाली: तटीय राज्यों में IMD के सहयोग से चक्रवात चेतावनी केंद्र स्थापित किए गए हैं, जिससे पहले से लोगों को सतर्क किया जा सके।

राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम न्यूनीकरण परियोजना (NCRMP): इसके तहत चक्रवात से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जा रहा है।

4. आपदा प्रबंधन में सामुदायिक भागीदारी

सरकार ने ‘आपदा न्यूनीकरण में जनभागीदारी’ को बढ़ावा दिया है। इसके अंतर्गत:

स्थानीय समुदायों को प्रशिक्षण: विभिन्न राज्यों में ग्राम स्तर पर आपदा तैयारी प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

स्कूलों और कॉलेजों में आपदा शिक्षा: नई शिक्षा नीति के तहत स्कूली पाठ्यक्रमों में आपदा प्रबंधन को शामिल किया गया है।

स्वयंसेवी संगठनों और एनजीओ की भागीदारी: सरकार ने विभिन्न एनजीओ और सामाजिक संगठनों को राहत कार्यों में शामिल किया है।

5. औद्योगिक और मानवीय आपदाओं का प्रबंधन

केवल प्राकृतिक आपदाएँ ही नहीं, बल्कि औद्योगिक दुर्घटनाएँ और जैविक आपदाएँ (जैसे महामारी) भी गंभीर चुनौती बन सकती हैं। मोदी सरकार ने इसके लिए विशेष योजनाएँ लागू की हैं:

COVID-19 महामारी का प्रभावी प्रबंधन: सरकार ने लॉकडाउन, वैक्सीनेशन और अस्पताल सुविधाओं के विस्तार के माध्यम से COVID-19 जैसी महामारी का सफलतापूर्वक प्रबंधन किया।

औद्योगिक सुरक्षा के नियम कड़े किए गए: विषाक्त गैस लीक और अन्य औद्योगिक आपदाओं से निपटने के लिए नए सुरक्षा मानकों को लागू किया गया।

राष्ट्रीय जैविक आपदा प्रबंधन योजना: जैविक आपदाओं से निपटने के लिए एक विस्तृत योजना तैयार की गई है, जिसमें महामारी और जैव आतंकवाद से निपटने की रणनीति शामिल है।

भविष्य की रणनीतियाँ और चुनौतियाँ

हालाँकि, सरकार ने आपदा प्रबंधन को लेकर कई सुधार किए हैं, लेकिन अभी भी कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं:

1. वित्तीय संसाधनों की कमी: आपदा प्रबंधन योजनाओं को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए अधिक बजट की आवश्यकता है।

2. ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में जागरूकता की कमी: कई क्षेत्रों में लोग अभी भी आपदाओं से निपटने के लिए पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित नहीं हैं।

3. जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: बढ़ते जलवायु परिवर्तन से आपदाओं की तीव्रता और आवृत्ति बढ़ रही है, जिससे नई रणनीतियों की आवश्यकता है।

भविष्य में सरकार को सतत विकास और आपदा न्यूनीकरण को ध्यान में रखते हुए योजनाएँ बनानी होंगी। हरित ऊर्जा, पर्यावरण संरक्षण, और स्मार्ट इंफ्रास्ट्रक्चर से भारत को आपदा-रोधी राष्ट्र बनाने की दिशा में आगे बढ़ाया जा सकता है।

भारत को आपदा-रोधी राष्ट्र बनाने की दिशा में अगले कदम

मोदी सरकार की आपदा प्रबंधन रणनीतियाँ अब तक सफल रही हैं, लेकिन भविष्य में भारत को और भी अधिक सशक्त और आपदा-रोधी (Disaster-Resilient) बनाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे।

1. स्मार्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास

आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए स्मार्ट और आपदा-रोधी बुनियादी ढाँचा (Disaster-Resilient Infrastructure) विकसित करना बेहद जरूरी है। इसके तहत:

भूकंप-रोधी भवनों का निर्माण: विशेष रूप से भूकंप-प्रवण क्षेत्रों में ऐसे भवन बनाए जाएँ जो भूकंप के झटकों को झेल सकें।

स्मार्ट शहरी योजना: बाढ़-प्रवण शहरों में जल निकासी प्रणाली को मजबूत करना और समुद्री तटों पर मजबूत बाँधों का निर्माण।

पर्यावरण-अनुकूल निर्माण: प्राकृतिक संसाधनों का न्यूनतम उपयोग कर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने वाले निर्माण कार्य।

आपदा प्रबंधन 2024: सरकार की नई रणनीति और 'Zero Casualty' मिशन की पूरी सच्चाई!
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2. ग्रामीण भारत में आपदा प्रबंधन की पहुँच बढ़ाना

भारत का एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण इलाकों में स्थित है, जहाँ आपदा प्रबंधन की पहुँच सीमित है।

ग्राम पंचायत स्तर पर आपदा प्रबंधन समितियाँ बनाई जानी चाहिए।

स्थानीय लोगों को प्राथमिक चिकित्सा और बचाव कार्यों का प्रशिक्षण देना जरूरी है।

सौर ऊर्जा और जल संरक्षण तकनीकों को बढ़ावा देकर सूखा प्रभावित क्षेत्रों को सशक्त बनाया जा सकता है।

3. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करना

भारत को जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली आपदाओं से निपटने के लिए दीर्घकालिक रणनीतियाँ अपनाने की जरूरत है। इसके लिए:

वनों की अंधाधुंध कटाई को रोकना और पुनर्वनीकरण को बढ़ावा देना।

ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए हरित ऊर्जा (Renewable Energy) पर अधिक निवेश।

जल स्रोतों का संरक्षण और जल प्रबंधन तकनीकों को अपनाना।

4. सशस्त्र बलों की भूमिका और सैन्य तैयारियाँ

भारतीय सेना, नौसेना, वायुसेना और अर्धसैनिक बलों ने कई आपदाओं के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) और सशस्त्र बलों के बीच बेहतर समन्वय जरूरी है।

आपदा प्रबंधन में सेना के विशेष बलों का गठन, जो विशेष रूप से बड़े स्तर की आपदाओं से निपटने के लिए प्रशिक्षित हों।

जल, थल और वायु सेना की संयुक्त बचाव एवं राहत अभियान रणनीति को और मजबूत करना।

5. आपदा बीमा और वित्तीय सुरक्षा

आपदाओं के कारण नागरिकों और सरकार को भारी आर्थिक क्षति होती है।

सरकार को एक राष्ट्रीय आपदा बीमा योजना (National Disaster Insurance Scheme) लागू करनी चाहिए, जिससे प्रभावित लोगों को आर्थिक सहायता मिल सके।

बाढ़ और चक्रवात प्रभावित क्षेत्रों में विशेष बीमा योजनाएँ लागू करना।

किसानों के लिए आपदा बीमा योजना को और मजबूत बनाना, ताकि प्राकृतिक आपदाओं के कारण उनकी फसल बर्बाद होने पर उन्हें पर्याप्त मुआवजा मिले।

6. शिक्षण संस्थानों में आपदा प्रबंधन की शिक्षा

लोगों में आपदा प्रबंधन के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए:

स्कूलों और कॉलेजों के पाठ्यक्रम में आपदा प्रबंधन को अनिवार्य विषय बनाया जाए।

छात्रों के लिए मॉक ड्रिल और आपातकालीन स्थितियों में प्रतिक्रिया देने का प्रशिक्षण।

शिक्षकों और प्रशासनिक अधिकारियों को आपदा प्रबंधन में प्रशिक्षित करना।

7. राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग

भारत को आपदा प्रबंधन में अन्य देशों के साथ सहयोग बढ़ाने की जरूरत है।

संयुक्त राष्ट्र (UN), विश्व बैंक और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से तकनीकी और वित्तीय सहायता लेना।

दक्षिण एशियाई देशों (SAARC) के साथ आपदा प्रबंधन पर संयुक्त समझौते करना।

आपदा प्रबंधन से जुड़े अनुसंधान और नवाचार में वैश्विक विशेषज्ञों का सहयोग।

आपदा प्रबंधन से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके विस्तृत उत्तर

प्रश्न 1: आपदा प्रबंधन क्या है, और इसके मुख्य घटक कौन-कौन से हैं?

उत्तर:

आपदा प्रबंधन (Disaster Management) वह प्रक्रिया है जिसके तहत किसी आपदा से पहले, दौरान और बाद में की जाने वाली तैयारी, प्रतिक्रिया, राहत, पुनर्वास और पुनर्निर्माण से जुड़े कार्यों को व्यवस्थित रूप से संचालित किया जाता है।

आपदा प्रबंधन के मुख्य घटक निम्नलिखित हैं:

1. आपदा न्यूनीकरण (Mitigation): आपदा के प्रभाव को कम करने के लिए पहले से किए गए प्रयास, जैसे कि मजबूत इमारतों का निर्माण, बाढ़ नियंत्रण प्रणाली आदि।

2. तैयारी (Preparedness): आपदा से पहले की जाने वाली तैयारियाँ, जैसे कि मॉक ड्रिल, बचाव टीमों का गठन और आपदा चेतावनी प्रणाली।

3. प्रतिक्रिया (Response): आपदा के दौरान की जाने वाली कार्रवाई, जैसे कि बचाव और राहत कार्य।

4. पुनर्वास और पुनर्निर्माण (Recovery & Rehabilitation): आपदा के बाद प्रभावित क्षेत्रों को पुनः बसाना, क्षतिग्रस्त बुनियादी ढाँचे की मरम्मत और लोगों को सामान्य जीवन में वापस लाना।

प्रश्न 2: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) क्या है, और इसकी भूमिका क्या है?

उत्तर:

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) भारत सरकार की एक शीर्ष संस्था है, जो देश में आपदा प्रबंधन की योजना और नीतियाँ बनाती है।

NDMA की मुख्य भूमिकाएँ:

  1. आपदा निवारण और न्यूनीकरण की नीतियाँ बनाना।
  2. आपदा प्रबंधन से जुड़ी योजनाओं का क्रियान्वयन सुनिश्चित करना।
  3. राज्यों को आपदा प्रबंधन के लिए आवश्यक सहायता और दिशा-निर्देश प्रदान करना।
  4. राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) को प्रशिक्षित करना और उनकी कार्यक्षमता बढ़ाना।
  5. तकनीकी नवाचारों को बढ़ावा देना और आपदा पूर्वानुमान प्रणाली को मजबूत बनाना।
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प्रश्न 3: मोदी सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन में उठाए गए प्रमुख कदम कौन-कौन से हैं?

उत्तर:

मोदी सरकार ने ‘जीरो कैजुअल्टी’ लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए आपदा प्रबंधन को मजबूत बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं:

1. आपदा पूर्वानुमान प्रणाली को आधुनिक बनाना: सैटेलाइट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है ताकि आपदाओं की सटीक भविष्यवाणी की जा सके।

2. राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) को मजबूत करना: NDRF को अधिक संसाधन, अत्याधुनिक उपकरण और विशेष प्रशिक्षण दिया गया है।

3. प्रधानमंत्री आपदा राहत कोष (PM CARES Fund) का गठन: जिससे आपदा प्रभावित लोगों को त्वरित सहायता दी जा सके।

4. बाढ़ नियंत्रण और चक्रवात सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक योजना: राज्यों के साथ मिलकर तटवर्ती और बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में विशेष सुरक्षा उपाय किए गए हैं।

5. ग्रामीण क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन की पहुँच बढ़ाना: ग्रामीण स्तर पर आपदा प्रबंधन समितियाँ बनाई जा रही हैं, ताकि स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित किया जा सके।

प्रश्न 4: जलवायु परिवर्तन आपदा प्रबंधन को कैसे प्रभावित करता है?

उत्तर:

जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक आपदाओं की संख्या और तीव्रता दोनों में वृद्धि हुई है। इसके प्रभाव निम्नलिखित हैं:

1. बाढ़ और चक्रवात की बढ़ती घटनाएँ: समुद्री स्तर बढ़ने और चरम मौसमी परिस्थितियों के कारण बाढ़ और चक्रवात अधिक खतरनाक होते जा रहे हैं।

2. सूखा और हीटवेव: जलवायु परिवर्तन के कारण कई क्षेत्रों में लंबे समय तक सूखा और अत्यधिक गर्मी की घटनाएँ बढ़ रही हैं।

3. ग्लेशियरों का पिघलना: हिमालयी क्षेत्रों में ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के कारण बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएँ बढ़ी हैं।

4. फसल उत्पादन में गिरावट: जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में अनिश्चितता बढ़ गई है, जिससे कृषि क्षेत्र प्रभावित हो रहा है और खाद्य सुरक्षा पर खतरा बढ़ रहा है।

5. वन्यजीव और जैव विविधता को खतरा: पारिस्थितिक असंतुलन के कारण वन्यजीवों की प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं, जिससे प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता बढ़ सकती है।

प्रश्न 5: आपदा न्यूनीकरण (Mitigation) के लिए कौन-कौन से उपाय किए जा सकते हैं?

उत्तर:

आपदा न्यूनीकरण का उद्देश्य आपदा के प्रभाव को कम करना और लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इसके लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:

1. भूकंप-रोधी भवनों का निर्माण: विशेष रूप से भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में लचीले और मजबूत ढाँचों का निर्माण किया जाना चाहिए।

2. जल निकासी प्रणाली को मजबूत बनाना: बाढ़ से बचाव के लिए शहरों में बेहतर जल निकासी व्यवस्था होनी चाहिए।

3. वनों का संरक्षण: पर्यावरणीय असंतुलन को रोकने और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वनों की कटाई पर रोक लगानी चाहिए।

4. कृषि तकनीकों में सुधार: सूखा और बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में फसल चक्र और सूखा-रोधी फसलों को अपनाया जाना चाहिए।

5. पूर्व चेतावनी प्रणाली को मजबूत बनाना: सैटेलाइट, सेंसर और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग कर सटीक आपदा पूर्वानुमान प्रणाली विकसित की जानी चाहिए।

प्रश्न 6: राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) क्या है, और इसका कार्य क्या है?

उत्तर:

राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) एक विशेष बल है, जिसे आपदाओं के दौरान त्वरित राहत और बचाव कार्यों के लिए गठित किया गया है।

NDRF के प्रमुख कार्य:

  1. आपदा प्रभावित क्षेत्रों में त्वरित बचाव अभियान चलाना।
  2. आपदा न्यूनीकरण के लिए जनता को जागरूक करना और प्रशिक्षण देना।
  3. भूकंप, बाढ़, चक्रवात, औद्योगिक दुर्घटनाओं और अन्य आपदाओं से निपटने के लिए विशेषज्ञता प्राप्त करना।
  4. स्थानीय प्रशासन के साथ समन्वय स्थापित करना और राहत कार्यों में सहायता करना।

प्रश्न 7: आपदा के बाद पुनर्वास और पुनर्निर्माण की प्रक्रिया क्या होती है?

उत्तर:

आपदा के बाद पुनर्वास और पुनर्निर्माण का कार्य चरणबद्ध रूप से किया जाता है:

1. प्राथमिक राहत:

भोजन, पानी, चिकित्सा सुविधा और अस्थायी आश्रय की व्यवस्था।

2. संरचनात्मक पुनर्निर्माण:

क्षतिग्रस्त सड़कों, पुलों, घरों और अन्य बुनियादी ढाँचों की मरम्मत।

3. आर्थिक पुनर्वास:

रोजगार, आजीविका और वित्तीय सहायता के माध्यम से प्रभावित लोगों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाना।

4. सामाजिक पुनर्वास:

मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ, सामुदायिक पुनर्गठन और शिक्षा संस्थानों की बहाली।

प्रश्न 8: आपदा के प्रकार कितने होते हैं? विस्तार से समझाइए।

उत्तर:

आपदा को उनके स्रोत और प्रभाव के आधार पर कई भागों में बाँटा जा सकता है। मुख्य रूप से आपदाओं को दो प्रमुख श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है:

1. प्राकृतिक आपदाएँ (Natural Disasters)

ये आपदाएँ प्रकृति की शक्ति से उत्पन्न होती हैं और मानव नियंत्रण से बाहर होती हैं। प्रमुख प्राकृतिक आपदाएँ निम्नलिखित हैं:

भूकंप (Earthquake): जब पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटों में हलचल होती है, तो भूकंप आता है, जिससे इमारतें गिर सकती हैं और जनहानि हो सकती है।

बाढ़ (Flood): अधिक वर्षा या नदियों के जलस्तर बढ़ने से बाढ़ आती है, जिससे जनजीवन प्रभावित होता है।

चक्रवात (Cyclone): समुद्री तूफानों के कारण तेज़ हवाएँ और भारी वर्षा होती है, जिससे बड़े पैमाने पर तबाही हो सकती है।

सूखा (Drought): जब किसी क्षेत्र में लंबे समय तक बारिश नहीं होती, तो जल संकट उत्पन्न हो जाता है, जिससे फसलें नष्ट हो जाती हैं और पानी की कमी हो जाती है।

भूस्खलन (Landslide): पहाड़ी इलाकों में भारी बारिश के कारण मिट्टी और चट्टानों का खिसकना, जिससे घर और सड़कें प्रभावित होती हैं।

सुनामी (Tsunami): समुद्र के अंदर भूकंप या ज्वालामुखी विस्फोट के कारण ऊँची समुद्री लहरें उत्पन्न होती हैं, जो तटीय क्षेत्रों में भारी तबाही मचा सकती हैं।

2. मानव-जनित आपदाएँ (Man-Made Disasters)

ये आपदाएँ मुख्य रूप से मानवीय लापरवाही या असावधानी के कारण होती हैं। प्रमुख मानव-जनित आपदाएँ निम्नलिखित हैं:

औद्योगिक दुर्घटनाएँ (Industrial Accidents): जैसे गैस रिसाव, विस्फोट, और रासायनिक दुर्घटनाएँ (जैसे भोपाल गैस त्रासदी)।

परमाणु दुर्घटनाएँ (Nuclear Disasters): परमाणु संयंत्रों में रिसाव या विस्फोट के कारण होने वाली घटनाएँ।

आतंकवादी हमले (Terrorist Attacks): हथियारों और विस्फोटकों का उपयोग करके जान-माल का नुकसान पहुँचाना।

तेल रिसाव (Oil Spills): समुद्री जल में तेल फैलने से समुद्री जीव-जंतु और पर्यावरण को नुकसान।

जंगल की आग (Forest Fire): मानवीय लापरवाही या प्राकृतिक कारणों से जंगलों में आग लगना।

प्रश्न 9: आपदा प्रबंधन में सरकार और नागरिकों की क्या भूमिका होनी चाहिए?

उत्तर:

आपदा प्रबंधन एक सामूहिक प्रयास है, जिसमें सरकार, प्रशासन, नागरिक और गैर-सरकारी संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

1. सरकार की भूमिका:

आपदा पूर्वानुमान प्रणाली को मजबूत बनाना।

एनडीएमए (NDMA) और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) को अधिक संसाधन उपलब्ध कराना।

NDRF को अत्याधुनिक उपकरण और प्रशिक्षण प्रदान करना।

आपदा प्रभावित लोगों के लिए त्वरित राहत और पुनर्वास की व्यवस्था करना।

आपदा न्यूनीकरण के लिए दीर्घकालिक योजनाएँ बनाना, जैसे कि मजबूत अवसंरचना विकसित करना।

2. नागरिकों की भूमिका:

आपदा प्रबंधन से जुड़ी जानकारी रखना और जागरूकता बढ़ाना।

भूकंप, बाढ़, और चक्रवात जैसी आपदाओं के लिए पूर्व-तैयारी करना।

सरकार और प्रशासन द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन करना।

समुदाय स्तर पर आपदा प्रबंधन टीमों का गठन और प्रशिक्षण प्राप्त करना।

आपदा के दौरान अफवाहों से बचना और सही जानकारी साझा करना।

प्रश्न 10: ‘सेंदाई फ्रेमवर्क’ क्या है, और यह भारत के आपदा प्रबंधन में कैसे सहायक है?

उत्तर:

सेंदाई फ्रेमवर्क (Sendai Framework for Disaster Risk Reduction – SFDRR) संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2015 में शुरू किया गया एक वैश्विक समझौता है, जिसका उद्देश्य आपदा जोखिम को कम करना और सतत विकास को बढ़ावा देना है।

इसकी प्रमुख विशेषताएँ:

  1. आपदा जोखिम को कम करना।
  2. आपदा से निपटने की क्षमता को मजबूत करना।
  3. संवेदनशील समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  4. स्थायी विकास को बढ़ावा देना।

भारत में इसका प्रभाव:

भारत ने राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण योजना (National Disaster Mitigation Plan – NDMP) को सेंदाई फ्रेमवर्क के अनुरूप तैयार किया है।

इसके तहत आपदा से पहले, दौरान और बाद में कार्रवाई की स्पष्ट रूपरेखा तैयार की गई है।

भारत में आपदा न्यूनीकरण और आपदा प्रतिक्रिया को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सुदृढ़ किया जा रहा है।

प्रश्न 11: भारत में सबसे बड़ी आपदाएँ कौन-कौन सी हुई हैं, और उनसे क्या सीख मिली?

उत्तर:

भारत ने कई विनाशकारी आपदाओं का सामना किया है, जिनसे महत्वपूर्ण सबक सीखे गए हैं:

1. भोपाल गैस त्रासदी (1984):

औद्योगिक सुरक्षा उपायों को सख्त करने की आवश्यकता।

आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र को मजबूत करना।

2. गुजरात भूकंप (2001):

भूकंप-रोधी निर्माण को बढ़ावा देना।

आपदा प्रबंधन बलों की दक्षता में सुधार करना।

3. सुनामी (2004):

तटीय सुरक्षा और आपदा चेतावनी प्रणाली को मजबूत करना।

आपदा राहत और पुनर्वास की योजनाओं को और प्रभावी बनाना।

4. उत्तराखंड बाढ़ (2013):

जलवायु परिवर्तन और आपदा प्रबंधन के बीच संबंधों को समझना।

बुनियादी ढाँचे के निर्माण में सतत विकास पर ध्यान देना।

प्रश्न 12: आपदा प्रबंधन को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए क्या सुधार किए जा सकते हैं?

उत्तर:

भारत में आपदा प्रबंधन को प्रभावी बनाने के लिए निम्नलिखित सुधार आवश्यक हैं:

  1. आपदा पूर्वानुमान तकनीकों को अधिक उन्नत बनाना।
  2. स्थानीय प्रशासन और नागरिकों को आपदा प्रबंधन में अधिक सक्रिय बनाना।
  3. आपदा न्यूनीकरण के लिए दीर्घकालिक योजनाओं को लागू करना।
  4. स्कूलों और कॉलेजों में आपदा प्रबंधन को अनिवार्य विषय के रूप में शामिल करना।
  5. डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग बढ़ाना, जैसे कि ड्रोन और AI आधारित पूर्वानुमान प्रणाली।
  6. सभी राज्यों में विशेष आपदा प्रबंधन केंद्रों की स्थापना।

निष्कर्ष: आत्मनिर्भर भारत और आपदा प्रबंधन

भारत आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में तेजी से आत्मनिर्भर (Self-Reliant) बन रहा है। मोदी सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से देश को प्राकृतिक और मानवजनित आपदाओं से बचाने की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।

‘जीरो कैजुअल्टी’ लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार ने आपदा पूर्वानुमान प्रणाली, NDRF की मजबूती, स्मार्ट टेक्नोलॉजी, जलवायु परिवर्तन से निपटने की रणनीति और सामुदायिक भागीदारी को प्राथमिकता दी है।

हालाँकि, ग्रामीण इलाकों में आपदा प्रबंधन की पहुँच बढ़ाना, वित्तीय संसाधनों की कमी को दूर करना और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियों से निपटना अभी भी प्रमुख मुद्दे हैं। इनका समाधान करने के लिए सरकार, नागरिक समाज और निजी क्षेत्र को मिलकर काम करना होगा।

“एक सशक्त, सुरक्षित और आपदा-रोधी भारत ही आत्मनिर्भर भारत की पहचान बनेगा।”


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