जंगल का असली राजा खतरे में! ‘टाइगर ऑन टेप’ मानसिकता बाघों को कैसे मिटा रही है?
टाइगर ऑन टेप: वन्यजीव सफारी एक रोमांचक अनुभव होता है, जिसमें लोग जंगलों में जाकर जंगली जानवरों को उनके प्राकृतिक आवास में देखने की कोशिश करते हैं। भारत, अफ्रीका और अन्य देशों में सफारी पर्यटन तेजी से बढ़ रहा है, और इसमें सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र होता है बाघ (Tiger)। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में सफारी पर्यटन में एक अजीब प्रवृत्ति देखने को मिली है, जिसे “टाइगर ऑन टेप” मानसिकता कहा जाता है।
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Toggleइस मानसिकता के तहत पर्यटक यह उम्मीद करते हैं कि उन्हें जंगल में हर हाल में बाघ दिखना चाहिए, जैसे कोई टीवी शो ऑन डिमांड हो। इससे पर्यटन उद्योग में भारी दबाव बन रहा है, जिससे वन्यजीवों और उनके प्राकृतिक आवासों पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
यहाँ हम विस्तार से समझेंगे कि ‘टाइगर ऑन टेप’ मानसिकता क्या है, यह वन्यजीवों और पर्यावरण पर क्या असर डाल रही है, और इससे निपटने के लिए हमें क्या कदम उठाने चाहिए।
‘टाइगर ऑन टेप’ मानसिकता क्या है?
‘टाइगर ऑन टेप’ मानसिकता का अर्थ है कि पर्यटक जंगल सफारी में यह उम्मीद रखते हैं कि उन्हें निश्चित रूप से बाघ दिखेगा। वे यह मानने लगते हैं कि अगर वे सफारी टिकट के पैसे दे रहे हैं, तो उन्हें बाघ दिखाने की गारंटी मिलनी चाहिए।
इस मानसिकता की वजहें:
1. सोशल मीडिया और फोटोग्राफी का बढ़ता क्रेज – लोग सफारी में जाकर बाघ की तस्वीरें और वीडियो लेने के लिए उत्सुक रहते हैं ताकि वे सोशल मीडिया पर पोस्ट कर सकें।
2. सफारी टूरिज्म इंडस्ट्री का प्रचार – कई टूर ऑपरेटर अपने विज्ञापनों में यह दिखाते हैं कि सफारी में बाघ देखना लगभग तय होता है।
3. फिल्मों और डॉक्यूमेंट्री का प्रभाव – डिस्कवरी और नेशनल ज्योग्राफिक जैसी डॉक्यूमेंट्री लोगों के मन में यह धारणा बना देती हैं कि जंगल में बाघ देखना सामान्य बात है।
4. पर्यटकों की अधीरता – अधिकतर लोग धैर्यपूर्वक प्रकृति का आनंद लेने की बजाय केवल बाघ देखने में रुचि रखते हैं।
टाइगर ऑन टेप: इसका सीधा प्रभाव
सफारी गाइड और ड्राइवर पर्यटकों को खुश करने के लिए बाघों का पीछा करने लगते हैं।
वन्यजीवों की शांति भंग होती है।
प्राकृतिक आवास को नुकसान पहुंचता है।
वाइल्डलाइफ सफारी और बढ़ता पर्यटन
भारत में कई प्रमुख टाइगर रिजर्व और राष्ट्रीय उद्यान हैं जहां बाघ देखे जा सकते हैं, जैसे:
1. रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान, राजस्थान
2. बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान, मध्य प्रदेश
3. जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान, उत्तराखंड
4. काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, असम
5. सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान, पश्चिम बंगाल
सफारी पर्यटन से होने वाले फायदे
स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ते हैं।
वनों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए सरकार को राजस्व मिलता है।
लोगों में वन्यजीवों और पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ती है।
टाइगर ऑन टेप: पर्यटन से होने वाले नुकसान
अत्यधिक भीड़ – जंगल में सफारी जीपों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
प्रदूषण – गाड़ियों से ध्वनि और वायु प्रदूषण बढ़ता है।
अवैध शिकार को बढ़ावा – जब बाघों की सही लोकेशन का पता चलता है, तो यह शिकारियों के लिए भी आसान हो जाता है।
बाघों की प्रजनन दर पर असर – अधिक मानवीय हस्तक्षेप से बाघों की प्रजनन प्रक्रिया बाधित होती है।
टाइगर ऑन टेप: वन्यजीवों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव
(i) बाघों की प्राकृतिक दिनचर्या में व्यवधान
बाघ निशाचर और एकांतप्रिय जानवर होते हैं। जब सफारी गाड़ियां लगातार उनके आसपास घूमती हैं, तो उनका व्यवहार बदल सकता है।
टाइगर ऑन टेप प्रभाव:
वे अपने शिकार स्थल बदल सकते हैं, जिससे उनकी भोजन की उपलब्धता प्रभावित होती है।
अधिक गाड़ियों और लोगों की मौजूदगी से वे आक्रामक हो सकते हैं।
वे प्रजनन करने के लिए सुरक्षित स्थानों की तलाश में अधिक संघर्ष कर सकते हैं।
(ii) टाइगर ऑन टेप: आवासीय क्षेत्र पर प्रभाव
बाघों और अन्य वन्यजीवों के लिए जंगल ही उनका घर होता है। लेकिन पर्यटन बढ़ने से जंगलों के किनारों पर होटल, रिसॉर्ट और अन्य सुविधाएं बनने लगी हैं, जिससे बाघों के लिए रहने की जगह कम होती जा रही है।
टाइगर ऑन टेप: परिणाम
बाघ और अन्य वन्यजीव मानव बस्तियों में जाने लगते हैं, जिससे मानव-पशु संघर्ष बढ़ता है।
जंगलों में खाद्य श्रृंखला प्रभावित होती है।
(iii) अन्य जानवरों पर प्रभाव
केवल बाघ ही नहीं, बल्कि अन्य जीव-जंतु भी प्रभावित होते हैं।
हिरण, नीलगाय और अन्य शिकार प्राणी जब सफारी गाड़ियों से डरकर भागते हैं, तो उनका प्राकृतिक व्यवहार बदल सकता है।
हाथियों और गैंडों की दिनचर्या में भी बाधा आती है।

इस समस्या का समाधान क्या है?
(i) जिम्मेदार पर्यटन को बढ़ावा देना
पर्यटकों की मानसिकता बदलनी होगी – सफारी का उद्देश्य केवल बाघ देखना नहीं, बल्कि पूरे जंगल को समझना होना चाहिए।
गाड़ियों की संख्या सीमित की जाए – एक समय में बहुत अधिक जीपों के जंगल में प्रवेश करने से बचना चाहिए।
सख्त नियम लागू किए जाएं – सफारी गाड़ियों को निर्धारित पथ से हटकर नहीं जाना चाहिए।
(ii) वन्यजीवों के लिए अधिक संरक्षित क्षेत्र बनाए जाएं
बाघों के लिए सुरक्षित गलियारों (Wildlife Corridors) का निर्माण किया जाए।
अवैध निर्माण पर रोक लगाई जाए।
(iii) स्थानीय समुदायों की भागीदारी
जंगल के आसपास रहने वाले लोगों को संरक्षण का हिस्सा बनाया जाए।
उन्हें पर्यटन से लाभान्वित किया जाए ताकि वे वन्यजीवों को बचाने में सहयोग दें।
(iv) पर्यावरण शिक्षा और जागरूकता
स्कूलों और कॉलेजों में बच्चों को प्रकृति और वन्यजीव संरक्षण के बारे में पढ़ाया जाए।
मीडिया और सोशल मीडिया पर जागरूकता अभियान चलाए जाएं।
वन्यजीव संरक्षण के लिए सरकार और संगठनों की भूमिका
‘टाइगर ऑन टेप’ मानसिकता से निपटने और वन्यजीव संरक्षण को प्रभावी बनाने के लिए सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
(i) सरकार की नीतियां और कानून
भारत सरकार और अन्य देशों की सरकारें वन्यजीव संरक्षण के लिए विभिन्न कानून और योजनाएं लागू करती हैं।
1. प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tiger)
भारत सरकार ने 1973 में ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ शुरू किया था।
इसके तहत देशभर में बाघ अभयारण्यों (Tiger Reserves) का विकास किया गया।
वर्तमान में भारत में 50 से अधिक टाइगर रिजर्व हैं, जिनमें बाघों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ी है।
2. वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972
यह अधिनियम वन्यजीवों के शिकार, उनके अंगों की तस्करी और अवैध व्यापार को रोकता है।
इस कानून के तहत राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य बनाए गए हैं।
3. बाघ गणना (Tiger Census)
हर चार साल में ऑल इंडिया टाइगर एस्टिमेशन (All India Tiger Estimation) किया जाता है।
भारत में 2022 के आंकड़ों के अनुसार, बाघों की संख्या 3000 से अधिक हो चुकी है।

(ii) अंतरराष्ट्रीय संगठन और पहल
1. WWF (World Wide Fund for Nature)
यह संगठन बाघ संरक्षण के लिए कई कार्यक्रम चलाता है।
WWF ‘Tx2’ योजना चला रहा है, जिसका लक्ष्य 2022 तक बाघों की संख्या दोगुनी करना था।
2. CITES (Convention on International Trade in Endangered Species)
यह अंतरराष्ट्रीय संधि वन्यजीवों के अवैध व्यापार को रोकने के लिए बनाई गई है।
बाघों की खाल, हड्डियों और अन्य अंगों की तस्करी पर इस संधि के तहत रोक लगाई गई है।
3. UNEP (United Nations Environment Programme)
यह संगठन जैव विविधता संरक्षण पर काम करता है और वनों की कटाई को रोकने के लिए जागरूकता फैलाता है।
वन्यजीव सफारी का भविष्य: जिम्मेदार पर्यटन की ओर
अगर वन्यजीव सफारी को दीर्घकालिक रूप से संरक्षित रखना है, तो हमें इसे अधिक जिम्मेदार और टिकाऊ (Sustainable Tourism) बनाना होगा।
(i) इको-टूरिज्म (Eco-Tourism) को बढ़ावा देना
सरकार और पर्यटन उद्योग को इको-फ्रेंडली सफारी को बढ़ावा देना चाहिए।
इलेक्ट्रिक गाड़ियों का उपयोग किया जाए ताकि जंगल में प्रदूषण कम हो।
जंगल के अंदर रिसॉर्ट्स और होटलों को सीमित किया जाए।
(ii) बाघों के लिए अलग से संरक्षित क्षेत्र
बाघों और अन्य वन्यजीवों के लिए कोर जोन (Core Zone) को पूरी तरह से संरक्षित किया जाए।
सफारी गतिविधियों को बफर जोन (Buffer Zone) तक सीमित किया जाए ताकि बाघों को शांति मिल सके।
(iii) पर्यटकों को शिक्षित करना
सफारी पर जाने वाले पर्यटकों को पहले एक ‘अवेयरनेस सेशन’ दिया जाए, जिसमें उन्हें बताया जाए कि जंगल में कैसे व्यवहार करना है।
‘नो हॉर्न’, ‘नो लिटरिंग’, और ‘नो चेजिंग’ जैसी सख्त गाइडलाइन्स लागू की जाएं।
(iv) स्थानीय समुदायों को शामिल करना
जंगलों के आसपास रहने वाले लोगों को सफारी पर्यटन से लाभ दिलाया जाए।
उन्हें गाइड, ड्राइवर, या वन्यजीव संरक्षण कार्यक्रमों में रोजगार दिया जाए ताकि वे बाघों की रक्षा में सहयोग करें।
टाइगर ऑन टेप: बाघ संरक्षण और हमारी भूमिका
हम में से हर कोई बाघों और उनके जंगलों की रक्षा में योगदान दे सकता है।
(i) व्यक्तिगत स्तर पर क्या कर सकते हैं?
1. जिम्मेदार पर्यटन करें – जंगल में जाकर शांति बनाए रखें और वन्यजीवों को अनावश्यक रूप से परेशान न करें।
2. अवैध वन्यजीव व्यापार का समर्थन न करें – बाघ की खाल, दांत, हड्डियों और अन्य उत्पादों की मांग को रोकना होगा।
3. वन्यजीव संरक्षण संगठनों को सहयोग दें – WWF, WTI (Wildlife Trust of India), और अन्य संगठनों को दान दें या उनके अभियानों में भाग लें।
4. सोशल मीडिया पर सही संदेश फैलाएं – गलत जानकारियों को रोकें और लोगों को सही दिशा में शिक्षित करें।
(ii) सरकारों से क्या अपेक्षाएं होनी चाहिए?
वन्यजीव अपराधों के लिए सख्त कानून लागू किए जाएं।
सस्टेनेबल टूरिज्म पॉलिसी बनाई जाए।
स्थानीय समुदायों को संरक्षण अभियानों से जोड़ा जाए।
निष्कर्ष: ‘टाइगर ऑन टेप’ मानसिकता से मुक्ति
टाइगर ऑन टेप: वन्यजीव सफारी का असली मकसद जंगल के सौंदर्य और विविधता का आनंद लेना होना चाहिए, न कि केवल बाघ देखने की जिद करना।
बाघ कोई डिस्प्ले पर रखा गया जानवर नहीं है, जिसे हर समय देखा जा सके।
हमें जंगल को एक सम्पूर्ण इकोसिस्टम के रूप में देखना चाहिए, न कि सिर्फ बाघों की खोज में जंगल को परेशान करना चाहिए।
अगर हम अपनी मानसिकता नहीं बदलते, तो जंगलों में बाघों की संख्या घटती जाएगी, और एक दिन ऐसा भी आ सकता है जब ‘टाइगर ऑन टेप’ मानसिकता रखने वालों को कहीं भी बाघ देखने को नहीं मिलेगा।
इसलिए, हमें अब जागरूक बनकर उत्तरदायी पर्यटन (Responsible Tourism) अपनाने की जरूरत है ताकि बाघ और जंगल दोनों सुरक्षित रह सकें।
“अगर हम बाघों को बचाएंगे, तो जंगल बचेंगे। अगर जंगल बचेंगे, तो हमारी धरती भी बचेगी।”
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