स्वामी विवेकानंद और “प्रबुद्ध भारत” : भारतीय पुनर्जागरण की प्रेरणा!
भूमिका : एक जागृत राष्ट्र की आवश्यकता
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Toggle19वीं शताब्दी का भारत ग़ुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। अंग्रेज़ी हुकूमत की निरंकुशता, सामाजिक कुरीतियाँ, धार्मिक भ्रम, और शिक्षा की कमी ने भारत को जड़ बना दिया था।
ऐसे समय में आवश्यकता थी एक ऐसी चेतना की जो लोगों को उनकी आत्मा, संस्कृति और गौरव का बोध कराए। इस जागृति के अग्रदूत बने स्वामी विवेकानंद – जिन्होंने न केवल भारत को पुनः आत्मबोध की ओर प्रेरित किया, बल्कि पश्चिम में भी भारत की आध्यात्मिकता और संस्कृति की सशक्त प्रस्तुति दी।
स्वामी विवेकानंद : एक युगपुरुष की विचारशक्ति
स्वामी विवेकानंद केवल एक संन्यासी नहीं थे, बल्कि वे एक दूरदर्शी चिंतक, राष्ट्रनिर्माता और सामाजिक क्रांतिकारी थे। उनका मानना था कि भारत की आत्मा अभी जीवित है और उसे जगाना है।
उनके अनुसार, भारत की दुर्दशा का कारण केवल राजनीतिक ग़ुलामी नहीं, बल्कि आत्मगौरव की कमी है। वे चाहते थे कि हर भारतीय यह समझे कि वह एक महान सभ्यता का उत्तराधिकारी है।
प्रबुद्ध भारत की स्थापना : एक मीडिया आंदोलन का आरंभ
1896 में जब स्वामी विवेकानंद पश्चिम से भारत लौटे, तब उनके मन में यह संकल्प था कि भारत को पुनः उसके सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ना होगा।
इसके लिए उन्होंने एक पत्रिका की कल्पना की — प्रबुद्ध भारत (Prabuddha Bharata) — जिसका अर्थ है “जाग्रत भारत”। इस पत्रिका का उद्देश्य था भारतीय समाज को विचारों की शक्ति से जागृत करना।
स्थापना की कहानी
“प्रबुद्ध भारत” की स्थापना जुलाई 1896 में मायावती (उत्तराखंड) स्थित अद्वैत आश्रम से हुई थी। इस पत्रिका की शुरुआत अंग्रेज़ी भाषा में की गई थी ताकि भारत के शिक्षित वर्ग तक इसके संदेश को पहुँचाया जा सके।
इसे प्रारंभ में चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) के एक युवा भक्त बी. रामा (B. Ramaswamy Iyer) द्वारा संपादित किया गया। स्वामी विवेकानंद इसके मार्गदर्शक और प्रेरक थे।
सम्पादकीय उद्देश्य
प्रबुद्ध भारत का उद्देश्य केवल आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार करना नहीं था, बल्कि सामाजिक जागरूकता, शिक्षा, राष्ट्रप्रेम और सांस्कृतिक गर्व की भावना को जगाना था।
स्वामी विवेकानंद चाहते थे कि इस पत्रिका के माध्यम से भारतीय जनमानस को उनकी नींद से जगाया जाए — उन्हें बताया जाए कि वे कितने महान हैं और कैसे वे अपने देश की सेवा कर सकते हैं।
पत्रिका की विषयवस्तु : एक वैचारिक क्रांति
“प्रबुद्ध भारत” ने भारतीय समाज में वैचारिक क्रांति ला दी। इसके लेख न केवल दर्शन और धर्म तक सीमित थे, बल्कि इतिहास, राजनीति, समाज, विज्ञान और साहित्य जैसे विविध विषयों को भी छूते थे। प्रमुख विषय निम्न थे:
1. भारतीय संस्कृति और गौरव का पुनर्जागरण
इस पत्रिका के ज़रिए स्वामी विवेकानंद ने भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को लोगों के सामने रखा। उपनिषद, वेद, भगवद्गीता जैसे ग्रंथों की व्याख्या कर उन्होंने यह स्पष्ट किया कि भारत की आध्यात्मिक शक्ति ही उसकी पहचान है।
2. राष्ट्रवाद और देशभक्ति
“प्रबुद्ध भारत” के अनेक लेखों में भारतमाता की पुकार सुनाई देती थी। इसमें उन विचारों को प्रमुखता दी जाती थी जो भारतीयों को अपने देश के प्रति समर्पित बनाते थे। स्वतंत्रता सेनानियों और उनके बलिदान को उजागर कर यह पत्रिका एक सशक्त प्रेरणा स्रोत बनी।
3. सामाजिक सुधार और जागरूकता
स्वामी विवेकानंद सामाजिक कुरीतियों के कट्टर विरोधी थे। पत्रिका में जातिवाद, छुआछूत, बाल विवाह, स्त्री उत्पीड़न जैसे विषयों पर बेबाक लेख प्रकाशित होते थे। इससे समाज में परिवर्तन की लहर उठी।
4. शिक्षा का महत्व
स्वामीजी का मानना था कि शिक्षा ही समाज को बदल सकती है। इस पत्रिका ने शिक्षा के नए आयाम प्रस्तुत किए — जैसे कि चरित्र निर्माण, आत्मनिर्भरता और आधुनिक विज्ञान की जानकारी।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
1. विचारों के माध्यम से क्रांति
जहां कई स्वतंत्रता सेनानी हथियारों से लड़ रहे थे, वहीं “प्रबुद्ध भारत” जैसे माध्यम विचारों की लड़ाई लड़ रहे थे। यह पत्रिका भारतीयों के मन में आत्मसम्मान और स्वतंत्रता की लालसा को जगाती थी।
2. युवा पीढ़ी को दिशा
“प्रबुद्ध भारत” के लेखों ने भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, अरविंद घोष जैसे कई युवाओं को प्रभावित किया। उन्होंने स्वामी विवेकानंद के विचारों को पढ़ा और अपनी दिशा निश्चित की।
3. ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ वैचारिक विरोध
हालाँकि यह पत्रिका प्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ नहीं थी, लेकिन इसके लेखों में जो आत्मबल, आत्मगौरव और आत्मनिर्भरता की भावना थी, वह अपने आप में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह थी।
प्रबुद्ध भारत : पत्रकारिता का आदर्श रूप
आज जब पत्रकारिता का स्तर गिर रहा है, “प्रबुद्ध भारत” एक आदर्श के रूप में खड़ा है। इसकी विशेषताएं थीं:
सत्य और नैतिकता पर आधारित लेखन
विवेकशील और तार्किक दृष्टिकोण
जनसामान्य की भाषा में उच्च विचार
संवाद की शैली में लेख, जिससे पाठक जुड़ा महसूस करें
अद्वैत आश्रम की भूमिका
प्रबुद्ध भारत का संचालन अद्वैत आश्रम से होता था, जो रामकृष्ण मिशन का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यह आश्रम हिमालय की गोद में स्थित है और एक शांतिपूर्ण, आध्यात्मिक वातावरण में इस पत्रिका को संचालित करता रहा।
मानवीय दृष्टिकोण : एक भारतीय की अनुभूति
कल्पना कीजिए एक युवा भारतीय जो 1890 के दशक में अपने देश की दुर्दशा देख रहा है — भूख, अशिक्षा, सामाजिक अन्याय, और विदेशी शासन।
ऐसे समय में जब वह “प्रबुद्ध भारत” का एक लेख पढ़ता है — जिसमें लिखा है “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए” — तो उसका मन आंदोलित हो उठता है।
वह सोचता है — “मैं भी कुछ कर सकता हूँ। मैं भी भारतमाता की सेवा में अपने जीवन को समर्पित कर सकता हूँ।”
यह पत्रिका केवल कागज पर छपे शब्दों का संग्रह नहीं थी, यह एक मशाल थी, जिसने असंख्य युवाओं के दिलों में देशभक्ति की लौ जलायी।
आज की आवश्यकता : प्रबुद्ध भारत की पुनः व्याख्या
आज भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र है, लेकिन क्या हम सच में “प्रबुद्ध भारत” बन पाए हैं? भ्रष्टाचार, सामाजिक विघटन, सांप्रदायिकता, और भौतिकता की होड़ ने हमें फिर से एक गहरी नींद में सुला दिया है।
इस संदर्भ में “प्रबुद्ध भारत” की पुनः व्याख्या की आवश्यकता है। हमें फिर से स्वामी विवेकानंद के विचारों को आत्मसात करना होगा। इस पत्रिका की शिक्षाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी आज़ादी के समय थीं।
प्रबुद्ध भारत” और रामकृष्ण मिशन की विचारधारा का समन्वय
स्वामी विवेकानंद ने “प्रबुद्ध भारत” के ज़रिए केवल राष्ट्रवाद की भावना ही नहीं जगाई, बल्कि रामकृष्ण परमहंस के विचारों को भी समाज तक पहुँचाया। वे मानते थे कि धार्मिक जीवन और सामाजिक उत्तरदायित्व एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। पत्रिका ने इस समन्वय को बखूबी प्रस्तुत किया।
1. सेवा ही सच्चा धर्म है
रामकृष्ण मिशन का मूलमंत्र – “नर सेवा, नारायण सेवा” – “प्रबुद्ध भारत” के माध्यम से जनमानस तक पहुँचा। लेखों में यह स्पष्ट किया गया कि मंदिर में पूजा करने से अधिक महत्वपूर्ण है भूखे को भोजन देना, बीमार की सेवा करना और अंधकार में ज्ञान का दीपक जलाना।
2. एक सार्वभौमिक धर्म का संदेश
स्वामी विवेकानंद ने विश्व के समस्त धर्मों को एक ब्रह्म सत्य की खोज माना। “प्रबुद्ध भारत” में वेदांत, इस्लाम, बौद्ध, ईसाई आदि सभी धर्मों के प्रति सम्मान और उनके मूल तत्वों को दर्शाया गया। यह पत्रिका धार्मिक सहिष्णुता और भाईचारे की मिसाल बनी।
“प्रबुद्ध भारत” की भाषा और शैली : पाठकों के हृदय को छू लेने वाली प्रस्तुति
इस पत्रिका की सबसे खास बात थी इसकी सजीव और आत्मीय भाषा। लेखों में न तो कठोर विद्वत्ता का प्रदर्शन था और न ही उपदेशात्मक शैली — बल्कि एक मित्रवत संवाद, जो पाठक को आत्म-चिंतन के लिए प्रेरित करता था।
प्रेरक शैली के उदाहरण :
“भारत माँ सो रही है, क्या तुम उसे फिर से जगा सकते हो?”
“तुम क्या केवल गुलामी के पुत्र रहोगे, या एक बार फिर से विश्व को आध्यात्म का पाठ पढ़ाओगे?”
“वो उठो, जो गिर गए हैं; वो पढ़ाओ, जो अंधेरे में हैं; वो भरो, जो टूट चुके हैं।”
इस प्रकार की शैली ने “प्रबुद्ध भारत” को एक संचार का माध्यम नहीं, बल्कि आत्मा की आवाज़ बना दिया।
प्रबुद्ध भारत की चुनौतियाँ : एक वैचारिक आंदोलन को जीवित रखना
स्वतंत्रता पूर्व भारत में “प्रबुद्ध भारत” जैसे पत्र को संचालित करना आसान नहीं था। निम्नलिखित प्रमुख चुनौतियाँ थीं:
1. संसाधनों की कमी
पहाड़ों में स्थित मायावती आश्रम से इसका प्रकाशन होता था, जहाँ संसाधनों का घोर अभाव था। फिर भी, वहाँ के साधकों ने समर्पण के साथ इस प्रकाशन को जीवित रखा।
2. ब्रिटिश सत्ता की सेंसरशिप
हालांकि यह पत्रिका प्रत्यक्ष राजनीतिक विरोध नहीं करती थी, फिर भी इसकी वैचारिक शक्ति से अंग्रेज़ भयभीत रहते थे। कई बार इसे दबाने के प्रयास किए गए।
3. शिक्षित वर्ग तक ही सीमित पहुँच
प्रारंभ में यह पत्रिका केवल अंग्रेज़ी में प्रकाशित होती थी, जिससे गाँवों और हिंदी भाषी जनमानस तक इसका सीधा प्रभाव सीमित रहा। बाद में इसके हिंदी संस्करण की आवश्यकता महसूस की गई।
प्रबुद्ध भारत का आधुनिक संस्करण : विचारों की निरंतर धारा
स्वतंत्रता के बाद भी “प्रबुद्ध भारत” पत्रिका का प्रकाशन निरंतर जारी रहा है। आज भी इसे रामकृष्ण मिशन द्वारा प्रकाशित किया जाता है और यह भारत समेत विदेशों में भी पढ़ी जाती है।
आधुनिक विषयवस्तु
आज यह पत्रिका ध्यान, योग, आत्म-विकास, पर्यावरण, महिला सशक्तिकरण, शिक्षा, और वैश्विक चुनौतियों पर लेख प्रकाशित करती है। यह अब ऑनलाइन भी उपलब्ध है।
युवा वर्ग से जुड़ाव
डिजिटल माध्यमों के ज़रिए “प्रबुद्ध भारत” युवाओं तक पहुँचने का प्रयास कर रही है। इसके विचार आज भी युवाओं में आत्म-विश्वास और सकारात्मक सोच को उत्पन्न करते हैं।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व : एक धरोहर का संरक्षण
“प्रबुद्ध भारत” न केवल एक पत्रिका है, बल्कि भारतीय इतिहास का सजीव दस्तावेज़ है। इसके हर अंक में भारत की आत्मा की एक झलक मिलती है। यह भारतीय पुनर्जागरण, स्वतंत्रता संग्राम, और सांस्कृतिक उत्थान की दास्तान है।
राष्ट्रीय संग्रहालयों और विश्वविद्यालयों में संरक्षण
भारत सरकार और विभिन्न विश्वविद्यालयों ने इसके पुराने संस्करणों को डिजिटाइज कर सुरक्षित रखा है। शोधार्थियों और इतिहासकारों के लिए यह एक अमूल्य स्रोत है।
प्रेरणा के स्रोत के रूप में “प्रबुद्ध भारत”
1. शिक्षक वर्ग के लिए प्रेरणा
एक शिक्षक अगर “प्रबुद्ध भारत” के विचारों को कक्षा में लाए, तो वह विद्यार्थियों में न केवल ज्ञान, बल्कि चरित्र और राष्ट्रप्रेम भी विकसित कर सकता है।
2. छात्रों के लिए दिशा
युवाओं में आत्मबल, आत्मविश्वास, और सेवा की भावना उत्पन्न करने के लिए “प्रबुद्ध भारत” के लेख आज भी अत्यंत उपयोगी हैं। यह एक मानसिक और आध्यात्मिक प्रशिक्षण केंद्र की तरह है।

3. समाज के लिए आईना
आज जब समाज अनेक प्रकार के भटकावों से ग्रस्त है — तब “प्रबुद्ध भारत” उसे आत्म-चिंतन, सहिष्णुता, और सेवा का मार्ग दिखाता है।
आज के भारत में “प्रबुद्ध भारत” की प्रासंगिकता
हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, जहाँ तकनीक, वैश्वीकरण और भौतिक विकास अपनी चरम सीमा पर है। लेकिन क्या केवल तकनीक और समृद्धि से एक देश महान बनता है? नहीं।
किसी भी राष्ट्र की आत्मा उसके मूल्यों, संस्कृति और चेतना में निहित होती है – और यही संदेश “प्रबुद्ध भारत” हमें आज भी देता है।
1. नैतिक संकट और विवेकानंद की चेतावनी
आज हम आर्थिक रूप से विकसित हो रहे हैं, लेकिन सामाजिक और नैतिक रूप से क्या हम उतने ही मजबूत हैं? स्वामी विवेकानंद ने चेताया था कि अगर नैतिकता, सेवा और आत्मज्ञान की राह छोड़ दी गई, तो विकास खोखला रह जाएगा। “प्रबुद्ध भारत” के माध्यम से वे हमें याद दिलाते हैं कि…
> “Character is the backbone of a nation.”
(चरित्र ही किसी राष्ट्र की रीढ़ होता है।)
2. युवाओं के लिए प्रेरणा : आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता
आज का युवा सोशल मीडिया, बाहरी दिखावे और प्रतिस्पर्धा में खो गया है। उसे अपने भीतर झांकने का समय ही नहीं मिलता। “प्रबुद्ध भारत” में प्रकाशित लेख युवाओं से संवाद करते हैं, उन्हें याद दिलाते हैं—
“तुम्हारे भीतर अपार शक्ति है।”
“तुम्हीं हो जो भारत को फिर से विश्वमंच पर प्रतिष्ठित कर सकते हो।”
3. भारत को फिर से ‘जगद्गुरु’ बनाने की दिशा में विचार-आन्दोलन
स्वामी विवेकानंद का सपना था कि भारत एक बार फिर से आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मार्गदर्शक बने। “प्रबुद्ध भारत” इसी विचार-आन्दोलन का वाहक है। यह हमें सिखाता है कि:
शिक्षा का उद्देश्य नौकरी नहीं, चरित्र निर्माण होना चाहिए।
धर्म का उद्देश्य सिर्फ पूजा नहीं, सेवा और मानवता होना चाहिए।
राष्ट्रप्रेम का मतलब झंडा फहराना नहीं, जन-जन की भलाई के लिए काम करना है।
क्या हम नए युग का “प्रबुद्ध भारत” बना सकते हैं?
अब प्रश्न ये नहीं है कि “प्रबुद्ध भारत” पत्रिका क्या कर रही है, बल्कि ये है कि हम स्वयं क्या कर रहे हैं? क्या हम अपने घर, स्कूल, समाज, सोशल मीडिया — हर स्तर पर “प्रबुद्ध भारत” के विचारों को जगा रहे हैं?
आप और हम मिलकर क्या कर सकते हैं?
- स्वामी विवेकानंद के विचारों को पढ़ें, समझें और अपनाएँ।
“प्रबुद्ध भारत” जैसे पत्रों को समर्थन दें — इन्हें पढ़ें, प्रचार करें।
अपने बच्चों, छात्रों और साथियों को इन विचारों से अवगत कराएँ।
सेवा को जीवन का हिस्सा बनाएँ — चाहे वह शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो या पर्यावरण।
सोशल मीडिया का इस्तेमाल सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि चेतना के लिए करें।
एक अंतिम संदेश : प्रबुद्ध बनो, भारत बनाओ
स्वामी विवेकानंद ने जिस भारत की कल्पना की थी, वह केवल भौतिक दृष्टि से समृद्ध नहीं था — वह एक जाग्रत आत्मा से ओतप्रोत राष्ट्र था। “प्रबुद्ध भारत” उसी भारत का सपना है।
स्वामी विवेकानंद की आत्मा आज भी कहती है –
> “ओ भारत के वीरों! उठो, जागो! और अपने विचारों की शक्ति से इस राष्ट्र को फिर से विश्वगुरु बनाओ।”
निष्कर्ष : प्रबुद्ध भारत – विचारों की आज़ादी का अग्रदूत
स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित “प्रबुद्ध भारत” केवल एक पत्रिका नहीं थी — यह भारतीय आत्मा की पुकार थी। इसने भारतीयों को उनका गौरव याद दिलाया, स्वतंत्रता की ओर प्रेरित किया, और उन्हें आत्मनिर्भरता का मार्ग दिखाया।
आज जब हम भारत को विश्वगुरु बनते देखना चाहते हैं, तो हमें पुनः “प्रबुद्ध भारत” की ओर लौटना होगा — न केवल एक पत्रिका के रूप में, बल्कि एक विचार के रूप में।
स्वामी विवेकानंद का यह प्रयास अनमोल था, और “प्रबुद्ध भारत” उनके महान सपनों का जीवंत प्रतीक है।
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