World Health Day 2025: माँ-बच्चे की सेहत है ज़रूरी- Aajvani

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World Health Day 2025: स्वस्थ शुरुआतें, उज्ज्वल भविष्य

भूमिका: स्वास्थ्य केवल शरीर की नहीं, आत्मा की भी आवाज़ है

World Health Day 2025: जब हम “स्वास्थ्य” की बात करते हैं, तो अधिकतर लोग केवल शरीर को ध्यान में रखते हैं। लेकिन स्वास्थ्य का सही अर्थ है – शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक स्थिति की सम्पूर्ण कुशलता। हर वर्ष 7 अप्रैल को मनाया जाने वाला World Health Day 2025 (World Health Day 2025) हमें यह याद दिलाता है कि स्वास्थ्य केवल व्यक्तिगत नहीं, सामाजिक उत्तरदायित्व भी है।

यह दिन हमें World Health Day 2025 के महत्व को समझने, नीति निर्माण में भागीदारी बढ़ाने और समग्र कल्याण की दिशा में एकजुट होने का अवसर प्रदान करता है।

World Health Day 2025 की थीम: “स्वस्थ शुरुआतें, उज्ज्वल भविष्य”

World Health Day 2025 संगठन (WHO) द्वारा वर्ष 2025 के लिए निर्धारित विषय है – “Healthy Starts, Bright Futures” यानि “स्वस्थ शुरुआतें, उज्ज्वल भविष्य”। यह थीम मातृ और नवजात स्वास्थ्य पर केन्द्रित है – क्योंकि एक बच्चे का भविष्य, एक माँ के स्वास्थ्य से ही शुरू होता है।

यह विषय हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि यदि जन्म की शुरुआत ही स्वस्थ न हो, तो उस जीवन की नींव कमजोर हो जाती है। इसी वजह से WHO ने इस वर्ष माताओं और नवजात शिशुओं के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच सुनिश्चित करने पर विशेष ज़ोर दिया है।

World Health Day 2025 का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

World Health Day 2025 की नींव 1948 में पड़ी, जब World Health Day 2025 संगठन (WHO) की स्थापना की गई। इसके दो साल बाद, 1950 से यह दिवस हर साल 7 अप्रैल को मनाया जाने लगा। इसका उद्देश्य था:

World Health Day 2025 विषयों पर वैश्विक ध्यान आकर्षित करना।

सरकारों और संगठनों को एकजुट कर जन-स्वास्थ्य में सुधार लाना।

आमजन को स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति जागरूक बनाना।

हर साल एक नया विषय चुनकर WHO दुनियाभर में एक विशेष स्वास्थ्य मुद्दे पर संवाद और कार्यवाही की शुरुआत करता है।

क्यों ज़रूरी है मातृ एवं नवजात स्वास्थ्य पर ध्यान देना?

हर साल दुनिया में लाखों महिलाएं गर्भावस्था और प्रसव के दौरान मृत्यु को प्राप्त करती हैं। WHO के आंकड़ों के अनुसार:

हर 2 मिनट में एक महिला गर्भावस्था से जुड़ी जटिलताओं से मर जाती है।

हर साल लगभग 20 लाख नवजात शिशु अपने जीवन का पहला महीना पूरा नहीं कर पाते।

बड़ी संख्या में ये मौतें रोकथाम योग्य होती हैं, यदि समय पर उचित देखभाल मिल जाए।

लेकिन ये संख्याएं केवल आंकड़े नहीं हैं – ये इंसानी कहानियाँ हैं।

एक माँ जो अपने पहले बच्चे को जन्म देने से पहले ही चली जाती है।

एक नवजात जो समय से पहले जन्म लेता है और अस्पताल में पर्याप्त देखभाल न मिलने से दम तोड़ देता है।

एक पिता जो माँ और बच्चे दोनों को खोकर मानसिक रूप से टूट जाता है।

ये घटनाएं न सिर्फ परिवारों को तोड़ती हैं, बल्कि समाज और देश की नींव को भी कमजोर करती हैं।

2025 की वैश्विक स्थिति: चुनौतियाँ और असमानताएं

आज भी स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच हर किसी को समान रूप से नहीं मिल रही है। कुछ चुनौतियां:

1. ग्रामीण बनाम शहरी असमानता – शहरों में अस्पताल, डॉक्टर्स और तकनीकी सुविधाएं हैं, लेकिन गांवों में आज भी प्रसव घर पर होते हैं।

2. आर्थिक असमानता – गरीब परिवार इलाज का खर्च नहीं उठा पाते और असुरक्षित डिलीवरी कराते हैं।

3. शिक्षा और जागरूकता की कमी – कई महिलाओं को यह भी नहीं पता होता कि गर्भावस्था के दौरान कौन-कौन से जांच करवाना ज़रूरी है।

4. कुपोषण – गर्भवती महिलाओं में आयरन, कैल्शियम की कमी नवजात पर सीधा असर डालती है।

कैसे बनाएं ‘स्वस्थ शुरुआतें’?

1. सशक्त मातृत्व: माँ स्वस्थ तो बच्चा स्वस्थ

नियमित एंटीनेटल जांच

पोषण युक्त आहार

सुरक्षित प्रसव की सुविधा

मानसिक स्वास्थ्य का समर्थन

2. गुणवत्तापूर्ण नवजात देखभाल

जन्म के तुरंत बाद स्तनपान शुरू कराना

नवजात की नियमित जांच और टीकाकरण

नवजात ICU जैसी सुविधाएं गंभीर मामलों के लिए

3. समाज की भूमिका

महिलाओं को निर्णय लेने की आज़ादी देना

पुरुषों को प्रसव-पूर्व देखभाल में शामिल करना

स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षित करना

भारत की भूमिका और योजनाएं

भारत सरकार ने भी मातृ और शिशु World Health Day 2025 को लेकर कई योजनाएं शुरू की हैं:

1. जननी सुरक्षा योजना (JSY) – गरीब महिलाओं को संस्थागत प्रसव के लिए वित्तीय सहायता।

2. प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (PMSMA) – गर्भवती महिलाओं को मुफ्त जांच और परामर्श।

3. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) – ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ाना।

लेकिन ज़मीनी हकीकत अभी भी बदलने की ज़रूरत है। सिर्फ योजनाएं बनाना काफी नहीं, उन्हें प्रभावी तरीके से लागू करना भी ज़रूरी है।

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World Health Day 2025: मानवीय कहानियों से जुड़ाव

ममता की जीत – एक आशा की कहानी

बिहार के एक छोटे से गाँव की 22 वर्षीय ममता, पहली बार माँ बनने जा रही थी। गांव में अस्पताल दूर था, लेकिन आशा कार्यकर्ता की मदद से उसने समय पर जांच कराई, आयरन की गोलियां लीं और संस्थागत प्रसव कराया। आज उसका बेटा पूरी तरह स्वस्थ है।

असफलता से शिक्षा – एक पीड़ा की कहानी

राजस्थान की गीता को प्रसव के समय ब्लीडिंग हुई, लेकिन गांव में डॉक्टर नहीं था। हॉस्पिटल तक पहुंचते-पहुंचते उसने दम तोड़ दिया। इस घटना ने पूरे गांव को हिला दिया। अब वहां की पंचायत ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खोलने की मांग की है।

आप क्या कर सकते हैं?

एक नागरिक के तौर पर:

गर्भवती महिलाओं को अस्पताल तक पहुंचने में मदद करें।

आस-पास की महिलाओं को प्रसव पूर्व जांच के बारे में जानकारी दें।

किसी महिला या नवजात को स्वास्थ्य सेवा न मिल रही हो तो हेल्पलाइन पर कॉल करें।

एक शिक्षक, विद्यार्थी या पेशेवर के तौर पर:

स्कूलों में जागरूकता अभियान चलाएं।

सोशल मीडिया पर सही जानकारी साझा करें।

स्वयंसेवक के रूप में स्थानीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों में भाग लें।

वैश्विक दृष्टिकोण: विश्व भर में स्वास्थ्य सेवाओं की असमानताएँ

World Health Day 2025 की थीम एक वैश्विक चेतावनी है। दुनिया के कई देशों में स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच अब भी एक “विशेषाधिकार” बनी हुई है। विशेषकर विकासशील देशों में स्वास्थ्य सेवाएं निम्न स्तर पर हैं:

अफ्रीका: स्वास्थ्य सेवाओं का संकट

60% महिलाएं अब भी बिना किसी प्रशिक्षित सहायता के प्रसव करती हैं।

नवजात मृत्यु दर सबसे अधिक है।

युद्ध, गरीबी और भूख स्वास्थ्य को और बदतर बनाते हैं।

दक्षिण एशिया: सांस्कृतिक बाधाएं

भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश में कई महिलाएं सामाजिक बंधनों के कारण जांच नहीं करा पातीं।

ग्रामीण इलाकों में कुपोषण और अनपढ़ता भी एक बड़ी चुनौती है।

लैटिन अमेरिका और मध्य एशिया

शहरों में सेवाएं हैं, लेकिन दूर-दराज़ इलाकों में डॉक्टर और दवाएं नहीं।

भाषा, जातीयता और गरीबी यहां भी अवरोध बनते हैं।

असमानता का निष्कर्ष

स्वास्थ्य सेवा जितनी पहुंच से बाहर है, उतना ही बढ़ता है मृत्यु और बीमारी का खतरा। यही वजह है कि 2025 की थीम सबको साथ लेकर चलने की बात करती है – “No one should be left behind.”

मानसिक स्वास्थ्य: मौन त्रासदी

विश्व स्वास्थ्य केवल शरीर तक सीमित नहीं है – मानसिक स्वास्थ्य भी उतना ही आवश्यक है। प्रसव के बाद महिलाओं में Postpartum Depression आम है, लेकिन इसे अक्सर नज़रअंदाज़ किया जाता है।

भारत में स्थिति

लगभग 22% महिलाएं प्रसव के बाद डिप्रेशन का शिकार होती हैं।

मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं केवल शहरों तक सीमित हैं।

समाज में मानसिक बीमारी को अभी भी शर्म की नजर से देखा जाता है।

समाधान की दिशा में कदम

मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं का हिस्सा बनाना।

ASHA कार्यकर्ताओं को मानसिक स्वास्थ्य की प्रारंभिक पहचान की ट्रेनिंग देना।

नवजात की देखभाल के साथ माँ की मनःस्थिति पर भी ध्यान देना।

स्वास्थ्य और पर्यावरण का संबंध: एक अनदेखा पहलू

स्वास्थ्य केवल डॉक्टर और दवाइयों तक सीमित नहीं – स्वच्छ वायु, स्वच्छ जल, पोषक भोजन और सुरक्षित पर्यावरण भी ज़रूरी हैं।

2025 में जलवायु परिवर्तन की भूमिका

जलवायु परिवर्तन से जुड़े रोगों (जैसे मलेरिया, डेंगू, सांस की बीमारियां) में वृद्धि हुई है।

गर्मियों में तापमान 45°C से अधिक होने पर गर्भवती महिलाओं के लिए जोखिम बढ़ जाता है।

बाढ़ और सूखा जैसे आपदाएं नवजात मृत्यु दर पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।

साझा समाधान

हर स्वास्थ्य नीति में पर्यावरणीय दृष्टिकोण जोड़ना।

हरे-भरे और स्वच्छ अस्पताल बनाना।

सामुदायिक जल, सफाई और स्वच्छता (WASH) कार्यक्रमों को स्वास्थ्य अभियानों से जोड़ना।

स्वास्थ्य का डिजिटल भविष्य: 2025 की क्रांति

तकनीक ने स्वास्थ्य सेवाओं में एक नई क्रांति ला दी है, विशेषकर कोविड-19 के बाद से।

Telemedicine और eHealth

ग्रामीण इलाकों में विशेषज्ञ डॉक्टरों से ऑनलाइन परामर्श की सुविधा।

माताओं के लिए मोबाइल पर SMS आधारित पोषण और टीकाकरण याद दिलाने वाले ऐप्स।

AI आधारित पूर्वानुमान

AI की मदद से गर्भावस्था की जटिलताओं की भविष्यवाणी करना।

नवजात के स्वास्थ्य रिकॉर्ड का विश्लेषण कर तुरंत इलाज की योजना बनाना।

Digital Health Card (ABHA ID – भारत में)

हर नागरिक के स्वास्थ्य रिकॉर्ड का डिजिटल डेटाबेस।

महिला और शिशु दोनों के टीकाकरण, जांच, डिलीवरी आदि की जानकारी एक जगह संग्रहीत।

संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक सहयोग

SDG लक्ष्य 3: Good Health and Well-being

संयुक्त राष्ट्र का सतत विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goal) नंबर 3 कहता है – “Ensure healthy lives and promote well-being for all at all ages.”

2025 तक लक्ष्य:

मातृ मृत्यु दर को 70 प्रति लाख जन्मों से कम करना।

नवजात मृत्यु दर को 12 प्रति 1000 जीवित जन्मों से कम करना।

WHO, UNICEF, UNFPA जैसे संगठन इसके लिए मिलकर काम कर रहे हैं।

स्वास्थ्य में निवेश = समृद्ध राष्ट्र

स्वास्थ्य एक देश की आर्थिक उत्पादकता से सीधा जुड़ा होता है।

यदि महिलाएं स्वस्थ होंगी, तो वे शिक्षा, रोज़गार और समाज में सक्रिय भूमिका निभा पाएंगी।

यदि बच्चे स्वस्थ पैदा होंगे, तो वे भविष्य के नवाचारक, नेता और नागरिक बनेंगे।

यदि परिवार स्वास्थ्य पर खर्च के बोझ से बचेगा, तो वह शिक्षा और विकास में निवेश कर सकेगा।

एक डॉलर का स्वास्थ्य निवेश, भविष्य में नौ गुना रिटर्न ला सकता है।

World Health Day 2025 और महिलाओं की स्वतंत्रता

World Health Day 2025 महिलाओं की स्वतंत्रता की भी बात करता है:

निर्णय लेने का अधिकार: महिला खुद तय करे कि कब माँ बनना है।

गर्भनिरोधक तक पहुंच: सुरक्षित परिवार नियोजन से मातृ मृत्यु दर कम होती है।

लड़कियों की शिक्षा: शिक्षित लड़की माँ बनने पर ज्यादा समझदारी से निर्णय लेती है।

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स्वास्थ्य और शिक्षा का अटूट संबंध

1. स्वास्थ्य साक्षरता (Health Literacy):

स्वास्थ्य केवल इलाज नहीं, बल्कि जागरूकता और समझ की भी बात है।

बहुत-सी माताएं यह नहीं जानतीं कि प्रसव पूर्व (Antenatal) जांच क्यों ज़रूरी है।

शिशु को 6 महीने तक केवल स्तनपान देने की सलाह भी कई महिलाओं को नहीं दी जाती।

गर्भवती महिलाओं के लिए आवश्यक आयरन-फोलिक एसिड की गोलियां भी अक्सर समय पर नहीं ली जातीं – क्योंकि जानकारी का अभाव होता है।

2. विद्यालयों की भूमिका:

World Health Day 2025 और पोषण की शिक्षा को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल करना।

किशोरियों को मासिक धर्म, स्वच्छता और प्रजनन स्वास्थ्य के विषय में सही जानकारी देना।

किशोर World Health Day 2025 कार्यक्रम (RKSK) को हर स्कूल तक पहुंचाना।

3. शिक्षकों की जिम्मेदारी:

शिक्षक World Health Day 2025 को सामाजिक मुद्दा मानकर बच्चों को जागरूक बना सकते हैं।

स्कूलों में नियमित रूप से स्वास्थ्य चेकअप, बालिका मंडल, पोषण क्लब जैसी गतिविधियां होनी चाहिए।

समाज की भूमिका: सामूहिक चेतना से बदलाव

स्वास्थ्य केवल डॉक्टर और मरीज के बीच का संबंध नहीं – यह समाज की संयुक्त जिम्मेदारी है।

1. परिवार का सहयोग:

पति का सहयोग माँ के मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है।

सास-ससुर को जागरूक करना कि माँ को आराम, पोषण और ध्यान की आवश्यकता होती है।

2. ग्राम पंचायतें और सामुदायिक संस्थाएं:

गाँव की आंगनबाड़ी, पंचायत और महिला समूह मिलकर स्वास्थ्य शिविर, टीकाकरण अभियान और पोषण आहार वितरण में मदद कर सकते हैं।

3. पुरुषों की भागीदारी:

अधिकांश स्वास्थ्य योजनाएं केवल महिलाओं पर केंद्रित होती हैं – लेकिन पुरुषों की भूमिका भी उतनी ही ज़रूरी है।

एक संवेदनशील पिता और पति, संपूर्ण पारिवारिक स्वास्थ्य का आधार होता है।

नीति निर्माण और राजनीतिक इच्छा शक्ति

यदि सरकारें सही नीतियाँ बनाएं, पर्याप्त बजट दें, और ज़मीनी कार्यान्वयन करें – तो बहुत से स्वास्थ्य संकट टल सकते हैं।

1. हेल्थ बजट:

भारत जैसे विशाल देश में स्वास्थ्य पर जीडीपी का सिर्फ 2% खर्च होता है, जो पर्याप्त नहीं।

मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य पर विशेष फंड होना चाहिए।

2. नीति और अमल का अंतर:

नीति बन जाती है लेकिन उसका कार्यान्वयन ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं हो पाता।

जननी सुरक्षा योजना, मिशन इंद्रधनुष जैसी योजनाएं महान हैं, लेकिन कई बार कागज़ों तक सीमित रह जाती हैं।

3. ज़रूरी सुधार:

World Health Day 2025 कर्मचारियों की संख्या बढ़ाना।

ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों में आवश्यक दवाएं और सुविधाएं सुनिश्चित करना।

पारदर्शिता, निगरानी और जवाबदेही की प्रणाली बनाना।

जन आंदोलन की आवश्यकता

World Health Day 2025 सिर्फ पोस्टर तक सीमित न रह जाए…

हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि यह दिन:

केवल भाषण देने का अवसर न बने।

केवल सोशल मीडिया पोस्ट डालने की रस्म न रह जाए।

बल्कि एक जन आंदोलन की तरह मनाया जाए – जिसमें गाँव का हर नागरिक स्वास्थ्य के प्रति सजग हो।

कैसे बने जन आंदोलन:

World Health Day 2025 पर ग्राम सभा की बैठक।

बच्चों की रैली, नुक्कड़ नाटक और स्थानीय भाषाओं में गीत-कविता।

स्थानीय रेडियो, मंदिर-मस्जिद से स्वास्थ्य संबंधी घोषणाएं।

हर क्षेत्र का स्थानीय स्वास्थ्य हीरो सामने आए – डॉक्टर, आशा बहन, शिक्षक या दादी।

नई पीढ़ी की भूमिका: युवाओं से उम्मीद

World Health Day 2025 की युवा पीढ़ी सबसे जागरूक, डिजिटल और संवादशील है। वे बदलाव ला सकते हैं।

युवा क्या कर सकते हैं?

अपने गांव/मोहल्ले में गर्भवती महिलाओं को पोषण और जांच के लिए प्रेरित करना।

स्वास्थ्य ऐप्स, डिजिटल हेल्थ ID की जानकारी देना।

ब्लड डोनेशन कैंप, स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम आयोजित करना।

स्वास्थ्य ही असली राष्ट्रवाद है

अपने देश को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाना है, तो पहले अपने नागरिकों को स्वस्थ बनाना होगा।

हर युवा को यह समझना होगा कि “स्वस्थ भारत ही सशक्त भारत है।”

अंतिम संदेश: उम्मीद, बदलाव और करुणा

World Health Day 2025 सिर्फ एक तारीख नहीं, एक दृष्टिकोण है – एक ऐसा नजरिया जो कहता है:

हर बच्चा स्वस्थ पैदा हो।

हर माँ मुस्कुराते हुए संतान को जन्म दे।

हर परिवार को यह भरोसा हो कि अगर कुछ भी गलत हुआ – तो वो अकेला नहीं।

क्या हम तैयार हैं?

क्या हम एक ऐसा समाज बना सकते हैं, जहाँ स्वास्थ्य केवल धनवानों का अधिकार न हो?

क्या हम हर गाँव, हर बस्ती, हर घर तक स्वास्थ्य की रोशनी पहुंचा सकते हैं?

उत्तर है – हाँ, अगर हम सब मिलकर चलें।


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