1000 साल पुरानी मन्नार की धातु कला को आखिर क्यों मिला GI टैग? क्या मिलेगी अंतराष्ट्रीय पहचान!
मन्नार की धातु कला: भारत सदियों से अपनी समृद्ध हस्तकला परंपरा के लिए जाना जाता है, और मन्नार (केरल) की धातु हस्तकला इस विरासत का एक प्रमुख उदाहरण है।
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Toggleइसे “बेल मेटल टाउन” के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहां पीतल और कांसे से बनी उत्कृष्ट कृतियाँ तैयार की जाती हैं। मन्नार की धातु हस्तकला को भौगोलिक संकेत (GI) प्रमाणन मिलने की प्रक्रिया में है, जिससे इस कला को वैश्विक स्तर पर एक नई पहचान मिलेगी।
यह लेख मन्नार की इस अनोखी हस्तकला, इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, निर्माण प्रक्रिया, सांस्कृतिक महत्व, वर्तमान चुनौतियों और जीआई टैग से होने वाले लाभों पर विस्तृत जानकारी प्रदान करता है।
मन्नार: एक ऐतिहासिक धरोहर
मन्नार, जो केरल के अलप्पुझा जिले में स्थित है, भारत के प्रमुख धातु हस्तकला केंद्रों में से एक है। यह स्थान कई पीढ़ियों से धातु कारीगरी के लिए प्रसिद्ध रहा है। यहाँ के कारीगर परंपरागत तरीकों से पीतल, कांसा और तांबे की वस्तुएँ बनाते हैं।
मन्नार को “बेल मेटल टाउन” क्यों कहा जाता है?
बेल मेटल (Bell Metal) पीतल और कांसे का एक विशेष मिश्रण होता है, जिसका उपयोग घंटियों, मूर्तियों और अन्य धार्मिक एवं सांस्कृतिक वस्तुओं के निर्माण में किया जाता है। मन्नार में इस मिश्र धातु से बनी वस्तुएँ उच्च गुणवत्ता की होती हैं, और यही कारण है कि इसे “बेल मेटल टाउन” कहा जाता है।
मन्नार की धातु हस्तकला की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
मन्नार में धातु हस्तकला की परंपरा सदियों पुरानी है। इसका इतिहास केरल के प्राचीन मंदिरों, महलों और धार्मिक संस्थानों से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि इस कला का उद्भव चोल, चेर और पांड्य राजाओं के शासनकाल में हुआ, जब धातु की मूर्तियों और घंटियों का प्रचलन बढ़ा। यहाँ के कारीगर विशेष रूप से मंदिरों के लिए दीप, घंटियाँ, मूर्तियाँ और अनुष्ठानिक वस्तुएँ बनाते थे।
मुगल और ब्रिटिश काल में धातु हस्तकला
मुगल काल में भारत में धातु हस्तकला को नया प्रोत्साहन मिला, लेकिन ब्रिटिश शासन के दौरान मशीनरी के आगमन से पारंपरिक कारीगरों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। फिर भी, मन्नार के कारीगरों ने अपनी कला को जीवित रखा और आधुनिक तकनीकों के साथ इसे समृद्ध किया।
मन्नार की धातु कला की विशिष्टताएँ
मन्नार की धातु कला अपनी जटिल नक्काशी, सुंदर डिजाइन और उच्च ध्वनि गुणवत्ता वाली घंटियों के लिए प्रसिद्ध है। इसकी कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
1. पारंपरिक ढलाई प्रक्रिया – यहाँ के कारीगर मोम की ढलाई (Lost-wax casting) तकनीक का उपयोग करते हैं, जिससे बेहद बारीक और सुंदर डिज़ाइन उकेरी जाती हैं।
2. धार्मिक महत्व – मन्नार में बनी मूर्तियाँ और घंटियाँ मंदिरों और पूजा स्थलों में उपयोग की जाती हैं।
3. सांस्कृतिक विविधता – न केवल हिंदू, बल्कि ईसाई और मुस्लिम समुदायों के लिए भी धार्मिक और सांस्कृतिक वस्तुएँ बनाई जाती हैं।
4. उच्च गुणवत्ता की धातु – मन्नार के कारीगर शुद्ध पीतल और कांसे का उपयोग करते हैं, जिससे उनकी कृतियाँ टिकाऊ और आकर्षक होती हैं।
5. विशिष्ट ध्वनि – यहाँ बनाई जाने वाली घंटियों की ध्वनि गूंजदार और शुद्ध होती है, जिसे विशेष रूप से धार्मिक अनुष्ठानों के लिए आदर्श माना जाता है।

मन्नार की धातु कला की निर्माण प्रक्रिया
मन्नार में धातु की वस्तुएँ बनाने की प्रक्रिया पारंपरिक और जटिल होती है। इसमें कई चरण होते हैं:
1. डिज़ाइन और मोल्डिंग
सबसे पहले कारीगर मिट्टी या मोम से मूर्ति या घंटी का मॉडल तैयार करते हैं। इस डिज़ाइन को पूरी सावधानी से उकेरा जाता है ताकि अंतिम उत्पाद में बारीकी से सभी विवरण दिखाई दें।
2. मोम की ढलाई (Lost-wax casting)
मोम के मॉडल को मिट्टी की एक परत में लपेटा जाता है और फिर इसे गर्म किया जाता है। गर्मी से मोम पिघल जाता है, जिससे एक खोखली आकृति तैयार हो जाती है।
3. धातु का गलाना और ढलाई
इस खोखले साँचे में पिघला हुआ पीतल या कांसा डाला जाता है। इसे ठंडा करने के बाद सांचा तोड़कर मूर्ति या घंटी निकाली जाती है।
4. फिनिशिंग और नक्काशी
अंत में, वस्तु की सतह को चिकना किया जाता है, और आवश्यकतानुसार नक्काशी या अन्य सजावट की जाती है।
जीआई प्रमाणन का महत्व और इसके लाभ
मन्नार की धातु हस्तकला को भौगोलिक संकेत (Geographical Indication – GI) प्रमाणन मिलने से इसे कानूनी मान्यता और विशिष्ट पहचान मिलेगी।
जीआई टैग के लाभ:
1. बाजार में विशिष्ट पहचान – यह उत्पाद की मौलिकता को साबित करेगा और नकली वस्तुओं पर रोक लगेगी।
2. कारीगरों को लाभ – इससे कारीगरों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य मिलेगा।
3. निर्यात को बढ़ावा – जीआई टैग मिलने से वैश्विक स्तर पर इन वस्तुओं की मांग बढ़ेगी।
4. संस्कृति और परंपरा का संरक्षण – इससे इस पारंपरिक कला को संरक्षित और संवर्धित करने में मदद मिलेगी।
मन्नार की धातु कला से जुड़ी चुनौतियाँ
हालाँकि मन्नार की धातु हस्तकला प्रसिद्ध है, लेकिन इसे कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है:
1. आधुनिक मशीनों से प्रतिस्पर्धा
हाथ से बनी वस्तुओं की तुलना में मशीनों से बनी वस्तुएँ सस्ती होती हैं, जिससे कारीगरों को नुकसान हो रहा है।
2. कच्चे माल की बढ़ती कीमतें
पीतल और कांसे की कीमतें बढ़ने से उत्पादन लागत भी बढ़ रही है, जिससे छोटे कारीगरों को कठिनाई होती है।
3. युवा पीढ़ी की कम रुचि
आज की युवा पीढ़ी इस कला को अपनाने में कम रुचि दिखा रही है, जिससे यह परंपरा खतरे में पड़ सकती है।
4. नकली उत्पादों की समस्या
बाजार में नकली और कम गुणवत्ता वाली वस्तुओं की बाढ़ ने मन्नार की असली धातु हस्तकला को नुकसान पहुँचाया है।
सरकार और संस्थानों की भूमिका
केरल सरकार और विभिन्न सांस्कृतिक संस्थाएँ मन्नार की धातु हस्तकला को पुनर्जीवित करने के लिए कई कदम उठा रही हैं, जिनमें शामिल हैं:
कारीगरों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम
आर्थिक सहायता और सब्सिडी
राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों में भागीदारी
ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर विपणन
भविष्य की संभावनाएँ और सुधार के उपाय
1. डिजिटलीकरण और ऑनलाइन बिक्री
आज के डिजिटल युग में, पारंपरिक कारीगरों को ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स जैसे Amazon, Flipkart, और सरकारी पोर्टलों (GeM, Tribes India) पर अपनी मन्नार की धातु कला को प्रदर्शित करना चाहिए। इससे उन्हें देश-विदेश में अधिक खरीदार मिलेंगे और उनकी आय में वृद्धि होगी।
2. पर्यटन और लाइव वर्कशॉप्स
मन्नार की धातु कला को एक “हैंडलूम और हैंडीक्राफ्ट टूरिज्म हब” के रूप में विकसित किया जा सकता है। यदि पर्यटकों को लाइव वर्कशॉप्स और कारीगरों के साथ बातचीत का अवसर मिले, तो इससे कला की लोकप्रियता बढ़ेगी और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।
3. डिजाइन और नवाचार
पारंपरिक तकनीकों को बनाए रखते हुए आधुनिक डिजाइनों को अपनाने की आवश्यकता है। नई पीढ़ी के उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए मन्नार की धातु कला को होम डेकोर, फैशन और उपहार वस्तुओं में परिवर्तित किया जा सकता है।
4. सरकारी नीति और समर्थन
सरकार को कारीगरों के लिए अधिक अनुदान योजनाएँ, सब्सिडी, और कौशल विकास कार्यक्रम चलाने चाहिए। यदि यह उद्योग संगठित रूप से कार्य करे, तो वैश्विक बाजार में इसकी प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है।
5. शिक्षा और जागरूकता
स्कूलों और विश्वविद्यालयों में मन्नार की धातु हस्तकला पर विशेष कोर्स और कार्यशालाएँ शुरू की जा सकती हैं, ताकि युवा पीढ़ी इस कला के महत्व को समझे और इसे आगे बढ़ाने में योगदान दे।
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मन्नार की धातु हस्तकला की स्थिति
वैश्विक स्तर पर भारतीय हस्तशिल्प की माँग लगातार बढ़ रही है। यूरोप, अमेरिका, और जापान जैसे देशों में पारंपरिक हस्तकला उत्पादों की सराहना की जाती है। मन्नार की धातु कला को इन बाजारों में बेहतर रणनीति के साथ प्रस्तुत किया जाए तो यह एक बड़ा निर्यात उद्योग बन सकता है।
1. एक्सपोर्ट प्रमोशन
मन्नार की धातु हस्तकला को अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों और ट्रेड फेयर्स में प्रदर्शित करना आवश्यक है। इससे विदेशी खरीदारों तक इसकी पहुँच बढ़ेगी।
2. गुणवत्ता प्रमाणन और ब्रांडिंग
अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार गुणवत्ता प्रमाणन (ISO, Fair Trade, Eco-Friendly Certifications) प्राप्त करके इन उत्पादों की साख को और मजबूत किया जा सकता है।
3. भारतीय दूतावासों और सांस्कृतिक संगठनों का सहयोग
विदेशों में भारतीय दूतावासों और सांस्कृतिक संगठनों के माध्यम से मन्नार की हस्तकला का प्रचार किया जा सकता है।
सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने की आवश्यकता
मन्नार की धातु कला न केवल एक व्यवसाय है, बल्कि यह हमारी संस्कृति और परंपरा का प्रतीक भी है। यदि इसे संरक्षित नहीं किया गया तो यह विलुप्त हो सकती है। हमें इस अनमोल धरोहर को बचाने और इसे एक नई ऊँचाई पर ले जाने के लिए सामूहिक प्रयास करने होंगे।
जनता की भूमिका
स्थानीय कारीगरों का समर्थन करें और उनकी बनाई वस्तुएँ खरीदें।
मशीनीकृत और नकली उत्पादों के बजाय असली हस्तनिर्मित वस्तुओं को प्राथमिकता दें।
सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से इस कला को बढ़ावा दें।
मन्नार की धातु हस्तकला (Mannar Metal Craft) से जुड़े टॉप 15 सर्च किए जाने वाले सवाल और उनके विस्तृत उत्तर
1. मन्नार की धातु कला क्या है?
उत्तर: मन्नार की धातु हस्तकला केरल के प्रसिद्ध पारंपरिक हस्तशिल्पों में से एक है, जिसे “Bell Metal Town” के नाम से जाना जाता है। यहाँ मुख्य रूप से पीतल और कांसे से मंदिरों की घंटियाँ, दीपक, मूर्तियाँ, बर्तन और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए विभिन्न वस्तुएँ बनाई जाती हैं। यह कला 1000 वर्षों से अधिक पुरानी मानी जाती है और इसे हाथों से ढलाई (Lost-Wax Casting) तकनीक के माध्यम से तैयार किया जाता है।
2. मन्नार की धातु कला को जीआई टैग क्यों मिल रहा है?
उत्तर: भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication – GI) टैग किसी विशेष क्षेत्र में बनने वाले विशिष्ट उत्पादों को उनकी पारंपरिक विशेषताओं और ऐतिहासिक महत्व के आधार पर दिया जाता है। मन्नार की धातु हस्तकला को यह टैग इसलिए मिल रहा है क्योंकि:
यह एक प्राचीन और विशिष्ट हस्तकला है।
इस कला में परंपरागत रूप से हाथ से ढलाई की तकनीक का उपयोग होता है।
इसे केवल मन्नार के कारीगर ही परंपरागत रूप से बनाते आ रहे हैं।
नकली मशीन निर्मित उत्पादों से इसे सुरक्षा मिलेगी।
3. मन्नार की धातु कला को कितनी पुरानी परंपरा माना जाता है?
उत्तर: मन्नार की धातु कला लगभग 1000 साल पुरानी मानी जाती है। इस कला का उल्लेख केरल के पुराने मंदिरों और ऐतिहासिक अभिलेखों में मिलता है। मंदिरों में लगी घंटियाँ, मूर्तियाँ और अन्य अनुष्ठानिक वस्तुएँ इसी कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

4. मन्नार को “Bell Metal Town” क्यों कहा जाता है?
उत्तर: मन्नार को “Bell Metal Town” इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहाँ मुख्य रूप से पीतल (Brass) और कांसे (Bronze) से बनी घंटियाँ, मूर्तियाँ, और अन्य धार्मिक धातु उत्पाद तैयार किए जाते हैं। इस क्षेत्र के कारीगरों द्वारा बनाई गई घंटियाँ अपनी स्पष्ट ध्वनि और उत्कृष्ट गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध हैं।
5. मन्नार की धातु कला में कौन-कौन से उत्पाद बनाए जाते हैं?
उत्तर:
मन्नार के कारीगर निम्नलिखित प्रमुख उत्पाद बनाते हैं:
मंदिर की घंटियाँ (Temple Bells)
दीपक और समई (Traditional Lamps)
धार्मिक मूर्तियाँ (Idols of Gods and Goddesses)
पारंपरिक धातु के बर्तन (Brass Utensils)
धूपदान और पूजा सामग्री (Incense Holders, Ritual Plates)
आभूषण और सजावटी वस्तुएँ (Ornaments and Decorative Items)
6. मन्नार की धातु कला किस तकनीक से बनाई जाती है?
उत्तर: मन्नार की धातु कला मुख्य रूप से लॉस्ट-वैक्स कास्टिंग (Lost-Wax Casting) तकनीक से बनाई जाती है। इस तकनीक में:
- पहले मोम से एक मॉडल तैयार किया जाता है।
- इसे मिट्टी से ढककर सुखाया जाता है।
- फिर इसे भट्टी में गर्म किया जाता है, जिससे मोम पिघलकर बाहर निकल जाता है।
- अब बने साँचे में पिघली हुई धातु डाली जाती है।
- ठंडा होने के बाद साँचे को तोड़कर मूर्ति निकाली जाती है और इसे पॉलिश किया जाता है।
7. मन्नार की धातु हस्तकला को जीआई टैग मिलने से क्या लाभ होंगे?
उत्तर: मन्नार की धातु कला राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान प्राप्त करेगी।
कारीगरों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य मिलेगा।
नकली और मशीन निर्मित उत्पादों पर रोक लगेगी।
निर्यात बढ़ेगा और विदेशी बाजारों में भारतीय हस्तकला को बढ़ावा मिलेगा।
पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ होगा।
8. क्या मन्नार की धातु कला को संरक्षित करने के लिए सरकार कोई योजना चला रही है?
उत्तर: जी हाँ, सरकार विभिन्न योजनाओं के माध्यम से इस कला को संरक्षित करने के प्रयास कर रही है, जैसे:
GeM (Government e-Marketplace): कारीगरों को ऑनलाइन बिक्री के लिए सरकारी पोर्टल पर जोड़ा जा रहा है।
MSME योजनाएँ: छोटे और मध्यम दर्जे के कारीगरों को वित्तीय सहायता दी जा रही है।
हस्तशिल्प बोर्ड: यह बोर्ड पारंपरिक कारीगरों को प्रशिक्षण और बाजार उपलब्ध कराने का कार्य करता है।
9. मन्नार की धातु कला का भविष्य क्या है?
उत्तर: भविष्य में इस मन्नार की धातु कला को डिजिटलीकरण, ई-कॉमर्स और आधुनिक डिजाइनों के साथ जोड़ा जा सकता है। यदि कारीगर ऑनलाइन बिक्री और वैश्विक व्यापार मेलों में भाग लेते हैं, तो यह कला और अधिक प्रसिद्ध हो सकती है।
10. क्या मन्नार की धातु कला केवल धार्मिक वस्तुओं तक सीमित है?
उत्तर: नहीं, पहले यह मुख्य रूप से धार्मिक वस्तुओं तक सीमित थी, लेकिन अब इसमें सजावटी वस्तुएँ, आधुनिक आर्ट पीस, होम डेकोर आइटम, और गिफ्ट आइटम भी बनाए जा रहे हैं।
11. मन्नार की धातु कला को किन देशों में निर्यात किया जाता है?
उत्तर: मन्नार की धातु कला के उत्पाद मुख्य रूप से अमेरिका, यूरोप, जापान, ऑस्ट्रेलिया, और खाड़ी देशों में निर्यात किए जाते हैं। इन देशों में भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक मन्नार की धातु कला की बहुत माँग है।
12. मन्नार के धातु उत्पादों की कीमत किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर: मूल्य निर्धारण निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है:
धातु की शुद्धता (Brass/Bronze Quality)
डिज़ाइन की जटिलता और कारीगरी
आकार और वजन
पारंपरिक बनावट बनाम आधुनिक डिजाइन
13. क्या कोई व्यक्ति मन्नार की धातु कला ऑनलाइन खरीद सकता है?
उत्तर: हाँ, अब कई ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स जैसे Amazon, Flipkart, Etsy, Tribes India और GeM (Government e-Marketplace) पर मन्नार की धातु कला के उत्पाद उपलब्ध हैं।
14. क्या यह कला लुप्त होने की कगार पर है?
उत्तर: यदि इसे सही संरक्षण और समर्थन नहीं मिला तो यह कला धीरे-धीरे लुप्त हो सकती है। नई पीढ़ी इस पेशे को नहीं अपना रही है, और मशीन निर्मित उत्पादों की प्रतिस्पर्धा से यह कला प्रभावित हो रही है।
15. आम जनता इस कला को कैसे बढ़ावा दे सकती है?
उत्तर: लोकल आर्टिज़न से हस्तनिर्मित उत्पाद खरीदें।
ऑनलाइन माध्यम से इस कला का प्रचार करें।
सरकारी योजनाओं के बारे में जागरूकता फैलाएँ।
पर्यटन को बढ़ावा दें और मन्नार की यात्रा करें।
निष्कर्ष
मन्नार की धातु कला भारत की समृद्ध विरासत का एक गौरवशाली हिस्सा है। जीआई प्रमाणन से न केवल इसे एक विशिष्ट पहचान मिलेगी, बल्कि यह कारीगरों के लिए नए अवसरों के द्वार भी खोलेगा।
हालाँकि, इसे जीवंत बनाए रखने के लिए आधुनिक तकनीक, डिजिटलीकरण, और नवाचार को अपनाने की आवश्यकता है। सरकार, कारीगरों, उद्योगपतियों और आम जनता के सामूहिक प्रयासों से मन्नार की यह कला आने वाले समय में और अधिक चमकेगी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ेगी।
“हमें अपनी परंपरा पर गर्व होना चाहिए और इसे संरक्षित करने का दायित्व उठाना चाहिए”।
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