CHESS DRDO: Laser DEW Technology की इस Historic सफलता से भारत बना भविष्य की शक्ति!
भूमिका: भविष्य का युद्ध आज की हकीकत बन रहा है
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Toggleजब हम भविष्य के युद्धों की कल्पना करते हैं, तो अक्सर ऐसी तकनीकों की छवि सामने आती है जो विज्ञान कथाओं में देखी जाती हैं — बिना आवाज़ के दुश्मन को खत्म कर देना, प्रकाश की गति से हमला करना और बेहद सटीकता के साथ लक्ष्यों को भेदना।
भारत ने अब इस कल्पना को साकार करने की दिशा में एक ठोस कदम बढ़ा दिया है। हाल ही में DRDO के तहत कार्यरत Centre for High Energy Systems and Sciences (CHESS) ने एक उच्च-शक्ति लेज़र हथियार प्रणाली (Directed Energy Weapon-DEW) का सफल परीक्षण किया है। यह परीक्षण केवल तकनीकी उपलब्धि नहीं, बल्कि भारत की रक्षा नीति में एक क्रांतिकारी मोड़ है।
क्या है Directed Energy Weapon (DEW)?
Directed Energy Weapon यानी DEW ऐसे हथियार होते हैं जो किसी भौतिक गोला-बारूद के बजाय ऊर्जा की एक केंद्रित किरण—जैसे लेज़र, माइक्रोवेव या इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन—के माध्यम से लक्ष्य को नष्ट करते हैं। इनकी खासियत यह है कि ये:
अतिशीघ्र और सटीक हमला करते हैं
कम लागत में बार-बार प्रयोग किए जा सकते हैं
किसी प्रकार का पारंपरिक विस्फोटक नहीं रखते
गोपनीय और शांत हमला करते हैं, जिससे दुश्मन को संभलने का मौका नहीं मिलता
लेज़र आधारित DEW प्रणाली इसी CHESS तकनीक का हिस्सा है जिसमें अत्यधिक तीव्रता की लेज़र बीम को दुश्मन के ड्रोन, मिसाइल, या अन्य प्लेटफॉर्म पर फोकस किया जाता है।
CHESS DRDO का मिशन: ऊर्जा को हथियार बनाना
CHESS (Centre for High Energy Systems and Sciences) DRDO की एक अग्रणी प्रयोगशाला है जो उच्च-ऊर्जा प्रणालियों पर अनुसंधान कर रही है। इसका उद्देश्य है:
Directed Energy Weapon Systems का विकास
लेज़र बीम कंट्रोल, कूलिंग और ट्रैकिंग तकनीकों पर काम
भविष्य की लड़ाइयों के लिए तैयार रहना
CHESS द्वारा किया गया यह परीक्षण इसी दिशा में एक मील का पत्थर है।
भारत द्वारा किया गया CHESS परीक्षण: सफलता की ऊँचाई
इस CHESS परीक्षण में DRDO ने 25 किलोवॉट क्षमता वाली एक ट्रक-माउंटेड लेज़र हथियार प्रणाली का प्रयोग किया, जो उड़ते हुए लक्ष्यों को ट्रैक और नष्ट करने में सफल रही।
CHESS परीक्षण ऊँचाई वाले क्षेत्र में किया गया जिससे यह परखा जा सके कि क्या CHESS प्रणाली ऑपरेशनल परिस्थितियों में भी उतनी ही प्रभावशाली है।
मुख्य बिंदु:
लक्ष्य: छोटे UAVs और ड्रोन
वातावरण: ऊँचाई वाला क्षेत्र (High Altitude)
प्रणाली: ट्रक पर लगे हुए लेज़र हथियार
परिणाम: सटीक ट्रैकिंग और सफलतापूर्वक लक्ष्य को निष्क्रिय किया गया
तकनीकी विशेषताएं: जानिए कैसे काम करता है यह लेज़र हथियार
लेज़र DEW प्रणाली बहुत जटिल लेकिन प्रभावी तकनीकों पर आधारित है। इसकी कार्यप्रणाली को समझना जरूरी है:
1. टारगेट एक्विज़िशन और ट्रैकिंग
रडार, इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सेंसर और AI आधारित सिस्टम के माध्यम से यह हथियार अपने लक्ष्य को पहचानता और ट्रैक करता है।
2. बीम डायरेक्शन
एक बार लक्ष्य लॉक हो जाने के बाद, प्रणाली लेज़र बीम को अत्यंत सटीकता से उस पर केंद्रित करती है।
3. ऊर्जा उत्सर्जन
25 किलोवॉट की लेज़र बीम कुछ सेकंड में ही लक्ष्य पर इतनी गर्मी उत्पन्न कर देती है कि वह जलकर नष्ट हो जाता है।
4. कूलिंग मैकेनिज्म
चूंकि इतनी अधिक ऊर्जा के उत्सर्जन से सिस्टम खुद गर्म हो जाता है, इसलिए इसमें एडवांस्ड थर्मल मैनेजमेंट और कूलिंग सिस्टम भी लगे होते हैं।

लेज़र हथियार की प्रमुख खूबियाँ
1. बहुत कम प्रतिक्रिया समय: जैसे ही लक्ष्य नज़र आया, तुरंत बीम छोड़ दी जाती है
2. कम परिचालन लागत: एक बार स्थापित हो जाने के बाद, हर फायर का खर्च परंपरागत हथियारों से कहीं कम
3. मूक और अदृश्य हमला: दुश्मन को पता भी नहीं चलता कि हमला कब और कहाँ से हुआ
4. शुद्धता: बीम केवल लक्ष्य को ही भेदती है, जिससे collateral damage नहीं होता
5. हर मौसम में काम: नई तकनीकों के साथ यह सिस्टम अब बारिश या बादलों में भी काम करने के काबिल हो रहा है
भारत के लिए रणनीतिक लाभ
भारत की सुरक्षा नीति में यह CHESS प्रणाली कई दृष्टिकोण से लाभदायक साबित हो सकती है:
1. ड्रोन और UAV से सुरक्षा
चीन और पाकिस्तान जैसे देश अब तेजी से ड्रोन आधारित निगरानी और हथियारबंद हमलों की ओर बढ़ रहे हैं। ऐसे में लेज़र हथियार भारत की सीमाओं को सुरक्षित रखने में अत्यंत सहायक होंगे।
2. कम लागत में सीमा रक्षा
किसी मिसाइल से एक ड्रोन को मारने में लाखों का खर्च आता है, जबकि लेज़र से यह काम कुछ हज़ार में हो सकता है।
3. भविष्य की युद्ध शैली में भारत की तैयारी
दुनिया अब AI, लेज़र और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर की ओर बढ़ रही है। यह सफलता भारत को उस होड़ में सबसे आगे लाती है।
4. आत्मनिर्भर भारत की दिशा में कदम
CHESS पूरी तकनीक स्वदेशी है, जिससे विदेशी हथियारों पर निर्भरता कम होगी और भारत का रक्षा क्षेत्र आत्मनिर्भर बनेगा।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य: कौन-कौन हैं भारत के साथ?
अब तक केवल कुछ ही देश उच्च-शक्ति लेज़र हथियार प्रणाली विकसित कर पाए हैं:
अमेरिका: HELIOS, LaWS जैसी प्रणालियाँ विकसित कर चुका है
रूस: Peresvet नाम की लेज़र प्रणाली विकसित की गई है
चीन: Silent Hunter नामक DEW सिस्टम बनाया गया है
इजराइल: Iron Beam नामक प्रणाली पर काम हो रहा है
भारत अब इस सूची में शामिल होकर High Energy Weapons Club का हिस्सा बन चुका है।
चुनौतियाँ और आगे की राह
जहां एक ओर यह एक बड़ी उपलब्धि है, वहीं कुछ चुनौतियाँ भी सामने हैं:
1. मौसम और वातावरण
अत्यधिक बादल, धूल और वर्षा में लेज़र बीम की प्रभावशीलता घट सकती है।
2. पावर सप्लाई और कूलिंग
25kW या उससे अधिक शक्ति वाले सिस्टम को निरंतर चलाने के लिए अत्यधिक पावर और थर्मल कंट्रोल सिस्टम की आवश्यकता होती है।
3. वैश्विक प्रतिबंध और नैतिक पहलू
DEW सिस्टम पर वैश्विक रूप से नैतिक और कानूनी बहस चल रही है। भारत को अपनी नीतियों को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाना होगा।
4. मोबाइल और पोर्टेबल वर्जन की जरूरत
फिलहाल यह सिस्टम ट्रक पर आधारित है, भविष्य में इसे और पोर्टेबल वर्जन में विकसित करना जरूरी होगा।
भविष्य की योजनाएँ: क्या-क्या हो रहा है विकसित
DRDO की योजना है कि वर्ष 2030 तक:
100kW तक की लेज़र हथियार प्रणाली बनाई जाए
इन्हें नौसेना के जहाजों, वायुसेना के एयरक्राफ्ट और थलसेना के वाहनों पर तैनात किया जाए
AI आधारित टारगेटिंग प्रणाली विकसित की जाए
माइक्रोवेव और electromagnetic DEW पर भी अनुसंधान बढ़ाया जाए
सेना इस्तेमाल के संभावित क्षेत्र
1. सीमाओं पर चौबीसों घंटे निगरानी और प्रतिक्रिया
लेज़र हथियारों का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इन्हें बिना किसी रुकावट के लगातार ऑपरेट किया जा सकता है। इन्हें:
एलओसी और एलएसी जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में लगाया जा सकता है
घुसपैठ रोकने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है
सीमावर्ती इलाकों में ड्रोन और टोही विमान को निष्क्रिय करने में प्रयोग किया जा सकता है
2. नौसेना में लेज़र तकनीक का उपयोग
समुद्री सीमा पर कार्यरत नौसेना के जहाजों पर यदि DEW सिस्टम तैनात कर दिए जाएँ, तो:
दुश्मन की मिसाइलों और ड्रोन का रियल-टाइम में मुकाबला किया जा सकेगा
जहाजों की आत्मरक्षा क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी
कम लागत में समुद्री रक्षा सशक्त होगी
3. वायुसेना की लड़ाकू क्षमता में इज़ाफा
वायुसेना के विमान या अर्ली वॉर्निंग सिस्टम में अगर लेज़र हथियार जुड़ जाएँ तो:
हवा में उड़ते दुश्मन के ड्रोन्स, एयरक्राफ्ट, या मिसाइलों को उड़ान में ही नष्ट किया जा सकेगा
इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर को और आधुनिक रूप मिलेगा
बिना फिजिकल हथियार के हमले संभव होंगे
सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
1. स्वदेशी रक्षा उद्योग को बढ़ावा
इस CHESS तकनीक के विकास से भारत में टेक्नोलॉजी आधारित रक्षा उद्योग को बल मिलेगा। इससे:
स्टार्टअप्स और MSMEs को अवसर मिलेंगे
‘Make in India’ अभियान को गति मिलेगी
निर्यात की संभावनाएं बढ़ेंगी
2. रोजगार और शिक्षा क्षेत्र में प्रभाव
नई तकनीक आने से:
इंजीनियरिंग, भौतिकी, लेज़र टेक्नोलॉजी और एआई जैसे क्षेत्रों में रोजगार बढ़ेगा
छात्रों को cutting-edge टेक्नोलॉजी सीखने का मौका मिलेगा
रिसर्च आधारित शिक्षा प्रणाली को बल मिलेगा

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से छात्रों के लिए प्रेरणा
लेज़र DEW प्रणाली का विकास महज रक्षा के नजरिए से नहीं, बल्कि विज्ञान और नवाचार के नजरिए से भी महत्वपूर्ण है। यह:
युवाओं को रक्षा अनुसंधान की ओर प्रेरित करेगा
विज्ञान की वास्तविक उपयोगिता को प्रदर्शित करता है
रिसर्च और नवाचार के लिए आदर्श प्रेरणा स्रोत बन सकता है
वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति
भारत का यह कदम न केवल सामरिक दृष्टि से बल्कि कूटनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह दर्शाता है कि:
भारत न केवल हथियार खरीदने वाला देश है, बल्कि अत्याधुनिक हथियार बनाने में सक्षम है
यह आत्मनिर्भर भारत के संकल्प का प्रमाण है
इससे भारत को वैश्विक मंच पर अधिक सम्मान और रणनीतिक महत्व मिलेगा
भारत का नाम अब अमेरिका, रूस, चीन और इज़राइल जैसे उन चुनिंदा देशों की सूची में जुड़ गया है, जो लेज़र जैसे उन्नत हथियारों का विकास और प्रयोग कर रहे हैं।
भविष्य की दिशा: भारत का ‘Next Gen’ रक्षा विज़न
1. फ्यूचरिस्टिक वॉरफेयर की तैयारी
आज जिस दिशा में वैश्विक सैन्य रणनीतियाँ बढ़ रही हैं, वह पारंपरिक हथियारों से हटकर “AI-enabled, हाई-स्पीड और हाई-परिसन लेज़र आधारित” वॉरफेयर की ओर जा रही हैं।
भारत का CHESS-DEW सिस्टम इसी भविष्य की तैयारी है:
लेज़र, AI और सेंसर आधारित सटीक वार क्षमता
बिना बारूद, बिना प्रदूषण और बिना आवाज़ के युद्ध
स्पेस-वारफेयर और साइबर-डिफेंस से जुड़ी संभावनाओं की शुरुआत
2. स्वदेशी तकनीक की वैश्विक पहचान
यदि भारत इस तकनीक को पूरी तरह विकसित कर लेता है, तो यह:
रक्षा तकनीक के निर्यात में भी अग्रणी बन सकता है
मित्र राष्ट्रों के साथ सैन्य सहयोग बढ़ा सकता है
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की “टेक-सॉवरेन” पहचान बनेगी
आम नागरिकों पर अप्रत्यक्ष प्रभाव
हालांकि यह CHESS तकनीक मुख्य रूप से सेना के लिए विकसित की गई है, लेकिन इसके कुछ अप्रत्यक्ष लाभ आम जनता तक भी पहुँच सकते हैं:
1. लेज़र आधारित तकनीक का नागरिक इस्तेमाल
लेज़र तकनीक का प्रयोग कई क्षेत्रों में हो रहा है, जैसे:
मेडिकल साइंस में सर्जरी
संचार और डेटा ट्रांसमिशन
इंडस्ट्रियल कटिंग और वेल्डिंग
रक्षा क्षेत्र में उन्नत लेज़र तकनीक का विकास नागरिक लेज़र उपकरणों को भी अधिक प्रभावी और सस्ते बनाएगा।
2. साइंस, इंजीनियरिंग और रिसर्च में क्रांति
जब देश में cutting-edge तकनीक का माहौल बनता है, तो स्कूलों और विश्वविद्यालयों में भी:
प्रोजेक्ट्स और रिसर्च को प्रेरणा मिलती है
स्टार्टअप कल्चर बढ़ता है
एक टेक-ड्रिवन युवा पीढ़ी तैयार होती है
नवाचार और आत्मनिर्भरता का प्रतीक
लेज़र DEW तकनीक केवल एक हथियार नहीं है — यह आत्मनिर्भर भारत के उस दर्शन का प्रतीक है, जिसमें:
हम दूसरों पर निर्भर नहीं, बल्कि खुद अपने भविष्य के निर्माता बनें
विज्ञान और सैनिक ताक़त का संतुलन बनाए रखा जाए
दुनिया को दिखाया जाए कि भारत केवल संस्कृति और अध्यात्म का केंद्र नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी और नवाचार का भी नेतृत्व कर सकता है
निष्कर्ष: CHESS भारत की रक्षा शक्ति में नया अध्याय
DRDO और CHESS द्वारा किया गया यह सफल परीक्षण न केवल भारत की तकनीकी शक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह एक स्पष्ट संदेश भी है कि भारत अब भविष्य के युद्धों के लिए तैयार हो रहा है।
यह CHESS प्रणाली हमें पारंपरिक हथियारों की सीमाओं से आगे निकलने का रास्ता दिखाती है — एक ऐसा रास्ता जो भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर, सशक्त और वैश्विक नेतृत्व के लिए तैयार करता है।
भविष्य में जब हम सीमाओं की रक्षा की बात करेंगे, तो शायद टैंक और मिसाइलों की जगह शांत, अदृश्य लेकिन घातक लेज़र बीम होगी — और भारत उसमें अग्रणी होगा।
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