Pingali Venkayya: तिरंगे का जनक जिसकी कहानी इतिहास ने भुला दी!
प्रस्तावना: एक झंडा, एक राष्ट्र, एक पहचान
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Toggleभारतीय तिरंगा झंडा आज केवल एक कपड़े का टुकड़ा नहीं है — यह एक राष्ट्र की आत्मा, उसकी स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति और असंख्य बलिदानों की स्मृति है। इस महान प्रतीक को स्वरूप देने वाले व्यक्ति पिंगली वेंकय्या (Pingali Venkayya) थे, जिनका योगदान इतिहास के पन्नों में अक्सर गुम हो जाता है। यह लेख उनके जीवन, संघर्ष और भारत के राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण में उनकी अद्वितीय भूमिका को समझने का एक प्रयास है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा: एक विलक्षण बालक की कहानी
जन्म और परिवारिक पृष्ठभूमि
जन्म: 2 अगस्त 1876
स्थान: भाटलपेनुमरु गांव, मछलीपट्टनम, आंध्र प्रदेश (तत्कालीन मद्रास प्रेसिडेंसी)
परिवार: एक साधारण तेलुगु ब्राह्मण परिवार
Pingali Venkayya बचपन से ही एक प्रतिभाशाली और जिज्ञासु स्वभाव के थे। उन्हें भाषाओं और विज्ञान में गहरी रुचि थी। बाल्यकाल से ही उन्होंने देशभक्ति के बीज अपने मन में बो दिए थे।
शिक्षा
प्राथमिक शिक्षा: मछलीपट्टनम में
आगे की पढ़ाई: मद्रास और कोलंबो (श्रीलंका)
विशेष ज्ञान: भूगोल, कृषि विज्ञान, खनिज विज्ञान और भाषाशास्त्र
एक बहुमुखी प्रतिभा: स्वतंत्रता सेनानी से विद्वान तक
भाषाओं के ज्ञाता
Pingali Venkayya को 5 से अधिक भाषाओं का ज्ञान था, जिनमें हिंदी, संस्कृत, अंग्रेज़ी, उर्दू और तेलुगु शामिल थीं।
खनिज विज्ञानी और कृषि वैज्ञानिक
Pingali Venkayya ने दक्षिण अफ्रीका में खनिजों पर शोध किया और एक सफल भूगोलवेत्ता के रूप में ख्याति प्राप्त की। उन्होंने भारत में गांधीजी के साथ खादी आंदोलन को भी समर्थन दिया और स्वदेशी वस्त्रों के प्रयोग को बढ़ावा दिया।
ब्रिटिश सेना में सेवा
Pingali Venkayya ने ब्रिटिश भारतीय सेना में सेवा दी और दक्षिण अफ्रीका के एंग्लो-बोअर युद्ध (1899-1902) में भाग लिया।
यहीं पर उन्होंने महात्मा गांधी से पहली बार भेंट की।
तिरंगे की अवधारणा: राष्ट्रध्वज की तलाश
राष्ट्रीय ध्वज की आवश्यकता क्यों?
1900 के दशक की शुरुआत में भारत में स्वतंत्रता की भावना तेज़ी से फैल रही थी, परंतु देश का कोई एक राष्ट्रीय ध्वज नहीं था, जो एकता और पहचान का प्रतीक बन सके।
Pingali Venkayya का संकल्प
उन्होंने 1916 में “A National Flag for India” नाम से एक पुस्तक लिखी।
इस पुस्तक में उन्होंने कई डिज़ाइनों की चर्चा की और एक स्थायी झंडे की आवश्यकता पर बल दिया।
1921: ऐतिहासिक क्षण — गांधी जी को तिरंगे का प्रस्ताव
जब Pingali Venkayya गांधीजी से मिले
वर्ष: 1921, स्थान: कांग्रेस अधिवेशन, विजयवाड़ा
Pingali Venkayya ने अपना डिज़ाइन गांधीजी के सामने प्रस्तुत किया।
उस झंडे में दो रंग थे:
लाल: हिन्दुओं का प्रतिनिधित्व
हरा: मुसलमानों का प्रतिनिधित्व
बीच में चरखा: स्वावलंबन का प्रतीक
गांधीजी की सहमति
गांधीजी को यह डिज़ाइन बेहद पसंद आया।
उन्होंने इसे भारत की स्वतंत्रता की भावना और सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक माना।
तिरंगे का विकास: रंगों और प्रतीकों का अर्थ
1931 का संशोधित डिज़ाइन
एक समिति बनी जिसने वेंकय्या के मूल डिज़ाइन में कुछ संशोधन किए:
गहरा केसरिया (Top): साहस और बलिदान का प्रतीक
सफेद (Middle): सच्चाई, शांति और पवित्रता
हरा (Bottom): समृद्धि और विकास
चरखा: गांधीजी के विचारों का प्रतिनिधित्व
1947: अंतिम रूप
22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने तिरंगे को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया।
चरखे की जगह अशोक चक्र को रखा गया, जो धर्म, न्याय और गति का प्रतीक है।
तिरंगे से जुड़ा संविधानिक महत्व
भारतीय ध्वज संहिता
राष्ट्रीय ध्वज के उपयोग और सम्मान से जुड़ी संहिता 2002 में घोषित की गई।
किसी भी अपमानजनक व्यवहार को कानूनी अपराध माना जाता है।
नियम:
ध्वज को ज़मीन पर नहीं गिराना चाहिए।
सूर्यास्त के बाद झंडा नहीं फहराया जाता (कुछ अपवादों को छोड़कर)।
तिरंगे के रंग और अनुपात निश्चित हैं (3:2 अनुपात)।
Pingali Venkayya का उपेक्षित योगदान
क्या उन्हें वह सम्मान मिला, जिसके वे हकदार थे?
दुर्भाग्यवश, पिंगली वेंकय्या को उनके जीवनकाल में बहुत अधिक सम्मान नहीं मिला।
वे गुमनामी में जीवन जीते रहे।
स्वतंत्र भारत में वे गरीबी और उपेक्षा के शिकार रहे।
उनका निधन 4 जुलाई 1963 को हुआ, बिना किसी सरकारी मान्यता या सम्मान के।
मरणोपरांत सम्मान
सरकार की ओर से
2009: भारत सरकार ने उनकी स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया।
2022: उन्हें मरणोपरांत ‘पद्म भूषण’ की सिफारिश की गई।
केंद्र सरकार ने उनके जीवन और योगदान को राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में शामिल किया।
मूर्तियाँ और संग्रहालय
आंध्र प्रदेश में उनकी मूर्तियाँ लगाई गईं।
राष्ट्रीय ध्वज संग्रहालयों में उन्हें स्थान दिया गया।
तिरंगे की प्रेरणा युवा पीढ़ी के लिए
एकता का प्रतीक
तिरंगा हमें यह सिखाता है कि हम कितने विविध हैं लेकिन फिर भी एक हैं।
संघर्ष की याद
हर बार जब तिरंगा लहराता है, वह हमें असंख्य स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों की याद दिलाता है।
Pingali Venkayya की प्रेरणा
उनका जीवन आज की पीढ़ी के लिए एक उदाहरण है कि एक व्यक्ति भी राष्ट्र निर्माण में कितनी अहम भूमिका निभा सकता है।
Pingali Venkayya के जीवन के अनछुए पहलू
स्वतंत्रता आंदोलन में गहरी भागीदारी
Pingali Venkayya का राष्ट्र के प्रति समर्पण केवल तिरंगे तक सीमित नहीं था। वे कांग्रेस पार्टी के सक्रिय सदस्य थे और उन्होंने अनेक आंदोलनों में हिस्सा लिया, जैसे:
असहयोग आंदोलन (1920)
स्वदेशी आंदोलन
खादी आंदोलन में सक्रिय प्रचारक
उन्होंने गांधीजी के विचारों को आत्मसात किया और जीवनभर स्वदेशी वस्त्रों और ग्राम स्वराज की वकालत करते रहे।
एक शिक्षक और वक्ता
वेंकय्या एक प्रशिक्षित शिक्षक और प्रभावशाली वक्ता थे।
उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज के महत्व को लेकर कई स्थानों पर भाषण दिए।
वे युवाओं को स्वतंत्रता, आत्मनिर्भरता और राष्ट्रप्रेम की प्रेरणा देने वाले थे।
तिरंगे का दस्तावेज़ी इतिहास
ऐतिहासिक रिकॉर्ड्स में दर्ज तथ्य
- कांग्रेस अधिवेशन 1921 के मिनट्स में वेंकय्या द्वारा प्रस्तुत डिज़ाइन का उल्लेख है।
- गांधीजी के लेख — विशेष रूप से “Young India” में वेंकय्या और तिरंगे का ज़िक्र मिलता है।
- बिपिन चंद्र, रॉमिला थापर जैसे इतिहासकारों ने भी तिरंगे के विकास में वेंकय्या के योगदान को स्वीकार किया है।
आधुनिक भारत में Pingali Venkayya की प्रासंगिकता
राष्ट्रीय चेतना का पुनर्जागरण
आज जब हम तिरंगा थामे देश के लिए गर्व महसूस करते हैं, तो यह जरूरी है कि हमें उस व्यक्ति की याद हो जिसने इस प्रतीक को गढ़ा।
Pingali Venkayya की विचारधारा आज भी प्रासंगिक है — सांप्रदायिक सौहार्द, स्वदेशी आत्मनिर्भरता और शिक्षा का महत्व।
स्कूल-कॉलेज में पढ़ाई जानी चाहिए उनकी गाथा
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज भी अधिकांश छात्र यह नहीं जानते कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज किसने बनाया। वेंकय्या की कहानी को:
NCERT और राज्य पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाना चाहिए
राष्ट्रीय पर्वों पर विशेष सम्मान के साथ प्रस्तुत किया जाना चाहिए
प्रेरणादायक कथन (Quotes)
“हर बार जब तिरंगा हवा में लहराता है, वेंकय्या की आत्मा उसमें मुस्कराती है।”
“जिसने एक रंगीन कपड़े को राष्ट्र की पहचान बना दिया, वो एक सच्चा राष्ट्र-शिल्पी था।”
दृश्यात्मक स्मृति: संग्रहालय और संस्थान
भारत में कई जगह वेंकय्या की स्मृति में निर्माण किए गए हैं:
- Pingali Venkayya स्मारक – भाटलपेनुमरु, आंध्र प्रदेश
- राष्ट्रीय ध्वज संग्रहालय – नई दिल्ली में स्थापित
- भारत सरकार द्वारा जारी डाक टिकट (2009)
- अमर जवान ज्योति पर विशेष श्रद्धांजलि कार्यक्रम
क्या हमें और करना चाहिए?
Pingali Venkayya को भारत रत्न क्यों नहीं?
देश के राष्ट्रीय प्रतीक के निर्माता को यदि कोई सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिलना चाहिए था, तो वह भारत रत्न ही है।
सामाजिक संगठनों और जागरूक नागरिकों को चाहिए कि वे इस दिशा में आवाज़ उठाएँ।

तिरंगे से संबंधित रोचक तथ्य
तथ्य विवरण
तिरंगे का अनुपात 3:2
केंद्र का चक्र अशोक चक्र, 24 तीलियाँ
चक्र का रंग नौसेना नीला (Navy Blue)
पहली बार फहराया गया 7 अगस्त 1906, पारसी बागान, कोलकाता (तब एक भिन्न डिज़ाइन था)
वर्तमान स्वरूप में अंगीकरण 22 जुलाई 1947
FAQs: Pingali Venkayya और तिरंगे से जुड़े सामान्य प्रश्न
1. Pingali Venkayya कौन थे?
उत्तर:
Pingali Venkayya एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद और बहुभाषाविद थे, जिन्हें भारतीय राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगे) की मूल अवधारणा प्रस्तुत करने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने 1921 में गांधीजी को तिरंगे का प्रारंभिक डिज़ाइन प्रस्तुत किया था।
2. Pingali Venkayya ने तिरंगा कब और कहाँ प्रस्तुत किया?
उत्तर:
Pingali Venkayya ने 1921 में विजयवाड़ा (आंध्र प्रदेश) में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में महात्मा गांधी को तिरंगे का डिज़ाइन प्रस्तुत किया था।
3. तिरंगे में सबसे पहले कौन-कौन से रंग थे?
उत्तर:
प्रारंभिक तिरंगे में दो रंग थे –
लाल (हिंदुओं का प्रतीक)
हरा (मुसलमानों का प्रतीक)
बीच में चरखा (स्वदेशी और आत्मनिर्भरता का प्रतीक) भी शामिल था।
4. वर्तमान तिरंगे का स्वरूप कब तय किया गया?
उत्तर:
भारत के राष्ट्रीय ध्वज का वर्तमान स्वरूप 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा द्वारा अनुमोदित किया गया था, जिसमें अशोक चक्र को केंद्र में रखा गया।
5. अशोक चक्र का क्या अर्थ है?
उत्तर:
अशोक चक्र, जो नीले रंग में होता है, 24 तीलियों वाला एक चक्र है जो धर्म, गति, न्याय और नैतिकता का प्रतीक है। यह सारनाथ के अशोक स्तंभ से लिया गया है।
6. Pingali Venkayya को कौन-कौन से पुरस्कार मिले?
उत्तर:
जीवनकाल में उन्हें कोई राष्ट्रीय पुरस्कार नहीं मिला।
2009 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया।
2022 में उनकी जन्म जयंती पर उन्हें मरणोपरांत सम्मानित करने की मांग बढ़ी।
7. क्या Pingali Venkayya को भारत रत्न मिला है?
उत्तर:
नहीं, अब तक Pingali Venkayya को भारत रत्न नहीं मिला है, हालांकि उनके योगदान को देखते हुए यह मांग लगातार उठ रही है।
8. क्या तिरंगे को किसी भी समय फहराया जा सकता है?
उत्तर:
संशोधित भारतीय ध्वज संहिता 2002 के अनुसार, अब कोई भी नागरिक अपने घर, संस्थान या कार्यालय में तिरंगा दिन-रात फहरा सकता है, बशर्ते वह झंडे का सम्मान सुनिश्चित करे।
9. तिरंगे के रंगों का क्या अर्थ है?
उत्तर:
केसरिया (ऊपर): साहस और बलिदान
सफेद (बीच में): शांति और सच्चाई
हरा (नीचे): समृद्धि और हरियाली
अशोक चक्र: धर्म और प्रगति
10. Pingali Venkayya की मृत्यु कब और कैसे हुई?
उत्तर:
Pingali Venkayya का निधन 4 जुलाई 1963 को हुआ। वे अपने जीवन के अंतिम वर्षों में उपेक्षा और आर्थिक तंगी में रहे। उन्हें वह सम्मान नहीं मिल पाया जिसके वे वास्तव में हकदार थे।
11. क्या तिरंगे का कोई संग्रहालय है?
उत्तर:
हाँ, भारत में कई जगह राष्ट्रीय ध्वज संग्रहालय स्थापित किए गए हैं, जहाँ तिरंगे के इतिहास, डिज़ाइन और निर्माण की जानकारी दी जाती है। प्रमुख संग्रहालय नई दिल्ली और विजयवाड़ा में हैं।
12. Pingali Venkayya का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर:
उनका जन्म 2 अगस्त 1876 को भाटलपेनुमरु गाँव, मछलीपट्टनम ज़िला, आंध्र प्रदेश में हुआ था।
13. क्या तिरंगे को धोया या इस्त्री किया जा सकता है?
उत्तर:
हाँ, यदि तिरंगा खादी या कपड़े से बना है, तो उसे उचित सावधानी से धोया और इस्त्री किया जा सकता है। प्लास्टिक के झंडों के उपयोग को अब प्रतिबंधित किया गया है।
14. क्या स्कूलों में Pingali Venkayya की जीवनी पढ़ाई जाती है?
उत्तर:
कुछ राज्य पाठ्यक्रमों में उनका उल्लेख किया गया है, लेकिन NCERT और राष्ट्रीय स्तर पर अभी भी उनकी जीवनी को व्यापक रूप से शामिल नहीं किया गया है।
15. तिरंगा बनाने का श्रेय केवल वेंकय्या को ही क्यों?
उत्तर:
क्योंकि उन्होंने सबसे पहले एक संविधानिक, सांप्रदायिक सौहार्द और स्वदेशी मूल्यों पर आधारित डिज़ाइन गांधीजी को 1921 में प्रस्तुत किया था, जो बाद में रूपांतरित होकर भारत का राष्ट्रीय ध्वज बना।
निष्कर्ष: Pingali Venkayya – एक भुला दिया गया नायक, जिसने राष्ट्र को पहचान दी
Pingali Venkayya का जीवन एक ऐसा अध्याय है, जिसे भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाना चाहिए। उन्होंने न तो प्रसिद्धि की चाह रखी, न ही सत्ता की लालसा – उनका एकमात्र उद्देश्य था भारत को उसकी एकजुट पहचान देना, जो एक झंडे के रूप में पूरे विश्व के सामने हमारा गौरव बन सके।
आज जब हम तिरंगे को सलामी देते हैं, उसे गर्व से अपने सीने से लगाते हैं, तो यह समझना ज़रूरी है कि उस प्रतीक के पीछे एक व्यक्ति का दृष्टिकोण, परिश्रम और राष्ट्रप्रेम छिपा है — और वह व्यक्ति हैं पिंगली वेंकय्या।
उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि:
एक सामान्य नागरिक भी असाधारण परिवर्तन ला सकता है।
राष्ट्रभक्ति केवल युद्ध के मैदान तक सीमित नहीं है, यह कला, शिक्षा और विचारों में भी बसती है।
हमें अपने इतिहास के उन गुमनाम नायकों को जानना और सम्मान देना चाहिए, जिनकी वजह से आज हम आज़ाद हवा में साँस ले पा रहे हैं।
अब समय आ गया है कि पिंगली वेंकय्या को वह स्थान दिया जाए, जिसके वे सच्चे हकदार हैं — हमारे पाठ्यक्रमों में, हमारे स्मारकों में और हमारे दिलों में।
जब-जब तिरंगा लहराए, तब-तब एक नाम हमें याद आना चाहिए —
“पिंगली वेंकय्या: तिरंगे का जनक, भारत का गौरव।”
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