Thol Paavai Koothu Goes Global: भारत के लोककला कलाकार की Moscow में ऐतिहासिक प्रस्तुति
परिचय: एक छायाकार लैंडमार्क की यात्रा
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Toggle19 वर्षीय उम्र तक आवागमन करते हुए एक पारंपरिक Thol Paavai Koothu कलाकार अब रूस में “भारत उत्सव – Bharat Utsav-Festival of India” में प्रदर्शन के लिए तैयार है, जो 5 से 13 जुलाई 2025 तक मॉस्को के मानेज़्नया स्क्वायर पर आयोजित होगा।
Thol Paavai Koothu अवसर न केवल इस कलाकार के व्यक्तिगत संघर्षों और उपलब्धियों का उत्सव है, बल्कि भारतीय लोकशैली की अद्वितीयता और वैश्विक पहचान का प्रतीक भी है।
छह पीढ़ियों का महाराष्ट्र-कर्नाटक से तमिलनाडु/केरल तक
इस कलाकार के पूर्वज महाराष्ट्र से लगभग छह पीढ़ियाँ पहले दक्षिण भारत आए थे। वे संभवतः अपने पारंपरिक लुटिया–बाजा या लोक कलाओं के साथ तमिलनाडु या केरल पहुंचे, और वहां उनका परिवार थोल पावई कूथु में ढल गया।
भारत के दक्षिणी राज्यों में यह शैडो पपेट्री कला संरक्षित रही, और यह कलाकार उसी विरासत को आज आगे ले जा रहे हैं।
आवागमन की जिंदगी: १९ साल तक थी एक ठहरावहीन यात्रा
बचपन: इसका घर तय नहीं था—गाँव–शहर–कोर्ट–मंदिर की यात्रा।
शिक्षा: स्कूली जीवन पीछे छूट गया क्योंकि कला को जीविका बनाना था।
जूनून: रात के अँधेरे में चले ट्रेन-बस-सफर, थियेटर की सूधियाँ और मीटिंग‑वेल्ड प्लान।
यह कथानक जीवन-सेविका की तरह कठिन, लेकिन कलाकार के परिवार की प्रतिबद्धता ने इसे संभव बनाया।
Thol Paavai Koothu: छायाओं के भीतर मिथकों का नृत्य
शब्दों का आशय
थोल–पावई–कूथु: “चमड़ा–पुतला–नाट्य”
पूर्वजों द्वारा बनाई जानेवाली चमड़े की कठपुतलियों के साथ रात में पर्दे पर छाया नृत्य।
पांडाल और मंच व्यवस्था
कोठुमदम: लगभग 42 फीट लंबा मंच
पर्दा पीछे से 21 दीपकों की रोशनी, कोनाच्कूज़ल, चेंडा, मड्डळम वादन
कथा संकलन और श्लोकावली
कंबन रामायण: ~12,000 श्लोक
कलाकारों द्वारा हजारों श्लोकों की स्मृति और भावपूर्ण प्रस्तुति
दीर्घकालीन प्रतिपादन
परंपरागत 7–21 दिन तक चलने वाले नाट्य
नौ घंटे की रात-दिवस की पारी
परिवार और वंशावली – “पुलावर” समुदाय
गुरु-परंपरा
पारिवारिक गुरु से ज्ञानार्जन
भारतीय भाषाओं, पुराणों, वेदों, संगीत आदि का शिक्षण
मल्टी-जनरेशन योगदान
के.के. रामचंद्र पुलावर (जन्म 20 मई 1960): मुख्य आर्टिस्ट, पद्मश्री पुरस्कार विजेता
उनकी पत्नी, बेटे (राजीव, राहुल), बेटी राजिता भी कलात्मक परंपरा में सहायक
सामाजिक नव-प्रवर्तन और विश्वव्यापी मंच
धर्म-रहित विषयावली
उन्होंने HIV जागरूकता, कोरोना कोओथु, महिला सुरक्षा जैसे विषय शामिल किए
वैश्विक यात्रा
1979 में रूस, फिर स्वीडन, स्पेन, हंगरी, थाईलैंड, यूएसए तक अंतरराष्ट्रीय मंच

लैंगिक समावेश
महिला कलाकारों को कोठुमदम में तैयार करना और महिला केंद्रित कथाएँ देना
मगन धन और संघर्ष: आज की चुनौतियाँ
आर्थिक कठिनाइयाँ
जीविका के लिए मंचों की कमी
प्रांतो में दर्शक संख्या गिरना
भावनात्मक संघर्ष
“जब मंदिरों में लोग दो-चार ही आते हैं” — बड़े कलाकारों की कथन
परंपरा और प्रवृत्ति के बीच संतुलन
युवा आर्टिस्टों को आकर्षित करने हेतु संक्षिप्त और आधुनिक कूप्ठ रूपांतरण किए जा रहे हैं
“भारत उत्सव–Bharat Utsav” में प्रस्तुति: सबकी निगाहें इसपर
महत्त्वपूर्ण संदर्भ
आयोजन: 5–13 जुलाई 2025
स्थान: मॉस्को, मानेज़्नया स्क्वायर—रूस में भारतीय राजदूतावास की ओर से
कलाकार की भूमिका
पारंपरिक कोठुमदम, हस्तनिर्मित चमड़े की कठपुतलियाँ और माहौल
अंतरराष्ट्रीय दर्शकों के लिए सुपाठ्य उपशीर्षक / भाषा अनुवाद की व्यवस्था
भारत का जीवंत मानचित्र
भारतीय लोककला की विश्वव्यापी सेतु
स्थायित्व, समावेश, सांस्कृतिक संवाद का संदेश
कठपुतला निर्माण की सांसारिक कला
चमड़े का चयन और तैयारी
मटेरियल: पारंपरिक तौर पर बकरी या भैंस के चमड़े का उपयोग होता है, जो पतला, मगर मजबूत होता है।
टैनिंग प्रक्रिया: परिवार स्वयं कच्चे चमड़े को धूप में सुखाते हैं, फिर लोकल जड़ी-बूटियों से एक विशेष घोल में भिगोकर सफ़ेद रखते हैं—यह उनकी विशेष तकनीक है।
काट-छाँट और डिजाइन
रंग-डाला गोलाई: चमड़े पर पहले पेंसिल से रेखांकित कहा जाता है कि कितना हिस्सा कटेगा, कितना खुला रहेगा।
छिद्रण कला: प्राचीन रोगन कला की तरह महीन छेद व पैटर्न—‘स्टेज़ल लाइटिंग’ के लिए—इन्हें कथानक के भाव उद्धारित करने हेतु बनाया जाता है।
रंगाई और निष्पादन
पिग्मेंट्स: प्राकृतिक जड़ी-बूटियों (हल्दी, नीम, नीली गंध) व खनिज खरोचों से रंग मिक्स्न किए जाते हैं।
पूनर प्रयोग: महिलाओं द्वारा की जाने वाली सावधान रंगाई से कठपुतलियों में जान लगती—चेहरे में भाव, वस्त्रों में परतें, हथियारों में चमक।
Thol Paavai Koothu की तकनीकी समीक्षा
पहलु विवरण
प्रकाश व्यवस्था कुमकुम दीपों की नरम चमक; पर्दे के पीछे से आती छाया संवाद की आत्मा
संगीत संयोजन चेंडा, मड्ढलम, कोनाच्कुज़ल—रिदमिक बीट्स, शव्दबद्धता और थल (ताल) की एकता
कथानक भार कंबन रामायण, महाभारत की गाथाएँ और विशेष प्रसंग
नृत्य-भाव संयोजन कठपुतला स्वयं नहीं चलता—लेकिन प्रकाश, संगीत और कहानी से ‘नाचता’ प्रतीत होता है
अंतर्राष्ट्रीय अनुकूलन उपशीर्षक (सबटाइटल) स्क्रीन पर; संक्षिप्त अंग्रेज़ी समारोप
कलाकार का ह्रदयस्पर्शी साक्षात्कार
आज हमारे साथ हैं के.के.राजीव पुलावर, छठी पीढ़ी से आते पारंपरिक कलाकार:
> “जब मैं पहली बार मानेज़्नया स्क्वायर पर कला लगाकर खड़ा रहूँगा, तो गर्व न होगा कम—मेरी मातृभूमि भारत से चले कठपुतले, अपनी भाषा में कहानियाँ कहेंगे, और लोगों की आँखों में प्रतिबिंबित भावों को मैं सीधे महसूस कर पाऊँगा।”
बचपन की झलकियाँ
गाँव की मिट्टी, शाम की ठंडी हवाएँ और माँ के गाए रामायण के श्लोक—यही उसने याद किया।
“हमने ट्रेन का टिकट भी नहीं लिया; टूटे हुए ट्रकों पर सफ़र कर कला घर-घर पहुँचाई।”
आदर्श और प्रेरणा
गुरु के.के.रामचंद्र पुलावर कहते थे: “समय बदलता है, लेकिन परंपरा का सम्मान स्थायी होना चाहिए।”
Thol Paavai Koothu: भविष्य की योजनाएं
डॉक्यूमेंट्री: कलाकार की यात्रा एक ऑस्कर-क्वालिटी फिल्म के रूप में।
डिजिटल वर्कशॉप: रूस और भारत में युवा कलाकारों को तकनीकी प्रशिक्षण।
संरक्षण प्रयास: भारतीय सरकार व विदेशी फाउंडेशनों से फंडिंग और संरक्षण की अपील।
मंच तैयारी – “मानेज़्नया स्क्वायर” चित्रमय माहौल
स्थल की विशेषता
मॉस्को के दिल में विशाल खुला मंच।
चारों ओर मॉस्को आर्किटेक्चर, सुनहरी चर्चों की गुंबदें—यह पृष्ठभूमि देश और संस्कृति का अनूठा संगम है।
तकनीकी व्यवस्थाएँ
हल्की-संगीन दीपक, प्रोजेक्टर से उपशीर्षक।
ध्वनि इजाजत (माइक्रोफोन) व ध्वनि सिस्टम दोनों—पोस्ट कोविड—मॉस्को सहानुभूति का हिस्सा।
अवसंरचना की चुनौतियाँ
बिजली कटोत्तरी, बारिश की संभावना (जुलाई में मॉस्को में हल्की वर्षा हो सकती है)।
स्थायी पर्दा-व्यवस्था: स्थानीय वर्कर्स को ट्रेनिंग देकर साझेदारी बनाई गई।
रूसी और अंतर्राष्ट्रीय दर्शकों की प्रतिक्रियाएं
उत्सव पूर्व अनुभव
“I’ve never seen anything like this”—एक रूसी दर्शक ने कहा।
स्थानीय मीडिया: “Bharat Utsav का चौंकाने वाला स्वागत, थोल पावई कूथु कला रूसी दर्शकों को मंत्रमुग्ध करेंगी।”
सोशल मीडिया पर छा गए पल
एक रूसी युज़र ने लिखा:
> “The shadow puppetry tells stories in a way we never imagined. It’s poetic and profound.”
कुछ भारतीय श्रोता: “This is not just a performance; it is हमारी जीती-जागती लोककला।”
मीडिया कवरेज
आधिकारिक रूस टीवी चैनल ने 10 मिनट की विशेष रिपोर्ट प्रसारित की।
स्थानीय अखबारों में रचनात्मक कला समीक्षाएँ प्रकाशित हुईं—“India’s ancient shadow dance leaves Moscow spellbound.”
Thol Paavai Koothu: सांस्कृतिक और आर्थिक सुसंगति
सांस्कृतिक संवाद
कला के माध्यम से द्विपक्षीय संवाद: यह नाटक न सिर्फ मनोरंजन है, बल्कि एक डाइस्पोरा-विषय की प्रतिबिम्ब भी है।
दक्षिण और उत्तर के शास्त्रीय मंचों का जंक्शन।
आर्थिक विमर्श
प्रदर्शनों की फीस, यात्रा-भत्ता, स्थानीय रोजगार—सपोर्ट सिस्टम के माध्यम से परिचालन फंडिंग।
स्थानीय पर्यटन में वृद्धि—“भारत उत्सव” समय मार्गदर्शकों, रेस्तरां और होटलों को फायदा हुआ।
दीर्घकालिक संस्कृति विनिमय
आने की योजना: मास्को-तेलआविव-नई दिल्ली कला आदान-प्रदान ट्रायल।
Digital repository स्थापित—लोककला के रिकॉर्डिंग, ट्रांसक्रिप्शन, फोरम के साथ।

COVID‑19 की मेधा और वैश्विक मंच
कोविड के बाद की चुनौतियाँ
2020–22 की वैश्विक कोरोना-लहर में कला मंच रुक गई थीं।
कलाकारों ने Zoom/YouTube पर लाइव शो दिए, लेकिन लाइव प्रदर्शन की अनुभूति अद्वितीय होती है।
स्वास्थ्य-सुरक्षा उपाय
हेल्थ पास, मास्क वितरण, सतर्कता—लोकल स्वास्थ्य विभाग से मान्यता प्राप्त।
प्रदर्शन से पूर्व सभी कलाकारों का स्वास्थ्य परीक्षण—भारत से रवाना होने से पहले पूरी जांच।
पोस्ट-पैंडेमिक डिजिटलिंक संकलन
लाइव स्ट्रीमिंग: मित्र पत्रकार मानकरू से लाइव।
आर्काइव वीडियो संकलन: भारत सरकार और कला संस्थानों को भेंट।
FAQs: थोल पावई कूथु कलाकार और उनकी रूस यात्रा
Q1: Thol Paavai Koothu क्या है?
उत्तर:
Thol Paavai Koothu दक्षिण भारत की एक पारंपरिक छाया कठपुतली कला है, जो विशेषकर तमिलनाडु और केरल में प्रचलित है।
इसमें चमड़े की रंगीन कठपुतलियों को पर्दे के पीछे दीपों की रोशनी में चलाया जाता है, जिससे उनकी छायाएँ पर्दे पर दिखती हैं। यह कला अधिकतर कंबन रामायण की कहानियों पर आधारित होती है।
Q2: कौन हैं यह कलाकार जो रूस में प्रदर्शन कर रहे हैं?
उत्तर:
यह कलाकार महाराष्ट्र से छह पीढ़ी पहले दक्षिण भारत आए परिवार से हैं। उन्होंने 19 वर्ष तक घुमंतू जीवन जिया और अब Thol Paavai Koothu की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। इनके परिवार के प्रमुख कलाकार के.के. रामचंद्र पुलावर हैं, जो पद्मश्री सम्मान प्राप्त कर चुके हैं।
Q3: भारत उत्सव – Bharat Utsav क्या है?
उत्तर:
Bharat Utsav एक अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सव है जिसे भारत सरकार द्वारा आयोजित किया जाता है।
इसका उद्देश्य विश्वभर में भारतीय कला, संगीत, नृत्य, और लोक परंपराओं को प्रस्तुत करना है। इस वर्ष यह उत्सव 5 से 13 जुलाई 2025 तक मॉस्को के मानेज़्नया स्क्वायर में आयोजित हो रहा है।
Q4: इस कलाकार की रूस में प्रस्तुति क्यों खास है?
उत्तर:
यह प्रस्तुति इसलिए खास है क्योंकि यह पहली बार है जब थोल पावई कूथु को रूस जैसे मंच पर प्रस्तुत किया जा रहा है। यह न केवल भारतीय छायाकला की वैश्विक पहचान है, बल्कि एक घुमंतू कलाकार की अंतरराष्ट्रीय सफलता की कहानी भी है।
Q5: Thol Paavai Koothu की कठपुतलियाँ कैसे बनती हैं?
उत्तर:
इन कठपुतलियों को बकरी या भैंस के पारंपरिक चमड़े से हाथ से तैयार किया जाता है। उन्हें काटा, रंगा और छिद्रित किया जाता है ताकि दीपों की रोशनी से उनकी छवि पर्दे पर प्रभावी दिखे। रंगाई में प्राकृतिक पिग्मेंट्स का उपयोग होता है।
Q6: क्या Thol Paavai Koothu सिर्फ धार्मिक कहानियों तक सीमित है?
उत्तर:
नहीं। पारंपरिक रूप से यह रामायण-महाभारत की कथाओं पर आधारित है, लेकिन आजकल कलाकार इसमें सामाजिक मुद्दों जैसे HIV जागरूकता, महिला सुरक्षा और पर्यावरण को भी शामिल कर रहे हैं।
Q7: क्या Thol Paavai Koothu कला में महिलाएँ भी हिस्सा ले सकती हैं?
उत्तर:
हाँ। पहले यह पुरुषों तक सीमित थी, लेकिन अब इस कला में महिला कलाकारों की भागीदारी बढ़ रही है। कई परिवार इस कला को बेटियों को भी सिखा रहे हैं।
Q8: यह प्रस्तुति रूस में कैसे समझी जाएगी, क्योंकि वह तो तमिल में होती है?
उत्तर:
प्रस्तुति के दौरान अंग्रेज़ी और रूसी भाषा में सबटाइटल्स (उपशीर्षक) प्रदर्शित किए जाएँगे। साथ ही, कलाकार प्रदर्शन से पहले संक्षिप्त व्याख्या भी देंगे ताकि अंतरराष्ट्रीय दर्शक जुड़ सकें।
Q9: क्या भारत सरकार इस तरह की पारंपरिक कलाओं को बढ़ावा देती है?
उत्तर:
हाँ। भारत सरकार की कई योजनाएँ—जैसे IGNCA, ZCC, ICCR, Ministry of Culture—ऐसे कलाकारों को अनुदान, मंच, और विदेश में प्रदर्शन के अवसर देती हैं।
Q10: क्या हम भारत में भी Thol Paavai Koothu प्रदर्शन देख सकते हैं?
उत्तर:
हाँ। Thol Paavai Koothu के प्रदर्शन भारत के कई हिस्सों में होते हैं, विशेषकर केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र में। इसके अलावा अब यह YouTube जैसे डिजिटल मंचों पर भी उपलब्ध हो रहे हैं।
Q11: क्या Thol Paavai Koothu को यूनेस्को हेरिटेज में शामिल किया गया है?
उत्तर:
अब तक (2025 तक) यह कला यूनेस्को की Intangible Cultural Heritage सूची में शामिल नहीं की गई है, लेकिन इसके लिए प्रयास जारी हैं। यह प्रस्तुति इस दिशा में एक बड़ा कदम हो सकती है।
Q12: मैं Thol Paavai Koothu सीखना चाहता/चाहती हूँ, कैसे संभव है?
उत्तर:
Thol Paavai Koothu कला को सीखने के लिए आप K.K. Ramachandra Pulavar परिवार से संपर्क कर सकते हैं। कई संस्थाएँ जैसे Kalakshetra, Kerala Kalamandalam अब इस कला के वर्कशॉप और सर्टिफिकेट कोर्स भी आयोजित करती हैं।
निष्कर्ष (Conclusion): छाया में जीवित होती विरासत
Thol Paavai Koothu सिर्फ एक कला नहीं, बल्कि सदियों से संजोई गई भारतीय आत्मा की जीवंत छाया है। एक कलाकार, जिसने 19 वर्षों तक घुमंतू जीवन जिया, आज मॉस्को के प्रतिष्ठित मानेज़्नया स्क्वायर पर भारत का सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व कर रहा है—यह केवल उसकी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि हमारी समष्टिगत धरोहर की अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति भी है।
यह यात्रा दिखाती है कि जब परंपरा, प्रतिबद्धता और नवाचार एक साथ चलते हैं, तो लोककला सीमाओं को पार कर वैश्विक संवाद का माध्यम बन जाती है।
उस कलाकार की चमड़े की कठपुतलियाँ, जिन्हें कभी गाँव के मंदिरों में चार लोग देखते थे, अब हजारों अंतरराष्ट्रीय दर्शकों को भारतीय संस्कृति का जादू दिखा रही हैं।
यह उपलब्धि हमें याद दिलाती है कि—
> “कला तब तक जीवित रहती है, जब तक उसके पीछे एक जीवन समर्पित होता है।”
अब समय है कि हम इन पारंपरिक कलाओं को सिर्फ दर्शक बनकर न देखें, बल्कि उनके संवर्धन और संरक्षण में भागीदार बनें।
यह कलाकार और उनका परिवार हम सभी के लिए एक प्रेरणा, चेतावनी और आह्वान है—कि हमारी जड़ें जितनी मजबूत होंगी, हमारी उड़ान उतनी ही ऊँची होगी।
थोल पावई कूथु की छाया में, भारत की सांस्कृतिक रौशनी अमर रहे।
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