अंबुबाची मेला: एक ऐसा पर्व जो मासिक धर्म को अपवित्र नहीं, शक्ति मानता है!
परिचय
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!अंबुबाची मेला, जिसे पूर्व का महाकुंभ भी कहा जाता है, असम के गुवाहाटी में स्थित कामाख्या देवी मंदिर में प्रतिवर्ष जून में आयोजित एक अत्यंत अनोखा और आध्यात्मिक महोत्सव है। अंबुबाची मेला देवी कामाख्या के वार्षिक मासिक धर्म चक्र का आयोजन है, जिस दौरान मंदिर के गर्भगृह के द्वार तीन दिनों के लिए बंद हो जाते हैं और देवी ‘विश्राम’ करती हैं । अंबुबाची मेला में स्त्रीत्व, उर्वरता, प्रकृति के चक्र और तंत्र साधना के अनूठे समागम होते हैं।

अंबुबाची मेले का इतिहास: देवी सती, शक्ति और कामाख्या की रहस्यमयी गाथा
1. पौराणिक कथा की शुरुआत – देवी सती और शिव
अंबुबाची मेला का इतिहास सीधे हिन्दू धर्म की गूढ़ और गहन पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है।
कथा अनुसार:
राजा दक्ष ने अपनी पुत्री सती का विवाह भगवान शिव से किया था।
एक दिन राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया और सभी देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन शिव को आमंत्रित नहीं किया।
सती इस अपमान से व्यथित हो गईं और बिना निमंत्रण के यज्ञ में पहुँचीं। वहाँ उन्हें और उनके पति शिव को अपमानित किया गया।
क्रोधित और दुखी होकर, सती ने वहीं यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।
2. शिव का तांडव और सती के अंगों का बिखराव
सती की मृत्यु के बाद शिव शोक में डूब गए और उन्होंने सती के मृत शरीर को कंधे पर उठाकर पूरे ब्रह्मांड में तांडव करना शुरू कर दिया।
सृष्टि की रक्षा हेतु, भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 टुकड़ों में विभाजित कर दिया।
जहाँ‑जहाँ ये अंग गिरे, वहाँ‑वहाँ शक्तिपीठों की स्थापना हुई।
3. कामाख्या शक्तिपीठ की उत्पत्ति
कामरूप (वर्तमान असम, गुवाहाटी) में देवी सती का ‘योनि अंग’ गिरा था।
इस कारण इस स्थान को ‘कामाख्या’ कहा गया — ‘काम’ का अर्थ है इच्छा और ‘अख्या’ का अर्थ है स्थान।
यह स्थान सृजन, शक्ति, स्त्रीत्व और उर्वरता का प्रतिनिधित्व करता है।
4. अंबुबाची की उत्पत्ति — मासिक धर्म की देवी
इस स्थल पर प्राकृतिक रूप से एक चट्टान है जिसे योनि के आकार में पूजा जाता है।
एक साल में एक बार, जून के महीने में, यह चट्टान लाल रंग के जल से भीग जाती है।
मान्यता है कि यह देवी कामाख्या के मासिक धर्म (रजस्वला होने) का प्रतीक है।
इसी समय मंदिर को तीन दिनों के लिए बंद कर दिया जाता है — इसे “अंबुबाची निरबृत्ति” कहते हैं।
5. शब्द की व्युत्पत्ति
“अंबुबाची” = “अंबु” (जल) + “बाची” (प्रवाह या संचार)।
यह दर्शाता है कि पृथ्वी पर जल और जीवन के स्रोत का संचरण आरंभ हो रहा है।
6. तांत्रिक परंपरा और शक्ति साधना का केंद्र
कामाख्या मंदिर सिर्फ एक पारंपरिक हिन्दू मंदिर नहीं, बल्कि यह तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र भी है।
यह स्थान अघोरी, कपालिक, वाममार्गी तांत्रिकों के लिए एक पवित्र तीर्थस्थल है।
7. ऐतिहासिक साक्ष्य और मंदिर का निर्माण
8वीं शताब्दी में पाल वंश के राजा धर्मपाल द्वारा इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया था।
अहोम राजाओं ने भी इस क्षेत्र में कामाख्या को शक्तिशाली धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित किया।
मंदिर का वर्तमान स्वरूप 17वीं शताब्दी के आसपास का है, जो नागर शैली में बना हुआ है।
8. कामाख्या मंदिर की वास्तुकला
मंदिर की आकृति में एक गर्भगृह है जहाँ प्राकृतिक योनि चट्टान स्थित है।
इसके ऊपर गुंबदनुमा ढांचा है जिसे ‘बंगीय शैली’ कहा जाता है।
पूरे परिसर में कई छोटे-छोटे मंदिर हैं, जो दस महाविद्याओं को समर्पित हैं (जैसे काली, तारा, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुरसुंदरी आदि)।
ऐतिहासिक व पौराणिक संदर्भ
कामाख्या मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहाँ देवी सती का योनि‑अंग गिरा था ।
इस स्थान की स्थापना शक्ति की देवी की पूजा के लिए हुई थी। देवी कामाख्या द्वार योनि‑आकार की चट्टान (योनिमुद्रा) और उस पर बहने वाले प्राकृतिक जल से पूजी जाती हैं ।
हिन्दू पुराणों में देवी सती का त्याग और शिव‑विष्णु की अंतरक्रिया का वर्णन आता है, जो कामाख्या मंदिर की पौराणिक महत्ता को निरूपित करता है।
अंबुबाची मेला का महत्व और आध्यात्मिक पहलू
अंबुबाची मेला देवी के मासिक धर्म को पवित्रता और ऊर्जा का प्रतीक बताता है, न कि कलंक या अपवित्रता ।
स्त्री और प्रकृति के जैविक चक्र का उल्लेख इसमें विशेष रूप से होता है — जैसे धरती की उर्वरता और मासिक धर्म की समान गति ।
तंत्रवाद और शक्ति पूजा भी इसका अभिन्न अंग हैं, जहाँ साधु‑तांत्रिक विशेष साधनाओं के लिए इकट्ठा होते हैं ।
अंबुबाची मेला के दिन और कार्यक्रम
दिन कार्यक्रम विवरण
अंबुबाची प्रारंभ (प्रवृत्ति) इस वर्ष 21/22 जून को कामाख्या मंदिर का गर्भगृह (गर्भगृह का मुख्य द्वार) बंद हो जाता है ।
तीन दिवसीय बंदता मंदिर तीन दिनों तक बंद रहता है (22–25 जून) और इस दौरान देवी रजस्वला मानी जाती हैं ।
विश्राम काल इस दौरान पूजा और खेती‑बाड़ी जैसे शुभ कार्य वर्जित होते हैं। मंदिर परिसर में सन्नाटा एवं साधु‑तांत्रिकों का ध्यान साधना में लीन होता है ।
निरबृत्ति और पुनः उद्घाटन चौथे दिन (26 जून की सुबह) देवी के स्नान और विशेष पूजा के साथ गर्भगृह का पुनः उद्घाटन होता है ।
प्रसाद वितरण भक्तों को ‘अंगोदक’ (गर्भगृह का जल) और ‘अंगवस्त्र’ (लाल वस्त्र) वितरित किए जाते हैं ।
तंत्र साधना और साधुओं की भूमिका
तांत्रिक साधु, अघोरा, काड़ेवाले बाबास, बाउल संगीतकार आदि की उपस्थिति अंबुबाची मेला का केंद्र हिस्सा होती है ।
साधु‑तांत्रिक तीन दिन समाधिपूर्वक साधना में लीन रहते हैं और योगात्मक प्रदर्शन (जैसे लंबी साधना, पिट में सिर गाड़ना) करते हैं।
भक्तों व श्रद्धालुओं का आगमन
लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से आते हैं: असम, बंगाल, बिहार, यूपी, झारखंड सहित नेपाल और बांग्लादेश से भी ।
इस अवधि में गुवाहाटी की सड़कों, रेलवे स्टेशनों पर चहल-पहल रहती है। असम सरकार विशेष व्यवस्थाएँ करती है, जैसे अतिरिक्त ट्रेनों का परिचालन, मेडिकल कैंप, ट्रैफिक नियम आदि ।
सुरक्षा एवं प्रशासन व्यवस्था
2025 में नगर पुलिस, SDRF, यातायात पुलिस ने विशेष व्यवस्था की:
घने भीड़ व लैंडस्लाइड क्षेत्र पर निगरानी
नेशनल हाइवे पर ऑटोमेटेड ट्रैफिक मार्ग निर्देशित
गर्भगृह 22 जून की शाम से 26 जून की सुबह तक बंद रखा गया ।
कृषि और पर्यावरणीय दृष्टिकोण
अंबुबाची मेला सीज़न में खेतों में बुआई और मानसून की तैयारी स्थगित रहती है, जिससे प्रकृति को एक तरह से “आराम” मिलता है ।
यह स्थानीय कृषि समुदाय की सांस्कृतिक मान्यताओं से जुड़ा है, जो क्लाइमेट साइंस से मिलती-जुलती भावना रखता है ।
सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
तीर्थयात्राओं से स्थानीय अर्थव्यवस्था में मजबूती आती है: होटल, रियायती ढाबा, शॉपिंग एवं सेवाओं की मांग बढ़ती है ।
अंबुबाची मेला श्रम, रोजगार और सांस्कृतिक उत्सवों को प्रोत्साहित करता है।
स्त्री सशक्तिकरण और समाजिक संदेश
मासिक धर्म को कलंकित करने के स्थान पर इसका आयोजन स्त्री शक्ति और प्रकृति को सम्मानित करता है ।
यह सामाजिक रूप से महिलाओं के प्राकृतिक चक्र को सम्मानित दृष्टि प्रदान करता है, जो वैश्विक विमर्श के अनुकूल है।
यात्रा गाइड एवं उपयोगी सुझाव
तिथि एवं समय: 22–26 जून 2025;
प्रवृत्ति: 22 जून दोपहर तक (गर्भगृह बंद)
निरबृत्ति: 22–25 जून
निरबृत्ति: 26 जून सुबह गर्भगृह पुनः खुला ।
यातायात व्यवस्था:
मंदिर पहुँचने के लिए 5–6 बजे तक वाहन अनुमति; फिर पैदल मार्ग प्रोत्साहित ।
भीड़ प्रबंधन, विशेष मार्ग, SDRF तैनाती आदि निर्धारित हैं ।
स्वास्थ्य एवं सुरक्षा:
अंबुबाची मेला की भीड़ में उम्रदराज व बच्चे अधिक समय न रहे।
साधु‑तांत्रिकों की साधना क्षेत्र में प्रवेश करते समय सावधान रहें।
व्यवस्था:
सरकारी बैंक, अवकाश, विशेष ट्रेन उपलब्ध ।
स्थानीय होटलों एवं ढाबों में आरक्षण पूर्व करें।
शिष्टाचार:
गर्भगृह बंद रहने के दौरान मंदिर में शांत रहें; पूजा‑विधान वर्जित हैं।
दूसरे लोग तंत्र साधना करते हैं, उनकी श्रद्धा का सम्मान करें।
तांत्रिक साधना: शक्ति उपासना का रहस्यमयी संसार
कामाख्या – तंत्र का सबसे बड़ा सिद्धपीठ
कामाख्या मंदिर को भारत का तांत्रिक राजधानी भी कहा जाता है।
यहाँ दस महाविद्याओं की पूजा होती है – काली, तारा, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला और त्रिपुरसुंदरी।
अंबुबाची मेला के दौरान तंत्र साधकों के लिए यह स्थान सर्वोच्च ऊर्जा केंद्र बन जाता है।
कौन होते हैं ये साधक?
अघोरी, कपाली, नाथ योगी, वाममार्गी तांत्रिक, बाउल गायक आदि अंबुबाची में भाग लेते हैं।
वे जंगलों, पहाड़ों या मंदिर परिसर में ध्यान साधना, मंत्र-जप और यज्ञ करते हैं।
साधना की विशेषताएँ
मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश निषेध होने पर भी साधु मंदिर के बाहर ही शक्ति का आह्वान करते हैं।
कुछ साधक अपने शरीर को तप में झोंक देते हैं:
जल व वायु पर निर्भर जीवन,
कुएं में लटकना,
कब्रिस्तान साधना,
तांत्रिक मुद्रा में समाधि आदि।

सुरक्षा और प्रशासन की व्यवस्थाएँ
राज्य सरकार की तैयारी
हर साल असम सरकार इस मेले के लिए व्यापक सुरक्षा, स्वच्छता और स्वास्थ्य की योजना बनाती है:
1000+ पुलिस बल की तैनाती
NDRF और SDRF के विशेष दल
24×7 हेल्थ बूथ और मेडिकल कैंप
पेयजल, भोजन और रैन बसेरे का इंतज़ाम
यातायात और भीड़ प्रबंधन
गुवाहाटी शहर में विशेष ट्रैफिक डायवर्जन प्लान लागू किया जाता है।
मंदिर तक पहुँचने के लिए पैदल मार्ग और बैरिकेडिंग की जाती है।
तीर्थयात्रियों की सुविधा
स्पेशल ट्रेनें, बसें और सरकारी हेल्पलाइन नंबर जारी किए जाते हैं।
स्थानिक गाइड, वॉलंटियर और भाषा अनुवादक की भी मदद मिलती है।
पर्यावरणीय दृष्टिकोण
“मां पृथ्वी भी रजस्वला होती है” – प्राकृतिक चक्र का सम्मान
अंबुबाची का सीधा संबंध पृथ्वी की उर्वरता और मौन चक्र से भी है।
अंबुबाची मेला के दौरान खेती और जुताई पर भी रोक लगाई जाती है।
यह परंपरा एक तरह से प्रकृति को विश्राम और पुनर्जनन का अवसर देती है।
स्त्री सशक्तिकरण और सामाजिक संदेश
“रजस्वला देवी” – मासिक धर्म का सम्मान
समाज में जहाँ मासिक धर्म को अपवित्र माना जाता है, वहीं कामाख्या में इसे देवीत्व का प्रतीक मानकर पूजा की जाती है।
यह पूरे विश्व में एक अनूठा उदाहरण है जो बताता है कि मासिक धर्म कोई शर्म नहीं, शक्ति है।
महिलाओं के अधिकार और जागरूकता
अंबुबाची मेला “पीरियड्स पर चुप्पी तोड़ो” जैसे अभियानों का सांस्कृतिक समर्थन करता है।
कई NGO, महिला संगठन, शिक्षण संस्थाएँ इस समय कार्यशालाएँ और जनजागरूकता अभियान भी चलाते हैं।
आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव
स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा
होटल, टैक्सी, हस्तशिल्प, लोक संगीत, स्ट्रीट फूड जैसी सेवाओं में बूम आता है।
हजारों स्थानीय लोगों को रोजगार और आमदनी मिलती है।
सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ
अंबुबाची मेला के दौरान लोकगीत, बाउल संगीत, नृत्य, तांत्रिक शास्त्र का पाठ, आदि कार्यक्रम होते हैं।
यह पूरे मेले को एक जीवंत सांस्कृतिक मंच बना देता है।
तीर्थयात्रियों और यात्रियों के लिए सुझाव
यात्रा पहलू सुझाव
मौसम जून में भारी वर्षा हो सकती है, छाता और रेनकोट साथ रखें।
भोजन प्रसाद, हल्का भोजन और शुद्ध जल का सेवन करें।
स्वास्थ्य बीमार, वृद्ध और बच्चों के लिए विशेष देखभाल ज़रूरी है।
भाषा असमिया, हिंदी और अंग्रेज़ी भाषाएं प्रचलित हैं।
रहने की जगह होटल, धर्मशाला और सरकारी शिविर पहले से बुक करें।
निष्कर्ष: अंबुबाची मेला — जब देवी विश्राम करती हैं, प्रकृति मौन हो जाती है और समाज चेतना पाता है
अंबुबाची मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, नारी सम्मान, प्रकृति पूजन और तांत्रिक साधना का एक विराट संगम है। जब दुनिया मासिक धर्म को शर्म और वर्जना के साथ देखती है, तब कामाख्या की भूमि उसे शक्ति, सृजन और सम्मान के रूप में स्वीकार करती है।
यह वह परंपरा है जहाँ:
रजस्वला देवी को पूजा जाता है,
तीन दिन मंदिर बंद रहकर “देवी के विश्राम” का संदेश देता है,
और चौथे दिन नया जीवन, नई ऊर्जा के साथ “निर्बृत्ति” का स्वागत होता है।
अंबुबाची मेला न केवल धार्मिक श्रद्धा का पर्व है, बल्कि यह उन सामाजिक वर्जनाओं के विरुद्ध एक सांस्कृतिक विद्रोह है, जो महिलाओं के प्राकृतिक चक्र को अपवित्र मानते हैं। यह उत्सव हमें याद दिलाता है कि “जो रचती है, वही पूजनीय है।”
अंबुबाची मेला सिखाता है:
मासिक धर्म शर्म नहीं, सम्मान है।
स्त्री का शरीर पवित्र सृजन केंद्र है।
परंपरा और वैज्ञानिक सोच साथ-साथ चल सकती है।
तंत्र और भक्ति के बीच संतुलन का पथ भी संभव है।
कामाख्या देवी के इस महोत्सव में शामिल होकर व्यक्ति केवल दर्शन नहीं करता, वह आत्मा की गहराइयों से जुड़ता है, स्वयं के भीतर छुपी शक्ति को पहचानता है, और समाज के प्रति एक नई दृष्टि लेकर लौटता है।
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