इंडिया बायोइकोनॉमी 2025: इस रिपोर्ट में क्या है खास?
बायोइकोनॉमी 2025: भारत की अर्थव्यवस्था विविधता से भरी हुई है, और हाल के वर्षों में जैव-अर्थव्यवस्था (Bioeconomy) इस विकास यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है। केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने इंडिया बायोइकोनॉमी 2025 के शुभारंभ के अवसर पर इस क्षेत्र की विशाल संभावनाओं पर प्रकाश डाला। यह रिपोर्ट न केवल भारत की मौजूदा उपलब्धियों को दर्शाती है बल्कि इस क्षेत्र में भारत को एक वैश्विक नेता बनाने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों को भी रेखांकित करती है।
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Toggleभारत की जैव-अर्थव्यवस्था पारंपरिक कृषि, जैव-प्रौद्योगिकी, जैव-ऊर्जा और स्वास्थ्य सेवा से लेकर पर्यावरणीय स्थिरता तक फैली हुई है। इस रिपोर्ट में हम जैव-अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं, इसके विकास की दिशा, सरकार की योजनाओं और भविष्य की संभावनाओं पर गहराई से चर्चा करेंगे।
बायोइकोनॉमी 2025: जैव-अर्थव्यवस्था क्या है?
जैव-अर्थव्यवस्था (Bioeconomy) एक ऐसी आर्थिक प्रणाली है जो जीवित संसाधनों, जैव-आधारित उत्पादों और नवीकरणीय जैव-स्रोतों के उपयोग पर आधारित होती है। इसमें जैव-प्रौद्योगिकी (Biotechnology) और पर्यावरणीय स्थिरता का समावेश होता है।
इसके अंतर्गत आने वाले प्रमुख क्षेत्र हैं:
- जैव-औषधि (Biopharma)
- कृषि जैव-प्रौद्योगिकी (Agri-Biotech)
- जैव-ऊर्जा (Bioenergy)
- जैव-औद्योगिक उत्पाद (Bio-Industrial Products)
- पर्यावरणीय जैव-प्रौद्योगिकी (Environmental Biotechnology)
भारत में जैव-अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए सरकार ने बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च असिस्टेंस काउंसिल (BIRAC) और डीबीटी (Department of Biotechnology) जैसी संस्थाओं के माध्यम से कई महत्वपूर्ण पहलें शुरू की हैं।
भारत की बायोइकोनॉमी 2025: विकास की यात्रा
1. प्रारंभिक दौर और बुनियादी ढांचा
भारत में जैव-प्रौद्योगिकी की नींव 1980 के दशक में पड़ी जब सरकार ने इस क्षेत्र को एक स्वतंत्र औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया। 1986 में जैव-प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) की स्थापना की गई, जिसने इस क्षेत्र को समर्थन और वित्तीय सहायता प्रदान की।
2. 21वीं सदी में क्रांतिकारी बदलाव
2000 के दशक की शुरुआत में भारत की फार्मास्यूटिकल्स और बायोटेक इंडस्ट्री तेजी से विकसित हुई। इस दौर में भारत वैक्सीन उत्पादन में विश्व नेता बनकर उभरा और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया तथा भारत बायोटेक जैसी कंपनियों ने विश्वस्तरीय नवाचार किए।
3. 2014 के बाद तेज विकास
2014 के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने “मेक इन इंडिया”, “स्टार्टअप इंडिया”, और “आत्मनिर्भर भारत” जैसी योजनाओं के माध्यम से जैव-अर्थव्यवस्था को मजबूती दी।
4. बायोइकोनॉमी 2025: वर्तमान परिदृश्य और लक्ष्य
वर्तमान में भारत की जैव-अर्थव्यवस्था लगभग 80 अरब डॉलर की हो चुकी है, और 2025 तक इसे 150 अरब डॉलर तथा 2030 तक 300 अरब डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है
भारत की बायोइकोनॉमी 2025 के प्रमुख क्षेत्र
1. जैव-औषधि (Biopharma) और स्वास्थ्य क्षेत्र
भारत दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीन निर्माता है और लगभग 60% वैश्विक टीकों का उत्पादन करता है। कोविड-19 महामारी के दौरान कोवैक्सिन और कोविशील्ड जैसी वैक्सीन ने भारत की बायोटेक क्षमताओं को वैश्विक स्तर पर स्थापित किया।
मुख्य उपलब्धियां:
सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया विश्व की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनी है।
बायोकॉन, डॉ. रेड्डीज लैब्स और भारत बायोटेक जैसी कंपनियों ने बायोफार्मा क्षेत्र में बड़ी प्रगति की है।
बायोइकोनॉमी 2025 भविष्य की संभावनाएं:
जीन थेरेपी, पर्सनलाइज्ड मेडिसिन और बायोसिमिलर दवाओं का उत्पादन तेजी से बढ़ेगा।
नवाचार और अनुसंधान में निवेश के कारण यह क्षेत्र 2025 तक 80 अरब डॉलर से अधिक का हो सकता है।
2. कृषि जैव-प्रौद्योगिकी (Agri-Biotech)
भारत की 50% से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है। जैव-प्रौद्योगिकी के उपयोग से कृषि उत्पादन में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं।
मुख्य योगदान:
जीएम (Genetically Modified) फसलें जैसे बीटी कॉटन ने भारत में कपास उत्पादन को दोगुना कर दिया है।
जैव-उर्वरकों और जैव कीटनाशकों का उपयोग पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में मदद कर रहा है।
भविष्य की संभावनाएं:
बायोफोर्टिफाइड फसलें (जैसे – अधिक पोषण युक्त धान और गेहूं) विकसित करना।
संवहनीय कृषि तकनीक से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करना।

3. जैव-ऊर्जा (Bioenergy) और हरित भविष्य
भारत हरित ऊर्जा समाधानों की ओर तेजी से बढ़ रहा है, और जैव-ऊर्जा इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
महत्वपूर्ण कदम:
जैव-इथेनॉल मिश्रण नीति के तहत ईंधन में 20% एथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य 2025 तक रखा गया है।
जैव-डीजल और जैव-गैस संयंत्रों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
भविष्य की दिशा:
बायोफ्यूल और हाइड्रोजन फ्यूल टेक्नोलॉजी पर निवेश।
गांवों में जैव-ऊर्जा आधारित संयंत्रों की स्थापना।
4. औद्योगिक जैव-प्रौद्योगिकी (Industrial Biotechnology)
भारत में कई उद्योग बायो-आधारित उत्पादों की ओर बढ़ रहे हैं।
मुख्य योगदान:
कागज, कपड़ा, प्लास्टिक और रसायन उद्योगों में जैव-आधारित विकल्पों का प्रयोग।
एंजाइम टेक्नोलॉजी के उपयोग से पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना।
भविष्य की संभावनाएं:
100% बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का निर्माण।
ग्रीन केमिस्ट्री को बढ़ावा देना।
सरकार की नीतियां और समर्थन
1. जैव-प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC): यह स्टार्टअप्स और नवाचारों को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
2. जैव-अर्थव्यवस्था 2025 मिशन: इस मिशन का उद्देश्य जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्र को दोगुना करना है।
3. PLI स्कीम: जैव-औषधि और बायोफार्मा कंपनियों को उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं।
भारत की बायोइकोनॉमी 2025: सतत विकास और वैश्विक नेतृत्व की ओर
भारत की बायोइकोनॉमी 2025 केवल वैज्ञानिक नवाचारों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आर्थिक वृद्धि, रोजगार, पर्यावरण संरक्षण और ऊर्जा सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इंडिया बायोइकोनॉमी रिपोर्ट 2025 के अनुसार, भारत जैव-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर एक अग्रणी शक्ति बनने की ओर अग्रसर है।
सरकार द्वारा इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत सुधार, वित्तीय निवेश, अनुसंधान एवं विकास (R&D) और वैश्विक सहयोग को प्राथमिकता दी जा रही है। जैव-अर्थव्यवस्था का व्यापक प्रभाव कृषि, औद्योगिक उत्पादन, स्वास्थ्य सेवा, ऊर्जा और पर्यावरणीय संरक्षण जैसे क्षेत्रों में देखा जा सकता है।
भारत की बायोइकोनॉमी 2025 के प्रमुख घटक
1. बायोइकोनॉमी 2025 और सतत विकास (Sustainable Development)
पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से जैव-अर्थव्यवस्था का महत्व बढ़ रहा है। इसमें प्राकृतिक संसाधनों का कुशल उपयोग, जैविक कचरे का पुनर्चक्रण और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग शामिल है।
मुख्य प्रयास:
बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का उपयोग बढ़ाना।
हरित उर्वरकों और जैविक कीटनाशकों को प्रोत्साहित करना।
स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों जैसे जैव-ईंधन, जैव-गैस और हरित हाइड्रोजन को बढ़ावा देना।
उदाहरण:
इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन और HPCL जैसे सार्वजनिक उपक्रमों ने जैव-ईंधन उत्पादन संयंत्र स्थापित किए हैं।
सतत कृषि के लिए बायोफोर्टिफाइड फसलें विकसित की जा रही हैं।
2. जैव-प्रौद्योगिकी और नवाचार (Biotechnology and Innovation)
जैव-प्रौद्योगिकी उद्योग में नवाचार से भारत नई दवाओं, उन्नत टीकों और आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों का विकास कर रहा है।
प्रमुख उपलब्धियां:
mRNA तकनीक आधारित भारतीय टीकों का विकास।
कैंसर, हृदय रोग और जेनेटिक डिसऑर्डर के लिए पर्सनलाइज्ड मेडिसिन का प्रयोग।
सिंथेटिक बायोलॉजी में अनुसंधान, जिससे नवीकरणीय जैव-स्रोतों से जैव-औद्योगिक उत्पाद तैयार किए जा सकें।
भविष्य की संभावनाएं:
3D बायोप्रिंटिंग के माध्यम से कृत्रिम अंगों का विकास।
CRISPR जीन एडिटिंग टेक्नोलॉजी का उपयोग नई चिकित्सा खोजों में।
3. बायोइकोनॉमी 2025 और रोजगार के अवसर
बायोइकोनॉमी 2025 ने भारत में नए रोजगार के अवसरों को जन्म दिया है। इस क्षेत्र में स्टार्टअप्स की वृद्धि और उद्योगों के विस्तार के कारण लाखों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिल रहा है।
रोजगार के प्रमुख क्षेत्र:
बायोफार्मा: औषधि अनुसंधान, बायोसिमिलर उत्पादन।
कृषि जैव-प्रौद्योगिकी: जैविक खाद उत्पादन, बीज अनुसंधान।
जैव-ऊर्जा: बायोडीजल संयंत्र, एथेनॉल उत्पादन।
पर्यावरण जैव-प्रौद्योगिकी: जल शुद्धिकरण, कचरा प्रबंधन।
संभावनाएं:
स्टार्टअप इंडिया मिशन के तहत बायोटेक स्टार्टअप्स को वित्तीय सहायता और सब्सिडी दी जा रही है।
“बायो टेक पार्क्स” और “बायो क्लस्टर्स” के निर्माण से स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन हो रहा है।
4. वैश्विक बायोइकोनॉमी 2025 में भारत की भूमिका
भारत जैव-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वैश्विक साझेदारी को बढ़ावा दे रहा है। G20, ब्रिक्स, ASEAN जैसे मंचों पर भारत जैव-आधारित नवाचारों के माध्यम से सतत विकास की दिशा में काम कर रहा है।
भारत के वैश्विक योगदान:
COVID-19 के दौरान भारत ने 150+ देशों को वैक्सीन निर्यात की।
बायो-इथेनॉल उत्पादन में भारत शीर्ष 5 देशों में शामिल है।
AFRICA BIOECONOMY ALLIANCE के तहत भारत अफ्रीकी देशों के साथ जैव-तकनीक साझेदारी को बढ़ावा दे रहा है।
सरकार की प्रमुख योजनाएं और नीतियां
सरकार द्वारा जैव-अर्थव्यवस्था के विकास के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिनका उद्देश्य शोध एवं विकास (R&D), स्टार्टअप्स और हरित प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना है।
1. राष्ट्रीय जैव-अर्थव्यवस्था नीति 2020 (National Bioeconomy Policy 2020)
जैव-आधारित उत्पादों और प्रौद्योगिकी में निवेश को प्रोत्साहित करता है।
“मेड इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” के तहत स्वदेशी जैव-तकनीक को बढ़ावा देना।
2. जैव-अर्थव्यवस्था पार्क (Bioeconomy Parks)
बेंगलुरु, पुणे और हैदराबाद में बायोटेक पार्क्स स्थापित किए गए हैं।
इन पार्कों में स्टार्टअप्स को फंडिंग और तकनीकी समर्थन मिलता है।
3. PLI योजना (Production Linked Incentive)
जैव-औषधि कंपनियों को 10,000 करोड़ रुपये का प्रोत्साहन।
टीकों, बायोसिमिलर्स और फार्मास्युटिकल इनोवेशन के लिए मदद।
4. जैव-ऊर्जा मिशन (Bio-Energy Mission)
2030 तक पेट्रोल में 30% बायो-इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य।
ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन में भारत को आत्मनिर्भर बनाना।
भविष्य की संभावनाएं और चुनौतियां
संभावनाएं:
वैश्विक बायोइकोनॉमी 2025 में भारत की अग्रणी भूमिका।
जैव-आधारित स्टार्टअप्स और नवाचारों में तेजी।
स्वास्थ्य, ऊर्जा और कृषि क्षेत्रों में नए अवसर।
मुख्य चुनौतियां:
अनुसंधान और विकास (R&D) में निवेश बढ़ाने की आवश्यकता।
बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual Property Rights – IPR) की सुरक्षा।
वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भारतीय कंपनियों की सक्षमता बढ़ाना।
निष्कर्ष
भारत की जैव-अर्थव्यवस्था वैश्विक स्तर पर नए आयाम छू रही है। सरकार, निजी क्षेत्र और अनुसंधान संस्थानों के सहयोग से यह क्षेत्र अर्थव्यवस्था, रोजगार और सतत विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।
यदि भारत R&D, स्टार्टअप्स और वैश्विक सहयोग को और अधिक बढ़ावा देता है, तो 2030 तक भारत 300 अरब डॉलर की जैव-अर्थव्यवस्था वाला देश बन सकता है।
जैव-अर्थव्यवस्था भारत के “ग्रीन ग्रोथ” और “सस्टेनेबल फ्यूचर” के लिए एक मजबूत आधारशिला सिद्ध हो रही है। आने वाले दशक में, यह क्षेत्र देश की आर्थिक समृद्धि, पर्यावरणीय सुरक्षा और वैज्ञानिक नवाचारों में अहम भूमिका निभाएगा।
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