इंडिया 2047: क्या भारत जलवायु संकट से बचने के लिए तैयार है? जानें बड़ा प्लान!
इंडिया 2047: भारत जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों से निपटने के लिए निरंतर प्रयासरत है। इस दिशा में नीति-निर्माण, तकनीकी नवाचार और सामुदायिक सहयोग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसी संदर्भ में “इंडिया 2047: बिल्डिंग ए क्लाइमेट-रेजिलिएंट फ्यूचर” संगोष्ठी का आयोजन भारत मंडपम, नई दिल्ली में किया गया।
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Toggleइस संगोष्ठी का उद्देश्य जलवायु अनुकूलन और लचीलेपन को बढ़ावा देना था, ताकि भारत वर्ष 2047 तक एक जलवायु-लचीला राष्ट्र बन सके।
इस महत्वपूर्ण संगोष्ठी में नीति-निर्माताओं, शिक्षाविदों, विशेषज्ञों और उद्योग जगत के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सभी ने मिलकर इस विषय पर चर्चा की कि कैसे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम किया जाए और भारत को जलवायु अनुकूल देश के रूप में विकसित किया जाए। इस आयोजन में सतत विकास, नीतिगत निर्णय, सामुदायिक भागीदारी, और तकनीकी नवाचार पर विशेष ध्यान दिया गया।
इंडिया 2047: संगोष्ठी का उद्देश्य और महत्व
जलवायु परिवर्तन वर्तमान समय की सबसे बड़ी वैश्विक चुनौतियों में से एक है। यह न केवल पर्यावरण, बल्कि आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी पहलुओं को भी प्रभावित कर रहा है। भारत, जो एक विशाल जनसंख्या वाला देश है, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से अत्यधिक प्रभावित होता है। इस संगोष्ठी का प्रमुख उद्देश्य था:
भारत में जलवायु अनुकूल नीतियों और रणनीतियों को विकसित करना।
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सहयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाना।
स्थानीय और वैश्विक ज्ञान का समावेश करके नीति-निर्माण में सुधार करना।
नवीन प्रौद्योगिकियों और सतत विकास मॉडल को अपनाने की दिशा में काम करना।
भारत को 2047 तक जलवायु-लचीला और पर्यावरण-संवेदनशील राष्ट्र बनाने का मार्ग प्रशस्त करना।
इंडिया 2047: संगोष्ठी के प्रमुख वक्ता और उनके विचार
केंद्रीय मंत्री श्री कीर्ति वर्धन सिंह का वक्तव्य
इस संगोष्ठी के समापन सत्र में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री श्री कीर्ति वर्धन सिंह ने भारत की जलवायु परिवर्तन से निपटने की यात्रा को रेखांकित किया। उन्होंने निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं पर जोर दिया:
1. जलवायु कार्रवाई बहुआयामी है – जलवायु परिवर्तन केवल पर्यावरण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कृषि, स्वास्थ्य, जल संसाधन, जैव विविधता, और आर्थिक स्थिरता से भी जुड़ा हुआ है।
2. कृषि पर प्रभाव – बढ़ती हीटवेव और जल संकट से किसानों को नुकसान हो रहा है। हमें क्लाइमेट-स्मार्ट कृषि तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता है।
3. जलवायु-स्मार्ट स्वास्थ्य प्रणालियाँ – बढ़ते तापमान और वायु प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ बढ़ रही हैं, जिससे स्वास्थ्य प्रणालियों को अधिक लचीला और मजबूत बनाने की जरूरत है।
4. नवाचार की भूमिका – नवीन तकनीकों को अपनाकर हरित ऊर्जा, जल संरक्षण और सतत विकास को बढ़ावा देना आवश्यक है।
5. संपूर्ण समाज की भागीदारी – जलवायु परिवर्तन से लड़ाई में सरकार, उद्योग, वैज्ञानिक, युवा और नागरिकों को समान रूप से भाग लेना होगा।
पर्यावरण सचिव श्री तन्मय कुमार का संबोधन
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सचिव श्री तन्मय कुमार ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए स्थानीय स्तर पर क्षमता निर्माण की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि:
1. अनुकूलन रणनीतियाँ समावेशी और समुदाय-आधारित होनी चाहिए – पारंपरिक ज्ञान और स्थानीय संसाधनों का उपयोग करके स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाया जाना चाहिए।
2. विभिन्न क्षेत्रों के लिए एकीकृत दृष्टिकोण – हर क्षेत्र में जलवायु प्रभाव अलग-अलग होते हैं, इसलिए स्थान-विशेष रणनीतियाँ विकसित की जानी चाहिए।
3. स्थिरता और वैज्ञानिक प्रमाण – जलवायु लचीलापन बनाने के लिए वैज्ञानिक साक्ष्य और सतत विकास लक्ष्यों का ध्यान रखना आवश्यक है।
4. सतत सहयोग और दीर्घकालिक प्रतिबद्धता – जलवायु संकट से निपटने के लिए निरंतर नीति सुधार और वैश्विक सहयोग आवश्यक हैं।
प्रोफेसर तरुण खन्ना का योगदान
हार्वर्ड विश्वविद्यालय के लक्ष्मी मित्तल एंड फैमिली साउथ एशिया इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रोफेसर तरुण खन्ना ने इस संगोष्ठी के सहयोगात्मक दृष्टिकोण की सराहना की। उन्होंने कहा कि:
1. मंत्रालय और हार्वर्ड विश्वविद्यालय के संयुक्त प्रयास – यह साझेदारी जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को हल करने के लिए विज्ञान, नीति और नवाचार को एक साथ लाने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
2. सामूहिक ऊर्जा का समन्वय – उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को एक साथ लाकर प्रभावी रणनीतियाँ बनाई जा सकती हैं।
3. वैश्विक सहयोग का महत्व – भारत को अन्य देशों से सीखने और अपने अनुभव साझा करने की जरूरत है ताकि बेहतर और प्रभावी जलवायु नीति बनाई जा सके।
श्री नरेश पाल गंगवार का धन्यवाद ज्ञापन
अपर सचिव श्री नरेश पाल गंगवार ने सभी वक्ताओं और प्रतिभागियों को उनके योगदान के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि:
1. सहयोग और दृढ़ संकल्प से जलवायु चुनौतियों से निपटा जा सकता है।
2. ज्ञान-साझाकरण आवश्यक है – वैश्विक और स्थानीय स्तर पर सीखने और अनुभवों को साझा करने से बेहतर समाधान निकल सकते हैं।
3. निरंतर संवाद और अनुसंधान – जलवायु लचीलापन और स्थायी विकास के लिए विज्ञान, नीति और व्यवहार में निरंतर सुधार की जरूरत है।

इंडिया 2047: संगोष्ठी से प्राप्त प्रमुख निष्कर्ष
भारत को जलवायु लचीलेपन के लिए दीर्घकालिक रणनीति बनानी होगी।
नवीन तकनीकों और हरित ऊर्जा को बढ़ावा देना आवश्यक है।
स्थानीय समुदायों की भागीदारी जलवायु अनुकूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
जलवायु-स्मार्ट कृषि और स्वास्थ्य प्रणाली विकसित करना अनिवार्य है।
वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग से प्रभावी नीति-निर्माण संभव होगा।
इंडिया 2047: भारत के जलवायु अनुकूलन और लचीलेपन की दिशा में प्रयास
भारत, एक विकासशील राष्ट्र होने के बावजूद, जलवायु परिवर्तन के प्रति अपनी संवेदनशीलता को पहचानते हुए लगातार सतत विकास और अनुकूलन की दिशा में प्रयास कर रहा है।
“इंडिया 2047: बिल्डिंग ए क्लाइमेट-रेजिलिएंट फ्यूचर” संगोष्ठी के दौरान चर्चा की गई विभिन्न रणनीतियों और समाधानों को यदि प्रभावी रूप से लागू किया जाए, तो भारत जलवायु लचीलेपन की ओर तेज़ी से आगे बढ़ सकता है।
इंडिया 2047: जलवायु परिवर्तन के प्रति भारत की संवेदनशीलता
भारत का विशाल भौगोलिक क्षेत्र और विविध जलवायु परिस्थितियाँ इसे बाढ़, सूखा, चक्रवात, हीटवेव और समुद्री स्तर में वृद्धि जैसी जलवायु आपदाओं के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बनाती हैं।
कृषि पर प्रभाव: अनिश्चित वर्षा और बढ़ते तापमान के कारण फसल उत्पादन में कमी आ सकती है, जिससे खाद्य सुरक्षा पर खतरा मंडरा सकता है।
शहरीकरण और जल संकट: बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण के कारण जल संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है।
बढ़ते समुद्री स्तर का प्रभाव: भारत का एक बड़ा तटीय क्षेत्र है, जिससे समुद्री स्तर में वृद्धि के कारण तटीय समुदायों के विस्थापन का खतरा बढ़ रहा है।
मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव: वायु और जल प्रदूषण के बढ़ते स्तर से श्वसन रोग, हृदय रोग और अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ बढ़ रही हैं।
इंडिया 2047: जलवायु लचीलापन बढ़ाने के लिए रणनीतियाँ
इंडिया 2047: संगोष्ठी में चर्चा के दौरान कुछ प्रमुख रणनीतियाँ उभरकर सामने आईं:
(i) कृषि में जलवायु लचीलापन
क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर (CSA): टिकाऊ खेती के लिए सूखा-प्रतिरोधी फसलें, जैविक खेती, सूक्ष्म सिंचाई तकनीकें अपनाने की आवश्यकता है।
फसल बीमा योजना: प्राकृतिक आपदाओं से किसानों को बचाने के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जैसे कार्यक्रमों को और मजबूत किया जाना चाहिए।
कार्बन-कृषि का प्रोत्साहन: खेती में कार्बन उत्सर्जन कम करने और मृदा स्वास्थ्य सुधारने पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
(ii) जल संसाधन प्रबंधन
पानी के सतत उपयोग पर बल: वर्षा जल संचयन, भूजल पुनर्भरण और अपशिष्ट जल पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना होगा।
नदी पुनर्जीवन योजनाएँ: गंगा और अन्य नदियों की सफाई एवं संरक्षण पर और अधिक बल देना आवश्यक है।
जलवायु-अनुकूल शहरी जल प्रबंधन: स्मार्ट शहरों में जल संकट से बचाव के लिए हरित जल प्रबंधन तकनीकों को लागू किया जाना चाहिए।
(iii) अक्षय ऊर्जा और हरित प्रौद्योगिकी
सौर और पवन ऊर्जा का अधिकतम उपयोग: भारत पहले से ही अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) के माध्यम से अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा दे रहा है, लेकिन इसे और तेज़ी से लागू करने की जरूरत है।
ईवी (इलेक्ट्रिक वाहन) अपनाने की गति बढ़ाना: भारत सरकार द्वारा फेम II योजना के तहत इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
ग्रीन हाइड्रोजन मिशन: भारत ग्रीन हाइड्रोजन को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन पर काम कर रहा है।
(iv) जलवायु-स्मार्ट स्वास्थ्य प्रणाली
गर्मी की लहरों (हीटवेव) से बचाव: बढ़ती गर्मी के कारण शहरों में हीट एक्शन प्लान को सख्ती से लागू करना आवश्यक है।
वायु प्रदूषण पर नियंत्रण: सरकार को राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) को और अधिक प्रभावी बनाना चाहिए।
जल-जनित बीमारियों पर रोकथाम: स्वच्छता और सुरक्षित पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए स्वच्छ भारत मिशन को और अधिक मजबूत किया जाना चाहिए।
(v) इंडिया 2047: शहरीकरण और टिकाऊ बुनियादी ढांचा
स्मार्ट और हरित शहरों का निर्माण: भारत सरकार को स्मार्ट सिटीज मिशन के तहत अधिक हरित स्थान, जल पुनर्चक्रण और ऊर्जा दक्षता वाली इमारतों को बढ़ावा देना चाहिए।
इंडिया 2047: पर्यावरण-अनुकूल परिवहन: अधिकाधिक मेट्रो रेल, इलेक्ट्रिक बसें, और साइकिल ट्रैक विकसित किए जाने चाहिए।
हरित भवन निर्माण: नई इमारतों को ऊर्जा कुशल और जलवायु-अनुकूल बनाने की नीति लागू करनी होगी।
(vi) पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता संरक्षण
वृक्षारोपण और वन संरक्षण: CAMPA (Compensatory Afforestation Fund Management and Planning Authority) के तहत वनीकरण परियोजनाओं को अधिक बढ़ावा देना होगा।
मैंग्रोव संरक्षण: भारत के तटीय क्षेत्रों में मैंग्रोव जंगलों की सुरक्षा के लिए विशेष योजनाएँ लागू की जानी चाहिए।
वन्यजीव संरक्षण: सरकार को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 को प्रभावी रूप से लागू करना होगा।

इंडिया 2047: नीति-निर्माण में जलवायु लचीलापन
सरकार को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए समग्र और दीर्घकालिक नीतियाँ बनानी होंगी। कुछ महत्वपूर्ण सुझाव इस प्रकार हैं:
1. जलवायु अनुकूलन नीति: भारत को एक व्यापक जलवायु अनुकूलन नीति की आवश्यकता है, जो सभी राज्यों में लागू की जा सके।
2. कानूनी सुधार: जलवायु लचीलापन सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण से संबंधित मौजूदा कानूनों को और अधिक प्रभावी बनाना होगा।
3. वैश्विक सहयोग: अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और अन्य देशों के साथ तकनीकी और वित्तीय सहयोग बढ़ाना होगा।
4. निजी क्षेत्र की भागीदारी: जलवायु लचीलापन बढ़ाने में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष: “इंडिया 2047: बिल्डिंग ए क्लाइमेट-रेजिलिएंट फ्यूचर”
“इंडिया 2047: बिल्डिंग ए क्लाइमेट-रेजिलिएंट फ्यूचर” संगोष्ठी भारत के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर थी, जिसने हमें यह सोचने का अवसर दिया कि 2047 तक कैसे एक हरित, स्वच्छ और जलवायु-लचीला भारत बनाया जाए।
सरकार, उद्योग, नागरिक समाज और वैज्ञानिक समुदाय को मिलकर काम करने की जरूरत है।
स्थानीय ज्ञान और आधुनिक तकनीक के संयोजन से जलवायु परिवर्तन से निपटा जा सकता है।
जलवायु संकट को केवल पर्यावरणीय चुनौती के रूप में नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक अवसर के रूप में भी देखना होगा।
इंडिया 2047 संगोष्ठी से मिले विचार और सुझाव न केवल भारत की जलवायु रणनीतियों को मजबूत करेंगे, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी जलवायु-लचीली अर्थव्यवस्था के निर्माण में योगदान देंगे। भारत की स्वतंत्रता की शताब्दी के अवसर पर हमारा लक्ष्य एक सस्टेनेबल, हरित और जलवायु-संवेदनशील राष्ट्र बनाना है।
इंडिया 2047: “हरित भारत, सशक्त भारत – जलवायु के प्रति जिम्मेदार भारत!”
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