इरावन महाभारत

इरावन महाभारत : अर्जुन-पुत्र का बलिदान, कृष्ण का मोहिनी विवाह और अरावन पूजा की अनोखी कथा

Facebook
Twitter
Telegram
WhatsApp

इरावन महाभारत : अर्जुन और उलूपी के पुत्र की कथा, लोककथाओं से आधुनिक उत्सव तक

इरावन महाभारत : एक परिचय

महाभारत, जिसे ‘पंचम वेद’ भी कहा जाता है, केवल युद्धकथा नहीं बल्कि भारतीय समाज, संस्कृति और दर्शन का दर्पण है। इस महाग्रंथ में सैकड़ों पात्र हैं जिनमें से कई मुख्य धारा में चर्चित होते हैं, जबकि कुछ ऐसे भी हैं जिनकी गाथा अल्प-प्रसिद्ध होते हुए भी अत्यंत मार्मिक और प्रेरणादायी है। इन्हीं में से एक पात्र हैं इरावन (Iravan / Aravan / Iravant) — अर्जुन और नागकन्या उलूपी के पुत्र।

इरावन की कथा महाभारत में अपेक्षाकृत कम स्थान पाती है, परंतु उनका बलिदान, वीरता और सांस्कृतिक प्रभाव इतना गहरा है कि दक्षिण भारत से लेकर दक्षिण-पूर्व एशिया तक उनका पूजन होता है।

इरावन का जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि

पिता – अर्जुन (पांडवों में तीसरे, धनुर्विद्या में अद्वितीय)

माता – उलूपी (नागकन्या, नागराज कुंभीना की पुत्री)

अर्जुन जब वनवास के दौरान गंगा स्नान कर रहे थे, तभी नागकन्या उलूपी ने उन्हें अपने नागलोक में आमंत्रित किया और वहीं विवाह संपन्न हुआ। इस विवाह से अर्जुन को पुत्ररत्न इरावन प्राप्त हुए।

चूँकि इरावन नागलोक में पले-बढ़े, इसलिए वे नागवंश और पांडववंश — दोनों परंपराओं से जुड़े। यही द्वैत उन्हें विशिष्ट पहचान देता है।

इरावन का शौर्य और युद्ध कौशल

महाभारत के युद्ध में इरावन की भूमिका अल्पकालिक रही, परंतु उनका पराक्रम अनुपम था।

वे एक प्रखर धनुर्धर थे और मायावी अस्त्रों के ज्ञाता थे।

उन्होंने युद्धभूमि में अकेले ही कौरवों की घुड़सवार सेना को परास्त कर दिया।

शकुनि के छह भाई, अवंती के राजकुमार विंद और अनुविंद, दुर्योधन का साला सुदक्षिण, भूरिश्रवा के चार पुत्र – इन सभी को उन्होंने मृत्यु का स्वाद चखाया।

भीष्म पर्व और अन्य अध्यायों में उनके युद्धकौशल का विस्तार मिलता है।

इरावन महाभारत
इरावन महाभारत : अर्जुन-पुत्र का बलिदान, कृष्ण का मोहिनी विवाह और अरावन पूजा की अनोखी कथा
आठवें दिन का युद्ध और इरावन का वध

महाभारत के युद्ध के आठवें दिन इरावन ने ऐसा कोहराम मचाया कि कौरव सेना भयभीत हो उठी।

दुर्योधन ने जब देखा कि इरावन को रोकना कठिन है, तब उसने राक्षस अलम्बुष को आदेश दिया।

अलम्बुष ने मायावी रूप धर लिया और गरुड़ का रूप लेकर इरावन पर टूट पड़ा।

चूँकि गरुड़ नागों का शत्रु है, इरावन की मातृवंशीय शक्ति निष्प्रभावी हो गई।

अंततः इरावन शहीद हो गए।

इरावन का बलिदान : देवी काली के लिए

महाभारत के युद्ध से पहले पांडवों ने देवी काली की आराधना की। देवी ने विजय हेतु नरबलि (मानव बलिदान) की मांग की।
इस पर इरावन ने आगे बढ़कर स्वयं को बलिदान हेतु प्रस्तुत किया।

परंतु उन्होंने एक शर्त रखी –

“मैं अविवाहित मरना नहीं चाहता।”

यह शर्त कठिन थी, क्योंकि कोई राजकुमारी या स्त्री स्वयं विधवा बनने को तैयार नहीं थी।

श्रीकृष्ण का मोहिनी रूप

इस विकट परिस्थिति में भगवान श्रीकृष्ण ने अद्वितीय समाधान निकाला।

उन्होंने मोहिनी रूप धारण किया।

Erawan से विवाह किया।

उनकी अंतिम रात पत्नी रूप में बिताई।

अगले दिन जब Erawan का बलिदान हुआ, तो श्रीकृष्ण मोहिनी रूप में विधवा विलाप करने लगीं।

यह प्रसंग भारतीय पौराणिक साहित्य में अद्वितीय है। यह केवल बलिदान की गाथा ही नहीं, बल्कि लिंग विविधता और सामाजिक समावेशन का प्रतीक भी है।

समाज और संस्कृति में इरावन

1. दक्षिण भारत में अरावन पूजा

तमिलनाडु के कूप्पम, कोवलम और तमिल समाज में Erawan (अरावन) की विशेष पूजा होती है। हर वर्ष कुट्टांतवर उत्सव आयोजित होता है, जिसमें इरावन के बलिदान और विवाह का स्मरण किया जाता है।

2. किन्नर समाज का आराध्य

भारत का किन्नर (Hijra / Transgender) समाज इरावन को अपना आराध्य मानता है।

अरावन उत्सव के दौरान किन्नर स्त्रियों की भांति विवाह रचाते हैं।

अगले दिन वे ‘विधवा-विलाप’ करके सामाजिक-धार्मिक भूमिका निभाते हैं।

Erawan और धार्मिक समावेशन

Erawan की कथा में अनेक धार्मिक परंपराओं का संगम मिलता है –

काली पूजा (बलिदान का तत्व)

नागपूजा (Erawan का मातृकुल)

विष्णु-भक्ति (श्रीकृष्ण का मोहिनी रूप)

यह दर्शाता है कि महाभारत केवल युद्धकथा नहीं बल्कि धर्म, संस्कृति और विविधता का संगम है।

नागवंश और Erawan

Erawan का जन्म नागकन्या उलूपी से हुआ था, इसलिए वे नागवंशीय भी थे उनकी कथा नागपूजा से भी जुड़ी है।

युद्ध के समय नागकुल ने उनका सहयोग किया।

अलम्बुष के गरुड़ रूप ने नागों की शक्ति को निष्क्रिय कर दिया।

यह प्रसंग पौराणिक समाज में नाग-गरुड़ शत्रुता का प्रतीक है।

लोककथा, साहित्य और परंपराएँ

दक्षिण भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया में Erawan की कथाएँ अनेक रूपों में जीवित हैं।

लोकगीत और नृत्य – तमिल लोककला में इरावन के गीत और नाट्य प्रस्तुत होते हैं।

कविताएँ और नाटक – कवियों ने इरावन को बलिदानी नायक के रूप में चित्रित किया है।

उत्सव और विवाह प्रथा – किन्नर समाज का अरावन विवाह विश्व में अद्वितीय सांस्कृतिक घटना है।

जातीय और लिंग विविधता का प्रतीक

Erawan की कथा केवल एक योद्धा की वीरगाथा नहीं है, बल्कि सामाजिक सन्देश भी देती है।

कृष्ण का मोहिनी रूप और विवाह – लिंग विविधता की स्वीकृति।

किन्नर समाज का विवाह और विलाप – हाशिए पर खड़े समुदायों का धार्मिक समावेशन।

बलिदान की भावना – समाज और कुल की रक्षा हेतु आत्मत्याग

आधुनिक संदर्भ में इरावन

आज भी Erawan की पूजा और उनकी स्मृति –

तमिलनाडु के कूप्पम और कोवलम में

किन्नर समाज के अरावन विवाह में

दक्षिण एशिया की सांस्कृतिक परंपराओं में जीवित है।

यह दर्शाता है कि कैसे महाभारत का एक ‘कम-ज्ञात’ पात्र आधुनिक समाज में न्याय, समर्पण और विविधता का प्रतीक बन गया।

इरावन महाभारत
इरावन महाभारत : अर्जुन-पुत्र का बलिदान, कृष्ण का मोहिनी विवाह और अरावन पूजा की अनोखी कथा

Erawan महाभारत : FAQs

1. Erawan कौन थे?

Erawan महाभारत के पात्र हैं। वे पांडव अर्जुन और नागकन्या उलूपी के पुत्र थे। महाभारत के युद्ध में उन्होंने अद्भुत पराक्रम दिखाया और अंततः पांडवों की विजय हेतु बलिदान दिया।

2. Erawan के माता-पिता कौन थे?

पिता: अर्जुन (पांडवों में तीसरे, धनुर्विद्या में निपुण)

माता: उलूपी (नागकन्या, नागराज कुंभीना की पुत्री)

3. महाभारत युद्ध में इरावन की क्या भूमिका रही?

Erawan ने कौरव पक्ष के अनेक योद्धाओं को पराजित किया। उन्होंने घुड़सवार सेना का संहार किया और शकुनि के भाइयों, अवंती राजकुमारों, भूरिश्रवा के पुत्रों को मार गिराया।

4. Erawan का वध किसने किया?

Erawan का वध राक्षस अलम्बुष ने किया, जिसने गरुड़ का रूप धारण कर उन्हें परास्त किया।

5. Erawan का बलिदान क्यों प्रसिद्ध है?

पांडवों की विजय हेतु देवी काली ने नरबलि की मांग की थी। Erawan ने स्वयं को बलिदान हेतु प्रस्तुत किया, जिससे वे बलिदानी नायक कहलाए।

6. कृष्ण ने इरावन से विवाह क्यों किया?

Erawan ने बलिदान से पहले शर्त रखी कि वे अविवाहित नहीं मरना चाहते। कोई स्त्री विधवा बनने को तैयार नहीं हुई, तब श्रीकृष्ण ने मोहिनी रूप धारण कर उनसे विवाह किया और अगले दिन विधवा विलाप भी किया।

7. दक्षिण भारत में अरावन पूजा क्यों होती है?

तमिलनाडु और आसपास के क्षेत्रों में अरावन (Erawan) की पूजा इसलिए होती है क्योंकि उन्हें बलिदान, न्याय और समर्पण का प्रतीक माना जाता है।

8. किन्नर समाज Erawan को क्यों पूजता है?

किन्नर (Transgender) समाज Erawan को अपना आराध्य मानता है। वे अरावन उत्सव में विवाह करते हैं और अगले दिन विधवा की भांति शोक मनाते हैं। यह उनके लिए धार्मिक और सामाजिक पहचान का प्रतीक है।

9. Erawan और नागवंश का क्या संबंध है?

Erawan की माता उलूपी नागकन्या थीं। इसलिए वे नागवंश से जुड़े माने जाते हैं और नागपूजा से उनका विशेष संबंध है।

10. आज के समय में Erawan की कथा क्यों महत्वपूर्ण है?

Erawan की कथा आधुनिक समाज में समानता, विविधता, बलिदान और सामाजिक न्याय का संदेश देती है। यह किन्नर समाज और हाशिए पर खड़े समुदायों की पहचान और आस्था का आधार भी है।

Erawan महाभारत : निष्कर्ष

महाभारत जैसे विशाल महाकाव्य में इरावन का प्रसंग भले ही संक्षिप्त हो, लेकिन उसका प्रभाव गहरा और बहुआयामी है। अर्जुन और नागकन्या उलूपी के पुत्र इरावन केवल एक योद्धा नहीं, बल्कि बलिदान, सामाजिक न्याय और विविधता के प्रतीक हैं।

उनका युद्धकौशल, आत्मसमर्पण, और कृष्ण के मोहिनी रूप के साथ विवाह जैसी घटनाएँ भारतीय संस्कृति में धार्मिक समावेशन और लिंग विविधता की स्वीकृति को दर्शाती हैं। इरावन की कथा हमें यह सिखाती है कि समाज के हाशिए पर खड़े वर्ग भी धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

आज दक्षिण भारत में अरावन उत्सव, किन्नर समाज की पूजा परंपरा, और लोककथाओं में इरावन की उपस्थिति इस बात का प्रमाण है कि उनका बलिदान केवल पांडवों की विजय तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वह पीढ़ी दर पीढ़ी समानता, आस्था और सामाजिक स्वीकृति का संदेश देता रहा है।

इस प्रकार Erawan की कथा हमें याद दिलाती है कि एक सच्चा नायक वही है जो अपने समाज और धर्म के लिए बलिदान देने को तत्पर हो, और जो अपने जीवन से दूसरों को पहचान और सम्मान दिलाए।

Facebook
Twitter
Telegram
WhatsApp
Picture of Sanjeev

Sanjeev

Hello! Welcome To About me My name is Sanjeev Kumar Sanya. I have completed my BCA and MCA degrees in education. My keen interest in technology and the digital world inspired me to start this website, “Aajvani.com.”

Leave a Comment

Top Stories

Index