गंगा डॉल्फ़िन की जान पर खतरा: क्या 39 ज़हरीले दुश्मन छीन लेंगे इसका अस्तित्व?

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गंगा डॉल्फ़िन का खतरे में भविष्य: क्या हम इसे बचा पाएंगे?

प्रस्तावना: एक विलुप्त होती मौन पुकार

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गंगा नदी न केवल भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक आत्मा है, बल्कि इसका जीवंत जैवविविधता तंत्र भी उतना ही मूल्यवान है। इस नदी की एक सबसे कीमती विरासत है गंगेटिक डॉल्फ़िन—जिसे “सुसु” के नाम से भी जाना जाता है।

एक समय में यह डॉल्फ़िन पूरे उत्तर भारत की नदियों में पाई जाती थी, परंतु आज इसका अस्तित्व मात्र कुछ सौ किलोमीटर की नदी-धारा में सिमट कर रह गया है।

2024 में वैज्ञानिकों द्वारा किए गए ताज़ा अध्ययन ने एक बड़ा ख़तरा उजागर किया है—गंगा नदी में पाए गए 39 प्रकार के जहरीले रसायन अब गंगा की डॉल्फ़िन को अंदर से ज़हर दे रहे हैं।

ये वही डॉल्फ़िन है जिसे भारत सरकार ने राष्ट्रीय जलीय जीव का दर्जा दिया है।

गंगेटिक डॉल्फ़िन: कौन है ये अनोखी प्रजाति?

वैज्ञानिक नाम: Platanista gangetica gangetica

परिवार: सुसु प्रजाति

विलुप्ति स्तर: लुप्तप्राय (Endangered – IUCN Red List)

अनुमानित जनसंख्या: 3,500 से भी कम

यह डॉल्फ़िन समुद्री नहीं, बल्कि पूरी तरह मीठे पानी में रहने वाली दुर्लभ प्रजाति है। यह लगभग अंधी होती है और इकोलोकेशन तकनीक से अपने शिकार को पहचानती है। यह गंगा, ब्रह्मपुत्र और उनके उपनदियों में सीमित है।

लेकिन अब, यह प्रजाति उसी संकट का सामना कर रही है जिसने चीन की यांग्त्से डॉल्फ़िन (Baiji) को इस धरती से मिटा दिया।

वैज्ञानिक चेतावनी: 39 ज़हर और टूटती प्रतिरोधकता

हाल ही में वाइल्डलाइफ़ इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया और अन्य शोध संस्थानों ने एक गहन अध्ययन में गंगा नदी के कई हिस्सों से पानी और डॉल्फ़िन के ऊतकों के नमूने लिए।

इन नमूनों में पाए गए 39 ऐसे रसायन जो शरीर के हार्मोनल तंत्र यानी एंडोक्राइन सिस्टम को बिगाड़ते हैं।

ये रसायन कहां से आ रहे हैं?

1. औद्योगिक अपशिष्ट: फैक्ट्रियों से निकलने वाले रंग, धातु, और अन्य रसायन।

2. कृषि रसायन: कीटनाशक, रासायनिक खाद और उर्वरक।

3. घरेलू गंदगी: अपशिष्ट जल, साबुन, शैम्पू, दवाइयों का अवशेष।

प्रभाव क्या हैं?

प्रजनन क्षमता में गिरावट

बच्चों की मृत्यु दर में वृद्धि

प्रतिरक्षा प्रणाली पर दुष्प्रभाव

जनसंख्या का सिकुड़ता ग्राफ

गंगा में डॉल्फ़िन के अस्तित्व को मारने वाली पाँच ताकतें

1. रासायनिक प्रदूषण: धीमा ज़हर

गंगा के कई हिस्से ‘डेड ज़ोन’ बन चुके हैं—जहां ऑक्सीजन की मात्रा न के बराबर है। इन क्षेत्रों में जहरीले रसायन न केवल डॉल्फ़िन को प्रभावित करते हैं बल्कि उसकी खाद्य श्रृंखला को भी तबाह कर देते हैं।

2. अवैध शिकार और व्यापार

कुछ मछुआरे आज भी गंगेटिक डॉल्फ़िन के तेल का उपयोग मछली पकड़ने में चारा बनाने के लिए करते हैं। यह प्रथा प्रतिबंधित है लेकिन नदी किनारे के ग्रामीण इलाकों में चोरी-छिपे जारी है।

3. जल परियोजनाएँ: बाधित प्रवास

बांध, बैराज और जलविद्युत परियोजनाएं डॉल्फ़िन के जीवन क्षेत्र को टुकड़ों में बाँट रही हैं। इससे उनका प्रवास बाधित होता है और वे अलग-थलग समूहों में बंट जाती हैं—जिससे आनुवंशिक विविधता खत्म होती है।

4. प्लास्टिक और माइक्रोप्लास्टिक संकट

गंगा के पानी में बढ़ती प्लास्टिक सामग्री अब एक नया संकट बन गई है। डॉल्फ़िन गलती से प्लास्टिक को निगल जाती हैं, जिससे पेट की बीमारियां और मृत्यु होती है।

5. ध्वनि प्रदूषण और नावें

इंजन वाली नावों की आवाज़ें इकोलोकेशन करने वाली डॉल्फ़िन्स के लिए खतरनाक होती हैं। ये आवाजें उनकी “सुनने” की क्षमता को प्रभावित करती हैं जिससे वे अपने शिकार को ढूंढ नहीं पातीं और दुर्घटनाओं का शिकार होती हैं।

गंगा डॉल्फ़िन की जान पर खतरा: क्या 39 ज़हरीले दुश्मन छीन लेंगे इसका अस्तित्व?
गंगा डॉल्फ़िन की जान पर खतरा: क्या 39 ज़हरीले दुश्मन छीन लेंगे इसका अस्तित्व?
गंगा की डॉल्फ़िन पर रासायनिक ज़हर का वैज्ञानिक विश्लेषण

1. एंडोक्राइन डिसरप्टर्स: अदृश्य दुश्मन

गंगा में मिले 39 रसायन जिनका उल्लेख वैज्ञानिकों ने किया, उनमें से अधिकांश Endocrine Disrupting Chemicals (EDCs) हैं। ये ऐसे रसायन हैं जो डॉल्फ़िन के शरीर में हार्मोनल संतुलन को बिगाड़ते हैं।

प्रमुख रसायन

फथैलेट्स (Phthalates) – प्लास्टिक से निकलते हैं, प्रजनन क्षमता को प्रभावित करते हैं।

बिसफेनॉल A (BPA) – बोतल और कंटेनरों से आता है, भ्रूण विकास को नुकसान।

पेराक्लोरेट (Perchlorate) – जलशोधन संयंत्रों से आता है, थायरॉयड पर असर डालता है।

PCBs (Polychlorinated Biphenyls) – पुराने इलेक्ट्रिकल उपकरणों से रिसता है, कैंसर जनक है।

इन रसायनों का असर डॉल्फ़िन की बायोलॉजी पर इतना गहरा है कि यह धीरे-धीरे उसकी अगली पीढ़ी को ही खत्म कर रहा है।

ज्ञानिक दृष्टिकोण: डॉल्फ़िन के ऊतकों में ज़हर की पुष्टि

2023-24 के दौरान, WII (Wildlife Institute of India) और National Centre for Sustainable Coastal Management ने मिलकर गंगा से 20 से अधिक डॉल्फ़िन के ऊतकों (tissues), ब्लड सैंपल और फेफड़ों की जांच की। प्रमुख निष्कर्ष:

90% डॉल्फ़िन के नमूनों में भारी धातुएँ (Lead, Mercury, Cadmium) पाई गईं।

70% में एंडोक्राइन डिसरप्टर रसायन का स्तर अधिक पाया गया।

40% में प्रजनन संबंधी समस्याओं के लक्षण मिले।

इन शोधों से स्पष्ट होता है कि यदि यही स्थिति रही, तो डॉल्फ़िन की नई पीढ़ी का जन्म ही नहीं हो पाएगा।

गंगा के वो हिस्से जहां संकट सबसे गहरा है

1. कानपुर – उन्नाव सेक्शन: भारी चमड़ा उद्योग से निकलने वाला क्रोमियम।

2. वाराणसी – मिर्ज़ापुर क्षेत्र: धार्मिक और घरेलू कचरे का ऊंचा स्तर।

3. पटना – भागलपुर: शहरी अपशिष्ट और जल परियोजनाओं के कारण डॉल्फ़िन की आवाजाही बाधित।

4. फरक्का बैराज (पश्चिम बंगाल): बैराज की वजह से प्रवास अवरुद्ध और जल स्तर प्रभावित।

वर्तमान प्रयासों की समीक्षा: कितनी दूर तक पहुँचे?

1. नमामि गंगे परियोजना

केंद्र सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना में गंगा की सफाई का लक्ष्य है।

इसके तहत 20,000 करोड़ रुपये की लागत से शुद्धिकरण संयंत्र और नालों का प्रबंधन किया गया।

प्रगति:

कई स्थानों पर शुद्धिकरण संयंत्र चालू हुए हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य अधूरा है।

2. प्रोजेक्ट डॉल्फ़िन

राष्ट्रीय मिशन जो डॉल्फ़िन के आवास, स्वास्थ्य और जनसंख्या वृद्धि पर केंद्रित है।

लेकिन 2024 की रिपोर्ट कहती है: “इस योजना में भूमि-स्तर की कार्यवाही धीमी है और बहुत से कार्य अभी योजनाओं में ही अटके हुए हैं।”

डॉल्फ़िन के गायब होने के दीर्घकालिक प्रभाव

1. गंगा पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ जाएगा

डॉल्फ़िन को Indicator Species कहा जाता है — मतलब जिस जल में यह रहती है, वह स्वच्छ और संतुलित होता है। इसके विलुप्त होने का अर्थ होगा:

पानी में ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाएगा,

मछलियों की कई प्रजातियाँ खत्म हो जाएँगी,

जलीय जैव विविधता बिखर जाएगी,

गंगा जल का प्राकृतिक शुद्धिकरण समाप्त हो जाएगा।

2. मानव स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव

गंगा में जब डॉल्फ़िन जैसी प्रजातियाँ खत्म होती हैं, तो पानी में जहरीले तत्त्वों का संचय बढ़ता है। इससे:

गंगा जल का पीना ख़तरनाक होगा,

कैंसर जैसी बीमारियाँ बढ़ेंगी,

त्वचा, आँतों और बच्चों के मस्तिष्क पर असर होगा।

2025 का नवीनतम अपडेट: क्या बदला?

1. वैज्ञानिकों की नई रिपोर्ट (जनवरी 2025)

2024 के अंत तक डॉल्फ़िन की कुल संख्या गंगा में लगभग 3,200 आंकी गई।

यह 2015 के मुकाबले 10% गिरावट दर्शाता है।

2. नई चेतावनी: जहरीले रसायनों का स्तर और बढ़ा

एनवायरनमेंटल साइंस जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार:

PCBs और माइक्रोप्लास्टिक के स्तर में 15% की बढ़ोतरी।

बच्चों में जन्मजात विकृति (Congenital Disorders) से जोड़ा गया है।

3. सुप्रीम कोर्ट की निगरानी

जनवरी 2025 में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्यों को नोटिस जारी किया कि:

“गंगा डॉल्फ़िन की रक्षा केवल योजना तक सीमित न रहे, ज़मीनी स्तर पर ठोस कार्य हो।”

गंगा डॉल्फ़िन पर आधारित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

Q1: गंगा डॉल्फ़िन क्या है और यह कहाँ पाई जाती है?

उत्तर:  गंगा डॉल्फ़िन (Platanista gangetica) भारत की राष्ट्रीय जलीय जीव है। यह मुख्य रूप से भारत, नेपाल और बांग्लादेश की गंगा, ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियों में पाई जाती है। भारत में यह गंगा, यमुना, सोन, कोसी, घाघरा, गंडक जैसी नदियों में पाई जाती है।

Q2: गंगा डॉल्फ़िन की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

उत्तर:

यह अंधी होती है (नेत्रों से नहीं देख सकती)।

ध्वनि तरंगों (Echolocation) से शिकार और दिशा तय करती है।

एक बार में 1 बच्चे को जन्म देती है।

यह मीठे पानी की डॉल्फ़िन है।

Q3: गंगा डॉल्फ़िन को संकट क्यों है?

उत्तर:

नदी प्रदूषण (कीटनाशक, जहरीले रसायन)

अवैध शिकार और मछली पकड़ने के जाल

बांध और बैराजों के कारण प्रवास में रुकावट

माइक्रोप्लास्टिक और औद्योगिक अपशिष्ट

जल परियोजनाओं से आवास नष्ट होना

Q4: गंगा डॉल्फ़िन की वर्तमान स्थिति क्या है? (2025 तक का नवीनतम आंकड़ा)

उत्तर:  2025 की वैज्ञानिक रिपोर्ट के अनुसार, गंगा नदी में गंगा डॉल्फ़िन की अनुमानित संख्या लगभग 3,200 है। यह 2015 की तुलना में लगभग 10% की गिरावट दर्शाता है।

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गंगा डॉल्फ़िन की जान पर खतरा: क्या 39 ज़हरीले दुश्मन छीन लेंगे इसका अस्तित्व?

Q5: गंगा डॉल्फ़िन के विलुप्त होने से क्या प्रभाव होंगे?

उत्तर:

गंगा का पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ जाएगा।

पानी की गुणवत्ता और ऑक्सीजन स्तर गिरेगा।

अन्य जलीय जीवों की प्रजातियाँ संकट में आ जाएँगी।

मानव स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ेगा।

Q6: सरकार ने इसके संरक्षण के लिए क्या कदम उठाए हैं?

उत्तर:

Vikramshila Gangetic Dolphin Sanctuary (बिहार) की स्थापना

Project Dolphin की शुरुआत (2020)

गंगा संरक्षण योजनाएँ: नमामि गंगे

स्थानीय लोगों को ‘गंगा मित्र’ के रूप में प्रशिक्षित करना

Q7: कौन-कौन से रसायन डॉल्फ़िन को ज़हर दे रहे हैं?

उत्तर:

वैज्ञानिकों ने 39 घातक रसायन और धातुओं की पहचान की है, जैसे:

PCBs (Polychlorinated Biphenyls)

माइक्रोप्लास्टिक

Mercury, Cadmium, Lead

DDT और अन्य कीटनाशक अवशेष

Q8: क्या गंगा डॉल्फ़िन अंधी होती है?

उत्तर:  हाँ। गंगा डॉल्फ़िन की आँखें बहुत छोटी होती हैं और यह देख नहीं सकती। यह अपनी दिशा और शिकार को पकड़ने के लिए Echolocation का इस्तेमाल करती है (ध्वनि तरंगें भेजकर वस्तुओं की स्थिति समझती है)।

Q9: डॉल्फ़िन की उम्र कितनी होती है?

उत्तर:  गंगा डॉल्फ़िन औसतन 20 से 30 वर्षों तक जीवित रह सकती है, यदि उसका प्राकृतिक आवास सुरक्षित हो।

Q10: हम आम नागरिक क्या कर सकते हैं?

उत्तर:

गंगा और उसकी सहायक नदियों में कचरा, प्लास्टिक, पूजा सामग्री न डालें।

स्थानीय स्तर पर जागरूकता अभियान में भाग लें।

गंगा सफाई कार्यक्रमों में स्वयंसेवक बनें।

डॉल्फ़िन संरक्षण के लिए कार्यरत NGOs से जुड़ें।

बच्चों को जैव विविधता की शिक्षा दें।

निष्कर्ष: गंगा डॉल्फ़िन का जीवन – हमारे पर्यावरण का आईना

गंगा डॉल्फ़िन केवल एक जलीय जीव नहीं है, यह गंगा नदी की सेहत का प्रतीक है, हमारे पारिस्थितिक तंत्र का प्रहरी है, और भारत की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग भी है।

लेकिन आज यह राष्ट्रीय जलीय जीव 39 से अधिक घातक रसायनों और मानवीय लापरवाहियों के कारण धीरे-धीरे विलुप्ति की ओर बढ़ रहा है।

अगर यांग्त्से नदी की डॉल्फ़िन एक दिन अचानक से इतिहास बन सकती है, तो हमें यह मानने में देर नहीं करनी चाहिए कि गंगा की डॉल्फ़िन भी उसी राह पर चल पड़ी है।

यह केवल गंगा डॉल्फ़िन की नहीं, बल्कि एक पूरी नदी की चीख है, जिसे हम अनसुना नहीं कर सकते।

आज ज़रूरत है एकजुट होकर, विज्ञान, समाज और सरकार के साझा प्रयासों से इस प्रजाति को बचाने की। यदि हमने अभी कदम नहीं उठाए, तो आने वाली पीढ़ियाँ केवल किताबों और तस्वीरों में ‘गंगा की डॉल्फ़िन’ को देख पाएँगी।

गंगा को बचाना है – तो उसकी आत्मा डॉल्फ़िन को बचाना होगा।

प्रकृति की यह पुकार अब अनसुनी न हो।


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Hello! Welcome To About me My name is Sanjeev Kumar Sanya. I have completed my BCA and MCA degrees in education. My keen interest in technology and the digital world inspired me to start this website, “Aajvani.com.”

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