गन्ने का FRP ₹355: जानिए कैसे सरकार का यह कदम बदल देगा किसानी की तस्वीर!
भूमिका
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Toggleभारत एक कृषि प्रधान देश है और गन्ना हमारे सबसे प्रमुख फसलों में से एक है। यह न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, बल्कि लाखों किसानों की आजीविका इससे जुड़ी हुई है।
ऐसे में जब सरकार गन्ने के लिए उचित और लाभकारी मूल्य (Fair and Remunerative Price – FRP) बढ़ाने का निर्णय लेती है, तो उसका असर व्यापक होता है—किसानों की आमदनी, चीनी उद्योग की लागत और उपभोक्ता बाजार तक।
2025-26 सत्र के लिए सरकार ने FRP में 4.41% की वृद्धि करते हुए इसे ₹340 से बढ़ाकर ₹355 प्रति क्विंटल कर दिया है। आइए इस फैसले के पीछे की पूरी कहानी, इसके प्रभाव, कारण, और इसके अर्थशास्त्र को समझें।

FRP क्या होता है और क्यों ज़रूरी है?
FRP (Fair and Remunerative Price) वह न्यूनतम मूल्य है जो चीनी मिलों को किसानों को उनके गन्ने के लिए देना होता है। यह मूल्य कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों पर आधारित होता है।
इसका निर्धारण गन्ने की खेती की लागत, किसानों को लाभ, चीनी मिलों की स्थिति, और उपभोक्ताओं पर संभावित असर को देखते हुए किया जाता है।
FRP को लागू करना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि:
यह किसानों की आमदनी की सुरक्षा करता है।
यह बाजार में न्यूनतम भुगतान सुनिश्चित करता है—मिलों को इससे कम नहीं देना होता।
यह पूरे गन्ना मूल्य निर्धारण ढांचे का आधार होता है।
यह राज्यों को SAP (State Advised Price) तय करने के लिए रूढ़ ढांचा देता है।
2025-26 के लिए क्या बदला है?
सरकार ने 2025-26 के लिए FRP ₹355 प्रति क्विंटल कर दिया है, जो कि 10.25% की रिकवरी पर आधारित है। 2024-25 में यही FRP ₹340 था। यह ₹15 यानी 4.41% की वृद्धि है। इसका मतलब है कि अगर किसी किसान के गन्ने में रिकवरी ज़्यादा है, तो उसे और अधिक दाम मिल सकते हैं।
रिकवरी आधारित मूल्य का निर्धारण:
यदि रिकवरी 10.25% है: ₹355 प्रति क्विंटल।
अगर रिकवरी 0.1% अधिक है: अतिरिक्त ₹3.46 प्रति क्विंटल।
अगर रिकवरी 0.1% कम है: ₹3.46 की कटौती।
न्यूनतम भुगतान 9.5% रिकवरी पर: ₹329.05 प्रति क्विंटल।
इस निर्णय का महत्व क्यों है?
1. किसानों की आर्थिक सुरक्षा
गन्ना किसानों को अक्सर भुगतान में देरी और उचित मूल्य न मिलने की समस्या होती है। FRP का बढ़ना उनके लिए राहत लाता है, क्योंकि:
यह न्यूनतम गारंटी मूल्य है।
इसमें लागत के ऊपर 105.2% तक का लाभ जोड़ा गया है।
सरकार ने इस बार A2+FL लागत को ₹173 प्रति क्विंटल माना है। यानी कुल FRP उस लागत से लगभग दोगुना है।
2. चीनी उद्योग पर असर
हालांकि यह फैसला किसानों के हित में है, लेकिन इससे चीनी मिलों की लागत बढ़ जाती है। चीनी मिलें अब गन्ने के लिए अधिक कीमत चुकाएँगी, जिससे:
उनकी लागत बढ़ेगी।
उन्हें एथेनॉल, बिजली उत्पादन आदि जैसे वैकल्पिक स्रोतों की ओर देखना होगा।
संभवतः सरकार से MSP (Minimum Selling Price) में वृद्धि की मांग करेंगे।
सरकारी दृष्टिकोण
सरकार का कहना है कि यह निर्णय “किसान हित में ऐतिहासिक कदम” है। गन्ना क्षेत्र में 5 करोड़ से अधिक किसान परिवार और 5 लाख से अधिक श्रमिक सीधे या परोक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। यह मूल्य निर्धारण उन्हें स्थायित्व और सुरक्षा प्रदान करेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस निर्णय को “गरीबों और किसानों के लिए समर्पित सरकार” की नीति का उदाहरण बताया है।
राज्यों की भूमिका: SAP और FRP
कुछ राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा—FRP के ऊपर राज्य सलाहित मूल्य (State Advised Price – SAP) तय करते हैं। यह मूल्य राज्य सरकार किसानों को देती है, और यह FRP से अधिक होता है।
उत्तर प्रदेश का उदाहरण:
FRP: ₹355 (2025-26)
SAP (2024-25): ₹340 से ₹360 तक (गुणवत्ता के अनुसार)
संभावना है कि 2025-26 में SAP को भी FRP के साथ बढ़ाया जाए।
गन्ना भुगतान और बकाया समस्या
किसानों की सबसे बड़ी चिंता भुगतान में देरी होती है। FRP कानूनन बाध्यकारी है, परन्तु व्यवहार में कई बार:
चीनी मिलें आर्थिक तंगी के चलते भुगतान नहीं कर पातीं।
किसानों को महीनों तक बकाया राशि का इंतज़ार करना पड़ता है।
सरकार को चाहिए कि:
भुगतान प्रणाली को डिजिटाइज करे।
ब्याज सहित देरी पर सख्ती से वसूली करे।
मिलों को एथेनॉल उत्पादन, विद्युत संयंत्रों आदि के ज़रिए लाभ दिलवाए।
सामाजिक प्रभाव: ग्रामीण भारत को मजबूती
(क) ग्रामीण रोजगार और स्थायित्व
गन्ना उत्पादन न केवल किसानों को आमदनी देता है बल्कि इससे जुड़े अन्य क्षेत्र जैसे:
खेत मजदूर
ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर
कटाई मशीन चलाने वाले
स्थानीय व्यापार
सभी को प्रत्यक्ष और परोक्ष रोजगार मिलता है। FRP में वृद्धि इन सभी लोगों को बेहतर मुआवजा दिलवाने में सहायक बनती है।
(ख) किसानों की प्रतिष्ठा और आत्मनिर्भरता
जब सरकार गन्ने के मूल्य को लागत से दोगुना तय करती है, तो किसान को यह संदेश जाता है कि उसकी मेहनत का सम्मान हो रहा है। इससे:
किसान की आत्मनिर्भरता बढ़ती है।
वह नवाचार और निवेश के लिए प्रेरित होता है।
सामाजिक रूप से उसका स्थान मजबूत होता है।
आर्थिक प्रभाव: भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर
(क) ग्रामीण आय में वृद्धि
FRP में वृद्धि का सीधा फायदा गांव की क्रय शक्ति बढ़ाने में होता है। जब किसानों के हाथ में ज्यादा पैसा होता है, तो वे:
अपने बच्चों की शिक्षा पर खर्च करते हैं।
कृषि उपकरण खरीदते हैं।
स्थानीय बाजार में वस्तुएं खरीदते हैं।
इससे स्थानीय व्यापार और माइक्रो इकोनॉमी में जान आती है।
(ख) सरकारी खर्च में संभावित वृद्धि
हालांकि FRP सीधे तौर पर केंद्र सरकार द्वारा नहीं चुकाया जाता, परंतु जब मिलें भुगतान में चूक करती हैं, तब राज्यों पर:
ब्याज सब्सिडी देना पड़ता है।
मिलों को सॉफ्ट लोन देना पड़ता है।
भुगतान निगरानी तंत्र बनाना पड़ता है।
इसलिए एक मजबूत नियामक प्रणाली की आवश्यकता है।
चीनी उद्योग की चुनौतियाँ और समाधान
(क) लागत का दबाव
चीनी मिलों को अब ₹355 प्रति क्विंटल की दर से भुगतान करना होगा, जो उनकी लागत को प्रभावित करेगा। यदि:
चीनी की बिक्री दर स्थिर रहती है,
एथेनॉल का मूल्य कम रहता है,
या निर्यात घटता है,
तो मिलें आर्थिक दबाव में आ सकती हैं।
(ख) समाधान क्या हैं?
1. एथेनॉल ब्लेंडिंग को बढ़ावा देना
भारत का लक्ष्य है कि पेट्रोल में 20% तक एथेनॉल मिलाया जाए। इससे:
गन्ने की खपत बढ़ेगी।
मिलों को वैकल्पिक आय स्रोत मिलेगा।
2. चीनी MSP तय करना
जैसे गन्ने का FRP तय होता है, वैसे ही चीनी की न्यूनतम बिक्री कीमत तय की जाए ताकि मिलों को घाटा न हो।
3. डिजिटल भुगतान प्रणाली
किसानों को समय पर भुगतान मिले, इसके लिए एक ऑनलाइन निगरानी पोर्टल बनाया जाना चाहिए।
पर्यावरणीय पहलू: गन्ना बनाम जल संकट
(क) गन्ना और पानी की खपत
गन्ना एक जल-संवेदनशील फसल है। यह धान के बाद सबसे अधिक पानी मांगता है। इसलिए:
महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जल संकट के लिए गन्ना को आंशिक रूप से जिम्मेदार ठहराया जाता है।
(ख) समाधान क्या हैं?
1. माइक्रो इरिगेशन (टपक सिंचाई) को बढ़ावा देना
इससे जल की खपत 30-40% तक घटाई जा सकती है।
2. गन्ने की ऐसी किस्में विकसित करना
जो कम पानी में अधिक उपज दें—ICAR और IISR ऐसे कई अनुसंधान कर रहे हैं।
अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में भारत का स्थान
(क) विश्व का सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक
भारत ब्राजील के साथ दुनिया का सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक देश है। चीनी उत्पादन, एथेनॉल निर्यात और जैव-ईंधन नीति में भारत अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
किसान संगठनों की प्रतिक्रियाएँ
(क) स्वीकृति और सराहना
कई संगठनों जैसे भारतीय किसान यूनियन ने FRP में वृद्धि को एक अच्छा कदम बताया है।
> “₹355 का FRP स्वागत योग्य है लेकिन इसे तभी प्रभावी माना जाए जब 14 दिन में भुगतान हो और डिफॉल्टर मिलों पर सख्त कार्यवाही हो।”
(ख) माँगें अभी भी शेष
कुछ संगठन चाहते हैं कि:
FRP को कानूनी रूप से MSP के समतुल्य किया जाए।
मिलों को सरकार से ब्याज रहित ऋण मिले ताकि वे समय पर भुगतान कर सकें।
नीति-निर्माताओं के लिए सुझाव
1. संतुलित मूल्य निर्धारण
मूल्य ऐसा हो जो किसानों को लाभ दे, पर मिलों के लिए टिकाऊ भी हो।
2. रियल टाइम भुगतान ट्रैकिंग सिस्टम
पोर्टल बनाया जाए जहां किसान अपने भुगतान की स्थिति देख सकें।
3. गन्ना क्षेत्रीय विविधता
दक्षिण भारत और उत्तर भारत की स्थितियाँ अलग हैं—इसलिए क्षेत्रीय FRP पर विचार किया जाए।

FRP का निर्धारण: कैसे तय होता है मूल्य?
(क) CACP की भूमिका
गन्ने का FRP तय करने में केंद्र सरकार को सलाह देने वाली संस्था है – CACP (Commission for Agricultural Costs and Prices)। यह आयोग निम्नलिखित बातों का अध्ययन करता है:
A2 + FL लागत: यानी फसल की सीधी लागत + पारिवारिक श्रम
कृषि क्षेत्र का मूल्यवृद्धि रुझान
चीनी मिलों की भुगतान क्षमता
गन्ने के मुकाबले अन्य फसलों की लाभप्रदता
CACP की सिफारिशों के बाद ही केंद्र सरकार FRP की घोषणा करती है।
(ख) लागत का 1.5 गुना नियम
2018 में सरकार ने यह नीति अपनाई कि फसलों का MSP उनकी A2+FL लागत से कम से कम 50% अधिक होना चाहिए। गन्ने के लिए भी यही सिद्धांत लागू किया गया है।
FRP बनाम राज्य सलाह मूल्य (SAP)
(क) SAP क्या है?
कुछ राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा, FRP से ऊपर खुद का राज्य सलाह मूल्य (State Advised Price) तय करते हैं। यह मूल्य:
अधिकतर किसानों को लाभ देता है।
लेकिन चीनी मिलों पर आर्थिक दबाव बढ़ाता है।
भुगतान का समय और कानूनी ढांचा
(क) 14 दिन की अनिवार्यता
Sugarcane (Control) Order, 1966 के अनुसार:
चीनी मिल को किसान को 14 दिन के भीतर भुगतान करना अनिवार्य है।
यदि ऐसा न हो, तो उस पर 15% सालाना ब्याज देना पड़ता है।
(ख) समय पर भुगतान: क्यों आवश्यक?
किसानों को अगली फसल की बुवाई करनी होती है।
समय पर भुगतान न मिलने से वे साहूकारों से कर्ज लेते हैं।
(ग) डिजिटल निगरानी
अब केंद्र और राज्य सरकारें ई-गन्ना पोर्टल और SMS आधारित प्रणाली चला रही हैं ताकि किसान को भुगतान की स्थिति की जानकारी तुरंत मिले।
चीनी उद्योग के लिए अवसर और रणनीति
(क) एथेनॉल अर्थव्यवस्था का विस्तार
गन्ना आधारित उद्योग को टिकाऊ बनाने का सबसे बड़ा उपाय है – एथेनॉल उत्पादन। इसके लिए:
Distillery Units की स्थापना की जा रही है।
सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए सब्सिडी दे रही है।
पेट्रोल में 20% एथेनॉल मिश्रण (E20) लक्ष्य निर्धारित किया गया है (2025 तक)।
(ख) निर्यात नीति का लचीलापन
भारत विश्व का प्रमुख चीनी निर्यातक बनता जा रहा है। लेकिन घरेलू मांग और मूल्य स्थिरता बनाए रखने के लिए:
सरकार निर्यात पर कोटा प्रणाली लागू करती है।
शून्य या न्यूनतम निर्यात शुल्क लागू किया जाता है।
यह रणनीति मिलों की आमदनी को स्थिर करती है।
गन्ना खेती में नवाचार और तकनीक
(क) उच्च उत्पादकता वाली किस्में
ICAR और कृषि विश्वविद्यालयों ने कुछ ऐसी किस्में विकसित की हैं जो:
कम पानी में अधिक उपज देती हैं,
रोग प्रतिरोधी हैं,
और रस प्रतिशत अधिक है, जिससे मिल को अधिक चीनी मिलती है।
(ख) ड्रिप सिंचाई
सरकार PMKSY (प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना) के तहत ड्रिप सिंचाई को सब्सिडी दे रही है। इससे:
जल की खपत कम होती है,
और उत्पादन में 20-25% तक वृद्धि होती है।
(ग) सैटेलाइट और मोबाइल ऐप निगरानी
कुछ राज्यों में सैटेलाइट से गन्ने की स्थिति पर नजर रखी जा रही है।
किसान मोबाइल ऐप के ज़रिए खेत का सर्वे और पर्ची कटवाने जैसी सेवाएँ पा रहे हैं।
कृषि सुधार और चीनी उद्योग
(क) वन नेशन, वन मार्केट
सरकार चाहती है कि कृषि उत्पादों के लिए राज्य सीमाएँ बाधा न बनें। चीनी और गन्ने को भी इस नीति के दायरे में लाया जाए तो:
किसान को अधिक विकल्प मिलेंगे,
और मिलें दूर-दराज़ क्षेत्रों से गन्ना खरीद पाएंगी।
(ख) को-ऑपरेटिव मिलों को सशक्त करना
देश में कई सहकारी (cooperative) चीनी मिलें हैं। उन्हें:
उन्नत मशीनरी,
ई-गवर्नेंस,
और कार्यकुशल नेतृत्व की ज़रूरत है।
सरकार ऐसे मिलों को विशेष सहायता योजनाओं से सशक्त कर रही है।
भविष्य की दिशा: संतुलन और स्थिरता
(क) नीति में पारदर्शिता
FRP और SAP के निर्धारण में सभी हितधारकों की राय शामिल की जानी चाहिए। इससे:
नीति में पारदर्शिता आएगी,
और किसान–मिल–सरकार के बीच भरोसा बढ़ेगा।
(ख) गन्ना आधारित जैव-उद्योगों का विकास
गन्ने से केवल चीनी ही नहीं, बल्कि बायो-प्लास्टिक, बायो-CNG, बायो-फर्टिलाइज़र और बायो-पेपर जैसे टिकाऊ उत्पाद भी बनाए जा सकते हैं।
इससे:
रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे,
पर्यावरण को लाभ होगा,
और गन्ना मूल्य चक्र स्थिर रहेगा।
निष्कर्ष:
₹355 प्रति क्विंटल का FRP न केवल एक आर्थिक सहायता है, बल्कि यह एक राजनीतिक और सामाजिक प्रतिबद्धता का भी प्रतीक है। यह निर्णय:
किसानों को सम्मान देता है,
चीनी उद्योग को जिम्मेदार बनाता है,
और नीति-निर्माताओं को एक स्थिर, टिकाऊ, और समावेशी कृषि मॉडल की ओर प्रेरित करता है।
यदि इसे ईमानदारी, तकनीक, और पारदर्शिता के साथ लागू किया जाए, तो यह न केवल गन्ना किसानों का भला करेगा, बल्कि भारत की खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा में भी क्रांतिकारी परिवर्तन लाएगा।
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