गोनचा उत्सव क्यों है खास? बस्तर की संस्कृति, श्रद्धा और समरसता की गाथा!
भूमिका: गोनचा सिर्फ एक पर्व नहीं, एक जीवंत परंपरा है
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Toggleभारत में हर क्षेत्र की अपनी संस्कृति है, लेकिन छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में मनाया जाने वाला गोनचा उत्सव एक ऐसा उत्सव है, जो केवल धार्मिक भावना नहीं बल्कि आदिवासी आत्मा, सामाजिक एकता, और संस्कृति की जड़ों से भी जुड़ा हुआ है। यह कोई एक दिन का त्यौहार नहीं बल्कि पूरे 27 दिनों तक चलने वाला एक ऐसा आयोजन है, जो श्रद्धालुओं को रथों की खड़खड़ाहट, बाँस की ‘तुपकी’ की धमक और लोकगीतों की गूंज के साथ भाव-विभोर कर देता है।

गोनचा उत्सव का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
गोनचा शब्द की उत्पत्ति ओडिशा के “गुंडिचा” से हुई मानी जाती है, जो कि जगन्नाथ रथयात्रा से जुड़ा पर्व है।
राजा पुरुषोत्तम देव और बस्तर में जगन्नाथ संस्कृति का आगमन
14वीं शताब्दी के बस्तर नरेश राजा पुरुषोत्तम देव पुरी यात्रा के दौरान जगन्नाथ भगवान से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उनके तीनों स्वरूप – जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को बस्तर लाकर एक विशिष्ट परंपरा की शुरुआत की।
इससे गोनचा पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान न रहकर बस्तर के सामूहिक आदिवासी जीवन में घुल-मिल गया और जनपदीय उत्सव बन गया।
आयोजन की समयसीमा और परंपराएँ
27 दिवसीय धार्मिक और सांस्कृतिक यात्रा
गोनचा उत्सव की शुरुआत अषाढ़ शुक्ल पक्ष की तृतीया से होती है और देवशयनी एकादशी तक चलता है। यह पर्व वर्षा ऋतु की शुरुआत का प्रतीक भी है।
मुख्य चरण इस प्रकार हैं:
1. चंदन जात्रा – पवित्र स्नान और मूर्ति शुद्धिकरण
2. नेत्रोत्सव – देवताओं की दृष्टि जागरण
3. रथ यात्रा – जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र की भव्य शोभायात्रा
4. हेरा पंचमी – प्रतीकात्मक भावनात्मक कथा
5. बाहुड़ा यात्रा – भगवान का मंदिर में पुनः आगमन
6. देवशयनी एकादशी – विश्राम और समापन
अद्भुत धार्मिक अनुष्ठान और विधियाँ
1. चंदन जात्रा
तीनों देवताओं को इंद्रावती नदी के पवित्र जल से स्नान कराकर चंदन का लेप लगाया जाता है। यह स्वास्थ्य, शुद्धि और पवित्रता का प्रतीक है।
2. नेत्रोत्सव
इस दिन देवताओं की आँखों को फिर से अंकित किया जाता है, जिससे यह दर्शाया जाता है कि अब वे अपने भक्तों को देख और आशीर्वाद दे सकते हैं।
3. रथयात्रा और तुपकी सलामी
तीन लकड़ी के सजे-धजे रथों में देवताओं को बस्तर नगर में घुमाया जाता है।
4. तुपकी सलामी
बांस की बनी तुपकी (बंदूक जैसी संरचना) से ध्वनि करके सलामी दी जाती है। यह न केवल उत्साह का प्रतीक है, बल्कि समुदाय की सामूहिक एकता और सैन्य शैली में देव सुरक्षा को भी दर्शाता है।
गोनचा का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
1. आदिवासी सहभागिता
यह पर्व केवल ब्राह्मणों और पुजारियों तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे बस्तर क्षेत्र के मुरिया, गोंड, हल्बा, धुरवा आदि जनजातियाँ इसमें भाग लेती हैं।
2. ‘मीत’ परंपरा (लोक मैत्री की रस्म)
गोनचा के दौरान दो व्यक्ति ‘मीत’ बनते हैं — एक तरह की जीवनभर की मित्रता, जो समाज में शांति और भाईचारे का उदाहरण है।
3. संगीत और लोक नृत्य
परंपरागत वाद्य जैसे नगार, मादल, बाँसुरी के साथ नृत्य जैसे पंथी, रेला, सुआ इस पर्व का हिस्सा हैं
भोजन और प्रसाद परंपरा
गोनचा उत्सव में चढ़ाए जाने वाले भोग भी विशिष्ट होते हैं:
लाई (खिलौना मिठाई)
आम की चटनी
धान की खीर
मड़िया (लोकल पेय)
यह सब आस्था के साथ भक्तों में बांटा जाता है।
पर्यटन दृष्टिकोण: गोनचा उत्सव को देखना क्यों ज़रूरी है?
कैसे पहुँचे
नजदीकी शहर: जगदलपुर
रेल और रोड से अच्छी कनेक्टिविटी
स्थानीय होटल, धर्मशाला और आदिवासी रिसॉर्ट्स उपलब्ध
क्या देखें
रथयात्रा की तैयारियाँ
तुपकी प्रतियोगिता
मीत रस्म
पारंपरिक नृत्य और गोंड चित्रकारी
गोनचा उत्सव: जन-जन की श्रद्धा का पर्व
गोनचा का आयोजन केवल मंदिर की सीमाओं तक सीमित नहीं होता — यह एक ऐसा अवसर है जब पूरा बस्तर जिला एक उत्सवधर्मी ऊर्जा से भर जाता है।
लोगों के चेहरों पर श्रद्धा, हाथों में तुपकी, कंधों पर परंपरा, और मन में एकता का भाव होता है।
जनसहभागिता का उदाहरण
गाँवों से पैदल चलकर रथयात्रा देखने आने वाले श्रद्धालु
महिलाएं पारंपरिक पोशाक में लोक गीत गाती हुई
बच्चे, युवा, वृद्ध सभी की सामूहिक भागीदारी
दलों द्वारा रथ खींचना बिना जाति, धर्म, वर्ग का भेदभाव
यह पर्व ‘हम’ की भावना को पुष्ट करता है, जो आज के समय में सबसे ज़रूरी है।
लोककला और शिल्प से जुड़ाव
गोनचा उत्सव सिर्फ धार्मिकता नहीं, बल्कि स्थानीय कारीगरी और लोकशिल्प का भी उत्सव है।
लोक कला और चित्रकला
‘गोंड चित्रकला’ की झलक मंदिर की दीवारों, रथों और घरों पर देखने को मिलती है।
‘बस्तर शिल्प’ – धातु की मूर्तियाँ, घंटियाँ, दीपक आदि बिकते हैं।
महिलाएं हाथ से बनी ‘सुपा’, टोकरी, और बांस शिल्प के माध्यम से उत्सव को सजाती हैं।
लोक नवाचार
हर वर्ष गाँवों में तुपकी की सजावट प्रतियोगिता, लोकगीत गान, और पारंपरिक वेशभूषा शो जैसी गतिविधियाँ भी होती हैं।
गोनचा और शिक्षा – बच्चों के लिए सीख का पर्व
शैक्षणिक पहलू
गोनचा बच्चों को सिखाता है:
सामूहिकता और परंपरा
भारतीय विविधता और सांस्कृतिक समरसता
हस्तशिल्प, नृत्य, संगीत जैसे कलात्मक विषयों में रुचि
रथ की संरचना से लेकर वाद्ययंत्रों तक, विज्ञान और कला का अद्भुत संगम
विद्यालयों और NSS जैसे संगठनों की भूमिका
बस्तर के कई स्कूलों में अब गोनचा पर निबंध प्रतियोगिता, चित्रकला प्रतियोगिता, और सांस्कृतिक प्रदर्शन आयोजित होते हैं।
वर्तमान में गोनचा उत्सव को लेकर चुनौतियाँ
1. शहरीकरण का प्रभाव
तेजी से बढ़ते वाणिज्यिकरण और मोबाइल संस्कृति ने युवाओं की परंपरा से दूरी बढ़ाई है।
2. सांस्कृतिक अस्मिता की चुनौती
बाहरी प्रभाव से रथयात्रा का आधुनिककरण, लोक गीतों में DJ की घुसपैठ, और परंपराओं की विकृति देखने को मिलती है।
3. पर्यावरणीय खतरे
तुपकी से होने वाला ध्वनि प्रदूषण
रथयात्रा में इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक सजावट
जंगलों से कच्चे माल का अंधाधुंध दोहन

समाधान: परंपरा और प्रौद्योगिकी का संतुलन
1. ईको-फ्रेंडली रथ
बांस, सूती कपड़ा और पारंपरिक रंगों से सजावट।
2. डिजिटल डॉक्यूमेंटेशन
गोनचा की कथा, रथ निर्माण, तुपकी विधि – सबको ऑनलाइन संग्रहित कर पीढ़ी-दर-पीढ़ी संजोया जा सकता है।
3. युवा पीढ़ी को जोड़ना
विद्यालयों और कॉलेजों में विषय आधारित प्रोजेक्ट्स, इंटरव्यू, लोक गीत रिकॉर्डिंग, और यूट्यूब शॉर्ट्स द्वारा रुचि बढ़ाई जा सकती है।
गोनचा उत्सव से मिलने वाले प्रेरणात्मक जीवन मूल्य
मूल्य व्यवहारिक उपयोग
सामूहिकता कार्यस्थल में टीम भावना
निःस्वार्थ सेवा स्वयंसेवक भावना, NSS/NCC
परंपरा के प्रति श्रद्धा बुजुर्गों का सम्मान
कला प्रेम शिल्प, संगीत, चित्रकला में रुचि
सहनशीलता और एकता विविधता में एकता का जीवन दर्शन
भविष्य दृष्टि: गोनचा को वैश्विक पहचान दिलाना
गोनचा को UNESCO विरासत सूची में शामिल करने का प्रयास
यदि राज्य सरकार और स्थानीय समाज मिलकर दस्तावेजीकरण, वीडियो आर्काइविंग और प्रदर्शनियों का आयोजन करें, तो गोनचा को विश्व सांस्कृतिक विरासत में शामिल किया जा सकता है।
निष्कर्ष: गोनचा – श्रद्धा, संस्कृति और सामाजिक समरसता का संगम
गोनचा उत्सव केवल बस्तर की परंपरा नहीं, बल्कि भारत की विविधता में एकता का जीता-जागता प्रमाण है। 27 दिनों तक चलने वाला यह पर्व हमें सिखाता है कि धर्म केवल पूजन नहीं, बल्कि समाज को जोड़ने का माध्यम भी हो सकता है।
जहां एक ओर रथयात्रा भगवान जगन्नाथ के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है, वहीं दूसरी ओर ‘तुपकी सलामी’ आदिवासी गौरव और रक्षक संस्कृति की गूंज है। ‘मीत परंपरा’ से रिश्तों का नया आयाम बनता है, और लोकगीत-नृत्य इस त्योहार को जीवंतता से भर देते हैं।
आज जब आधुनिकता के नाम पर परंपराएँ पीछे छूट रही हैं, गोनचा हमें मूल्य, परंपरा और सामूहिकता की पुनः याद दिलाता है। यह केवल पर्व नहीं — यह एक भाव, एक पहचान और एक सामाजिक संकल्प है।
> गोनचा हमें बताता है – त्योहार मनाओ, परंपराएँ निभाओ, और समाज को जोड़ो। यही असली भारत है।
गोनचा उत्सव – प्रमुख FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
1. गोनचा उत्सव क्या है?
उत्तर:
गोनचा उत्सव छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में मनाया जाने वाला एक पारंपरिक धार्मिक-सांस्कृतिक पर्व है, जो भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की रथयात्रा पर आधारित होता है। यह 27 दिनों तक चलता है।
2. गोनचा शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:
‘गोनचा’ शब्द ओडिशा के “गुंडिचा” से आया है, जो जगन्नाथ रथयात्रा का एक हिस्सा है। बस्तर में इसे स्थानीय उच्चारण और संस्कृति के अनुसार ‘गोनचा’ कहा जाने लगा।
3. गोनचा उत्सव कब मनाया जाता है?
उत्तर:
यह पर्व अषाढ़ शुक्ल पक्ष की तृतीया से शुरू होकर देवशयनी एकादशी तक चलता है, जो सामान्यतः जून–जुलाई के महीने में आता है।
4. गोनचा उत्सव कितने दिन चलता है?
उत्तर:
यह पर्व 27 दिनों तक चलता है, जिसमें कई धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठान होते हैं।
5. गोनचा उत्सव की शुरुआत किसने की थी?
उत्तर:
बस्तर के राजा पुरुषोत्तम देव ने 14वीं शताब्दी में पुरी से प्रेरणा लेकर गोनचा उत्सव की शुरुआत की थी।
6. गोनचा उत्सव कहाँ मनाया जाता है?
उत्तर:
यह उत्सव मुख्यतः छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले और विशेष रूप से जगदलपुर शहर में मनाया जाता है।
7. गोनचा रथयात्रा में किन देवताओं की पूजा होती है?
उत्तर:
भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र, और बहन सुभद्रा की पूजा और शोभायात्रा की जाती है।
8. तुपकी क्या होती है और इसका क्या महत्व है?
उत्तर:
तुपकी एक पारंपरिक बांस से बनी बंदूक जैसी वस्तु होती है, जिससे धमाके की आवाज कर सलामी दी जाती है। यह आदिवासी सम्मान और सुरक्षा का प्रतीक मानी जाती है।
9. गोनचा में ‘मीत परंपरा’ क्या है?
उत्तर:
यह एक पारंपरिक रस्म है, जिसमें दो व्यक्ति ‘मीत’ बनकर जीवनभर के लिए भाईचारे और दोस्ती का रिश्ता निभाते हैं।
10. क्या गोनचा उत्सव में सभी जातियाँ भाग लेती हैं?
उत्तर:
हां, यह पर्व सर्वजन भागीदारी वाला है, जिसमें ब्राह्मण, आदिवासी, ग्रामीण, शहरी – सभी सम्मिलित होते हैं।
11. गोनचा उत्सव में कौन-कौन से नृत्य देखने को मिलते हैं?
उत्तर:
इसमें पारंपरिक सुआ नृत्य, रेला, पंथी, और दीर्दुल नृत्य प्रमुख होते हैं।
12. गोनचा उत्सव में क्या-क्या विशेष भोजन या प्रसाद बनता है?
उत्तर:
प्रमुख भोगों में लाई, धान की खीर, मड़िया, आम की चटनी, और स्थानीय पकवान शामिल हैं।
13. गोनचा उत्सव पर्यटकों के लिए कितना उपयुक्त है?
उत्तर:
यह उत्सव पर्यटकों को छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति, शिल्प, और आदिवासी जीवन को करीब से देखने का अवसर देता है।
14. गोनचा उत्सव और पुरी की रथयात्रा में क्या अंतर है?
उत्तर:
पुरी की रथयात्रा ब्राह्मणिक रीति-नीति से जुड़ी है, जबकि गोनचा में आदिवासी संस्कृति, तुपकी सलामी और सामाजिक सहभागिता अधिक प्रमुख है।
15. क्या गोनचा उत्सव को UNESCO विरासत सूची में शामिल किया गया है?
उत्तर:
अभी तक नहीं, लेकिन इसकी सांस्कृतिक महत्ता और प्राचीनता को देखते हुए भविष्य में यह प्रयास किया जा सकता है।
16. गोनचा उत्सव के दौरान क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए?
उत्तर:
भीड़-भाड़ में सतर्कता, तुपकी से सुरक्षित दूरी, पर्यावरण का ध्यान, और स्थानीय संस्कृति का सम्मान आवश्यक है।
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