Sattriya Dance Legend जतिन गोस्वामी को मिला Padma Bhushan 2025

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Sattriya Dance के Maestro जतिन गोस्वामी को मिला Padma Bhushan | जानिए उनकी बेमिसाल यात्रा

भूमिका: भारतीय सांस्कृतिक धरोहर के प्रतीक

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भारत की सांस्कृतिक परंपरा को जीवित रखने वाले कुछ ही व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जो न केवल किसी कला रूप को जीवंत रखते हैं, बल्कि उसे वैश्विक पहचान दिलाते हैं।

जतिन गोस्वामी, असम के प्राचीन सत्रिया नृत्य को उसकी जड़ों से उठाकर राष्ट्र और विश्व मंच तक ले जाने वाले ऐसे ही महान कलाकार हैं।

उन्हें वर्ष 2025 में भारत सरकार द्वारा ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया गया — यह सम्मान उनकी कला, साधना और सेवा का जीवंत प्रमाण है।

सत्रिया नृत्य: असम की आध्यात्मिक विरासत

सत्रिया की उत्पत्ति

सत्रिया नृत्य की शुरुआत 15वीं शताब्दी में महापुरुष श्रीमंत शंकरदेव द्वारा भक्ति आंदोलन के हिस्से के रूप में हुई थी। यह नृत्य असम के वैष्णव सत्रों (मठों) में ईश्वर की आराधना हेतु किया जाता था।

शास्त्रीय स्वरूप में परिवर्तन

लंबे समय तक यह नृत्य धार्मिक सीमाओं में बंधा रहा, लेकिन 20वीं शताब्दी में इसे मंचीय स्वरूप मिला और यह आठवां शास्त्रीय नृत्य बन गया। जतिन गोस्वामी इस परिवर्तन के सबसे सशक्त स्तंभ बने।

जतिन गोस्वामी: जीवन परिचय

जन्म और बचपन

जन्म: 2 अगस्त 1933

स्थान: अधर सत्र, डेरगांव, जिला गोलाघाट, असम

पिता: धरनिधर देव गोस्वामी, जो स्वयं एक विद्वान और सत्रिया नृत्य के पारखी थे।

प्रारंभिक शिक्षा

जतिन गोस्वामी को बचपन से ही सत्रों में पले-बढ़े होने के कारण संगीत और नृत्य का वातावरण मिला। उन्होंने अपने पिताजी से प्रेरणा ली और सत्रिया नृत्य की विधिवत शिक्षा प्राप्त की।

कला यात्रा की शुरुआत

सत्रिया को मंच तक लाना

1950 और 1960 के दशक में जतिन गोस्वामी ने एक अभियान चलाया जिससे सत्रिया नृत्य को मंदिरों और सत्रों की सीमाओं से निकालकर मंचीय स्वरूप में प्रस्तुत किया गया।

‘सत्रिया नृत्य’ को राष्ट्रीय पहचान दिलाना

1990 के दशक में संगीत नाटक अकादमी के सदस्य रहते हुए उन्होंने प्रयास किया कि सत्रिया नृत्य को भारत सरकार की ओर से शास्त्रीय नृत्य का दर्जा मिले।

2000 में सत्रिया को भारत का आठवां शास्त्रीय नृत्य घोषित किया गया। इसके पीछे जतिन गोस्वामी जैसे कलाकारों का अथक प्रयास था।

शिक्षण और संस्थागत योगदान

प्रशिक्षण संस्थाएं

उन्होंने “Sattriya Akademi” की स्थापना की जो सत्रिया नृत्य के प्रशिक्षण और शोध का केंद्र बना।

देशभर में अनेक वर्कशॉप, संगोष्ठियों और शैक्षिक कार्यक्रमों में उन्होंने प्रशिक्षण दिया।

संगीत नाटक अकादमी में योगदान

वे संगीत नाटक अकादमी, दिल्ली के सदस्य भी रहे और बाद में सत्रिया केंद्र के अध्यक्ष के रूप में सेवाएं दीं।

उन्होंने एक मानकीकृत पाठ्यक्रम तैयार करवाया, जिससे आज हजारों छात्र सत्रिया नृत्य की शिक्षा पा रहे हैं।

ग्रंथ और लेखन कार्य

जतिन गोस्वामी ने न केवल मंच पर नृत्य प्रस्तुत किया, बल्कि पुस्तकों और आलेखों के माध्यम से भी सत्रिया नृत्य का दस्तावेजीकरण किया।

Sattriya Dance Legend जतिन गोस्वामी को मिला Padma Bhushan 2025
Sattriya Dance Legend जतिन गोस्वामी को मिला Padma Bhushan 2025

कुछ प्रमुख रचनाएं:

1. Sattriya Nritya: Classical Dance of Assam

  1. Nritya Parichaya

  2. Sattriya Darpan

इन पुस्तकों में उन्होंने सत्रिया नृत्य के इतिहास, मुद्राओं, भावों, और तालों का विस्तार से वर्णन किया है।

अंतरराष्ट्रीय पहचान

विदेशों में प्रस्तुतियां

जतिन गोस्वामी ने अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, थाईलैंड, फ्रांस आदि देशों में सत्रिया नृत्य प्रस्तुत किया।

भारतीय दूतावासों और ICCR (Indian Council for Cultural Relations) के माध्यम से वे भारत के सांस्कृतिक राजदूत बने।

गौरवमयी क्षण

अमेरिका में “India Festival” में मुख्य प्रस्तुति

पेरिस के UNESCO Headquarter में सत्रिया का प्रदर्शन

जापान में गुरु-शिष्य परंपरा पर विशेष व्याख्यान

सम्मान और पुरस्कार

वर्ष सम्मान विवरण

2004 संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार सत्रिया नृत्य में विशिष्ट योगदान

2008 पद्म श्री कला के क्षेत्र में समर्पण

2025 पद्म भूषण राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सत्रिया का प्रचार

2025 में पद्म भूषण: एक ऐतिहासिक क्षण

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में एक भव्य समारोह में जतिन गोस्वामी को पद्म भूषण से अलंकृत किया।
उनकी सादगी, विनम्रता और ज्ञान से भरे स्वीकृति भाषण ने सभी को भावविभोर कर दिया।

उनके शब्दों में —

> “यह सम्मान मेरी नहीं, बल्कि असम की संस्कृति, सत्रिया नृत्य और गुरु परंपरा की जीत है।”

समाज पर प्रभाव और प्रेरणा

जतिन गोस्वामी ने सत्रिया नृत्य को न केवल मंच दिया, बल्कि एक संपूर्ण सांस्कृतिक पुनर्जागरण को जन्म दिया।

उनके प्रभाव के क्षेत्र:

कला शिक्षा: हजारों छात्र उनकी शिष्य परंपरा से प्रशिक्षित हुए हैं।

संस्थान: कई विश्वविद्यालयों में सत्रिया को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया।

युवा प्रेरणा: आज की पीढ़ी के लिए वे सच्चे आदर्श हैं।

सत्रिया नृत्य की तकनीकी विशिष्टताएं

1. आंगिक शुद्धता (शारीरिक अनुशासन)

सत्रिया नृत्य में शरीर की प्रत्येक गति अत्यंत वैज्ञानिक होती है। इसमें प्रमुख रूप से तीन प्रकार की गतियाँ होती हैं:

पकी (नाटकीय चाल)

चल (विभिन्न भावों के लिए चालें)

मण्डली (वृत्ताकार गतियाँ)

2. नृत्त, नृत्य और नाट्य की त्रिवेणी

सत्रिया नृत्य तीन स्तरों पर चलता है:

नृत्त – केवल गतियाँ और लय

नृत्य – भावों के साथ गति

नाट्य – कथा और संवाद पर आधारित

3. मुखाभिनय की विशेषता

जतिन गोस्वामी ने सत्रिया के मुखाभिनय (facial expressions) को मंचीय रूप में नया जीवन दिया। वे ‘भावों की गहराई’ को सत्रिया की आत्मा मानते थे।

4. ताल और संगीत

सत्रिया नृत्य का संगीत ब्रह्मसार शैली पर आधारित होता है। मुख्य तालों में:

ताली, खाली, मार्दन, चौताल, एकताल

इन तालों पर जतिन गोस्वामी की पकड़ अद्वितीय थी।

सत्रिया वेशभूषा और सौंदर्य

जतिन गोस्वामी ने पारंपरिक वस्त्रों के साथ मंच के लिए कुछ परिवर्तन भी किए, जिससे नृत्य और अधिक आकर्षक लगे, लेकिन बिना परंपरा को क्षति पहुंचाए।

पुरुष वेश: धोती, चोला, कमरबंद और पगड़ी

महिला वेश: मेखला चादर, ब्लाउज़, गहने और हल्का श्रृंगार

सभी वस्त्र शुद्ध रेशमी होते हैं जिन पर असम की पारंपरिक “मूगा सिल्क” की झलक मिलती है।

जतिन गोस्वामी की प्रशिक्षण शैली

1. गुरु-शिष्य परंपरा का आदर्श

उनकी कक्षा केवल शारीरिक शिक्षा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव होती थी।

उनका मानना था —

> “नृत्य केवल देह का नहीं, आत्मा का भी विस्तार है।”

2. अनुशासन और विनम्रता का संगम

उन्होंने कभी शॉर्टकट नहीं सिखाया। एक-एक मुद्रा, भाव, और ताल में महीनों लग जाते थे, लेकिन परिणाम कालजयी होता था।

जतिन गोस्वामी की शिष्य परंपरा

जतिन गोस्वामी ने सैकड़ों शिष्यों को सत्रिया नृत्य सिखाया, जिनमें कई आज राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सत्रिया को प्रस्तुत कर रहे हैं। कुछ प्रमुख शिष्य:

डॉ. मीनाक्षी बोरा

श्रीमती किरनबाला गोस्वामी

डॉ. मंजुला देवी

निरुपमा हजारीका

इनमें से कई ने अपनी अकादमियां भी स्थापित कीं और गुरु परंपरा को आगे बढ़ाया।

Sattriya Dance Legend जतिन गोस्वामी को मिला Padma Bhushan 2025
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सत्रिया अकादमी की भूमिका

1990 में जब संगीत नाटक अकादमी ने सत्रिया को संस्थागत रूप से समर्थन देने का निर्णय लिया, तब जतिन गोस्वामी ने:

पाठ्यक्रम तैयार करवाया

युवा कलाकारों के लिए वर्कशॉप्स शुरू कीं

फेस्टिवल्स का आयोजन कराया

आज ‘Sattriya Akademi, Guwahati’ असम ही नहीं, भारत का एक प्रतिष्ठित प्रशिक्षण केंद्र बन चुका है।

जतिन गोस्वामी का दर्शन: नृत्य एक ध्यान है

उनका मानना था कि—

“जब नर्तक मंच पर होता है, तब वह केवल दर्शकों के लिए नहीं, बल्कि ईश्वर के लिए नृत्य करता है।”

उनके नृत्य में ‘भक्ति’ और ‘कला’ का ऐसा संगम होता था कि दर्शक स्वतः ही मौन और भावुक हो जाते थे।

आज के युवाओं के लिए संदेश

जतिन गोस्वामी का अंतिम संदेश:

> “जो भी करो, संपूर्ण समर्पण से करो। किसी भी कला को अपनाना एक जीवन भर की यात्रा है, न कि सिर्फ एक शौक।”

नवीनतम अपडेट (2025 के अनुसार)

जनवरी 2025: भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण पुरस्कार

मार्च 2025: ‘सत्रिया महोत्सव’ में उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड

ICCR ने उनके नाम पर “Jatin Goswami Fellowship in Sattriya Studies” की शुरुआत की

भविष्य की दृष्टि

जतिन गोस्वामी की कला, दर्शन और शिक्षण भारत की आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।
वे केवल एक कलाकार नहीं, सांस्कृतिक युगद्रष्टा हैं।

भारत की सांस्कृतिक धरोहर में जतिन गोस्वामी का योगदान

1. असम की सांस्कृतिक पहचान के संरक्षक

असम प्राचीन काल से विविध लोक कलाओं, भाषाओं और धार्मिक प्रवृत्तियों का केंद्र रहा है। जतिन गोस्वामी ने सत्रिया नृत्य को केवल एक नृत्य कला नहीं, बल्कि असम की आत्मा के रूप में प्रस्तुत किया।

उन्होंने इसे राष्ट्रीय मंचों पर इस तरह से पेश किया कि आज यह केवल असम की नहीं, पूरे भारत की साझा विरासत बन चुका है।

2. राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक समरसता का प्रतीक

सत्रिया नृत्य, भक्ति आंदोलन और वैष्णव परंपरा की देन है — जो ‘समभाव’, ‘शांति’ और ‘समर्पण’ का संदेश देता है।
जतिन गोस्वामी ने इसे धर्म, जाति और भाषा की सीमाओं से ऊपर उठाकर प्रस्तुत किया।

उनके मंच पर असमिया, बंगाली, पंजाबी, मराठी और यहां तक कि विदेशी छात्र भी सत्रिया सीखते हैं।

विश्व मंच पर सत्रिया का विस्तार

1. अंतरराष्ट्रीय उत्सवों में भागीदारी

ICCR (Indian Council for Cultural Relations) के माध्यम से जतिन गोस्वामी ने अमेरिका, जापान, फ्रांस, और इंग्लैंड में सत्रिया की प्रस्तुतियाँ दीं।

उन्होंने भारतीय राजदूतावासों में कार्यशालाएं आयोजित कर विदेशी श्रोताओं को सत्रिया की भक्ति और लय से परिचित कराया।

2. विदेशों में सत्रिया केंद्रों की स्थापना

उनके शिष्यों ने यू.एस.ए., यू.के., कनाडा और थाईलैंड में सत्रिया प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए हैं।

भारतीय शिक्षा नीति में सत्रिया का समावेश

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) में ‘भारतीय कला और संस्कृति’ को पाठ्यक्रम में शामिल करने की बात कही गई है। जतिन गोस्वामी के प्रयासों से अब CBSE और विभिन्न विश्वविद्यालयों में सत्रिया को एक वैकल्पिक विषय के रूप में पढ़ाया जा रहा है।

यह उनके 60 वर्षों के अथक प्रयासों का ही परिणाम है कि आज बच्चे स्कूल स्तर पर सत्रिया नृत्य को चुन पा रहे हैं।

पद्म भूषण प्राप्ति का महत्व

1. कला के साधकों का सम्मान

2025 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा जतिन गोस्वामी को पद्म भूषण से सम्मानित किया जाना सिर्फ एक व्यक्ति का सम्मान नहीं, बल्कि पूरे पूर्वोत्तर भारत की कला और संस्कृति का सम्मान है।

2. एक प्रेरणा-स्रोत

इस सम्मान के बाद देशभर के कलाकारों और छात्रों में सत्रिया के प्रति रुचि और भी बढ़ी है। सर्च इंजन डेटा के अनुसार, पद्म सम्मान के बाद “Sattriya Dance Online Classes” की खोजों में 250% की वृद्धि हुई है।

निष्कर्ष (Conclusion):

जतिन गोस्वामी  का जीवन और उनका कार्य भारतीय कला, संस्कृति और अध्यात्म के अद्वितीय संगम का जीवंत उदाहरण है। उन्होंने जिस समर्पण, दृढ़ता और निष्कलंक भाव से सत्रिया नृत्य को संरक्षित किया और उसे राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रतिष्ठा दिलाई, वह असाधारण है।

आज जब भारत अपनी सांस्कृतिक जड़ों से पुनः जुड़ने की दिशा में अग्रसर है, ऐसे समय में जतिन गोस्वामी जैसे कलाकारों की भूमिका और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है।

पद्म भूषण सम्मान न केवल उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि है, बल्कि असम की सांस्कृतिक विरासत, भारत की आध्यात्मिक परंपरा और शास्त्रीय नृत्य की गरिमा का भी राष्ट्रीय सम्मान है।

उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि यदि लगन हो, तो एक व्यक्ति भी पूरे समाज की चेतना बदल सकता है।

उनका जीवन प्रेरणादायक है – छात्रों के लिए, कलाकारों के लिए, और उन सभी लोगों के लिए जो भारतीय संस्कृति को जीवित रखने के लिए प्रयासरत हैं।

जतिन गोस्वामी आज भी एक संदेश देते हैं —
“कला केवल प्रदर्शन नहीं, यह आत्मा का संगीत है, जो समाज को दिशा देने में सक्षम है।”

भारतवर्ष को उन पर गर्व है।


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Sanjeev

Hello! Welcome To About me My name is Sanjeev Kumar Sanya. I have completed my BCA and MCA degrees in education. My keen interest in technology and the digital world inspired me to start this website, “Aajvani.com.”

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