ज्ञान भारतम् परामर्श बैठक 2025: सांस्कृतिक जागरण की नई शुरुआत!
प्रस्तावना: जब ज्ञान विरासत बनता है
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Toggleभारत की सांस्कृतिक परंपरा का आधार रही पांडुलिपियाँ आज संरक्षण की पुकार कर रही हैं। इन्हीं भावनाओं को केंद्र में रखते हुए, हाल ही में दिल्ली में ज्ञान भारतम् हितधारक परामर्श बैठक का आयोजन किया गया।
यह बैठक न केवल भारत की शास्त्रीय ज्ञान परंपरा को पुनः जागृत करने का प्रयास थी, बल्कि उसमें सक्रिय रूप से कार्य कर रहे विशेषज्ञों, संस्थानों और नीति-निर्माताओं के लिए एक साझा मंच भी बनी।
यह मंच, ‘ज्ञान भारतम्’ पहल के अंतर्गत पांडुलिपि संरक्षण, डिजिटलीकरण, अनुलेखन, और जन-जागरूकता जैसे मुद्दों पर केंद्रित रहा, और इसमें देशभर से आए विद्वानों ने हिस्सा लिया।
आयोजन का उद्देश्य और स्वरूप
ज्ञान भारतम् एक राष्ट्रीय स्तर की पहल है जिसका उद्देश्य है—भारत की प्राचीन पांडुलिपियों और दुर्लभ ग्रंथों का संरक्षण करना, उन्हें डिजिटाइज करना, और युवा पीढ़ी को इस सांस्कृतिक संपदा से जोड़ना। दिल्ली में आयोजित यह परामर्श बैठक इस दिशा में एक ऐतिहासिक कदम थी।
बैठक में प्रमुख रूप से निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार हुआ:
भारत की पांडुलिपियों की वर्तमान स्थिति
संरक्षण के पारंपरिक एवं आधुनिक उपाय
डिजिटलीकरण और ओपन-एक्सेस प्लेटफॉर्म्स की आवश्यकता
राज्यों और केंद्र के बीच समन्वय
नीति निर्माण में विद्वानों की भूमिका
विशेषज्ञों का समागम: ज्ञान का संगम
ज्ञान भारतम् बैठक में देश के कोने-कोने से पांडुलिपि विशेषज्ञ, संस्कृत विद्वान, टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट्स और संग्रहालय प्रमुख शामिल हुए। इस मंच पर विविध दृष्टिकोणों ने एक-दूसरे को समृद्ध किया।
मुख्य वक्ता डॉ. नीलिमा त्रिपाठी (वरिष्ठ साहित्य विशेषज्ञ) ने कहा:
> “पांडुलिपियाँ केवल अक्षरों का संग्रह नहीं, वे हमारी आत्मा की गूंज हैं।”
साथ ही, नीति आयोग के संस्कृति सलाहकार श्री विवेक भारद्वाज ने डिजिटल टेक्नोलॉजी और AI की भूमिका को रेखांकित किया।
पांडुलिपि संरक्षण की वर्तमान स्थिति
भारत में 10 लाख से अधिक ज्ञात पांडुलिपियाँ हैं—संस्कृत, पाली, प्राकृत, तमिल, फारसी आदि भाषाओं में। लेकिन अधिकांश उपेक्षित, नमी-प्रभावित या कीट-क्षतिग्रस्त हैं। ज्ञान भारतम् के माध्यम से इस संकट को राष्ट्रीय प्राथमिकता में लाया जा रहा है।
बैठक में सामने आए कुछ अहम तथ्य:
40% पांडुलिपियाँ निजी संग्रहों में हैं
60% अभी तक डिजिटाइज नहीं की गईं
20% से अधिक संरचना-गत हानि की शिकार हैं
इसलिए, ज्ञान भारतम् एक राष्ट्रीय संरचना तैयार कर रहा है जिसमें AI आधारित स्कैनिंग, डिजिटल रिपॉजिटरी, और वैज्ञानिक मरम्मत तकनीकें उपयोग में लाई जाएंगी।

कार्यशालाएं और तकनीकी सत्र
बैठक में तीन प्रमुख सत्र आयोजित किए गए:
1. पारंपरिक संरक्षण तकनीकें
जैसे—ताड़पत्र, भोजपत्र संरक्षण, जैविक स्याही पुनर्स्थापन, इत्यादि।
2. डिजिटलीकरण की चुनौतियां और समाधान
QR कोडिंग, OCR टेक्नोलॉजी, क्लाउड स्टोरेज, आदि।
3. नीति निर्माण में सहभागिता
राज्य सरकारों की भूमिका, CSR भागीदारी, और नीतिगत सहयोग।
इन सत्रों में ज्ञान भारतम् की भूमिका को केंद्रीय रूप में स्वीकार किया गया, जिससे इसे एक स्थायी मॉडल के रूप में देखा जा रहा है।
विशेष प्रस्ताव और सुझाव
बैठक के अंत में, एक 11 सूत्रीय प्रस्ताव पारित किया गया, जिनमें प्रमुख हैं:
भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन को पुनः सक्रिय करना
ज्ञान भारतम् के तहत राज्यों में मैन्युस्क्रिप्ट बैंक स्थापित करना
स्कूल/कॉलेज स्तर पर पांडुलिपि अध्ययन विषय के रूप में जोड़ना
हर जिले में ‘पांडुलिपि संवर्धन केंद्र’ की स्थापना
तकनीकी साझेदारियों को बढ़ावा देना
नीति-निर्माताओं की भागीदारी
ज्ञान भारतम् को नीति स्तर पर बल देने के लिए केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय और ICHR के प्रतिनिधियों ने अपनी सहभागिता दी। उन्होंने इस प्रयास को एक जनांदोलन का स्वरूप देने की बात कही।
भविष्य की राह
ज्ञान भारतम् अब केवल एक परियोजना नहीं—बल्कि यह एक ‘आन्दोलन’ का रूप ले रहा है:
हर राज्य में ‘ज्ञान भारतम् उत्सव’
“पांडुलिपि से प्रदर्शनी तक” प्रोजेक्ट
विश्व-स्तर पर भारतीय ज्ञान प्रणाली को पुनः स्थापित करने की पहल
सामुदायिक भागीदारी: ‘ज्ञान भारतम्’ को जन-आन्दोलन बनाना
ज्ञान भारतम् की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि यह सिर्फ सरकारी या अकादमिक स्तर तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसका उद्देश्य है इसे सामूहिक जन-आन्दोलन का रूप देना।
परामर्श बैठक में इस बात पर विशेष जोर दिया गया कि यदि आम जनता, विद्यार्थी, शिक्षक, पुस्तकालय, और लोक-कलाकारों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए—तो यह पहल पूरे देश में सांस्कृतिक क्रांति ला सकती है।
प्रमुख सुझाव:
गाँव-स्तर पर पांडुलिपि खोज अभियान चलाया जाए
युवाओं को संस्कृत और अन्य प्राचीन भाषाओं के अध्ययन के लिए प्रोत्साहित किया जाए
ज्ञान भारतम् की वेबसाइट और मोबाइल ऐप विकसित की जाए, जहाँ लोग डिजिटल पांडुलिपियाँ पढ़ सकें
सोशल मीडिया पर #GyanBharatam अभियान चलाया जाए
संरक्षण की चुनौतियाँ और ‘ज्ञान भारतम्’ का समाधान
पांडुलिपि संरक्षण कोई आसान कार्य नहीं है। इस परामर्श बैठक में विशेषज्ञों ने निम्नलिखित प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डाला:
चुनौती समाधान (ज्ञान भारतम् के अंतर्गत)
पुरानी पांडुलिपियों का क्षरण जैविक संरक्षण तकनीकों का प्रयोग
सटीक डेटाबेस का अभाव केंद्रीय डिजिटल रजिस्ट्री का निर्माण
भाषाई विविधता भाषाशास्त्रियों की सहायता से अनुवाद
कानूनी ढाँचे की कमी नया ‘पांडुलिपि संरक्षण अधिनियम’ लाने की सिफारिश
ज्ञान भारतम् इन सभी पहलुओं पर कार्य कर रहा है ताकि न केवल संरक्षण हो, बल्कि उसका सार्थक पुनर्प्रयोग भी संभव हो।

डिजिटलीकरण: पांडुलिपियों को तकनीक से जोड़ना
डिजिटल इंडिया के युग में ज्ञान भारतम् यह सुनिश्चित करना चाहता है कि पांडुलिपियाँ सिर्फ संग्रहालयों में धूल न खाएँ, बल्कि इंटरनेट पर जीवित रूप में सभी के लिए सुलभ हों। परामर्श बैठक में इस विषय पर विशेष सत्र आयोजित किया गया।
क्या किया जाएगा?
हर पांडुलिपि का हाई-रेजोल्यूशन स्कैन
OCR तकनीक से टेक्स्ट को एक्सेसिबल बनाना
अनुवाद और टीका कार्य के लिए AI टूल्स का उपयोग
डिजिटल लाइब्रेरी और मोबाइल ऐप से जन-जन तक पहुँच
इस दिशा में “ज्ञान भारतम् डिजिटल पोर्टल” पर भी चर्चा हुई, जो जल्द ही सभी पांडुलिपियों को एक searchable डेटाबेस में लाएगा।
निष्कर्ष: ज्ञान भारतम् — एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण की क्रांति
दिल्ली में आयोजित ‘ज्ञान भारतम्’ हितधारक परामर्श बैठक भारत की सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक बनकर उभरी। यह बैठक केवल एक विचार-विमर्श नहीं थी, बल्कि यह भारत की आत्मा को उसके प्राचीन जड़ों से फिर से जोड़ने की एक व्यापक पहल थी।
जहां एक ओर देशभर के पांडुलिपि विशेषज्ञ, संस्कृति-संरक्षक, नीति-निर्माता, और शोधकर्ता एक मंच पर एकत्र हुए, वहीं दूसरी ओर ‘ज्ञान भारतम्’ के माध्यम से संरक्षण, डिजिटलीकरण, जन-जागरूकता, और संवर्धन के ठोस रोडमैप की नींव रखी गई।
इस बैठक ने यह संदेश स्पष्ट कर दिया कि:
> “हम केवल अतीत को स्मरण करने नहीं, बल्कि उसे वर्तमान में जीवित रखने और भविष्य को समर्पित करने के लिए एकजुट हुए हैं।”
‘ज्ञान भारतम्’ क्या है, और क्यों आवश्यक है?
भारत में ज्ञान की परंपरा सिर्फ पुस्तकों तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह पांडुलिपियों, शिलालेखों, हस्तलिखित ग्रंथों और लोकस्मृतियों में जीवित रही है। आज जब यह धरोहर लुप्त होने की कगार पर है, तो ‘ज्ञान भारतम्’ जैसे प्रयास अत्यंत आवश्यक हो जाते हैं।
यह पहल न केवल अतीत को बचाने का माध्यम है, बल्कि:
शोध और शिक्षण में नवीन अवसर प्रदान करती है
भारतीय भाषाओं और लिपियों को संरक्षित करती है
नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जोड़ती है
वैश्विक मंचों पर भारत के बौद्धिक योगदान को पुनर्स्थापित करती है
बैठक से निकले 5 प्रमुख संदेश:
- ज्ञान भारतम् अब एक अभियान नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक आंदोलन है
- डिजिटलीकरण और AI आधारित विश्लेषण से संरक्षण को गति मिलेगी
- नीति-निर्माताओं और शोधकर्ताओं के बीच सेतु बनेगा यह मंच
- युवा शक्ति को जोड़ने के लिए शिक्षा, जागरूकता, और तकनीक की भूमिका अहम होगी
- सार्वजनिक-निजी सहभागिता से ही पांडुलिपियों को पुनः जीवंत किया जा सकेगा
आगे की राह
इस बैठक में लिए गए निर्णय, दिए गए सुझाव, और जताई गई चिंताएँ अब कार्यान्वयन की ओर बढ़ रही हैं। ‘ज्ञान भारतम्’ के माध्यम से:
डिजिटल पोर्टल और एप्स लांच किए जाएंगे
राज्य स्तर पर संरक्षण केंद्रों की स्थापना की जाएगी
शोध प्रोजेक्ट्स, फेलोशिप, और प्रदर्शनियों के माध्यम से जागरूकता फैलाई जाएगी
और सबसे अहम, भारत का प्राचीन ज्ञान फिर से जन-जन तक पहुँचेगा
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