नंदलाल बोस कौन थे और क्यों माने जाते हैं भारत के संविधान के Unsung Hero?
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Toggleजब भी भारतीय आधुनिक चित्रकला के पुनर्जागरण की बात होती है, तो एक नाम स्वर्णाक्षरों में उभरकर सामने आता है — नंदलाल बोस। वे केवल एक कलाकार नहीं थे, बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपरा और आत्मा के चितेरे थे।
उनकी कूची ने सिर्फ रंगों को नहीं, बल्कि एक पूरे युग की चेतना को आकार दिया। चाहे वह ‘डांडी मार्च’ हो या संविधान की मूल प्रति का साज-सज्जा, नंदलाल बोस की कला ने भारत के आत्मगौरव को अमर कर दिया।
प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि
नंदलाल बोस का जन्म 3 दिसंबर 1882 को बिहार के मुंगेर जिले के तारापुर कस्बे में हुआ था। उनके पिता पूर्णचंद्र बोस एक प्रशासनिक अधिकारी थे और मां क्षेत्रमणि देवी एक धार्मिक और सांस्कृतिक प्रवृत्ति की महिला थीं।
नंदलाल का बाल्यकाल एक ऐसे परिवेश में बीता जहाँ धर्म, कला और शिल्पकला की गूंज थी।
बचपन से ही वे मिट्टी से मूर्तियाँ बनाना, पूजा-पंडाल सजाना और ग्रामीण जीवन के रंगों में रम जाना पसंद करते थे। यह कला और संस्कृति के प्रति उनका पहला प्रेम था।
शिक्षा और कलात्मक यात्रा की शुरुआत
उनकी औपचारिक शिक्षा कोलकाता में हुई। पहले तो उन्होंने वाणिज्य विषय चुना, लेकिन जल्दी ही यह स्पष्ट हो गया कि उनका मन संख्याओं में नहीं, रंगों में बसता है।
1905 में उन्होंने गवर्नमेंट स्कूल ऑफ आर्ट, कोलकाता में प्रवेश लिया। यहीं उनकी मुलाकात हुई अबनिन्द्रनाथ टैगोर से — जो आगे चलकर उनके गुरू और भारतीय आधुनिक कला के शिल्पकार बने।
अबनिन्द्रनाथ ने उन्हें सिखाया कि भारतीय कला में पश्चिमी प्रभाव को हटाकर देशज भावनाओं और मिथकों को शामिल करना जरूरी है।
भारतीयता की आत्मा से रची-बसी कला
नंदलाल बोस की कला का मूलमंत्र था – भारतीयता का भाव। उन्होंने पाश्चात्य शैली के प्रभाव को ठुकराकर भारतीय परंपरा, धर्म, पौराणिक गाथाओं और लोकजीवन से प्रेरणा ली।
उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ जैसे –
‘डांडी मार्च’: महात्मा गांधी के नेतृत्व में नमक सत्याग्रह को चित्रित करती यह पेंटिंग राष्ट्रीय भावना का प्रतीक बन गई।
‘संथाली कन्या’: आदिवासी संस्कृति की गरिमा को उकेरती।
‘सती का देह त्याग’: स्त्री भावनाओं और धार्मिक मिथकों का अद्भुत समावेश।
उनकी रचनाएँ अजंता-एलोरा की गुफाओं से प्रेरित थीं लेकिन साथ ही उन्होंने आधुनिक प्रयोग भी किए। उन्होंने लिनो कट, टेम्परा, वॉटर कलर, म्यूरल पेंटिंग आदि में महारत हासिल की।

शांति निकेतन और कला भवन की स्थापना
1922 में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें शांति निकेतन स्थित ‘कला भवन’ का प्रधानाचार्य नियुक्त किया। यह न केवल उनके लिए एक पद था, बल्कि यह वह स्थान बना जहाँ भारतीय कला के पुनर्जागरण की नींव रखी गई।
यहाँ नंदलाल ने कला को केवल कौशल नहीं, बल्कि जीवन दृष्टि के रूप में सिखाया। उनके शिष्य रहे –
रामकिंकर बैज
बिनोद बिहारी मुखर्जी
के.जी. सुब्रमण्यम — जो आगे चलकर आधुनिक भारतीय कला के स्तंभ बने।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और नंदलाल बोस
नंदलाल बोस की कला केवल कल्पना की उड़ान नहीं थी, वह यथार्थ की जमीन से जुड़ी थी। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई प्रेरणादायक पोस्टर और चित्र बनाए।
‘भारत माता’, ‘गांधी जी का चरखा’, ‘नमक सत्याग्रह’ — ये सभी चित्र स्वदेशी भावना के प्रतीक बन गए।
वे गांधीजी से प्रभावित थे, और गांधीजी ने खुद उन्हें स्वतंत्रता संग्राम के प्रचार के लिए चित्र बनवाने को कहा।
उनका मानना था कि “कला सिर्फ दीवारों की शोभा नहीं, बल्कि आत्मा की जागृति होनी चाहिए।”
भारतीय संविधान की मूल प्रति और नंदलाल बोस
यह शायद बहुत कम लोग जानते हैं कि भारतीय संविधान की जो मूल हस्तलिखित प्रति है, उसे केवल कानूनी दस्तावेज नहीं बल्कि एक कला का अद्भुत नमूना बनाया गया — और इसके पीछे थे नंदलाल बोस।
कैसे हुआ यह कार्य?
जब संविधान बनकर तैयार हुआ, तब प्रधानमंत्री पंडित नेहरू चाहते थे कि यह दस्तावेज भारतीय संस्कृति की आत्मा को दर्शाए। उन्होंने यह ज़िम्मेदारी नंदलाल बोस को सौंपी।
नंदलाल बोस ने अपने शिष्यों की सहायता से संविधान के प्रत्येक अध्याय की शुरुआत में एक चित्र बनाया — जो भारत की सांस्कृतिक विरासत, इतिहास और परंपरा को दर्शाता है।
उदाहरण के लिए:
हड़प्पा सभ्यता,
महाभारत और रामायण के दृश्य,
अशोक के स्तंभ,
बुद्ध और महावीर,
शिव, दुर्गा, कृष्ण के प्रतीक,
मुगल, मराठा, सिख परंपरा,
आधुनिक भारत के स्वतंत्रता संग्राम के चित्र।
हर पृष्ठ को सजावटी बॉर्डर, लघुचित्र और प्रतीकचिन्हों से सजाया गया।
यह कार्य उन्होंने लगभग चार वर्षों में पूरा किया और यह 22 प्रमुख चित्रों का संग्रह बना।
यह संविधान की मूल प्रति आज भी संसद भवन के पुस्तकालय में सुरक्षित है और यह न केवल भारतीय लोकतंत्र का प्रतीक है, बल्कि भारतीय कला की अमर धरोहर भी है।
नंदलाल बोस की शैली और दर्शन
नंदलाल बोस की कला में केवल दृश्य सौंदर्य नहीं था, उसमें दर्शन और आध्यात्मिकता की भी गहराई थी। वे मानते थे कि:
“कला उस चेतना का प्रतिबिंब है जो व्यक्ति को आत्मा से जोड़ती है।”
उनकी कला में प्रमुख तत्व थे:
भारतीय मिथक और लोककथाएँ
प्रकृति के रंग और लय
समाज की सादगी और संघर्ष
आध्यात्मिक संकेत और प्रतीक
वे हर चित्र को साधना की तरह बनाते थे, और कहते थे कि “रचना से पहले मौन आवश्यक है।”
सम्मान और पुरस्कार
उनकी कला और योगदान को देश और विदेशों में सराहा गया। उन्हें मिले प्रमुख सम्मान:
पद्म भूषण (1954)
देशिकोत्तम (विश्व भारती विश्वविद्यालय से)
ललित कला अकादमी फेलोशिप (1956)
कलकत्ता विश्वविद्यालय से मानद डिग्री
टैगोर जन्मशती पदक (1965)
निधन और स्मृति
16 अप्रैल 1966, को नंदलाल बोस का शांति निकेतन में निधन हो गया। लेकिन उनका जीवन और कला आज भी जीवित है —
उनकी 7000 से अधिक कलाकृतियाँ आज भी राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय (नई दिल्ली) में संरक्षित हैं।
नंदलाल बोस की कलात्मक दृष्टि और सोच
नंदलाल बोस का मानना था कि कला जीवन का विस्तार है, न कि उससे अलग कोई संसार। उन्होंने कभी कला को सिर्फ चित्र बनाने तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे एक भावात्मक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक यात्रा बना दिया।
भारतीयता के रंग में रंगी कला
उनका उद्देश्य भारतीय संस्कृति को दुनिया के सामने लाना था, इसलिए उन्होंने ग्रामीण जीवन, धार्मिक कथाएँ, लोक परंपराएँ और भारतीय दर्शन को अपनी कूची का विषय बनाया।
उदाहरण के लिए, उन्होंने रामायण और महाभारत के प्रसंगों को भारतीय रंग योजना के अनुसार चित्रित किया — जिसमें गहराई, लालित्य और आध्यात्मिकता हो।
लोक जीवन की सादगी
उनके चित्रों में आम लोगों का जीवन – जैसे खेतों में काम करती महिलाएँ, संथाल जनजाति की दिनचर्या, और उत्सवों की झलक – बहुत संवेदनशीलता से चित्रित होती है।
कला और शिक्षा: एक शिक्षक के रूप में बोस
नंदलाल बोस न केवल महान चित्रकार थे बल्कि उतने ही प्रभावशाली शिक्षक भी थे। शांति निकेतन में उन्होंने एक नई कला शिक्षा पद्धति की शुरुआत की:
‘अनुभव आधारित शिक्षा’
वे छात्रों को यह नहीं कहते थे कि कैसे चित्र बनाओ, बल्कि वे उन्हें प्रकृति में भेजते थे, महसूस करने को कहते थे।
उन्होंने रंगों और रेखाओं से पहले भावना और विचार को महत्व दिया।
रचनात्मक स्वतंत्रता
उन्होंने कभी अपने छात्रों पर शैली थोपने की कोशिश नहीं की। इसलिए उनके शिष्य — रामकिंकर बैज या बिनोद बिहारी मुखर्जी — सबने अपनी स्वतंत्र शैली विकसित की।
प्रेरणाएँ: किनसे प्रभावित थे नंदलाल बोस?
1. अबनिन्द्रनाथ टैगोर
उनके जीवन के पहले और सबसे बड़े प्रेरणा स्त्रोत, जिन्होंने उन्हें भारतीय परंपरा की ओर मोड़ा।
2. अजंता की गुफाएँ
उन्होंने कहा था कि “यदि कोई कलाकार अजंता की दीवारों को देख ले, तो वह जीवन भर प्रेरित रहेगा।”
3. रवीन्द्रनाथ टैगोर
टैगोर के साथ उनके संबंध सिर्फ औपचारिक नहीं थे, वे उनके जीवन-दर्शन के साथी थे। शांति निकेतन में उनके साथ मिलकर उन्होंने कला को ‘जीवन’ का हिस्सा बनाया।
4. गांधीजी
महात्मा गांधी के सादगीपूर्ण जीवन और अहिंसा के विचारों ने उनकी कला को नई दिशा दी। यही कारण है कि उनके चित्रों में गांधीवादी विचारधारा की झलक मिलती है।
उनकी कला से जुड़े रोचक तथ्य
- भारतीय रुपये की पहली डिज़ाइन में भी नंदलाल बोस का योगदान था।
- उन्होंने गांधीजी के चरखा चलाते हुए एक रेखाचित्र को नमक सत्याग्रह के पोस्टर के रूप में प्रयोग किया।
- वे पहले भारतीय कलाकार थे जिन्होंने संविधान जैसे विधिक दस्तावेज़ को एक कला कृति में बदला।
- उनकी बनायी लघुचित्रकारी को देखकर विदेशी कलाकार भी आश्चर्यचकित हो जाते थे।
- उन्होंने स्वतंत्र भारत की पहली डाक टिकट श्रृंखला के डिज़ाइन पर भी कार्य किया।

नंदलाल बोस की कला की आज के युग में प्रासंगिकता
आज जब भारतीय युवा कलाकारों को अपनी पहचान स्थापित करने की चुनौती है, तो नंदलाल बोस की जीवन कथा उन्हें यह सिखाती है कि –
अपनी जड़ों से जुड़े रहना सबसे बड़ी ताक़त है।
नकल नहीं, मौलिकता ही सच्ची पहचान है।
कला का उद्देश्य केवल सजावट नहीं, सामाजिक चेतना और आत्म अभिव्यक्ति है।
विरासत और आज का सन्दर्भ
नंदलाल बोस केवल अतीत के चित्रकार नहीं थे — वे आज के भारत के लिए भी उतने ही प्रासंगिक हैं। उन्होंने यह सिखाया कि भारतीय कला केवल पश्चिम का अनुकरण नहीं है, वह अपनी मौलिकता, आत्मा और चेतना से भरी हुई है।
उनकी कूची ने न केवल कागज़ पर रंग भरे, बल्कि एक पूरे राष्ट्र को उसकी संस्कृति से जोड़ दिया।
नंदलाल बोस और अंतरराष्ट्रीय पहचान
उनकी कला की प्रशंसा न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी हुई। जापान, चीन, पेरिस, लंदन में उनकी प्रदर्शनी आयोजित की गई। उनकी रचनाओं में ‘एशियाई सौंदर्यबोध’ की झलक मिलने के कारण रवीन्द्रनाथ टैगोर और ओकाकुरा काकुजो जैसे विचारकों ने उन्हें बहुत सराहा।
नंदलाल बोस की कला की विरासत (Legacy of Nandalal Bose)
नंदलाल बोस की कला न केवल उनके जीवनकाल तक सीमित रही, बल्कि उन्होंने आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अमूल्य विरासत छोड़ी, जो आज भी जीवंत है।
1. शांति निकेतन की कला परंपरा
उन्होंने शांति निकेतन में कला की एक ऐसी परंपरा स्थापित की जो केवल चित्रकला नहीं, बल्कि भारतीय जीवन-दर्शन का प्रतीक बनी।
आज भी वहाँ के कला विभाग में उनकी तकनीक, दृष्टिकोण और सादगी को अपनाया जाता है।
2. भारतीय कला में आत्मनिर्भरता की चेतना
उन्होंने भारतीय कलाकारों को यह आत्मविश्वास दिया कि भारतीय कला शैली किसी भी पश्चिमी परंपरा से कम नहीं है।
उनकी प्रेरणा से कई कलाकारों ने अपनी जड़ों की ओर लौटकर कला रचना शुरू की।
3. भारतीय आधुनिक कला का मार्गदर्शन
वे आधुनिक भारतीय कला के उन स्तंभों में से एक माने जाते हैं जिन्होंने कला को राष्ट्रीय पहचान दी।
नंदलाल बोस पर आधारित साहित्य और दस्तावेज
नंदलाल बोस के जीवन और कार्य पर अनेक लेख, किताबें और फिल्में बनी हैं:
1. जीवनी और शोध-पुस्तकें
“The Master Within: Nandalal Bose” – यह किताब उनके जीवन और दर्शन को खूबसूरती से प्रस्तुत करती है।
रूपावली, विश्वभारती पत्रिका में उनके शिष्यों द्वारा लिखे गए संस्मरण उनकी शिक्षण शैली पर प्रकाश डालते हैं।
2. डॉक्यूमेंट्री और कला फिल्में
भारत सरकार ने उनके जीवन और संविधान लेखन में योगदान पर डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनवाई हैं जो विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में दिखाए जाते हैं।
3. संग्रहालय और प्रदर्शनियाँ
राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय (NGMA) में नंदलाल बोस की कई रचनाएँ संग्रहित हैं।
समय-समय पर उनकी कलाकृतियों की प्रदर्शनी भारत और विदेशों में लगाई जाती है।
नंदलाल बोस से हमें क्या सीख मिलती है?
1. भारतीयता को गर्व से अपनाएं
उन्होंने यह दिखाया कि अपनी संस्कृति से प्रेम करना और उसे अभिव्यक्त करना कला का सबसे बड़ा उद्देश्य हो सकता है।
2. सादगी में सौंदर्य
नंदलाल बोस की कला में सजावट नहीं, बल्कि भावना और आत्मा का सौंदर्य है।
यह सीख आज के कलाकारों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जो भव्यता के पीछे भावना खो बैठते हैं।
3. शिक्षा का उद्देश्य अभिव्यक्ति देना है, ना कि सीमाएं बांधना
उन्होंने अपने छात्रों को स्वतंत्र सोचने, देखने और अनुभव करने की छूट दी, जिससे भारतीय कला को कई नए आयाम मिले।
4. साधन नहीं, संकल्प जरूरी है
सीमित साधनों के बावजूद उन्होंने जो कार्य किया, वह हमें यह सिखाता है कि अगर संकल्प हो, तो कोई भी बाधा रास्ता नहीं रोक सकती।
नंदलाल बोस का आज की शिक्षा और समाज में महत्व
आज जब हम नई शिक्षा नीति, कला के पाठ्यक्रम, और रचनात्मकता आधारित सीखने की बात करते हैं, तो नंदलाल बोस का दर्शन बहुत प्रासंगिक हो जाता है।
कला के ज़रिए बच्चों की भावनात्मक समझ, सांस्कृतिक जुड़ाव और संवेदनशीलता को बढ़ाया जा सकता है — जैसा कि नंदलाल बोस हमेशा कहते थे।
उनकी शैली शिक्षा को पुस्तक केंद्रित नहीं, अनुभव केंद्रित बनाने का मार्ग दिखाती है।
निष्कर्ष: नंदलाल बोस – एक कालजयी चित्रकार
नंदलाल बोस केवल एक चित्रकार नहीं थे, वे एक संवेदनशील आत्मा, एक विचारशील शिक्षक, और एक संस्कृति प्रेमी क्रांतिकारी थे।
उनकी रचनाएँ केवल देखने के लिए नहीं, महसूस करने के लिए हैं।
आज भारत का संविधान सिर्फ एक कानूनी दस्तावेज़ नहीं, बल्कि एक कलात्मक ग्रंथ भी है — और इसका श्रेय नंदलाल बोस को ही जाता है।
वे हमें सिखाते हैं:
“कला कोई वस्तु नहीं है जिसे सिखाया जाए,
कला वह भावना है जिसे जिया जाए।”
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