नालंदा विश्वविद्यालय: दुनिया के सबसे पुराने ज्ञान केंद्र का पुनः गौरव!

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नालंदा विश्वविद्यालय: भारत की ज्ञान और सांस्कृतिक चमक का शाश्वत प्रतीक!

प्रस्तावना

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भारत प्राचीन काल से ही ज्ञान, शिक्षा और दर्शन का केंद्र रहा है। ऋषियों की तपोभूमि और विचारों की जननी इस भूमि पर अनेक विश्वविद्यालयों का जन्म हुआ, जिन्होंने न केवल भारत को बल्कि पूरे एशिया को शिक्षा की रोशनी दी। इन्हीं में से एक महान शिक्षण संस्थान था – नालंदा विश्वविद्यालय, जिसे शिक्षा का ताज कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना

गुप्त काल का स्वर्णिम दौर

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी ईस्वी में कुमारगुप्त प्रथम (लगभग 415–455 ई.) के शासनकाल में हुई थी। गुप्त वंश का काल भारतीय इतिहास में “भारत का स्वर्ण युग” कहलाता है।

इसी समय में विज्ञान, गणित, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, साहित्य, और शिक्षा में अद्भुत प्रगति हुई। नालंदा का जन्म इसी वातावरण में हुआ।

नाम की उत्पत्ति

‘नालंदा’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – ‘ना’ (नहीं) और ‘अलंदा’ (ज्ञान का रोक)। इसका शाब्दिक अर्थ है – “वह स्थान जहाँ ज्ञान कभी नहीं रुकता”। यह नाम स्वयं इस विश्वविद्यालय के उद्देश्य और आत्मा को दर्शाता है।

भौगोलिक स्थिति

नालंदा विश्वविद्यालय बिहार राज्य के नालंदा जिले में स्थित है। यह पटना से लगभग 95 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में है। इसके पास ही राजगीर स्थित है, जो भगवान बुद्ध और महावीर से जुड़ा एक महत्वपूर्ण स्थान है।

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नालंदा विश्वविद्यालय की संरचना

भव्य स्थापत्य कला

नालंदा एक अत्यंत सुव्यवस्थित परिसर था। यहां पर:

8 विशाल सभागार (lecture halls)

10 से अधिक मंदिर

9 मंज़िला पुस्तकालय

300 कक्षों वाले छात्रावास

विशाल भोजनालय, जल व्यवस्था, और बगीचे

मौजूद थे। यह सब लाल ईंटों से बने हुए थे और स्थापत्य में गुप्त काल की उत्कृष्टता झलकती थी।

शैक्षिक जीवन

अध्ययन की शाखाएँ

नालंदा विश्वविद्यालय में अनेक विषयों की पढ़ाई होती थी:

दर्शन (Philosophy)

व्याकरण (Grammar)

चिकित्सा (Medicine)

खगोलशास्त्र (Astronomy)

तर्कशास्त्र (Logic)

बौद्ध धर्म, वेद, उपनिषद

गणित और धातुकर्म

यहाँ बौद्ध धर्म के साथ-साथ हिन्दू और जैन दर्शन की भी शिक्षा दी जाती थी।

प्रवेश प्रक्रिया

यहाँ प्रवेश पाना आसान नहीं था। छात्र को प्रवेश से पहले कठिन मौखिक परीक्षा देनी होती थी, जिसमें विद्वान भिक्षुओं द्वारा उसके ज्ञान की परीक्षा ली जाती थी।

शिक्षकों की भूमिका

यहाँ हजारों छात्र और सैकड़ों शिक्षक रहते थे। प्रमुख शिक्षकों में से कुछ के नाम हैं:

धर्मपाल

शीलभद्र

सांतारक्षित

चंद्रपाल

अंतर्राष्ट्रीय ख्याति

नालंदा सिर्फ भारत का ही नहीं, बल्कि पूरे एशिया का शिक्षा केंद्र था। यहाँ चीन, जापान, कोरिया, तिब्बत, मंगोलिया, श्रीलंका और सुमात्रा से छात्र अध्ययन के लिए आते थे।

प्रसिद्ध विदेशी छात्र

ह्वेनसांग (Xuanzang): चीन से आए इस बौद्ध भिक्षु ने 7वीं शताब्दी में नालंदा में 2 वर्षों तक अध्ययन किया और यहाँ के जीवन, शिक्षण पद्धति, पुस्तकालयों और व्यवस्था का अद्भुत विवरण दिया है।

इत्सिंग (Yijing): एक और चीनी यात्री जिसने नालंदा की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह संपूर्ण बौद्ध जगत का हृदय है।

पुस्तकालय – ज्ञान का भंडार

नालंदा का पुस्तकालय एक अद्वितीय संस्थान था जिसे तीन खंडों में बाँटा गया था:

1. रत्नसागर – सामान्य ग्रंथों का भंडार

2. रत्ननदी – दुर्लभ और उच्च कोटि के ग्रंथ

3. रत्नरंजक – तंत्र, चिकित्सा, दर्शन और विज्ञान से संबंधित

कहा जाता है कि इन पुस्तकालयों में 9 मिलियन से अधिक पांडुलिपियाँ थीं।

नालंदा विश्वविद्यालय संरक्षण और समर्पण

नालंदा विश्वविद्यालय को अनेक राजाओं और साम्राज्यों से संरक्षण मिला। पाल वंश के शासकों – जैसे धर्मपाल और देवपाल ने इसका विस्तार और संरक्षण किया। बौद्ध धर्म के प्रति उनके झुकाव ने नालंदा को और समृद्ध बनाया।

पतन और विनाश

बख्तियार खिलजी का आक्रमण

1193 ईस्वी में तुर्क आक्रांता बख्तियार खिलजी ने बिहार और बंगाल में बौद्ध संस्थानों पर आक्रमण किया। उसी दौरान नालंदा विश्वविद्यालय को जला दिया गया।

कहा जाता है कि पुस्तकालय की पांडुलिपियाँ महीनों तक जलती रहीं।

हजारों भिक्षुओं की हत्या की गई या उन्हें भगा दिया गया।

यह न केवल एक शैक्षिक संस्थान का विनाश था, बल्कि पूरे एशिया की बौद्धिक विरासत का नुकसान था।

आधुनिक पुनरुत्थान

नालंदा विश्वविद्यालय की पुनर्स्थापना

21वीं सदी में भारत सरकार ने नालंदा विश्वविद्यालय को फिर से स्थापित करने का निर्णय लिया। 2010 में नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम के तहत इसका पुनर्निर्माण हुआ।

इसका मुख्यालय बिहार के राजगीर में है।

इसमें अंतर्राष्ट्रीय सहयोग भी है – जापान, चीन, सिंगापुर, थाईलैंड और अन्य देशों ने इसमें योगदान दिया।

यह शिक्षा के आधुनिक और पारंपरिक स्वरूपों का संगम है।

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नालंदा विश्वविद्यालय का वैश्विक महत्व

नालंदा सिर्फ एक विश्वविद्यालय नहीं था – यह ज्ञान, सहिष्णुता, संस्कृति और वैश्विक संवाद का प्रतीक था। इसने दुनिया को यह सिखाया कि ज्ञान का कोई धर्म नहीं होता, और सच्चा ज्ञान सीमाओं से परे होता है।

पर्यटन स्थल के रूप में

आज नालंदा एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है:

इसे UNESCO की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है।

यहाँ नालंदा संग्रहालय, पुरातात्विक अवशेष, और ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल दर्शनीय हैं।

दुनिया भर से पर्यटक और शोधकर्ता यहाँ आते हैं।

नालंदा विश्वविद्यालय की शिक्षा प्रणाली

नालंदा विश्वविद्यालय की शिक्षा प्रणाली अत्यंत गहन और अनुसंधान आधारित थी। यहाँ पढ़ाई केवल किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं थी, बल्कि विचार-विमर्श, शास्त्रार्थ, और व्यावहारिक ज्ञान पर भी ज़ोर दिया जाता था। शिक्षक और छात्र दोनों ही दिन-रात अध्ययन में लगे रहते थे।

हर विषय को गंभीरता से पढ़ाया जाता था। व्याकरण, दर्शन, तर्क, चिकित्सा, खगोलशास्त्र और गणित जैसे विषयों में छात्रों की गहरी पकड़ होती थी।

बौद्ध धर्म के विभिन्न संप्रदायों की गूढ़ अवधारणाओं को भी यहाँ विस्तार से पढ़ाया जाता था। अध्ययन का माध्यम पालि और संस्कृत होता था।

छात्र जीवन और अनुशासन

नालंदा में छात्र जीवन अनुशासित और तपस्वी जीवन के समान होता था। छात्र सुबह जल्दी उठकर ध्यान और अध्ययन में लग जाते थे। भोजन भी सीमित मात्रा में और निश्चित समय पर होता था।

यहाँ छात्रों से अपेक्षा की जाती थी कि वे साधारण जीवन जिएं और पूर्णतः शिक्षा के प्रति समर्पित रहें।

हर छात्र के लिए अध्ययन और मनन अनिवार्य था। ध्यान और आत्ममंथन को शिक्षा का आवश्यक हिस्सा माना जाता था। छात्रों के लिए अलग-अलग छात्रावास थे और परिसर में ही भोजनालय और पुस्तकालय की सुविधाएँ थीं।

नालंदा विश्वविद्यालय का बौद्ध धर्म से संबंध

नालंदा विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म का एक महान केंद्र था, विशेषतः महायान बौद्ध परंपरा का। यहाँ अनेक बौद्ध भिक्षु दीक्षा ग्रहण करते थे और शिक्षा प्राप्त करके अपने देश लौटते थे। तिब्बत, चीन, कोरिया, और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से हजारों विद्यार्थी यहाँ अध्ययन के लिए आते थे।

यह संस्थान केवल धार्मिक शिक्षा तक सीमित नहीं था। बौद्ध धर्म के साथ-साथ वेदांत, सांख्य, न्याय, वैशेषिक, योग आदि भारतीय दर्शनों की भी शिक्षा दी जाती थी। इसलिए इसे बहुधर्मी और सर्वसमावेशी विश्वविद्यालय माना जाता था।

विनाश के प्रभाव

बख्तियार खिलजी के आक्रमण के बाद नालंदा का पूर्णतः विनाश हो गया। पुस्तकालयों की आग में भारत की हजारों वर्षों की बौद्धिक धरोहर नष्ट हो गई। इस हमले ने भारत में बौद्ध धर्म के पतन को तेज कर दिया।

इस विनाश ने पूरे विश्व के बौद्ध अनुयायियों को स्तब्ध कर दिया। तिब्बत और चीन जैसे देशों में भी इस घटना को शिक्षा के अंधकार युग की शुरुआत माना गया।

नालंदा विश्वविद्यालय का पुनर्जागरण

21वीं सदी में जब भारत ने अपने गौरवशाली अतीत की ओर देखा, तो नालंदा का पुनर्जीवन एक स्वाभाविक विचार बना। 2010 में इसे आधुनिक रूप में दोबारा स्थापित किया गया।

इसका उद्देश्य न केवल शिक्षा देना था, बल्कि एक बार फिर से एशिया और विश्व में भारत को ज्ञान की राजधानी के रूप में स्थापित करना था।

आज का नालंदा विश्वविद्यालय एक आधुनिक परिसर है जहाँ विश्व के छात्र उच्च शिक्षा के लिए आते हैं। यह भारत की ‘नरेंद्र मोदी सरकार’ की एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना रही है जिसमें कई देशों का सहयोग भी रहा है।

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व

नालंदा न केवल शिक्षा का केंद्र था बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर का भी प्रतीक था। यह स्थान यह दिखाता है कि भारत में शिक्षा और ज्ञान को किस स्तर पर महत्व दिया गया था।

नालंदा के खंडहर आज भी उन महान दिनों की गवाही देते हैं जब भारत विश्व का गुरु था। यह स्थल भारतीयों को अपने अतीत पर गर्व करने की प्रेरणा देता है।

नालंदा में पुस्तकालय प्रणाली

नालंदा विश्वविद्यालय का पुस्तकालय विश्व का सबसे समृद्ध और विशाल ज्ञानकोश माना जाता था। इसे तीन मुख्य भवनों में विभाजित किया गया था:

  1. रत्नसागर
  2. रत्नोदधि
  3. रत्नरंजन

इनमें से रत्नसागर नौ मंजिला इमारत थी, जिसमें हजारों हस्तलिखित पांडुलिपियाँ रखी गई थीं। इन ग्रंथों में वेद, उपनिषद, आयुर्वेद, खगोलशास्त्र, गणित, तर्कशास्त्र, बौद्ध दर्शन और अन्य अनेक विषयों की पांडुलिपियाँ थीं।

कहा जाता है कि जब बख्तियार खिलजी ने इस पुस्तकालय को जलाया, तो उसकी आग महीनों तक बुझी नहीं। यह इस बात का प्रतीक है कि भारत में ज्ञान का कितना विशाल भंडार था, जो दुर्भाग्यवश समाप्त हो गया।

नालंदा के प्रमुख शिक्षक

नालंदा में समय-समय पर अनेक महान आचार्य और विद्वान हुए, जिन्होंने न केवल भारत बल्कि विदेशों में भी अपना नाम स्थापित किया। कुछ प्रमुख नाम इस प्रकार हैं:

आचार्य नागार्जुन – प्रसिद्ध महायान बौद्ध दार्शनिक

धर्मपाल – गुप्तकाल के दौरान विश्वविद्यालय के प्रमुख संरक्षक

शिलभद्र – चीनी यात्री ह्वेनसांग के गुरु

वसुबन्धु – योगाचार बौद्ध दर्शन के प्रमुख आचार्य

इन आचार्यों ने नालंदा को वैश्विक बौद्ध शिक्षा का केंद्र बना दिया था।

विदेशी यात्रियों का योगदान

नालंदा की ख्याति इतनी व्यापक थी कि कई विदेशी यात्री विशेष रूप से इसका अध्ययन करने भारत आए। दो प्रमुख नाम हैं:

ह्वेनसांग (Xuanzang) – चीन से आए इस महान यात्री ने नालंदा में कई वर्ष बिताए और यहां के शिक्षकों के साथ अध्ययन किया। उन्होंने ‘सी-यू-की’ नामक ग्रंथ में नालंदा की विस्तृत जानकारी दी है।

इत्सिंग (I-Tsing) – इन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय में बौद्ध धर्म, दर्शन और संस्कृत का अध्ययन किया और चीन लौटकर वहाँ बौद्ध ग्रंथों का अनुवाद किया।

इन यात्रियों की पुस्तकों से हमें नालंदा के जीवन, व्यवस्था और शिक्षा पद्धति की प्रमाणिक जानकारी प्राप्त होती है।

नालंदा का वैश्विक प्रभाव

नालंदा न केवल भारत के लिए बल्कि एशिया के लिए एक सांस्कृतिक और बौद्धिक केंद्र था। यहाँ के छात्र और शिक्षक तिब्बत, मंगोलिया, जापान, चीन, श्रीलंका, इंडोनेशिया, और दक्षिण कोरिया तक जाते थे और वहाँ भारतीय दर्शन और बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे।

नालंदा से प्रेरणा लेकर इन देशों में भी बौद्ध शिक्षा संस्थान स्थापित किए गए। इसने भारत को ज्ञान की राजधानी और सांस्कृतिक नेता के रूप में स्थापित किया।

नालंदा के पुनर्निर्माण का अभियान

21वीं सदी में जब भारत ने फिर से शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में अपना स्थान मजबूत करने का प्रयास किया, तो नालंदा को दोबारा स्थापित करना एक ऐतिहासिक निर्णय था। इसके लिए अनेक देशों ने भारत के साथ मिलकर काम किया, जिनमें प्रमुख हैं:

चीन

जापान

थाईलैंड

सिंगापुर

लाओस

भूटान

2014 में इसका नया परिसर बिहार के राजगीर में स्थापित हुआ। यहाँ अब अंतरराष्ट्रीय छात्र आधुनिक विषयों जैसे अंतरराष्ट्रीय संबंध, पर्यावरण अध्ययन, ऐतिहासिक अध्ययन, और बौद्ध अध्ययन का अध्ययन करते हैं।

आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय के उद्देश्य

नव स्थापित नालंदा विश्वविद्यालय का उद्देश्य केवल अतीत की महिमा को पुनर्जीवित करना नहीं, बल्कि आधुनिक शिक्षा में भारतीय मूल्यों और विचारों का समावेश करना भी है। इसके प्रमुख उद्देश्य हैं:

वैश्विक ज्ञान का समावेश और आदान-प्रदान

अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए भारतीय शिक्षा का आकर्षण

बौद्ध अध्ययन और सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण

आधुनिक विषयों में भारतीय दृष्टिकोण का विकास

प्रेरणा और सीख

नालंदा विश्वविद्यालय की कहानी हमें यह बताती है कि भारत ने प्राचीन काल में भी शिक्षा और ज्ञान को सर्वोच्च स्थान दिया था। यह एक ऐसा उदाहरण है जो आज की पीढ़ी को यह सिखाता है कि बिना तकनीक के भी भारत ने विश्व को नेतृत्व दिया था – केवल ज्ञान के बल पर।

आज जब दुनिया एक बार फिर शिक्षा और मूल्यों की ओर लौटने का प्रयास कर रही है, तो नालंदा जैसी संस्थाएँ हमें रास्ता दिखा सकती हैं। यह केवल ईंटों और पत्थरों का ढांचा नहीं, बल्कि ज्ञान, संस्कृति और आदर्शों का जीवंत स्मारक है।

निष्कर्ष

नालंदा विश्वविद्यालय केवल प्राचीन भारत की शैक्षिक उपलब्धि नहीं, बल्कि पूरी मानव सभ्यता की उपलब्धि थी। यह एक उदाहरण है कि कैसे एक संस्थान शांति, ज्ञान और वैश्विक एकता का प्रतीक बन सकता है।

आज जब हम ज्ञान के आधुनिक युग में प्रवेश कर चुके हैं, नालंदा हमें यह याद दिलाता है कि ज्ञान का कोई अंत नहीं होता – “ना अलंदा” – ज्ञान कभी नहीं रुकता।


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Sanjeev

Hello! Welcome To About me My name is Sanjeev Kumar Sanya. I have completed my BCA and MCA degrees in education. My keen interest in technology and the digital world inspired me to start this website, “Aajvani.com.”

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