नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र

नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र – भारत का अद्भुत प्राकृतिक और जैव विविधता केंद्र

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नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र – भारत की प्राकृतिक धरोहर

भारत की जैव विविधता विश्व में एक विशेष स्थान रखती है। यहाँ के पर्वत, जंगल, नदियाँ और जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र न केवल पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, बल्कि सांस्कृतिक विरासत को भी संजोए हुए हैं। इन्हीं में से एक है “नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र”, जो दक्षिण भारत में स्थित है और अपनी असाधारण भौगोलिक, पारिस्थितिकीय और सांस्कृतिक विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है।

नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र भारत का पहला घोषित जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र (1986) है। यह क्षेत्र पश्चिमी घाट की ऊँचाईयों पर फैला हुआ है और UNESCO द्वारा “Man and Biosphere Programme” के अंतर्गत 2000 में इसे विश्व जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र नेटवर्क में शामिल किया गया। यहाँ की प्राकृतिक संपदा, विशिष्ट जलवायु और पारंपरिक जनजातीय संस्कृति इसे अद्वितीय बनाती है।

नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र का परिचय

नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र (Nilgiri Biosphere Reserve) दक्षिण भारत के तीन राज्यों — तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक — में फैला हुआ है। इसका नाम “नीलगिरि” पर्वत श्रृंखला से पड़ा है, जिसका अर्थ होता है “नीले पर्वत”। यह नाम इन पर्वतों पर पाए जाने वाले नीलकुरिंजी फूलों के कारण पड़ा जो हर 12 साल में एक बार खिलते हैं और पहाड़ियों को नीला रंग देते हैं।

स्थापना वर्ष: 1986

UNESCO मान्यता: 2000 (Man and Biosphere Programme)

क्षेत्रफल: लगभग 5,520 वर्ग किलोमीटर

प्रशासनिक राज्य: तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक

इस आरक्षित क्षेत्र में कई संरक्षित वन क्षेत्र, राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य शामिल हैं, जैसे:

मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य (तमिलनाडु)

वायनाड वन्यजीव अभयारण्य (केरल)

नगलहोल राष्ट्रीय उद्यान (कर्नाटक)

साइलेंट वैली राष्ट्रीय उद्यान (केरल)

नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र
नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र – भारत का अद्भुत प्राकृतिक और जैव विविधता केंद्र

भौगोलिक स्थिति और विस्तार

नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र भारत के दक्षिणी भाग में वायनाड पठार और नीलगिरि पर्वत श्रृंखला में स्थित है। इसका भौगोलिक स्थान पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट के संगम क्षेत्र पर है, जिससे इसकी पारिस्थितिकीय महत्ता और बढ़ जाती है।

अक्षांश: 10° 45′ से 12° 05′ उत्तर

देशांतर: 76° से 77° 15′ पूर्व

ऊँचाई: समुद्र तल से 300 मीटर से 2,600 मीटर तक

यह क्षेत्र पश्चिमी घाट की 7 पर्वत श्रृंखलाओं को समेटे हुए है, जिनमें नीलगिरि हिल्स, मुदुमलाई क्षेत्र, साइलेंट वैली, वायनाड और ब्रह्मगिरि रेंज शामिल हैं। नदियों में भवानी, कावेरी, मुथिरापुझा, कुन्तिपुझा जैसी प्रमुख नदियाँ इस क्षेत्र से निकलती हैं, जो दक्षिण भारत के जल संसाधनों में योगदान देती हैं।

जलवायु और भौगोलिक विशेषताएँ

नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र की जलवायु विविध प्रकार की है — उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु से लेकर उप-आल्पाइन जलवायु तक।

तापमान: 15°C से 28°C के बीच रहता है, ऊँचाई के अनुसार इसमें परिवर्तन होता है।

वर्षा: सालाना वर्षा 500 मिमी से 7000 मिमी तक होती है। पश्चिमी घाट के कारण यहाँ ओरोग्राफिक वर्षा बहुत होती है।

मिट्टी: लाल मिट्टी, लेटराइट मिट्टी, और गहरे जंगलों की ह्यूमसयुक्त मिट्टी पाई जाती है।

यह विविध जलवायु और स्थलाकृति यहाँ की घनी जैव विविधता को पोषण प्रदान करती है।

जैव विविधता – वनस्पति और जीव-जंतु

नीलगिरि क्षेत्र भारत के सबसे समृद्ध जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से एक है। यहाँ उष्णकटिबंधीय वर्षावन, शोलास (ऊँचाई पर पाए जाने वाले सदाबहार जंगल), घासभूमियाँ और आर्द्रभूमियाँ सभी प्रकार की वनस्पतियाँ पाई जाती हैं।

वनस्पति विविधता

ट्रॉपिकल रेनफॉरेस्ट (उष्णकटिबंधीय वर्षावन)

शोलास और घासभूमि पारिस्थितिकी तंत्र

सागौन, चंदन, रोज़वुड, युकलिप्टस, बांज जैसे पेड़

नीलकुरिंजी (Strobilanthes kunthiana) जैसी विशिष्ट प्रजातियाँ जो 12 वर्ष में एक बार खिलती हैं

यहाँ 3,000 से अधिक पौधों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें लगभग 130 से अधिक स्थानिक (Endemic) प्रजातियाँ हैं।

जीव-जंतु विविधता

यह क्षेत्र कई दुर्लभ और विलुप्तप्राय प्रजातियों का घर है।

स्तनधारी: एशियाई हाथी, बंगाल टाइगर, तेंदुआ, गौर (Indian Bison), स्लॉथ बियर, नीलगिरी तहर (Nilgiri Tahr)

पक्षी: मालाबार ट्रोगन, नीलगिरी फ्लायकैचर, हॉर्नबिल्स, गरुड़

सरीसृप व उभयचर: किंग कोबरा, मालाबार पिट वाइपर, स्थानिक मेंढक प्रजातियाँ

कीट व तितलियाँ: दक्षिण भारत की दुर्लभ तितली प्रजातियाँ यहाँ पाई जाती हैं।

यह क्षेत्र वेस्टर्न घाट्स – श्रीलंका बायोजियोग्राफिक ज़ोन में आता है, जो विश्व के 36 “जैव विविधता हॉटस्पॉट्स” में से एक है।

पारिस्थितिक महत्व

नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र सिर्फ जैव विविधता का केंद्र ही नहीं, बल्कि दक्षिण भारत की पारिस्थितिकीय सुरक्षा का मुख्य आधार है।

यह क्षेत्र जल स्रोतों का प्रमुख उद्गम स्थल है — कावेरी जैसी नदियाँ यहाँ से निकलती हैं।

यहाँ के जंगल कार्बन सिंक के रूप में काम करते हैं और जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।

यह क्षेत्र जैविक गलियारा (Biological Corridor) बनाता है, जिससे वन्यजीवों को स्वतंत्र आवाजाही में मदद मिलती है।

स्थानीय समुदाय और सांस्कृतिक पहलू

नीलगिरि क्षेत्र में कई आदिवासी समुदाय सदियों से रहते आए हैं।

Toda जनजाति: पशुपालन और अनोखी झोपड़ीनुमा झोपड़ियों के लिए प्रसिद्ध

Kurumba और Irula जनजातियाँ: पारंपरिक औषधीय ज्ञान और वनों पर निर्भरता

Badaga समुदाय: कृषि और चाय की खेती में सक्रिय

इन समुदायों की संस्कृति और पारंपरिक ज्ञान प्रणाली ने इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी को सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

संरक्षण प्रयास और नीतियाँ

भारतीय सरकार और राज्य सरकारों ने नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र की सुरक्षा के लिए कई नीतियाँ अपनाई हैं:

1986: नीलगिरि को भारत का पहला जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया।

2000: UNESCO के MAB Programme में शामिल किया गया।

Project Tiger & Project Elephant: टाइगर रिजर्व और एलीफैंट कॉरिडोर के माध्यम से सुरक्षा।

Eco-development Projects: स्थानीय समुदायों को संरक्षण से जोड़ना।

चुनौतियाँ और खतरे

1. वनों की कटाई: विकास परियोजनाएँ और कृषि विस्तार के कारण जंगल सिकुड़ रहे हैं।

2. मानव अतिक्रमण: आबादी बढ़ने से जैव विविधता पर दबाव।

3. जलवायु परिवर्तन: तापमान वृद्धि और अनियमित वर्षा पैटर्न पारिस्थितिकी को प्रभावित कर रहे हैं।

4.अवैध शिकार और वन्यजीव संघर्ष: बाघ, हाथी जैसे जीवों के लिए खतरा।

5. अनियंत्रित पर्यटन: पारिस्थितिक तंत्र पर दबाव डालता है।

पर्यटन और सतत विकास

नीलगिरि क्षेत्र में ईको-टूरिज्म की अपार संभावनाएँ हैं, जो स्थानीय रोजगार के साथ संरक्षण को भी बढ़ावा देती हैं।

प्रमुख पर्यटन स्थल:

मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य

साइलेंट वैली राष्ट्रीय उद्यान

वायनाड वन क्षेत्र

ऊटी और कुन्नूर जैसी हिल स्टेशन

सरकार ईको-फ्रेंडली टूरिज्म को बढ़ावा दे रही है ताकि पर्यावरणीय नुकसान कम हो और स्थानीय लोगों को लाभ मिले।

भविष्य की रणनीतियाँ और सुझाव

टेक्नोलॉजी का उपयोग: ड्रोन, GIS और रिमोट सेंसिंग से निगरानी बढ़ाना।

स्थानीय समुदायों की भागीदारी: जनजातियों को संरक्षण में सक्रिय भूमिका देना।

शिक्षा और जागरूकता: युवाओं को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ना।

कानूनी प्रवर्तन: अवैध गतिविधियों पर सख्ती से नियंत्रण।

अंतरराष्ट्रीय सहयोग: UNESCO और अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर दीर्घकालिक योजनाएँ।

नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र
नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र – भारत का अद्भुत प्राकृतिक और जैव विविधता केंद्र

FAQs – नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र

1. नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र कहाँ स्थित है?

उत्तर: नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र दक्षिण भारत में तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक राज्यों में फैला हुआ है। यह पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट के संगम पर स्थित है।

2. नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र का स्थापना वर्ष कब है?

उत्तर: इसे 1986 में भारत का पहला जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया था।

3. नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र की UNESCO मान्यता कब हुई?

उत्तर: UNESCO द्वारा इसे 2000 में “Man and Biosphere Programme” के अंतर्गत विश्व जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र में शामिल किया गया।

4. नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र की प्रमुख वनस्पति क्या है?

उत्तर: यहाँ उष्णकटिबंधीय वर्षावन, शोलास, घासभूमि जैसी वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। प्रमुख पेड़-पौधे हैं: सागौन, चंदन, रोज़वुड, नीलकुरिंजी।

5. नीलगिरि में कौन-कौन से प्रमुख जीव-जंतु पाए जाते हैं?

उत्तर: यहाँ के प्रमुख जीव-जंतु हैं:

स्तनधारी: एशियाई हाथी, बंगाल टाइगर, नीलगिरी तहर

पक्षी: मालाबार ट्रोगन, नीलगिरी फ्लायकैचर, हॉर्नबिल्स

सरीसृप व उभयचर: किंग कोबरा, मालाबार पिट वाइपर

6. नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र का क्षेत्रफल कितना है?

उत्तर: लगभग 5,520 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।

7. नीलगिरि क्षेत्र में कौन-कौन सी नदियाँ उत्पन्न होती हैं?

उत्तर: यहाँ से निकलने वाली प्रमुख नदियाँ हैं: कावेरी, भवानी, मुथिरापुझा, कुन्तिपुझा।

8. नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र क्यों महत्वपूर्ण है?

उत्तर: यह क्षेत्र जैव विविधता, पारिस्थितिकीय संतुलन और जल स्रोतों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। साथ ही यह वनों, वन्यजीव और स्थानीय आदिवासी संस्कृति का संरक्षण करता है।

9. नीलगिरि में पर्यटन के लिए क्या विशेषताएँ हैं?

उत्तर: यहाँ ईको-टूरिज्म के लिए प्रमुख स्थल हैं:

मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य

साइलेंट वैली राष्ट्रीय उद्यान

वायनाड वन क्षेत्र

ऊटी और कुन्नूर हिल स्टेशन

10. नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र के संरक्षण के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं?

उत्तर: प्रमुख प्रयास हैं:

Project Tiger और Project Elephant

स्थानीय समुदायों को संरक्षण में शामिल करना

ईको-टूरिज्म को बढ़ावा देना

अवैध शिकार और वन अतिक्रमण पर नियंत्रण

11. नीलगिरि की सबसे अनोखी वनस्पति कौन-सी है?

उत्तर: नीलकुरिंजी (Strobilanthes kunthiana), जो हर 12 साल में एक बार खिलती है और पूरे नीलगिरि पर्वत को नीला कर देती है।

12. नीलगिरि क्षेत्र में कौन-कौन से आदिवासी समुदाय रहते हैं?

उत्तर: यहाँ मुख्य रूप से Toda, Kurumba, Irula और Badaga जनजातियाँ रहती हैं। ये समुदाय पारंपरिक ज्ञान और वन संरक्षण में मदद करते हैं।

निष्कर्ष – नीलगिरि की अनमोल विरासत

नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र सिर्फ भारत का पहला जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र नहीं है, बल्कि यह प्राकृतिक, पारिस्थितिक और सांस्क्कृतिक संपदा का अद्वितीय संगम है। यहाँ की घनी वनस्पति, दुर्लभ और विलुप्तप्राय जीव-जंतु, अद्वितीय जलवायु और ऊँची पहाड़ियों की स्थलाकृति इसे वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण बनाती हैं।

यह क्षेत्र न केवल जल स्रोतों और जलवायु संतुलन में योगदान देता है, बल्कि स्थानीय आदिवासी समुदायों की संस्कृति और पारंपरिक ज्ञान को भी संरक्षित करता है। नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र मानव और प्रकृति के बीच संतुलन का प्रतीक है।

आज के समय में इस क्षेत्र को वन कटाई, जलवायु परिवर्तन और मानव अतिक्रमण जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए आवश्यक है कि हम इसके संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभाएँ।

भविष्य की दिशा:

स्थानीय समुदायों को संरक्षण में शामिल करना

सतत पर्यटन और ईको-टूरिज्म को बढ़ावा देना

आधुनिक तकनीक और वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से संरक्षण

शिक्षा और जागरूकता के जरिए आने वाली पीढ़ियों को नीलगिरि की महत्ता समझाना

नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र न केवल भारत की प्राकृतिक धरोहर है, बल्कि यह वैश्विक पारिस्थितिकीय संतुलन में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है। इसे संरक्षित करना हमारी जिम्मेदारी है ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस अद्भुत जैव विविधता और प्राकृतिक सुंदरता का अनुभव कर सकें।

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Sanjeev

Hello! Welcome To About me My name is Sanjeev Kumar Sanya. I have completed my BCA and MCA degrees in education. My keen interest in technology and the digital world inspired me to start this website, “Aajvani.com.”

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