पट्टचित्र क्या है? जानिए ओडिशा की इस अद्भुत पारंपरिक पेंटिंग की गौरवशाली विरासत, रहस्य और आधुनिक सफलता की कहानी!

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पट्टचित्र क्यों है ओडिशा की सबसे प्रसिद्ध पारंपरिक पेंटिंग? जानिए इसकी उत्पत्ति, शैली और वैश्विक पहचान!

शाब्दिक अर्थ और व्युत्पत्ति

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‘पट्टचित्र’ शब्द की उत्पत्ति दो संस्कृत शब्दों से हुई है — ‘पट्ट’ का अर्थ है “कपड़ा” या “कैनवास”, और ‘चित्र’ का अर्थ है “चित्रण” या “चित्रकारी”। इस प्रकार पट्टचित्र का शाब्दिक अर्थ हुआ — कपड़े पर चित्रित चित्र।

हालांकि आज पट्टचित्र ताड़ के पत्तों, लकड़ी और दीवारों पर भी बनाए जाते हैं, परंतु पारंपरिक रूप से यह कपड़े पर बनाए जाते थे। यह केवल एक चित्रकला नहीं, बल्कि एक धार्मिक और सांस्कृतिक साधना है।

पट्टचित्र की उत्पत्ति और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

पट्टचित्र की परंपरा ओडिशा के पुरी क्षेत्र में प्राचीन काल से विकसित हुई मानी जाती है। इसका सबसे गहरा संबंध पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर से है।

जब मंदिर में सालाना रत्नसिंहासन की पूजा बंद होती है (जिसे अनसर काल कहते हैं), उस समय पट्टचित्रों का प्रयोग भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन की पूजा में किया जाता है।

ऐसा माना जाता है कि पट्टचित्र की परंपरा 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व से चली आ रही है। इसे राजा इंद्रद्युम्न के काल से जोड़ा जाता है, जिन्होंने जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कराया था।

रचनात्मक प्रक्रिया: कैसे बनता है एक पट्टचित्र?

पट्टचित्र केवल एक पेंटिंग नहीं, बल्कि एक साधना है। इसकी निर्माण प्रक्रिया बेहद जटिल और अनुशासित होती है:

(i) कैनवास की तैयारी

एक सूती कपड़े को इमली के बीज के गाढ़े घोल में डुबोया जाता है।

फिर उस पर चॉक पाउडर और गोंद (जिसे ‘निरगुंडी’ कहते हैं) का लेप किया जाता है।

सूखने के बाद यह कैनवास चमकदार और चित्रकारी के योग्य बन जाता है।

(ii) चित्रांकन (Drawing)

पहले सूक्ष्म रेखाओं से रफ स्केच तैयार किया जाता है।

इसके लिए बारीक बांस की कलम का उपयोग किया जाता है।

(iii) रंग भरना

पट्टचित्र में उपयोग होने वाले रंग प्राकृतिक होते हैं:

लाल रंग – हिंगुला पत्थर से

पीला – हरिताल से

नीला – इंडिगो से

काला – जलाकर तैयार किए गए नारियल की राख से

रंग भरने में कोई परछाई या ग्रेडिएशन नहीं होता। सबकुछ फ्लैट और बोल्ड रंगों में होता है।

(iv) अंतिम लेप

पूरी पेंटिंग पर एक पतली लाख की परत लगाई जाती है जिससे यह वर्षों तक सुरक्षित और चमकदार बनी रहती है।

प्रमुख विषय-वस्तु: क्या-क्या चित्रित होता है पट्टचित्र में?

पट्टचित्र मुख्य रूप से धार्मिक और पौराणिक कथाओं को प्रस्तुत करते हैं। इनमें निम्नलिखित विषय बहुत प्रसिद्ध हैं:

(i) भगवान जगन्नाथ की कथाएँ

भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की लीलाएं

नीलमाधव की कथा

अनसर काल की परंपरा

(ii) रामायण और महाभारत से प्रसंग

सीता हरण

राम और हनुमान की मुलाकात

अर्जुन और कृष्ण का संवाद (गीता उपदेश)

(iii) राधा-कृष्ण की प्रेम लीलाएं

मुरली वादन

रासलीला

गोपियों के साथ कृष्ण की बातचीत

(iv) लोककथाएं और जनजीवन

ग्रामीण उत्सव

पशु-पक्षी

जीवन के 16 संस्कार

पट्टचित्र के कलाकार: ‘चित्रकार’ समुदाय

पट्टचित्र कला को जीवित रखने वाले कारीगरों को ‘चित्रकार’ या ‘महापात्र’ कहा जाता है। ये कलाकार पारंपरिक रूप से पुरी जिले के रघुराजपुर गांव में रहते हैं।

यह गांव यूनेस्को द्वारा विरासत गांव के रूप में मान्यता प्राप्त है।

यहां के हर घर में कोई न कोई पट्टचित्र कलाकार होता है।

चित्रकार अपनी कला को पीढ़ी दर पीढ़ी सिखाते और आगे बढ़ाते हैं।

पट्टचित्र क्या है? जानिए ओडिशा की इस अद्भुत पारंपरिक पेंटिंग की गौरवशाली विरासत, रहस्य और आधुनिक सफलता की कहानी!
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पट्टचित्र का धार्मिक और सामाजिक महत्व

पट्टचित्र केवल कला नहीं है, यह एक धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा है:

अनसर काल में भगवान की अनुपस्थिति को पट्टचित्र के माध्यम से पूरा किया जाता है।

इसे देवता का प्रतीक मानकर पूजा जाता है।

हर घर में शुभ अवसरों पर पट्टचित्र लगाने की परंपरा है।

पट्टचित्र और महिलाएं

हालांकि पारंपरिक रूप से यह कला पुरुषों तक सीमित थी, आज महिलाएं भी बड़ी संख्या में इस क्षेत्र में आ रही हैं। वे:

लघु पट्टचित्र बनाती हैं

घर की दीवारों पर अलंकरण करती हैं

बाजार के लिए सजावटी उत्पाद भी तैयार करती हैं (जैसे Bookmark, Diary, Bags आदि)

पट्टचित्र का आधुनिक रूपांतरण

आज पट्टचित्र केवल धार्मिक दीवारों या मंदिर तक सीमित नहीं है। इसका आधुनिक उपयोग कई नए रूपों में हो रहा है:

फैशन: पट्टचित्र की थीम पर साड़ियाँ, कुर्ते और बैग तैयार किए जाते हैं।

होम डेकोर: घर की सजावट के लिए म्यूरल, पेंटिंग फ्रेम और शोपीस बनाए जाते हैं।

डिजिटल माध्यम: अब डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी कलाकार अपने डिज़ाइन बेचते हैं।

पट्टचित्र और वैश्विक पहचान

पट्टचित्र को GI टैग (Geographical Indication) मिला हुआ है।

इसे कई अंतरराष्ट्रीय कला मेलों में प्रस्तुत किया गया है।

विदेशों में इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है, खासकर भारत प्रेमियों और कलाकला संग्राहकों के बीच।

संकट और संरक्षण की आवश्यकता

हालांकि पट्टचित्र ने समय के साथ काफी विस्तार किया है, परंतु कई चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं:

कृत्रिम रंगों का बढ़ता प्रयोग – पारंपरिक रंगों के स्थान पर सस्ते सिंथेटिक रंगों का प्रयोग बढ़ रहा है।

कम आर्थिक सहयोग – कलाकारों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता।

कॉपी और नकली कला – बाजार में नकली पट्टचित्र भी बेचे जा रहे हैं।

सरकार और संस्थाओं की भूमिका

ओडिशा हैंडलूम और हैंडीक्राफ्ट विभाग कई ट्रेनिंग प्रोग्राम चला रहा है।

NGO और कला संगठन कलाकारों को e-commerce से जोड़ रहे हैं।

विद्यालयों में कला शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि नई पीढ़ी जुड़े।

भविष्य की दिशा

पट्टचित्र को भविष्य में जीवित रखने के लिए जरूरी है:

शिक्षा से जोड़ना – विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में इसके पाठ्यक्रम बनाए जाएं।

नई तकनीकों के साथ मेल – डिजिटल और AR/VR तकनीक में इस कला को उतारा जाए।

सांस्कृतिक पर्यटन – रघुराजपुर जैसे गांवों को टूरिस्ट हब के रूप में विकसित किया जाए।

पट्टचित्र की कलात्मक विशेषताएँ (Artistic Characteristics)

पट्टचित्र की सबसे विशिष्ट विशेषता इसकी सटीक रेखाएं, प्रबल रंग, और धार्मिक सौंदर्यबोध है।

(i) सीमित रंगों का उपयोग

पट्टचित्र में पारंपरिक रूप से केवल 5 से 7 रंगों का उपयोग होता है।

इसमें लाल, पीला, नीला, हरा, काला, सफेद और नारंगी प्रमुख हैं।

प्रत्येक रंग का धार्मिक या सांस्कृतिक अर्थ होता है – जैसे लाल रंग शक्ति और प्रेम का प्रतीक है, काला रक्षा का, आदि।

(ii) रेखांकन की बारीकी

रेखाएं बहुत पतली और समांतर होती हैं।

कभी-कभी एक चित्र को पूर्ण करने में कई सप्ताह या महीने लग जाते हैं।

(iii) कोई खाली स्थान नहीं

हर चित्र में पूरा कैनवास भरा होता है। “फुल कम्पोज़िशन” ही इसकी खूबी है।

कोई भी कोना खाली नहीं छोड़ा जाता — सब जगह डिज़ाइन, बूटियां, फूल या अन्य धार्मिक प्रतीक होते हैं।

पट्टचित्र और पर्यावरण चेतना

यह चित्रकला 100% इको-फ्रेंडली और सस्टेनेबल होती है।

सभी रंग प्राकृतिक पत्थरों, पत्तों और बीजों से तैयार होते हैं।

किसी भी प्रकार का प्लास्टिक, केमिकल या हानिकारक सामग्री का प्रयोग नहीं होता।

इसके कलाकारों की पारंपरिक जीवनशैली प्रकृति से गहराई से जुड़ी होती है।

यह आज के समय में जब ‘पर्यावरणीय चेतना’ और ‘हरित कलाएँ’ ज़रूरी हैं, तब पट्टचित्र एक आदर्श उदाहरण बनता है।

पट्टचित्र और आर्थिक स्वतंत्रता

पट्टचित्र न केवल एक कला है, बल्कि गांवों में आर्थिक आत्मनिर्भरता का स्रोत भी है।

(i) स्वरोजगार का साधन

कई चित्रकार परिवार घर से ही स्टूडियो चला रहे हैं।

महिलाएं, बुजुर्ग और युवा — सभी इसमें भाग लेते हैं।

(ii) स्थानीय से वैश्विक बाजार तक

पहले पट्टचित्र केवल मंदिर या स्थानीय बाजारों तक सीमित थे।

अब ये Amazon, Etsy, State Emporiums और इंटरनेशनल गैलरी में भी बिक रहे हैं।

विदेशी पर्यटक इन कलाकृतियों को काफी मूल्य पर खरीदते हैं।

 रघुराजपुर: पट्टचित्र की धरती

(i) रघुराजपुर का महत्व

ओडिशा के पुरी जिले में स्थित रघुराजपुर गांव को “आर्टिस्ट विलेज” के नाम से जाना जाता है।

यहाँ हर घर एक स्टूडियो है और हर गली एक आर्ट गैलरी।

(ii) विशेषताएँ

गांव को भारतीय विरासत ग्राम का दर्जा प्राप्त है।

यहाँ सालाना “गोटीपुआ नृत्य उत्सव” भी होता है जिसमें कला और संस्कृति को मनाया जाता है।

भारत सरकार और यूनेस्को ने भी इस गांव को संरक्षण योजनाओं में शामिल किया है।

पट्टचित्र और शिक्षा

पट्टचित्र अब केवल पारंपरिक ज्ञान नहीं रहा। इसे आधुनिक शैक्षणिक प्रणाली में भी शामिल किया जा रहा है।

(i) पाठ्यक्रम में समावेश

NCERT, SCERT और कला विद्यालयों ने इसे अपनी पुस्तकों और पाठ्यक्रमों में शामिल किया है।

इससे विद्यार्थी न केवल कला बल्कि भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को भी सीख रहे हैं।

(ii) वर्कशॉप्स और प्रदर्शनी

पूरे भारत में पट्टचित्र वर्कशॉप्स आयोजित की जाती हैं जहाँ युवा कलाकार प्रशिक्षण पाते हैं।

ललित कला अकादमी, राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, और संगीत नाटक अकादमी जैसे संस्थान इसे बढ़ावा दे रहे हैं।

pattachitra का संवादात्मक पक्ष

pattachitra एक “विजुअल नैरेटिव आर्ट” है — यानी यह चित्रों के माध्यम से कहानी कहता है।

इन चित्रों में भाव, संवाद, घटनाएं और संस्कार स्पष्ट रूप से दिखते हैं।

शब्दों की आवश्यकता नहीं, क्योंकि हर चित्र बोलता है।

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(i) भित्तिचित्र रूपांतरण

कई कलाकार अब pattachitra की शैली में दीवारों और सार्वजनिक स्थलों को सजाते हैं।

इससे शहरों में भी लोककला का पुनर्जागरण हो रहा है।

डिजिटल युग में पट्टचित्र

pattachitra अब केवल दीवार या कैनवास तक सीमित नहीं। डिजिटल प्लेटफॉर्म ने इसे नई पहचान दी है:

Instagram और YouTube जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कलाकार अपनी प्रक्रिया और चित्रों को साझा करते हैं।

NFT (Non-Fungible Token) तकनीक में भी कुछ कलाकार अपने pattachitra डिज़ाइन को डिजिटल रूप में बेच रहे हैं।

(i) Art Therapy और मानसिक स्वास्थ्य

कई मनोवैज्ञानिक pattachitra को आर्ट थैरेपी में उपयोग कर रहे हैं।

रंगों, रेखाओं और धार्मिक विषयों की वजह से यह शांतिदायक और तनावमुक्त करने वाली कला मानी जाती है।

pattachitra के समक्ष चुनौतियाँ (Challenges to Pattachitra)

(i) बाज़ार की कमी और मूल्य निर्धारण की समस्या

पारंपरिक कलाकारों को उनके परिश्रम के अनुरूप उचित मूल्य नहीं मिल पाता।

बिचौलिये और दलाल अधिक लाभ कमा लेते हैं जबकि मूल कलाकार वंचित रह जाते हैं।

(ii) नकली उत्पादों का प्रसार

बाजार में सस्ते प्रिंटेड नकली पट्टचित्र बिक रहे हैं, जो असली कलाकारों की कला को नुकसान पहुँचा रहे हैं।

इनकी गुणवत्ता और भावना में असली पट्टचित्र जैसा सौंदर्य नहीं होता।

(iii) युवा पीढ़ी का रुझान घटता जा रहा है

युवा पीढ़ी आधुनिक रोजगार की ओर जा रही है और पारंपरिक कलाओं को छोड़ रही है।

इसके पीछे आर्थिक अस्थिरता, शिक्षण संस्थानों की कमी और सामाजिक मान्यता की कमी है।

(iv) प्राकृतिक संसाधनों की कमी

जिन पत्तों, पत्थरों और प्राकृतिक रंगों से यह चित्र बनते हैं, उनका संरक्षण भी ज़रूरी है।

पर्यावरणीय असंतुलन के कारण कच्चे माल की उपलब्धता में कठिनाई होती है।

 पट्टचित्र का संरक्षण और सरकारी प्रयास

(i) GI टैग (Geographical Indication Tag)

2008 में pattachitra को GI टैग दिया गया, जिससे यह ओडिशा की विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान के रूप में मान्यता प्राप्त कर सका।

इससे नकली उत्पादों पर रोक लगाना आसान हुआ।

(ii) हस्तशिल्प विकास बोर्ड और सहयोग

भारत सरकार और ओडिशा राज्य सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं:

Guru Shishya Parampara योजना – परंपरागत ज्ञान को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने हेतु।

हस्तशिल्प मेलों में भागीदारी – ताकि कलाकार सीधे खरीदारों तक पहुँच सकें।

डिजिटल मार्केटिंग प्रशिक्षण – जिससे कलाकार ई-कॉमर्स के ज़रिए अधिक आमदनी कमा सकें।

भविष्य की संभावनाएँ (Future Prospects)

(i) पट्टचित्र को आधुनिक डिज़ाइन में ढालना

आजकल pattachitra का प्रयोग होम डेकोर, फैशन डिजाइन, स्टेशनरी, मोबाइल कवर, ज्वेलरी आदि में भी होने लगा है।

इसने इसे एक कमर्शियल और ग्लोबल ब्रांड में बदलने की संभावना को जन्म दिया है।

(ii) अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विस्तार

भारतीय दूतावास, आईसीसीआर, ग्लोबल एक्सपो और यूनेस्को जैसे मंचों पर pattachitra को प्रदर्शित किया जा रहा है।

इससे कलाकारों को अंतरराष्ट्रीय प्रशंसा और खरीदार मिल रहे हैं।

(iii) डिजिटल संरक्षण

ऑनलाइन संग्रहालय, डॉक्यूमेंट्री, डिजिटल एग्ज़ीबिशन के माध्यम से pattachitra को विश्व स्तर पर पहुँचाया जा सकता है।

इससे युवाओं में भी इस कला के प्रति रुझान पैदा हो रहा है।

पट्टचित्र से सीख: भारतीय कला की आत्माP

Pattachitra हमें सिर्फ एक चित्र या कला नहीं सिखाता, बल्कि यह हमें संस्कृति, साधना, धैर्य और समर्पण की शिक्षा देता है। यह भारत की उस विरासत का हिस्सा है, जिसमें श्रद्धा, भक्ति और सौंदर्यबोध समाहित हैं।

यह हमें बताता है कि—

कला केवल व्यवसाय नहीं, एक जीवन दर्शन है।

हमारी जड़ें चाहे कितनी भी पुरानी हों, यदि उन्हें सही पोषण मिले तो वे हर युग में सजीव रह सकती हैं।

 निष्कर्ष (Final Conclusion)

पट्टचित्र केवल रंगों और रेखाओं से बनी कलाकृति नहीं है, यह आस्था, परंपरा और आत्मा की अभिव्यक्ति है। यह ओडिशा की पवित्र धरती से निकलकर पूरे भारत और विश्व में अपनी जगह बना चुका है।

आज इसकी पहचान:

सांस्कृतिक धरोहर के रूप में,

आर्थिक आत्मनिर्भरता के साधन के रूप में,

और आध्यात्मिक शांति के स्रोत के रूप में

स्थापित हो चुकी है।

हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि यह अमूल्य धरोहर सिर्फ संग्रहालयों में बंद होकर ना रह जाए, बल्कि हर घर, हर स्कूल, हर हृदय में जीवित बनी रहे।


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Sanjeev

Hello! Welcome To About me My name is Sanjeev Kumar Sanya. I have completed my BCA and MCA degrees in education. My keen interest in technology and the digital world inspired me to start this website, “Aajvani.com.”

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