पोषण वाटिका: हर घर में हरियाली, हर परिवार में सेहत!
भूमिका
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Toggleआज जब देश विकास की नई ऊँचाइयाँ छू रहा है, तब भी एक बड़ी आबादी खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में कुपोषण, आर्थिक असमानता, और खाद्य असुरक्षा जैसी समस्याओं से जूझ रही है।
सरकार ने इन मुद्दों को जड़ से खत्म करने के लिए अनेक योजनाएं शुरू की हैं, जिनमें एक उल्लेखनीय नाम है – दीनदयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM)।
इस योजना के तहत एक बेहद खूबसूरत और प्रभावी पहल की गई है — पोषण वाटिकाएं या एग्री न्यूट्री गार्डन, जो न केवल स्वास्थ्य सुधार का ज़रिया हैं बल्कि गरीबी और भूख के खिलाफ चल रही लड़ाई में एक सशक्त हथियार बन चुकी हैं।
दीनदयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन: उद्देश्य और महत्त्व
DAY-NRLM का मुख्य उद्देश्य है – ग्रामीण गरीबों, विशेषकर महिलाओं को संगठित करके आत्मनिर्भर बनाना। इसके अंतर्गत महिलाएं स्व-सहायता समूहों (Self Help Groups – SHGs) के माध्यम से न केवल बचत और ऋण प्रबंधन सीखती हैं बल्कि स्थायी आजीविका के साधन भी तैयार करती हैं।
अब इसी योजना में जोड़ा गया है एक सकारात्मक, स्वास्थ्य-केंद्रित आयाम – पोषण वाटिकाएं।
पोषण वाटिकाएं क्या हैं?
पोषण वाटिका का अर्थ है — एक ऐसा छोटा सा बाग़ या खेत, जहाँ परिवार अपनी आवश्यकता की ताज़ी सब्जियाँ, फल, औषधीय पौधे और मसाले खुद उगाता है। यह वाटिका परिवार के आँगन में, घर के पास या सामूहिक भूमि पर बनाई जा सकती है।
यह न केवल भोजन की पोषण गुणवत्ता में सुधार लाती है, बल्कि अतिरिक्त उत्पादन को बेचकर आय का स्रोत भी बनती है।
पोषण वाटिकाओं की आवश्यकता क्यों पड़ी?
भारत में कुपोषण की स्थिति:
देश में अब भी लाखों बच्चे, महिलाएं और वृद्धजन पोषण की कमी से जूझ रहे हैं।
कई गांवों में लोगों की थाली में आवश्यक विटामिन, आयरन, कैल्शियम और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व नहीं होते।
इसी कमी को पूरा करने के लिए पोषण वाटिकाएं एक स्थायी समाधान बनकर उभरी हैं।
पोषण वाटिकाएं: कैसे होती हैं शुरू?
(i) चयन और प्रशिक्षण:
SHGs की महिलाओं को पौधारोपण, जैविक खाद, बीज चयन, जल संरक्षण जैसे विषयों पर प्रशिक्षण दिया जाता है।
(ii) सामग्री की उपलब्धता:
आवश्यक बीज, खाद, औजारों आदि की आपूर्ति सरकारी सहायता या SHG फंड से की जाती है।
(iii) तकनीकी सहायता:
कृषि अधिकारी और स्थानीय स्वयंसेवी महिलाओं को समय-समय पर मार्गदर्शन देते हैं।
(iv) भूमि की व्यवस्था:
जिनके पास खुद की ज़मीन नहीं होती, वे SHG स्तर पर सामूहिक पोषण वाटिकाएं बनाते हैं।
क्या-क्या उगाया जाता है पोषण वाटिकाओं में?
सब्जियाँ: पालक, भिंडी, टमाटर, लौकी, बैंगन, मेथी, मिर्च
फल: अमरूद, पपीता, केला, नींबू
औषधीय पौधे: तुलसी, गिलोय, हल्दी, अदरक
मसाले: धनिया, मेथी, हल्दी
इन सबको जैविक तरीके से उगाया जाता है जिससे पोषण के साथ-साथ स्वास्थ्य भी सुरक्षित रहता है।
पोषण वाटिकाओं के लाभ
(i) पोषण सुरक्षा:
खुद उगाई गई ताज़ी सब्जियाँ खाने से परिवार को मिलते हैं आवश्यक पोषक तत्व।
(ii) आर्थिक सशक्तिकरण:
जो उत्पादन अतिरिक्त होता है, उसे बेचकर SHG की महिलाएं आय अर्जित करती हैं।
(iii) आत्मनिर्भरता की भावना:
ग्रामीण परिवार खुद की मेहनत से खुद का भोजन उगाते हैं — आत्मनिर्भर भारत की नींव।
(iv) रसायन-मुक्त जीवन:
जैविक खेती से स्वास्थ्य संबंधी बीमारियाँ कम होती हैं।
सफलता की सच्ची कहानियाँ
(i) ममता देवी – बिहार
ममता ने अपने घर के आँगन में एक पोषण वाटिका बनाई। पहले जहां उन्हें बाज़ार से महंगी सब्जियाँ खरीदनी पड़ती थीं, अब वे खुद ही उगाती हैं। अतिरिक्त सब्जियाँ बेचकर वे हर महीने ₹1500-2000 कमा रही हैं।
(ii) ललिता बाई – मध्य प्रदेश
ललिता की SHG ने गांव की सामूहिक ज़मीन पर पोषण वाटिका बनाई। आज गांव के 20 परिवारों को रोज़ाना ताज़ी सब्जियाँ मिलती हैं। महिलाएं इससे आय अर्जित कर बच्चों की पढ़ाई और परिवार की जरूरतें पूरी कर रही हैं।
चुनौतियाँ और समाधान
1. भूमि की कमी:
सामूहिक वाटिकाएं और वर्टिकल गार्डनिंग का उपयोग।
2. जल संकट:
वर्षा जल संचयन और सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली अपनाना।
3. जानकारी की कमी:
स्थानीय भाषा में प्रशिक्षण, महिला मेलों और प्रदर्शनियों के माध्यम से जागरूकता।
सरकार की नवीनतम पहलें (2024-2025)
हर SHG के साथ पोषण वाटिका: नई योजना के तहत हर स्व-सहायता समूह से कम-से-कम 2 पोषण वाटिकाएं जुड़ी होनी चाहिए।
डिजिटल ट्रैकिंग ऐप: पोषण वाटिकाओं की निगरानी के लिए मोबाइल एप्लिकेशन की शुरुआत।
‘हर घर हर गार्डन’ अभियान: हर ग्रामीण घर में कम-से-कम एक न्यूट्री गार्डन सुनिश्चित करने का लक्ष्य।
भविष्य की दिशा
i. पोषण + रोजगार का मॉडल
आने वाले समय में पोषण वाटिकाओं को सूक्ष्म कृषि उद्योग के रूप में विकसित किया जा सकता है — जैसे, अचार बनाना, सूप पाउडर, हर्बल चाय आदि।
ii. स्कूली शिक्षा में समावेश
विद्यालयों के पाठ्यक्रम में पोषण वाटिकाओं की अवधारणा जोड़कर बच्चों को पोषण और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाना।
iii. निजी निवेश और CSR सहभागिता
कॉर्पोरेट कंपनियों की CSR फंडिंग से इन योजनाओं को और सशक्त किया जा सकता है।
पोषण वाटिकाओं का सामाजिक प्रभाव
(i) समुदाय में सहयोग की भावना
पोषण वाटिकाएं अक्सर सामूहिक प्रयासों से बनाई जाती हैं, जिससे गांव में सामाजिक एकता और सहयोग की भावना मजबूत होती है। महिलाएं मिलकर काम करती हैं, विचार साझा करती हैं, और एक-दूसरे की मदद करती हैं।
(ii) महिला नेतृत्व का उदय
SHGs की महिलाएं जब पोषण वाटिकाओं का संचालन करती हैं, तो उनमें नेतृत्व और निर्णय क्षमता का विकास होता है। अब वे केवल घर नहीं संभाल रहीं, बल्कि सामुदायिक गतिविधियों की अगुवा भी बन रही हैं।
बच्चों और किशोरियों पर प्रभाव
(i) पौष्टिक भोजन तक पहुंच
पोषण वाटिकाओं से परिवारों को ताज़ा और विविध भोजन मिल रहा है, जिससे बच्चों में एनिमिया, कुपोषण और थकावट जैसी समस्याओं में कमी आई है।
(ii) सीखने की प्रेरणा
कई स्कूलों ने भी अपने परिसर में पोषण वाटिकाएं शुरू की हैं। बच्चे खुद पौधे लगाते हैं, पानी देते हैं और प्राकृतिक चक्र को समझते हैं — इससे उनमें प्रकृति के प्रति लगाव और साक्षरता दोनों बढ़ते हैं।
जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण में योगदान
पोषण वाटिकाएं छोटे स्तर पर ही सही, लेकिन एक बड़ा पर्यावरणीय बदलाव ला रही हैं:
हरियाली बढ़ रही है, जिससे स्थानीय तापमान पर असर पड़ता है।
रसायनों का उपयोग घट रहा है, जिससे मिट्टी और जल की गुणवत्ता सुधर रही है।
वर्षा जल संचयन और जैविक खाद के उपयोग से प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण हो रहा है।
इसे जन आंदोलन कैसे बनाएं?
(i) सोशल मीडिया और ग्राम सभाओं में प्रचार
ग्राम पंचायतों, आंगनवाड़ी केन्द्रों, और स्कूलों में इस पर प्रतिस्पर्धा, प्रदर्शन और पुरस्कार की व्यवस्था की जा सकती है ताकि अधिक लोग इससे जुड़ें।
(ii) ‘हर आंगन पोषण वाटिका’ अभियान
सरकार, NGO और युवा संगठन मिलकर यह अभियान शुरू कर सकते हैं कि हर घर के आंगन में एक पोषण वाटिका जरूर हो।
(iii) युवा और छात्र संगठन की भागीदारी
NSS, NCC और स्कूल क्लबों के माध्यम से युवा वर्ग को इससे जोड़ा जा सकता है।
सरकारी योजनाओं से समन्वय
पोषण वाटिकाओं को अन्य योजनाओं के साथ जोड़ा जा सकता है:
POSHAN Abhiyaan के तहत महिलाओं और बच्चों को दी जाने वाली सेवाओं में इन्हें भी शामिल किया जाए।
मनरेगा के तहत सामूहिक पोषण वाटिकाओं की भूमि तैयारी और सिंचाई का काम करवाया जा सकता है।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) के तहत सूक्ष्म सिंचाई सुविधा को पोषण वाटिकाओं तक पहुँचाया जा सकता है।
नागरिकों की भूमिका
सरकारी प्रयास तब तक सफल नहीं होते जब तक जन भागीदारी न हो। हर नागरिक, विशेषकर शिक्षकों, डॉक्टरों, मीडिया कर्मियों और युवाओं की जिम्मेदारी है कि वे:
अपने गांव, मुहल्ले में इसकी चर्चा करें
स्वयं एक पोषण वाटिका शुरू करें
महिलाओं को प्रोत्साहित करें और जानकारी दें
प्रेरणादायक कहानियाँ: ज़मीन से जुड़ी मिसालें
(i) झारखंड की ममता देवी: बदलती तस्वीर
गुमला ज़िले की ममता देवी पहले एक साधारण गृहिणी थीं। लेकिन जब उन्होंने अपने आंगन में पोषण वाटिका बनाई और उसमें पालक, टमाटर, भिंडी, सहजन और लौकी जैसी फसलें उगाईं
तो उनका परिवार न सिर्फ कुपोषण से उबरा, बल्कि अब वे बाजार में भी सब्जियां बेच रही हैं। महीने की आमदनी 3000 से 5000 रुपये तक हो गई है।
(ii) उत्तर प्रदेश का सामूहिक मॉडल: एकता में बल
बहराइच ज़िले में महिलाओं के एक SHG समूह ने सामूहिक जमीन पर एक बड़ी पोषण वाटिका बनाई। अब उस वाटिका से न केवल 25 परिवारों को ताजा सब्जियां मिलती हैं, बल्कि हर महीने 10 किलो सब्जियां गांव की आंगनवाड़ियों को भी मुफ्त दी जाती हैं। यह सामुदायिक भागीदारी का आदर्श उदाहरण बन चुका है।
हर हाथ में बीज, हर आंगन में हरियाली
(i) स्कूल पाठ्यक्रम में समावेशन
बच्चों को प्राथमिक शिक्षा से ही पोषण, बागवानी, और मिट्टी के महत्व की शिक्षा देना अनिवार्य किया जाना चाहिए।
(ii) टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल
मोबाइल ऐप, व्हाट्सएप ग्रुप, यूट्यूब चैनल्स आदि के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं को बीज चयन, पौध संरक्षण और जैविक खाद बनाने की जानकारी आसान भाषा में दी जानी चाहिए।
(iii) स्थानीय नेतृत्व का विकास
हर गांव में एक “पोषण सखी” या “बग़ीचा मित्र” को प्रशिक्षित किया जा सकता है, जो अन्य लोगों को मार्गदर्शन दे सके।
केंद्र और राज्य सरकारों की भूमिका
सरकारें पहले से ही इस योजना को बल दे रही हैं, लेकिन यदि ये कुछ कदम और उठाए जाएँ तो यह मिशन और तेज़ हो सकता है:
पोषण वाटिकाओं के लिए बीज और पौधों की मुफ्त या सब्सिडी पर उपलब्धता
सफल SHGs को अवार्ड और प्रमाणपत्र, जिससे दूसरे लोग प्रेरित हों
फार्मर ट्रेनिंग प्रोग्राम, जिसमें महिलाएं शामिल हों और खेती का व्यावसायिक दृष्टिकोण समझें
मीडिया और समाजसेवी संस्थाओं की ज़िम्मेदारी
(i) सकारात्मक कहानियों का प्रचार
मीडिया को चाहिए कि वह इन सफल महिलाओं की कहानियों को ग्राम स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाए।
(ii) NGO और CSO की भागीदारी
गैर सरकारी संगठनों और नागरिक समाज संगठनों को प्रशिक्षण, सामग्री वितरण, और तकनीकी सहयोग में भूमिका निभानी चाहिए।
आत्मनिर्भर भारत की जड़ें यहीं से
जब हर गांव में पोषण वाटिका होगी, तो:
बाज़ार पर निर्भरता घटेगी
स्थानीय रोजगार बढ़ेगा
आय और पोषण में सुधार होगा
महिलाओं की भागीदारी आर्थिक गतिविधियों में बढ़ेगी
यह आत्मनिर्भर भारत का असली आधार है — जो आत्मनिर्भरता को भोजन, स्वास्थ्य और आमदनी तक विस्तार देता है।
निष्कर्ष: नई सुबह की ओर एक हराभरा कदम
आज जब दुनिया एक तरफ processed food की चकाचौंध में उलझी है, तब भारत के गांवों में पोषण वाटिकाएं स्वस्थ और संतुलित जीवन की ओर एक सच्चा कदम हैं।
यह केवल एक योजना नहीं है, यह एक जीवंत क्रांति है — जिसमें मिट्टी, बीज, पसीना और उम्मीद का संगम है।
जहाँ एक महिला अपने आँगन में उगाए पालक से अपने बच्चे को ताकत देती है। जहाँ एक वृद्ध तुलसी से काढ़ा बनाकर अपने स्वास्थ्य की रक्षा करता है। और जहाँ एक गांव सामूहिक बग़ीचे में एक साथ काम करता है, एक साथ बढ़ता है।