प्राचीन कलचुरी मंदिर: क्या इनकी शिल्पकला आज भी आधुनिक दुनिया को चौंका सकती है?
भूमिका: भारत की सांस्कृतिक धरोहर में कलचुरी मंदिरों का स्थान
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Toggleभारत की प्राचीन वास्तुकला और संस्कृति की बात हो और कलचुरी राजवंश का ज़िक्र न हो, तो यह चर्चा अधूरी मानी जाएगी। मध्यकालीन भारत में जब अनेक छोटे-बड़े राजवंश उभर रहे थे, तब छत्तीसगढ़ और मध्य भारत के विशाल भू-भाग पर कलचुरी शासकों का प्रभाव था। इन्हीं के शासन काल में जो मंदिर बने, वे आज भी कला, स्थापत्य और धार्मिक भावना के अनमोल उदाहरण हैं।
कलचुरी वंश का संक्षिप्त इतिहास
कलचुरी वंश की शुरुआत लगभग 6वीं शताब्दी ईस्वी में मानी जाती है। यह वंश मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित था – त्रिपुरी के कलचुरी, रतनपुर के कलचुरी और माहिष्मती के कलचुरी।
इनमें से त्रिपुरी और रतनपुर के कलचुरी सबसे अधिक प्रसिद्ध रहे। रतनपुर के शासक राजा कर्णदेव (11वीं शताब्दी) को विशेष रूप से मंदिर निर्माण के लिए जाना जाता है।
मंदिर निर्माण की प्रेरणा
कलचुरी शासक स्वयं को धर्म का रक्षक मानते थे। उनके द्वारा बनाए गए मंदिरों का उद्देश्य सिर्फ पूजा नहीं था, बल्कि समाज को एकजुट करना, संस्कृति को संरक्षित करना और कला को प्रोत्साहन देना भी था। मंदिरों को राजनीतिक ताकत का प्रतीक भी माना जाता था।
स्थापत्य विशेषताएँ: कलचुरी शैली की पहचान
गर्भगृह और शिखर
कलचुरी मंदिरों में एक प्रमुख विशेषता होती है – ऊँचा शिखर (spire) और गहरे गर्भगृह (sanctum sanctorum)। गर्भगृह में भगवान की मूर्ति स्थापित होती थी, और शिखर उसके ऊपर आध्यात्मिक ऊँचाई का प्रतीक होता था।
मण्डप (सभामंडप)
मंदिरों के सामने एक खुला या अर्ध-खुला मण्डप होता था, जहाँ भक्त एकत्र होते थे। यह भाग स्तंभों से घिरा होता था और छत में अक्सर सुंदर नक्काशियाँ होती थीं।
स्तंभों पर नक्काशी
कलचुरी मंदिरों में जो स्तंभ बनाए गए हैं, वे केवल आधार नहीं हैं बल्कि पूरी की पूरी कहानियाँ कहने वाले कैनवास हैं। इन पर देवी-देवताओं, नृत्यांगनाओं, पौराणिक प्रसंगों और युद्ध दृश्यों की बारीक नक्काशी देखने को मिलती है।
भित्ति चित्र और शिल्प
कई मंदिरों की बाहरी दीवारों पर रामायण, महाभारत, पुराणों और लोककथाओं के दृश्य उकेरे गए हैं। यह धार्मिक शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार का भी माध्यम था।
प्रमुख मंदिर और उनका महत्व
लक्ष्मण मंदिर, सिरपुर
सिरपुर स्थित लक्ष्मण मंदिर, जो कि ईंट से निर्मित है, कलचुरी स्थापत्य का अद्वितीय उदाहरण है। यह विष्णु को समर्पित मंदिर है और इसकी शिल्पकला इतनी सूक्ष्म है कि आज भी विद्वान इसकी प्रशंसा करते हैं।
देवी मंदिर, रतनपुर
यह मंदिर रतनपुर की देवी महामाया को समर्पित है। मंदिर की संरचना में नागर शैली की झलक मिलती है। यहाँ की मूर्ति इतनी प्राचीन है कि आज भी स्थानीय जनता के बीच इसकी बहुत मान्यता है।
मदकुद्वीप मंदिर समूह
यह मंदिर समूह शिव, विष्णु, गणेश आदि को समर्पित है। यह समूह मंदिर निर्माण की योजना, नगर शैली के अनुपालन और सामूहिक पूजा स्थल के रूप में प्रसिद्ध है।
निर्माण सामग्री और तकनीक
कलचुरी मंदिरों में स्थानीय पत्थरों का उपयोग किया गया। निर्माण में चूना और राल मिश्रण का प्रयोग हुआ और जोड़ाई में इतनी दक्षता दिखाई गई कि आज सैकड़ों वर्ष बाद भी ये मंदिर खड़े हैं। शिल्पकारों ने बिना लोहे की छड़ या सीमेंट के इन भव्य मंदिरों को खड़ा किया।

धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक भूमिका
कलचुरी मंदिर केवल पूजा स्थल नहीं थे। वे समाज के लिए शिक्षा, कला, संगीत और नृत्य के केंद्र भी थे। इन मंदिरों के पास अक्सर पाठशालाएँ, यज्ञशालाएँ और सांस्कृतिक आयोजनों की जगह होती थी। मंदिर समाज को जोड़ने की सबसे मज़बूत कड़ी होते थे।
मंदिरों की संरक्षण की स्थिति
आज कलचुरी मंदिरों की स्थिति विविध है। कुछ मंदिर जैसे लक्ष्मण मंदिर (सिरपुर) संरक्षित हैं और पुरातत्व विभाग द्वारा देखरेख में हैं, जबकि कुछ अन्य मंदिर उपेक्षा का शिकार हैं।
बढ़ता शहरीकरण, जलवायु परिवर्तन और जन-जागरूकता की कमी इनके अस्तित्व को खतरे में डाल रही है।
कलचुरी मंदिरों की कलात्मक ऊँचाई
इन मंदिरों में मूर्तिकला का चरम उत्कर्ष देखने को मिलता है। उदाहरण के लिए, शिलाओं पर खुदी देवी-देवताओं की मूर्तियाँ, नृत्य मुद्राएँ, पशु-पक्षी, पौराणिक दृश्य – ये सब इतना जीवंत लगता है मानो पत्थर सांस ले रहे हों।
आज का सन्दर्भ और पर्यटन में महत्त्व
कलचुरी मंदिर आज न केवल इतिहास के छात्र या शोधकर्ताओं के लिए बल्कि सामान्य यात्रियों और श्रद्धालुओं के लिए भी आकर्षण का केंद्र हैं। छत्तीसगढ़ टूरिज़्म द्वारा कई मंदिरों को पर्यटन सर्किट में शामिल किया गया है, जिससे लोगों में इन मंदिरों के प्रति जागरूकता बढ़ रही है।
कलचुरी मंदिरों में प्रयुक्त प्रतीक और उनका महत्व
धार्मिक प्रतीकवाद
कलचुरी मंदिरों में हर मूर्ति, हर आकृति और हर प्रतीक का एक गहरा धार्मिक और दार्शनिक अर्थ होता था:
कमल (Lotus): पवित्रता और मोक्ष का प्रतीक।
नंदी (शिव वाहन): समर्पण और भक्ति का संकेत।
कच्छप (कछुआ): विष्णु के कूर्म अवतार का रूप, पृथ्वी को धारण करने वाला।
नृत्य करती अप्सराएं: न केवल सौंदर्य का प्रतीक बल्कि जीवन की गतिशीलता और सौंदर्यबोध का प्रतीक।
वास्तु शास्त्र और दिशा संयोजन
कलचुरी काल में मंदिरों का निर्माण वास्तु शास्त्र के अनुसार किया जाता था। गर्भगृह आमतौर पर पूर्व की दिशा में होता था ताकि सूर्य की पहली किरण सीधे भगवान पर पड़े। इससे धार्मिक ऊर्जा और शक्ति का संचार माना जाता था।
स्थापत्य की तुलना: कलचुरी बनाम चालुक्य और चंदेल
चालुक्य शैली से तुलना
चालुक्य मंदिरों में अधिक गहराई वाली गुफाएं और भित्ति चित्र होते थे, जबकि कलचुरी मंदिर बाहरी सज्जा और स्तंभों पर ज्यादा ज़ोर देते थे।
चालुक्यों की तुलना में कलचुरी मंदिरों में शिल्प सरल, परंतु भावपूर्ण होता है।
चंदेल शैली से तुलना (खजुराहो)
चंदेल मंदिरों की मूर्तियाँ अधिक नग्नता और श्रृंगारिक भाव लिए होती थीं, जबकि कलचुरी मंदिरों में धार्मिक मर्यादा प्रमुख रहती थी।
कलचुरी मंदिरों में सामाजिक जीवन की झलक अधिक मिलती है, जैसे—कृषक, शिल्पकार, संगीतज्ञ, यज्ञ आदि के दृश्य।
सामाजिक संरचना और मंदिरों का योगदान
मंदिर – सामुदायिक जीवन का केंद्र
कलचुरी मंदिर केवल पूजास्थल नहीं थे। वे सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र थे:
शिक्षा का केंद्र: यहाँ शास्त्रों और वेदों की शिक्षा दी जाती थी।
कलाकारों का संरक्षण: मूर्तिकार, नर्तक, चित्रकार, संगीतकार – सभी को यहाँ प्रोत्साहन मिलता था।
अनाज भंडारण और जल संरक्षण: कुछ मंदिरों के पास कुएं, तालाब और भंडारण गृह होते थे।
कलचुरी मंदिरों से जुड़े पौराणिक और जनश्रुतियाँ
चमत्कारी मान्यताएँ
रतनपुर की महामाया देवी मंदिर को कलचुरी शासकों की कुलदेवी माना जाता है। लोक कथाओं के अनुसार, देवी ने एक युद्ध में राजा को चमत्कारी शक्ति देकर विजय दिलाई थी।
सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर को लेकर मान्यता है कि यह विष्णु जी की विशेष कृपा से एक ही रात में बन गया था।
संरक्षण की चुनौतियाँ और वर्तमान प्रयास
चुनौतियाँ
प्राकृतिक क्षरण: बारिश, गर्मी, शीत के कारण पत्थर क्षतिग्रस्त हो रहे हैं।
जन जागरूकता की कमी: स्थानीय लोग कई बार महत्व को नहीं समझते और अतिक्रमण कर लेते हैं।
अवैध खुदाई और चोरी: कई बार मूर्तियाँ और पुरातन वस्तुएं चोरी हो चुकी हैं।
सरकार और संस्थाओं के प्रयास
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI): कई मंदिरों की मरम्मत और संरक्षण की जिम्मेदारी ASI ने उठाई है।
छत्तीसगढ़ टूरिज़्म बोर्ड: “हेरिटेज सर्किट” बनाकर इन मंदिरों को पर्यटन से जोड़ा जा रहा है।
स्थानीय स्वयंसेवी संस्थाएँ: स्कूलों और कॉलेजों में इन धरोहरों पर आधारित कार्यशालाएँ कराई जाती हैं।
भावी दिशा: हम क्या कर सकते हैं?
शिक्षा में समावेश: स्कूल-कॉलेजों में स्थानीय धरोहरों की पढ़ाई को बढ़ावा दिया जाए।
डिजिटल प्रचार: यूट्यूब, सोशल मीडिया आदि पर इनके बारे में वीडियो, ब्लॉग और फोटो श्रृंखला बनाई जाए।
स्थानीय युवाओं की भागीदारी: युवा गाइड्स, स्वयंसेवकों और इतिहास प्रेमियों को शामिल कर ‘धरोहर रक्षक’ अभियान चलाया जाए।

कलचुरी मंदिरों में कला और संस्कृति की झलक
मूर्तिकला की विशिष्टता
कलचुरी मंदिरों की सबसे प्रभावशाली विशेषता उनकी मूर्तिकला है। इनकी विशेषताएँ:
यथार्थवाद (Realism): देवताओं की मूर्तियाँ मानवीय हावभाव और मुद्राओं से भरपूर होती थीं।
दैनिक जीवन का चित्रण: मंदिरों की दीवारों पर ग्रामीण जीवन, कृषि, पशुपालन, नृत्य, और युद्ध जैसे दृश्यों का चित्रण मिलता है।
अति सूक्ष्मता: शिल्पकारों ने बालों की लट, वस्त्रों की सिलवट, और आभूषणों की चमक तक को उकेरा।
चित्रकला का प्रभाव
हालांकि समय के साथ चित्रकला मिट गई, परंतु कुछ मंदिरों में लुप्तप्राय रंगीन चित्रकृतियाँ पाई गईं, जिनमें भगवती, सूर्य देव और गणेश की झलक थी। इससे स्पष्ट होता है कि उस समय दीवारों पर चित्रकला भी मंदिर सौंदर्य का हिस्सा थी।
संगीत और नृत्य का मंदिरों से संबंध
नृत्यशिल्प और संगीत मुद्रा
नटराज की मूर्तियाँ: शिव का तांडव स्वरूप मंदिरों में आम था।
वाद्य यंत्रों की आकृतियाँ: मृदंग, वीणा, बांसुरी और ढोल बजाते हुए कलाकारों की मूर्तियाँ मंदिर की दीवारों पर उकेरी गई हैं।
नृत्य और संगीत – धार्मिक अनुष्ठानों का हिस्सा
मंदिरों में समय-समय पर ‘देव नृत्य’ और ‘धार्मिक संगीत प्रतियोगिताएं’ आयोजित होती थीं।
देवी मंदिरों में देवदासी परंपरा भी मौजूद थी, जो नृत्य के माध्यम से पूजा करती थीं।
वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन
शिल्पशास्त्र और वास्तु सिद्धांत
कलचुरी मंदिरों का निर्माण ‘मयमतम्’ और ‘विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र’ जैसे ग्रंथों के अनुसार हुआ।
पंचरथ, सप्तरथ, और नवगर्भगृह वाली योजनाएँ प्रचलित थीं।
शिखर निर्माण की विशेषता
कलचुरी मंदिरों के शिखर ‘रेखा-शिखर’ शैली में बने होते थे, जो सीधे ऊपर उठते हैं।
प्रत्येक शिखर के शीर्ष पर अमलक और कलश होता था, जो ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक माना जाता था।
कलचुरी मंदिरों का वैश्विक महत्व और पर्यटन में योगदान
अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों की रुचि
सिरपुर और रतनपुर जैसे स्थलों पर विदेशी इतिहासकार, पुरातत्वविद और पर्यटक नियमित रूप से आते हैं।
यूनेस्को द्वारा सिरपुर को संभावित विश्व धरोहर स्थल (Tentative UNESCO World Heritage Site) की सूची में डाला गया है।
फिल्म और डॉक्युमेंट्री निर्माण
BBC, Discovery, और National Geographic ने इन स्थलों पर वृत्तचित्र बनाए हैं।
इन मंदिरों की अनूठी शिल्प शैली ने कई कला उत्सवों और सिनेमा को भी प्रेरित किया है।
कलचुरी मंदिरों से जुड़े प्रमुख स्थल
सिरपुर (SIRPUR)
लक्ष्मण मंदिर, गंधेश्वर महादेव मंदिर
सिरपुर में ही महान बौद्ध भिक्षु नागार्जुन ने प्रवास किया था
रतनपुर
महामाया मंदिर – कलचुरी साम्राज्य की कुलदेवी
चतुरमुखी शिवलिंग की विशिष्टता
मल्हार
शिव, विष्णु और जैन मंदिरों का संगम
गुहिला मंदिर समूह
तीर्थराज अमरकंटक
नर्मदा उद्गम स्थल, कलचुरी द्वारा संरक्षित
धार्मिक पर्यटन का बड़ा केंद्र
कलचुरी मंदिरों से सीख – आज के भारत के लिए
स्थापत्य और पर्यावरण संतुलन
ये मंदिर प्राकृतिक सामग्री से बने होते थे – पत्थर, मिट्टी, लकड़ी – जो पर्यावरण के अनुकूल हैं।
जल निकासी, हवादारी और भूजल संरक्षण की तकनीकें इनमें अंतर्निहित थीं।
लोककलाओं का संरक्षण
इन मंदिरों में उकेरी गई लोकनाट्य, वेशभूषा, वाद्ययंत्र आज भी छत्तीसगढ़ की संस्कृति का हिस्सा हैं।
हमें अपनी जड़ों से जुड़ने के लिए इनका अध्ययन जरूरी है।
कलचुरी मंदिरों का संरक्षण – एक आवश्यक दायित्व
समय की मार और उपेक्षा
प्राकृतिक क्षरण: बारिश, हवा और धूप के कारण पत्थरों में दरारें और क्षय हो रहा है।
मानवजनित नुकसान: स्थानीय स्तर पर अवैध निर्माण, तोड़फोड़ और अज्ञानतावश पूजा विधियों से नुकसान होता है।
पुरातत्व विभाग की भूमिका
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने कई मंदिरों को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में अधिसूचित किया है।
मरम्मत कार्य, संरचनात्मक मजबूती, और भ्रमण पथ निर्माण का कार्य जारी है।
वर्तमान समय में चुनौतियाँ
पर्यटन का व्यवसायीकरण
मंदिरों को केवल पर्यटन स्थल मानना, उनकी आध्यात्मिक गरिमा को कम करता है।
व्यवसायिक होटलों और दुकानों द्वारा मंदिर परिसर का अतिक्रमण चिंता का विषय है।
स्थानीय सहभागिता की कमी
लोगों को मंदिरों के महत्व की जानकारी नहीं है।
कुछ मंदिरों में स्थानीय समुदाय मंदिर की सफाई, पूजा, या सुरक्षा में भाग नहीं लेता।
संरक्षण के लिए संभावित समाधान
सामुदायिक जागरूकता अभियान
स्कूल, कॉलेज और ग्रामसभाओं के माध्यम से लोगों को कलचुरी काल की धरोहरों के बारे में शिक्षित किया जाए।
स्थानीय लोगों को ‘धरोहर रक्षक’ के रूप में प्रशिक्षण दिया जा सकता है।
डिजिटल अभिलेखन (Digital Archiving)
मंदिरों की डिजिटाइज़्ड फोटोग्राफी, 3D स्कैनिंग और वर्चुअल टूर की सुविधा से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रुचि बढ़ेगी।
इससे विरासत को भविष्य में संरक्षित करने में मदद मिलेगी।
शिक्षा और अकादमिक दृष्टिकोण से महत्व
इतिहास के छात्रों के लिए आदर्श अध्ययन विषय
कलचुरी मंदिर, स्थापत्य, मूर्तिकला, राजव्यवस्था, धर्म और समाज के अध्ययन का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
UPSC, NET, और विभिन्न राज्य सेवाओं की परीक्षाओं में यह विषय अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
शोध और अनुसन्धान की संभावनाएँ
विभिन्न विश्वविद्यालयों में ‘कलचुरी वास्तुकला’ पर थीसिस और शोध प्रबंध बन रहे हैं।
इन मंदिरों के माध्यम से सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन को भी समझा जा सकता है।
निष्कर्ष – धरोहर से भविष्य की दिशा
कलचुरी काल के मंदिर केवल पत्थर की इमारतें नहीं हैं – वे समय, भावना, और संस्कार की जीवित कहानियाँ हैं। इनकी भव्यता न केवल एक समृद्ध अतीत की गवाही देती है, बल्कि एक संवेदनशील और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध भविष्य की ओर हमारा मार्गदर्शन भी करती है।
यह जरूरी है कि:
हम अपने अतीत को केवल किताबों में न पढ़ें, बल्कि मंदिरों में जाकर उसे महसूस करें।
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