बृहदीश्वर मंदिर: कैसे यह मंदिर ऐतिहासिक धरोहर और वास्तुकला का प्रतीक बना?
प्रस्तावना
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Toggleभारत का इतिहास एक समृद्ध सांस्कृतिक, धार्मिक और स्थापत्य परंपरा से जुड़ा हुआ है। दक्षिण भारत में स्थित बृहदीश्वर मंदिर इस गौरवशाली विरासत का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
यह मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह चोल वंश की स्थापत्य कला, संगठन शक्ति और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक भी है।
तमिलनाडु के तंजावुर में स्थित यह मंदिर, जिसे राजराजेश्वरम के नाम से भी जाना जाता है, चोल सम्राट राजराजा प्रथम द्वारा बनवाया गया था।
चोल वंश: दक्षिण भारत का स्वर्ण युग
चोल वंश का उदय और विकास
चोल वंश की शुरुआत लगभग 3वीं शताब्दी ईसा पूर्व में हुई थी, लेकिन इस वंश का स्वर्ण युग 9वीं से 13वीं शताब्दी के बीच देखा गया।
इस काल में चोल शासकों ने न केवल दक्षिण भारत में सत्ता स्थापित की, बल्कि श्रीलंका, मालदीव और दक्षिण-पूर्व एशिया के कई हिस्सों तक भी अपने प्रभाव को फैलाया।
राजराजा चोल प्रथम (985 – 1014 ई.) और उनके पुत्र राजेन्द्र चोल प्रथम (1014 – 1044 ई.) इस वंश के दो सबसे महान सम्राट माने जाते हैं। इन दोनों ने प्रशासन, युद्ध नीति, जल प्रबंधन, शिक्षा और कला के क्षेत्रों में अद्वितीय योगदान दिया।
राजराजा चोल और बृहदीश्वर मंदिर का निर्माण
राजराजा चोल प्रथम एक दूरदर्शी शासक थे। उन्होंने अपने शासनकाल में विशाल मंदिरों के निर्माण को प्रोत्साहित किया और बृहदीश्वर मंदिर इसका सबसे प्रमुख उदाहरण है।
यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसे ‘राजराजेश्वरम’ नाम दिया गया था, जिसका अर्थ है “राजाओं के राजा का ईश्वर।”
निर्माण की प्रेरणा
राजराजा चोल ने एक स्वप्न में भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद इस भव्य मंदिर के निर्माण का निर्णय लिया। उनका उद्देश्य एक ऐसा मंदिर बनाना था जो चोल साम्राज्य की शक्ति, भक्ति और संस्कृति का प्रतीक बने।
स्थापत्य और वास्तुकला की विशेषताएँ
भव्यता और मापन
बृहदीश्वर मंदिर का निर्माण द्रविड़ शैली में हुआ है। इस मंदिर का मुख्य शिखर (विमानम) 66 मीटर (लगभग 216 फीट) ऊँचा है और यह उस काल में विश्व का सबसे ऊँचा मंदिर टॉवर था।
यह बिना किसी आधुनिक उपकरण के बनाया गया, जो तत्कालीन इंजीनियरिंग कौशल का प्रमाण है।
ग्रेनाइट का प्रयोग
इस मंदिर को कठिन ग्रेनाइट पत्थरों से बनाया गया है, जबकि तंजावुर के आसपास इस प्रकार का पत्थर उपलब्ध नहीं है। यह आश्चर्यजनक है कि हजारों टन वजनी पत्थरों को 50-60 किलोमीटर दूर से कैसे लाया गया और बिना किसी आधुनिक यंत्र के कैसे स्थापित किया गया।
कुम्भम (शिखर की शीर्ष आकृति)
मंदिर के शीर्ष पर जो कलश (कुम्भम) है, वह एक ही ग्रेनाइट पत्थर से बना है और इसका वजन लगभग 80 टन है। ऐसा माना जाता है कि इसे मंदिर की ऊँचाई तक चढ़ाने के लिए एक विशाल रैंप बनाया गया था जो कि 6 किलोमीटर लंबा था।

मूर्तिकला और चित्रकला
नक्काशी और शिल्प
मंदिर की दीवारों, स्तंभों और दरवाजों पर की गई नक्काशियाँ अद्भुत हैं। ये न केवल धार्मिक चित्रण करती हैं, बल्कि उस युग की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक झलक भी प्रस्तुत करती हैं। देवताओं, अप्सराओं, नर्तकियों और योद्धाओं की मूर्तियाँ अत्यंत जीवंत और सूक्ष्म हैं।
चित्रकला
राजराजा चोल के शासनकाल में मंदिर के भीतर दीवारों पर भित्ति चित्रों को भी स्थान दिया गया। ये चित्र हिंदू धर्म की कथाओं, मंदिर के आयोजनों और राजा की उपलब्धियों को दर्शाते हैं।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
बृहदीश्वर मंदिर केवल एक स्थापत्य चमत्कार नहीं है, बल्कि यह एक जीवित मंदिर है जहाँ आज भी पूजा-अर्चना होती है। यह भगवान शिव के रूद्र रूप – बृहदेश्वर को समर्पित है। यहाँ स्थित शिवलिंग 4 मीटर से भी ऊँचा है और यह भारत के सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है।
प्रशासनिक प्रबंधन और मंदिर की संपत्ति
मंदिर की आय और प्रबंधन
चोल वंश में मंदिरों को प्रशासन का केंद्र माना जाता था। बृहदीश्वर मंदिर को शासन, कर संग्रह, शिक्षा और न्याय व्यवस्था से जोड़ा गया था।
राजराजा चोल ने मंदिर को अनेक भूमि दान दिए, जिनसे इसकी आय होती थी। मंदिर के पास अपनी सेना, संगीतकार, नर्तक, पुरोहित, लेखपाल और अन्य कर्मचारी होते थे।
मंदिर शिलालेख
मंदिर की दीवारों पर अनेक तमिल शिलालेख उत्कीर्ण हैं, जिनमें राजाओं के दान, आदेश, पुजारियों की नियुक्ति, कर प्रणाली और सामाजिक गतिविधियों का विवरण मिलता है। ये शिलालेख चोल शासन के व्यवस्थित प्रशासन और मंदिर आधारित समाज की जानकारी देते हैं।
बृहदीश्वर मंदिर का आधुनिक महत्त्व
यूनेस्को विश्व धरोहर
1987 में बृहदीश्वर मंदिर को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया। इसे “The Great Living Chola Temples” श्रेणी में शामिल किया गया, जिसमें गंगैकोंडाचोलपुरम और ऐरावतेश्वर मंदिर भी सम्मिलित हैं।
सांस्कृतिक आयोजनों का केंद्र
आज भी मंदिर में शिवरात्रि, नवरात्रि और अन्य प्रमुख त्योहार भव्य रूप से मनाए जाते हैं। यहाँ भारतनाट्यम और कर्नाटिक संगीत से जुड़ी प्रस्तुतियाँ होती हैं जो इसे जीवंत बनाती हैं।
वैज्ञानिक विशेषताएँ और रहस्य
गुरुत्वाकर्षण और शिखर
मंदिर का शिखर इस प्रकार बनाया गया है कि उसकी छाया दिन के किसी भी समय जमीन पर नहीं गिरती – यह वास्तु का चमत्कारी उदाहरण है।
ध्वनि की गूंज
मंदिर के गर्भगृह में एक विशेष ध्वनि गूंज प्रणाली है, जिससे पुजारी की आवाज पूरी संरचना में स्पष्ट रूप से सुनाई देती है।
बृहदीश्वर मंदिर से सीख
यह मंदिर हमें प्राचीन भारत की वास्तुशिल्पीय महारत, संगठन क्षमता, धार्मिकता, और सांस्कृतिक विविधता का साक्षात अनुभव कराता है। यह बताता है कि विज्ञान, कला और आध्यात्म किस तरह समन्वित होकर एक अद्भुत रचना कर सकते हैं।
बृहदीश्वर मंदिर के सामाजिक योगदान
1. शिक्षा का केंद्र
चोल काल में मंदिर केवल पूजा स्थल नहीं होते थे, बल्कि शैक्षणिक संस्थान की भूमिका भी निभाते थे। बृहदीश्वर मंदिर में:
वेद, ज्योतिष, गणित, संगीत, नाट्य और तमिल साहित्य की पढ़ाई होती थी।
वहाँ “घोषशाला” (music training centers) और “नाट्यशाला” (dance school) जैसी संस्थाएँ जुड़ी थीं।
मंदिर में रखे शिलालेखों में लगभग 400 से अधिक शिक्षकों और छात्रों के नाम मिलते हैं।
2. समाज में समरसता और सहयोग
मंदिर निर्माण में सभी जाति, वर्ग, लिंग और पेशे के लोगों की भागीदारी होती थी।
महिलाओं को भी मंदिर में सेवा कार्य और नृत्य के माध्यम से महत्वपूर्ण भूमिका दी गई।
इससे सामाजिक समावेशन और सांस्कृतिक एकता को बल मिला।
बृहदीश्वर मंदिर का संरक्षण और चुनौतियाँ
संरक्षण प्रयास
1. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI):
मंदिर की नियमित देखरेख, सफाई, और संरचना की मरम्मत का कार्य करता है।
पर्यटकों की संख्या को संतुलित रखकर उसके मूल स्वरूप की रक्षा की जाती है।
2. यूनेस्को और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
यूनेस्को की मदद से डिजिटल दस्तावेज़ीकरण और संरचनात्मक विश्लेषण किया गया है।
मंदिर के आसपास के क्षेत्रों को “Heritage Buffer Zone” घोषित किया गया है।
3. स्थानीय जनभागीदारी:
स्थानीय नागरिक, पुरोहित वर्ग और सांस्कृतिक संस्थाएँ मंदिर की रक्षा में भागीदार बनी हैं।
संरक्षण की चुनौतियाँ
समय के साथ पत्थरों का क्षरण (Erosion)।
पर्यावरणीय प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव।
आधुनिक निर्माण कार्यों से कंपन का असर।
पर्यटन दबाव के कारण मूल स्थापत्य पर भार।
मंदिर से मिलने वाली प्रेरणाएँ
1. नेतृत्व की दूरदर्शिता:
राजराजा चोल की योजना और निष्पादन क्षमता, एक महान नेता की मिसाल है।
2. कला और विज्ञान का संगम:
बृहदीश्वर मंदिर यह दर्शाता है कि कला और विज्ञान मिलकर चमत्कार कर सकते हैं।
3. धरोहर के संरक्षण की आवश्यकता:
यह स्मारक हमें बताता है कि भूतकाल की धरोहर को सहेजना वर्तमान की जिम्मेदारी है।
4. भारतीय सभ्यता की गहराई:
चोल काल की यह रचना भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक और स्थापत्य परंपरा की समृद्धि को दर्शाती है।
धार्मिक महत्व और आध्यात्मिकता
1. शिव भक्ति का भव्य केंद्र
बृहदीश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जिन्हें यहाँ “राजराजेश्वर” या “बृहदीश्वर” (महान ईश्वर) कहा जाता है। मंदिर में:
एक विशाल शिवलिंग है जिसकी ऊँचाई लगभग 4 मीटर है, जो भारत में सबसे ऊँचे शिवलिंगों में से एक है।
मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करते समय एक विशेष ऊर्जा और गूंज महसूस होती है जो ध्यान और भक्ति के लिए उपयुक्त वातावरण बनाती है।
2. नंदी की विशेषता
मंदिर में स्थापित नंदी की प्रतिमा भी बहुत ही अद्भुत है:
यह भारत की सबसे बड़ी नंदी प्रतिमाओं में से एक है (लंबाई: 6 मीटर, ऊँचाई: 3.7 मीटर)।
यह एक ही ग्रेनाइट पत्थर से बनाई गई है, जो स्थापत्य चमत्कार को दर्शाती है।
सांस्कृतिक धरोहर के रूप में बृहदीश्वर मंदिर
1. नृत्य और संगीत का केंद्र
मंदिर में “देवदासी” प्रणाली प्रचलित थी, जिसमें प्रशिक्षित महिलाएं नृत्य और संगीत के माध्यम से शिव की सेवा करती थीं।
भरतनाट्यम नृत्य शैली का प्राचीनतम स्वरूप यहाँ दर्शाया गया है।
मंदिर की दीवारों पर अंकित 108 करनाएं (नृत्य मुद्राएं) शास्त्रीय नृत्य के इतिहास में अनमोल स्रोत हैं।
2. शिलालेखों में प्रशासन और संस्कृति
बृहदीश्वर मंदिर में 100 से अधिक तमिल और संस्कृत शिलालेख मिलते हैं जो:
कर प्रणाली, मंदिर प्रशासन, अनुदान, पुजारियों के कर्तव्य आदि का ब्यौरा देते हैं।
चोलों की शासन व्यवस्था, समाज का वर्गीकरण, दान-पुण्य की भावना, और धर्म-नीति के ज्ञान को उजागर करते हैं।
वैश्विक प्रभाव और पहचान
1. यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल
1987 में, बृहदीश्वर मंदिर को “Great Living Chola Temples” के अंतर्गत यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया।
इसका वैश्विक महत्व स्थापत्य, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से मान्यता प्राप्त कर चुका है।
2. विदेशी विद्वानों की सराहना
फ्रांसीसी इतिहासकार George Michell और अमेरिकन वास्तु विशेषज्ञ Douglas Barrett ने बृहदीश्वर मंदिर को विश्व के सबसे महान पत्थर के मंदिरों में से एक माना है।
कई विदेशी विश्वविद्यालयों में इसे भारतीय वास्तुकला का केस स्टडी के रूप में पढ़ाया जाता है।

बृहदीश्वर मंदिर: एक जीवंत विरासत
1. आज का सांस्कृतिक उत्सव
हर साल “Natyanjali Festival” में देशभर के शास्त्रीय नर्तक मंदिर प्रांगण में प्रस्तुति देते हैं।
यह सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक बन गया है जहाँ परंपरा और आधुनिकता एक साथ मिलती है।
2. पर्यटन और स्थानीय जीवन
मंदिर ने तंजावुर को विश्व नक्शे पर स्थापित किया है।
इससे जुड़े रोजगार, हस्तशिल्प, गाइडिंग, और सांस्कृतिक उत्सवों ने स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती दी है।
बृहदीश्वर मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य
1. गोल्डन कैपस्टोन (कलश) का रहस्य
मंदिर के शिखर पर स्थित 80 टन वजनी कलश (कुंभ) को इतनी ऊँचाई तक पहुँचाना आज भी एक रहस्य है।
लोककथाओं के अनुसार, इसे एक किलोमीटर लंबी रैंप बनाकर, हाथियों की मदद से ऊपर चढ़ाया गया था।
2. छाया का न गिरना (लोकमान्यता)
ऐसा कहा जाता है कि मंदिर के गोपुरम की छाया दिन के समय धरती पर नहीं पड़ती। हालांकि यह एक भ्रम है, लेकिन इससे मंदिर की रहस्यमय आभा और बढ़ जाती है।
3. एक ही ग्रेनाइट पत्थर से बनी छत
मुख्य मन्दिर की छत पर रखा गया 80 टन का पत्थर एक ही ग्रेनाइट ब्लॉक से बना है, जो उस युग के निर्माण कौशल को दर्शाता है।
आधुनिक काल में प्रासंगिकता
1. राजनीतिक और सांस्कृतिक गौरव
तमिलनाडु की सरकार और भारत सरकार दोनों ही इसे दक्षिण भारत की गौरवशाली पहचान के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
यह मंदिर भारतीय सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने में मदद करता है और “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” के विचार को सशक्त करता है।
2. डिजिटल संरक्षण और 3D स्कैनिंग
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने मंदिर की डिजिटल मैपिंग और 3D स्कैनिंग की है ताकि इसके स्वरूप को भविष्य के लिए संरक्षित किया जा सके।
3. सामुदायिक एकता का प्रतीक
मंदिर आज भी त्योहारों और अनुष्ठानों के माध्यम से विभिन्न समुदायों को एक साथ जोड़ता है।
महाशिवरात्रि, कार्तिगई दीपम जैसे उत्सवों में लाखों श्रद्धालु एकत्र होते हैं।
शिक्षा और शोध के क्षेत्र में योगदान
1. इतिहास के छात्रों के लिए केस स्टडी
यह मंदिर एक आदर्श केस स्टडी है जिसे भारतीय इतिहास, वास्तुकला, कला, धर्म और समाजशास्त्र के विद्यार्थी विस्तृत रूप से पढ़ते हैं।
2. वास्तुशास्त्र और इंजीनियरिंग का उदाहरण
मंदिर के निर्माण में प्रयुक्त तकनीकों को आज की आधुनिक इंजीनियरिंग में भी सराहा जाता है।
IITs और विदेशी विश्वविद्यालयों में इसके स्थापत्य पर रिसर्च की जाती है।
3. साहित्य और शिलालेख अध्ययन
बृहदीश्वर मंदिर में तमिल भाषा में मिले शिलालेख, भाषा विज्ञान और पाली-प्राकृत के छात्रों के लिए अमूल्य सामग्री हैं।
पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान
1. अंतरराष्ट्रीय पर्यटन का प्रमुख केंद्र
बृहदीश्वर मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल घोषित होने के बाद दुनियाभर के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है।
हर साल हजारों विदेशी और लाखों घरेलू पर्यटक तंजावूर आते हैं जिससे स्थानीय होटल, हस्तशिल्प, और पर्यटन सेवाओं को आर्थिक बल मिलता है।
2. हस्तकला और लोककला का संवर्धन
मंदिर के आसपास के क्षेत्र में तंजावूर पेंटिंग, वेणु वादन, भरतनाट्यम जैसे पारंपरिक कलाओं का प्रदर्शन होता है।
इससे स्थानीय कलाकारों को मंच और आजीविका दोनों मिलती है।
3. महिलाओं और युवाओं को रोजगार
मंदिर आधारित पर्यटन ने महिलाओं के लिए गाइडिंग, शिल्प बिक्री और हस्तशिल्प प्रशिक्षण जैसे अवसर खोले हैं।
युवाओं के लिए यह एक स्टार्टअप ज़ोन बन चुका है, जहाँ वे लोक-पर्यटन ऐप, ब्लॉगिंग, और डिजिटल गाइडिंग जैसी सेवाओं में सक्रिय हैं।
वैश्विक पहचान और सांस्कृतिक कूटनीति
1. भारत की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक
जब भी भारत अपनी सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करता है, तो बृहदीश्वर मंदिर उसका प्रतिनिधि बनता है।
अंतरराष्ट्रीय मंचों जैसे G20, UNESCO सम्मेलन, और Indian Cultural Exhibitions में इसकी छवियाँ उपयोग होती हैं।
2. सॉफ्ट पावर और कूटनीति
मंदिर का अद्भुत स्थापत्य और उसका धार्मिक महत्व भारत की सॉफ्ट पावर को दर्शाता है।
कई विदेशी प्रतिनिधिमंडल इस मंदिर का दौरा करते हैं और इसे भारत की परंपरा, सहिष्णुता और कौशल का प्रतीक मानते हैं।
3. भारतवंशियों के लिए गर्व का विषय
विश्वभर में फैले भारतीय मूल के लोगों के लिए बृहदीश्वर मंदिर एक सांस्कृतिक जुड़ाव का बिंदु है।
यह उन्हें उनकी जड़ों से जोड़ता है और उनके बच्चों को भारतीय गौरव का अनुभव कराता है।
भविष्य की दिशा: संरक्षण, नवाचार और जागरूकता
1. डिजिटल टूरिज्म और वर्चुअल विज़िट
अब बृहदीश्वर मंदिर की वर्चुअल रियलिटी टूर और 360 डिग्री व्यू तकनीकों के ज़रिए विश्वभर से लोग इसे ऑनलाइन देख सकते हैं।
यह तकनीक विशेष रूप से छात्रों और रिसर्चर्स के लिए अत्यंत उपयोगी बन रही है।
2. इको-फ्रेंडली टूरिज्म और हरित पहल
सरकार और ASI मंदिर के चारों ओर हरियाली, कचरा प्रबंधन और प्लास्टिक मुक्त ज़ोन लागू कर रहे हैं जिससे यह एक सतत् पर्यटन मॉडल का उदाहरण बन सके।
3. नवीन शिक्षण संसाधनों का विकास
बृहदीश्वर मंदिर पर आधारित एनिमेटेड वीडियो, 3D डॉक्यूमेंट्री, और इंटरैक्टिव ऐप्स विकसित किए जा रहे हैं जो नई पीढ़ी को आकर्षित करें।
आध्यात्मिक अनुभव और सांस्कृतिक चेतना
1. जहाँ पत्थर भी बोलते हैं
बृहदीश्वर मंदिर सिर्फ स्थापत्य कला की मिसाल नहीं, बल्कि वह स्थान है जहाँ हर ईंट, हर शिला और हर स्तंभ एक कहानी कहता है। मंदिर में प्रवेश करते ही एक ऐसी शांति और ऊर्जा का अनुभव होता है जो शब्दों से परे है।
यहाँ आने वाले श्रद्धालु न केवल भगवान शिव के दर्शन करते हैं, बल्कि खुद से भी साक्षात्कार करते हैं।
2. संस्कृति की जीवंत नाड़ी
यह मंदिर तमिल संस्कृति का दिल है। यह हमें याद दिलाता है कि भारतीय सभ्यता केवल इमारतों और किताबों में नहीं, बल्कि नृत्य, संगीत, स्थापत्य, और आराधना की लय में बहती है।
जब भरतनाट्यम की थाप मंदिर परिसर में गूंजती है, तो ऐसा प्रतीत होता है मानो आत्मा प्रकृति के साथ नृत्य कर रही हो।
3. कला, धर्म और विज्ञान का संगम
बृहदीश्वर एक ऐसा स्थान है जहाँ धर्म केवल पूजा तक सीमित नहीं, बल्कि यह जीवन जीने की कला है। यह मंदिर दिखाता है कि कैसे एक ही संरचना में कला, धर्म, विज्ञान, गणित और समाज एक साथ समाहित हो सकते हैं।
4. मानव प्रयास की महिमा
यह मंदिर हमें याद दिलाता है कि जब एक उद्देश्य के लिए मनुष्य एकजुट होकर श्रम करता है, तो वह अमर कृतियाँ रच सकता है। न बिजली थी, न मशीनें, फिर भी ऐसा निर्माण हुआ जिसे 1000 वर्षों से न धूप ने झुलसाया, न बारिश ने मिटाया।
बृहदीश्वर: आज के लिए एक सन्देश
आज के तकनीकी युग में जब मनुष्य तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, यह मंदिर एक दर्पण है जो हमें हमारी जड़ों की ओर देखने की प्रेरणा देता है। यह कहता है:
अपनी संस्कृति को जानो
श्रम और साधना का सम्मान करो
और कालजयी कृतियों के निर्माता बनो, न कि केवल उपभोक्ता।
निष्कर्ष: एक तीर्थ, एक तीर्थ यात्रा
बृहदीश्वर मंदिर एक तीर्थ है — न केवल भक्तों का, बल्कि इतिहासकारों, कलाकारों, वास्तुकारों, और उन सभी का जो भारतीय आत्मा को समझना चाहते हैं।
यह मंदिर एक साक्ष्य है कि भारत केवल एक भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि संवेदनाओं, श्रद्धा और संस्कृति का महासागर है।
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