भारतीय चुनाव प्रणाली में सुधार! निर्वाचन आयोग की नई पहल क्या बदलेगी इतिहास?
परिचय – भारतीय निर्वाचन आयोग (Election Commission of India – ECI) भारत मे चुनाव आयोजित कराने की एक स्वतंत्र और स्वायत्त संवैधानिक संस्था है.
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Toggleयह भारत में लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा और राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के चुनावों का संचालन करता है जो भारत में चुनावों को निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से संपन्न कराने के लिए जिम्मेदार है।
इसका गठन 25 जनवरी 1950 को हुआ था और इसी दिन को राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है।

भारतीय निर्वाचन आयोग का ऐतिहासिक विकास
1. भारतीय निर्वाचन आयोग का भारतीय संविधान मे जिक्र अथवा प्रावधान
भारतीय संविधान के भाग -15 के अंतर्गत अनुच्छेद 324 से 329 तक चुनाव से संबंधित प्रावधान दिए गए हैं। जो संक्षिप्त विवरण के साथ निम्नलिखित हैं।
अनुच्छेद 324 – निर्वाचन आयोग की संरचना, शक्तियाँ और कार्य ( भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा चुनावों को संचालित करने की शक्ति निर्वाचन आयोग को दी गई )।
अनुच्छेद 325 – एकल सामान्य मतदाता सूची का प्रावधान ( चुनाव के लिए एकल मतदाता सूची होगी और किसी भी व्यक्ति को धर्म, जाति, लिंग, भाषा के आधार पर अलग नहीं किया जाएगा)।
अनुच्छेद 326
•चुनाव वयस्क मताधिकार (Adult Franchise) के आधार पर होंगे।
* 61वें संविधान संशोधन (1988) के तहत मतदान की आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।
अनुच्छेद 327-329 – संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनाव से जुड़े अन्य प्रावधान. Read more….
2.भारतीय निर्वाचन आयोग का प्रारंभिक काल (1950-1989)
* 25 जनवरी 1950 – भारतीय निर्वाचन आयोग की स्थापना हुई।
* सर्वप्रथम 1951-52 में भारत में पहला आम चुनाव हुआ, जिसे सफलतापूर्वक कराना चुनाव आयोग के लिए एक बड़ी चुनौती थी।
* पहले चुनाव में 17.3 करोड़ मतदाता थे, और मतदान पत्र (Ballot Paper) का उपयोग किया गया।
* वर्ष 1950 में डॉ. सुकुमार सेन (वर्ष 1950-1958) भारत के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त बने।
* शुरूआती काल में यह आयोग केवल एक सदस्यीय संस्था थी। जिसको देश की बढ़ती जनसंख्या के अनुसार इसके सदस्यों की संख्या मे भी वृद्धि की गयी।
* भारतीय लोकतंत्र मे साल 1951-52 में पहला आम चुनाव हुआ, जिसे सफलतापूर्वक संपन्न कराना भारतीय निर्वाचन आयोग के लिए एक बड़ी चुनौती थी।
* हमारे देश मे वर्ष 1962 में पहली बार मतदान के लिए EVM का प्रयोग पायलट प्रोजेक्ट के रूप में हुआ।
3. निर्वाचन आयोग का बहु-सदस्यीय होना (1989-1993)
* वर्ष 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार के दौरान आयोग को तीन सदस्यीय संस्था बनाया गया।
* वर्ष 1990 में इसे फिर से एक सदस्यीय कर दिया गया।
* वर्ष 1993 में मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन के कार्यकाल में इसे पुनः तीन सदस्यीय कर दिया गया और तब से आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो अन्य चुनाव आयुक्त होते हैं। वहीं परम्परा आज भी हमारे देश मे लागू होती हैं।
टी.एन. शेषन ने चुनाव सुधारों में क्रांतिकारी बदलाव किए।
* चुनाव आचार संहिता को कड़ाई से लागू किया।
* मतदाता के लिए पहचान पत्र (Voter ID) अनिवार्य किया।
•चुनावी भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए कड़े नियम बनाए।

हाल के वर्षों में भारतीय निर्वाचन आयोग के प्रमुख सुधार
* वर्ष 2000 – साल 2000 मे पहली बार भारतीय चुनावों मे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) का पूर्ण रूप से उपयोग शुरू हुआ।
* वर्ष 2010 – साल 2010 मे चुनावों मे वोटर आईडी को आधार से जोड़ने की प्रक्रिया शुरू हुई।
* वर्ष 2013 – साल 2013 मे पहली बार सुप्रीम कोर्ट के आदेश से भारतीय चुनावों मे “नोटा” (NOTA – None of the Above) बटन लागू किया गया।
* वर्ष 2021 –साल 2021 मे पहली बार चुनावों मे मतदाता सूची को आधार से जोड़ने की प्रक्रिया को कानूनी मान्यता मिली।
भारतीय निर्वाचन आयोग की संरचना
निर्वाचन आयोग के सदस्य
मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC)
दो अन्य चुनाव आयुक्त
नोट : मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति एक विशेष समिति की सलाह पर भारत के राष्ट्रपति के द्वारा की जाती हैं।
चुनाव आयोग की नियुक्ति
* भारत का राष्ट्रपति मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति करता है।
* इनका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, तब तक अपने पद पर बने रहते हैं।
* इनको पद से हटाने का अधिकार भारत के राष्ट्रपति के पास होता हैं, परंतु मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के जज की तरह होती है।
निर्वाचन आयोग की शक्तियाँ और कार्य
1. निर्वाचन से जुड़े कार्य
* भारतीय निर्वाचन आयोग का मुख्य कार्य लोकसभा, राज्यसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावो को निष्पक्षता पूर्वक आयोजित कराना हैं।
* भारतीय निर्वाचन आयोग का कार्य राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावो को निष्पक्षता पूर्वक आयोजित कराना हैं।
2. स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना
* चुनाव प्रक्रिया को स्वतंत्र एवं निष्पक्षता पूर्वक आयोजित कराने के लिए चुनाव आचार संहिता (Model Code of Conduct) लागू की जाती हैं।
* चुनाव में धनबल और बाहुबल के प्रभाव को कम करना।
* चुनाव प्रक्रिया को स्वतंत्र एवं निष्पक्षता पूर्वक आयोजित कराने के लिए मतदाता सूची को समय-समय पर अपडेट करना चाहिए।
3. चुनावी सुधार
* भारतीय चुनावों मे EVM और VVPAT का उपयोग।
* चुनावी दौर मे भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करना
* राजनीतिक दलों के पंजीकरण और निगरानी करना। Click here
भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा किए गए प्रमुख चुनाव सुधार
वर्ष सुधार
1989 मतदान करने की उम्र 21 से घटाकर 18 वर्ष की गई।
1990 मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन के कार्यकाल में चुनाव आचार संहिता को
सख्ती से लागू किया गया।
2003 चुनावी बॉन्ड और पारदर्शिता को लेकर पहली बार कानून बना।
2010 पहली बार वोटर आई डी को आधार से जोड़ने की प्रक्रिया शुरू हुई।
2013 NOTA (None of the Above) का प्रावधान लागू हुआ।
2017 पहली बार VVPAT (Voter Verifiable Paper Audit Trail) का उपयोग किया गया.
2021 पहली बार मतदाता सूची को आधार से जोड़ने की प्रक्रिया को क़ानूनी मान्यता मिली
चुनाव आयोग से जुड़े विवाद और चुनौतियाँ
1. सरकार पर निर्भरता: चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में सरकार की भूमिका पर सवाल उठते हैं।
2. पारदर्शिता की कमी: राजनीतिक दलों के चंदे को लेकर सवाल उठते हैं।
3. EVM विवाद: कुछ दलों ने EVM की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाए हैं।
4. आचार संहिता के उल्लंघन: कई बार सत्ताधारी दलों द्वारा चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप लगाए जाते हैं।
निष्कर्ष
भारतीय निर्वाचन आयोग ने पिछले 70 वर्षों में भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव सुनिश्चित करने के लिए इसने समय-समय पर अनेक सुधार किए हैं.
जैसे EVM, VVPAT, NOTA, चुनावी बॉन्ड आदि। हालांकि, इसे अभी भी चुनावी पारदर्शिता, धनबल और सरकार के हस्तक्षेप से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
संभावित सुधार
चुनाव आयोग की नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता।
राजनीतिक दलों के चुनावी खर्च की निगरानी को और मजबूत करना।
एक राष्ट्र, एक चुनाव (One Nation, One Election) जैसे सुझावों पर विचार।