क्या भारत AI के क्षेत्र में चीन को पछाड़ सकता है? 2023 की रिपोर्ट में भारत की 10वीं रैंक का क्या मतलब है?
21वीं सदी की सबसे क्रांतिकारी तकनीकों में से एक है – कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence – AI)। जैसे-जैसे दुनिया डिजिटल युग में प्रवेश कर रही है, वैसे-वैसे AI केवल तकनीकी विकास की कहानी नहीं, बल्कि आर्थिक, सामाजिक और रणनीतिक शक्ति का प्रतीक बनता जा रहा है।
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Toggleविकसित देशों ने इस क्षेत्र में काफी पहले से निवेश करना शुरू कर दिया था, लेकिन आज, जब एक संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट यह बताती है कि भारत और चीन ही ऐसे दो विकासशील देश हैं जहाँ AI में भारी निजी निवेश हो रहा है – तो यह केवल एक आंकड़ा नहीं बल्कि एक युग परिवर्तन का संकेत है।
भारत इस सूची में दसवें स्थान पर है, लेकिन उसका स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। क्यों? क्योंकि यह दिखाता है कि भारत न केवल उपभोक्ता है तकनीक का, बल्कि विकासकर्ता और नवप्रवर्तनकर्ता भी बन रहा है।
AI क्या है, और क्यों है यह इतना महत्वपूर्ण?
कृत्रिम बुद्धिमत्ता एक ऐसी तकनीक है जिसमें मशीनें और कंप्यूटर सिस्टम इंसानों की तरह सोच सकते हैं, निर्णय ले सकते हैं और समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। यह तकनीक इतनी ताकतवर है कि यह स्वास्थ्य सेवा से लेकर अंतरिक्ष अन्वेषण तक, हर क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला रही है।
मान लीजिए कि एक किसान को अगले सप्ताह बारिश होगी या नहीं, यह जानना है – आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित मौसम पूर्वानुमान उसका साथी बन सकता है।
या कोई डॉक्टर, जो कैंसर की जाँच के लिए सैकड़ों रिपोर्ट स्कैन कर रहा है – आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस उसे एक सेकंड में सबसे संदिग्ध रिपोर्ट दिखा सकता है।
अब सोचिए, अगर ऐसी तकनीक में भारत जैसे देश निवेश कर रहे हैं, तो इसका मतलब क्या है? इसका मतलब है – आत्मनिर्भरता, नवाचार और वैश्विक नेतृत्व की ओर एक ठोस कदम।
भारत और चीन: विकासशील देशों से तकनीकी अगुवाई तक
चीन की रणनीति: तकनीकी साम्राज्य की ओर
चीन ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को सिर्फ तकनीकी क्षेत्र तक सीमित नहीं रखा – उन्होंने इसे राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाया। स्कूलों में AI की शिक्षा, विश्वविद्यालयों में शोध, कंपनियों में नवाचार और सरकार की ओर से अरबों डॉलर का निवेश – सब कुछ मिलकर चीन को AI सुपरपावर बनाने की दिशा में ले जा रहा है।
चीन की कंपनियाँ जैसे अलीबाबा, टेनसेंट, बायडांस, बड़े स्तर पर AI स्टार्टअप्स में निवेश कर रही हैं।
वहां के शहरों में AI आधारित ट्रैफिक सिस्टम, निगरानी तंत्र, और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट पहले ही लागू हो चुके हैं।
भारत की उड़ान: आत्मनिर्भरता और लोकतांत्रिक नवाचार
भारत का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सफर थोड़ा अलग है – यहाँ तकनीक का लोकतंत्रीकरण हो रहा है। भारत सरकार का उद्देश्य है कि AI सिर्फ अमीर शहरों या बड़ी कंपनियों तक न रहे, बल्कि गाँवों, किसानों, छात्रों और छोटे व्यवसायों तक पहुँचे।
भारत में AI स्टार्टअप्स की संख्या तेजी से बढ़ी है – 2013 में जहाँ यह 50 से कम थी, आज 2000 से ज्यादा हैं।
“Digital India”, “Make in India” और “Startup India” जैसे अभियानों ने इस तकनीकी उछाल को मजबूत आधार दिया।
भारत में निजी निवेश का बढ़ता प्रभाव
भारत में 2023 में $1.4 बिलियन से अधिक का निजी निवेश आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस क्षेत्र में हुआ। यह केवल एक संख्या नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि निजी कंपनियाँ अब इस तकनीक को लाभ का साधन नहीं, बल्कि भविष्य का मार्ग मान रही हैं।
निजी निवेश का केंद्र क्या है?
1. स्वास्थ्य सेवा में AI:
स्टार्टअप्स जैसे Qure.ai और Niramai कैंसर और ब्रेन डिसऑर्डर जैसी बीमारियों की जाँच में AI का इस्तेमाल कर रहे हैं।
निजी अस्पताल अब AI आधारित रिपोर्टिंग सिस्टम अपना रहे हैं।
2. शिक्षा में AI:
BYJU’S, Vedantu जैसी कंपनियाँ छात्रों की सीखने की गति को समझने और उसके अनुसार कंटेंट देने के लिए AI का इस्तेमाल कर रही हैं।
भाषाई बाधा को खत्म करने के लिए Natural Language Processing आधारित उपकरण विकसित हो रहे हैं।
3. कृषि में AI:
भारत के कुछ स्टार्टअप किसानों को मौसम, बीज की गुणवत्ता, मिट्टी की उर्वरता आदि की जानकारी AI की मदद से दे रहे हैं।
सरकार के साथ साझेदारी कर कई कंपनियाँ Smart Farming को बढ़ावा दे रही हैं।
4. फाइनेंस और बैंकिंग में AI:
Fraud Detection, Credit Scoring, और Personalized Investment Recommendation जैसे क्षेत्र पूरी तरह AI-निर्भर बनते जा रहे हैं।
भारत की नीतियाँ और सरकारी समर्थन
नीति आयोग की रणनीति
भारत में नीति आयोग ने 2018 में ‘AI for All’ की अवधारणा प्रस्तुत की – जिसका उद्देश्य था कि AI का लाभ हर नागरिक तक पहुँचे। पाँच मुख्य स्तंभ निर्धारित किए गए:
1. स्वास्थ्य सेवा
2. कृषि
3. शिक्षा
4. स्मार्ट मोबिलिटी
5. शहरी प्रशासन
Digital India और AI का तालमेल
Digital India अभियान के तहत भारत में इंटरनेट की पहुँच गाँव-गाँव तक पहुँच रही है। अब जब डेटा है, नेटवर्क है और युवा आबादी है – तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को अपनाना सहज हो गया है।
चुनौतियाँ भी हैं, समाधान भी हैं
हर अवसर के साथ कुछ चुनौतियाँ भी आती हैं – और AI भी इससे अछूता नहीं है।
चुनौतियाँ:
1. डेटा गोपनीयता और सुरक्षा:
AI का संचालन डेटा पर निर्भर करता है। लेकिन भारत में डेटा सुरक्षा कानून अभी नवजात अवस्था में हैं।
2. श्रमिकों की बेरोजगारी का डर:
लोग मानते हैं कि AI नौकरी छीन लेगा। लेकिन असल में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस नई नौकरियाँ भी पैदा कर रहा है – जरूरत है पुनः कौशल प्रशिक्षण की।
3. असमान तकनीकी पहुँच:
भारत जैसे देश में अभी भी कई गाँव ऐसे हैं जहाँ इंटरनेट की गति धीमी है, या स्मार्टफोन नहीं है।
समाधान:
AI Literacy अभियान चलाना
Skilling Centers बनाना
Ethical AI Framework लागू करना
महिलाओं और हाशिए पर रह रहे वर्गों को तकनीकी प्रशिक्षण देना

भविष्य की झलक: भारत और AI का मिलन
अगर आज हम भारत को AI Superpower नहीं मान सकते, तो आने वाले 10 वर्षों में भारत के पास वह सामर्थ्य होगा, जहाँ से वह न केवल देश की समस्याओं को हल कर पाएगा, बल्कि दुनिया को भी रास्ता दिखा सकेगा।
क्या हो सकता है आने वाले दशक में?
गाँवों में AI डॉक्टर
हर स्कूल में AI ट्यूटर
कृषि क्षेत्र में 100% स्मार्ट फार्मिंग
सरकार की सभी योजनाओं की AI निगरानी और विश्लेषण
न्याय प्रणाली में AI आधारित केस फास्ट ट्रैकिंग
भारत ने एक मजबूत शुरुआत की है – और अगर सरकार, निजी क्षेत्र, और नागरिक मिलकर आगे बढ़ते रहें – तो भारत न केवल तकनीक का उपभोक्ता रहेगा, बल्कि AI युग का मार्गदर्शक भी बनेगा।
भारत और चीन की AI रणनीतियों की तुलना: एक गहन दृष्टिकोण
भारत और चीन, दोनों ही विकासशील देश होने के बावजूद, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के क्षेत्र में अलग-अलग रणनीतियाँ अपनाए हुए हैं। दोनों देशों की नीतियों, निवेश के पैटर्न और दृष्टिकोण में उल्लेखनीय अंतर है, जिसे हम विस्तार से समझते हैं।
1. सरकारी नीति का दृष्टिकोण
भारत ने ‘AI for All’ यानी ‘सबके लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ का आदर्श अपनाया है। इसका मतलब है कि भारत ऐसी नीतियाँ बना रहा है जिससे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस केवल उद्योगपतियों तक सीमित न रहे, बल्कि आम लोगों, किसानों, छात्रों और छोटे कारोबारियों तक भी पहुँचे। सरकार इसे एक सहायक उपकरण मानती है जिससे सामाजिक और आर्थिक न्याय को बढ़ावा मिल सकता है।
वहीं दूसरी ओर, चीन ने स्पष्ट रूप से एक लक्ष्य निर्धारित किया है कि वह 2030 तक दुनिया की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस महाशक्ति बन जाएगा। इसके लिए उसने बड़े पैमाने पर सरकारी निवेश, सैन्य और निगरानी उद्देश्यों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल और डेटा पर कड़ा नियंत्रण लागू किया है।
2. निजी निवेश का स्तर
2023 में भारत में निजी कंपनियों ने लगभग 1.4 अरब डॉलर AI स्टार्टअप्स और रिसर्च में निवेश किया। यह निवेश स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, वित्त और ग्राहक सेवा जैसे क्षेत्रों में केंद्रित रहा। हालांकि, यह निवेश धीरे-धीरे बढ़ रहा है और नई कंपनियों को प्रेरणा दे रहा है।
इसके विपरीत, चीन का निजी निवेश आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में 20 अरब डॉलर से भी अधिक था, जो कि भारत से कई गुना ज़्यादा है। चीन की बड़ी टेक कंपनियाँ जैसे अलीबाबा, टेनसेंट और बायडू आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में भारी-भरकम पैसा लगा रही हैं, और सरकारी समर्थन से वे वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भी उतर चुकी हैं।
3. डेटा नीति और गोपनीयता की समझ
भारत अभी डेटा संरक्षण पर एक व्यापक और स्पष्ट नीति बनाने की प्रक्रिया में है। हाल ही में प्रस्तावित ‘Digital Personal Data Protection Bill’ एक शुरुआत है, लेकिन इस पर अभी और काम बाकी है। भारत एक लोकतांत्रिक और पारदर्शी डेटा शासन की दिशा में आगे बढ़ रहा है, जिसमें नागरिकों की गोपनीयता को महत्व दिया गया है।
इसके उलट, चीन में डेटा पूरी तरह राज्य के नियंत्रण में होता है। वहाँ पर नागरिकों और कंपनियों के डेटा को राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सहेजा और विश्लेषण किया जाता है। चीन की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रणाली काफी हद तक सर्विलांस (निगरानी) आधारित है, जो सामाजिक स्कोर जैसे विवादास्पद पहलुओं को भी बढ़ावा देती है।
4. शिक्षा और कौशल विकास की दिशा
भारत ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस शिक्षा को जन-जन तक पहुँचाने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं जैसे AI4Youth, NASSCOM-Futureskills, और IIT संस्थानों में विशेष आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कोर्सेस। यहाँ पर जोर इस बात पर है कि छात्र, किसान, महिला उद्यमी – सभी AI को समझें और प्रयोग करें।
चीन की रणनीति इससे अलग है। वहाँ AI शिक्षा मुख्यतः रिसर्च और सैन्य उद्देश्यों के लिए केंद्रित है। विश्वविद्यालयों और संस्थानों को सीधे सरकारी समर्थन मिलता है और कई बार उनका फोकस सिर्फ उत्पादकता और निगरानी बढ़ाने पर होता है।
5. वैश्विक दृष्टिकोण और नैतिकता
भारत वैश्विक स्तर पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस नैतिकता, जवाबदेही और पारदर्शिता की बात करता है। भारत यह सुनिश्चित करना चाहता है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रयोग मानवता के कल्याण के लिए हो, न कि केवल मुनाफे और शक्ति के लिए।
जबकि चीन का झुकाव तेज़ी से सैन्य और व्यावसायिक प्रभुत्व की ओर है। उनकी प्राथमिकता यह है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय बाजार और भू-राजनीतिक ताकत दोनों में चीन की स्थिति मजबूत हो।
भारत की वैश्विक रणनीति और कूटनीतिक दृष्टिकोण में AI की भूमिका
भारत अब केवल तकनीकी विकास तक सीमित नहीं रहना चाहता, बल्कि वह कृत्रिम बुद्धिमत्ता को कूटनीति और वैश्विक नेतृत्व के उपकरण के रूप में देख रहा है।
1. वैश्विक मंचों पर AI नीति में भारत की भागीदारी
भारत ने G20, BRICS, और संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस नैतिकता, समावेशन और पारदर्शिता को ज़ोर-शोर से उठाया है। वह चाहता है कि वैश्विक स्तर पर ऐसा ढाँचा बने जिससे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का दुरुपयोग न हो।

भारत यह प्रस्ताव रखता है कि:
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को केवल धनी देशों की बपौती न बनाया जाए।
विकासशील देशों को उचित तकनीकी सहायता और निवेश मिले।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस नीति में मानव अधिकारों, स्वतंत्रता और लोकतंत्र को प्राथमिकता दी जाए।
2. वैश्विक सहयोग की पहल
भारत ने हाल ही में Global Partnership on Artificial Intelligence (GPAI) की सह-स्थापना की है, जिसमें वह तकनीकी साझेदारी, अनुसंधान, और नीति निर्माण में सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
भारत फ्रांस, कनाडा, जापान जैसे देशों के साथ मिलकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लोकतांत्रिक उपयोग की दिशा में काम कर रहा है। इससे यह साबित होता है कि भारत न केवल तकनीकी रूप से सक्षम है, बल्कि नीति निर्माण में भी नेतृत्व कर सकता है।
AI में रोजगार की संभावनाएँ और जनजीवन पर प्रभाव
कृत्रिम बुद्धिमत्ता को लेकर एक आम डर यह है कि यह नौकरियाँ छीन लेगी, लेकिन वास्तविकता इससे कहीं अधिक संतुलित और संभावनाओं से भरी है।
1. कौन-से क्षेत्र बनेंगे रोजगार के केंद्र?
डेटा एनालिटिक्स: जहाँ पर डेटा को समझकर फैसले लेने की क्षमता हो।
AI इंजीनियरिंग और डेवलपमेंट: प्रोग्रामर, मशीन लर्निंग विशेषज्ञ।
AI नैतिकता और नीति विशेषज्ञ: नीति निर्माण में समझ रखने वाले पेशेवर।
स्वास्थ्य, कृषि, शिक्षा जैसे क्षेत्रों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित सेवाओं के तकनीकी प्रशिक्षक।
2. पारंपरिक नौकरियों का क्या होगा?
यह सच है कि कुछ पारंपरिक नौकरियाँ ऑटोमेशन की वजह से कम होंगी, लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस नई नौकरियाँ भी पैदा करेगा:
एक रिपोर्ट के अनुसार, 2025 तक भारत में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित नौकरियाँ 20 लाख से अधिक हो सकती हैं।
जो लोग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को समझते हैं और तकनीक से जुड़ते हैं, उनके लिए अवसरों की कमी नहीं होगी।
3. युवाओं के लिए सलाह
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को दुश्मन नहीं, सहयोगी मानिए। इसे सीखिए, समझिए, और अपने काम में प्रयोग कीजिए। जो लोग बदलाव को स्वीकार करते हैं, वही भविष्य के नेता बनते हैं।
निष्कर्ष: भारत की AI यात्रा — चुनौती और अवसर का संगम
2023 की संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि भारत और चीन ही दो ऐसे विकासशील देश हैं जिन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में महत्वपूर्ण निजी निवेश किए हैं। भारत का दसवाँ स्थान इस बात का संकेत है कि हमने एक मजबूत शुरुआत की है।
लेकिन यह सिर्फ शुरुआत है।
भारत के सामने चुनौतियाँ हैं — नीति निर्माण की गति धीमी है, डिजिटल खाई अब भी गहरी है, और वैश्विक प्रतिस्पर्धा कड़ी होती जा रही है। परंतु भारतीय लोकतंत्र की ताक़त, युवा आबादी, और नवाचार की ललक हमें इस दौड़ में आगे ला सकती है।
अगर भारत आने वाले पाँच वर्षों में:
समावेशी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस नीति बनाए,
शिक्षा और कौशल विकास पर ज़ोर दे,
स्टार्टअप्स को सहयोग दे,
और नैतिकता तथा वैश्विक नेतृत्व में सक्रिय भूमिका निभाए,
तो वह न केवल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में आत्मनिर्भर बन सकता है, बल्कि दुनिया को यह दिखा सकता है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता का मतलब केवल तकनीक नहीं, बल्कि मानवता का विस्तार भी है।
“AI for All” – यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि 21वीं सदी में भारत की पहचान बन सकता है। अगर हम सही दिशा में चलते रहें, तो अगली संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में भारत केवल शीर्ष दस में नहीं, शीर्ष तीन में होगा – और यह हम सभी की साझी सफलता होगी।
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