स्वदेशी MRI मशीन लॉन्च! जानिए कैसे बदलेगा भारत का मेडिकल सेक्टर?
भारत ने चिकित्सा क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है – देश की पहली स्वदेशी मैग्नेटिक रेज़ोनेंस इमेजिंग (MRI) मशीन का निर्माण। यह उपलब्धि न केवल विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता को दर्शाती है, बल्कि चिकित्सा सेवाओं को किफायती और सुलभ बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
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Toggleआज तक, भारत में उपयोग होने वाली अधिकांश MRI मशीनें विदेशों से आयात की जाती थीं, जिससे इनकी कीमतें अधिक थीं और ग्रामीण व अर्ध-शहरी क्षेत्रों में इनकी उपलब्धता सीमित थी। लेकिन स्वदेशी MRI मशीन के निर्माण से यह स्थिति बदलेगी और भारत चिकित्सा तकनीक के क्षेत्र में एक नई ऊँचाई पर पहुँचेगा।
यहाँ हम विस्तार से जानेंगे कि MRI मशीन क्या होती है, इसकी कार्यप्रणाली, भारत में इसकी वर्तमान स्थिति, स्वदेशी MRI मशीन का विकास, इससे जुड़ी सरकारी योजनाएँ और सहयोग, इसके सामाजिक व आर्थिक प्रभाव, और भविष्य की संभावनाएँ।
MRI मशीन क्या होती है?
MRI का परिचय
MRI (Magnetic Resonance Imaging) एक चिकित्सा इमेजिंग तकनीक है, जो शरीर के आंतरिक अंगों और संरचनाओं की विस्तृत तस्वीरें लेने के लिए मैग्नेटिक फील्ड और रेडियो तरंगों का उपयोग करती है। यह तकनीक एक्स-रे या CT स्कैन की तुलना में अधिक सुरक्षित मानी जाती है क्योंकि इसमें आयनीकरण विकिरण (Ionizing Radiation) का उपयोग नहीं किया जाता।
MRI का उपयोग मुख्य रूप से मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी, हृदय, जोड़ों, मांसपेशियों और कैंसर ट्यूमर जैसी बीमारियों के निदान के लिए किया जाता है।
MRI की कार्यप्रणाली
MRI मशीन में एक बड़ा मैग्नेट (चुंबक) होता है, जो शरीर में उपस्थित हाइड्रोजन परमाणुओं को संरेखित करता है। इसके बाद, रेडियो तरंगें भेजी जाती हैं, जो इन परमाणुओं को उत्तेजित करती हैं।
जब ये परमाणु वापस अपनी मूल स्थिति में आते हैं, तो वे संकेत (signals) उत्पन्न करते हैं, जिन्हें कंप्यूटर द्वारा प्रोसेस करके एक विस्तृत इमेज में बदला जाता है।
भारत में MRI मशीन की वर्तमान स्थिति
MRI की उपलब्धता
भारत में वर्तमान में लगभग 4,800 MRI मशीनें कार्यरत हैं, लेकिन यह संख्या देश की विशाल जनसंख्या के अनुपात में बहुत कम है। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में MRI की उपलब्धता बेहद सीमित है, जिससे सही समय पर निदान न मिलने के कारण कई गंभीर बीमारियाँ अनियंत्रित हो जाती हैं।
MRI मशीनों की लागत
MRI मशीनें महंगी होती हैं और इनकी कीमत 1.75 करोड़ रुपये से लेकर 3 करोड़ रुपये तक हो सकती है। इसके अलावा, इनके रखरखाव और संचालन की लागत भी अधिक होती है, जो कई अस्पतालों के लिए आर्थिक रूप से कठिन बन जाता है।
आयात पर निर्भरता
भारत अपनी MRI मशीनों के लिए मुख्य रूप से अमेरिका, जर्मनी और जापान जैसे देशों पर निर्भर था। हर साल करोड़ों रुपये की विदेशी मुद्रा MRI मशीनों और उनके पुर्जों के आयात में खर्च होती थी।
भारत की पहली स्वदेशी MRI मशीन: एक नई शुरुआत
स्वदेशी MRI मशीन का विकास
भारत की पहली स्वदेशी MRI मशीन का निर्माण चेन्नई स्थित फिशर मेडिकल वेंचर्स (FMVL) और वॉक्सेलग्रिड्स इनोवेशन प्राइवेट लिमिटेड ने किया है।
FMVL ने 1.5 टेस्ला MRI मशीन विकसित की है, जो कम लागत में उच्च गुणवत्ता वाली इमेजिंग प्रदान करती है।
वॉक्सेलग्रिड्स इनोवेशन ने राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन के तहत अगली पीढ़ी की MRI मशीन विकसित की, जिसमें तरल हीलियम के बजाय तरल नाइट्रोजन का उपयोग किया गया है, जिससे संचालन लागत कम होती है।

स्वदेशी MRI मशीन के मुख्य लाभ
1. कम लागत – विदेशी MRI मशीनों की तुलना में स्वदेशी MRI मशीन 30-40% तक सस्ती होगी।
2. रखरखाव की सुविधा – इन मशीनों के पुर्जे भारत में ही बनाए जाएँगे, जिससे मरम्मत और रखरखाव आसान होगा।
3. स्वदेशी उत्पादन – यह MRI मशीन पूरी तरह से भारत में विकसित और निर्मित की गई है, जिससे भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता बढ़ेगी।
4. ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँच – कम कीमत और उच्च उत्पादन क्षमता के कारण MRI मशीनें अब छोटे शहरों और गाँवों तक भी पहुँच पाएंगी।
सरकारी सहयोग और पहल
आत्मनिर्भर भारत मिशन के तहत MRI निर्माण
भारत सरकार “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” अभियानों के तहत चिकित्सा उपकरणों के स्वदेशी निर्माण को बढ़ावा दे रही है।
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने MRI मशीन निर्माण के लिए अनुसंधान एवं विकास संस्थान SAMEER और Siemens Healthineers के साथ साझेदारी की है।
राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन (DBT) ने वॉक्सेलग्रिड्स को MRI मशीन विकसित करने में सहयोग दिया है।
R&D में सरकारी निवेश
MRI तकनीक को और अधिक उन्नत बनाने के लिए सरकार ने R&D के लिए 1,500 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया है।
स्वदेशी MRI का आर्थिक और सामाजिक प्रभाव
1. आर्थिक प्रभाव
MRI मशीनों के आयात पर निर्भरता घटेगी, जिससे हर साल करोड़ों रुपये की विदेशी मुद्रा की बचत होगी।
स्थानीय उत्पादन बढ़ेगा, जिससे मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री को बढ़ावा मिलेगा।
निर्यात के अवसर बढ़ेंगे, क्योंकि भारतीय MRI मशीनें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकती हैं।
2. सामाजिक प्रभाव
MRI की सुविधाएँ अब छोटे शहरों और गाँवों में भी उपलब्ध हो सकेंगी।
MRI स्कैन की लागत कम होगी, जिससे गरीब और मध्यम वर्ग के लोग भी इसका लाभ उठा सकेंगे।
स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होगा, जिससे बीमारियों का जल्दी और सटीक निदान संभव होगा।
भविष्य की संभावनाएँ और चुनौतियाँ
भविष्य की संभावनाएँ
1. MRI तकनीक में सुधार – भविष्य में भारत में ही उन्नत 3 टेस्ला और 7 टेस्ला MRI मशीनों का निर्माण हो सकता है।
2. निर्यात अवसर – भारतीय MRI मशीनें अन्य विकासशील देशों को निर्यात की जा सकती हैं।
3. रोजगार के नए अवसर – इस क्षेत्र में अनुसंधान, उत्पादन और रखरखाव के लिए हजारों नौकरियाँ उत्पन्न होंगी।
मुख्य चुनौतियाँ
1. तकनीकी मानकों का पालन – स्वदेशी MRI को अंतरराष्ट्रीय स्तर के मानकों पर खरा उतरना होगा।
2. विनियामक अनुमोदन – MRI मशीनों को चिकित्सा क्षेत्र में उपयोग के लिए सरकार और अन्य एजेंसियों की मंजूरी लेनी होगी।
3. उत्पादन क्षमता का विस्तार – बड़े पैमाने पर उत्पादन करने के लिए अधिक निवेश और बेहतर तकनीक की जरूरत होगी।
MRI मशीन क्या है और यह कैसे काम करती है?
एम आर आई मशीन एक गैर-आक्रामक (non-invasive) इमेजिंग तकनीक है, जो चुंबकीय क्षेत्र (magnetic field) और रेडियो तरंगों (radio waves) का उपयोग करके शरीर के आंतरिक अंगों की विस्तृत तस्वीरें तैयार करती है।
यह मशीन शरीर के विभिन्न ऊतकों और अंगों की संरचना की स्पष्ट और सटीक जानकारी प्रदान करती है, जिससे डॉक्टर बिना किसी सर्जरी के रोगों का निदान कर सकते हैं।
MRI मशीन के काम करने की प्रक्रिया कुछ इस प्रकार है:
1. चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करना – एम आर आई मशीन में एक शक्तिशाली चुंबक होता है, जो शरीर के अंदर के हाइड्रोजन परमाणुओं को संरेखित करता है।
2. रेडियो तरंगों का उत्सर्जन – इसके बाद, रेडियो तरंगें शरीर में प्रवेश करती हैं और हाइड्रोजन परमाणुओं को ऊर्जा प्रदान करती हैं।
3. सिग्नल प्राप्त करना – जब रेडियो तरंगें बंद कर दी जाती हैं, तो हाइड्रोजन परमाणु वापस अपनी सामान्य स्थिति में लौटते हैं और यह प्रक्रिया एक विशेष सिग्नल उत्पन्न करती है।
4. छवि निर्माण – ये सिग्नल कंप्यूटर द्वारा प्रोसेस किए जाते हैं और एक विस्तृत छवि तैयार की जाती है, जिसे डॉक्टर रोगों का पता लगाने के लिए उपयोग करते हैं।

भारत में MRI मशीन की आवश्यकता क्यों थी?
भारत में हर साल लाखों मरीजों को एम आर आई स्कैन की जरूरत होती है, लेकिन एम आर आई मशीनों की ऊंची कीमत और सीमित उपलब्धता के कारण कई लोग इसका लाभ नहीं उठा पाते।
भारत में अधिकांश एम आर आई मशीनें विदेशी कंपनियों द्वारा निर्मित होती हैं, जो महंगी होती हैं और इनके रखरखाव का खर्च भी अधिक होता है।
इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए, भारत में स्वदेशी एम आर आई मशीन का विकास किया गया, ताकि यह तकनीक आम लोगों के लिए अधिक सुलभ और किफायती हो सके। इस पहल से निम्नलिखित लाभ होंगे:
1. कम लागत पर MRI स्कैन की सुविधा – अब एम आर आई स्कैन की लागत काफी कम हो जाएगी, जिससे गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार भी इसका लाभ उठा सकेंगे।
2. स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ेगी – छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में भीएम आर आई मशीन उपलब्ध कराई जा सकेगी, जिससे मरीजों को बेहतर चिकित्सा सेवाएं मिलेंगी।
3. विदेशी निर्भरता समाप्त होगी – अब भारत को एम आर आई मशीनों के लिए विदेशी कंपनियों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।
4. निर्यात का नया अवसर – भारत अब अन्य देशों को भी एम आर आई मशीनें निर्यात कर सकता है, जिससे विदेशी मुद्रा का आयात होगा और “मेड इन इंडिया” को वैश्विक पहचान मिलेगी।
स्वदेशी MRI मशीन की तकनीकी विशेषताएँ
भारतीय वैज्ञानिकों ने इस MRI मशीन को उच्च गुणवत्ता और नवीनतम तकनीकों से लैस किया है। इसकी कुछ मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
1. उन्नत चुंबकीय प्रणाली
MRI मशीन की गुणवत्ता का मुख्य कारक उसकी चुंबकीय शक्ति होती है। भारत की इस स्वदेशी MRI मशीन में 1.5 टेस्ला (T) चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग किया गया है, जो क्लीनिकल डायग्नोसिस के लिए उपयुक्त है।
भविष्य में 3 टेस्ला और 7 टेस्ला MRI मशीनें भी विकसित की जा सकती हैं, जो अधिक जटिल न्यूरोलॉजिकल और ऑन्कोलॉजिकल शोध के लिए उपयोगी होंगी।
2. हीलियम रहित डिजाइन
पारंपरिक MRI मशीनें तरल हीलियम का उपयोग करती हैं, जो महंगा और सीमित मात्रा में उपलब्ध है। भारतीय वैज्ञानिकों ने इस चुनौती को हल करने के लिए हीलियम-फ्री कूलिंग तकनीक विकसित की है, जिससे मशीन का रखरखाव आसान और सस्ता हो जाएगा।
3. कम ऊर्जा खपत
यह मशीन विदेशी MRI मशीनों की तुलना में 40% कम बिजली की खपत करती है, जिससे अस्पतालों और क्लीनिकों के बिजली खर्च में कमी आएगी।
4. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) इंटीग्रेशन
इस एम आर आई मशीन में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग तकनीकों को शामिल किया गया है, जिससे स्कैनिंग प्रक्रिया अधिक सटीक और तेज होगी। AI के माध्यम से डॉक्टर को रोग पहचानने में मदद मिलेगी और गलत निदान की संभावना कम होगी।
5. पोर्टेबल डिजाइन
परंपरागत एम आर आईमशीनें बहुत भारी और स्थिर होती हैं, लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों ने हल्की और पोर्टेबल एम आर आई मशीन विकसित करने की दिशा में भी काम किया है, जिससे इन्हें ग्रामीण इलाकों में भी आसानी से स्थापित किया जा सकता है।
MRI मशीन का भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र पर प्रभाव
स्वदेशी एम आर आई मशीन से भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन होंगे। इसके मुख्य प्रभाव इस प्रकार होंगे:
1. कैंसर और न्यूरोलॉजिकल रोगों का बेहतर निदान
एम आर आई तकनीक कैंसर, ब्रेन ट्यूमर, मल्टीपल स्क्लेरोसिस, पार्किंसन और स्ट्रोक जैसी गंभीर बीमारियों के निदान में अत्यंत उपयोगी है। अब भारत में इन रोगों की बेहतर जांच संभव होगी।
2. ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार
अब तक एम आर आई मशीनें केवल बड़े शहरों तक सीमित थीं, लेकिन स्वदेशी एम आर आई मशीन के कारण अब इन्हें छोटे शहरों और गांवों में भी उपलब्ध कराया जा सकेगा।
3. सरकारी अस्पतालों में MRI की सुविधा
सरकार इस एम आर आई मशीन को सरकारी अस्पतालों में भी सस्ते दरों पर उपलब्ध कराने की योजना बना रही है, जिससे गरीबों को बेहतर इलाज मिल सकेगा।
4. चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा
अब भारतीय मेडिकल कॉलेज और शोध संस्थान एम आर आई तकनीक पर शोध कर सकते हैं और चिकित्सा विज्ञान में नए नवाचार ला सकते हैं।
5. मेडिकल टूरिज्म में बढ़ोतरी
भारत में कम कीमत पर MRI स्कैन उपलब्ध होने से विदेशी मरीज भी यहां इलाज के लिए आएंगे, जिससे मेडिकल टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा।
निष्कर्ष
भारत की पहली स्वदेशी MRI मशीन का निर्माण देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। इससे भारत न केवल चिकित्सा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं को भी सुलभ और किफायती बना सकेगा।
सरकारी सहयोग, वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी नवाचार के बल पर, भारत भविष्य में मेडिकल डिवाइस निर्माण में वैश्विक शक्ति बन सकता है। यह कदम “आत्मनिर्भर भारत” के सपने को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
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