महाकुंभ 2025 में शाही स्नान की शुभ तारीख और शुभ मुहर्त, जाने शाही स्नान का रहस्य
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Toggleआस्था का प्रतीक महाकुम्भ 2025
महाकुंभ 2025 का अर्थ होता है घड़ा कुंभ का मेला विश्व का सबसे बड़ा संस्कृति और धार्मिक मेला है कुंभ मेले की शुरुआत सबसे प्राचीन संदर्भ आठवीं सदी में हुआ था कुंभ का मेला चार स्थानों पर आयोजित किया जाता है यह चार स्थान बहुत ही सिद्ध स्थान माने जाते हैं
1. प्रयागराज
2. हरिद्वार
3.नासिक
4. उज्जैन

इन चार स्थानों पर कुंभ का मेला हर 12 साल के बाद आयोजित किया जाता है कुंभ एक मेला ही नहीं बल्कि एक महापर्व भी है धार्मिक सम्मेलन की यह परंपरा भारत मैं वैदिक युग से ही चली आ रही है यह परंपरा आज भी कायम है.
कुंभ का मेला 12 साल बाद क्यों लगता है
ऐसा माना जाता है कि देवता और असुर के बीच अमृत कलश को लेकर 12 दिन तक युद्ध चला था देवता अमृत कलश को लेकर भागे तो अमृत की कुछ बूंदे पृथ्वी के चार स्थानों पर गिर गई .
जहां पर सभी देवताओं ने अमित को ग्रहण करने के लिए इन चारों स्थान पर शाही स्नान किया पब है परंपरा आज तक भी बनी हुई है .
भारत देश के अंदर आज भी चार स्थानों पर ही कुंभ का मेला आयोजित होता है कुंभ के मेले को लेकर आज भी यह मान्यता बनी हुई है की जो भी भक्त कुंभ में शाही स्नान करता है वह परम पद पता है.
देवताओं और असुरों के बीच हुआ यह युद्ध हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं में से एक है जिसे समुद्र मंथन के रूप में जाना जाता है एक समय ऐसा आया कि देवताओं की शक्ति क्षीण हो गई तो असुर ने अपनी शक्ति और प्रभाव को बढ़ाने का प्रयास किया. Click here
समुद्र मंथन के माध्यम कारण
•ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण देवता अपनी शक्ति को खो बैठे और देवता असुरो से हारने लगे तो देवताओं ने अपनी शक्ति को पुन: प्राप्त करने के लिए भगवान विष्णु से सहायता मांगी.

देवताओं ने भगवान विष्णु को बताया कि ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण हम अपनी शक्ति को खो बैठे हैं जिससे असुर दल का प्रकोप अत्यधिक बढ़ रहा है इस संकट की घड़ी में हे भगवान हे दीनानाथ कृपया करके हमारी सहायता करें.
भगवान विष्णु ने देवताओं को सलाह दी की मैं असुर के साथ मिलकर दूध के महासागर का मंथन करूंगा जिससे तुम्हें अमृत (अमरत्व का अमृत )प्राप्त होगा.
समुद्र मंथन की प्रक्रिया
. देवता और असुर मिलकर समुद्र को मंथन करने में जुट गए जिसमे से मंथन के दौरान बहुत सी वस्तुएँ निकली.
•जब समुन्द्र मंथन चल रहा था तो उसमे से अमृत और विष निकला था उससे निकले अमृत कलश को लेकर ही सभी देवताओं और असुरों में लड़ाई थी.
अमृत कलश को लेकर चला भयंकर युद्ध
* समुद्र मंथन के दौरान जब उसमें से अमृत कलश निकला तो असुरों ने उसे अमृत कलश को प्राप्त करने के लिए देवताओं के साथ धोखाधड़ी करने की कोशिश की.
* अमृत कलश को लेकर असुरों की मंशा स्पष्ट थी कि उसे अमृत कलश पर उनका अधिकार हो इसलिए वें देवताओं के साथ धोखाधड़ी करने में लगे थे.

* समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत कलश यह मान्यता थी कि जो भी कोई उसे अमृत कलश से निकले अमृत का सेवन कर लेगा वह अमर हो जाएगा इसीलिए असुर उसे अमृत कलश को पाने के लिए देवताओं के साथ धोखाधड़ी कर रहे थे. Read more…
समुद्र मंथन के दौरान भगवान विष्णु का मोहिनी अवतार लेने का कारण
* समुद्र मंथन के दौरान चल रहे युद्ध में देवताओं का साथ देने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप अवतार लिया था इस मोहिनी रूप के अवतार को देखकर सभी असुर भ्रमित हो रहे थे जिसको फायदा सभी देवताओं ने उठाया.
* मंथन के दौरान अमृत को बांटने का कार्य मोहिनी को दिया गया जिसमें मोहिनी ने चतुराई से कार्य किया अमृत कलश से निकले अमृत को देवताओं को पिला दिया और मंथन के दौरान निकले विष को असुरों को पिला दिया जिससे सभी असुर मर गए और सभी देवता अमर हो गए.
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