भारत और श्रीलंका: सांस्कृतिक सेतु का निर्माण — अनुराधापुरा और सीता एलिया मंदिर परियोजना
भूमिका: भारत-श्रीलंका के संबंधों की जड़ें
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Toggleभारत और श्रीलंका के संबंध केवल दो पड़ोसी देशों की सीमाओं तक सीमित नहीं हैं। ये रिश्ता हजारों वर्षों पुराना है, जिसमें धर्म, संस्कृति, साहित्य, भाषा, और लोगों की साझी विरासत शामिल है। बुद्ध और राम, दो ऐसे नाम हैं, जो इस रिश्ते की आत्मा बन चुके हैं।
बौद्ध धर्म के प्रसार से लेकर रामायण की कथाओं तक, भारत और श्रीलंका ने एक-दूसरे के इतिहास को गहराई से प्रभावित किया है। और आज, जब भारत श्रीलंका में दो पवित्र स्थलों — अनुराधापुरा महाबोधी मंदिर परिसर और नुवारा एलिया (सीता एलिया मंदिर) के विकास में सहयोग कर रहा है, तो यह केवल एक परियोजना नहीं, बल्कि सभ्यताओं का पुनः मिलन है।
अनुराधापुरा: जहां बौद्धता की सांसें बसी हैं
इतिहास की गहराई से…
अनुराधापुरा कोई सामान्य स्थान नहीं है। यह श्रीलंका की पहली राजधानी थी, और एक समय पर पूरे दक्षिण एशिया में बौद्ध धर्म का केंद्र थी। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर दसवीं शताब्दी तक यह शहर श्रीलंका की आत्मा रहा।
यहां स्थित श्री महा बोधि वृक्ष — वही बोधि वृक्ष है जिसकी एक शाखा सम्राट अशोक की पुत्री संघमित्रा ने लाकर यहां लगाया था। इसे बौद्ध विश्व में अत्यंत पूजनीय माना जाता है।
भारत की पहल: एक पुनर्जीवन की कहानी
भारत ने इस ऐतिहासिक परिसर को संरक्षित करने और स्थानीय समुदाय को सशक्त बनाने के लिए महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं। भारत सरकार ने श्रीलंकाई रुपये 450 मिलियन की सहायता का वादा किया है, जिसमें से 150 मिलियन की पहली किस्त हाल ही में स्वीकृत की गई है।
सोभिता थेरो गांव: आत्मनिर्भरता की ओर
इस सहायता से अनुराधापुरा जिले के सोभिता थेरो गांव में 50 नए घरों का निर्माण किया जा रहा है। यह न केवल बौद्ध भिक्षुओं और स्थानीय लोगों के लिए सुरक्षित और सम्मानजनक आवास का प्रबंध करेगा, बल्कि भारत-श्रीलंका की मित्रता का एक स्थायी प्रतीक बनेगा।
भारत का यह योगदान सिर्फ संरचनात्मक निर्माण नहीं है — यह भावनात्मक पुनःस्थापना है। यह एक पवित्र भूमि को फिर से सजीव करने का प्रयास है।
सीता एलिया मंदिर: जहां रामायण जीवंत होती है
सीता एलिया की पौराणिकता
सीता एलिया: रामायण की कथा केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक विरासत है जो पूरे दक्षिण एशिया में जीवित है। श्रीलंका के नुवारा एलिया ज़िले में स्थित सीता एलिया वह स्थल है जहां माता सीता को रावण ने अशोक वाटिका में रखा था।
यह वह भूमि है जहां सीता माता ने धरती की कोख में समाने से पहले अग्निपरीक्षा दी थी। आज भी वहां एक नदी बहती है, जिसके बारे में माना जाता है कि माता सीता ने उसमें स्नान किया था।
मध्य प्रदेश सरकार की ऐतिहासिक पहल
भारत के मध्य प्रदेश राज्य ने इस पवित्र स्थल पर एक भव्य मंदिर निर्माण की घोषणा की है। यह मंदिर रामायण सर्किट का हिस्सा होगा, जिसे भारत सरकार प्रोत्साहित कर रही है। इस परियोजना का उद्देश्य केवल एक धार्मिक स्थल बनाना नहीं है, बल्कि इसे एक सांस्कृतिक तीर्थ में परिवर्तित करना है।
सीता एलिया-सीता मंदिर: श्रद्धा और स्थापत्य का संगम
सीता एलिया मंदिर का डिज़ाइन पूरी तरह से भारतीय स्थापत्य कला से प्रेरित होगा। इसमें देवी सीता की मूर्ति के साथ-साथ रामायण की प्रमुख घटनाओं को चित्रित करने वाले भित्ति चित्र होंगे। मंदिर परिसर में रामायण से जुड़ी जानकारी के लिए एक संग्रहालय भी स्थापित किया जाएगा।
सीता एलिया मंदिर न केवल श्रीलंका में हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए एक बड़ा आकर्षण बनेगा, बल्कि श्रीलंका के बहु-सांस्कृतिक समाज में भारतीय योगदान का प्रतीक भी बनेगा।
भारत का दृष्टिकोण: धार्मिक कूटनीति और सांस्कृतिक डिप्लोमेसी
भारत का यह सहयोग केवल सांस्कृतिक सौंदर्यीकरण नहीं, बल्कि एक रणनीतिक दृष्टिकोण भी है। इसे धार्मिक कूटनीति (Religious Diplomacy) कहा जा सकता है, जहां भारत अपनी साझा सांस्कृतिक विरासत के माध्यम से क्षेत्रीय शांति, सहयोग और सौहार्द्र को बढ़ावा दे रहा है।
श्रीलंका में तमिल हिंदुओं और सिंहली बौद्धों दोनों की बड़ी जनसंख्या है। इन दोनों धार्मिक समुदायों के लिए भारत की यह पहल एक सामाजिक पुल का काम कर रही है।

स्थानीय समुदायों पर प्रभाव
आर्थिक विकास और रोजगार
इन परियोजनाओं से स्थानीय लोगों को निर्माण कार्य, रखरखाव, पर्यटन, और सेवा क्षेत्र में नए अवसर मिलेंगे। अनुराधापुरा और नुवारा एलिया में धार्मिक पर्यटन का विस्तार होगा, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को नई ऊर्जा मिलेगी।
सांस्कृतिक गौरव और पहचान
श्रीलंका के लोग इन स्थलों को अपनी पहचान का हिस्सा मानते हैं। भारत का सहयोग उन्हें अपनी संस्कृति को और बेहतर ढंग से संरक्षित करने का अवसर देगा।
श्रीलंका की प्रतिक्रिया: एक आत्मीय स्वागत
श्रीलंका सरकार ने इन परियोजनाओं का खुले दिल से स्वागत किया है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, और कई धार्मिक संस्थानों ने भारत को धन्यवाद दिया है। श्रीलंका में बौद्ध संघों और हिंदू संगठनों ने इस सहयोग को “धर्म की साझा सेवा” बताया है।
भारत की “धार्मिक-सांस्कृतिक रणनीति”: शक्ति के नए आयाम
1. सांस्कृतिक डिप्लोमेसी का पुनरुत्थान
पिछले एक दशक में भारत ने न केवल आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव बढ़ाया है, बल्कि सांस्कृतिक प्रभाव को भी एक रणनीतिक उपकरण के रूप में अपनाया है। दुनिया भर में भारतीय दूतावास अब सिर्फ वीज़ा ऑफिस नहीं हैं, वे संस्कृति के दूत बन चुके हैं।
अनुराधापुरा और सीता एलिया में मंदिर निर्माण इस रणनीति का एक अहम हिस्सा है। ये स्थल न केवल धर्मनिरपेक्ष भारत की बहुलता का प्रतीक हैं, बल्कि यह दिखाते हैं कि भारत अपने सांस्कृतिक उत्तराधिकार को साझा करने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
2. बौद्ध और हिंदू देशों के साथ मजबूत रिश्ते
भारत ने ‘बौद्ध सर्किट’ और ‘रामायण सर्किट’ जैसे प्रोजेक्ट लॉन्च किए हैं, जिससे श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार, थाईलैंड, जावा, बाली आदि देशों के साथ एक साझा सांस्कृतिक मंच बन सके।
इन परियोजनाओं के माध्यम से भारत “सांस्कृतिक नेतृत्वकर्ता” की भूमिका निभा रहा है — बिना किसी वर्चस्व की भावना के, केवल साझेदारी के माध्यम से।
स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव
1. पर्यटन को नई उड़ान
अनुराधापुरा और सीता एलिया दोनों ही स्थान पहले से ही धार्मिक पर्यटन के केंद्र हैं। भारत की इस सहायता से यहां की सुविधाएं, सड़कें, होटल, संग्रहालय आदि विकसित होंगे। इससे:
अंतर्राष्ट्रीय तीर्थयात्री बढ़ेंगे,
रोजगार के अवसर बढ़ेंगे,
और भारत-श्रीलंका टूरिज़्म को एक नई पहचान मिलेगी।
2. नई पीढ़ी के लिए इतिहास का पुनराविष्कार
ये स्थल बच्चों, युवाओं और शोधकर्ताओं के लिए “जीते-जागते इतिहास” बनेंगे। भारत और श्रीलंका की स्कूली शिक्षा में इन स्थलों की कहानियां पढ़ाई जाएंगी। छात्र एक्सचेंज प्रोग्राम और सांस्कृतिक यात्रा कार्यक्रम इन स्थलों से जोड़ दिए जाएंगे।
3. धर्म के माध्यम से शांति और सौहार्द्र का संदेश
जब दुनिया में धार्मिक संघर्ष की खबरें आम होती जा रही हैं, भारत और श्रीलंका का यह सहयोग धर्म को संघर्ष नहीं, समन्वय का माध्यम बनाता है।
भविष्य की योजनाएं और भारत की भूमिका
1. डिजिटल रामायण और बौद्ध म्यूज़ियम
इन मंदिर परिसरों में भारत की मदद से डिजिटल टेक्नोलॉजी का उपयोग करके:
इंटरएक्टिव रामायण गैलरी (सीता एलिया में),
और बौद्ध दर्शन संग्रहालय (अनुराधापुरा में) स्थापित किए जा सकते हैं।
यह पहल युवाओं को अपनी जड़ों से जोड़ने में मदद करेगी।
2. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की मदद से संरक्षण
ASI की विशेषज्ञता से इन स्थलों की देखरेख और पुनर्संरचना वैश्विक स्तर की होगी। इससे भारत श्रीलंका में एक सांस्कृतिक सलाहकार की भूमिका में भी उभरेगा।
3. भारत-श्रीलंका सांस्कृतिक ट्रस्ट की स्थापना
भविष्य में भारत और श्रीलंका मिलकर एक सांस्कृतिक ट्रस्ट बना सकते हैं, जो दो देशों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों, फेस्टिवल्स और अध्ययन यात्राओं को प्रायोजित करेगा।
भारतीय नागरिकों के लिए गर्व का विषय
यह पूरी परियोजना भारतवासियों के लिए गर्व का कारण है। जब कोई भारतीय तीर्थयात्री सीता एलिया जाए, और वहां एक सुंदर, भव्य, भारतीय स्थापत्य से सजा मंदिर देखे — तो यह केवल पूजा का स्थान नहीं होगा, बल्कि एक भावनात्मक विजय होगी।
ठीक वैसे ही, जब कोई बौद्ध श्रद्धालु अनुराधापुरा के पुनर्निर्मित महाबोधि परिसर में ध्यान लगाएगा — तो वहां भारत की भावना, उसका योगदान और उसका अपनापन महसूस होगा।
अनुराधापुरा और महाबोधि मंदिर: अतीत से भविष्य की ओर
इतिहास की गोद में बसा अनुराधापुरा
अनुराधापुरा न सिर्फ एक प्राचीन राजधानी थी, बल्कि यह बौद्ध धर्म के विकास का केंद्र भी रहा है। माना जाता है कि यहां पर सम्राट अशोक के पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा ने बौद्ध धर्म का प्रचार किया था।
उन्होंने भारत से बोधिवृक्ष की एक शाखा लाकर यहां रोपी थी — जिसे आज भी ‘श्री महा बोधि वृक्ष’ के रूप में पूजा जाता है। यह भारत और श्रीलंका के धार्मिक रिश्तों का पहला बीज था — जो आज वटवृक्ष बन चुका है।

मंदिर निर्माण: आधुनिक भारत की श्रद्धांजलि
जब भारत आज के युग में उसी भूमि पर महाबोधि मंदिर परिसर के पुनरुत्थान में सहायता करता है, तो यह केवल एक निर्माण परियोजना नहीं — यह उस धर्मदूत परंपरा की पुनर्पुष्टि है जो दो हज़ार साल पहले शुरू हुई थी।
सीता एलिया मंदिर और नुरेलिया: रामकथा की लहर
सीता एलिया पर्वतों में बसी आस्था की गाथा
नुरेलिया में स्थित सीता एलिया वो स्थान माना जाता है जहाँ माता सीता को रावण ने अशोक वाटिका में बंदी बनाया था। यहाँ आज भी ऐसी चट्टानें हैं जिन्हें स्थानीय लोग “सीता की चरण पादुका” कहते हैं। यह स्थान न केवल रामायण की कथा का जीवंत प्रमाण है, बल्कि यह भारत और श्रीलंका के बीच एक संवेदनात्मक सेतु भी है।
स्थानीय जनमानस की भावना
श्रीलंका के लोग इन स्थलों को भारत से जुड़े आध्यात्मिक धरोहर के रूप में देखते हैं। मंदिर का नवनिर्माण उनके लिए सम्मान का विषय है। वहाँ के स्थानीय पुजारी, गाइड और नागरिक कहते हैं कि “जब भारत यह मंदिर बनाता है, तो लगता है जैसे कोई बड़ा भाई अपनी बहन की रक्षा कर रहा हो।”
भारत और श्रीलंका: संस्कृति से बंधा रिश्ता
इतिहास में दर्ज भाईचारा
सम्राट अशोक के समय से दोनों देशों के बीच बौद्धिक और धार्मिक आदान-प्रदान होता रहा है।
श्रीलंका के इतिहास में ‘दीपवंश’ और ‘महावंश’ जैसे ग्रंथों में भारत के विद्वानों और राजाओं का वर्णन मिलता है।
आधुनिक युग में संस्कृति की कूटनीति
भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही “Neighbourhood First” नीति के तहत श्रीलंका को कई आर्थिक और विकास सहायता भी दी गई है — लेकिन सांस्कृतिक सहयोग को विशेष प्राथमिकता मिली है।
लोककथाओं और विश्वासों की विरासत
सीता एलिया में कई कथाएं प्रचलित हैं, जैसे – सीता माता ने यहाँ एक पत्थर पर बैठकर रूदन किया था, जिससे वह स्थान “Ashoka Vatika” कहलाया।
अनुराधापुरा में मान्यता है कि जो व्यक्ति महाबोधि वृक्ष के नीचे ध्यान लगाता है, उसे आत्मिक शांति और जीवन की दिशा प्राप्त होती है।
इन कहानियों में सिर्फ श्रद्धा नहीं है, ये सांस्कृतिक DNA का हिस्सा हैं — जिन्हें अब भारत संवर्धित कर रहा है।
भारत की वैश्विक नीति और “वसुधैव कुटुंबकम्”
इन परियोजनाओं के माध्यम से भारत केवल अपने धर्म का प्रचार नहीं कर रहा, बल्कि “सर्वधर्म समभाव” की भावना को साकार कर रहा है।
भारत यह संदेश दे रहा है कि:
> “हम जो कुछ भी साझा करते हैं – चाहे वह इतिहास हो, संस्कृति हो या विश्वास – वह हमें बांटता नहीं, बल्कि जोड़ता है।”
एक मानवीय क्षण: कल्पना कीजिए…
एक भारतीय दादी अपने पोते को लेकर सीता एलिया मंदिर जाती है,
एक बौद्ध साधक अनुराधापुरा में ध्यान करता है,
दोनों स्थलों पर लगे पत्थरों पर अंकित होते हैं — “भारत की ओर से श्रद्धांजलि”
यह केवल धार्मिक यात्रा नहीं होगी, यह एक भावनात्मक युगांतकारी अनुभव होगा।
निष्कर्ष: भारत — एक सांस्कृतिक नेता, एक संवेदनशील सहयोगी
भारत की ये दोनों परियोजनाएं दिखाती हैं कि हम केवल एक ‘शक्ति’ नहीं बनना चाहते, बल्कि हम एक जिम्मेदार सांस्कृतिक मार्गदर्शक बनना चाहते हैं। जहां हम अपने पड़ोसियों की आत्मा से जुड़ते हैं, न कि केवल भूगोल से।
अनुराधापुरा और सीता एलिया — ये नाम अब इतिहास के पन्नों तक सीमित नहीं रहेंगे। ये भविष्य की साझी विरासत बनेंगे, जहां भारत और श्रीलंका की आत्माएं एक साथ गूंजेंगी।
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