मांदर उत्सव क्यों है आदिवासी समाज की सबसे पवित्र परंपरा?”
प्रस्तावना: मांदर की थाप में बसी है एक संस्कृति
Table of the Post Contents
Toggleभारत की विविधता भरी संस्कृति में आदिवासी परंपराएं विशेष स्थान रखती हैं।
झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में, जहाँ प्रकृति, लोक जीवन और धार्मिक आस्था आपस में गहराई से जुड़े हैं, वहीं एक ऐसा पर्व है—मांदर उत्सव—जो नृत्य, संगीत, और संस्कृति का जीवंत रूप है।
मांदर उत्सव कोई एक दिन का आयोजन नहीं, बल्कि यह आदिवासी समाज के वर्ष भर के त्यौहारों में बार-बार लौटने वाला वह अहसास है, जिसमें ढोलक की थाप, सामूहिक नृत्य, लोक गीत और प्रकृति की आराधना समाहित है।
यह केवल पर्व नहीं, बल्कि जीवन जीने का आदिवासी तरीका है।
मांदर का अर्थ: सिर्फ वाद्य नहीं, आत्मा की आवाज़
मांदर एक पारंपरिक आदिवासी वाद्य यंत्र है, जिसे लकड़ी के खोखले ढांचे में चमड़ा कसकर बनाया जाता है। इसका आकार ढोल जैसा होता है लेकिन आवाज़ में एक खास प्रकार की कंपन और लय होती है, जो सीधे दिल को छूती है।
आदिवासी समाज में मांदर का प्रयोग केवल संगीत के लिए नहीं, बल्कि धार्मिक अनुष्ठानों, सामूहिक आयोजनों और रोग–निवारण क्रियाओं तक में होता है।
जब मांदर की थाप गूंजती है, तो यह केवल एक राग नहीं होता, बल्कि यह प्रकृति, पूर्वजों और पृथ्वी माँ से संवाद होता है।
मांदर उत्सव का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
आदिवासी समुदायों की परंपराएं पीढ़ियों से मौखिक इतिहास (oral tradition) के रूप में चली आ रही हैं। Mandar Utsav का जिक्र कोई किताबों में सीमित नहीं बल्कि लोक गीतों, नृत्य कथाओं और सामाजिक अनुभवों में होता है।
क्यों महत्वपूर्ण है मांदर उत्सव?
1. प्रकृति से संबंध – वर्षा, फसल, पेड़-पौधे और भूमि की पूजा।
2. सामाजिक एकता – सभी लोग मिलकर नाचते–गाते हैं, जात-पात की दीवारें टूट जाती हैं।
3. आर्थिक स्वतंत्रता – त्योहारों में लोक कलाकारों, हस्तशिल्पियों और खाद्य विक्रेताओं की आय होती है।
4. महिलाओं की भागीदारी – मांदर उत्सव में महिलाएं न केवल नृत्य करती हैं बल्कि वाद्य भी बजाती हैं।
प्रमुख पर्व जिनमें मांदर उत्सव मनाया जाता है
1. सरहुल
झारखंड का प्रमुख पर्व, जहां साल वृक्ष की पूजा होती है।
मांदर की थाप पर गाया जाता है – “साल गोसाईं की जय हो।”
गांव के सारे पुरुष और महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में सामूहिक नृत्य करते हैं।
2. सोहराय
यह पर्व फसल कटाई और पशुपालन से जुड़ा होता है।
मांदर की थाप पर पशुओं की पूजा के बाद शुरू होता है एक सात दिन का सामूहिक उत्सव।
लोक गीतों में जीवन, पशु, प्रेम और उत्सव का समावेश होता है।
3. टुसू पर्व
खासकर महिलाओं और लड़कियों के बीच बेहद प्रिय।
मांदर पर आधारित टुसू गीत गाए जाते हैं—प्रेम, प्रतीक्षा और जीवन की सुंदरता का उत्सव।
4. मागे पर्व
माघ संक्रांति के आसपास मनाया जाता है।
इसे नए साल के रूप में मनाते हैं, मांदर की थाप पर गांव के लोग एकसाथ नाचते-गाते हैं।
मांदर की बनावट और उसकी ध्वनि का जादू
अंग विवरण
शरीर खोखली लकड़ी का गोल ढांचा
चमड़ा एक तरफ मोटा (भारी ध्वनि), एक तरफ पतला (तीव्र ध्वनि)
बजाने का तरीका हथेली और उंगलियों से
मांदर की थाप केवल कानों को नहीं, आत्मा को झंकृत करती है। इससे निकलने वाली लय शरीर को स्वतः ही नृत्य करने को विवश कर देती है।

मांदर पर नृत्य: भाव, लय और एकता
मांदर की थाप पर नृत्य करना सिर्फ मनोरंजन नहीं बल्कि:
प्रकृति के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का माध्यम है।
समूह में लयबद्धता से चलना–रुकना–घूमना, एक सामाजिक एकता का प्रतीक है।
महिलाएं अपने पारंपरिक वस्त्रों, गहनों और गिटियों के साथ मांदर पर झूमती हैं।
लोक कलाकारों का योगदान
ढोलाचार, नर्तक, गायक, हस्तशिल्पी और रंगकार मांदर उत्सव के प्रमुख नायक होते हैं।
कुछ कलाकारों को पीढ़ियों से यह ज्ञान पारिवारिक धरोहर की तरह मिला है।
आज भी ऐसे परिवार हैं जिनकी पहचान ही मांदर वादन से है।
आधुनिक युग में मांदर उत्सव की स्थिति
सकारात्मक बदलाव:
अब मांदर उत्सव शहरों में भी मनाया जा रहा है, जिससे युवा पीढ़ी इससे जुड़ रही है।
राज्य सरकारें सांस्कृतिक संरक्षण के तहत मांदर कलाकारों को मंच देने लगी हैं।
चुनौतियाँ:
प्लास्टिक की सजावट, डीजे की ध्वनि और बाज़ारूकरण।
पारंपरिक मांदर को मशीनी वाद्यों से बदला जा रहा है।
संरक्षण की आवश्यकता और सुझाव
1. स्थानीय स्कूलों में मांदर वादन सिखाना।
2. राज्य स्तर पर मांदर महोत्सव आयोजित करना।
3. डिजिटल प्लेटफॉर्म पर मांदर कलाकारों का प्रचार।
4. इको–फ्रेंडली उत्सवों को प्रोत्साहन देना।
Mandar Utsav की धार्मिक और आध्यात्मिक धारणा
आदिवासी समुदायों में मांदर केवल वाद्य यंत्र नहीं बल्कि आध्यात्मिक संवाद का माध्यम है। वे मानते हैं कि:
मांदर की थाप पूर्वजों की आत्मा को जागृत करती है,
यह पृथ्वी माता, जल, वायु, अग्नि और आकाश जैसे पंचतत्वों को प्रसन्न करती है,
और यह शुभ संकेतों का आगमन है—विशेषकर जब कोई त्योहार, विवाह या सामूहिक अनुष्ठान होता है।
आदिवासी समाज में यह धारणा है कि जब तक मांदर नहीं बजेगा, तब तक देवता प्रसन्न नहीं होंगे।
Mandar Utsav में सामाजिक समावेशिता
1. जातिविहीन समाज का अनुभव
मांदर उत्सव में कोई जात-पात, ऊँच-नीच नहीं होती। सभी वर्गों और उम्र के लोग मिलकर थिरकते हैं।
यह आदिवासी समाज की समावेशी सोच को दर्शाता है।
2. नारी सशक्तिकरण का उदाहरण
जहाँ बाकी समाजों में वाद्य बजाना केवल पुरुषों तक सीमित है, वहीं आदिवासी महिलाएं मांदर बजाने में भी उतनी ही निपुण होती हैं।
3. बुजुर्गों और बच्चों की भागीदारी
बुजुर्ग – आशीर्वाद और परंपरा का संचार करते हैं।
बच्चे – नृत्य, गायन और लोककथाओं के माध्यम से संस्कृति से जुड़ते हैं।
Mandar Utsav में खान-पान और व्यंजन
हर उत्सव का स्वाद उसके पारंपरिक व्यंजनों से आता है। मांदर उत्सव में स्थानीय भोजन का खास महत्व है:
हांडिया – चावल से बना पारंपरिक पेय, जिसे खासकर बुजुर्ग बनाते हैं।
पीठा, चावल की रोटी, महुआ के लड्डू – त्योहार के खास पकवान।
बांस के पत्तों में पकाया गया मांस – एक खास स्वाद जिसकी सुगंध पूरे गांव में फैल जाती है।
इन व्यंजनों का केवल स्वाद नहीं, बल्कि सांस्कृतिक जुड़ाव होता है।
Mandar Utsav और लोक कला
Mandar Utsav व के दौरान गांवों की गलियां रंगों से भर जाती हैं। लोक कला का प्रदर्शन हर जगह होता है:
1. पेंटिंग और रंगोली
मिट्टी की दीवारों पर सोहराय पेंटिंग, जो पशुओं, खेतों और सूर्य को दर्शाती है।
महिलाएं गोबर, मिट्टी और प्राकृतिक रंगों से ज़मीन पर सुंदर रंगोली बनाती हैं।
2. लोक वस्त्र और आभूषण
पुरुष – धोती, गमछा, कमरबंद।
महिलाएं – लाल, सफेद, पीले रंग की साड़ी, मोतियों की माला, बिचुए और चांदी की पायल।
3. हस्तशिल्प और बाजार
Mandar Utsav के दौरान छोटे-मोटे हाट-बाज़ार लगते हैं जहाँ बांस के सामान, मिट्टी के बर्तन, लकड़ी के खिलौने और हस्तनिर्मित गहने बिकते हैं।
Mandar Utsav और मीडिया का प्रभाव
सोशल मीडिया में पहचान
अब Mandar Utsav के नृत्य-गीत वायरल हो रहे हैं।
यूट्यूब चैनलों, इंस्टाग्राम रील्स और लोक संगीत एप्स पर मांदर थाप की लोकप्रियता बढ़ी है।
डॉक्यूमेंट्री और फिल्में
झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के फिल्म निर्माताओं ने लोक संस्कृति आधारित शॉर्ट फिल्में बनाई हैं।
Mandar Utsav पर बनी फिल्मों में ग्रामीण सौंदर्य, सांस्कृतिक पहचान, और आदिवासी स्वाभिमान को दिखाया गया है।
अंतर्राष्ट्रीय मंच पर Mandar Utsav की पहचान
भारत सरकार के ट्राइबल मंत्रालय द्वारा लोक कला महोत्सव में Mandar Utsav को प्रदर्शित किया गया।
यूनेस्को के Intangible Cultural Heritage में मांदर आधारित नृत्य को शामिल किए जाने की चर्चा हो चुकी है।
कई विदेशी पर्यटक, विशेषकर जर्मनी, फ्रांस और जापान से, झारखंड और उड़ीसा के गांवों में इसे देखने आते हैं।
Mandar Utsav पर आधारित शिक्षा और रिसर्च
अब Mandar Utsavव सिर्फ पर्व नहीं रहा—बल्कि:
विश्वविद्यालयों में इस पर थीसिस और रिसर्च हो रही है।
समाजशास्त्र, मानवविज्ञान, और संगीत शास्त्र के छात्र Mandar Utsav को फील्ड स्टडी प्रोजेक्ट के रूप में अपनाते हैं।
कुछ सरकारी योजनाओं में इसे स्थानीय पर्यटन और सांस्कृतिक विरासत के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव भी शामिल है।
Mandar Utsav का भविष्य: उम्मीदें और जिम्मेदारियाँ
भविष्य में Mandar Utsav को बचाए रखने के लिए ज़रूरी है:
1. संविधान की छठी अनुसूची के तहत इसकी सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा।
2. युवाओं को संगीत, वादन और परंपरा से जोड़ना।
3. स्थानीय प्रशासन और ग्राम सभाओं का सहयोग।
4. ट्राइबल टूरिज्म के रूप में प्रोत्साहन देना, लेकिन बिना व्यवसायीकरण।
Mandar Utsav और ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान से जुड़ाव
आज भारत “वोकल फॉर लोकल” और “आत्मनिर्भर भारत” की ओर तेजी से बढ़ रहा है।
मांदर उत्सव जैसे लोक पर्वों को अगर सही दिशा में जोड़ा जाए, तो ये न केवल सांस्कृतिक गौरव को बनाए रख सकते हैं बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी आदिवासी समुदायों को सशक्त बना सकते हैं।
कैसे Mandar Utsav आत्मनिर्भर भारत में योगदान कर सकता है:
1. लोक वाद्य और हस्तशिल्प को ब्रांडिंग:
मांदर, बांस के उत्पाद, मिट्टी के बर्तन, पारंपरिक वस्त्र – इन सभी को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बेचने का अवसर।
2. लोक कलाकारों को रोजगार:
कलाकारों को सरकारी सहयोग, पर्यटन विभाग और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से जोड़ना।
3. ग्रामीण पर्यटन:
Mandar Utsav के समय आयोजित “एथनिक विलेज टूरिज़्म” जिससे स्थानीय लोगों को आय और गौरव दोनों मिल सके।
Mandar Utsav को बचाने के लिए नीति सुझाव (Policy Recommendations)
सरकार, समाज और स्वयंसेवी संस्थाओं को मिलकर मांदर उत्सव को संरक्षित करने हेतु ठोस कदम उठाने होंगे। निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं:
क्षेत्र नीति सुझाव
शिक्षा मांदर पर आधारित लोकसंगीत को स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।
प्रशासन हर जिले में “आदिवासी संस्कृति विभाग” की स्थापना हो।
मीडिया दूरदर्शन/आकाशवाणी पर मांदर महोत्सव की नियमित प्रस्तुति।
ई-कॉमर्स सरकारी सहयोग से कलाकारों के लिए ई-कॉमर्स पोर्टल विकसित हो।
GI टैग मांदर वाद्य को भौगोलिक संकेतक (GI Tag) दिलाने का प्रयास हो।
Mandar Utsav और युवाओं की भूमिका
युवा वर्ग मांदर उत्सव को बचाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यदि सही दिशा और मंच मिले, तो युवा इसे:
फोक म्यूजिक बैंड्स,
डिजिटल कंटेंट क्रिएशन,
टूर गाइडिंग और वर्कशॉप्स में बदल सकते हैं।
युवा पीढ़ी के लिए यह अवसर है कि वे अपनी जड़ों से जुड़ें और उसे विश्व स्तर पर प्रस्तुत करें।

निष्कर्ष: मांदर उत्सव – संस्कृति की जीवित धड़कन
मांदर उत्सव केवल एक पारंपरिक पर्व नहीं, बल्कि आदिवासी जीवन दर्शन का सजीव प्रतिबिंब है।
यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन केवल भौतिक उपलब्धियों का नाम नहीं, बल्कि प्रकृति से जुड़कर, एक-दूसरे के साथ मिल-जुलकर, लय, रंग और संवेदना के साथ जीना भी एक जीवन कला है।
जब मांदर की थाप गूंजती है, तो वह केवल कानों से नहीं सुनी जाती –
वह आत्मा को झंकृत करती है,
परंपराओं को पुनः जीवित करती है,
और हमें हमारी जड़ों की ओर लौटने का आमंत्रण देती है।
यह उत्सव सामूहिकता, सह-अस्तित्व और संस्कृति के संरक्षण का ऐसा पर्व है, जो न केवल अतीत से हमें जोड़ता है, बल्कि भविष्य के लिए भी दिशा तय करता है।
आधुनिकता की दौड़ में हम कहीं अपनी पहचान न खो दें, इसके लिए मांदर की थाप हमें निरंतर जागरूक करती है।
अतः हमें मांदर उत्सव को केवल एक आयोजन के रूप में नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक उत्तरदायित्व के रूप में देखना चाहिए। यदि हम इसे संजोकर रखें, आगे बढ़ाएं और पीढ़ियों तक पहुंचाएं, तभी हमारी विविधता और समृद्ध संस्कृति जीवित रह पाएगी।
मांदर की थाप कभी थमनी नहीं चाहिए… क्योंकि जहां मांदर थमेगा, वहां मौन नहीं होगा – बल्कि संस्कृति की एक सांस थम जाएगी।
FAQs – मांदर उत्सव से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
1. मांदर उत्सव क्या है?
उत्तर:
मांदर उत्सव एक पारंपरिक आदिवासी पर्व है, जिसमें मांदर वाद्य की थाप पर सामूहिक नृत्य, लोकगीत, पूजा और सांस्कृतिक प्रदर्शन होते हैं। यह मुख्य रूप से झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी समुदायों द्वारा मनाया जाता है।
2. मांदर वाद्य क्या होता है?
उत्तर:
मांदर एक पारंपरिक ढोल जैसा वाद्य यंत्र है, जो लकड़ी और जानवरों की चमड़ी से बनाया जाता है। इसकी थाप आदिवासी नृत्य और पूजा अनुष्ठानों का अभिन्न हिस्सा है।
3. मांदर उत्सव कब मनाया जाता है?
उत्तर:
मांदर उत्सव किसी एक दिन विशेष तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कई पर्वों जैसे सरहुल, सोहराय, टुसू, और मागे पर्व में मांदर वादन और नृत्य के रूप में मनाया जाता है।
4. मांदर उत्सव किन राज्यों में मनाया जाता है?
उत्तर:
यह उत्सव मुख्य रूप से झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, और बंगाल के कुछ आदिवासी बहुल क्षेत्रों में मनाया जाता है।
5. मांदर उत्सव का उद्देश्य क्या होता है?
उत्तर:
इस उत्सव का उद्देश्य प्रकृति की आराधना, सामाजिक एकता, पूर्वजों का स्मरण, और सांस्कृतिक परंपराओं का उत्सवपूर्वक प्रदर्शन करना होता है।
6. क्या मांदर उत्सव केवल आदिवासियों का पर्व है?
उत्तर:
हालांकि यह मूलतः आदिवासी समुदायों का पर्व है, लेकिन इसकी लोकप्रियता और समावेशी स्वभाव के कारण अब यह विभिन्न समाजों और शहरों तक भी पहुंच रहा है।
7. मांदर उत्सव में महिलाएं क्या भूमिका निभाती हैं?
उत्तर:
महिलाएं नृत्य, गीत और वाद्य वादन में समान भागीदारी निभाती हैं। वे पारंपरिक वेशभूषा पहनकर मांदर पर थिरकती हैं और सांस्कृतिक प्रदर्शन की धुरी बनती हैं।
8. क्या मांदर उत्सव को पर्यटन से जोड़ा जा सकता है?
उत्तर:
हाँ, मांदर उत्सव को लोक पर्यटन (Ethnic Tourism) से जोड़ा जा सकता है, जिससे स्थानीय कलाकारों और कारीगरों को आर्थिक लाभ के साथ-साथ वैश्विक पहचान भी मिल सकती है।
9. क्या मांदर उत्सव पर रिसर्च और अध्ययन हो रहा है?
उत्तर:
जी हाँ, कई विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में मांदर उत्सव और आदिवासी संस्कृति पर शोध कार्य चल रहे हैं। यह मानवविज्ञान, संगीत, और सांस्कृतिक अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण विषय है।
10. मांदर उत्सव को कैसे संरक्षित किया जा सकता है?
उत्तर:
इसे संरक्षित करने के लिए:
लोक शिक्षा को बढ़ावा देना,
लोक कलाकारों को सरकारी सहयोग,
डिजिटल डॉक्यूमेंटेशन,
और युवा पीढ़ी को पारंपरिक कला से जोड़ना अत्यंत आवश्यक है।
Related
Discover more from Aajvani
Subscribe to get the latest posts sent to your email.