मानसून 2025: दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पूर्व से समस्याएं, समाधान और सरकारी रणनीति
भूमिका: जब बादल सिर्फ बारिश नहीं लाते, बल्कि चिंता भी लाते हैं
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ToggleMonsoon एक विशेष प्रकार की मौसमी हवा (seasonal wind) और उससे जुड़ी बारिश को कहते हैं, जो मुख्य रूप से भारत और दक्षिण एशिया के बड़े हिस्से में हर साल गर्मियों के मौसम में होती है। मानसून शब्द का अर्थ होता है “मौसम” या “ऋतु”, लेकिन
सामान्यतः इसे भारत में विशेष तौर पर भारी बारिश लाने वाली हवाओं के संदर्भ में लिया जाता है।
भारत में Monsoon केवल एक मौसम नहीं, बल्कि जीवन की धड़कन है। दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पूर्व मानसून न केवल खेतों की प्यास बुझाते हैं, बल्कि देश की 60% से अधिक आबादी की आजीविका भी इन पर निर्भर करती है।
लेकिन जब यही Monsoon समय से पहले आए, फिर अचानक ठहर जाएं या अत्यधिक तबाही मचाएं—तो यह “वर्षा ऋतु” एक चुनौती में बदल जाती है।
2025 का वर्ष भी कुछ ऐसा ही है। इस बार Monsoon ने समय से पहले दस्तक दी, फिर अचानक थम गया। कहीं बाढ़ है तो कहीं सूखा, कहीं फसलों की आस है तो कहीं किसानों की चिंता।
मानसून की विशेषताएँ
1. मौसमी हवा का परिवर्तन:
Monsoon हवा की दिशा में हर छह महीने में आने वाला बदलाव है। गर्मियों में दक्षिण-पश्चिमी हवाएँ आती हैं और ठंडों में उत्तर-पूर्वी हवाएँ चलती हैं।
2. भारी वर्षा:
Monsoon के दौरान, भारत में खासकर दक्षिण-पश्चिम Monsoon के कारण भारी वर्षा होती है, जो कृषि और जल संसाधनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण होती है।
3. दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पूर्व मानसून:
भारत में दो मुख्य मानसून होते हैं:
दक्षिण-पश्चिम मानसून: यह जून से सितंबर तक रहता है और भारत के अधिकांश हिस्सों में बारिश लाता है।
उत्तर-पूर्व मानसून: अक्टूबर से दिसंबर तक रहता है, खासकर तमिलनाडु और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में बारिश करता है।
Monsoon क्यों आता है?
Monsoon पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों पर तापमान के अंतर के कारण उत्पन्न होता है। गर्मियों में भारत और इसके आसपास का क्षेत्र बहुत गर्म हो जाता है, जिससे यहां का दबाव कम हो जाता है।
इसी वजह से समुद्र की ठंडी और नम हवा भारत की तरफ चलती है, जो भारी वर्षा लेकर आती है।
Monsoon का महत्व
कृषि के लिए जीवनदायिनी: भारत की अधिकतर फसलों की सिंचाई मानसून की बारिश पर निर्भर होती है।
जल संसाधन: नदियाँ, तालाब और जलाशय मानसून के पानी से भरते हैं।
पर्यावरण: Monsoon से ही हरियाली, वनस्पति और जीव-जंतु जीवन पाते हैं।
अर्थव्यवस्था: भारत की आर्थिक गतिविधियाँ जैसे खेती, उद्योग, और बिजली उत्पादन मानसून पर निर्भर हैं।
क्या है दक्षिण-पश्चिम मानसून?
दक्षिण-पश्चिम Monsoon वह मौसमी पवन है जो अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से नमी लेकर भारत के दक्षिणी तट से टकराती है और देश के अधिकांश हिस्सों में बारिश लाती है।
यह Monsoon जून से सितंबर तक सक्रिय रहता है और इसे भारत का ‘ग्रीष्मकालीन मानसून’ कहा जाता है।
प्रमुख विशेषताएँ:
शुरुआत: केरल के तट से (आमतौर पर 1 जून के आसपास)
मुख्य स्रोत: अरब सागर और बंगाल की खाड़ी
मुख्य क्षेत्र: महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर भारत, पूर्वोत्तर राज्य, गुजरात, राजस्थान आदि
क्या है उत्तर-पूर्व Monsoon ?
उत्तर-पूर्व Monsoon (या ‘शीतकालीन Monsoon ’) अक्टूबर से दिसंबर तक दक्षिण भारत में विशेष रूप से तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, पुडुचेरी और केरल के कुछ हिस्सों में बारिश लाता है।
यह Monsoon भारतीय उपमहाद्वीप से शुष्क ठंडी हवाओं के रूप में बंगाल की खाड़ी की ओर लौटता है और समुद्र की नमी लेकर पुनः वर्षा करता है।
प्रमुख विशेषताएँ:
मुख्य क्षेत्र: तमिलनाडु, पुडुचेरी, दक्षिण आंध्र प्रदेश
वर्षा की मात्रा: तमिलनाडु को अपनी कुल वार्षिक वर्षा का 48% इसी Monsoon से मिलता है
2025 में मानसून की चाल: एक उलझी हुई कहानी
समय से पहले दस्तक
2025 में दक्षिण-पश्चिम Monsoon ने सामान्य समय से लगभग एक सप्ताह पहले ही दस्तक दे दी। यह शुरुआत किसानों के लिए राहत की खबर थी। शुरुआत में अच्छी बारिश हुई, लेकिन…
Monsoon का ठहराव
जैसे ही उम्मीदें बढ़ीं, Monsoon थम गया। मध्य भारत, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान आदि में बारिश कम हुई। तापमान बढ़ा, और खेती की तैयारियाँ ठप हो गईं।
बेमौसम बारिश और बाढ़
पूर्वोत्तर राज्यों में लगातार और भारी वर्षा ने जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया। असम, मेघालय और अरुणाचल में बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो गई। दूसरी ओर, उत्तर और मध्य भारत में किसान बादलों की राह तकते रहे।

Monsoon की इस अनिश्चितता के पीछे क्या हैं कारण?
1. एल-नीनो और ला-नीना प्रभाव
यह प्रशांत महासागर के तापमान में बदलाव से जुड़ा एक प्राकृतिक चक्र है। एल-नीनो भारत में सूखे की संभावना बढ़ाता है जबकि ला-नीना से अच्छी वर्षा होती है। 2025 में एल-नीनो से ला-नीना की ओर संक्रमण चल रहा है।
2. जलवायु परिवर्तन
मानव गतिविधियों से जलवायु असंतुलित हो रही है। इससे Monsoon की चाल अनियमित हो गई है – कहीं अत्यधिक बारिश, कहीं सूखा।
3. भारतीय महासागर डिपोल (IOD)
IOD समुद्र के तापमान के पूर्व-पश्चिम भिन्नता को दर्शाता है। यह मानसून को प्रभावित करता है – सकारात्मक IOD से वर्षा बढ़ती है, नकारात्मक से घटती है।
कृषि पर असर: खेतों में चिंता की दरार
भारत की 50% से अधिक खेती Monsoon पर निर्भर है। जैसे ही मानसून थमा, फसलों की बुवाई में देरी हुई। किसानों ने सोयाबीन, मक्का, बाजरा, धान आदि की बुवाई को टाल दिया। कई इलाकों में मिट्टी की नमी कम हो गई, जिससे कृषि पर संकट गहरा गया।
प्रभावित फसलें:
खरीफ फसलें (जैसे धान, मक्का, मूँग, बाजरा)
बागवानी उत्पाद
पशुपालन भी प्रभावित
शहरी भारत की परेशानी: बारिश बनी आफत
जलभराव और ट्रैफिक जाम
मुंबई, बेंगलुरु, पटना और कोलकाता जैसे शहरों में बेमौसम और अचानक भारी बारिश से सड़कें तालाब बन गईं। यातायात ठप हो गया। कार्यालयों और स्कूलों में हाजिरी प्रभावित हुई।
स्वास्थ्य समस्याएँ
बढ़ती नमी से डेंगू, मलेरिया और वायरल बीमारियाँ फैलीं। अस्पतालों में बुखार और संक्रमण के मरीजों की संख्या बढ़ी।
मौसम विभाग की भूमिका और तकनीकी सुधार
भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने 2025 में भविष्यवाणी प्रणाली में नए सुधार किए हैं:
BFS (Bharat Forecasting System) लॉन्च किया गया, जो 6 किमी की सूक्ष्म ग्रिड पर आधारित है।
डॉपलर रडार नेटवर्क का विस्तार हुआ है जिससे स्थानीय स्तर पर सटीक अलर्ट दिए जा सकें।
सुधार के बावजूद चुनौतियाँ:
स्थानीय स्तर की भविष्यवाणियाँ अब भी 100% सटीक नहीं हैं
अचानक बदलाव (जैसे बादलों का घूम जाना) तकनीक के लिए चुनौतीपूर्ण है
आर्थिक असर: देश की अर्थव्यवस्था भी हुई प्रभावित
कृषि उत्पादन में गिरावट से खाद्यान्न संकट की आशंका
फसल बीमा दावों में वृद्धि
महंगाई में संभावित बढ़ोतरी
शहरी व्यापारिक गतिविधियाँ बाधित
समाधान और सुझाव
किसानों के लिए:
सिंचाई के वैकल्पिक साधन (ड्रिप इरिगेशन, रेनवाटर हार्वेस्टिंग)
समय पर बीज और खाद की उपलब्धता
कृषि बीमा जागरूकता
सरकार के लिए:
बाढ़ और सूखे के लिए तैयारी योजना
मौसम आधारित कृषि सलाह का प्रचार
मानसून आपदा फंड का निर्माण
आम नागरिकों के लिए:
बारिश की भविष्यवाणी पर ध्यान देना
जलभराव से बचाव के उपाय
स्वास्थ्य सुरक्षा (मच्छरदानी, पानी उबालकर पीना)
क्षेत्रवार असर: भारत के भिन्न हिस्सों में मानसून की चाल
उत्तर भारत:
उत्तर भारत के राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा में मानसून के देर से आने या ठहर जाने से खरीफ फसलें समय पर बोई नहीं जा सकीं। इसके अलावा यहाँ बाढ़ और सूखे की दोहरी मार देखने को मिल रही है।
प्रमुख चिंताएँ:
धान और मक्का की बुवाई प्रभावित
जलभराव से गन्ना और सब्ज़ी फसलें खराब
पीने के पानी की किल्लत ग्रामीण इलाकों में बढ़ी
मध्य भारत:
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य जहां मानसून पर सबसे अधिक कृषि निर्भरता है, वहाँ वर्षा की अनियमितता ने सीधा असर खेतों पर डाला।
प्रभाव:
कपास और सोयाबीन की बुवाई प्रभावित
जलाशयों में जलस्तर सामान्य से नीचे
पश्चिम भारत:
राजस्थान और गुजरात में इस साल कुछ हिस्सों में अत्यधिक वर्षा तो कुछ में सूखा पड़ा। इस असंतुलन ने सिंचाई योजनाओं और ग्रामीण रोजगार को प्रभावित किया।
प्रभाव:
रेगिस्तानी क्षेत्रों में बाढ़ जैसी स्थिति
छोटे किसान सबसे ज़्यादा प्रभावित
दक्षिण भारत:
तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश को उत्तर-पूर्व मानसून से अधिक वर्षा मिलती है। लेकिन जब दक्षिण-पश्चिम मानसून कमजोर होता है, तो जलाशय खाली रह जाते हैं।
प्रमुख असर:
चेन्नई जैसे शहरों में जलसंकट
किसान उत्तर-पूर्व मानसून पर पूरी तरह निर्भर हो जाते हैं

पूर्वोत्तर भारत:
यह क्षेत्र भारत का सबसे अधिक वर्षा प्राप्त करने वाला क्षेत्र है, लेकिन अत्यधिक वर्षा के कारण भूस्खलन और बाढ़ आम हो चुके हैं।
प्रभाव:
ब्रह्मपुत्र नदी का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर
ग्रामीण इलाकों में घर, सड़कें और फसलें बर्बाद
सामाजिक असर: जब मानसून जीवन को छूता है
किसानों की मानसिक स्थिति:
मानसून की अनिश्चितता ने किसानों के मन में डर और तनाव भर दिया है। आत्महत्याओं की खबरें बढ़ रही हैं क्योंकि उनकी पूरी साल की मेहनत और कमाई मानसून पर निर्भर है।
ग्रामीण-शहरी पलायन:
जब गांवों में फसलें नहीं होतीं, तो काम की तलाश में लोग शहरों की ओर पलायन करते हैं। इससे शहरी झुग्गियाँ बढ़ती हैं और सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
शिक्षा पर प्रभाव:
गांवों में स्कूल जलभराव या बाढ़ के कारण बंद हो जाते हैं। गरीब परिवारों के बच्चे स्कूल छोड़कर काम पर लग जाते हैं।
स्वास्थ्य संकट:
मानसून के कारण डायरिया, मलेरिया, चिकनगुनिया, डेंगू जैसी बीमारियाँ बढ़ती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएँ पहले से ही कमज़ोर हैं, जिससे संकट और बढ़ जाता है।
नीति निर्माण में बदलाव की ज़रूरत
मानसून की अनिश्चितता को देखते हुए अब सरकार और नीति निर्माताओं को मौसम आधारित योजना बनानी होगी।
दीर्घकालीन रणनीतियाँ:
1. जल संग्रहण नीति: वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) को अनिवार्य बनाया जाए।
2. फसल विविधीकरण: मानसून पर निर्भरता कम करने के लिए वैकल्पिक फसलें और रबी सीजन पर ध्यान।
3. सौर सिंचाई: सोलर पंप से पानी की उपलब्धता सुनिश्चित हो।
4. स्थानीय पूर्वानुमान प्रणाली: ग्राम पंचायत स्तर तक सटीक मौसम की जानकारी पहुँचे।
भविष्य की तैयारी: मानसून से मुकाबला कैसे करें?
मानसून की बदलती प्रकृति से बचने के लिए केवल सरकारी योजनाएँ काफी नहीं होंगी। यह एक सामूहिक जिम्मेदारी है।
किसान क्या करें?
मिट्टी परीक्षण करवाकर फसल का चयन करें
मोबाइल ऐप्स से मौसम की जानकारी लें (जैसे किसान सुविधा ऐप)
ड्रिप इरिगेशन और मल्चिंग जैसी तकनीकों का उपयोग करें
सरकार क्या करे?
मानसून आधारित फसल बीमा योजना को सरल बनाए
ग्रामीण जल परियोजनाओं को गति दे
क्लाइमेट रेसिलियंट खेती पर शोध बढ़ाए
समाज क्या करे?
वर्षा जल संचयन को बढ़ावा दें
पेड़ लगाएं, जल स्रोतों की सफाई करें
स्थानीय आपदा प्रबंधन समितियों में भाग लें
निष्कर्ष: मानसून का संदेश – चेतावनी भी है और अवसर भी
भारत में दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पूर्व मानसून केवल जलवायु घटनाएँ नहीं हैं, ये देश की कृषि व्यवस्था, आर्थिक ढांचा, और सामाजिक जीवन की नींव हैं।
परंतु पिछले कुछ वर्षों में मानसून की अनियमितता, अत्यधिक वर्षा, और लंबे सूखे अब संकेत दे रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन की चुनौती हकीकत बन चुकी है।
यहाँ उपलब्ध जानकारी से यह स्पष्ट होता है कि:
मानसून के भरोसे हमारी कृषि प्रणाली अब सुरक्षित नहीं रही,
नीतियों को अब मौसम-संवेदनशील और स्थायी (sustainable) बनाना होगा,
जल संकट, खाद्य संकट और रोजगार संकट पर काम करना अनिवार्य हो गया है।
मानसून हमें चेतावनी दे रहा है, लेकिन यदि हम समय पर सजग हो जाएँ, तो यह एक अवसर भी है — जल प्रबंधन को सुधारने का, किसानों को सशक्त करने का और प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने का।
आख़िर में, याद रखिए:
> “जब तक हम प्रकृति को अपना साथी नहीं बनाएँगे, तब तक मानसून जैसे संकट हमें बार-बार झकझोरते रहेंगे।”
अब निर्णय हमें लेना है —
क्या हम बदलाव को अपनाएंगे?
या फिर हर साल मानसून की मार झेलते रहेंगे?
समय अभी भी है, बस समझदारी से कदम उठाने की ज़रूरत है।
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