रिजविक की संधि (1697)

रिजविक की संधि (1697): कैसे एक संधि ने भारत का उपनिवेशीय भविष्य तय किया?

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रिजविक की संधि क्या है? कारण, प्रभाव और भारत में इसका ऐतिहासिक महत्व!

परिचय: रिजविक की संधि क्या है?

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परिभाषा: 1697 में फ्रांस और ग्रैंड एलायंस (इंग्लैंड, द नीदरलैंड्स, स्पेन आदि) के बीच लुई XIV के विस्तारवादी युद्धों को समाप्त करने वाला महत्वपूर्ण समझौता।

हस्ताक्षर: प्रारंभिक रूप से 20 सितंबर को मसौदा, औपचारिक रूप से 30 अक्टूबर 1697 को डच शहर रिज़विक में हस्ताक्षरित।

महत्व: 17वीं शताब्दी के यूरोपीय राजनीतिक संतुलन और भारतीय उपनिवेशों पर इसका गहरा प्रभाव — स्वीकृत युद्ध-रूपांतरण पर पहला वैश्विक शांति समझौता।

रिजविक की संधि (1697)
रिजविक की संधि (1697): कैसे एक संधि ने भारत का उपनिवेशीय भविष्य तय किया?

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: क्यों हुआ यह युद्ध?

नाइन इयर्स वॉर (1688–1697)

लुई XIV के फ्रांस ने बड़े पैमाने पर क्षेत्रीय विस्तार की चेष्टा की।

इंग्लैंड, नीदरलैंड, स्पेन और पवित्र रोमन साम्राज्य ने मिलकर ग्रैंड एलायंस की स्थापना की।

वैश्विक संघर्ष

युद्ध सीमाओं से परे चला गया—उत्तरी अमेरिका (कैलोनीज़—King William’s War), यूरोप, भारत में कॉलोनियों में तक फैल गया।

आर्थिक दबाव

कई वर्षों के युद्ध ने प्रमुख राज्य-राज्य को गिरती हुई अर्थव्यवस्था, उच्च कर और नागरिक असंतोष के विरुद्ध मजबूर किया।

प्रारंभिक वार्ता और समझौते

डच मध्यस्थता

डच गणराज्य ने शांति वार्ता की मेज़बानी की, जो 1696-97 में शांति की पहल बनी।

प्रारंभिक मसौदा (20 सितंबर 1697)

मुख्य यूरोपीय सेनाओं ने युद्धविराम और क्षेत्र-वापसी से संबंधित प्रावधानों पर सहमति व्यक्त की।

कई प्रोटोकॉल

बाद में मास्ट्रिख्ट, लिसबन, और द हेग में विभाजित समझौते हुए, क्योंकि ग्रैंड एलायंस में अलग- अलग हित थे।

मुख्य शर्तें: सीमा, स्वीकृति और राजनयिक सुविधाएँ

1. भूमि-सुधार (Territorial Restitutions)

फ्रांस ने बर्गंडीय (बर्लिन सहित) इलाकों को लौटाया;

नीदरलैंड और हैट के साथ सीमापरिसीमा पुनः व्यवस्थित;

स्पेनिश और इटालियन क्षेत्रों पर नियंत्रण संतुलन बहाल।

2. राजनयिक मान्यता

फ्रांसीसी राजा द्वारा विलियम III (इंग्लैंड) को राजगद्दी पर स्वीकृति;

फ्रांस ने ब्रिटिश राज्यें (इंग्लैंड, स्कॉटलैंड) में राजनैतिक स्थिति मान्यता दी।

3. भारतीय संपत्ति: पांडिचेरी पर बल

फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी को पांडिचेरी वापसी मिली—इससे फ्रांस भारत में फिर सक्रिय हुआ।

तत्काल और दीर्घकालीन प्रभाव

यूरोप के हित

राजनीतिक स्थिरता: शक्ति संतुलन स्थापित हुआ, लंबे समय की शांति की नींव पली।

आगे के गठबंधन: इंग्लैंड-हॉलैंड फ्रांस विरोधी दिशा बरकरार रखी; स्पेन ने क्षेत्रीय हित सुरक्षित किए।

आर्थिक विकास

युद्ध समाप्ति से व्यापार बहाल हुआ;

पांडिचेरी के बाद भारत-यूरोप और समुद्री व्यापार में इजाफा।

नव उपनिवेश रणनीतियाँ

फ्रांस ने भारत में पांडिचेरी आधारित स्थानीय रणनीति अपनाई।

फ्रांसीसी-इंग्लिश संघर्षों की शुरुआत हुई, जिसने आगे के सयुंक्त युद्धों को जन्म दिया।

भारत में रिजविक की संधि का असर

पांडिचेरी की वापसी

1697 में फ्रांसीसी पुनः स्थापित हुए; बोरो का अवसान घटा; स्थानीय सत्ता में बढ़त।

अंग्रेज़ों की प्रतिक्रिया

उन्होंने कन्मांद्य व्यापारिक नीति संगठित की।

स्थानीय राजपरिवारों के साथ राजनीति

फ्रांस ने धन-बल से स्थानीय शासकों के साथ स्ट्रैटेजिक गठबंधन बनाए।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: Nine Years’ War की उत्पत्ति और प्रासंगिकता

लुई XIV का विस्तारवाद और ग्रैंड एलायंस का निर्माण

17वीं शताब्दी में लुई XIV की आक्रामक नीतियों ने यूरोप में तनाव पैदा कर दिया। विलेन्यूव्, लोट्रेिंक क्षेत्रों पर विजय और मड्रिड के उत्तराधिकार पर दावों ने इंग्लैंड, नीदरलैंड्स, स्पेन और पवित्र रोमन साम्राज्य को फ्रांस के विरुद्ध एक मजबूत गठबंधन—ग्रैंड एलायंस—बनाने पर विवश किया ।

वैश्विक युद्ध का विस्तार

युद्ध केवल यूरोपीय सीमाओं तक सीमित नहीं रहा—यह उत्तरी अमेरिका (King William’s War), भारत, कैरिबियन तक फैल गया। ध्वस्त वाणिज्यिक मार्गों और समुद्री बलों की टक्कर इस युद्ध को वैश्विक संघर्ष बना गई ।

यूरोप पर युद्ध का आर्थिक व सामाजिक प्रभाव

लंबे संघर्ष ने राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं को अपनी जकड़ में लिया—कर्ज़, करों की भारी वृद्धि, और आर्थिक मंदी के साथ-साथ 1690 के दशक में सूखे और भूखे—जिससे जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया ।

Ryswick वार्ता का आयोजन-तथ्य और मध्यस्थता की भूमिका

वार्ता मई 1697 में डच शहर रीज़विक में शुरू हुई, जहाँ स्वीडिश राजनयिक मध्यस्थता और बैकडोर डील द्वारा लुई XIV को वार्ता की मेज़बानी करनी पड़ी ।

विलियम III और मार्शल बुफ्लर्स ने निजी बैठकों के माध्यम से बड़े मुद्दों—जैसे स्पेनिश उत्तराधिकार को टालने—पर समझौता किया ।

20 सितंबर 1697 को बेल्जियम-स्पेन, इंग्लैंड, नीदरलैंड्स के बीच अग्रिम समझौते हुए; 30 अक्टूबर 1697 को पवित्र रोमन साम्राज्य के साथ अंतिम करार हुआ ।

संधि की प्रमुख शर्तें और भू-राजनीतिक निहितार्थ

यूरोप में क्षेत्रीय पुनर्संरचना

1679 की Treaty of Nijmegen की सीमा फिर से लागू कर ली गई—फ्रांस को स्ट्रासबर्ग छोड़कर बाकी कब्ज़े लौटाने पड़े (Freiburg, Breisach, Philippsburg, Lorraine) ।

कैटलोनिया, लक्ज़मबर्ग, मॉन्स, Courtrai जैसे क्षेत्रों पर फ्रांस के कब्ज़े हटाए गए, और नीदरलैंड्स में डच गढ़ों को गठित अधिकार मिले ।

राजनयिक मान्यता

फ्रांस ने विलियम III को इंग्लैंड, आयरलैंड का वैध राजा मान्यता दी और जेम्स II को समर्थन वापस लिया ।

फ्रांस ने Electoral Palatinate और Cologne पर अपने राजनीतिक प्रभाव को भी छोड़ दिया ।

कॉलोनियल समापनों के दस्तावेज

न्यू फ़्रांस में फ्रांस को वापसी मिली: Pondicherry (भारत), Acadia/Nova Scotia (नवंबर तक फिर से नियंत्रण), Hispaniola का पश्चिमी हिस्सा (Saint-Domingue), और उच्चाधित Tortuga को प्राप्ति हुई ।

विशेष रूप से, Pondicherry को डचों से 1693 कब्जा छुड़ाकर 1697 Treaty के तहत वापस किया गया; 1699 में औपचारिक रूप से सौंपा गया ।

तत्काल प्रभाव – राजनीतिक, आर्थिक व समुद्री परिदृश्य

यूरोप में स्थिरता

शक्ति संतुलन बनाया गया, फ्रांस और गठबंधन के बीच तनाव कम हुआ और बड़े युद्ध की आहट टली ।

समुद्री वाणिज्य में चेतना

वाणिज्यिक मार्गों पर फिर से शांति लौटी—और लंदन ने यूरोपीय वाणिज्यिक प्रधानता प्राप्त की, जबकि नीदरलैंड्स का दबदबा कुछ कमज़ोर हुआ ।

अमेरिका में प्रभाव

असमय सूचना के कारण न्यू इंग्लैंड में खूनखराबा संधि की जानकारी पहुंचने से पहले जारी रहा; बाद में Nova Scotia वापस फ्रांस गया, लेकिन बुनियादी संघर्ष बना रहा ।

भारत और Pondicherry पर Treaty के प्रभाव

Pondicherry का फ्रेंच पुनरावर्तन

1673 में फ्रांस ने Pondicherry में कदम रखा, 1693 में डचों ने हमला किया; Treaty की शर्तों से फ्रांस को 1699 में औपचारिक रूप से पुनः प्राप्ति हुई ।

फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी की रणनीति

वहां फ्रेंच ने व्यापार पुलिस्थल बनाया—मसालिपट्टन, महे, यानाम जैसे केंद्र बनाए—जो आगे चलकर अंतिम चार कर्नाटक युद्धों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए ।

दीर्घकालीन दृष्टिकोण और इतिहासकारों की टिप्पणी

संयुक्त स्थिरता दृष्टिकोण

Treaty of Ryswick को यूरोपीय शक्ति संतुलन बनाए रखने में एक सफल मॉडल माना जाता है—बड़े युद्ध को स्थगित करने व रणनीतिक ठहराव में सहायक ।

आलोचनात्मक दृष्टिकोण

इस संधि को केवल क्षणिक शांति माना गया—स्पेनिश उत्तराधिकार की समस्या टल गई नहीं, 1701 में Spanish Succession के युद्ध ने यह सिद्ध कर दिया ।

आर्थिक प्रभाव: Europe का राष्ट्रीय ऋण और व्यापारिक बदलाव

यूरोपीय राजकोषीय स्थिति:

इंग्लैंड की राज्य आय का 80% इस युद्ध में खर्चिको ने खाद‍्य संकट और ऋण की उच्च दरें बढ़ाईं ।

Bank of England का गठन (1694):

युद्ध की वित्तीय ज़रूरतोंसे उत्पन्न यह आधुनिक बैंकिंग मॉडल को जन्म; National Debt का प्रारंभ ।

International trade agreements:

Treaty से Dutch को लाभ—1664 टैरिफ पर वापसी और Antwerp की बंदी से व्यापार सुनिश्चित ।

फ्रेंच-कैरिबियन colonies को sugar व व्यापार हेतु प्रोत्साहन मिला।

रिजविक की संधि (1697)
रिजविक की संधि (1697): कैसे एक संधि ने भारत का उपनिवेशीय भविष्य तय किया?

भारत–Pondicherry: द्वीप बनने की शुरुआत

Pondicherry की पुनःस्थापना (1699)

Treaty के मसौदे और हस्ताक्षर—फ्रांस को Pondicherry औपचारिक रूप से 1699 में वापस मिली ।

1673 से शुरू हुई यह colony 1674 में François Martin के नेतृत्व में विकसित हुई, जिसे अब व्यापार और रणनीतिक केंद्र बनाया गया ।

परिणाम और स्थानीय राजनीति

1697–99 के बाद, फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी ने Mahe, Yanam, Karaikal समेत अन्य केंद्र स्थापित करना शुरू किया ।

यह भारत में फ्रेंच स्थिति की दृढ़ीकरण की नींव बना, जिसने आगे चलकर कार्नाटिक-युद्धों की भूमिका निभाई ।

उपनिवेशों में उत्पन्न तनाव और भविष्य के युद्ध

Pondicherry का विकास द्विपक्षीय संघर्ष का आधार बना—ब्रिटिश और फ्रेंच दोनों ने भारत में अपना प्रभुत्व बढ़ाया।

इसके परिणामस्वरूप First Carnatic War (1740‑48), Second Carnatic War (1749‑54), और Third Carnatic War (1757‑63) आमने-सामने संघर्षों का आरंभ हुआ ।

Spanish Succession की भविष्यवाणी

Treaty ने Spanish उत्तराधिकार मुद्दे को अनसुलझा छोड़ा—इसलिए 1701‑14 में War of the Spanish Succession ने आग पकड़ी ।

1698 के Hague Partition Treaty ने प्रारंभिक प्रयास किए, किंतु Charles II की मृत्यु और heir Joseph Ferdinand की मृत्यु (1699) ने इस योजना को विफल बनाया ।

निष्कर्ष: रिजविक की संधि (Treaty of Ryswick, 1697)

रिजविक की संधि 17वीं शताब्दी के अंत में यूरोप, अमेरिका और भारत जैसे उपनिवेशों में फैले नाइन इयर्स वॉर (1688–1697) को विराम देने वाला एक ऐतिहासिक समझौता थी। यह सिर्फ एक युद्धविराम नहीं था, बल्कि एक ऐसा मोड़ था जिसने यूरोपीय शक्ति-संतुलन, अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति और उपनिवेशी प्रतिस्पर्धा को एक नई दिशा दी।

1. शांति की आवश्यकता का उत्तर

रिजविक की संधि ने थके-हारे राष्ट्रों को राहत दी। इंग्लैंड, फ्रांस, स्पेन और डच गणराज्य जैसे देशों ने यह महसूस किया कि अब युद्ध नहीं, बल्कि स्थायित्व और सहयोग ज़रूरी है। आर्थिक संकट, सामाजिक असंतोष और व्यापारिक रुकावट ने इस समझौते को अपरिहार्य बना दिया था।

2. उपनिवेशों में नए समीकरण

इस संधि ने भारत में फ्रांस की वापसी करवाई, खासकर पांडिचेरी को वापस दिलाकर। यहीं से फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने पांव मज़बूत किए। इसका असर आगे चलकर कर्नाटक युद्धों और ब्रिटिश-फ्रेंच संघर्षों में स्पष्ट दिखा।

3. अधूरी परंतु प्रभावी संधि

यद्यपि यह रिजविक की संधि Spanish उत्तराधिकार जैसे जटिल मुद्दों को स्थायी रूप से सुलझा नहीं पाई, फिर भी इसने आने वाले संघर्षों (जैसे Spanish Succession War, 1701–14) को टालने में कुछ समय की राहत दी।

4. भारत में यूरोपीय प्रतिस्पर्धा की भूमिका

रिजविक की संधि ने भारत में ब्रिटिश और फ्रांसीसी उपनिवेशी नीतियों को सीधे टकराव की दिशा में धकेला। इसके बाद का इतिहास इस बात का प्रमाण है कि यह संधि एक नई “कॉलोनियल रेस” की शुरुआत थी, जिसमें Pondicherry जैसे केंद्र रणनीतिक भूमिका निभाते रहे।

5. आधुनिक कूटनीति के लिए सीख

इस रिजविक की संधि ने यह सिखाया कि राजनयिक बातचीत, मध्यस्थता, और राजनीतिक यथार्थवाद युद्ध से कहीं बेहतर विकल्प हो सकते हैं—भले ही अस्थायी रूप से ही सही। यह “status quo ante bellum” (पूर्व स्थिति की बहाली) के सिद्धांत का अच्छा उदाहरण है, जो आज की अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में भी मान्य है।

FAQs: रिजविक की संधि से जुड़े सामान्य प्रश्न

Q1. रिजविक की संधि क्या थी?

उत्तर:
रिजविक की संधि (Treaty of Ryswick) एक शांति समझौता था, जो 1697 में फ्रांस और ग्रैंड एलायंस (इंग्लैंड, स्पेन, नीदरलैंड्स, पवित्र रोमन साम्राज्य) के बीच हुआ था। यह संधि नाइन इयर्स वॉर (1688–1697) को समाप्त करने के लिए बनाई गई थी। इसका उद्देश्य युद्ध के पूर्व की स्थिति को बहाल करना और उपनिवेशों में संतुलन स्थापित करना था।

Q2. रिजविक की संधि कब और कहाँ हुई थी?

उत्तर:
यह संधि नीदरलैंड के शहर Ryswick (रीज़विक) में 20 सितंबर 1697 से प्रारंभ हुई और 30 अक्टूबर 1697 को अंतिम रूप से लागू की गई।

Q3. रिजविक की संधि किन देशों के बीच हुई थी?

उत्तर:
यह संधि फ्रांस और ग्रैंड एलायंस (जिसमें शामिल थे: इंग्लैंड, नीदरलैंड्स, स्पेन, और पवित्र रोमन साम्राज्य) के बीच हुई थी। बाद में इसमें पवित्र रोमन सम्राट भी शामिल हुए।

Q4. रिजविक की संधि के प्रमुख प्रावधान क्या थे?

उत्तर:

युद्ध के पहले वाली सीमाएं बहाल करना (Status quo ante bellum)।

फ्रांस द्वारा विलियम III को इंग्लैंड का वैध राजा मानना।

फ्रांस द्वारा उपनिवेशों जैसे पांडिचेरी (भारत) और Acadia (कनाडा) की वापसी।

फ्रांस का जेम्स II को समर्थन समाप्त करना।

स्पेनिश क्षेत्रों से फ्रांस की वापसी और विवादित यूरोपीय गढ़ों की पुनर्स्थापना।

Q5. भारत में रिजविक की संधि का क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर:
रिजविक की संधि के तहत पांडिचेरी, जो फ्रांस का उपनिवेश था, डचों से वापस लिया गया और फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी ने वहाँ दोबारा पैर जमाए। यहीं से भारत में ब्रिटिश और फ्रांसीसी टकराव की शुरुआत मानी जाती है।

Q6. क्या रिजविक की संधि स्थायी शांति ला पाई?

उत्तर:
नहीं। यह संधि एक अस्थायी समाधान थी। स्पेन के उत्तराधिकार की समस्या को नहीं सुलझाया गया, जिसके चलते War of Spanish Succession (1701–14) जल्द ही आरंभ हो गया।

Q7. Treaty of Ryswick को ऐतिहासिक रूप से क्यों महत्वपूर्ण माना जाता है?

उत्तर:
रिजविक की संधि कई कारणों से महत्वपूर्ण थी:

इसने यूरोपीय राजनीति में शक्ति संतुलन (balance of power) की अवधारणा को स्थापित किया।

यह भारत में फ्रांस की वापसी और उपनिवेशीय संघर्ष का आधार बनी।

इसने भविष्य की शांति वार्ताओं के लिए राजनयिक संवाद का मॉडल प्रस्तुत किया।

Q8. Treaty of Ryswick से कौन-से भविष्य के युद्ध प्रभावित हुए?

उत्तर:

War of the Spanish Succession (1701–1714)

First and Second Carnatic Wars (भारत में)

उपनिवेशों में फ्रांस और इंग्लैंड के बीच लंबी श्रृंखला के संघर्ष, जैसे Seven Years’ War।

Q9. Treaty of Ryswick में कौन-सी उपनिवेशीय संपत्तियाँ वापस की गईं?

उत्तर:

फ्रांस को वापस मिला: पांडिचेरी (भारत), Hispaniola का पश्चिमी भाग (Saint-Domingue), Acadia (Nova Scotia), और Tortuga।

डचों को सौंपा गया: कुछ अफ्रीकी और एशियाई व्यापारिक चौकियाँ।

Q10. रिजविक की संधि UPSC या प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए क्यों जरूरी है?

उत्तर:

रिजविक की संधि आधुनिक कूटनीति, औपनिवेशिक संघर्ष, और अंतरराष्ट्रीय संबंध जैसे विषयों में एक महत्वपूर्ण केस स्टडी है।

UPSC में यह अक्सर विश्व इतिहास, राजनयिक घटनाओं, और भारत में यूरोपीय शक्ति संघर्ष के संदर्भ में पूछा जाता है।


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Sanjeev

Hello! Welcome To About me My name is Sanjeev Kumar Sanya. I have completed my BCA and MCA degrees in education. My keen interest in technology and the digital world inspired me to start this website, “Aajvani.com.”

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