शेरों की संख्या पहुंची 891: आखिर क्या है गिर की इस कामयाबी का राज़?
प्रस्तावना: जब जंगल गूंज उठे
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Toggleभारत के पश्चिमी सिरे पर बसे गुजरात राज्य की धरती एक बार फिर गर्व से दहाड़ उठी है। कारण है – वहां की शान और गौरव, एशियाई शेरों की लगातार बढ़ती संख्या।
ये वही शेर हैं जिन्हें कभी लुप्तप्राय घोषित किया गया था। किंतु अब 2025 की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, शेरों की संख्या 5 वर्षों में 674 से बढ़कर 891 हो गई है।
यह मात्र एक संख्या नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि यदि इच्छाशक्ति, विज्ञान और जनसहभागिता हो तो वन्यजीवन संरक्षण की दिशा में असंभव भी संभव हो सकता है।
गौरवशाली इतिहास: संकट से शक्ति तक
एशियाई शेर (Panthera leo persica), जिन्हें ‘गिर के शेर’ के नाम से भी जाना जाता है, कभी समूचे भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाते थे।
किंतु 20वीं सदी की शुरुआत में अत्यधिक शिकार और आवास के क्षरण के कारण ये मात्र गिर के जंगलों तक सिमट गए। 1900 के दशक में इनकी संख्या केवल कुछ दर्जन में रह गई थी।
महाराजा सायाजी राव गायकवाड़ और बाद में स्वतंत्र भारत सरकार ने इनकी सुरक्षा हेतु प्रयास शुरू किए। धीरे-धीरे गिर वन्यजीव अभयारण्य बना, संरक्षण योजनाएं बनीं, और आज हम एक ऐसी स्थिति में हैं जब शेरों की संख्या 891 तक पहुंच गई है।
2025 की जनगणना: तकनीक और तत्परता का संगम
2025 में की गई 16वीं एशियाई शेर जनगणना 10 से 13 मई के बीच आयोजित हुई। यह जनगणना कई मायनों में ऐतिहासिक थी – इसका दायरा सबसे बड़ा था और इसमें आधुनिक तकनीक का उपयोग सर्वोच्च स्तर पर किया गया।
कवर किया गया क्षेत्र: 35,000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ इलाका
शामिल जिले: जूनागढ़, गिर-सोमनाथ, अमरेली, भावनगर, पोरबंदर, राजकोट, बोटाद सहित 11 जिले
भागीदारी: 3,000 से अधिक वनकर्मी, स्वयंसेवक और विशेषज्ञ
प्रविधियां:
रेडियो कॉलर से ट्रैकिंग
हाई रिजॉल्यूशन कैमरा ट्रैप्स
मोबाइल एप (e-GujForest)
GIS आधारित मैपिंग
यह पूरी कवायद वैज्ञानिक पद्धति, जमीनी अनुभव और तकनीक के मेल से की गई जिससे आंकड़ों की सटीकता सुनिश्चित हो सके।
शेरों का बढ़ता साम्राज्य: संख्या और भूगोल दोनों में विस्तार
2020 में जहां एशियाई शेरों की संख्या 674 थी, वहीं अब यह 891 हो गई है – यानी लगभग 217 शेरों की वृद्धि, जो कि 32.2% की दर है। यह वृद्धि मात्र संख्या में नहीं, बल्कि उनके भौगोलिक पदचिह्न में भी है।
अब शेर:
केवल गिर के घने जंगलों में ही नहीं,
बल्कि गांवों के निकट, खेतों, खुले क्षेत्रों और तटीय इलाकों तक में देखे जा रहे हैं।
यह स्पष्ट संकेत है कि शेरों को अब और अधिक आवास की आवश्यकता है और वे अपने लिए नए क्षेत्र तलाश रहे हैं।

गांवों में शेर: खतरा या सह-अस्तित्व का संकेत?
शेरों का मानव बस्तियों के समीप दिखना एक चुनौतीपूर्ण संकेत है। बीते वर्षों में कई ऐसे मामले सामने आए जहां शेरों ने गांवों के मवेशियों पर हमला किया, सड़क पार करते हुए दिखे या कभी-कभी घरों के पास तक पहुंच गए।
लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, स्थानीय समुदायों ने इन घटनाओं को “संरक्षण की कीमत” के रूप में स्वीकार किया है। गुजरात के ग्रामीणों ने शेरों के साथ सह-अस्तित्व की अनोखी मिसाल पेश की है।
संरक्षण की रीढ़: राज्य सरकार की पहल
गुजरात सरकार ने पिछले दशक में शेरों की रक्षा के लिए कई योजनाएं चलाईं। उनमें से प्रमुख हैं:
- एशियाई शेर संरक्षण परियोजना (Asiatic Lion Conservation Project) – केंद्र और राज्य दोनों द्वारा चलाया गया
शेर बचाओ हेल्पलाइन (24×7)
वन विभाग की मोबाइल टीमें – तत्काल प्रतिक्रिया के लिए
मृत्यु पर फोरेंसिक जांच अनिवार्य – शेर की किसी भी मौत का कारण पता करना
स्थायी निगरानी केंद्रों की स्थापना
इन उपायों के चलते न केवल मृत्यु दर में गिरावट आई, बल्कि बीमारियों पर भी नियंत्रण पाया गया।
मौतें और चुनौतियां: विकास की कीमत
संख्या में बढ़ोत्तरी के साथ 2020 से 2024 के बीच 669 शेरों की मृत्यु भी दर्ज की गई। इनमें से 57 मौतें अप्राकृतिक कारणों से हुईं – जैसे सड़क दुर्घटनाएं, कुओं में गिरना, बिजली का करंट इत्यादि।
इससे यह स्पष्ट होता है कि बढ़ती जनसंख्या को यदि सही दिशा में नहीं संभाला गया, तो यह भारी नुकसान का कारण बन सकती है।
क्या समय आ गया है दूसरे आवासों की ओर बढ़ने का?
एक सवाल जो विशेषज्ञों को वर्षों से परेशान कर रहा है – क्या शेरों को सिर्फ गिर में ही सीमित रखना उचित है? केंद्र सरकार और पर्यावरण मंत्रालय ने वर्षों से एक “सेकंड होम फॉर लॉयन” प्रोजेक्ट की बात की है।
कुनो पालपुर (मध्य प्रदेश) को इसके लिए चुना भी गया था। लेकिन राजनीतिक असहमति और क्षेत्रीय स्वामित्व की भावना के कारण यह कदम अब तक नहीं हो पाया।
अब जबकि गुजरात में शेरों की संख्या और उनका क्षेत्र दोनों बढ़ रहे हैं, तो यह कदम जरूरी होता जा रहा है।
स्थानीय लोगों की भूमिका: शेरों के सच्चे रक्षक
गुजरात के मालधारी (घुमंतू पशुपालक) समुदाय को शेरों का सबसे बड़ा संरक्षक माना जाता है। वे पीढ़ियों से गिर के जंगलों में रहते आए हैं और उन्होंने कभी शेरों को नुकसान नहीं पहुंचाया।
इन समुदायों की जीवनशैली, विश्वास और सरकार के साथ साझेदारी इस संरक्षण अभियान की नींव हैं।
शोध और वैश्विक ध्यान: विश्व स्तर पर गुजरात का नाम
गुजरात में शेरों की वृद्धि अब न केवल देश, बल्कि विश्व स्तर पर चर्चा का विषय है। अंतरराष्ट्रीय वन्यजीव संगठन जैसे WWF, IUCN, और UNDP भी गुजरात मॉडल की सराहना करते हैं।
गुजरात वन विभाग ने “ऑन-ग्राउंड कंजर्वेशन के लिए सर्वश्रेष्ठ राज्य” का अवार्ड भी जीता है।
हर साल हजारों पर्यटक गिर राष्ट्रीय उद्यान आते हैं – जो इको-टूरिज्म को बढ़ावा देता है।
भावनात्मक परिप्रेक्ष्य: शेर सिर्फ जानवर नहीं, पहचान हैं
गुजरात के लिए एशियाई शेर सिर्फ एक प्रजाति नहीं हैं, वे उस भूमि की संस्कृति, पहचान और गौरव हैं। गिर में जन्मे बच्चे शेरों की कहानियां सुनते हैं, उनके पदचिन्हों को देखकर अपने बचपन की यादें बुनते हैं।
ग्रामीणों की आँखों में डर नहीं, बल्कि सम्मान झलकता है।
कई गांवों में शेरों के आने को शुभ संकेत माना जाता है। खेतों में घूमते हुए शेरों को देखकर किसान डरने की बजाय मंदिरों में प्रसाद चढ़ाते हैं। ये दृश्य किसी भी “मानव और वन्यजीव संघर्ष” के आम मिथक को तोड़ते हैं।
गुजरात मॉडल: शेर संरक्षण की मिसाल
पूरे भारत में यदि वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में कोई मॉडल को “गुजरात मॉडल” कहा जा सकता है, तो वह एशियाई शेर संरक्षण है।
यह मॉडल तीन मुख्य स्तंभों पर टिका है:
1. राजनीतिक इच्छाशक्ति: चाहे वह शेरों के लिए बजट आवंटन हो या वन्यजीव के लिए सड़कों पर स्पीड ब्रेकर – सरकार ने प्राथमिकता दी।
2. वैज्ञानिक प्रबंधन: वन्यजीव ट्रैकिंग, हेल्थ मॉनिटरिंग, जीन पूल की निगरानी – सब कुछ योजनाबद्ध और तकनीक आधारित रहा।
3. जनभागीदारी: गांव वालों को केवल देखने वाला नहीं, बल्कि संरक्षक बनाया गया।
गिर के जंगल की सुबह: एक दिन शेरों के साथ
कल्पना कीजिए, एक सुबह गिर के जंगल में। कोहरे में ढकी धरती, सूरज की पहली किरणें पेड़ों की शाखाओं से झांक रही हैं। और फिर – अचानक एक गूंजती हुई दहाड़। यह केवल जंगल की आवाज नहीं है, यह जीवन का संकेत है, एक सभ्यता का पुनर्जन्म।
गाइड धीमे स्वर में बताता है – “वो दिखा… नर शेर… उसकी मादा और दो शावक भी पास ही हैं।”
कैमरे क्लिक कर रहे हैं, पर आंखें कुछ और ही दर्ज कर रही हैं – एक शेर परिवार का पूरा जीवन चक्र।
शेर और अर्थव्यवस्था: इको-टूरिज्म की उड़ान
शेर न केवल जैव विविधता का हिस्सा हैं, बल्कि गुजरात की अर्थव्यवस्था का भी अभिन्न अंग बन चुके हैं।
हर साल लाखों पर्यटक गिर नेशनल पार्क आते हैं
इससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता है – गाइड, होटल, ट्रांसपोर्ट, हस्तशिल्प
सरकार को राजस्व मिलता है जिससे और संरक्षण कार्य हो सके
यह एक ऐसा उदाहरण है जहां प्रकृति और पूंजी दोनों का संतुलन बना है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: शेरों का स्वास्थ्य और जीन पूल
एशियाई शेरों की बढ़ती संख्या के साथ उनके स्वास्थ्य और आनुवंशिक विविधता की निगरानी बेहद जरूरी है।
Genetic Bottleneck की समस्या: गिर में मौजूद सभी शेर एक सीमित जीन पूल से संबंधित हैं। इससे अनुवांशिक रोग फैलने का खतरा है।
DNA बायोमैपिंग: गुजरात में अब प्रत्येक शेर की आनुवंशिक प्रोफाइल बनाई जा रही है ताकि क्रॉस-ब्रीडिंग की संभावना को नियंत्रित किया जा सके।
Immunization Programme: वर्ष 2018 में फैली CDV बीमारी के बाद शेरों के लिए वैक्सीनेशन की योजना बनाई गई।
अंतर्राष्ट्रीय मंच पर गुजरात के शेर
गुजरात के एशियाई शेरों को अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिल रही है।
IUCN Red List में ये प्रजाति “Endangered” मानी जाती है।
UNEP (संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम) ने 2022 में एशियाई शेरों की सुरक्षा में भारत की भूमिका को “Global Conservation Example” बताया।
G20 भारत अध्यक्षता के दौरान, गुजरात ने “Lion Conservation Model” को एक प्रतिनिधि परियोजना के रूप में प्रस्तुत किया।
गुजरात में एशियाई शेरों पर आधारित महत्वपूर्ण FAQ
Q1: एशियाई शेर (Asiatic Lion) की वर्तमान संख्या कितनी है?
उत्तर: 2020 में हुई गिनती के अनुसार गुजरात में एशियाई शेरों की संख्या 674 थी, जो अब (2025) में बढ़कर लगभग 891 हो गई है।
Q2: एशियाई शेर केवल भारत के किस राज्य में पाए जाते हैं?
उत्तर: एशियाई शेर केवल गुजरात राज्य में पाए जाते हैं, विशेषकर गिर राष्ट्रीय उद्यान और उससे सटे क्षेत्रों में।
Q3: एशियाई शेर और अफ्रीकी शेर में क्या अंतर है?
उत्तर:
एशियाई शेरों का अयाल (mane) छोटा होता है।
शरीर थोड़ा पतला और सिर लंबा होता है।
एशियाई शेरों के शरीर के नीचे एक फोल्ड (skin fold) होता है जो अफ्रीकी शेरों में नहीं होता।
एशियाई शेर समूहों में कम रहते हैं जबकि अफ्रीकी शेर बड़े प्राइड बनाते हैं।
Q4: शेरों की संख्या बढ़ने के क्या कारण हैं?
उत्तर:
- वन विभाग की सक्रियता
बेहतर संरक्षण योजनाएँ
स्थानीय समुदाय की सहभागिता
शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध
स्वास्थ्य निगरानी और रेस्क्यू सेंटर की स्थापना

Q5: गिर नेशनल पार्क कहाँ स्थित है?
उत्तर: गिर नेशनल पार्क सौराष्ट्र क्षेत्र, गुजरात के जूनागढ़, अमरेली, गिर-सोमनाथ और भावनगर जिलों में फैला हुआ है।
Q6: क्या एशियाई शेर लुप्तप्राय हैं?
उत्तर: हाँ, एशियाई शेरों को IUCN Red List में Endangered श्रेणी में रखा गया है।
Q7: शेरों की सुरक्षा के लिए गुजरात सरकार ने कौन-सी योजनाएं चलाई हैं?
उत्तर:
“द गेट्स ऑफ गिर” प्रोजेक्ट
शेर बसाव योजना (Lion Relocation Scheme)
वन मित्र योजना – स्थानीय लोगों की भागीदारी बढ़ाने हेतु
E-surveillance, GPS कॉलर ट्रैकिंग आदि
Q8: क्या शेरों को दूसरे राज्यों में भी बसाया गया है?
उत्तर: केंद्र सरकार ने मध्य प्रदेश के कूनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान में शेरों को बसाने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन गुजरात ने “शेर केवल गुजरात का गौरव है” कहकर इसका विरोध किया। अभी यह प्रस्ताव लंबित है।
Q9: एशियाई शेरों के लिए कौन-से अभ्यारण्य बनाए गए हैं?
उत्तर:
- गिर राष्ट्रीय उद्यान (Gir NP)
मीतियाला अभ्यारण्य
पलिताना आरक्षित वन
जेसोर अभ्यारण्य
बबर वन क्षेत्र
Q10: गिर शेर सफारी कहाँ शुरू हुई है?
उत्तर: दिओ (Devaliya) में गिर इंटरप्रिटेशन ज़ोन के अंतर्गत शेर सफारी की सुविधा दी गई है, जिससे पर्यटक सीमित क्षेत्र में सुरक्षित रूप से शेरों को देख सकते हैं।
Q11: एशियाई शेरों की जनगणना कैसे की जाती है?
उत्तर:
पहले ब्लॉक काउंट मेथड और डायरेक्ट साइटिंग द्वारा की जाती थी।
अब पगमार्क एनालिसिस, ड्रोन सर्वे, और कैमरा ट्रैपिंग का उपयोग किया जाता है।
Q12: एशियाई शेरों के लिए कौन-सी बीमारियाँ ख़तरनाक हैं?
उत्तर:
Canine Distemper Virus (CDV)
Babesiosis
Tuberculosis
इनसे बचाव के लिए शेरों का वैक्सीनेशन और समय-समय पर स्वास्थ्य परीक्षण जरूरी है।
Q13: क्या शेरों से स्थानीय लोगों को खतरा होता है?
उत्तर: बहुत कम मामले ऐसे आते हैं। अधिकांश लोग शेरों के साथ सह-अस्तित्व में रहते हैं। सरकार भी सतर्क रहती है और शेरों को मानवीय बस्तियों से दूर भेजने के लिए रेस्क्यू टीमें सक्रिय रहती हैं।
Q14: शेर संरक्षण में आम लोगों की क्या भूमिका है?
उत्तर:
शेरों की मौजूदगी की सूचना वन विभाग को देना
उन्हें परेशान न करना
अवैध शिकार की जानकारी देना
संरक्षण समितियों में सक्रिय भागीदारी
Q15: शेरों के संरक्षण से गुजरात को क्या लाभ हुए हैं?
उत्तर:
- पर्यटन से आर्थिक लाभ
स्थानीय रोजगार सृजन
प्राकृतिक पारिस्थितिकी का संरक्षण
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान में वृद्धि
निष्कर्ष: शेर संरक्षण की कहानी – गर्व, संवेदना और संतुलन की मिसाल
गुजरात में एशियाई शेरों की संख्या का 674 से बढ़कर 891 होना केवल एक आंकड़ों की उपलब्धि नहीं, बल्कि यह भारत के जैव विविधता और संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है।
यह कहानी उस सूझबूझ, सामाजिक सहभागिता और मजबूत नीतियों की है जिसने एक विलुप्तप्राय प्रजाति को न केवल बचाया, बल्कि उसे पुनर्जीवित भी किया।
यह उपलब्धि दिखाती है कि जब सरकार की इच्छाशक्ति, स्थानीय समुदाय की भागीदारी, और वैज्ञानिक दृष्टिकोण मिलकर कार्य करें, तो कोई भी संकट टल सकता है।
गुजरात के लोगों ने शेरों को शत्रु नहीं, सह-अस्तित्व के प्रतीक के रूप में देखा, यही वजह है कि आज शेर सिर्फ जंगल के राजा नहीं, गुजरात की आत्मा और भारत की शान बन चुके हैं।
हालांकि, यह सफर यहीं नहीं रुकता। बढ़ती जनसंख्या के साथ चुनौतियाँ भी सामने आ रही हैं — जैसे मानव-वन्यजीव संघर्ष, सीमित पर्यावास, और आनुवंशिक विविधता की कमी।
इसलिए अब ज़रूरत है सतत संरक्षण, विकेन्द्रित आवास, और संतुलित पर्यटन नीति की।
शेर की दहाड़ गिर के जंगलों से निकलकर अब पूरी दुनिया में भारत के संरक्षण प्रयासों की गूंज बन चुकी है। यह हम सभी के लिए एक प्रेरणा है कि प्रकृति को बचाना सिर्फ एक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि एक संस्कृति बननी चाहिए।
“शेरों की रक्षा कर हम सिर्फ एक प्रजाति को नहीं, बल्कि एक पूरी पारिस्थितिकी, एक विरासत और आने वाली पीढ़ियों का भविष्य बचाते हैं।”
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