संभाजी महाराज जयंती 2025: उनका साहस, बलिदान और न्याय की लड़ाई आज भी क्यों प्रासंगिक है?
प्रस्तावना: सिर्फ राजा नहीं, एक क्रांति का नाम
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Toggleजब भी भारत के इतिहास में स्वाभिमान, धर्म और बलिदान की बात होती है, एक नाम गर्जना करता है—छत्रपति संभाजी महाराज। वह केवल छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र नहीं थे,
बल्कि एक ऐसे योद्धा थे, जिन्होंने अपने पिता के स्वराज्य को हर दिशा में फैलाया और मुगलों के सबसे ताकतवर बादशाह औरंगज़ेब को वर्षों तक नाकों चने चबवा दिए।
2025 में उनकी जयंती न केवल एक उत्सव है, बल्कि युवाओं के लिए आत्मगौरव और संघर्ष की प्रेरणा है।
जन्म और बाल्यकाल: शेर की गूंज बचपन से
संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 को पुणे के नजदीक पुरंदर किले में हुआ था। उनकी माता सईबाई और पिता छत्रपति शिवाजी महाराज थे।
जब वे केवल 2 वर्ष के थे, उनकी माता का निधन हो गया, जिसके बाद उनका पालन-पोषण राजमाता जीजाबाई ने किया। उनके बचपन में ही वीरता, दृढ़ता और तेजस्विता झलकने लगी थी।
उन्हें बचपन से ही शस्त्रविद्या, राजनीति, संस्कृत, फारसी, मराठी, इतिहास और साहित्य का गहरा प्रशिक्षण मिला। मात्र 11 वर्ष की उम्र में वे मुगलों की कैद में आए, जहाँ उन्होंने कई ग्रंथों का अध्ययन किया।
शिक्षा और विद्वता: तलवार के साथ कलम भी तेज
बहुत कम लोग जानते हैं कि संभाजी महाराज एक विद्वान संस्कृत कवि भी थे। उन्होंने ‘बुधभूषणम्’ नामक एक महान ग्रंथ की रचना की थी, जो राजनीति, नैतिकता और समाज पर आधारित है।
वे संस्कृत, फारसी, मराठी और हिंदी के ज्ञाता थे। उनकी सोच और भाषा इतनी गूढ़ थी कि वे जब बोलते थे तो विरोधी भी प्रभावित हो जाते थे।
उनकी यह पंक्तियाँ आज भी ज्वलंत हैं:
“धर्म वही जो आत्मगौरव बढ़ाए, और युद्ध वही जो न्याय के लिए लड़ा जाए।”
राज्याभिषेक: सत्ता नहीं, संघर्ष की शुरुआत
1680 में शिवाजी महाराज के निधन के बाद मराठा साम्राज्य के लिए यह एक निर्णायक समय था। कई दरबारियों ने उनके चचेरे भाई राजाराम को गद्दी पर बैठाने की साजिश रची,
लेकिन संभाजी महाराज ने राजनीतिक चतुराई और दृढ़ता से राज्य पर अधिकार किया। मात्र 23 वर्ष की उम्र में उन्होंने शासन संभाला।
लेकिन यह गद्दी कोई आराम की कुर्सी नहीं थी, यह तो मुगल, सिद्दी, पुर्तगाली और डच जैसे शत्रुओं के बीच आग के समंदर से गुजरने जैसी थी।
आठ वर्षों की लगातार जंग: औरंगज़ेब की हार की शुरुआत
औरंगज़ेब को यकीन था कि शिवाजी की मौत के बाद मराठा साम्राज्य बिखर जाएगा, पर संभाजी ने उसे ऐसा जवाब दिया कि वह वर्षों तक दक्षिण भारत से बाहर नहीं निकल पाया।
1681 से 1689 तक, वे लगातार मुगलों, सिद्दियों, और विदेशी आक्रमणकारियों से लड़े।
वे एक कुशल सेनापति थे—छापामार युद्ध की रणनीतियाँ, तेजी से हमला कर पीछे हट जाना, दुर्गों का पुनर्निर्माण, और जन समर्थन जुटाना—इन सबमें उनकी महारत थी।
गोवा में पुर्तगालियों पर धावा
संभाजी ने सिर्फ मुगलों से ही नहीं, बल्कि ईसाई मिशनरियों द्वारा हिंदुओं पर किए जा रहे अत्याचारों के खिलाफ भी मोर्चा खोला। उन्होंने गोवा के पुर्तगालियों पर हमला किया और वहां हो रहे जबरन धर्म परिवर्तन को रोका।
इससे उनकी छवि केवल एक मराठा राजा की नहीं, बल्कि धर्म और संस्कृति के रक्षक की बन गई।
बंदीगृह और अमानवीय यातनाएँ: पर अडिग रहा धर्म
फरवरी 1689 में गद्दारों की मदद से संभाजी महाराज को तुलापुर में बंदी बना लिया गया। औरंगज़ेब ने उन्हें अपमानित करने की हर कोशिश की। धर्म परिवर्तन के बदले उन्हें जीवनदान का लालच दिया गया, पर संभाजी झुके नहीं।
इसके बाद उन्हें भयंकर यातनाएँ दी गईं—उनकी आंखें निकाली गईं, जीभ काट दी गई, शरीर को लोहे से चीर कर चमड़ी उधेड़ी गई—21 दिन तक अमानवीय क्रूरता सहने के बाद, उन्होंने 11 मार्च 1689 को वीरगति प्राप्त की। परंतु उनकी अंतिम चीख भी मुगल सत्ता को हिला गई।

बलिदान की विरासत: प्रेरणा से क्रांति तक
उनकी मृत्यु के बाद मराठा साम्राज्य खत्म नहीं हुआ—बल्कि राजाराम, ताराबाई, और आगे चलकर पेशवाओं ने औरंगज़ेब को पराजित कर दिया। उनके बलिदान से प्रेरणा पाकर झांसी की रानी, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस जैसे योद्धा देशभक्ति के मार्ग पर चले।
उनकी शौर्यगाथा आज भी महाराष्ट्र के कण-कण में गूंजती है।
2025 में संभाजी जयंती: नई चेतना की लहर
14 मई 2025 को पूरे भारत में, विशेषकर महाराष्ट्र में भव्य आयोजन हो रहे हैं—
कोल्हापुर, पुणे, औरंगाबाद में शोभायात्राएं
स्कूलों में संभाजी जीवन पर भाषण प्रतियोगिताएं
सोशल मीडिया पर #JaiSambhaji ट्रेंड
सरकार द्वारा ‘संभाजी स्मृति वर्ष’ की घोषणा
विक्की कौशल की ‘छावा’ फिल्म के ज़रिए युवाओं में नई जागरूकता
क्यों आज भी ज़रूरी हैं संभाजी?
जब देश में आज भी धर्म के नाम पर नफरत फैलाई जाती है, जब युवाओं को भ्रमित किया जाता है, जब सत्य बोलने वालों को दबाने की कोशिश होती है—तब संभाजी महाराज का जीवन हमें सिखाता है:
“अपना धर्म मत छोड़ो, पर किसी का अपमान भी मत करो।”
“ताकत सिर्फ तलवार से नहीं, आत्मबल से आती है।”
“अन्याय के खिलाफ खड़े हो जाओ, चाहे अकेले ही क्यों न हो।”
संभाजी महाराज की विचारधारा: धर्म, आत्मसम्मान और स्वतंत्रता का संगम
संभाजी महाराज की सोच केवल तलवार और किले तक सीमित नहीं थी, बल्कि उनकी विचारधारा में भारत की सांस्कृतिक अस्मिता, धार्मिक सहिष्णुता और आत्मसम्मान की गहराई थी।
धर्म का रक्षक, पर कट्टर नहीं: उन्होंने जबरन धर्मांतरण का विरोध किया, पर किसी अन्य धर्म के अनुयायियों के साथ अत्याचार नहीं किया।
मातृभूमि सर्वोपरि: उनके लिए राज्य नहीं, ‘स्वराज्य’ था—जहाँ हर नागरिक का सम्मान हो।
स्त्री सम्मान: उनकी नीति में महिलाओं को विशेष सम्मान दिया गया, युद्धबंदियों के साथ भी मानवीय व्यवहार किया जाता था।
आज की राजनीति और समाज को यह संदेश बहुत ज़रूरी है।
संभाजी महाराज बनाम औरंगज़ेब: एक धर्मयोद्धा और एक तानाशाह
औरंगज़ेब ने सारा जीवन साम्राज्य विस्तार में गुज़ार दिया—मंदिर तोड़े, धर्मांतरण कराए, निर्दोषों को मारा।
संभाजी ने कम उम्र में ही उसे सीधी चुनौती दी:
औरंगज़ेब की 4 लाख से अधिक सेना के सामने, केवल 30,000 मराठा सैनिक।
फिर भी संभाजी ने 1681 से 1689 तक औरंगज़ेब को दक्षिण भारत में उलझा कर रखा।
औरंगज़ेब का सपना था दक्षिण को जीतना—पर संभाजी ने उसे एक बुरे सपने में बदल दिया।
इस संघर्ष ने यह सिद्ध कर दिया कि—
> “धर्म की रक्षा तलवार की धार से नहीं, साहस और सत्य से होती है।”
संभाजी महाराज की साहित्यिक कृतियाँ: इतिहास का एक दुर्लभ पक्ष
संभाजी महाराज सिर्फ योद्धा नहीं, एक अत्यंत विद्वान कवि और लेखक भी थे। उनकी प्रमुख रचनाएं—
बुधभूषणम्: एक संस्कृत ग्रंथ जिसमें राजा के गुण, प्रजा की सेवा, और नीति पर अद्भुत विचार हैं।
नायिकाभेद: यह साहित्यिक कृति कला और संस्कृति को दर्शाती है।
उन्होंने फारसी ग्रंथों का अनुवाद किया और हिंदू संस्कृति की रक्षा के लिए साहित्यिक जागरण फैलाया।
आज के युग में जब किताबें पढ़ने की आदत कम होती जा रही है, उनकी साहित्यिक प्रतिभा युवाओं को प्रेरणा देती है।
किसने किया विश्वासघात? संभाजी को पकड़वाने वाला कौन था?
इतिहास गवाह है कि बड़े योद्धा अक्सर अपनों की गद्दारी का शिकार होते हैं। संभाजी को पकड़वाने में सबसे बड़ा हाथ था—
गनोजी शिर्के: जो संभाजी के बहनोई थे। उन्होंने मुगलों से मिलकर चाल चली।
इस गद्दारी ने केवल संभाजी की गिरफ्तारी नहीं करवाई, बल्कि मराठा साम्राज्य को भी गहरा धक्का पहुंचाया।
परंतु इससे यह भी सिद्ध हुआ कि—
>“धोखा कभी किसी महान आत्मा को मिटा नहीं सकता, वह सिर्फ खुद को कलंकित करता है।”

संभाजी महाराज की वीरगति के बाद मराठा आंदोलन और भी तेज़ हुआ
हालांकि संभाजी की मृत्यु बेहद क्रूरता से हुई, पर उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया।
राजाराम महाराज ने दक्षिण से संघर्ष शुरू किया।
रानी ताराबाई ने मुगलों से मुकाबला करते हुए एक नए युग की शुरुआत की।
मराठों ने धीरे-धीरे फिर से ताकत पाई और औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद दिल्ली तक पहुंच गए।
यह बलिदान ही था जिसने मराठों को राष्ट्रशक्ति बना दिया।
आधुनिक भारत में संभाजी की छवि
आज संभाजी महाराज के नाम पर—
संभाजीनगर (पूर्व में औरंगाबाद)
छत्रपति संभाजी महाराज टर्मिनस (CSMT)
छत्रपति संभाजी संग्रहालय, पुणे
Maharashtra Government’s ‘Swarajya Sankalp Abhiyan’
इन सभी से उनकी प्रेरणा लोगों तक पहुंच रही है।
फिल्में, नाटक, और लोककथाएं भी उनके जीवन पर बन रही हैं, जैसे—
“छावा” (2025 में आने वाली फ़िल्म)
लोककलाओं में पोवाड़े, जिसमें उनकी वीरगाथाएं गाई जाती हैं।
क्या हम संभाजी के आदर्शों पर चल पा रहे हैं?
आज जब—
सच्चाई बोलने वालों को दबाया जाता है
धर्म के नाम पर राजनीति होती है
युवाओं में दिशाहीनता है
तब संभाजी महाराज का जीवन हमें सीधा सवाल पूछता है—
>क्या हम सिर्फ जयंती मनाने तक सीमित हैं?
क्या हमने उनके त्याग और मूल्यों को अपने जीवन में अपनाया?
संभाजी का मतलब है—साहस, विद्वता, धर्म और राष्ट्र के लिए समर्पण।
2025 की विशेषता: संभाजी 368 वर्ष के, लेकिन आज भी उतने ही प्रासंगिक
इस वर्ष 2025 में:
सरकार द्वारा उनके नाम पर नई योजनाएं लाई जा रही हैं।
स्कूलों में उनकी गाथा पढ़ाई जा रही है।
युवाओं के लिए संभाजी लीडरशिप प्रोग्राम जैसी योजनाएं प्रस्तावित हैं।
मराठा साम्राज्य पर एक डिजिटल संग्रहालय की भी तैयारी चल रही है।
निष्कर्ष:
छत्रपति संभाजी महाराज का जीवन संघर्ष, बलिदान और वीरता की एक अविस्मरणीय गाथा है। उन्होंने मराठा साम्राज्य के लिए न केवल अपनी जान दी,
बल्कि अपने अद्वितीय साहस, नेतृत्व क्षमता और धर्म के प्रति उनकी प्रतिबद्धता से यह साबित किया कि सच्ची शक्ति केवल बाहरी शक्ति में नहीं, बल्कि आत्मबल, सत्य और न्याय के साथ खड़ा होने में है।
संभाजी महाराज ने अपने छोटे से जीवन में यह सिद्ध किया कि स्वराज्य के लिए केवल युद्ध और विजय ही नहीं, बल्कि धर्म, संस्कृति और सम्मान की रक्षा भी आवश्यक है। उनकी वीरगाथाएं, उनके विचार और उनके बलिदान आज भी मराठों के लिए ही नहीं, बल्कि समस्त भारतवासियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
उनकी जयंती केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि सच्चे नायक वे होते हैं जो अपने देश, समाज और धर्म की रक्षा करते हैं, और कभी भी अन्याय के सामने झुकते नहीं।
उनके जीवन के आदर्श हमें यह सिखाते हैं कि सत्य की राह पर चलना और अपने धर्म एवं कर्तव्यों से कभी भी समझौता न करना ही सबसे बड़ा पुरस्कार है।
आज भी जब हम अपनी आस्था, संस्कृति और राष्ट्र के प्रति समर्पण की बात करते हैं, तो संभाजी महाराज का नाम हमारे दिलों में एक प्रेरणास्त्रोत बनकर जीवित रहता है। उनकी जयंती पर हमें न केवल उनके बलिदान को याद करना चाहिए, बल्कि उनके विचारों को अपने जीवन में उतारकर समाज को सशक्त बनाना चाहिए।
उनकी विरासत, उनके सिद्धांत और उनका साहस सदैव हमारे मार्गदर्शन का कारण बने रहेंगे। संभाजी महाराज की जयंती केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि हमारे अंदर की राष्ट्रभक्ति, साहस और आत्मसम्मान की भावना को जागृत करने का अवसर है।
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