सागरमाला योजना: लॉजिस्टिक्स, व्यापार और आर्थिक विकास की नई दिशा
भारत, अपनी विशाल समुद्री सीमा और रणनीतिक भौगोलिक स्थिति के कारण, वैश्विक समुद्री व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की क्षमता रखता है।
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Toggleइसी दृष्टिकोण से सागरमाला परियोजना शुरू की गई, जिसका उद्देश्य देश की तटीय क्षमताओं को अधिकतम करना, बंदरगाहों को आधुनिक बनाना, लॉजिस्टिक्स लागत को कम करना और समुद्री अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना है।
सागरमाला: परिचय और उद्देश्य
सागरमाला कार्यक्रम भारत सरकार द्वारा 2015 में शुरू किया गया एक महत्वाकांक्षी ढांचा है, जो समुद्री परिवहन और लॉजिस्टिक्स में सुधार के साथ-साथ आर्थिक विकास को गति देने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
इस परियोजना के तहत भारत के बंदरगाहों को वैश्विक मानकों पर लाने के लिए बुनियादी ढांचे के विकास, संयोजकता में सुधार, औद्योगिकीकरण को प्रोत्साहन, और सतत विकास को प्राथमिकता दी गई है।
इसका मुख्य उद्देश्य है:
- बंदरगाहों का आधुनिकीकरण और विस्तार
- समुद्री और अंतर्देशीय जलमार्गों का विकास
- लॉजिस्टिक्स लागत में कमी
- कनेक्टिविटी में सुधार
- तटीय क्षेत्रों का आर्थिक विकास
सागरमाला और समुद्री अमृत काल विजन 2047 (MAKV)
भारत सरकार ने समुद्री अमृत काल विजन 2047 (MAKV) के तहत इस परियोजना को और विस्तार देने का निर्णय लिया है। MAKV का उद्देश्य भारत को वैश्विक समुद्री महाशक्ति बनाना है।
इसके तहत चार प्रमुख घटक शामिल हैं:
1. बंदरगाहों का आधुनिकीकरण – विश्वस्तरीय सुविधाएँ और स्मार्ट पोर्ट सिस्टम
2. कनेक्टिविटी में सुधार – मल्टी-मोडल ट्रांसपोर्ट और समेकित लॉजिस्टिक्स
3. उद्योगों का तटीय विकास – ब्लू इकोनॉमी को बढ़ावा
4. सतत विकास और पर्यावरण अनुकूल पहल
सागरमाला के तहत परियोजनाएँ और उनका प्रभाव
अब तक 839 परियोजनाएँ चिन्हित की गई हैं, जिनकी अनुमानित लागत ₹5.79 लाख करोड़ है। इनमें से 272 परियोजनाएँ पूरी हो चुकी हैं, जिन पर ₹1.41 लाख करोड़ का निवेश किया गया है।
मुख्य परियोजनाएँ:
महाराष्ट्र में वधावन पोर्ट का विकास
तमिलनाडु में कोलाचल इंटरनेशनल ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल
गुजरात में गुजरात समुद्री क्लस्टर
विशाखापत्तनम-चेन्नई औद्योगिक कॉरिडोर
समुद्री मार्गों का विकास: रणनीतिक और आर्थिक लाभ
1. आर्थिक समृद्धि और निवेश प्रवाह
सागरमाला के तहत बंदरगाह आधारित औद्योगीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे विदेशी निवेश में वृद्धि हो रही है। भारत में क्रूज़ टूरिज्म, जहाज निर्माण, और मत्स्य पालन जैसे क्षेत्रों में भी उन्नति हो रही है।
2. लॉजिस्टिक्स लागत में कमी
भारत में माल परिवहन की लागत GDP का लगभग 14% है, जबकि वैश्विक औसत 8-10% है। जलमार्गों के उपयोग से यह लागत घटकर 9-10% तक आ सकती है।
3. रोजगार के अवसर
सागरमाला के तहत 40 लाख से अधिक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर सृजित करने का लक्ष्य है।
4. पर्यावरणीय प्रभाव और कार्बन उत्सर्जन में कमी
समुद्री परिवहन सड़क और रेल परिवहन की तुलना में अधिक पर्यावरण अनुकूल है। इस पहल से CO₂ उत्सर्जन में 12% तक की कमी संभव है।

5. तटीय क्षेत्रों का सतत विकास
समुद्री व्यापार और उद्योगों के विकास से तटीय राज्यों – गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश को सीधा लाभ मिलेगा।
चुनौतियाँ और समाधान
1. बुनियादी ढांचा और निवेश की कमी
हल: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को बढ़ावा देना
2. प्रशासनिक बाधाएँ और धीमी परियोजना स्वीकृति
हल: एकल खिड़की स्वीकृति प्रणाली लागू करना
3. पर्यावरणीय मुद्दे और स्थानीय विरोध
हल: सतत विकास मॉडल अपनाना और स्थानीय समुदायों को शामिल करना
बंदरगाहों के आधुनिकीकरण की दिशा में कदम
भारत के समुद्री विकास में एक बड़ी बाधा पुराने और अविकसित बंदरगाह थे। सागरमाला परियोजना के तहत देश के 12 प्रमुख बंदरगाहों और 200 से अधिक छोटे बंदरगाहों को आधुनिक बनाया जा रहा है। इसका उद्देश्य है –
डिजिटलीकरण और स्वचालन – स्मार्ट पोर्ट, ड्रोन सर्वेक्षण, AI आधारित लॉजिस्टिक्स।
गहरे पानी के पोर्ट – बड़े जहाजों की आवाजाही के लिए गहराई बढ़ाना।
बंदरगाह आधारित औद्योगिकीकरण – बंदरगाहों के पास औद्योगिक क्षेत्र विकसित करना।
समुद्री परिवहन को बढ़ावा: जलमार्गों का विस्तार
भारत में 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा और 14,500 किलोमीटर की अंतर्देशीय जलमार्ग प्रणाली है, लेकिन जलमार्गों का उपयोग परिवहन के लिए बहुत कम होता था।
राष्ट्रीय जलमार्गों (NWs) की स्थापना – 111 जलमार्गों की पहचान की गई।
कोल इंडिया, NTPC जैसी कंपनियों के लिए बल्क कार्गो परिवहन को बढ़ावा।
गंगा, ब्रह्मपुत्र और गोदावरी पर Ro-Ro फेरी सेवाओं का विकास।
लॉजिस्टिक्स लागत में कमी: भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि
भारत की लॉजिस्टिक्स लागत वैश्विक औसत से अधिक है, जिससे भारतीय निर्यात को नुकसान होता है।
सागरमाला से लाभ:
मल्टी-मॉडल ट्रांसपोर्ट हब – रेल, सड़क और जलमार्गों का एकीकरण।
कंटेनर पोर्ट्स की क्षमता बढ़ाना – कंटेनर हैंडलिंग दक्षता में सुधार।
जमीन से जुड़े बंदरगाहों (Dry Ports) का विकास।
तटीय औद्योगिकीकरण: भारत की ब्लू इकोनॉमी को मजबूती
सागरमाला का एक प्रमुख पहलू तटीय क्षेत्रों में उद्योगों का विकास करना है।
शिप बिल्डिंग और शिप रिपेयर हब – कोचीन शिपयार्ड और मझगांव डॉक जैसी सुविधाओं का विस्तार।
फिशरीज क्लस्टर – समुद्री मत्स्य पालन को आधुनिक बनाना और निर्यात बढ़ाना।
क्रूज़ टूरिज्म – गोवा, मुंबई, कोच्चि, कोलकाता में क्रूज टर्मिनल विकसित करना।
पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव
समुद्री परिवहन सड़क और रेल के मुकाबले काफी कम कार्बन उत्सर्जन करता है।
ग्रीन पोर्ट नीति – नवीकरणीय ऊर्जा आधारित पोर्ट।
मरीन बायोडायवर्सिटी संरक्षण – मैंग्रोव संरक्षण, प्रदूषण नियंत्रण उपाय।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और रणनीतिक दृष्टिकोण
भारत IMO (International Maritime Organization) के साथ मिलकर हरित शिपिंग नीतियाँ लागू कर रहा है।
साझेदारी: जापान, UAE, यूरोप और दक्षिण एशिया के देशों के साथ लॉजिस्टिक्स कॉरिडोर विकसित किए जा रहे हैं।
चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को संतुलित करने के लिए भारत के बंदरगाहों की रणनीतिक स्थिति मजबूत करना।
सागरमाला के तहत प्रमुख विकास परियोजनाएँ
सागरमाला परियोजना के तहत भारत में विभिन्न बंदरगाहों, जलमार्गों और औद्योगिक क्लस्टर्स को विकसित किया जा रहा है। इससे देश के तटीय इलाकों में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा।
1. प्रमुख बंदरगाहों का आधुनिकीकरण
भारत में 12 प्रमुख और 200 से अधिक छोटे बंदरगाह हैं। इन बंदरगाहों को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने के लिए सरकार कई सुधार कर रही है।
मुंद्रा पोर्ट (गुजरात): इसे विश्व स्तरीय लॉजिस्टिक्स हब के रूप में विकसित किया जा रहा है।
वधावन पोर्ट (महाराष्ट्र): यह भारत का सबसे गहरा पोर्ट होगा, जो बड़े जहाजों को संभाल सकेगा।
कोलाचल पोर्ट (तमिलनाडु): इसे ट्रांसशिपमेंट हब के रूप में विकसित किया जा रहा है, जिससे भारत में कंटेनर ट्रांसशिपमेंट की लागत कम होगी।
2. अंतर्देशीय जलमार्गों का विकास
भारत में जलमार्गों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए कई परियोजनाएँ चलाई जा रही हैं।
राष्ट्रीय जलमार्ग-1 (गंगा नदी): वाराणसी से हल्दिया तक माल परिवहन के लिए विकसित किया जा रहा है।
राष्ट्रीय जलमार्ग-2 (ब्रह्मपुत्र नदी): उत्तर-पूर्वी भारत में कनेक्टिविटी को बेहतर बनाने के लिए इसे विकसित किया जा रहा है।
कोच्चि-विजिनजम जलमार्ग: यह दक्षिण भारत में जलमार्ग आधारित परिवहन को बढ़ावा देगा।
3. मल्टी-मोडल लॉजिस्टिक्स हब
बंदरगाहों को रेल और सड़क मार्गों से जोड़ने के लिए सरकार कई मल्टी-मोडल लॉजिस्टिक्स पार्क विकसित कर रही है।
जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (JNPT) मल्टी-मोडल लॉजिस्टिक्स पार्क (महाराष्ट्र)
कांडला पोर्ट (गुजरात) में लॉजिस्टिक्स और वेयरहाउसिंग सुविधाएँ
विशाखापत्तनम पोर्ट (आंध्र प्रदेश) को रेल नेटवर्क से जोड़ना
4. तटीय औद्योगिक क्लस्टर
बंदरगाहों के पास औद्योगिक क्षेत्र विकसित करने से निवेश आकर्षित होगा और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।
गुजरात समुद्री क्लस्टर: जहाज निर्माण और मरम्मत के लिए।
तमिलनाडु कोस्टल इकोनॉमिक ज़ोन: ऑटोमोबाइल और मैन्युफैक्चरिंग उद्योगों के लिए।
ओडिशा में पेट्रोकेमिकल और स्टील उद्योग का विकास।
सागरमाला के तहत रोजगार सृजन और निवेश
सागरमाला परियोजना से भारत में 40 लाख से अधिक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा होने की संभावना है।
बंदरगाह निर्माण और विस्तार से 10 लाख नौकरियाँ।
लॉजिस्टिक्स और वेयरहाउसिंग में 15 लाख से अधिक नौकरियाँ।
तटीय औद्योगिकीकरण और फिशरीज सेक्टर में 5-7 लाख रोजगार।
सागरमाला और भारत का वैश्विक व्यापार
भारत के समुद्री व्यापार को सशक्त करने के लिए सागरमाला कई अंतरराष्ट्रीय पहलुओं पर ध्यान दे रहा है।
इंडो-पैसिफिक रणनीति: भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया मिलकर हिंद महासागर में मजबूत समुद्री कनेक्टिविटी बना रहे हैं।
चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के मुकाबले भारत के बंदरगाहों को मजबूत बनाना।
अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में नए समुद्री गलियारे विकसित करना।
सागरमाला परियोजना का रणनीतिक महत्व
1. भारत की वैश्विक समुद्री स्थिति को मजबूत करना
भारत हिंद महासागर में एक महत्वपूर्ण भौगोलिक स्थिति रखता है। इसके बावजूद, चीन, सिंगापुर, और दुबई जैसे देश समुद्री व्यापार और ट्रांसशिपमेंट में भारत से आगे हैं। सागरमाला परियोजना के तहत:
भारत के बंदरगाहों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप विकसित किया जा रहा है।
भारत को ट्रांसशिपमेंट हब बनाने के लिए कोलाचल, मुंद्रा, और वधावन पोर्ट को प्राथमिकता दी जा रही है।
ईरान के चाबहार पोर्ट और श्रीलंका के कोलंबो पोर्ट के साथ भारत के व्यापारिक संपर्कों को मजबूत किया जा रहा है।
2. समुद्री सुरक्षा और रणनीतिक बढ़त
भारत के बंदरगाहों की सुरक्षा को लेकर भी महत्वपूर्ण प्रयास किए जा रहे हैं:
स्मार्ट सुरक्षा निगरानी प्रणाली और समुद्री ड्रोन तैनात किए जा रहे हैं।
कोस्ट गार्ड और नौसेना के साथ बंदरगाहों की निगरानी को मजबूत किया जा रहा है।
मालदीव, मॉरीशस और सेशेल्स के साथ समुद्री सुरक्षा साझेदारी को मजबूत किया जा रहा है।
सागरमाला परियोजना से जुड़े आर्थिक लाभ

1. लॉजिस्टिक्स लागत में कटौती
भारत में लॉजिस्टिक्स लागत GDP का लगभग 14% है, जबकि चीन और यूरोप में यह 8-10% है। सागरमाला के माध्यम से:
समुद्री परिवहन को बढ़ावा देकर लॉजिस्टिक्स लागत को घटाकर 9-10% तक लाने का लक्ष्य रखा गया है।
रेल, सड़क और जलमार्गों को जोड़कर माल परिवहन को तेज और कुशल बनाया जा रहा है।
इंडस्ट्रियल कॉरिडोर और मल्टी-मोडल ट्रांसपोर्ट सिस्टम से माल ढुलाई में तेजी लाई जा रही है।
2. ब्लू इकोनॉमी को बढ़ावा
ब्लू इकोनॉमी, यानी समुद्र से जुड़ी आर्थिक गतिविधियाँ, भारत के लिए महत्वपूर्ण हैं।
मत्स्य पालन और समुद्री कृषि को बढ़ावा देकर छोटे व्यापारियों और किसानों को आर्थिक लाभ पहुंचाया जा रहा है।
ऑफशोर विंड एनर्जी और डीप-सी माइनिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है।
भारत में क्रूज टूरिज्म को विकसित कर गोवा, मुंबई, कोच्चि, और अंडमान को पर्यटन केंद्रों में बदला जा रहा है।
3. औद्योगिक हब और रोजगार के अवसर
बंदरगाह आधारित औद्योगिक क्लस्टर से स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा मिल रहा है।
40 लाख से अधिक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नौकरियों का सृजन किया जा रहा है।
MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों) को बंदरगाहों के पास विशेष सुविधाएँ दी जा रही हैं।
पर्यावरणीय और तकनीकी पहलू
1. हरित बंदरगाह (Green Ports) का विकास
सौर और पवन ऊर्जा आधारित पोर्ट विकसित किए जा रहे हैं।
बंदरगाहों में LNG और हाइड्रोजन ईंधन को बढ़ावा दिया जा रहा है।
समुद्री प्रदूषण को कम करने के लिए पर्यावरण-अनुकूल नीतियाँ लागू की जा रही हैं।
2. डिजिटल बंदरगाह और स्मार्ट लॉजिस्टिक्स
AI, IoT और ब्लॉकचेन जैसी तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है।
बंदरगाहों पर स्मार्ट कंटेनर ट्रैकिंग सिस्टम लागू किया गया है।
ई-लॉजिस्टिक्स और पेपरलेस व्यापार प्रक्रियाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है।
भविष्य की योजनाएँ और नीतिगत सुधार
सागरमाला 2.0: इसमें नए जलमार्गों और गहरे समुद्री पोर्ट्स का निर्माण किया जाएगा।
हाइब्रिड पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल को और अधिक आकर्षक बनाया जाएगा।
हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की समुद्री रणनीति को और मजबूत किया जाएगा।
अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाहों में निवेश बढ़ाया जाएगा, जिससे भारत की समुद्री उपस्थिति को बढ़ावा मिलेगा।
निष्कर्ष: भारत की समुद्री क्रांति की दिशा में ऐतिहासिक कदम
सागरमाला परियोजना सिर्फ एक इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट प्लान नहीं है, बल्कि यह भारत को 21वीं सदी की समुद्री महाशक्ति बनाने की रणनीति है।
यह भारत को वैश्विक व्यापार और लॉजिस्टिक्स का केंद्र बना सकता है।
पर्यावरण अनुकूल और डिजिटल आधारित पोर्ट्स से भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी।
2047 तक भारत, दुनिया के सबसे बड़े समुद्री व्यापारिक केंद्रों में शामिल हो सकता है।
इस परियोजना की सफलता, भारत के आर्थिक और रणनीतिक भविष्य को नया स्वरूप देगी और देश को एक वैश्विक समुद्री शक्ति बनने की ओर अग्रसर करेगी।
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