सुप्रीम कोर्ट को मिले तीन नए जज: जानिए जस्टिस अंजारिया, बिश्नोई और चंदुरकर के बारे में सब कुछ
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Toggleभारत की न्यायपालिका देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था का मूल स्तंभ है, और सर्वोच्च न्यायालय इसका सबसे महत्वपूर्ण अंग।
जब इस न्यायालय में नए न्यायमूर्ति नियुक्त किए जाते हैं, तो यह सिर्फ औपचारिकता नहीं होती, बल्कि एक नई ऊर्जा, नया दृष्टिकोण और न्यायिक अनुभव के साथ राष्ट्र को एक नई दिशा देने की शुरुआत होती है।
30 मई 2025 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय में तीन नए न्यायमूर्ति — न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया, न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई और न्यायमूर्ति ए.एस. चंदुरकर — ने शपथ ली। यह अवसर न केवल ऐतिहासिक था, बल्कि न्यायिक प्रणाली की निरंतरता और मजबूती का प्रतीक भी।
सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति की प्रक्रिया: पारदर्शिता और योग्यता का संतुलन
सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत होती है। इसमें राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति की जाती है, लेकिन यह नियुक्ति कोलेजियम प्रणाली के तहत होती है,
जिसमें वर्तमान मुख्य न्यायाधीश और वरिष्ठतम चार न्यायमूर्ति शामिल होते हैं। यह प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि नियुक्ति में निष्पक्षता, योग्यता, और अनुभव का समावेश हो।
हालिया प्रक्रिया
26 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट की कोलेजियम बैठक में इन तीनों नामों पर मुहर लगी। अगले ही दिन यह सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी गई, और 29 मई को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इन नियुक्तियों को औपचारिक स्वीकृति दी।
इसके बाद 30 मई को मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के स्थान पर (या उनके उत्तराधिकारी) नए मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई द्वारा तीनों न्यायमूर्ति को शपथ दिलाई गई।
न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया — एक निडर और निष्पक्ष न्यायाधीश
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
न्यायमूर्ति निलय विपिनचंद्र अंजारिया का जन्म 23 मार्च 1965 को अहमदाबाद, गुजरात में हुआ। उन्होंने H.L. College of Commerce से स्नातक और L.A. Shah Law College से कानून की पढ़ाई की।
उसके बाद उन्होंने एलएल.एम. भी किया, जिससे उनकी विधिक समझ और गहराई से परिपक्व हुई।
न्यायिक यात्रा
1988 में उन्होंने वकालत की शुरुआत की और 2011 में गुजरात हाईकोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश बने। उन्होंने शिक्षा, प्रशासनिक कानून, संवैधानिक और सेवा संबंधी मामलों में गहरी पकड़ बनाई।
उनकी निष्पक्षता और सटीक न्यायिक सोच ने उन्हें फरवरी 2024 में कर्नाटक हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया और अब वे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति बन चुके हैं।
न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई — कानून के संरक्षक
प्रारंभिक जीवन
26 मार्च 1964 को जोधपुर में जन्मे न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई ने अपनी शिक्षा यहीं से प्राप्त की। उन्होंने लंबे समय तक राजस्थान हाईकोर्ट में वकालत की। वे केंद्र सरकार के लिए भी स्थायी अधिवक्ता रह चुके हैं और कई संवैधानिक एवं आपराधिक मामलों में विशेषज्ञता हासिल की।
न्यायिक उपलब्धियाँ
वह 2013 में राजस्थान हाईकोर्ट के न्यायाधीश बने। न्यायिक प्रक्रिया में उनकी पारदर्शिता और फैसलों में मानवीय दृष्टिकोण ने उन्हें फरवरी 2024 में गुवाहाटी हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया। अब वे भारत के सर्वोच्च न्यायालय में न्याय देने के लिए तैयार हैं।
न्यायमूर्ति ए.एस. चंदुरकर — विद्वत्ता और सरलता का संगम
शिक्षा और आरंभ
न्यायमूर्ति अतुल शरच्चंद्र चंदुरकर का जन्म 7 अप्रैल 1965 को हुआ। उन्होंने पुणे के प्रतिष्ठित संस्थानों से शिक्षा प्राप्त की — St. Vincent’s School, Ness Wadia College और ILS Law College से कानून की डिग्री ली।
वकालत की शुरुआत उन्होंने मुंबई से की लेकिन जल्द ही नागपुर चले आए, जहां उन्होंने जमीनी मामलों से लेकर संवैधानिक विषयों तक में गहरा अनुभव प्राप्त किया।
लेखनी में रुचि
वह सिर्फ न्यायाधीश नहीं, बल्कि लेखक भी हैं। उन्होंने नगरपालिका कानून और किराया नियंत्रण कानून पर पुस्तकें लिखी हैं, जिससे उनकी गहराई और संवैधानिक समझ का प्रमाण मिलता है।
क्यों यह नियुक्तियाँ महत्वपूर्ण हैं?
1. क्षेत्रीय संतुलन: ये तीनों नियुक्तियाँ अलग-अलग क्षेत्रों से हैं — पश्चिम (गुजरात), उत्तर (राजस्थान), और मध्य (महाराष्ट्र)। इससे सुप्रीम कोर्ट में क्षेत्रीय विविधता बनी रहती है।
2. प्रशासनिक अनुभव: तीनों न्यायाधीश अपने-अपने हाईकोर्ट में प्रशासनिक और न्यायिक निर्णयों में अग्रणी रहे हैं।
3. पूर्ण शक्ति: इन नियुक्तियों के बाद सुप्रीम कोर्ट की अधिकतम स्वीकृत संख्या 34 न्यायाधीशों की हो गई है।
आने वाले समय की न्यायिक दिशा
इन तीनों न्यायमूर्ति की नियुक्तियाँ यह दर्शाती हैं कि भारतीय न्यायपालिका न केवल योग्यता पर जोर देती है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करती है कि अलग-अलग सामाजिक, भाषाई और क्षेत्रीय समूहों का प्रतिनिधित्व हो। इससे फैसलों में विविधता और संतुलन आता है।
सुप्रीम कोर्ट की संरचना और कार्यप्रणाली
भारत का सुप्रीम कोर्ट न केवल संवैधानिक मामलों पर अंतिम निर्णय देने वाला निकाय है, बल्कि यह जनता के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने वाला प्रहरी भी है। इसकी स्थापना 26 जनवरी 1950 को भारत के गणराज्य बनने के साथ हुई थी।

न्यायमूर्तियों की अधिकतम संख्या
सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की अधिकतम संख्या समय-समय पर बदली गई है। पहले यह संख्या केवल 8 थी, जो अब बढ़कर 34 (33 + CJI) हो गई है। ये नियुक्तियाँ आवश्यक हैं क्योंकि बढ़ते केसों के बोझ को संभालने के लिए पर्याप्त न्यायाधीश होना अनिवार्य है।
कोलेजियम प्रणाली: निष्पक्ष चयन का आधार
कोलेजियम प्रणाली को सुप्रीम कोर्ट के “तीन जज मामलों” (Three Judges Cases) के निर्णयों से मान्यता मिली। वर्तमान प्रणाली के अनुसार:
CJI + चार वरिष्ठतम न्यायमूर्ति मिलकर सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्तियों की नियुक्ति की सिफारिश करते हैं।
सरकार इन सिफारिशों को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं है, लेकिन वह केवल एक बार ही आपत्ति उठा सकती है।
दोबारा वही नाम भेजने पर राष्ट्रपति को मंजूरी देनी होती है।
पारदर्शिता की दिशा में कदम
हाल के वर्षों में कोलेजियम ने अपनी सिफारिशें सार्वजनिक करना शुरू किया है, जिससे प्रक्रिया में पारदर्शिता और लोगों का विश्वास बढ़ा है।
न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की प्रमुख विशेषताएँ
1. व्यवहारिक निर्णयशक्ति: उन्होंने कई बार सरकार के फैसलों पर कड़ी टिप्पणी की है, विशेषकर शिक्षा और सार्वजनिक सेवा मामलों में।
2. आधुनिक सोच: उन्होंने डिजिटल कोर्ट्स और केस ट्रैकिंग सिस्टम को बढ़ावा दिया।
3. मानवाधिकारों की रक्षा: उन्होंने गरीब और वंचित वर्ग के लिए कई अहम फैसले दिए हैं।
न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई का दृष्टिकोण
1. आपराधिक कानून में विशेषज्ञता: उन्होंने विशेष रूप से संगठित अपराध, दुष्कर्म, और महिला अपराधों पर महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं।
2. प्रशासनिक सुधार समर्थक: उन्होंने न्यायिक समयबद्धता पर लगातार जोर दिया और लंबित मामलों की सुनवाई में तेजी लाई।
3. न्याय में समानता: जातीय और वर्गीय भेदभाव को लेकर कई साहसी टिप्पणियाँ दी हैं।
न्यायमूर्ति ए.एस. चंदुरकर के प्रमुख निर्णय
1. भूमि कानून में सुधार: उन्होंने किसानों से जुड़े भूमि विवादों को न्यायपूर्ण समाधान दिया।
2. शैक्षणिक संस्थाओं में पारदर्शिता: निजी संस्थानों की मनमानी फीस वसूली के खिलाफ आदेश दिए।
3. लिखित लेखों और विधिक पुस्तकों के लेखक: यह उन्हें अन्य न्यायमूर्तियों से अलग बनाता है — उनका कानूनी दर्शन व्यापक है।
न्यायपालिका में क्षेत्रीय विविधता का महत्व
भारत एक विविधता से भरा हुआ देश है — भाषा, संस्कृति, और सामाजिक पृष्ठभूमि के हिसाब से। सुप्रीम कोर्ट की संरचना में यह विविधता सुनिश्चित करना आवश्यक है ताकि हर क्षेत्र और वर्ग की भावनाओं को न्याय में उचित प्रतिनिधित्व मिल सके।
उदाहरण:
गुजरात से अंजारिया: व्यापारी और शैक्षणिक क्षेत्र की समस्याओं को बेहतर समझते हैं।
राजस्थान से बिश्नोई: ग्रामीण और सीमावर्ती क्षेत्रों की कानूनी समस्याओं से परिचित हैं।
महाराष्ट्र से चंदुरकर: नागपुर जैसी मेट्रो और कस्बों की न्यायिक जटिलताओं को नजदीक से समझते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की न्यायिक प्राथमिकताएँ 2025 के बाद
इन तीनों न्यायमूर्तियों के आने के बाद सुप्रीम कोर्ट में निम्नलिखित क्षेत्रों में मजबूती आने की उम्मीद है:
1. डिजिटल भारत में न्याय: तकनीक का उपयोग कर न्याय प्रक्रिया को अधिक सरल और पारदर्शी बनाना।
2. लंबित मामलों का शीघ्र निस्तारण: न्याय में देरी, न्याय से वंचना के बराबर होती है।
3. जनहित याचिकाओं पर प्राथमिकता: पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को गंभीरता से लिया जाएगा।
4. संवैधानिक विवेचना में नई ऊर्जा: नए न्यायमूर्तियों का दृष्टिकोण नई संविधान व्याख्याओं को जन्म देगा।
जनमानस की उम्मीदें
भारतीय नागरिक आज पहले से ज्यादा जागरूक हैं। न्यायपालिका से उनकी अपेक्षाएँ स्पष्ट हैं:
भ्रष्टाचार मुक्त न्याय व्यवस्था
महिला सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा
मूलभूत अधिकारों की पूर्ण रक्षा
राजनीतिक हस्तक्षेप से स्वतंत्र न्यायपालिका
इन अपेक्षाओं को पूरा करने में नए न्यायाधीशों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होगी।
भविष्य की भूमिका और अपेक्षित बदलाव
तीनों नव नियुक्त न्यायमूर्तियों के आने के साथ सुप्रीम कोर्ट में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है। उनके निर्णय न केवल भविष्य की न्यायिक दिशा तय करेंगे, बल्कि देश की कानूनी संस्कृति पर भी गहरा असर डालेंगे।
संभावित प्रभावी क्षेत्रों में उनकी भूमिका:
1. सामाजिक न्याय के क्षेत्र में मजबूती
इन जजों के पूर्व के निर्णय यह दिखाते हैं कि ये समाज के वंचित वर्गों के अधिकारों को प्राथमिकता देते हैं।
अनुसूचित जाति/जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए न्याय की पहुंच को सरल बनाना।
महिला और बच्चों से जुड़े मामलों में तेज़ निर्णय।
2. लोकतांत्रिक संस्थाओं की रक्षा
इन जजों का चयन ऐसे समय में हुआ है जब लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वतंत्रता पर प्रश्न उठ रहे हैं।
संविधान की मूल भावना की रक्षा करना।
संस्थागत संतुलन बनाए रखना, खासकर कार्यपालिका और विधायिका के साथ न्यायपालिका के संबंधों में।
3. संविधान की व्याख्या में नवीन दृष्टिकोण
संवैधानिक बेंच में जब इन्हें शामिल किया जाएगा, तो ये जज:
अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) जैसे मौलिक अधिकारों की नए संदर्भों में व्याख्या करेंगे।
डिजिटल युग में निजता, डेटा सुरक्षा, और फ्री स्पीच जैसे मुद्दों पर निर्णायक भूमिका निभाएंगे।
न्याय प्रणाली को और प्रभावशाली बनाने के लिए कदम
न्यायपालिका में केवल नियुक्तियाँ ही नहीं, सुधार भी आवश्यक हैं। सुप्रीम कोर्ट के ये नए जज निम्नलिखित सुधारों में अहम भूमिका निभा सकते हैं:
1. ई-कोर्ट्स और तकनीकी सुधार
ई-फाइलिंग, वर्चुअल सुनवाई, और केस ट्रैकिंग जैसे कदमों को सशक्त बनाना।
गांवों और छोटे कस्बों तक न्याय की डिजिटल पहुंच।
2. भाषाई समावेशन
क्षेत्रीय भाषाओं में फैसलों की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
हिंदी और अन्य भाषाओं में न्यायिक जानकारी को सहज बनाना।

3. Alternative Dispute Resolution (ADR) को बढ़ावा
लंबित मामलों का बोझ कम करने के लिए मध्यस्थता और पंचायती समाधान व्यवस्था को संस्थागत रूप देना।
जनता की नजरों से न्यायपालिका
जनता का भरोसा ही लोकतंत्र की आत्मा है। सुप्रीम कोर्ट को अब न केवल न्याय करना है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि न्याय होते हुए दिखे।
जनता की सबसे बड़ी अपेक्षाएं:
तेज़ और सस्ती न्याय प्रक्रिया
पारदर्शिता और जवाबदेही
राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त निर्णय
जनहित याचिकाओं पर संवेदनशीलता
नए न्यायाधीशों से लोगों की ये उम्मीदें हैं कि वे अपने निर्णयों और व्यवहार से सुप्रीम कोर्ट को “जनता की अदालत” के रूप में और सशक्त बनाएंगे।
भारत के न्यायिक इतिहास में इन नियुक्तियों का महत्व
यह नियुक्तियाँ न केवल वर्तमान की जरूरत हैं, बल्कि न्यायपालिका की दिशा तय करने वाले ऐतिहासिक मोड़ भी हैं।
कुछ ऐसे निर्णयों की उम्मीद की जा रही है जो:
देश की केंद्रीय एजेंसियों की स्वायत्तता सुनिश्चित करें।
चुनाव सुधारों में न्यायिक निर्देश दें।
पर्यावरण संरक्षण को संवैधानिक अधिकार का दर्जा दें।
इन क्षेत्रों में भविष्य में आने वाले फैसले देश की राजनीतिक और सामाजिक दशा को गहराई से प्रभावित करेंगे।
निष्कर्ष: न्यायपालिका की नई सुबह
जस्टिस एन.वी. अंजारिया, जस्टिस विजय बिश्नोई और जस्टिस ए.एस. चंदुरकर का सुप्रीम कोर्ट में आगमन न केवल एक औपचारिक नियुक्ति है, बल्कि यह भारत की न्याय प्रणाली के लिए एक नया युग शुरू होने का संकेत है।
ये तीनों न्यायाधीश अपने-अपने क्षेत्रों में सिद्ध और निपुण रहे हैं, जिनका अनुभव, दृष्टिकोण और न्याय के प्रति समर्पण सर्वोच्च न्यायालय की संवेदनशीलता, निष्पक्षता और प्रभावशीलता को और अधिक मजबूती देगा।
इस समय जब न्यायपालिका को कई सामाजिक, राजनीतिक और तकनीकी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है — जैसे न्याय में देरी, संस्थाओं पर दबाव,
आम जनता का विश्वास — तब इन नए न्यायाधीशों से अपेक्षा है कि वे न केवल सटीक निर्णय देंगे, बल्कि न्याय के प्रति लोगों के विश्वास को भी नई ऊँचाइयों तक पहुँचाएँगे।
इनकी नियुक्तियाँ यह भी दर्शाती हैं कि भारत की न्यायिक व्यवस्था अपने अनुभव और विविधता का समावेश कर रही है।
यह एक ऐसा कदम है जो देश के हर नागरिक को यह भरोसा दिलाता है कि न्याय अभी भी जिंदा है, और संविधान की आत्मा की रक्षा करने वाले हाथ मजबूत हैं।
अंततः, ये नियुक्तियाँ एक स्पष्ट संकेत हैं — कि भारत की सर्वोच्च अदालत केवल कानून का पालन करने वाली संस्था नहीं, बल्कि संविधान की आत्मा और लोकतंत्र की रीढ़ है। और इस रीढ़ को अब तीन और सशक्त स्तंभों का सहारा मिल गया है।
“न्याय न केवल होना चाहिए, बल्कि होता हुआ दिखना भी चाहिए — यही उम्मीद है इन तीन नए न्यायमूर्तियों से।”
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