हंसेश्वरी मंदिर की रहस्यमयी दुनिया: तंत्र, योग और वास्तु का संगम!
प्रस्तावना: बांसबेरिया में स्थित एक अलौकिक धरोहर
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Toggleभारत के पूर्वी राज्य पश्चिम बंगाल में, हुगली ज़िले के एक शांत कस्बे बांसबेरिया में स्थित है एक रहस्यमयी और अलौकिक मंदिर — हंसेश्वरी मंदिर।
यह मंदिर केवल एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि एक तांत्रिक दर्शन, योगिक संरचना और स्थापत्य कौशल का अद्भुत संगम है।
बांदेल से मात्र 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर दूर से देखने पर किसी परी-कथा के महल जैसा प्रतीत होता है।
इसके 13 कमल कलिका के आकार वाले शिखर, पाँच तल की ऊँचाई और भीतर की सुरंग जैसी संरचना इसे भारत के अन्य किसी भी मंदिर से पूरी तरह अलग बनाती है।
यह मंदिर माँ काली के एक रूप ‘हंसेश्वरी’ को समर्पित है, जो शिव और शक्ति के अद्वैत सिद्धांत की प्रतीक हैं। इस मंदिर की संरचना, दर्शन और कला एक साथ मिलकर इसे न केवल एक धार्मिक केंद्र, बल्कि एक अध्ययन और आत्मबोध की भूमि बना देते हैं।
हंसेश्वरी मंदिर का ऐतिहासिक महत्व
पृष्ठभूमि और स्थापना
इस मंदिर की नींव 18वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में राजा नृसिंह देव रॉय ने रखी थी। वे बांसबेरिया के ज़मींदार और एक गहरे आध्यात्मिक रुचि रखने वाले राजा थे।
कहा जाता है कि उन्होंने वाराणसी में वर्षों तक तंत्र साधना और योगिक दर्शन का गहन अध्ययन किया।
उन्होंने मंदिर की संरचना मानव शरीर की ऊर्जा प्रणाली (चक्र और नाड़ी तंत्र) के आधार पर डिज़ाइन की — जो अपने आप में एक क्रांतिकारी सोच थी।
रानी शंकरि देवी का योगदान
मंदिर का निर्माण राजा नृसिंह देव रॉय के जीवनकाल में पूर्ण नहीं हो सका। उनके निधन के पश्चात, उनकी पत्नी रानी शंकरि देवी ने अपने दृढ़ संकल्प और भक्ति से इस भव्य मंदिर को वर्ष 1814 में पूर्ण कराया।
उनकी दूरदृष्टि और समर्पण ने इस मंदिर को एक स्थायी सांस्कृतिक विरासत में बदल दिया।
मंदिर की स्थापत्य कला: 13 शिखरों वाली एक योगिक संरचना
13 शिखरों का रहस्य
हंसेश्वरी मंदिर की सबसे विशेष बात इसके 13 शिखर (pinnacles) हैं। ये शिखर आम मंदिरों की तरह नहीं हैं — बल्कि कमल की कलिका (lotus bud) के आकार में बने हैं।
इनमें से 8 शिखर किनारों पर, 4 मध्यवर्ती स्तंभों पर और 1 सबसे ऊँचाई पर स्थित है।
ये शिखर मानव शरीर के 13 प्रमुख बिंदुओं (पांच इंद्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ, मन, बुद्धि और आत्मा) के प्रतीक माने जाते हैं।
पाँच मंज़िलें, पाँच नाड़ियाँ
मंदिर की पाँच मंज़िलें मानव शरीर की पाँच प्रमुख नाड़ियों (इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना, चित्रीणी और वज्राक्षा) को दर्शाती हैं।
भीतर के संकरे गलियारे और सुरंगनुमा मार्ग उस ऊर्जा प्रवाह (pranic system) की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति हैं, जो योगिक साधना में महत्त्व रखते हैं।
निर्माण सामग्री और शैली
मुख्य सामग्री: ईंट और चूनार का सफेद संगमरमर (उत्तर प्रदेश से मंगवाया गया)
कारीगर: वाराणसी, जयपुर और स्थानीय बंगाल के कलाकारों द्वारा
शैली: बंगाल की रत्न शैली और तांत्रिक वैदिक प्रतीकवाद का मिश्रण

तांत्रिक दर्शन और योगिक प्रतीकवाद
तंत्र और हंसेश्वरी
‘हंसेश्वरी’ नाम दो शब्दों से बना है — “हंस” (शिव) और “ईश्वरी” (शक्ति)। यह नाम स्वयं में ही अद्वैत दर्शन का प्रतीक है।
हंसेश्वरी मंदिर का संपूर्ण स्वरूप तंत्र के अनुसार मनुष्य शरीर में स्थित चक्रों और नाड़ियों का मूर्त रूप है।
कुंडलिनी और मंदिर की संरचना
इस मंदिर को देखने के लिए यदि आप कुंडलिनी योग के दृष्टिकोण से देखें तो पाएँगे कि इसके पाँच तल शरीर के पाँच चक्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं —
1. मूलाधार
2. स्वाधिष्ठान
3. मणिपुर
4. अनाहत
5. विशुद्ध
हर मंज़िल पर जाने के लिए संकरे मार्ग हैं, जो चेतना के भीतर की यात्रा को दर्शाते हैं।
देवी हंसेश्वरी: शिव और शक्ति का दिव्य संगम
हंसेश्वरी का स्वरूप
हंसेश्वरी देवी की मूर्ति विशेष प्रकार की नीम की लकड़ी से बनी है और इसे नीला रंग देकर सजाया गया है। यह रंग उन्हें माँ काली के रूप में एक अद्वितीय पहचान देता है।
मूर्ति में देवी को चार भुजाओं में दिखाया गया है:
एक हाथ में तलवार,
दूसरे में कटा हुआ मस्तक,
तीसरे में अभय मुद्रा (भय निवारण)
और चौथे में वरद मुद्रा (वरदान देने वाली मुद्रा)।
यह रूप तांत्रिक पूजा की गहराई और रहस्यवाद को प्रकट करता है, जहाँ देवी न केवल संहारक हैं, बल्कि कृपालु और कल्याणकारी भी।
शिव के साथ दिव्यता का सामंजस्य
मंदिर की सबसे ऊपरी मंज़िल में एक श्वेत संगमरमर का शिवलिंग स्थित है, जो शिव तत्व का प्रतिनिधित्व करता है।
माना जाता है कि यह देवी के ठीक नीचे स्थित है, जिससे यह आभास होता है कि शक्ति शिव से ही उत्पन्न हुई है, जैसे कमल की डंडी नाभि से उत्पन्न होती है।
यह सम्पूर्ण स्थापत्य दर्शाता है कि जब शक्ति और शिव एक साथ होते हैं, तभी सृष्टि का संचालन संभव होता है।
मूर्तिकला, शिल्प और वास्तु सौंदर्य
कमल की प्रेरणा
मंदिर की पूरी ऊँचाई को एक कमल पुष्प के रूप में कल्पना की गई है — जिसकी पंखुड़ियाँ ऊपर की ओर फैली हुई प्रतीत होती हैं।
यह सहस्रार चक्र (crown chakra) का प्रतीक है, जो योग में सर्वोच्च चेतना का द्वार माना जाता है।
विदेशी स्थापत्य का प्रभाव
अनेक विद्वानों और पर्यटकों ने इस मंदिर की तुलना रूस के मॉस्को स्थित चर्च St. Basil’s Cathedral से की है, विशेषकर इसके शिखरों के डिज़ाइन के कारण।
इसके अलावा मंदिर के कुछ भाग गोथिक और मुग़ल वास्तुकला से भी प्रेरित दिखते हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उस समय के बंगाल की कला कितनी लिबरल और समावेशी थी।
मंदिर की दैनिक पूजा और प्रमुख पर्व
दैनिक पूजा विधि
सुबह और शाम आरती,
भोग अर्पण — जिसमें चावल, दाल, सब्ज़ी और विशेष अवसरों पर मछली भोग भी दिया जाता है।
बलि प्रथा — विशेष तांत्रिक अनुष्ठानों में आज भी बकरा बलि दी जाती है, खासकर काली पूजा और अमावस्या के अवसर पर।
वार्षिक महोत्सव
काली पूजा के समय इस मंदिर में विशेष भीड़ उमड़ती है।
दीपों की कतार, मंत्रोच्चार और ढाक की ध्वनि मंदिर को एक अलग ही दिव्यता प्रदान करते हैं।
देवी को उस दिन कस्तूरी, लाल वस्त्र और स्वर्णाभूषणों से सजाया जाता है।
समीपस्थ दर्शनीय स्थल: अनंत बसुदेव मंदिर और राजबाड़ी
अनंत बसुदेव मंदिर
हंसेश्वरी मंदिर के ठीक पास ही स्थित है यह 17वीं सदी का कृष्ण मंदिर, जो बंगाल की प्रसिद्ध एक-रत्न शैली में बना है।
इसकी दीवारों पर बनी टेराकोटा चित्रकारी रामायण, महाभारत, और कृष्ण लीला के दृश्यों को दर्शाती है।
बांसबेरिया राजबाड़ी
मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित है राजा नृसिंह देव रॉय की राजबाड़ी, जो एक खाई (moat) से घिरी हुई है।
आज भी वहाँ राजा के वंशज निवास करते हैं और स्थानीय लोग इसे ‘गढ़बाड़ी’ कहते हैं।
इसके ऊँचे मचान और बुर्ज आज भी अतीत की राजसी भव्यता का अहसास कराते हैं।
कैसे पहुंचे हंसेश्वरी मंदिर? यात्रा मार्गदर्शिका
रेल मार्ग से:
निकटतम स्टेशन: बांसबेरिया रेलवे स्टेशन (Howrah-Katwa लाइन)
बांदेल जंक्शन से मात्र 10-15 मिनट की दूरी पर है यह स्टेशन।
सड़क मार्ग से:
कोलकाता से दूरी: लगभग 65-70 किलोमीटर
GT रोड या NH-2 होते हुए आराम से टैक्सी, बस या निजी वाहन द्वारा पहुँचा जा सकता है।
समय:
सुबह: 5:00 AM से दोपहर 12:00 PM
शाम: 4:00 PM से रात 9:00 PM तक
(कुछ मंज़िलें दर्शन के लिए बंद रहती हैं।)
हंसेश्वरी मंदिर क्यों है खास? एक आध्यात्मिक अनुभव
भारत के अद्वितीय तांत्रिक मंदिरों में से एक
हंसेश्वरी मंदिर कोई साधारण मंदिर नहीं है — यह भारत के गिने-चुने मंदिरों में से है जो पूरी तरह तांत्रिक योगिक दर्शन पर आधारित है।
हर मंज़िल, हर गलियारा और हर शिखर एक आध्यात्मिक ऊर्जा को प्रकट करता है।
यहाँ दर्शन मात्र दर्शन नहीं, बल्कि आत्मा की भीतर यात्रा होती है।
स्थापत्य का जादू
13 शिखरों की कमल कलिकाएं किसी चित्रकार की कल्पना से कम नहीं लगतीं।
पाँच मंज़िलों वाली संरचना अंदर से किसी मानव शरीर की ऊर्जा प्रणाली का भौतिक रूप लगती है।
अंदरूनी सुरंगें, शिल्प और सीढ़ियाँ आपको एक अलग ही संसार में ले जाती हैं।
शिव-शक्ति का समन्वय
इस मंदिर में शक्ति और शिव का समरस रूप दर्शाया गया है, जो भारतीय दर्शन में सबसे उच्चतम चेतना का प्रतीक है।
यह मंदिर उन सभी के लिए एक आध्यात्मिक प्रयोगशाला है जो योग, तंत्र, और ध्यान की सच्ची अनुभूति चाहते हैं।

निष्कर्ष: ईंट और शिखरों के पार, एक आध्यात्मिक यात्रा
हंसेश्वरी मंदिर केवल एक प्राचीन स्थापत्य या देवी की प्रतिमा भर नहीं है — यह एक गहन तांत्रिक अनुभव, एक योगिक चेतना का प्रतीक, और एक ध्यानमग्न संस्कृति की प्रतिध्वनि है।
इसके 13 शिखर किसी स्वप्नलोक की कल्पना जैसे लगते हैं, परंतु उनमें छिपा है मानव चेतना, ऊर्जा और ब्रह्म से जुड़ाव का रहस्य।
इस मंदिर की दीवारें सिर्फ चूने और संगमरमर से नहीं बनीं — वे बनी हैं एक राजा की तांत्रिक साधना से, एक रानी की अटूट श्रद्धा से, और एक संस्कृति की शाश्वत जिज्ञासा से।
यहाँ आकर आप केवल एक पर्यटक नहीं रहते — आप बन जाते हैं एक अंतर्मुख साधक, जो देवी की आंखों में अपना ही प्रतिबिंब खोजता है।
आज, जब हम आधुनिकता की दौड़ में अपनी जड़ों से दूर होते जा रहे हैं, हंसेश्वरी मंदिर हमें याद दिलाता है कि भारत की आत्मा उसकी आध्यात्मिक खोज में बसती है, जो हर पत्थर, हर शिखर, और हर पूजा में जीवंत है।
“हंसेश्वरी सिर्फ मंदिर नहीं, वह एक मौन संवाद है — शिव और शक्ति के मिलन से उत्पन्न, आत्मा और परमात्मा के बीच।”
FAQs – हंसेश्वरी मंदिर, बांसबेरिया से जुड़ी अक्सर पूछी जाने वाली बातें
Q1: हंसेश्वरी मंदिर कहाँ स्थित है?
उत्तर:
हंसेश्वरी मंदिर भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के हुगली जिले के बांसबेरिया कस्बे में स्थित है, जो बांदेल से लगभग 6 किलोमीटर उत्तर दिशा में है।
Q2: यह मंदिर किस देवी को समर्पित है?
उत्तर:
यह मंदिर माँ काली के एक तांत्रिक रूप ‘हंसेश्वरी’ को समर्पित है, जो शिव और शक्ति के अद्वैत स्वरूप का प्रतीक मानी जाती हैं।
Q3: हंसेश्वरी मंदिर की सबसे खास बात क्या है?
उत्तर:
इस मंदिर की सबसे विशेष बात इसके 13 कमल कलिका जैसे शिखर और 5 मंज़िलें हैं, जो मानव शरीर की ऊर्जा प्रणाली (योगिक नाड़ियों और चक्रों) का प्रतीक हैं। यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसमें तांत्रिक दर्शन की संरचना मूर्त रूप में दिखाई देती है।
Q4: हंसेश्वरी मंदिर कब और किसके द्वारा बनवाया गया था?
उत्तर:
मंदिर की नींव राजा नृसिंह देव रॉय ने 1799 में रखी थी। उनके निधन के बाद इसे रानी शंकरि देवी ने 1814 में पूर्ण कराया।
Q5: मंदिर के दर्शन का समय क्या है?
उत्तर:
सुबह: 5:00 AM – 12:00 PM
शाम: 4:00 PM – 9:00 PM
(विशेष पर्वों पर समय में बदलाव हो सकता है।)
Q6: हंसेश्वरी मंदिर कैसे पहुँचा जा सकता है?
उत्तर:
रेल से: बांसबेरिया रेलवे स्टेशन नज़दीकी स्टेशन है।
सड़क मार्ग से: कोलकाता से लगभग 65–70 किमी दूर, GT रोड या NH2 होते हुए टैक्सी या बस द्वारा पहुँचा जा सकता है।
Q7: हंसेश्वरी मंदिर में कौन-कौन से पर्व प्रमुख रूप से मनाए जाते हैं?
उत्तर:
काली पूजा (दीपावली के समय)
अमावस्या और पूर्णिमा तिथियाँ
इन अवसरों पर विशेष पूजा, भोग और भक्तों की भारी भीड़ होती है।
Q8: क्या हंसेश्वरी मंदिर में बलि दी जाती है?
उत्तर:
हाँ, यह एक तांत्रिक मंदिर है, इसलिए विशेष अवसरों पर पारंपरिक बकरी बलि की परंपरा आज भी मौजूद है — खासकर काली पूजा में।
Q9: क्या पास में और कोई दर्शनीय स्थल है?
उत्तर:
हाँ, पास में ही स्थित है:
अनंत बसुदेव मंदिर (17वीं शताब्दी का टेराकोटा मंदिर)
बांसबेरिया राजबाड़ी (गढ़बाड़ी), जो पुरानी ज़मींदारी हवेली है।
Q10: क्या फोटोग्राफी की अनुमति है?
उत्तर:
हाँ, बाहरी परिसर में फोटोग्राफी की अनुमति है।
लेकिन मंदिर के अंदर कुछ भागों में फोटोग्राफी प्रतिबंधित हो सकती है — स्थानीय पुजारियों से पूछकर ही करें।
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