3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन मॉडल: भारत की सबसे बड़ी टेक्नोलॉजी क्रांति जो हर किसी को हैरान कर देगी!
परिचय: जब विज्ञान ने सिक्के पर रॉकेट इंजन बना दिया
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Toggleवैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने हमेशा से अपनी कल्पना और कौशल से असंभव को संभव बनाया है। भारत में हुए “Emerging Vistas in Chemical Engineering” नामक दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में एक ऐसा मॉडल प्रदर्शित किया गया,
जिसने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा — एक 3D प्रिंटेड, लिक्विड प्रोपल्शन रॉकेट इंजन जो कि मात्र ₹1 के सिक्के पर रखा जा सकता है।
यह मॉडल न केवल तकनीकी उत्कृष्टता का उदाहरण है, बल्कि भारत के अंतरिक्ष और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में तेजी से हो रहे नवाचारों का भी प्रमाण है।
3D प्रिंटिंग और लिक्विड प्रोपल्शन इंजन: क्या है कहानी?
3D प्रिंटिंग, या Additive Manufacturing, एक उन्नत तकनीक है जिसमें कंप्यूटर के डिज़ाइन के अनुसार धातु या अन्य सामग्री को परत-दर-परत जमा कर वस्तु बनाई जाती है।
इस प्रक्रिया से पारंपरिक मैन्युफैक्चरिंग की तुलना में जटिल और हल्के पार्ट्स बनाए जा सकते हैं।
लिक्विड प्रोपल्शन इंजन वह इंजन होता है जिसमें ईंधन और ऑक्सीडाइज़र दोनों तरल रूप में होते हैं और इन्हें रासायनिक प्रतिक्रिया से जलाकर रॉकेट को थ्रस्ट प्रदान किया जाता है।
यह इंजन आधुनिक अंतरिक्ष यानों में सबसे ज्यादा उपयोग होता है।
₹1 सिक्के पर रखा 3D-प्रिंटेड रॉकेट इंजन मॉडल: तकनीकी दृष्टि से इसका महत्व
इस मॉडल को पूरी तरह से 3D प्रिंटिंग से विकसित किया गया है, जिससे इसके अंदर कोई जोड़-तोड़ या वेल्डिंग नहीं है। इसका मतलब यह है कि इसे एक पूरी यूनिट के रूप में प्रिंट किया गया जो बेहद मजबूत, हल्का और कॉम्पैक्ट है।
यह मॉडल यह दिखाता है कि भारत में उच्च तकनीकी विकास हो रहा है और हम जल्द ही अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अग्रणी हो सकते हैं।
Agnikul Cosmos और भारत का 3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन इतिहास
भारतीय स्पेस टेक्नोलॉजी स्टार्टअप Agnikul Cosmos ने 2020 के दशक में 3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन विकसित कर देश की अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में क्रांति ला दी है। Agnikul Cosmos ने पहला 3D प्रिंटेड लिक्विड प्रोपल्शन इंजन बनाया जिसे ‘Agnilet’ कहा जाता है।
यह इंजन एक पूरी तरह से प्रिंटेड यूनिट है, जिसका वजन कम है और जो छोटे उपग्रहों को कक्षा में भेजने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। Agnikul Cosmos की यह उपलब्धि भारत में निजी स्पेस सेक्टर के विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
ISRO और निजी स्पेस कंपनियां: भारत में स्पेस टेक्नोलॉजी का उभरता परिदृश्य
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने भी 3D प्रिंटिंग को अंतरिक्ष यानों में शामिल करना शुरू कर दिया है।
ISRO के कई मिशनों में 3D प्रिंटेड पार्ट्स का इस्तेमाल हो रहा है, जो पारंपरिक तकनीकों की तुलना में अधिक प्रभावी और किफायती हैं।
साथ ही, Skyroot Aerospace, Pixxel, और Bellatrix Aerospace जैसी निजी कंपनियां भी अपनी-अपनी तकनीकें विकसित कर रही हैं। भारत में यह नई स्पेस टेक्नोलॉजी क्रांति चल रही है।

Emerging Vistas in Chemical Engineering सम्मेलन में इस मॉडल का प्रदर्शन क्यों महत्वपूर्ण है?
यह राष्ट्रीय सम्मेलन केमिकल इंजीनियरिंग में नवीनतम खोजों और तकनीकों को प्रदर्शित करता है। यहाँ पर 3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन मॉडल प्रदर्शित करना इस बात का संकेत है कि केमिकल इंजीनियरिंग अब अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी से गहराई से जुड़ी हुई है।
लिक्विड प्रोपल्शन इंजन में रसायनों के प्रवाह, प्रतिक्रिया, और नियंत्रण के लिए केमिकल इंजीनियरिंग की भूमिका अहम होती है। इस प्रकार का मॉडल युवा इंजीनियरों और शोधकर्ताओं को प्रेरित करता है कि वे भी इस क्षेत्र में नवाचार करें।
Latest Update 2025: भारत का स्पेस टेक्नोलॉजी क्षेत्र
2025 तक Agnikul Cosmos ने कई सफल परीक्षण किए हैं और पहला उपग्रह लॉन्च करने की योजना बना रहा है। ISRO ने भी 3D प्रिंटिंग को अपने बड़े मिशनों में व्यापक रूप से शामिल करने का ऐलान किया है।
इसके अलावा, भारत सरकार ने स्पेस टेक्नोलॉजी स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन देने के लिए नए नियम और फंडिंग योजनाएं शुरू की हैं।
3D Printing in Aerospace and Chemical Engineering: भविष्य की तकनीक
3D प्रिंटिंग तकनीक न केवल रॉकेट इंजनों के लिए बल्कि केमिकल प्रोसेसिंग, नए मैटेरियल निर्माण, और उन्नत मशीनरी बनाने में भी क्रांति ला रही है। इससे इंजीनियरिंग की दुनिया में नयी संभावनाएं खुल रही हैं।
आने वाले वर्षों में, यह तकनीक भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्पेस टेक्नोलॉजी में और भी आगे ले जाएगी।
3D प्रिंटिंग तकनीक और उसके लाभ: रॉकेट इंजनों में क्रांति
3D प्रिंटिंग तकनीक, जिसे एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग भी कहा जाता है, पारंपरिक निर्माण प्रक्रियाओं की तुलना में कई मायनों में बेहतर है। रॉकेट इंजनों के लिए यह तकनीक बेहद उपयोगी साबित हो रही है, क्योंकि:
जटिल डिजाइनों का निर्माण: पारंपरिक मैन्युफैक्चरिंग में जटिल संरचनाओं को बनाना मुश्किल होता है, लेकिन 3D प्रिंटिंग से माइक्रो-लेवल तक की जटिलता को आसानी से प्रिंट किया जा सकता है।
कम वजन: रॉकेट के लिए वजन कम होना बहुत जरूरी है। 3D प्रिंटिंग के जरिये हल्के लेकिन मजबूत पार्ट्स बनाए जा सकते हैं, जिससे रॉकेट की दक्षता बढ़ती है।
त्वरित उत्पादन: प्रोटोटाइप और अंतिम पार्ट्स का निर्माण तेजी से हो सकता है, जिससे समय और लागत दोनों बचती हैं।
कमी लागत: कम सामग्री की बर्बादी और ऑटोमेशन के कारण कुल लागत कम होती है।
भारत जैसे विकासशील देश के लिए यह तकनीक अंतरिक्ष क्षेत्र में तेजी लाने का जरिया बन रही है।
लिक्विड प्रोपल्शन रॉकेट इंजन की कार्यप्रणाली और महत्व
लिक्विड प्रोपल्शन रॉकेट इंजन में दो तरल पदार्थ होते हैं — ईंधन (Fuel) और ऑक्सीडाइज़र (Oxidizer)। ये दोनों मिश्रण रिएक्शन चैंबर में जलते हैं और विशाल ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। यह ऊर्जा नोज़ल से निकली गैसों के रूप में निकलती है, जिससे रॉकेट को थ्रस्ट मिलता है।
लिक्विड इंजन की खास बातें:
इन्हें ऑन-ऑफ किया जा सकता है, यानी आवश्यकता के अनुसार चालू या बंद किया जा सकता है।
नियंत्रित थ्रस्ट और अधिक दक्षता होती है।
सटीक नियत्रंण और रीयूजेबल डिज़ाइन की संभावना होती है।
भारत की ISRO ने PSLV, GSLV जैसे रॉकेट में लिक्विड प्रोपल्शन इंजन का सफल इस्तेमाल किया है। अब निजी कंपनियां भी इसी क्षेत्र में काम कर रही हैं।
₹1 सिक्के पर रखा मॉडल: भारतीय इंजीनियरिंग की अद्भुत मिसाल
₹1 सिक्का भारत की अर्थव्यवस्था का एक प्रतीक है, वहीं इस सिक्के पर रखा 3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन मॉडल इस बात का उदाहरण है कि भारतीय इंजीनियरिंग कितनी सूक्ष्म और परिष्कृत हो गई है।
3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन मॉडल हमें यह भी याद दिलाता है कि बड़े सपने छोटे पैमाने से शुरू होते हैं। इस मॉडल की मदद से युवा वैज्ञानिक और छात्र प्रेरित हो सकते हैं और बड़े प्रोजेक्ट्स की कल्पना कर सकते हैं।
3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन मॉडल का शैक्षिक और प्रोत्साहन महत्व
3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन यह मॉडल केवल एक प्रदर्शनी का हिस्सा नहीं, बल्कि शिक्षा और नवाचार को बढ़ावा देने वाला माध्यम भी है। यह छात्रों और शोधकर्ताओं को 3D प्रिंटिंग और स्पेस टेक्नोलॉजी की जटिलताओं को समझने में मदद करता है।
विशेष रूप से केमिकल इंजीनियरिंग के छात्रों के लिए यह दिखाता है कि कैसे रसायनों की प्रतिक्रिया, तापमान, दबाव, और प्रवाह को नियंत्रित कर शक्तिशाली रॉकेट इंजन बनाए जा सकते हैं।
भारत में 3D प्रिंटिंग के क्षेत्र में सरकारी और निजी पहल
सरकार ने ‘Atmanirbhar Bharat’ और ‘Make in India’ जैसे अभियानों के तहत 3D प्रिंटिंग और एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग को प्रोत्साहित किया है। कई अनुदान और फंडिंग स्कीम निजी कंपनियों और शैक्षणिक संस्थानों को मिल रही हैं।
इससे तकनीकी स्टार्टअप्स को न केवल आर्थिक सहायता मिल रही है, बल्कि वे अपने अनुसंधान एवं विकास को तेज कर पा रहे हैं।
3D प्रिंटिंग तकनीक का विस्तार और इसके प्रकार
3D प्रिंटिंग की कई तकनीकें होती हैं, जो अलग-अलग प्रकार के मटेरियल और जरूरतों के हिसाब से इस्तेमाल होती हैं। रॉकेट इंजन के लिए मुख्यतः मेटल एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग तकनीक का उपयोग होता है, जिसमें धातु के सूक्ष्म कणों को लेयर बाय लेयर जोड़कर पार्ट्स बनाए जाते हैं।
मुख्य 3D प्रिंटिंग तकनीकों में शामिल हैं:
Selective Laser Melting (SLM): यह तकनीक धातु पाउडर को लेजर बीम से पिघला कर जोड़ती है।
Electron Beam Melting (EBM): इसमें इलेक्ट्रॉन बीम का उपयोग धातु पाउडर को मेल्ट करने के लिए किया जाता है।
Fused Deposition Modeling (FDM): प्लास्टिक और कुछ अन्य मटेरियल के लिए।
Stereolithography (SLA): लिक्विड रेजिन का उपयोग करते हुए, फोटो-सेटिंग लेयर बनाना।
3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन के जटिल हिस्सों जैसे कॉम्बस्टर चैम्बर, नोजल, और फ्यूल इनजेक्टर को SLM और EBM तकनीकों से बनाया जाता है, जिससे हल्का, मजबूत और थर्मल रूप से बेहतर पार्ट मिलते हैं।

रॉकेट इंजनों में 3D प्रिंटिंग के प्रमुख अनुप्रयोग
3D प्रिंटिंग न केवल प्रोटोटाइप के लिए, बल्कि असल रॉकेट इंजन के कार्यात्मक पार्ट्स के निर्माण में भी उपयोग हो रही है। इस तकनीक के माध्यम से:
कॉम्प्लेक्स कूलिंग चैनल्स: इंजन के अंदर थर्मल स्ट्रेस कम करने के लिए जटिल कूलिंग चैनल्स बनाए जा सकते हैं।
मटेरियल का ऑप्टिमाइज़ेशन: वजन कम करने के लिए मटेरियल की मात्रा को न्यूनतम किया जाता है, साथ ही ताकत बरकरार रहती है।
फास्ट डिजाइन चेंजिस: डिजाइन में कोई भी बदलाव तुरंत लागू किया जा सकता है, जो अनुसंधान को तेजी देता है।
भारत में स्पेस टेक्नोलॉजी में निजी क्षेत्र की भागीदारी और 3D प्रिंटिंग
पिछले कुछ वर्षों में भारत में निजी कंपनियों ने स्पेस सेक्टर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। इन कंपनियों ने 3D प्रिंटिंग तकनीक को अपनाकर कम लागत में विश्व स्तरीय इंजन बनाए हैं।
उदाहरण:
Agnikul Cosmos: यह एक स्टार्टअप है जिसने पूरी तरह से 3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन का विकास किया है।
Bellatrix Aerospace: यह कंपनी भी 3D प्रिंटिंग का उपयोग कर छोटे उपग्रह लॉन्चर विकसित कर रही है।
सरकार भी इन कंपनियों को बढ़ावा देने के लिए नियमों में सुधार और फंडिंग योजना ला रही है। इससे भारत में स्पेस टेक्नोलॉजी क्षेत्र में तेजी आएगी।
Emerging Vistas in Chemical Engineering – सम्मेलन और प्रदर्शनी की भूमिका
इस दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्देश्य नवीनतम रासायनिक इंजीनियरिंग के क्षेत्रों में हो रहे शोध और विकास को साझा करना है। इसमें 3D प्रिंटिंग और स्पेस इंजीनियरिंग जैसे विषय शामिल हैं।
प्रदर्शनी में शामिल 3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन मॉडल दर्शकों को रासायनिक इंजीनियरिंग की भूमिका समझाने में मदद करता है, क्योंकि इंजन के अंदर ईंधन और ऑक्सीडाइज़र के रासायनिक प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करना रासायनिक इंजीनियरिंग का ही काम है।
यह छात्रों और युवा वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा का स्रोत है कि वे भी इस क्षेत्र में नए आविष्कार करें।
भारत में 3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन के लिए चुनौतियाँ और संभावनाएँ
चुनौतियाँ:
उच्च लागत वाले मेटल प्रिंटर अभी भी महंगे हैं।
तकनीकी विशेषज्ञता और योग्य मानव संसाधन की कमी।
मटेरियल साइंस में सीमाएं, जैसे कुछ धातुओं के प्रिंटिंग में दिक्कत।
गुणवत्ता नियंत्रण और प्रमाणन का अभाव।
संभावनाएँ:
सरकारी और निजी निवेश के कारण तकनीक का विकास।
बढ़ती मांग और स्पेस सेक्टर में नवाचार।
स्टार्टअप संस्कृति और युवा उद्यमियों का समर्थन।
इंटरडिसिप्लिनरी रिसर्च का बढ़ना।
भविष्य की राह: भारत में रॉकेट इंजन और स्पेस टेक्नोलॉजी
जैसे-जैसे 3D प्रिंटिंग और लिक्विड प्रोपल्शन इंजन का विकास होगा, भारत छोटे और मध्यम उपग्रहों को कम लागत में लॉन्च कर सकेगा। इससे देश के संचार, मौसम पूर्वानुमान, रक्षा और अनुसंधान क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आएंगे।
आने वाले वर्षों में, 3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन भारत के अंतरिक्ष अभियानों की रीढ़ बनेंगे।
3D प्रिंटिंग और रॉकेट इंजनों पर शोध के लिए सुझाव
नए मटेरियल की खोज और परीक्षण करें जो ताप और दबाव सह सके।
3D प्रिंटिंग तकनीक में ऑटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का समावेश।
थर्मल मैनेजमेंट और कूलिंग सिस्टम के बेहतर डिज़ाइन।
निजी और शैक्षणिक संस्थानों के बीच सहयोग बढ़ाना।
3D प्रिंटिंग तकनीक के कारण भविष्य में होने वाले बड़े बदलाव
3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन का निर्माण घर या छोटे वर्कशॉप में संभव हो सकेगा।
अंतरिक्ष यात्रा सस्ता और सुलभ हो जाएगी।
अंतरिक्ष में बनाए जाने वाले संरचनाओं और उपकरणों का निर्माण वहीं किया जा सकेगा।
सेना, रक्षा, और औद्योगिक उपयोग के लिए नए उपकरण विकसित होंगे।
3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन मॉडल पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)
प्रश्न 1: 3D प्रिंटिंग क्या है और इसका रॉकेट इंजनों में क्या महत्व है?
उत्तर: 3D प्रिंटिंग एक एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग प्रक्रिया है जिसमें डिजिटल मॉडल के आधार पर वस्तु को परत दर परत बनाया जाता है। 3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन में इसका महत्व इसलिए है क्योंकि यह जटिल हिस्सों को कम समय और लागत में बनाना संभव बनाता है, साथ ही इंजन के वजन को कम कर दक्षता बढ़ाता है।
प्रश्न 2: ₹1 के सिक्के पर रखा गया 3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन मॉडल क्यों खास है?
उत्तर: 3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन यह मॉडल बेहद छोटा और सूक्ष्म है, जो 3D प्रिंटिंग तकनीक की प्रिसिजन और क्षमता को दर्शाता है। इसके जरिए दिखाया गया है कि अत्यंत छोटे आकार में भी जटिल तकनीकी हिस्से बनाए जा सकते हैं।
प्रश्न 3: लिक्विड प्रोपल्शन रॉकेट इंजन क्या होता है?
उत्तर: लिक्विड प्रोपल्शन इंजन वह रॉकेट इंजन है जिसमें ईंधन और ऑक्सीडाइज़र दोनों तरल रूप में होते हैं। ये इंजन उच्च ऊर्जा दक्षता और बेहतर नियंत्रण प्रदान करते हैं।
प्रश्न 4: भारत में 3D प्रिंटिंग तकनीक का विकास किस स्तर पर है?
उत्तर: भारत में 3D प्रिंटिंग तकनीक तेजी से विकसित हो रही है, खासकर स्पेस टेक्नोलॉजी और रक्षा क्षेत्रों में। कई स्टार्टअप और सरकारी संस्थान इस पर काम कर रहे हैं, और ISRO भी इसका व्यापक उपयोग कर रहा है।
प्रश्न 5: 3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन के फायदे क्या हैं?
उत्तर: इसके फायदे हैं –
निर्माण में कम समय लगना
जटिल और हल्के डिजाइन बनाना संभव
लागत में कमी
डिजाइन में त्वरित बदलाव और सुधार
प्रश्न 6: क्या 3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन सीधे अंतरिक्ष यात्रा में उपयोग किए जा सकते हैं?
उत्तर: हाँ, वर्तमान में कई परीक्षण और मिशन में 3D प्रिंटेड पार्ट्स का उपयोग किया जा रहा है। हालांकि, हर पार्ट का सख्त गुणवत्ता नियंत्रण और परीक्षण किया जाता है।
प्रश्न 7: 3D प्रिंटिंग के लिए कौन-कौन से मटेरियल इस्तेमाल होते हैं?
उत्तर: रॉकेट इंजनों के लिए मुख्यतः मेटल पाउडर (जैसे निकेल, टाइटेनियम, एल्यूमिनियम) का उपयोग होता है। कुछ हिस्सों के लिए विशेष रेजिन और कंपोजिट भी उपयोग में आते हैं।
प्रश्न 8: भारत में 3D प्रिंटिंग तकनीक को बढ़ावा देने के लिए सरकार क्या कर रही है?
उत्तर: सरकार ने कई योजनाएँ शुरू की हैं जैसे टेक्नोलॉजी इन्क्यूबेटर, फंडिंग, और नीतिगत सुधार, ताकि स्टार्टअप्स और रिसर्च संस्थान इस क्षेत्र में आगे बढ़ सकें।
प्रश्न 9: 3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन से जुड़े प्रमुख खतरे या सीमाएं क्या हैं?
उत्तर: सीमाओं में उच्च लागत वाले उपकरण, मटेरियल की सीमाएं, तकनीकी विशेषज्ञता की जरूरत, और गुणवत्ता नियंत्रण की चुनौतियाँ शामिल हैं।
प्रश्न 10: क्या 3D प्रिंटिंग तकनीक भविष्य में रॉकेट निर्माण का मुख्य तरीका बनेगी?
उत्तर: हाँ, धीरे-धीरे यह तकनीक पारंपरिक निर्माण विधियों की जगह ले रही है क्योंकि यह तेज, किफायती और अधिक कुशल समाधान प्रदान करती है।
निष्कर्ष:
3D प्रिंटिंग तकनीक ने आधुनिक इंजीनियरिंग और विशेष रूप से अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में क्रांति ला दी है। ₹1 के सिक्के पर रखे गए इस सूक्ष्म और स्केल्ड-डाउन लिक्विड प्रोपल्शन रॉकेट इंजन मॉडल ने यह साबित कर दिया है
जटिल और उन्नत तकनीकों को बेहद छोटे पैमाने पर भी सटीकता के साथ विकसित किया जा सकता है। यह न केवल भारत की तकनीकी प्रगति का प्रमाण है, बल्कि भविष्य में स्पेस टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है।
देश में 3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन के विस्तार और इसके अनुप्रयोगों को देखकर यह स्पष्ट है कि यह तकनीक रॉकेट इंजनों के निर्माण से लेकर औद्योगिक उत्पादों के विकास तक हर क्षेत्र में नई संभावनाएं खोल रही है।
सरकार और शोध संस्थान इस दिशा में निरंतर प्रयास कर रहे हैं ताकि भारत इस क्रांतिकारी तकनीक में वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बन सके।
अंततः, 3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन का विकास केवल तकनीकी उपलब्धि नहीं, बल्कि विज्ञान, इंजीनियरिंग और नवाचार के मेल का एक प्रतीक है, जो भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों और उन्नत तकनीकी उत्पादों के लिए मजबूत नींव रखता है।
इस दिशा में निरंतर शोध और विकास से भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में एक नई ऊंचाई पर पहुंच सकता है।
इसलिए, 3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन केवल एक प्रदर्शनी की शोभा नहीं, बल्कि भारत के वैज्ञानिक और तकनीकी सामर्थ्य का परिचायक है, जो आने वाले समय में बड़े और महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट्स की शुरुआत का सूचक बनेगा।
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