प्राकृतिक खेती में मध्यप्रदेश नंबर 1: भोपाल के ‘गोवर्धन पर्व’ में गौ-सेवा और जैविक उत्पादों को मिला सम्मान

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प्राकृतिक खेती में अग्रणी मध्यप्रदेश: गोवर्धन पर्व पर गौ-आधारित उत्पादों और किसानों को मिला गौरव

प्रस्तावना

भारत कृषि प्रधान देश है और कृषि ही यहां की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। लेकिन पिछले कुछ दशकों में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी की उर्वरता घटने लगी, जलस्तर कम हुआ और किसानों की लागत बढ़ती गई।

ऐसे समय में “प्राकृतिक खेती” ने एक नई उम्मीद जगाई है — खेती जो मिट्टी, जल और पर्यावरण को संतुलित रखती है।

इसी दिशा में मध्यप्रदेश ने देशभर में नया इतिहास रच दिया है।

राज्य आज प्राकृतिक खेती में भारत का नंबर 1 राज्य बन चुका है।

हाल ही में भोपाल में आयोजित ‘गोवर्धन पर्व’ कार्यक्रम ने इस उपलब्धि को और गौरवपूर्ण बना दिया, जहाँ गौ-सेवा, प्राकृतिक खेती और सांस्कृतिक परंपरा का सुंदर संगम देखने को मिला।

मध्यप्रदेश: प्राकृतिक खेती में भारत का अग्रणी राज्य

1. खेती की नई सोच

मध्यप्रदेश सरकार ने किसानों को रासायनिक खेती से हटाकर प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए व्यापक अभियान चलाया है।
इसमें “गौ आधारित कृषि”, “जीवामृत”, “बीजामृत” और “गौमूत्र खाद” जैसे उपायों को बढ़ावा दिया गया है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा –

> “हमारा लक्ष्य है कि हर खेत में गाय हो, हर किसान प्राकृतिक खेती अपनाए और हर गांव आत्मनिर्भर बने।”

2. आँकड़ों में सफलता

लगभग 17.31 लाख हेक्टेयर भूमि पर जैविक खेती हो रही है।

7.5 लाख हेक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक खेती को अपनाया गया है।

प्रदेश के 52 में से 40 जिलों में प्राकृतिक खेती मिशन सक्रिय है।

2.5 लाख से अधिक किसानों ने पारंपरिक खेती छोड़कर रासायनिक-मुक्त कृषि अपनाई है।

क्यों है यह मॉडल सफल?

1. खेती की लागत घटती है।

2. फसल की गुणवत्ता बेहतर होती है।

3. मिट्टी की उर्वरता और जल-संतुलन बढ़ता है।

4. किसानों की आय में औसतन 25–30% की वृद्धि होती है।

5. पर्यावरण-अनुकूल व जलवायु-स्मार्ट खेती का उदाहरण बन रहा है।

प्राकृतिक खेती में मध्यप्रदेश नंबर 1: भोपाल के ‘गोवर्धन पर्व’ में गौ-सेवा और जैविक उत्पादों को मिला सम्मान
प्राकृतिक खेती में मध्यप्रदेश नंबर 1: भोपाल के ‘गोवर्धन पर्व’ में गौ-सेवा और जैविक उत्पादों को मिला सम्मान
प्राकृतिक खेती में मध्यप्रदेश नंबर 1: भोपाल के ‘गोवर्धन पर्व’ में गौ-सेवा और जैविक उत्पादों को मिला सम्मान
प्राकृतिक खेती में मध्यप्रदेश नंबर 1: भोपाल के ‘गोवर्धन पर्व’ में गौ-सेवा और जैविक उत्पादों को मिला सम्मान

भोपाल में ‘गोवर्धन पर्व’ कार्यक्रम – परंपरा और प्रगति का संगम

आयोजन की झलक

भोपाल के रवीन्द्र भवन में राज्य-स्तरीय “गोवर्धन पर्व” का भव्य आयोजन हुआ।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने पारंपरिक विधि से गोवर्धन देव की पूजा-अर्चना की और कहा –

> “गौ-सेवा, प्राकृतिक खेती और गोवर्धन पूजा — तीनों भारत की आत्मा के प्रतीक हैं।”

इस अवसर पर

गौ-सेवा में लगे संस्थानों,

गौ-आधारित उत्पाद निर्माताओं,

और प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को सम्मानित किया गया।

गोवर्धन पर्व का महत्व

यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इंद्रदेव के घमंड को तोड़ने और प्रकृति-संरक्षण का संदेश देने का प्रतीक है।

ग्रामीण भारत में यह पर्व गौ-पूजन, अन्नकूट, और गोवर्धन परिक्रमा के रूप में मनाया जाता है।

आज इसकी नई व्याख्या “प्रकृति के प्रति कृतज्ञता दिवस” के रूप में की जा रही है।

कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण

1. गौ-पूजन एवं अन्नकूट का आयोजन

2. गौ-आधारित उत्पादों की प्रदर्शनी

3. प्राकृतिक खेती मिशन की प्रदर्शनी

4. किसानों व महिला-समूहों द्वारा गौ-उत्पाद बिक्री स्टॉल

5. सम्मान समारोह – गौ-सेवा में उत्कृष्ट कार्य करने वाले संगठनों को पुरस्कृत किया गया।

गौ-आधारित उत्पाद: आत्मनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार

1. उत्पाद निर्माण में नवाचार

मध्यप्रदेश सरकार किसानों और गोशालाओं को “गौ-आधारित उत्पाद उद्योग” की ओर प्रेरित कर रही है।
इन उत्पादों में शामिल हैं –

गोबर से बनी जैव-खाद व ब्रिकेट्स,

गौमूत्र से बना प्राकृतिक कीटनाशक,

गौ-घृत, धूपबत्ती, साबुन, शैंपू आदि।

इन उत्पादों की बिक्री अब स्थानीय बाजार से लेकर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म तक की जा रही है।

2. महिला-सशक्तिकरण और SHG मॉडल

महिला स्वयं-सहायता समूह (SHG) “गो-उत्पाद निर्माण इकाई” चला रहे हैं।
इससे ग्रामीण महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही हैं और परिवार की आमदनी बढ़ा रही हैं।

3. ‘गोवर्धन मॉडल’ का विस्तार

प्रदेश सरकार हर जिले में “गोवर्धन केंद्र” स्थापित करने की योजना पर काम कर रही है —

जहाँ प्राकृतिक खेती प्रशिक्षण, जैव-उत्पाद निर्माण और विपणन सुविधा उपलब्ध होगी।

प्राकृतिक खेती में मध्यप्रदेश नंबर 1: भोपाल के ‘गोवर्धन पर्व’ में गौ-सेवा और जैविक उत्पादों को मिला सम्मान
प्राकृतिक खेती में मध्यप्रदेश नंबर 1: भोपाल के ‘गोवर्धन पर्व’ में गौ-सेवा और जैविक उत्पादों को मिला सम्मान
पर्यावरण और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से प्राकृतिक खेती

1. मिट्टी और जल संरक्षण

रासायनिक खेती के कारण मिट्टी में कार्बन घट रहा था।

प्राकृतिक खेती से मिट्टी में जैविक कार्बन 0.4% से बढ़कर 1.2% तक हुआ है।

इससे जल धारण क्षमता और फसल की मजबूती दोनों बढ़ी हैं।

2. स्वास्थ्य लाभ

रासायनिक मुक्त अनाज, सब्जियाँ और फल मानव स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं।

यह कैंसर, शुगर और एलर्जी जैसी बीमारियों के खतरे को कम करते हैं।

3. पर्यावरणीय संतुलन

गोबर और गौमूत्र से तैयार जैव-खाद व कीटनाशक नदियों को प्रदूषित नहीं करते।

खेती में कार्बन-उत्सर्जन घटता है।

जैव-विविधता संरक्षित रहती है।

सरकार की पहलें और योजनाएँ

1. प्राकृतिक खेती मिशन (MPNFM): किसानों को प्रशिक्षण, जैव-उत्पाद सहायता व विपणन सुविधा।

2. गोकुल ग्राम योजना: हर जिले में गौ-संवर्धन और डेयरी-विकास केंद्र।

3. जीवामृत अनुदान योजना: गौ-आधारित खाद तैयार करने पर वित्तीय सहायता।

4. ‘एक जिला-एक उत्पाद’ योजना: गौ-आधारित उत्पादों को स्थानीय ब्रांड बनाने पर फोकस।

5. फार्म-टू-फोर्क मार्केटिंग: किसानों से उपभोक्ताओं तक सीधा उत्पाद पहुँचाना।

आर्थिक लाभ और किसान अनुभव

लाभ का क्षेत्र                                     पहले की स्थिति                                              प्राकृतिक खेती अपनाने के बाद

फसल उत्पादन लागत                       ₹12,000/एकड़                                             ₹7,000/एकड़
फसल गुणवत्ता                                 औसत                                                           उच्च (Export Grade)
मिट्टी की स्थिति                                कमजोर                                                         उर्वर
जल उपयोग                                    100%                                                           70% तक कम
लाभांश                                           20%                                                             40%+ वृद्धि

किसानों के अनुभव:

> “पहले खेती घाटे का सौदा थी, अब हमारी मिट्टी भी खुश है और जेब भी।”

– श्री रामेश्वर सिंह, किसान, सीहोर जिला

गोवर्धन पर्व का आध्यात्मिक संदेश

गोवर्धन पर्व हमें यह सिखाता है कि प्रकृति ही हमारी असली संपदा है।

भगवान कृष्ण ने जिस प्रकार गोवर्धन पर्वत की पूजा कर इंद्रदेव के अहंकार को हराया, उसी प्रकार आज हमें भी रासायनिक खेती के अहंकार से मुक्त होकर प्राकृतिक खेती की ओर लौटना होगा।

> “गाय, गोवर्धन और कृषि – ये तीनों हमारे जीवन का त्रिवेणी संगम हैं।”

भविष्य की दिशा

1. हर गाँव में “गोवर्धन केंद्र” स्थापित कर प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण।

2. गौ-आधारित उत्पादों को राष्ट्रीय ब्रांड बनाना।

3. अंतरराष्ट्रीय बाजार में “MP Natural Brand” के रूप में पहचान बनाना।

4. युवा-किसानों को एग्री-स्टार्टअप मॉडल से जोड़ना।

5. हर त्यौहार को “प्रकृति-उत्सव” के रूप में मनाना।

निष्कर्ष: प्रकृति, परंपरा और प्रगति का संगम – मध्यप्रदेश बना प्रेरणा का केंद्र

मध्यप्रदेश ने आज यह प्रमाणित कर दिया है कि सच्चा विकास वही है जो प्रकृति के साथ चलता है, उसके विरुद्ध नहीं।

“प्राकृतिक खेती” के माध्यम से राज्य ने न केवल मिट्टी, जल और पर्यावरण को बचाया है, बल्कि किसानों की आय, आत्मविश्वास और जीवन की गुणवत्ता में भी अभूतपूर्व सुधार किया है।

भोपाल में आयोजित ‘गोवर्धन पर्व’ कार्यक्रम ने इस परिवर्तन को सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आयाम प्रदान किया है।

यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक जीवंत आंदोलन है —

जो बताता है कि गौ-सेवा, जैविक खेती और आत्मनिर्भरता एक-दूसरे के पूरक हैं।

राज्य सरकार की नीतियाँ, किसानों की प्रतिबद्धता और समाज का सहयोग मिलकर आज एक नया भारत गढ़ रहे हैं —

जहाँ खेती सिर्फ आजीविका नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति श्रद्धा और जिम्मेदारी का प्रतीक है।

> “जहाँ गोवर्धन की पूजा होती है, वहाँ धरती मुस्कुराती है;

जहाँ गौ-सेवा होती है, वहाँ समृद्धि आती है;

और जहाँ प्राकृतिक खेती होती है, वहाँ भविष्य सुरक्षित होता है।”

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Sanjeev

Hello! Welcome To About me My name is Sanjeev Kumar Sanya. I have completed my BCA and MCA degrees in education. My keen interest in technology and the digital world inspired me to start this website, “Aajvani.com.”

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