Baluchari Saree: एक परंपरा जो पौराणिक इतिहास को सहेजती है!
परिचय: बालूचरी बुनाई—कला, संस्कृति और कथा की संगमधारा
Table of the Post Contents
Toggleबालूचरी (Balu‑chari/Baluchari) है फ़र्ज़ंदीकरण कला की अनमोल धरोहर, जो बंगाल की मिट्टी में पनपा एक अद्वितीय हस्तशिल्प शिल्प है, विशेषतः साड़ी के माध्यम से। यहां सब कुछ कहानी का हिस्सा है—रंग, धागा, डिज़ाइन।
शब्द संरचना: “बालू” संभवतः “बद्लू” या “बालू” से उत्पन्न, और “चरी” बुनाई का सूचक।
स्थानीय विरासत: मुर्शिदाबाद, बर्धमान, हुगली—बंगाल के प्रमुख बुनकरी केंद्र।
बालूचरी साड़ी केवल वस्त्र नहीं; ये एक समुदाय की स्मृति, तकनीकी कुशलता और कथाकारी का सम्पूर्ण रूप प्रस्तुत करती है।
मुख्य विषय:
- बालूचरी की उत्पत्ति और ऐतिहासिक विकास
- पौराणिक कथाओं का चयन—क्यों और कैसे
- सूती, रेशमी एवं धातु धागों का उपयोग
- डिज़ाइन प्रक्रियाएं और बुनाई तकनीक
- सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय पहलू
- आज के समय में बालूचरी—संरक्षण, नवाचार एवं बाजार
ऐतिहासिक प्रवाह: बालूचरी की जड़ें और विकास
प्रारंभिक अवधारणाएँ एवं उद्भव
16वीं–17वीं सदी के अंत में बंगाल का ताज और मुगल पुस्तैनीकरण इस कला को संवारा।
स्थानान्तरण-रहे थे वाज़ीर-हेबश खान काल में, पारसी-विशेषज्ञों द्वारा
मटेरियल: कच्चा रेशम, सूती, जैविक रंग—देशज अभियास।
मुगल प्रभावित डिजाइन
इस्लामी वास्तुकला, मुगल परिदृश्यों से प्रेरित पंखी मीनेट (फ्रोटेज़)।
फूल, बेल, जाल, ज्यामितीय आकृति प्रमुख।
ब्रिटिश कालीन पुनरुत्थान
बंगाल की “रेशमी संकट” के बाद 19वीं सदी में जीवित क्रान्ति।
रेषमी धागा की लोकप्रियता।
सुंदरबल, तृणी, थंडोराई, देवदर्शक-विषय।
स्वतंत्रतापूर्व एवं पश्चात प्रक्रिया
1947 के विभाजन के बाद छोड़ा गया वंश।
पुनर्बलन की लहर—सरकार व गैर‑सरकारी संस्थाओं से वित्तीय समर्थन।
Baluchari Saree: पौराणिक कथाओं की प्रेरणा: ‘डिज़ाइन’ नहीं, ‘कथा’ का प्रदर्शन
बालूचरी की सांस्कृतिक और धार्मिक परतें
साड़ी की बॉर्डर और पल्लू में छुपी अमर कथाएँ जैसे—
रामायण: अयोध्या, लंका‑युद्ध, सीता स्वयंवर, राम–हनुमान मिलन
महाभारत: कुरुक्षेत्र, भीष्म पितामह, द्रौपदी वानप्रस्थ, कृष्म सूता, भगवान कृष्ण
पुराण: शिव–पार्वती का विवाह, देवी शक्ति सूक्त, दशाश्वमेध
कथाओं का चयन—स्वरूप, रंग, अनुभूति
कथाओं का चयन कलाकारों की संवेदना, परंपरा और ग्राहक मांग पर आधारित –
स्थानीय परंपरा के अनुसार “भागवतर् कथा”
आधुनिक समय की महिलाओं में “शिव–पार्वती भावनात्मक दृश्य” की मांग
ईक–कलात्मक/वैवाहिक समारोह हेतु राम–सीता जीवन का चयन
कथा के माध्यम से सामाजिक संदेश
बालूचरी डिज़ाइन केवल सुन्दरता नहीं;
नैतिकता का शिक्षण: दुर्योधन की अहंकार-विफलता, पांडवों का धर्म
नारी की शक्ति: सीता की धैर्यता, द्रौपदी की गरिमा
प्रेम, बलिदान और धर्म: कृष्ण–राधा की कर्मभूमि, लक्ष्मण–भरत का आदर्श
मटेरियल्स—सूती, रेशमी और ज़री/धातु धागों का उपयोग
सूती धागा—मूलधारा और आर्थिक विकल्प
भारत में उपलब्ध सस्ता विकल्प
बुनाई में सुगमता, रंग अवशोषण में स्थिर
रोज़मर्रा पहनावे की बालूचरी साड़ियों में प्रचलित
रेशमी धागा—शाही वैभव का प्रतिनिधित्व
मुल्तानी तथा तमिलनाडु के बास्मति रेशम का मिश्रण
नरमता, बिंदी, उच्च स्तरीय चमक
विचित्र पैटर्न और कार्यकलाप में विस्तार—विशेषकर पारंपरिक कथाओं की बुनाई में

ज़री या धातु धागा—साड़ी को राजसी रूप
तांबे या रेचल्ड फाइबर्स–तांबा सैंडविच, स्वर्ण/चांदी कोटिंग
बॉर्डर और कथात्मक दृश्य के रेखांकन में प्रमुख
बेहतर टिकाऊपन, लेकिन वजन में वृद्धि
रंग—जैविक बनाम रासायनिक
पुराने जमाने में कोटर एवं गूलाल, लोक लाल, नीला जैविक रंग
आधुनिक समय में लेटेक्स बेस्ड, चाइना व्हाइट, डिस्परसन
पर्यावरणीय स्वास्थ्य—जैविक रंग की पुनरुत्थान रुझान
डिजाइन प्रक्रिया: कथात्मक साड़ी कैसे बनती है?
प्रारंभिक चरण: कथा चयन और रूपरेखा बनाना
कलाकार ग्राहकों से कथा/विषय तय करते हैं
कविता या मंच पर आधारित प्रारूपणा
स्केच कलर प्लान और पैटर्न—कथानक विशेषता
ग्रिडिंग और डिज़ाइन चार्ट
कात्था (स्केमैटिक ग्रिड) द्वारा प्रत्येक चित्र का पैटर्न बुनाई से पहले
X‑Y अक्ष में कार्बन पेपर पर चित्र pronto
यार्न सेटिंग और रंग फास्टनिंग
सूत को धोना, ब्लीच करना
रंग लेबल—क्रोमैटिक श्रेणी के अनुसार
बुनाई: खटनी एवं करघा
खटनी (लूमिंग), करघा तकनीक—होरिजॉन्टल/वर्टिकल लूम
“जमदारी खटनी” में बॉर्डर अँकाल और “कटवाला” पैटर्न
कथा दृश्यों के लिए “दोकोरा” या “पिक्चर वॉरप” तकनीक
कथात्मक दृश्य का निर्माण
सेलिंग और ट्रांसफर से “वार्प या फील्ट इंब्रोइडरी”
प्रमुख पात्रों, वास्तुशिल्प पृष्ठभूमि, चेतन-निष्क्रिय भावों की प्रस्तुति
फिनिशिंग और सुव्यवस्थापन
बॉर्डर की “रिवर्स बॉक्स प्लीट” तकनीक
ज़री की एड जैसे—“रशियन फिनिश”
अंतिम टैगिंग, गारंटी प्रमाण—“बैलूचरी सर्टिफिकेशन वॉच”
सांस्कृतिक, सामाजिक, और आर्थिक मूल्य
सांस्कृतिक संरक्षण
परिवार और ईतिहास को जीवित रखने वाली कला।
त्योहार, उत्सव विशेष साड़ी (जन्म‑दिवस/विवाह)
महिलाएँ और आजीविका
बुनकर (आमतौर पर दलित, पिछड़ा वर्ग) को स्वरोज़गार
स्वयं सहायता समूहों, NTFP, स्वरूपा
आर्थिक मूल्य श्रृंखला
मटेरियल → डिजाइन → बुनाई → फिनिशिंग → ब्रांडिंग
मार्ग: ग्रामीण → शहरी व्यापारी → ई‑कॉमर्स
“सोशल इम्पैक्ट बायोर्टेलिंग”—ग्रॉथ और निवेश
स्थिरता (Sustainability) पहल
जैविक रंगों का प्रयोग
स्थानीय रेशम की पुनरुत्थान
अपशिष्ट प्रबंधन, जल उपयोग, अपव्यय नियंत्रण
आधुनिक युग: संरक्षण, नवाचार और बाज़ार
संरक्षण पहल
UNESCO हस्तशिल्प संरक्षण कार्यक्रम
GI (Geographical Indication) टैग
राज्य सरकारों की ऋणवृति, दस्तक कला हब
तकनीकी और डिज़ाइन में नवाचार
डिज़िटल वीड एड कार्डिंग, CAD प्लॉटर
कथाओं के अलावा—आधुनिक पिक्चर जैसे कलाकृति, जीवाश्म, पर्यावरणीय दृश्य
हल्का, घूमने योग काप्शन—टैक्सटाइल ह्यूब्रिड
बाज़ार उत्थान: ई‑कॉमर्स व वैश्विक दृश्य
Amazon Karigar, Etsy, Craftsvilla
भारत में प्रमुख फैशन हाउस जैसे “एरणा”, “महागनी” के साथ सहयोग
चुनौती और अवसर
युवा पीढ़ी में कलात्मक आत्मीयता का संकट
सस्ती रिप्लिका और मशीन वियर
परंपराओं का हमारा मिसनशक्त होकर निरंतरता बनाए रखना।
Baluchari Saree—कथात्मक उदाहरणों संग
कथा विषय डिज़ाइन विशेषता रंग/धातु उपयोग टिप
राम–सीता लंका प्रवेश अयोध्या, सीता व राम कार ड्राइव, मायावी लंका का रंगीन पैनोरमा
लाल, नीला, सोने की ज़री जटिल झिलमिलाहट के लिए काठ पीला ज़री
कृष्ण लीला राधा कृष्ण वनोद्यान, मुरली बजाता कृष्ण मटर ग्रीन, फिक्का पिला सिल्वर ज़री डॉट्स
शिव‑पार्वती विवाह कैलाश पर्वत पृष्ठ, पंचायन बाँसुरी, मंगल गान पिंक, ऑरेंज गोल्ड ज़री रिम
शिल्पकार: परंपरा के रक्षक
पीढ़ियों से चला आ रहा ज्ञान
बालूचरी बुनाई कोई “सीखी गई नौकरी” नहीं, बल्कि वंशानुगत विद्या है।
हर बुनकर अपने पूर्वजों की धरोहर को अपने करघे पर बुनता है।
अधिकांश कारीगर बंगाल के मुरशिदाबाद, बिश्नुपुर, नादिया, बर्धमान जिलों में केंद्रित हैं।
महिला बुनकरों की भूमिका
आधुनिक समय में महिलाएं भी बालूचरी बुनाई में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।
कई स्वयं सहायता समूह (Self Help Groups – SHGs) महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता देने का कार्य कर रहे हैं।
शिल्पकारों की चुनौतियाँ
उचित पारिश्रमिक का अभाव
नकली और मशीन-निर्मित साड़ियों से प्रतिस्पर्धा
युवा पीढ़ी में रुचि की कमी
प्रेरणादायक कहानियाँ: जीवन को बुनने वाले हाथ
‘रामकृष्ण मिस्त्री’ की कथा
मुरशिदाबाद निवासी रामकृष्ण मिस्त्री, जिन्होंने पांच पीढ़ियों की परंपरा को जीवित रखा।
उन्होंने 1995 में एक विशेष साड़ी बुनी, जिसमें पूरा रामायण 6 मीटर में चित्रित किया गया।
उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
‘बिंदु रानी देवी’ का प्रयास
एक महिला बुनकर, जिन्होंने अपने गांव में महिला बुनकर प्रशिक्षण केंद्र शुरू किया।
वे स्थानीय कथाओं के साथ-साथ नवीनतम डिज़ाइनों को जोड़ती हैं, जिससे युवा पीढ़ी जुड़ रही है।
वैश्विक पहचान और निर्यात
अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग
अमेरिका, यूके, जापान, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस जैसे देशों में इंडियन हैंडलूम्स की भारी मांग है।
बालूचरी साड़ियाँ “Mythological Drapes” के नाम से प्रसिद्ध हैं।
GI टैग और ब्रांड वैल्यू
वर्ष 2011 में बालूचरी को Geographical Indication (GI) टैग प्राप्त हुआ।
यह टैग इसे विशिष्ट पहचान और बाजार में उच्च मूल्य प्रदान करता है।
प्रदर्शनियाँ और एक्सपोर्ट मेलों में भागीदारी
“India International Trade Fair”, “Surajkund Mela”, “Handloom Export Promotion Council (HEPC)” जैसे मंचों पर नियमित प्रदर्शन।
शिक्षा में उपयोग और सांस्कृतिक विरासत
बालूचरी और टेक्सटाइल स्टडीज
फैशन डिजाइन और टेक्सटाइल डिजाइन के छात्रों को बालूचरी बुनाई की गहन जानकारी दी जाती है।
कई संस्थान जैसे NIFT, NID, और Vishwa Bharati University रिसर्च कर रहे हैं।
स्कूलों में सांस्कृतिक जागरूकता
कला और शिल्प की कक्षाओं में बालूचरी के कहानी पक्ष को विद्यार्थियों से साझा किया जाता है।
इससे बच्चों में संवेदनशीलता और सांस्कृतिक गर्व पैदा होता है।
भविष्य की संभावनाएँ और नवाचार
डिजिटलीकरण और AR-VR तकनीक
Augmented Reality (AR) की मदद से ग्राहक अब डिज़ाइन को पहनने से पहले देख सकते हैं।
डिजिटल बुनाई पैटर्न से उत्पादन की गति बढ़ी है।
फैशन इंडस्ट्री में फ्यूजन
कई डिज़ाइनर आज बालूचरी पैटर्न को कुर्ता, ब्लाउज़, स्कर्ट, जैकेट आदि में प्रयोग कर रहे हैं।
पश्चिमी वेशभूषा में भारतीय पौराणिक डिज़ाइनों की झलक एक नया ट्रेंड है।
टूरिज्म और अनुभव आधारित सीख
“बालूचरी बुनाई गांव यात्रा” जैसी योजनाएं
पर्यटक न केवल साड़ी खरीदते हैं, बल्कि बुनाई भी सीखते हैं।
बालूचरी की रक्षा – हम सबकी ज़िम्मेदारी
ग्राहकों का योगदान
मूल (authentic) साड़ी ही खरीदें, GI टैग का ध्यान रखें।
मशीन-निर्मित नकली बालूचरी से बचें।
सरकार और संगठनों का सहयोग
बुनकरों को प्रशिक्षण, ऋण सुविधा, ऑनलाइन मार्केटिंग में सहयोग
GI टैग वाले उत्पादों की ग्लोबल ब्रांडिंग
युवा पीढ़ी की भूमिका
क्रिएटिव डिज़ाइन, स्टार्टअप्स, क्राफ्ट आधारित व्यवसायों के ज़रिए
अपनी जड़ों से जुड़कर आधुनिक सोच के साथ परंपरा को आगे ले जाना।
Baluchari Saree के प्रमुख प्रकार (Types of Baluchari Sarees)
बालूचरी साड़ियों को उनके कपड़े, कढ़ाई और डिज़ाइन की जटिलता के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में बाँटा जाता है:
शुद्ध रेशम बालूचरी (Pure Silk Baluchari)
यह सबसे पारंपरिक और कीमती प्रकार है।
इसमें बेहतरीन तसर या मलबरी रेशम का उपयोग होता है।
पौराणिक कथाएँ स्वर्ण/रजत ज़री में बुनी जाती हैं।
दुल्हन और भव्य अवसरों के लिए उपयुक्त।
स्वर्ण/रजत ज़री बालूचरी (Baluchari with Gold/Silver Zari)
इस संस्करण में महंगे मेटल यार्न का उपयोग होता है।
रॉयल लुक देने के लिए कथा दृश्यों को चमकदार ज़री से बुना जाता है।
शाही विवाह और अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में प्रिय।
मेती बालूचरी (Meenakari Baluchari)
इसमें चित्रों के भीतर रंगीन धागों का उपयोग कर “meenakari effect” दिया जाता है।
रेशम और ज़री का सुंदर फ्यूज़न।
अधिक कलाकारिता और चमक।
कॉटन बालूचरी (Cotton Baluchari)
अधिकतर गर्मियों में पहनने योग्य, हल्की और आरामदायक।
कथाएँ कम जटिल, सीमित रंगों में होती हैं।
छात्रों, शिक्षकों व दैनिक उपयोग के लिए अनुकूल।
ग्राहकों की मानसिकता और खरीद व्यवहार
क्या ग्राहक कथाओं को समझते हैं?
आज की पीढ़ी साड़ियों के कथात्मक महत्व को पहचानने लगी है।
कुछ ग्राहक विशेष कथाओं जैसे “शिव विवाह”, “राम-सीता वनवास” के आधार पर साड़ी का चयन करते हैं।
ग्राहक कहां से खरीदते हैं?
स्थानीय हैंडलूम शो-रूम्स, कारीगरों से सीधे,
ऑनलाइन पोर्टल्स जैसे Amazon Karigar, Gaatha, Taneira, Okhai
फैशन एग्जीबिशन और मेलों में
ब्रांडेड बनाम बुनकर-निर्मित साड़ियाँ
ब्रांडेड साड़ियों में पैकेजिंग और गुणवत्ता स्थिर होती है।
बुनकर-निर्मित साड़ियों में अधिक आत्मा और कला की गहराई होती है।
नकली Baluchari Saree की पहचान कैसे करें?
मूल और नकली की पहचान करने के कुछ उपाय:
जाँच बिंदु असली बालूचरी नकली बालूचरी
बुनाई हाथ से बुनी, असममित हल्का टेढ़ापन परफेक्ट सिंक्रोनाइज्ड
कथानक चित्र कहानी चित्रित, पहचान योग्य पात्र ज्यामितीय या कॉपी-पेस्ट
टैग GI Tag या बुनकर समिति का प्रमाण कोई टैग नहीं या जाली
स्पर्श मुलायम, रेशमी प्लास्टिक जैसा खिंचाव
मूल्य ₹8,000 से ₹40,000+ ₹1,000 – ₹3,000 (सस्ता लालच)

क्राफ्ट टूरिज़्म मॉडल: अनुभव आधारित कला यात्रा
बालूचरी की जीवंतता को पर्यटन के माध्यम से भी आगे बढ़ाया जा सकता है।
क्राफ्ट टूरिज़्म क्या है?
वह यात्रा जिसमें पर्यटक कारीगरों से मिलते हैं, उनकी कला को सीखते, और उसमें भाग भी लेते हैं।
संभावित मॉडल:
“Baluchari Village Experience”:
कारीगरों के घर पर रहने की सुविधा
बुनाई कार्यशालाएं
साड़ी पर खुद की डिज़ाइन बनाना
स्थानीय संस्कृति व भोजन का अनुभव
इससे लाभ:
कारीगरों को सीधा लाभ
युवाओं को करियर विकल्प
पर्यटन व हस्तशिल्प का मिलन
डिजिटल युग में बालूचरी: नई दुनिया में प्रवेश
सोशल मीडिया की भूमिका
इंस्टाग्राम, Pinterest, और YouTube जैसे प्लेटफ़ॉर्म पर बालूचरी डिज़ाइनों की लोकप्रियता बढ़ी है।
व्लॉगर्स अब बालूचरी साड़ी को “स्टोरी टेलिंग गारमेंट” कहकर प्रचारित कर रहे हैं।
ऑनलाइन कोर्स और सीखने के अवसर
कई संस्थान अब ऑनलाइन Textile Heritage Courses में बालूचरी को सम्मिलित कर चुके हैं।
NFT और ब्लॉकचेन में दस्तक
कलात्मक डिज़ाइन को NFT (Non-Fungible Token) के रूप में बेचना शुरू हो चुका है।
ब्लॉकचेन से डिज़ाइन की मौलिकता को संरक्षित किया जा सकता है।
निष्कर्ष: Baluchari Saree – बुनाई में बसती पौराणिक आत्मा
Baluchari Saree कोई साधारण परिधान नहीं, बल्कि एक चलती-फिरती कथा है — जो रेशमी धागों में रामायण, महाभारत और पुराणों की जीवंत झलक पेश करती है। इसमें बुनाई केवल तकनीक नहीं, बल्कि संवेदना और संस्कृति की साधना है।
जहाँ एक ओर यह साड़ी भारत की कलात्मक विविधता, धार्मिक विरासत, और सांस्कृतिक गर्व की प्रतीक है, वहीं दूसरी ओर यह आजीविका, स्वदेशी आत्मनिर्भरता और महिला सशक्तिकरण का भी माध्यम बन चुकी है।
बालूचरी हमें क्या सिखाती है?
परंपरा कभी पुरानी नहीं होती, जब उसमें रचनात्मकता जुड़ जाए।
कथा केवल ग्रंथों में नहीं, वस्त्रों में भी जीवित रह सकती है।
स्थानीय कारीगरों का समर्थन केवल उनका नहीं, हमारी संस्कृति का संरक्षण है।
हमारे कर्तव्य:
यदि हम Baluchari Saree जैसी विरासत को आज और आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाना चाहते हैं, तो:
मूल साड़ी ही खरीदें, GI टैग की पुष्टि करें।
बुनकरों से सीधे जुड़ें, उनकी मेहनत को पहचानें।
सोशल मीडिया, ब्लॉग, स्कूल-प्रोजेक्ट, फैशन प्लेटफॉर्म पर इसे प्रमोट करें।
FAQs: बालूचरी साड़ी से जुड़े सामान्य प्रश्न
1. Baluchari Saree क्या होती है?
उत्तर:
Baluchari Saree एक पारंपरिक बंगाली साड़ी है, जिसमें पौराणिक कथाएँ जैसे रामायण, महाभारत, और पुराणों के दृश्य साड़ी की पल्लू और बॉर्डर पर हाथ से बुने जाते हैं। यह साड़ी रेशम, सूती या ज़री धागों से तैयार की जाती है।
2. Baluchari Saree की विशेषता क्या है?
उत्तर:
पौराणिक दृश्यों की बुनाई
हाथ से बनी intricate डिजाइन
पारंपरिक बंगाली शैली
GI टैग प्राप्त विरासत कला
3. Baluchari Saree की कीमत क्या होती है?
उत्तर:
यह कीमत साड़ी की सामग्री, डिज़ाइन की जटिलता और धागों के प्रकार पर निर्भर करती है।
सूती बालूचरी: ₹3,000 से ₹7,000
रेशमी बालूचरी: ₹8,000 से ₹30,000+
ज़री बालूचरी: ₹20,000 से ₹80,000+
4. क्या Baluchari Saree रोज़मर्रा में पहनी जा सकती है?
उत्तर:
हाँ, विशेष रूप से सूती बालूचरी साड़ियाँ दैनिक उपयोग और शिक्षकों, प्रोफेशनल्स के लिए उपयुक्त हैं। रेशमी और ज़री वाली साड़ियाँ आमतौर पर त्योहारों, आयोजनों और विवाहों के लिए होती हैं।
5. Baluchari Saree की पहचान कैसे करें?
उत्तर:
पल्लू पर पौराणिक चित्र होंगे
GI टैग या बुनकर पहचान टैग लगा होगा
हाथ से बनी बुनाई में हल्का असममित पैटर्न दिखेगा
नकली साड़ी में डिज़ाइन स्पष्ट नहीं होंगे और कीमत बहुत कम होगी
6. Baluchari Saree में कौन-कौन सी कथाएँ चित्रित की जाती हैं?
उत्तर:
रामायण (सीता स्वयंवर, राम–रावण युद्ध)
महाभारत (कृष्ण–अर्जुन संवाद, द्रौपदी चीरहरण)
शिव–पार्वती विवाह
राधा–कृष्ण रासलीला
स्थानीय बांग्ला लोककथाएँ
7. क्या Baluchari Saree GI टैग प्राप्त है?
उत्तर:
हाँ, Baluchari Saree को 2011 में GI (Geographical Indication) टैग मिला था, जिससे इसकी क्षेत्रीय और सांस्कृतिक विशिष्टता प्रमाणित होती है।
8. Baluchari Saree कहाँ से खरीद सकते हैं?
उत्तर:
पश्चिम बंगाल के मुरशिदाबाद, बिश्नुपुर, शांतिनिकेतन
ऑनलाइन वेबसाइट: Amazon Karigar, Taneira, Gaatha, Okhai
सरकारी हैंडलूम एग्जीबिशन और मेलों से
9. Baluchari Saree के कौन-कौन से प्रकार होते हैं?
उत्तर:
रेशमी बालूचरी (Silk Baluchari)
ज़री बालूचरी (Zari Baluchari)
मीनाकारी बालूचरी (Meenakari Work)
सूती बालूचरी (Cotton Baluchari)
10. क्या Baluchari Saree टिकाऊ होती है?
उत्तर:
हाँ, यदि सही तरीके से देखभाल की जाए, तो Baluchari Saree 10–20 वर्षों तक अच्छी स्थिति में रह सकती है। विशेषकर रेशमी बालूचरी को सूखे स्थान पर और साड़ी कवर में रखना चाहिए।
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