C. R. फार्मूला 1944: जब भारत को बाँटने की पहली लिखित योजना सामने आई

C. R. फार्मूला 1944: जब भारत को बाँटने की पहली लिखित योजना सामने आई!

Facebook
Twitter
Telegram
WhatsApp

C. R. फार्मूला क्या था? जानिए भारत विभाजन से जुड़ी इस ऐतिहासिक योजना की पूरी कहानी

परिचय: C. R. फार्मूला

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

C. R. फार्मूला, जिसे “राजाजी फार्मूला” भी कहा जाता है, मार्च 1944 में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी द्वारा पेश किया गया एक समलिंगन प्रयास था।

अत्याधुनिक युद्धकालीन तनाव, राजनीतिक विखंडन, और विभाजन की मांगों के बीच इसे एक समझौते का ‘ब्रिज’ माना जा सकता है।

यहाँ हम इसके इतिहास, प्रस्ताव, राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ, विफलता के कारण, और दूरगामी प्रभाव सहित हर पहलू को गहराई से समझेंगे।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

द्वितीय विश्व युद्ध का प्रभाव

1939 में ब्रिटिश भारत युद्ध में घिरा। कांग्रेस ने इस्तीफे दी, जबकि मुस्लिम लीग युद्ध की नीतियों को समर्थन दे रही थी ।

ब्रिटिश चाहते थे कि दो प्रमुख भारतीय समूह में विभाजन हो ताकि स्वतंत्रता आंदोलनों को कमजोर किया जा सके ।

कांग्रेस–लीग का गतिरोध

कांग्रेस एक प्रेरित और एकीकृत भारत चाहती थी, जबकि मुस्लिम लीग ने “दो राष्ट्र सिद्धांत” (Two-Nation Theory) के आधार पर “पाकिस्तान” की माँग की ।

1940 की “लाहौर प्रस्ताव” (Pakistan Resolution) ने बढ़ती असहमति को और स्पष्ट किया ।

इस समय राजाजी ने महसूस किया कि किसी कूटनीतिक स्कीम के माध्यम से दोनों ध्रुवों को जोड़ना जरूरी है।

राजाजी (C. R.) को दीर्घ परिचय

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (राजाजी): कांग्रेस नेता, मद्रास से, गांधीजी के निकट सहयोगी, एवं स्वतंत्र भारत के पहले और अंतिम गवर्नर‑जनरल ।

1942 में उन्होंने “क्विट इंडिया” आंदोलन का बहिष्कार किया और इस्तीफा दे दिया ताकि शांति-परिषद् वार्ताओं की पहल कर सकें ।

उनके अनुसार विभाजन अवश्यंभावी है, पर उसे संवादात्मक और नियोजित ढंग से होना चाहिए ताकि देश के विरूपण को रोका जा सके।

C. R. फार्मूला क्यों ज़रूरी था?

1. राजनीतिक गतिरोध: बड़े पैमाने पर द्विमत (Duality) स्थापित हो चुकी थी।

2. ब्रिटिश रणनीति: युद्धकाल में ब्रिटिश विभाजित कर शासन करना चाहते थे।

3. धीमी प्रगति: स्वतंत्रता का रास्ता बदल गया था, संवाद का अवसर गवाना था।

4. गांधी का समर्थन: गांधीजी ने इसे “संवाद-आधारित योजना” के रूप में स्वीकार किया ।

मुख्य प्रस्ताव – विस्तृत व्याख्या

सारांश ने दी गई जानकारी नीचे विस्तारित रूप में दी जा रही है:

मुस्लिम लीग की स्वतंत्रता में सहमति

मुस्लिम लीग को कांग्रेस की पूर्ण स्वतंत्रता की मांग में शामिल होना था ।

अंतरिम केंद्र सरकार – साझा शासन

लीग कांग्रेस के साथ मिलकर एक संयुक्त अंतरिम सरकार बनाए जिससे नेताओं को जिम्मेदारी मिल सके ।

जनमत संग्रह (Plebiscite)

युद्ध समाप्ति के बाद: उत्तर-पश्चिम और उत्तर-पूर्व के मुस्लिम बहुल जिला क्षेत्र निर्धारित किए जाएं।

वहाँ संपूर्ण जनता (Hindus + Muslims) एक मतदान में निर्णय करें कि क्या वह पाकिस्तान चाहेंगे ।

विभाजन की शर्तें

विभाजन स्वीकृति पर सैन्य, व्यापार, संचार, रेलवे आदि पर एक सामान्य समझौता बनाए जाने का प्रस्ताव ।

आदिवासियों, सिखों आदि अन्य समुदायों की स्थिति सुरक्षित होनी चाहिए।

प्रवासन स्वैच्छिक हो

किसी व्यक्ति पर जबरदस्ती बहुसंख्यक क्षेत्र से दूसरे देश जाने का दबाव नहीं होना चाहिए ।

ब्रिटेन की पूर्ण सत्ता हस्तांतरण

ये सब तभी लागू होंगे जब ब्रिटिश पूरी शक्ति से हाथ हटाएंगे ।

गांधी–जिन्ना वार्ता

1944 में राजाजी के आधार पर गांधी और जिन्ना के बीच वार्ताएं हुईं जिसमें इन बिंदुओं पर चर्चा हुई:

लीग को स्वतंत्रता की मांग में शामिल होना था।

अंतरिम सरकार का गठन, जनमत संग्रह, विभाजन की संयुक्त अंगीकार आदि मुद्दे उठे ।

पर किन्हीं व्यापक मतभेदों के कारण समझौता संभव नहीं हो पाया।

प्रतिक्रिया: मुस्लिम लीग, कांग्रेस, अन्य

मुस्लिम लीग (जिन्ना)

उन्होंने फार्मूले को “पाकिस्तान की अधूरी नींव” बताया।

विरोधी बिंदु:

लीग चाहता था सिर्फ मुसलमानों को वोट डालने की अनुमति, न कि पूरे जनमत संग्रह में शामिल ।

वे “दो राष्ट्र सिद्धांत” पर अडिग थे।

एक साझी केंद्र मॉडल उन्हें मंजूर नहीं था।

कांग्रेस

गांधी, नेहरू, अन्य वरिष्ठ नेता फार्मूले को प्रोत्साहित कर रहे थे, लेकिन कई कांग्रेसी सदस्यों को संदेह था ।

C. R. फार्मूला 1944: जब भारत को बाँटने की पहली लिखित योजना सामने आई
C. R. फार्मूला 1944: जब भारत को बाँटने की पहली लिखित योजना सामने आई

अन्य प्रतिपक्ष

हिंदू महासभा (स्वरकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी) ने इसे आज़ादी का क्षरण बताया ।

सिख नेतृत्व भी पंजाब के विभाजन से चिंतित था।

ब्रिटिश सरकार

ब्रिटिश इसे एक वैकल्पिक समाधान मान रही थी, पर सक्रिय समर्थन नहीं मिला।

C. R. फार्मूला: विफलता के कारण

1. मुस्लिम लीग की मांगें पूरी नहीं: सिर्फ मुसलमानों को मतदान की शक्ति नहीं देना था।

  1. दो राष्ट्र सिद्धांत को स्वीकार नहीं किया गया।

3. राजनीतिक असंतुलन: कांग्रेस की एकीकृत भारत की ख्वाइश बनी रही।

4. तीव्र समय की ज़रूरत: युद्ध समाप्ति, सत्ता हस्तांतरण सब घटिया गति से हो रहा था।

5. व्यापक असहमति: सिख, हिंदू नेता, लीग और कांग्रेस—तीनों के बीच संतुलन नहीं बना।

फार्मूला बनकर रह गया, लागू नहीं हुआ।

C. R. फार्मूला का समसामयिक प्रभाव

यह प्रधानमंत्री निर्माण, जनमत संग्रह जैसे तंत्रों को राजनीतिक वैधता दिलाता है।

कैबिनेट मिशन प्लान (1946) इसके ज्यों-त्यों नेक्स्ट स्टेप थे।

हालांकि अंततः विभाजन ही हुआ, पर संवाद की प्रक्रिया को यह फार्मूला वैधता देता है।

विभाजन और बाद की घटनाएँ

1947: “माउंटबैटेन प्लान” & “भारत विभाजन” लागू हुआ।

जनमत संग्रह, सीमा रेखाएं, सिखों/आदिवासियों की स्थिति जैसे मुद्दे पर जटिल विचार लागू हुए।

C. R. फार्मूला की ‘शेषता’ तब स्पष्ट हुई—यह विभाजन की दीर्घकालीन रणनीति का आधार नहीं बन पाया यद्यपि इसमें कई तत्त्व उपयोगी सिद्ध हुए।

C. R. फार्मूला का विश्लेषण

सकारात्मक पक्ष

संवाद आधारित हल-योजना।

साझा केंद्र में इंटरिम सरकार संभावित सहयोग दिखाती है।

जनमत संग्रह की लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाई।

अंतर समुदायीय संतुलन, स्वैच्छिक प्रवासन पर जोर।

नकारात्मक पक्ष

मुस्लिम लीग की मात्रवादी मांग को पूरा नहीं किया।

दो राष्ट्र सिद्धांत को दरकिनार किया।

पंजाब, बंगाल, असम की बहुमत स्थितियां फार्मूले में अस्पष्ट रहीं।

समयसीमा की कमी के कारण फार्मूले को पुल निर्माण का रूप दिया गया पर परस्पर समर्थन नहीं मिल पाया।

राजनीतिक–वैधानिक दृष्टिकोण

यह प्रस्ताव संविधान और लोकतंत्र की रूपरेखा में गठित मध्यवर्ती सरकारों व योजनाओं का एक ऐतिहासिक मिसाल है।

यह भारत में थोड़ी ‘जमीनी पार्टिशन’ (region-by-region plebiscite) की व्यवस्था सुझाता था।

संभवतः यह संवैधानिक विभाजन का एक वैकल्पिक रास्ता होता, बशर्ते सभी पक्ष सहमत हों।

C. R. फार्मूला vs. अन्य योजनाएँ

योजना                                               वर्ष                         प्रधान प्रस्ताव                                                   C. R. फार्मूले से अंतर

Wavell Plan                                       1945                        मुख्यमंत्री परिषद, क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व                    C. R. ने जनमत संग्रह                                                                                                                                                                                 जोड़ा

Cabinet Mission Plan                      1946                         केन्द्र–राज्य विभाजन, प्राविधानिक संरचना           C. R. सिर्फ संभावित                                                                                                                                                                                  क्षेत्रीय विभाजन लाया

Mountbatten Plan                            1947                         विभाजन + तत्काल अमल                                    समयसीमा और त्वरित                                                                                                                                                                              क्रियान्वयन

फ़ॉर्मूले की संरचना – पांच स्तम्भ

मुस्लिम लीग का स्वतंत्रता में समर्थन

राजाजी ने मुस्लिम लीग से आह्वान किया कि वह पूरी स्वतंत्रता की मांग को स्वीकारे और केंद्र में कांग्रेस के साथ अंतरिम सरकार में भागीदारी करे ।

यह कदम उस समय बेहद महत्वपूर्ण था क्योंकि मुस्लिम लीग असल में स्वतंत्रता के प्रमुख आलोचना में थी।

अंतरिम सरकार (Provisional Interim Government)

केंद्र सरकार की अस्थायी व्यवस्था बनाई जाए, जिसमें दोनों समुदायों की संतुलित भागीदारी हो ।

यह सेना, वित्त, आंतरिक नीति जैसे मामलों के लिए साझा निर्माण का प्रस्ताव था।

युद्ध के अंत में जनमत संग्रह (Plebiscite)

युद्ध समाप्ति के बाद मुस्लिम बहुल जिलों—Punjab, Bengal, Sindh, NWFP, Assam सहित—में जनमत संग्रह कराया जाए ।

संपूर्ण मतदाता पंजी—हिंदू, सिख, मुसलमान सभी—के लिए मतदान की व्यवस्था हो ।

इससे स्पष्ट प्रश्न पूछा जाए: “क्या यह क्षेत्र पाकिस्तान का हिस्सा बने?”

विभाजन के बाद समझौते

यदि विभाजन होता है, तो रक्षा, संचार, वाणिज्य, रेल, और अन्य बुनियादी सेवाओं पर दोनों देशों में समझौता हो ।

यह आकस्मिक क्षेत्रीय और आर्थिक अस्थिरता से निपटने का प्रारंभिक ढांचा था।

स्वैच्छिक आबादी हस्तांतरण

वहाँ बसे लोग—हिंदू, मुसलमान, सिख—स्वेच्छा से स्वदेशांतरण का विकल्प चुनें, किसी प्रकार का ज़बरदस्ती संदेश नहीं ।

इस प्रावधान का प्राथमिक उद्देश्य मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना था।

ब्रिटिश सत्ता हस्तांतरण पर निर्भरता

उपर्युक्त सभी प्रावधान तभी लागू होंगे जब ब्रिटिश सरकार सत्ता छोड़ देगा ।

ऐसा इसलिए ताकि शुद्ध और सार्वभौमिक प्रक्रिया सुनिश्चित हो सके, ब्रिटिश हस्तक्षेप से बचा जाए।

बातचीत – गांधी vs. जिन्ना (सितंबर 1944)

माहात्मा गांधी ने सितंबर 1944 में जिन्ना से सीधे बातचीत की, और C. R. फार्मूला पेश किया ।

चर्चा के मुख्य बिंदु: फ़ॉर्मूले की स्वीकृति, दो राष्ट्र सिद्धांत या विशेषज्ञ मत के आधार पर जनमत संग्रह, संप्रभुता की समय-सीमा आदि।

परिणाम: प्रारंभिक बातचीत सकारात्मक नहीं थी, क्योंकि जिन्ना ने दो राष्ट्र सिद्धांत की स्पष्ट स्वीकृति और सिर्फ मुस्लिम वोट की मांग रखी ।

दो सप्ताह तक चली वार्ता बेनतीजा रही।

मुस्लिम लीग की आपत्तियाँ

1. दो राष्ट्र सिद्धांत: जिन्ना चाहते थे कि जनमत संग्रह केवल मुसलमानों द्वारा हो, न कि सभी समुदायों द्वारा ।

2. मक़्सद स्पष्ट न होना: C. R. फार्मूले में उनके समर्थन के बदले स्पष्ट क्षेत्रीय अधिकार का जिक्र नहीं था—पंजाब, बंगाल, असम को लेकर विवाद बना रहा ।

3. एक सामान्य केंद्र: जिन्ना के अनुसार साझेदारी की सीमा रेखा अस्पष्ट थी; वे चाहते थे कि विभाजन की प्रक्रिया पूर्ण एवं स्वतंत्र रूप से कार्यान्वित हो, ‘binding treaties’ की जगह संप्रभु विभाजन हो ।

कांग्रेस एवं अन्य कारकों की प्रतिक्रिया

गांधीजी ने फार्मूले का मनोयोग से समर्थन किया—उन्होंने इसे संवाद आधारित और लोकतांत्रिक समाधान माना ।

नेहरू‑पटनायक की सहमति, हालांकि कुछ कांग्रेस नेता (विशेषतः सिख‑हिंदू नेता) ने पंजाब विभाजन को लेकर चिंता जताई।

विर सावरकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने हिंदू हितों का हनन बताया और फार्मूला को “राष्ट्र विरोधी” करार दिया ।

सिख समुदाय ने पंजाब के विभाजन से जुड़ी सुरक्षा और जमीनी स्वायत्तता को लेकर चिंता की ।

विफलता के प्रमुख कारण

1. दो राष्ट्र सिद्धांत अस्वीकार: फार्मूले ने इसे स्वीकार नहीं किया, जबकि बिना इसे मंजूर किए समाधान सम्भव नहीं था।

2. वार्ताकार का समग्र जनमत संग्रह: सभी समुदाय पर आधारित मतदान ने मुस्लिम लीग की माँग को खारिज कर दिया।

3. क्षेत्रीय अस्पष्टताएँ: संगठित पश्चिमी और पूर्वी इलाके की सीमा निर्धारण स्पष्ट नहीं था।

4. समय की संकुचन: युद्ध के बाद सत्ता हस्तांतरण लगभग अनिवार्य रूप से जल्द हो रहा था; फार्मूला समय पर लागू नहीं हुआ।

5. संपूर्ण सहमति का अभाव: कांग्रेस, मुस्लिम लीग, सिख‑हिंदू, ब्रिटिश—कई हितधारकों की असहमति।

आगे की घटनाओं और प्रभाव

कैबिनेट मिशन प्लान (1946)

यह योजना C. R. फार्मूले का विस्तार थी—प्रांतीय साझेदारी और समूहों पर आधारित क्षेत्रीय स्वायत्तता ।

माउंटबैटेन योजना (1947)

विवादित विभाजन की औपचारिक, जल्दी-निजी कार्यवाही जिसमें सीमा रेखाएँ और स्वतंत्र देश गढ़े गए।

C. R. फार्मूला 1944: जब भारत को बाँटने की पहली लिखित योजना सामने आई
C. R. फार्मूला 1944: जब भारत को बाँटने की पहली लिखित योजना सामने आई

जनमत संग्रह परिणाम

विभाजन के दौरान बड़े स्तर पर रक्त-रंजित आबादी विस्थापन हुआ—वास्तविक जनमत संग्रह के बजाय ‘संपत्ति’ और सुरक्षा चिंताओं ने उसे अप्रभावी बना दिया।

समसामयिक एवं ऐतिहासिक महत्त्व

C. R. फार्मूला संवाद और रेफरेंडम के सिद्धांत को भारत के विभाजन की प्रक्रिया में पेश करता है।

यह भारत में लोकतंत्र, जमीनी जनमत, और समझौते की राजनीति का प्रारंभिक मॉडल बन गया।

आज यह संघीय बहुलतावाद, जनमत‑आधारित समीकरण और तालमेल‑राजनीति की दृष्टी से अध्ययन का नैतिक आधार है।

C. R. फार्मूला का निष्कर्ष (Conclusion)

C. R. फार्मूला, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी द्वारा प्रस्तुत किया गया भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक ऐतिहासिक एवं विवादास्पद प्रस्ताव था, जिसने पहली बार भारत के विभाजन को एक संभव समाधान के रूप में सार्वजनिक बहस में लाया।

यह फार्मूला न केवल उस दौर की राजनीतिक जटिलताओं को उजागर करता है, बल्कि उस समय के नेताओं की दूरदर्शिता, सहिष्णुता और संवाद की भावना को भी दर्शाता है।

मुख्य निष्कर्ष बिंदु:

1. लोकतंत्र और संवाद का प्रयास:

फार्मूला भारत के इतिहास में एक ऐसा प्रयास था, जिसने संवाद के ज़रिए विभाजन जैसे जटिल मुद्दे को हल करने की कोशिश की। गांधी और जिन्ना के बीच हुई बातचीत भारतीय इतिहास की सबसे निर्णायक चर्चाओं में से एक थी।

2. राजनीतिक यथार्थ को स्वीकारने की कोशिश:

राजगोपालाचारी ने यह महसूस किया कि मुस्लिम लीग की मांग को पूरी तरह नजरअंदाज करना संभव नहीं है। इसलिए उन्होंने एक व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत किया जिसमें मुस्लिम लीग को वैध साझेदार माना गया।

3. दो राष्ट्र सिद्धांत की सीमाएं:

मुस्लिम लीग द्वारा फार्मूले को अस्वीकार करने से यह स्पष्ट हो गया कि वह केवल सांविधानिक समाधान से संतुष्ट नहीं थी; उसका झुकाव संप्रभु पाकिस्तान की ओर था।

4. कांग्रेस और अन्य दलों की प्रतिक्रियाएं मिश्रित रहीं:

जहाँ गांधीजी ने इसे एक साहसिक और तर्कपूर्ण पहल बताया, वहीं सिख, हिंदू महासभा और कई कांग्रेस नेता पंजाब और बंगाल के विभाजन की आशंका से असहज थे।

5. ऐतिहासिक असफलता, लेकिन बौद्धिक सफलता:

यद्यपि यह फार्मूला लागू नहीं हो पाया, लेकिन इसने आगे चलकर कैबिनेट मिशन योजना, माउंटबेटन योजना, और अंततः भारत के विभाजन की संरचना को प्रभावित किया।

6. आज के संदर्भ में प्रासंगिकता:

यह प्रस्ताव आज भी राजनीतिक सहमति, विविधता में एकता, और बहुलवादी समाज की संरचना के लिए एक शिक्षण मॉडल है, जिसमें लोकतंत्र, बहस, और समाधान खोजने का संयम देखा जा सकता है।

FAQs: C. R. फार्मूला से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (Frequently Asked Questions)

1. C. R. फार्मूला क्या था?

उत्तर:
C. R. फार्मूला (C. Rajagopalachari Formula) 1944 में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी द्वारा प्रस्तुत एक राजनीतिक योजना थी, जिसका उद्देश्य भारत की स्वतंत्रता के संदर्भ में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच समझौता करना था। इसमें भारत के विभाजन की सशर्त स्वीकृति और मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में जनमत संग्रह का सुझाव शामिल था।

2. C. R. फार्मूला किसने प्रस्तुत किया था?

उत्तर:
C. R. फार्मूला चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (C. Rajagopalachari) ने प्रस्तुत किया था, जो एक वरिष्ठ गांधीवादी नेता, स्वतंत्रता सेनानी और बाद में स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल भी बने।

3. C. R. फार्मूले का मुख्य उद्देश्य क्या था?

उत्तर:
C. R. फार्मूला का उद्देश्य कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच राजनीतिक समझौता कराना था, जिससे ब्रिटिश सत्ता का शांतिपूर्ण और एकमत से हस्तांतरण सुनिश्चित हो सके।

4. C. R. फार्मूला के प्रमुख बिंदु क्या थे?

उत्तर:

मुस्लिम लीग कांग्रेस की स्वतंत्रता की मांग का समर्थन करे।

युद्ध के बाद मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में जनमत संग्रह कराया जाए।

अगर पाकिस्तान बना, तो भारत और पाकिस्तान के बीच साझा व्यवस्था (रक्षा, व्यापार आदि) बनी रहे।

जनमत के ज़रिए विभाजन को वैधता दी जाए।

5. क्या गांधीजी ने C. R. फार्मूले का समर्थन किया था?

उत्तर:
हाँ, महात्मा गांधी ने इस फार्मूले को स्वीकार किया और जिन्ना से सितंबर 1944 में इस विषय पर बातचीत भी की। यह वार्ता विफल रही।

6. मुस्लिम लीग ने फार्मूले को क्यों अस्वीकार किया?

उत्तर:
मुस्लिम लीग के नेता जिन्ना को यह आपत्ति थी कि जनमत संग्रह में सभी समुदायों को वोटिंग का अधिकार क्यों दिया गया। वे चाहते थे कि सिर्फ मुसलमान ही निर्णय लें। साथ ही, फार्मूला में पाकिस्तान को एक स्वतः मान्यता नहीं दी गई थी।

7. क्या C. R. फार्मूला भारत की विभाजन नीति को स्वीकार करता था?

उत्तर:
आंशिक रूप से हाँ। C. R. फार्मूला सशर्त विभाजन का समर्थन करता था। इसमें यह स्पष्ट किया गया था कि विभाजन तभी होगा जब मुस्लिम बहुल क्षेत्रों की जनता जनमत संग्रह के माध्यम से पाकिस्तान के पक्ष में मत देगी।

8. C. R. फार्मूला क्यों विफल हुआ?

उत्तर:

मुस्लिम लीग की अधिकतम मांगें स्वीकार नहीं हुईं।

कांग्रेस में भी कई नेता फार्मूले से सहमत नहीं थे।

हिन्दू महासभा और सिखों ने भी फार्मूले का विरोध किया।

दोनों पक्षों के बीच आपसी अविश्वास गहरा था।

9. C. R. फार्मूले का ऐतिहासिक महत्व क्या है?

उत्तर:
C. R. फार्मूला भारत के विभाजन की ओर पहला व्यावहारिक कदम माना जाता है। यह एक लोकतांत्रिक समाधान की ओर इंगित करता है और स्वतंत्रता संग्राम में संवाद की भूमिका को दर्शाता है।

10. C. R. फार्मूला की असफलता का क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर:
C. R. फार्मूला की असफलता के बाद भारत में हिंदू-मुस्लिम एकता की संभावनाएँ और कमजोर हो गईं। आगे चलकर कैबिनेट मिशन प्लान और माउंटबेटन प्लान को स्वीकार किया गया, जिससे अंततः विभाजन हुआ।

11. क्या C. R. फार्मूला आज के संदर्भ में प्रासंगिक है?

उत्तर:
हाँ, C. R. फार्मूला आज भी यह दर्शाता है कि कैसे जटिल राजनीतिक समस्याओं का समाधान संवाद, सहमति, और जनमत के माध्यम से निकाला जा सकता है। यह लोकतंत्र की नींव पर आधारित एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण है।


Discover more from Aajvani

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Facebook
Twitter
Telegram
WhatsApp
Picture of Sanjeev

Sanjeev

Hello! Welcome To About me My name is Sanjeev Kumar Sanya. I have completed my BCA and MCA degrees in education. My keen interest in technology and the digital world inspired me to start this website, “Aajvani.com.”

Leave a Comment

Top Stories

Index

Discover more from Aajvani

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading