CAR T-सेल थेरेपी पर नया शोध! ब्लड कैंसर का आखिरी इलाज?
CAR T-सेल थेरेपी: हाल ही में The Lancet Haematology में प्रकाशित एक अध्ययन ने CAR T-सेल थेरेपी को लेकर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि को रेखांकित किया है। इस शोध के अनुसार, कुछ विशेष प्रकार के रक्त कैंसर के मरीजों में CAR T-सेल थेरेपी की प्रतिक्रिया दर 73% पाई गई है। यह परिणाम कैंसर उपचार में एक नया आयाम जोड़ने वाला है और भविष्य में इस थेरेपी को अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में अहम संकेत प्रदान करता है।
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ToggleCAR T-सेल थेरेपी क्या है?
CAR T-सेल थेरेपी (Chimeric Antigen Receptor T-cell Therapy) एक प्रकार की इम्यूनोथेरेपी है, जिसमें मरीज की खुद की प्रतिरक्षा प्रणाली को इस प्रकार संशोधित किया जाता है कि वह कैंसर कोशिकाओं को पहचानकर नष्ट कर सके। यह थेरेपी विशेष रूप से उन मरीजों के लिए प्रभावी होती है जिनका कैंसर अन्य उपचारों के बावजूद वापस आ जाता है या जिनके शरीर में पारंपरिक कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी काम नहीं करती।
इस प्रक्रिया में मरीज के शरीर से टी-कोशिकाओं (T-cells) को निकाला जाता है और उन्हें प्रयोगशाला में काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर (CAR) से लैस किया जाता है। इस संशोधन के बाद, ये टी-कोशिकाएँ कैंसर कोशिकाओं को पहचानकर उन पर हमला करती हैं।
CAR T-सेल थेरेपी की प्रक्रिया
CAR T-सेल थेरेपी की पूरी प्रक्रिया कई चरणों में पूरी होती है।
1. टी-कोशिकाओं का संग्रहण:
इस प्रक्रिया की शुरुआत मरीज के खून से टी-कोशिकाएँ निकालने से होती है। यह कार्य ल्यूकोफेरेसिस नामक प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है, जिसमें रक्त से सफेद रक्त कोशिकाएँ अलग कर ली जाती हैं।
2. टी-कोशिकाओं में संशोधन:
प्रयोगशाला में इन टी-कोशिकाओं में एक कृत्रिम जीन डाला जाता है, जो उन्हें कैंसर कोशिकाओं की पहचान करने और उन पर हमला करने में सक्षम बनाता है। यह नया जीन काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर (CAR) कहलाता है।
3. कोशिकाओं का बहुगुणन (Multiplication):
संशोधित टी-कोशिकाओं को प्रयोगशाला में बड़ी मात्रा में विकसित किया जाता है, ताकि वे मरीज के शरीर में कैंसर से प्रभावी ढंग से लड़ सकें।
4. मरीज में प्रत्यारोपण:
संशोधित टी-कोशिकाओं को पुनः मरीज के शरीर में डाला जाता है। ये कोशिकाएँ कैंसर कोशिकाओं को पहचानकर उनसे लड़ती हैं और उन्हें नष्ट कर देती हैं।
5. निगरानी और प्रतिक्रिया:
मरीज के शरीर में CAR T-सेल्स डालने के बाद डॉक्टर लगातार उसकी स्थिति की निगरानी करते हैं ताकि संभावित साइड इफेक्ट्स को नियंत्रित किया जा सके।

कौन-कौन से कैंसर में CAR T-सेल थेरेपी प्रभावी है?
CAR T-सेल थेरेपी विशेष रूप से रक्त कैंसर के इलाज में प्रभावी मानी जाती है, जिनमें प्रमुख रूप से शामिल हैं:
1. डिफ्यूज़ लार्ज बी-सेल लिंफोमा (DLBCL):
यह एक प्रकार का आक्रामक लिंफोमा है, जो वयस्कों में आमतौर पर पाया जाता है।
2. एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (ALL):
यह बचपन में होने वाला एक गंभीर रक्त कैंसर है, जिसमें सफेद रक्त कोशिकाएँ अनियंत्रित रूप से बढ़ने लगती हैं।
3. फॉलिक्यूलर लिंफोमा:
यह धीमी गति से बढ़ने वाला लिंफोमा है, लेकिन कुछ मामलों में यह आक्रामक हो सकता है।
4. मल्टीपल मायलोमा:
इस बीमारी में प्लाज्मा कोशिकाएँ असामान्य रूप से बढ़ने लगती हैं और हड्डियों तथा रक्त निर्माण प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं।
5. क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया (CLL):
यह सबसे आम प्रकार का ल्यूकेमिया है, जो आमतौर पर वृद्ध लोगों में देखा जाता है।
CAR T-सेल थेरेपी की प्रभावशीलता
The Lancet Haematology में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, जिन मरीजों ने इस थेरेपी को अपनाया, उनमें 73% तक सकारात्मक प्रतिक्रिया देखी गई। इसका मतलब यह है कि या तो उनका कैंसर काफी हद तक कम हो गया या पूरी तरह से समाप्त हो गया।
इस थेरेपी को प्राप्त करने वाले मरीजों में से कुछ ने पूर्ण सुधार (Complete Remission) भी दिखाया, जिसका अर्थ है कि उनके शरीर में कैंसर कोशिकाएँ पूरी तरह समाप्त हो गईं। यह परिणाम कैंसर चिकित्सा में एक बड़ा कदम है, क्योंकि यह थेरेपी उन मरीजों में भी प्रभावी रही है जिनके लिए पारंपरिक उपचार असफल हो चुके थे।
अन्य पारंपरिक उपचारों की तुलना में CAR T-सेल थेरेपी क्यों खास है?
पारंपरिक उपचार, जैसे कि कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी, कैंसर कोशिकाओं को मारने के साथ-साथ शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं को भी नुकसान पहुँचाते हैं। इससे मरीजों में गंभीर साइड इफेक्ट्स देखने को मिलते हैं, जैसे कि बाल झड़ना, कमजोरी, मतली, और संक्रमण का खतरा।
दूसरी ओर, CAR T-सेल थेरेपी विशेष रूप से कैंसर कोशिकाओं को लक्षित करती है, जिससे यह अधिक प्रभावी और कम हानिकारक होती है। हालांकि, यह थेरेपी भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं है और इसमें कुछ साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं, जैसे कि साइटोकाइन रिलीज सिंड्रोम (CRS), न्यूरोलॉजिकल समस्याएँ, और इम्यून सिस्टम की अधिक सक्रियता।
भारत में CAR T-सेल थेरेपी का विकास
भारत में इस थेरेपी पर गहन शोध किया जा रहा है। प्रमुख संस्थानों में IIT बॉम्बे, टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल, और कुछ अन्य प्रतिष्ठित मेडिकल संस्थान इस पर कार्य कर रहे हैं। भारतीय वैज्ञानिकों ने हाल ही में स्वदेशी रूप से विकसित CAR T-सेल थेरेपी को सफलतापूर्वक परीक्षण किया है, जिससे यह उम्मीद बढ़ी है कि आने वाले समय में यह थेरेपी अधिक किफायती और सुलभ होगी।
CAR T-सेल थेरेपी की चुनौतियाँ
हालांकि CAR T-सेल थेरेपी कैंसर उपचार में एक क्रांतिकारी खोज है, लेकिन इसके समक्ष कई चुनौतियाँ भी हैं।
1. उच्च लागत:
वर्तमान में, इस थेरेपी की लागत लाखों रुपये में है, जिससे यह आम लोगों की पहुँच से बाहर है। यदि इसे बड़े पैमाने पर विकसित किया जाए तो इसकी कीमत कम हो सकती है।
2. साइड इफेक्ट्स:
कुछ मरीजों में साइटोकाइन रिलीज सिंड्रोम (CRS) देखा गया है, जो एक प्रकार की इम्यून प्रतिक्रिया है और इससे बुखार, निम्न रक्तचाप और अंग विफलता जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।
3. दीर्घकालिक प्रभावों की अनिश्चितता:
चूँकि CAR T-सेल थेरेपी अभी भी एक नई तकनीक है, इसलिए इसके दीर्घकालिक प्रभावों पर अधिक शोध की आवश्यकता है।
भविष्य की संभावनाएँ
वैज्ञानिकों का मानना है कि आने वाले वर्षों में CAR T-सेल थेरेपी को अधिक उन्नत और सुरक्षित बनाया जा सकता है। नई तकनीकों के विकास से यह थेरेपी अधिक किफायती और व्यापक रूप से उपलब्ध हो सकती है।
विशेषज्ञों के अनुसार, इस थेरेपी को अन्य प्रकार के कैंसर, जैसे कि ठोस ट्यूमर (Solid Tumors) के उपचार में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। यदि इसमें सफलता मिलती है, तो यह कैंसर के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।
CAR T-सेल थेरेपी से जुड़े टॉप 10 सर्च किए जाने वाले प्रश्न और उनके विस्तृत उत्तर
1. CAR T-सेल थेरेपी क्या है और यह कैसे काम करती है?
उत्तर: CAR T-सेल थेरेपी (Chimeric Antigen Receptor T-cell Therapy) एक नवीनतम इम्यूनोथेरेपी है, जिसमें मरीज की स्वयं की टी-कोशिकाओं (T-cells) को संशोधित करके कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए सक्षम बनाया जाता है।
इस प्रक्रिया में:
1. टी-कोशिकाओं का संग्रहण: मरीज के खून से टी-कोशिकाएँ अलग की जाती हैं।
2. संशोधन: इन कोशिकाओं में काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर (CAR) नामक कृत्रिम जीन डाला जाता है, जिससे वे कैंसर कोशिकाओं को पहचान सकें।
3. वृद्धि: इन संशोधित टी-कोशिकाओं को प्रयोगशाला में बढ़ाया जाता है।
4. मरीज में प्रत्यारोपण: इन्हें पुनः मरीज के शरीर में डाला जाता है, जहाँ वे कैंसर कोशिकाओं पर हमला करते हैं।
2. CAR T-सेल थेरेपी किन प्रकार के कैंसर के लिए प्रभावी है?
उत्तर: CAR T-सेल थेरेपी विशेष रूप से रक्त कैंसर के इलाज के लिए प्रभावी है, जिनमें शामिल हैं:
डिफ्यूज़ लार्ज बी-सेल लिंफोमा (DLBCL) – आक्रामक प्रकार का लिंफोमा
एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (ALL) – बचपन में होने वाला ल्यूकेमिया
फॉलिक्यूलर लिंफोमा – धीरे-धीरे बढ़ने वाला लिंफोमा
मल्टीपल मायलोमा – प्लाज्मा कोशिकाओं का असामान्य वृद्धि
क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया (CLL) – वयस्कों में पाया जाने वाला ल्यूकेमिया
3. CAR T-सेल थेरेपी की सफलता दर क्या है?
उत्तर: The Lancet Haematology में प्रकाशित हालिया शोध के अनुसार, CAR T-सेल थेरेपी की प्रतिक्रिया दर 73% पाई गई है।
कुछ मरीजों में पूर्ण सुधार (Complete Remission) देखा गया है, यानी उनके शरीर में कैंसर कोशिकाएँ पूरी तरह समाप्त हो गईं।
अन्य मरीजों में कैंसर काफी हद तक कम हो गया, जिससे उनकी जीवन प्रत्याशा बढ़ गई।

4. क्या CAR T-सेल थेरेपी सुरक्षित है? इसके साइड इफेक्ट्स क्या हैं?
उत्तर: हालांकि CAR T-सेल थेरेपी अत्यधिक प्रभावी है, लेकिन इसके कुछ संभावित साइड इफेक्ट्स भी हैं:
साइटोकाइन रिलीज सिंड्रोम (CRS): अत्यधिक इम्यून प्रतिक्रिया, जिससे बुखार, निम्न रक्तचाप, और अंग विफलता हो सकती है।
न्यूरोलॉजिकल प्रभाव: भ्रम, दौरे, और स्मृति संबंधित समस्याएँ हो सकती हैं।
इम्यून सिस्टम पर प्रभाव: शरीर की सामान्य प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो सकती है, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
5. CAR T-सेल थेरेपी की लागत कितनी होती है?
उत्तर: वर्तमान में, CAR T-सेल थेरेपी की लागत 3-5 करोड़ रुपये तक हो सकती है।
अमेरिका और यूरोप में Kymriah, Yescarta, और Tecartus जैसी CAR T-सेल थेरेपी उपलब्ध हैं।
भारत में अभी यह तकनीक विकसित हो रही है, जिससे भविष्य में इसकी लागत कम होने की संभावना है।
6. क्या भारत में CAR T-सेल थेरेपी उपलब्ध है?
उत्तर: हाँ, भारत में कुछ संस्थान CAR T-सेल थेरेपी पर शोध कर रहे हैं।
IIT बॉम्बे और टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल ने हाल ही में स्वदेशी CAR T-सेल थेरेपी विकसित की है।
यह अभी परीक्षण चरण में है, लेकिन जल्द ही यह कम लागत में भारतीय मरीजों के लिए उपलब्ध हो सकती है।
7. CAR T-सेल थेरेपी पारंपरिक उपचार (कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी) से कैसे अलग है?
उत्तर: CAR T-सेल थेरेपी और पारंपरिक उपचारों में महत्वपूर्ण अंतर हैं:
कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी कैंसर कोशिकाओं के साथ-साथ स्वस्थ कोशिकाओं को भी नुकसान पहुँचाती हैं, जिससे बाल झड़ना, कमजोरी, और अन्य साइड इफेक्ट्स होते हैं।
CAR T-सेल थेरेपी विशेष रूप से कैंसर कोशिकाओं को निशाना बनाती है, जिससे यह अधिक प्रभावी और कम हानिकारक होती है।
पारंपरिक उपचारों के असफल होने पर CAR T-सेल थेरेपी एकमात्र कारगर उपाय हो सकता है।
8. क्या सभी मरीज CAR T-सेल थेरेपी के लिए योग्य होते हैं?
उत्तर: नहीं, CAR T-सेल थेरेपी सभी मरीजों के लिए उपयुक्त नहीं होती।
यह उन मरीजों के लिए प्रभावी होती है, जिनका कैंसर पारंपरिक उपचारों से ठीक नहीं हुआ या बार-बार वापस आ रहा है।
मरीज के संपूर्ण स्वास्थ्य, उम्र, और इम्यून सिस्टम को ध्यान में रखते हुए डॉक्टर इस थेरेपी की सिफारिश करते हैं।
कुछ मरीजों में गंभीर साइड इफेक्ट्स का खतरा अधिक हो सकता है, इसलिए इसकी जांच पहले की जाती है।
9. क्या CAR T-सेल थेरेपी ठोस ट्यूमर (Solid Tumors) के लिए भी प्रभावी है?
उत्तर: वर्तमान में CAR T-सेल थेरेपी मुख्य रूप से रक्त कैंसर के लिए प्रभावी है।
ठोस ट्यूमर, जैसे कि फेफड़े, स्तन, या पेट का कैंसर, पर इसका प्रभाव सीमित पाया गया है।
वैज्ञानिक अभी भी ठोस ट्यूमर के लिए CAR T-सेल थेरेपी को अनुकूलित करने पर काम कर रहे हैं।
10. भविष्य में CAR T-सेल थेरेपी में क्या संभावनाएँ हैं?
उत्तर: भविष्य में CAR T-सेल थेरेपी में कई संभावनाएँ हैं:
लागत में कमी: भारत में इस तकनीक को विकसित करने से इसकी लागत काफी हद तक कम हो सकती है।
सुरक्षा में सुधार: नई तकनीकों से इसके साइड इफेक्ट्स को नियंत्रित किया जा सकता है।
ठोस ट्यूमर के लिए विस्तार: वैज्ञानिक इसे फेफड़े, स्तन, और अन्य ठोस कैंसरों के इलाज में भी कारगर बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
व्यक्तिगत उपचार: भविष्य में इसे मरीज के अनुवांशिक प्रोफाइल के अनुसार और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।
निष्कर्ष
CAR T-सेल थेरेपी कैंसर उपचार में एक क्रांतिकारी खोज साबित हो रही है। The Lancet Haematology में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, इस थेरेपी की सफलता दर 73% तक देखी गई है, जो इसे अत्यधिक प्रभावी बनाती है। हालाँकि, इसकी उच्च लागत और संभावित साइड इफेक्ट्स को देखते हुए इसे और अधिक शोध और सुधार की आवश्यकता है। भारत सहित दुनियाभर में इस तकनीक को अधिक सुलभ और सुरक्षित बनाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे भविष्य में कैंसर के खिलाफ लड़ाई और भी सशक्त हो सकती है।
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