Cartosat-2S डेटा: धराली-हर्षिल बाढ़ के नुकसान का सटीक आकलन और राहत रणनीति
परिचय
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Toggleअगस्त 2025 में उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली और हर्षिल क्षेत्र में आई बाढ़ ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा। तेज़ बहाव, भारी मलबा और नदी के मार्ग में आए अचानक बदलाव ने स्थानीय आबादी को बुरी तरह प्रभावित किया। इस संकट की वास्तविक स्थिति को समझने और राहत कार्यों की दिशा तय करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग केंद्र (NRSC) ने Cartosat-2S डेटा का इस्तेमाल किया।

यह डेटा उच्च-रिज़ॉल्यूशन तस्वीरों के माध्यम से आपदा का सटीक मूल्यांकन करता है और आपातकालीन प्रतिक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
घटना की पृष्ठभूमि
धराली और हर्षिल, दोनों ही क्षेत्र हिमालय की गोद में बसे शांत गांव हैं। लेकिन 5 अगस्त 2025 को, भारी वर्षा और ऊपरी इलाकों से आई तेज़ जलधारा ने यहां तबाही मचा दी। पहाड़ी ढलानों से मलबा बहकर नदी में आ गया, जिससे पानी का बहाव और अधिक खतरनाक हो गया। कई घर, दुकानें और सड़कें पानी में बह गईं।
ऐसे समय में, ज़मीनी स्तर पर पहुंचना और सही आकलन करना मुश्किल होता है। यही कारण है कि Cartosat-2S डेटा का उपयोग किया गया, जिससे पहले और बाद की स्थिति की तुलना की जा सके।
Cartosat-2S डेटा: क्या है और क्यों महत्वपूर्ण है
तकनीकी परिचय
Cartosat-2S डेटा भारत के उच्च-रिज़ॉल्यूशन पृथ्वी अवलोकन उपग्रह से प्राप्त होता है। यह डेटा बेहद स्पष्ट तस्वीरें प्रदान करता है, जिनमें एक-एक मीटर या उससे भी कम आकार की वस्तु को देखा जा सकता है।
रिज़ॉल्यूशन: सब-मीटर स्तर
क्षेत्र कवरेज: बड़े इलाके की एक ही फ्रेम में तस्वीर
प्रयोग: शहरी नियोजन, कृषि, पर्यावरण निगरानी, और आपदा प्रबंधन
आपदा में महत्व
आपदा के समय, Cartosat-2S डेटा ताज़ा और सटीक जानकारी देता है। इससे यह पता चलता है कि बाढ़ से कौन-कौन से इलाके प्रभावित हुए, कहां अवरोध हैं और किन क्षेत्रों में राहत कार्य को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
धराली-हर्षिल बाढ़ में Cartosat-2S डेटा की भूमिका
पहले और बाद की तस्वीरों का विश्लेषण
बाढ़ से पहले की तस्वीरें क्षेत्र की सामान्य स्थिति दिखाती हैं—नदी का स्थिर मार्ग, घरों की सही स्थिति और हरे-भरे खेत। बाढ़ के बाद की Cartosat-2S डेटा तस्वीरें पूरी तरह अलग दृश्य प्रस्तुत करती हैं—नदी का चौड़ा हो जाना, कई इमारतों का मलबे में दब जाना और सड़कें टूट जाना।
मलबे और बहाव का पता लगाना
डेटा से यह स्पष्ट हुआ कि लगभग 20 हेक्टेयर क्षेत्र मलबे से ढक गया था। यह जानकारी राहत दलों के लिए बेहद महत्वपूर्ण थी, क्योंकि इससे उन्हें समझ आया कि किस क्षेत्र में भारी मशीनरी और अधिक जनशक्ति की जरूरत है।
नदी मार्ग में बदलाव
Cartosat-2S डेटा ने दिखाया कि बाढ़ के दौरान नदी का बहाव अचानक बदल गया, जिससे कुछ गांवों पर सीधा खतरा आ गया। इस बदलाव को ज़मीनी सर्वेक्षण से समझना कठिन होता, लेकिन उपग्रह डेटा ने यह काम तुरंत कर दिया।
बचाव और राहत कार्य में योगदान
त्वरित योजना बनाना
डेटा का विश्लेषण करके प्रशासन ने तय किया कि किन गांवों में हेलीकॉप्टर से राहत सामग्री भेजी जाए और कहां से सड़क मार्ग बहाल किया जाए। -2S डेटा ने इन फैसलों में सटीकता और गति दोनों प्रदान की।
फंसे लोगों की पहचान
कुछ इलाकों में, पानी और मलबा हटने के बाद भी लोग फंसे हुए थे। उपग्रह चित्रों ने इन स्थानों की सही लोकेशन दी, जिससे बचाव दल सीधे वहां पहुंच सके।
संसाधन प्रबंधन
राहत सामग्री की सीमित उपलब्धता को देखते हुए, सही प्राथमिकता तय करना जरूरी था। Cartosat-2S डेटा ने इस प्राथमिकता निर्धारण में अहम योगदान दिया।

संभावित कारणों का आकलन
बाढ़ के कारणों में कई संभावनाएं शामिल थीं:
1. भारी वर्षा: लगातार कई घंटों की बारिश से पहाड़ी ढलानों पर पानी का दबाव बढ़ गया।
2. ग्लेशियर पिघलना: ऊपरी इलाकों में बर्फ और ग्लेशियर के पिघलने से अचानक पानी की मात्रा बढ़ी।
3. भूस्खलन: ढलानों से मलबा नदी में आने से जलधारा और तेज हो गई।
Cartosat-2S डेटा ने इन कारणों की जांच के लिए आवश्यक विज़ुअल साक्ष्य उपलब्ध कराए।
तकनीकी फायदे
1. हाई-रिज़ॉल्यूशन इमेजिंग: छोटे से छोटे बदलाव को पकड़ने की क्षमता।
2. तेज़ डेटा उपलब्धता: आपदा के तुरंत बाद ताज़ा तस्वीरें उपलब्ध कराना।
3. बड़े क्षेत्र का कवरेज: पहाड़ी इलाकों में भी आसानी से निगरानी।
4. लॉन्ग-टर्म आर्काइव: पहले और बाद की स्थिति की तुलना के लिए पुराने डेटा का उपयोग।
चुनौतियाँ
हालांकि Cartosat-2S डेटा बेहद उपयोगी है, लेकिन इसके साथ कुछ सीमाएँ भी हैं:
खराब मौसम या बादल तस्वीर की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं।
तुरंत विश्लेषण के लिए विशेषज्ञ टीम की आवश्यकता होती है।
कुछ मामलों में, ज़मीनी सर्वेक्षण के बिना संपूर्ण निष्कर्ष निकालना कठिन होता है।
भविष्य के लिए सिफारिशें
- आपदा-प्रवण क्षेत्रों में नियमित रूप से Cartosat-2S डेटा से निगरानी।
- स्थानीय प्रशासन और ISRO के बीच तेज़ डेटा-शेयरिंग व्यवस्था।
- सामुदायिक स्तर पर आपदा तैयारी प्रशिक्षण।
- GIS और AI आधारित आपदा पूर्वानुमान प्रणाली में उपग्रह डेटा
निष्कर्ष:
धराली-हर्षिल की विनाशकारी बाढ़ एक बार फिर हमें यह सिखाती है कि हिमालयी क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं का खतरा हमेशा बना रहता है, और जलवायु परिवर्तन के इस दौर में यह खतरा और बढ़ सकता है।
ऐसी परिस्थितियों में पारंपरिक राहत और बचाव व्यवस्था पर्याप्त नहीं होती। हमें ऐसी उन्नत तकनीकों की आवश्यकता होती है, जो तेज़ी से सटीक जानकारी उपलब्ध कराकर प्रतिक्रिया को और प्रभावी बना सकें।
इसी कड़ी में Cartosat-2S डेटा ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस उपग्रह डेटा ने कुछ ही घंटों में वह जानकारी उपलब्ध करा दी, जिसके लिए ज़मीनी सर्वेक्षण में कई दिन लग सकते थे।
उच्च-रिज़ॉल्यूशन तस्वीरों ने न केवल मलबे से ढके इलाकों, बह गई इमारतों और टूटी सड़कों को स्पष्ट रूप से दिखाया, बल्कि यह भी बताया कि नदी का मार्ग कहां और कैसे बदला है। यह जानकारी राहत दलों के लिए रणनीति बनाने में नींव का काम बनी।
Cartosat-2S डेटा का महत्व सिर्फ राहत कार्य तक सीमित नहीं है। इसके जरिए भविष्य की योजना भी बनाई जा सकती है—जैसे कि किस इलाके में पुनर्निर्माण सुरक्षित होगा, किन क्षेत्रों को उच्च जोखिम वाला मानकर वहां निर्माण पर रोक लगानी चाहिए, और किन स्थानों पर नदी तटबंध या ड्रेनेज व्यवस्था को मजबूत करना चाहिए। इस डेटा का लॉन्ग-टर्म आर्काइव भविष्य की आपदा-पूर्वानुमान प्रणाली में भी महत्वपूर्ण इनपुट दे सकता है।
यह घटना यह भी दर्शाती है कि अगर उपग्रह डेटा, GIS तकनीक, और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को एकीकृत किया जाए, तो आपदा प्रबंधन को पूरी तरह बदलकर रखा जा सकता है।
Cartosat-2S डेटा जैसे संसाधन, जब स्थानीय प्रशासन, वैज्ञानिक संस्थानों और आपदा प्रबंधन एजेंसियों के साथ रियल-टाइम में साझा किए जाएं, तो जान-माल के नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
अंततः, धराली-हर्षिल बाढ़ केवल एक त्रासदी नहीं थी, बल्कि यह एक सबक भी है—कि हमें तकनीक, जागरूकता, और समय पर निर्णय लेने की क्षमता को एक साथ लाकर भविष्य की आपदाओं के लिए तैयार रहना होगा। Cartosat-2S डेटा ने यह साबित कर दिया है कि अंतरिक्ष से प्राप्त सटीक और तेज़ जानकारी
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