Chagos Islands: 50 साल बाद क्यों झुका ब्रिटेन? जानिए पूरी सच्चाई
भूमिका: एक द्वीप, एक वादा, और 50 वर्षों की तड़प
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Toggleहिंद महासागर की गहराइयों में बसे कुछ छोटे-छोटे टापू — सुनने में जितने सरल, हकीकत में उतने ही जटिल। ये हैं चागोस द्वीपसमूह, जिनका नाम शायद आम नागरिक के लिए नया हो, लेकिन वैश्विक राजनीति और न्याय की बहसों में यह नाम दशकों से गूंज रहा है।
ब्रिटेन ने 50 साल पहले इस द्वीपसमूह को जबरन अपने अधीन कर लिया था। वहां के मूल निवासियों को उनकी ही ज़मीन से जबरदस्ती उजाड़ दिया गया, ताकि वहां एक सैन्य अड्डा बनाया जा सके।
अब 2024–2025 में, ब्रिटेन ने आखिरकार इसे मॉरीशस को लौटाने का वादा किया है। लेकिन ऐसा क्यों? इतने वर्षों तक इस छोटे से द्वीप को लेकर खींचतान क्यों चली? और इस वापसी के मायने क्या हैं?
आइए, इस सवाल का उत्तर सिर्फ इतिहास से नहीं, बल्कि इंसानियत, राजनीति और अंतरराष्ट्रीय न्याय के दस्तावेजों में खोजते हैं।
चागोस द्वीपसमूह क्या है? कहां है? और क्यों है यह इतना अहम?
चागोस द्वीपसमूह हिंद महासागर के मध्य भाग में स्थित है, जो मॉरीशस के उत्तर में लगभग 2200 किलोमीटर की दूरी पर है। यह द्वीपसमूह लगभग 60 छोटे-बड़े टापुओं का समूह है, जिसमें सबसे बड़ा द्वीप है – डिएगो गार्सिया।
इसका भौगोलिक महत्व काफी बड़ा है:
यह भारत, अफ्रीका, मिडिल ईस्ट और एशिया के बीच स्थित है।
यह समुद्री ट्रैफिक और व्यापार के लिए एक रणनीतिक स्थान है।
डिएगो गार्सिया में आज अमेरिका का एक सुपर एडवांस मिलिट्री बेस है, जहां से अमेरिका ने अफगानिस्तान, इराक और मध्य-पूर्व में कई अभियान चलाए।
इसी सैन्य और भौगोलिक रणनीतिकता ने चागोस को वैश्विक राजनीति का एक मोहरा बना दिया।
औपनिवेशिक छल: ब्रिटेन ने कैसे हथिया लिया चागोस
चागोस कभी फ्रांसीसी उपनिवेश मॉरीशस का हिस्सा था। लेकिन जब 1814 में ब्रिटेन ने फ्रांस से मॉरीशस पर कब्जा किया, तब चागोस भी उसके साथ आया। तब से लेकर 1965 तक, चागोस मॉरीशस का ही हिस्सा था।
लेकिन फिर आई “औपनिवेशिक साजिश“:
1965: ब्रिटेन ने मॉरीशस की स्वतंत्रता से पहले चाल चली
मॉरीशस को आज़ादी देने से कुछ महीने पहले ब्रिटेन ने चागोस द्वीपसमूह को ‘अलग’ कर दिया।
इसे British Indian Ocean Territory (BIOT) नाम से नया उपनिवेश घोषित किया गया।
यह काम संयुक्त राष्ट्र के उपनिवेश मुक्ती सिद्धांत (decolonization principle) के खिलाफ था, लेकिन पश्चिमी ताकतें चुप रहीं।
इसका कारण था — अमेरिका।
अमेरिका की भूमिका: डिएगो गार्सिया पर बना महाशक्ति का सैन्य किला
ब्रिटेन ने 1966 में चुपचाप अमेरिका से समझौता किया:
अमेरिका को डिएगो गार्सिया पर 50 वर्षों के लिए पट्टा दे दिया गया।
अमेरिका ने वहां पर एक सुपर-सीक्रेट नेवल और एयरबेस बनाया।
यह बेस आज भी रणनीतिक दृष्टि से बेहद अहम है – अमेरिकी नौसेना, ड्रोन मिशन, रेडार नेटवर्क सब यहीं से संचालित होते हैं।
ब्रिटेन को इसके बदले कोई आर्थिक लाभ नहीं मिला, लेकिन अमेरिका के साथ सामरिक गठजोड़ मजबूत हुआ।
पर इस सौदे की सबसे दर्दनाक कीमत चुकाई वहां के मूल निवासी ‘चागोसियन लोगों’ ने।
चागोसियन त्रासदी: जबरन विस्थापन और मौन पीड़ा
1968 से लेकर 1973 तक, ब्रिटेन और अमेरिका ने मिलकर एक अमानवीय काम किया:
1500 से अधिक मूल निवासियों को डिएगो गार्सिया और अन्य द्वीपों से बलपूर्वक बाहर निकाला गया।
इन्हें जहाजों में भरकर मॉरीशस, सेशेल्स और ब्रिटेन में बिना किसी पुनर्वास योजना के छोड़ दिया गया।
ना कोई घर, ना ज़मीन, ना रोज़गार – कई लोग गरीबी, मानसिक अवसाद और भुखमरी से जूझते रहे।
इन विस्थापित लोगों ने ‘Chagos Refugee Group’ बनाकर न्याय की मांग शुरू की। लेकिन लंबे समय तक न ब्रिटेन ने सुना, न अमेरिका ने।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवाद कैसे उभरा?
इस पूरे घटनाक्रम को जब मानवाधिकार संगठनों, पत्रकारों और कुछ नेताओं ने उठाया, तब धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय न्यायालयों और संयुक्त राष्ट्र का ध्यान इस पर गया।
कुछ अहम पड़ाव:
2001-2015: ब्रिटिश अदालतों में केस चले, लेकिन चागोसियों को राहत नहीं मिली।
2017: मॉरीशस ने मामला ICJ (International Court of Justice) में उठाया।
2019: ICJ ने कहा – “ब्रिटेन ने अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन किया है और उसे चागोस को मॉरीशस को वापस करना चाहिए।”
UNGA (संयुक्त राष्ट्र महासभा) ने भी 116 देशों के समर्थन से ब्रिटेन को द्वीप लौटाने की सिफारिश की।
लेकिन ब्रिटेन ने शुरुआत में इसे “महज एक सलाह” कहकर टाल दिया।
2019 के ICJ फैसले के बाद दुनिया की नजरें ब्रिटेन पर टिक गईं
2019 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने स्पष्ट शब्दों में कहा:
> “ब्रिटेन ने मॉरीशस की संप्रभुता का उल्लंघन किया है। चागोस द्वीपसमूह को वापस करना ही न्यायोचित है।”
यह फैसला सिर्फ एक कानूनी दिशा नहीं था, बल्कि यह एक नैतिक आदेश जैसा था, जिसे दुनिया भर ने सराहा।
इसके बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने भी वोटिंग करवाई:
116 देशों ने समर्थन में वोट दिया, सिर्फ 6 देश विरोध में थे (जैसे अमेरिका, इज़राइल, ऑस्ट्रेलिया)।
भारत, रूस, चीन, अफ्रीकी संघ जैसे देशों ने मॉरीशस के साथ खड़े होकर ब्रिटेन की निंदा की।
ब्रिटेन के लिए यह एक कूटनीतिक शर्मिंदगी बन गई थी, और उसे महसूस हुआ कि अब अंतरराष्ट्रीय दबाव को नजरअंदाज करना संभव नहीं।—
ब्रिटेन का रुख नरम क्यों हुआ?
कूटनीतिक अलगाव
2020–2022 के बीच कई कॉमनवेल्थ देशों ने ब्रिटेन से सवाल पूछने शुरू किए। यहां तक कि अफ्रीकी यूनियन और कैरिबियन देशों ने ब्रिटिश कॉलोनियल पॉलिसी पर खुलकर विरोध जताया।
मूल निवासियों के संघर्ष का असर
चागोसियन समुदाय ने लंदन, पेरिस, जेनेवा और न्यूयॉर्क में मानवाधिकार प्रदर्शन किए। उन्होंने ब्रिटेन की संसद और मीडिया में अपनी बात पहुंचाई।
भारत और अफ्रीकी देशों का समर्थन
भारत ने 2022 में संयुक्त राष्ट्र में स्पष्ट रूप से कहा:
> “चागोस मॉरीशस का हिस्सा है और औपनिवेशिक व्यवस्था अब इतिहास बननी चाहिए।”
यह भारत की उस नीति के अनुरूप था, जिसमें वह हमेशा औपनिवेशिक विरासत के विरुद्ध खड़ा रहा है।

ब्रिटेन-मॉरीशस बातचीत शुरू (2022–2024)
2022 के अंत में ब्रिटेन ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि वह “चागोस द्वीपसमूह के भविष्य पर मॉरीशस से बातचीत शुरू करेगा।”
बातचीत की प्रमुख शर्तें:
- मॉरीशस की संप्रभुता को मान्यता दी जाए।
अमेरिकी सैन्य बेस (डिएगो गार्सिया) को बने रहने दिया जाए, लेकिन मॉरीशस की अनुमति के साथ।
Chagos Islands लोगों की वापसी की प्रक्रिया शुरू की जाए।
2024 में ऐतिहासिक सहमति: ब्रिटेन का निर्णायक कदम
मार्च 2024 में ब्रिटेन और मॉरीशस के बीच गोपनीय बातचीत सफल रही। इसके तुरंत बाद दोनों देशों ने संयुक्त रूप से घोषणा की:
> “ब्रिटेन सहमत है कि चागोस द्वीपसमूह मॉरीशस का हिस्सा है। हम सौंपने की प्रक्रिया शुरू करेंगे।”
यह ऐलान ब्रिटिश उपनिवेशवाद के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ था।
एक ऐसा मोड़ जिसने दिखाया कि 50 वर्षों के अन्याय को देर से ही सही, पर सुधारा जा सकता है।
अमेरिका का रुख क्या रहा?
अमेरिका की चुप्पी लंबे समय तक रही, क्योंकि डिएगो गार्सिया उसके लिए रणनीतिक रूप से सबसे अहम विदेशी अड्डा है। लेकिन अब मॉरीशस ने भी कहा:
> “हमें सैन्य बेस से कोई दिक्कत नहीं है, जब तक वह हमारी संप्रभुता की इज़्ज़त करता है।”
यहां एक नई डिप्लोमेसी उभरी:
अमेरिका अब मॉरीशस के साथ नया रक्षा समझौता करना चाहता है।
डिएगो गार्सिया बना रहेगा, लेकिन मॉरीशस की सहमति और निगरानी में।
2025 की ताज़ा स्थिति क्या है?
मई 2025 तक:
ब्रिटेन और मॉरीशस ने एक साझा आयोग बनाया है जो Chagos Islands को सौंपने की प्रक्रियागत योजनाएं बना रहा है।
Chagos Islands विस्थापितों की वापसी के लिए योजना बन चुकी है। उन्हें मॉरीशस में स्थायी घर, ज़मीन और पुनर्वास पैकेज मिलेगा।
ब्रिटेन की संसद में कुछ विरोध हुए हैं, खासकर डिएगो गार्सिया को लेकर, लेकिन बहुमत ब्रिटेन की अंतरराष्ट्रीय छवि बचाने के पक्ष में है।
भारत की भूमिका: नैतिक समर्थन से आगे
भारत ने Chagos Islands के मुद्दे पर मॉरीशस के समर्थन में सैद्धांतिक भूमिका निभाई:
भारत ने UNGA में चागोस के समर्थन में वोट किया।
भारत और मॉरीशस के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध काफी गहरे हैं — मॉरीशस में बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग रहते हैं।
अब भारत मॉरीशस के साथ समुद्री सुरक्षा, पोर्ट डिवेलपमेंट, और शिक्षा सहयोग में निवेश बढ़ा रहा है, जिससे यह द्वीप इंडो-पैसिफिक रणनीति में अहम बने।
Chagos Islands लोगों के लिए क्या बदलेगा?
● वापसी का सपना अब सच्चाई बन रहा है
50 वर्षों तक अपने ही वतन से बेदखल रह चुके Chagos Islands लोगों के लिए यह निर्णय एक भावनात्मक जीत है।
अब उन्हें:
अपने पैतृक द्वीपों पर लौटने की अनुमति मिल रही है,
पुनर्वास और पुनर्निर्माण के लिए सरकारें आर्थिक सहायता दे रही हैं,
अपना जीवन, संस्कृति और पहचान दोबारा हासिल करने का अवसर मिल रहा है।
डिएगो गार्सिया और दूसरे द्वीपों पर अब नए स्कूल, अस्पताल, घर और समुदाय केंद्र बनने की योजनाएं हैं।
क्या यह फैसला पूरी तरह से मानवीय है या सिर्फ रणनीतिक?
यह सवाल ज़रूरी है क्योंकि:
कुछ लोगों का मानना है कि ब्रिटेन ने केवल अंतरराष्ट्रीय दबाव में आकर यह कदम उठाया,
जबकि Chagos Islands समुदाय इसे एक संघर्ष से प्राप्त मानवीय और नैतिक जीत मानता है।
सच्चाई यह है कि दोनों बातें समान रूप से सही हैं:
यह संघर्ष मानवाधिकारों की ताकत दिखाता है,
और साथ ही यह बताता है कि कानून, लोकतंत्र और नैतिकता की भूमिका अब रणनीति से बड़ी हो रही है।
उपनिवेशवाद के अंत की शुरुआत?
● दुनिया भर में जागरूकता बढ़ी है
ब्रिटेन, फ्रांस, अमेरिका जैसे देश जो आज भी कुछ द्वीपों पर “ट्रेडिशनल कंट्रोल” बनाए हुए हैं, उन्हें अब यह समझ आ रहा है कि:
> “इतिहास का बोझ अब नहीं उठाया जा सकता। लोगों को उनका हक़ देना ही पड़ेगा।”
Chagos Islands का फैसला दुनिया के कई अनसुलझे उपनिवेशी मुद्दों को फिर से उजागर कर सकता है, जैसे:
फॉकलैंड्स द्वीप विवाद (U.K. – अर्जेंटीना)
न्यू कैलेडोनिया (फ्रांस – स्वदेशी आंदोलन)
ग्वाम (U.S. – स्वदेशी पहचान)
अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव
Global South की जीत
इस फैसले ने यह दिखा दिया कि अफ्रीकी, एशियाई और कैरिबियन देशों का गठबंधन अब केवल भावनात्मक समूह नहीं बल्कि कूटनीतिक ताकत बन चुका है।
भारत, दक्षिण अफ्रीका, मॉरीशस, घाना जैसे देशों की साझा आवाज़ ने ब्रिटेन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर झुकने पर मजबूर किया
यूनाइटेड नेशंस की भूमिका और पुनर्विश्वास
यह केस संयुक्त राष्ट्र और ICJ जैसी संस्थाओं की सार्थकता को सिद्ध करता है। बहुत बार कहा जाता था कि:
> “UN सिर्फ दिखावटी संस्था है।”
लेकिन Chagos Islands केस ने सिद्ध कर दिया:
>“अगर देश एकजुट हों, तो अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी न्याय दिला सकती हैं।”

भारत के लिए क्या मतलब रखता है ये फैसला?
● ऐतिहासिक, नैतिक और सामरिक दृष्टिकोण से भारत की भूमिका अहम रही:
- भारत ने हमेशा उपनिवेशवाद के विरुद्ध आवाज़ उठाई।
मॉरीशस के साथ सांस्कृतिक, आर्थिक और रणनीतिक संबंध भारत की नीति का हिस्सा हैं।
अब Chagos Islands की स्थिति स्पष्ट होने से भारत की हिंद महासागर नीति और SAGAR विजन को बल मिला है।
इससे भारत:
मॉरीशस और अन्य अफ्रीकी द्वीप देशों के साथ साझा नौसैनिक अभ्यास, पोर्ट निर्माण और रक्षा समझौते कर सकता है।
डिएगो गार्सिया का क्या भविष्य होगा?
● अमेरिका की मौजूदगी पर मॉरीशस की नज़र
मॉरीशस ने साफ कहा:
> “हम अमेरिकी बेस को हटाना नहीं चाहते, लेकिन अब हम उसकी वैधता का हिस्सा बनेंगे।”
इसका मतलब है:
अमेरिका को अब मॉरीशस के साथ समझौता करना होगा, न कि केवल ब्रिटेन के साथ।
चेक एंड बैलेंस की स्थिति बनेगी जिससे अमेरिकी सेना की गतिविधियों पर निगरानी संभव हो सकेगी।
यह हिंद महासागर क्षेत्र में एक संतुलित शक्ति समीकरण बनाने में मदद करेगा, जिसमें भारत भी एक मुख्य खिलाड़ी बन सकता है।
क्या यह ‘एक केस’ है या नया उदाहरण?
यह सवाल सभी नीति-निर्माताओं के लिए विचारणीय है।
Chagos Islands का केस क्या दिखाता है:
आवाज़ उठाने से बदलाव संभव है।
कानूनी और नैतिक तर्क कूटनीति को मात दे सकते हैं।
उपनिवेशवादी सोच को दुनिया में अब जगह नहीं है।
ऐसे कई द्वीप या इलाके हैं जहाँ इसी तरह के विवाद चल रहे हैं, और अब वहां भी इस फैसले का असर दिख सकता है।
निष्कर्ष: Chagos Islands – इतिहास की गलती का अंत और न्याय की शुरुआत
Chagos Islands की वापसी केवल एक भूभाग के हस्तांतरण की घटना नहीं है,
बल्कि यह है एक ऐतिहासिक अन्याय को ठीक करने की पहल –
जहां 50 वर्षों तक उजाड़े गए लोगों को अपना घर, अपनी धरती और अपनी पहचान लौटाई गई।
इस फैसले ने यह सिद्ध किया कि:
उपनिवेशवाद अब इतिहास की कब्र में बंद हो चुका है,
मानवाधिकार, आत्मनिर्णय और न्याय जैसे मूल्य आज के अंतरराष्ट्रीय संबंधों की नींव बन चुके हैं,
और सबसे बड़ी बात – जब जनता की आवाज़ और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं एक साथ खड़ी होती हैं,
तो कोई भी ताकत सच को रोक नहीं सकती।
ब्रिटेन का यह कदम न सिर्फ मॉरीशस के लिए गर्व का पल है,
बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक प्रेरणा का प्रतीक है —
कि चाहे कितना भी समय लगे, न्याय कभी हारता नहीं।
अब चागोसियन समुदाय को:
पुनर्वास की नई आशा,
संस्कृति को पुनर्जीवित करने का अवसर,
और एक सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार मिला है।
इस फैसले से यह भी स्पष्ट हो गया कि
सत्ता नहीं, बल्कि नैतिकता ही अंत में विजयी होती है।
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