Delhi Double-Decker Viaduct: Bhajanpura से Yamuna Vihar तक का सबसे शानदार ट्रांसपोर्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर!
प्रस्तावना – दिल्ली की सड़कों से आसमान तक की यात्रा
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Toggleदिल्ली – देश की राजधानी, सपनों की नगरी, और विकास की दौड़ में अग्रणी। इस शहर की पहचान सिर्फ लाल किले, इंडिया गेट और संसद भवन से नहीं है,
बल्कि यहाँ की मेट्रो भी एक नया चेहरा है – जो हर दिन करोड़ों यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाती है।
लेकिन दिल्ली की बढ़ती आबादी और यातायात के दबाव के बीच, अब सड़कों के ऊपर भी सड़कें बनने लगी हैं – और इसी विकास यात्रा में शामिल है दिल्ली का पहला डबल-डेकर वायाडक्ट, जो भजनपुरा से यमुना विहार के बीच बन रहा है।
यह कोई आम पुल नहीं है। यह एक ऐसी संरचना है जहाँ नीचे फ्लाईओवर और ऊपर मेट्रो दौड़ेगी। यह केवल तकनीक का चमत्कार नहीं, बल्कि शहर के भविष्य की ज़रूरत है।
इस परियोजना की उत्पत्ति – क्यों ज़रूरत पड़ी डबल-डेकर की?
दिल्ली के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र, जैसे कि भजनपुरा, यमुना विहार, खजूरी खास, सोनिया विहार जैसे इलाके, वर्षों से तेज़ और सुलभ पब्लिक ट्रांसपोर्ट की मांग कर रहे थे। यहां की सड़कें हमेशा जाम से जूझती थीं, और मेट्रो की दूरी लोगों के लिए एक बड़ी समस्या थी।
दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (DMRC) ने इस चुनौती को एक अवसर में बदला। जब माजलिस पार्क से मौजपुर तक पिंक लाइन मेट्रो का विस्तार प्रस्तावित हुआ, तो DMRC ने सोचा – क्यों न एक ही आधार (पिलर) पर दोनों संरचनाएं बनाई जाएं – नीचे सड़क और ऊपर मेट्रो?
इस तरह जन्म हुआ दिल्ली के पहले डबल-डेकर वायाडक्ट का।
निर्माण की कहानी – ज़मीन से 18.5 मीटर की ऊँचाई तक
Delhi Double-Decker वायाडक्ट की लंबाई है लगभग 1.4 किलोमीटर, जो भजनपुरा से यमुना विहार तक फैला है। इसमें दो अलग-अलग डेक हैं:
निचला डेक – यहाँ बनेगा एक छह लेन का फ्लाईओवर। यानी सामान्य गाड़ियों के लिए एक नया रास्ता।
ऊपरी डेक – यहाँ दौड़ेगी पिंक लाइन की मेट्रो, जो मौजपुर से माजलिस पार्क को जोड़ेगी।
हर पिलर की ऊँचाई लगभग 18.5 मीटर है, जो एक पाँच मंजिला इमारत के बराबर है। सोचिए, जब आप नीचे सड़क पर चलेंगे, ऊपर मेट्रो सरपट दौड़ती नज़र आएगी!
तकनीकी कमाल – कैसे एक ही पिलर पर दो दुनिया
यह परियोजना सिर्फ विशाल नहीं, बल्कि बेहद स्मार्ट है। एक ही पिलर पर दोनों डेक्स का निर्माण करना आसान नहीं होता। इसके लिए बारीकी से इंजीनियरिंग की जाती है।
पिलर के बीच का अंतर 25-30 मीटर रखा गया है।
पिलर्स को स्टील रीइन्फोर्समेंट और हाई स्ट्रेंथ कंक्रीट से तैयार किया गया है।
ऊपर मेट्रो ट्रैक बिछाने के लिए विशेष यू-गर्डर तकनीक का इस्तेमाल किया गया।
इससे न केवल जगह की बचत होती है, बल्कि निर्माण लागत भी काफी घटती है।

बाधाएं और समाधान – हर विकास की राह में कांटे भी होते हैं
जब किसी महान काम की नींव रखी जाती है, तो समस्याएँ आना स्वाभाविक है। इस परियोजना को भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा:
कोविड-19 महामारी ने निर्माण में लंबा विराम लगाया।
पर्यावरणीय स्वीकृति (जैसे पेड़ कटाई की अनुमति) मिलने में देरी हुई।
सड़क पर ट्रैफिक को डाइवर्ट करके निर्माण करना भी आसान नहीं था।
पर DMRC की टीम ने हिम्मत नहीं हारी। स्मार्ट प्लानिंग, नाइट शिफ्ट वर्क और पर्यावरण के अनुकूल निर्माण तकनीकों का उपयोग करके इन बाधाओं को पार किया गया।
फायदे – सिर्फ पुल नहीं, दिल्ली के भविष्य की नींव
Delhi Double-Decker वायाडक्ट केवल एक इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक बदलाव है। इसके फायदे अनेक हैं:
1. यातायात का दबाव कम होगा
वजीराबाद रोड, जो हमेशा जाम से जूझती है, अब राहत की सांस ले पाएगी।
2. तेज़ और कनेक्टेड यात्रा
मेट्रो के जरिए पूर्वी दिल्ली सीधे रिंग रोड से जुड़ेगी। इससे मयूर विहार, विवेक विहार जैसे क्षेत्रों तक पहुंचना आसान होगा।
3. समय और ईंधन की बचत
जहाँ पहले 45 मिनट लगते थे, वहाँ अब मात्र 15 मिनट में सफर संभव होगा।
4. पर्यावरण के अनुकूल
कम भूमि उपयोग, कम कार्बन उत्सर्जन, और ज्यादा हरियाली के लिए जगह बची है।
सरकार और प्रशासन की भूमिका
दिल्ली सरकार और केंद्र, दोनों ने इस परियोजना में सक्रिय योगदान दिया। लगभग ₹220 करोड़ की लागत से यह पुल बन रहा है। Delhi Double-Decker निर्माण से ₹180 करोड़ तक की बचत का अनुमान है।
फेज-IV में डबल-डेकर वायाडक्ट की अन्य योजनाएँ
दिल्ली मेट्रो का यह पहला Delhi Double-Decker वायाडक्ट एक प्रायोगिक सफलता के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन DMRC की दृष्टि इससे कहीं आगे की है।
DMRC के अनुसार, फेज-IV में कई और स्थानों पर डबल-डेकर वायाडक्ट बनाने की योजना है, जिनमें से प्रमुख हैं:
- दिलशाद गार्डन से लोनी बॉर्डर तक प्रस्तावित विस्तार।
बुराड़ी से इंद्रप्रस्थ कॉरिडोर में कुछ हिस्से डबल-डेकर हो सकते हैं।
रोहिणी सेक्टर से बाहरी रिंग रोड तक संभावनाएं तलाशी जा रही हैं।
इस तरह के वायाडक्ट न केवल लागत-कुशल हैं, बल्कि भविष्य की दिल्ली को एक नया ट्रांसपोर्ट मॉडल भी प्रदान करते हैं।
DMRC की रणनीति – ‘कम ज़मीन, ज़्यादा सुविधा’
DMRC ने दिल्ली की भूमि की सीमित उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए एक बहुत ही स्मार्ट और लचीली रणनीति अपनाई है:
एक ही संरचना, दो उपयोग – जगह कम लगे, पर सुविधा दोगुनी हो।
कम अधिग्रहण – निजी संपत्ति या दुकानें हटाने की ज़रूरत नहीं पड़ती।
विकास + हरियाली – जगह बचाने से हरियाली को भी संरक्षण मिलता है।
यह मॉडल सिर्फ दिल्ली के लिए नहीं, बल्कि भारत के अन्य महानगरों – जैसे मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद – के लिए भी उदाहरण बन सकता है।
सुरक्षा और संरचना – यात्रियों की जान से बढ़कर कुछ नहीं
एक डबल-डेकर संरचना में सुरक्षा सुनिश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि एक ही समय में दो अलग-अलग ट्रैफिक सिस्टम (मेट्रो और सड़क) का संचालन होता है।
कुछ प्रमुख सुरक्षा उपाय:
सेन्सर युक्त पिलर्स – कंपन, तापमान और भार पर नज़र रखने के लिए सेंसर लगे हैं।
भूकंपरोधी डिज़ाइन – इसे भूकंप की तीव्रता 8 रिक्टर स्केल तक सहने योग्य बनाया गया है।
आग और धुएँ से सुरक्षा – मेट्रो ट्रैक पर खास अग्नि-निरोधक सामग्री का उपयोग किया गया है।
रेडार और निगरानी कैमरे – पूरी संरचना पर नज़र रखने के लिए 24×7 सीसीटीवी और ड्रोन सर्वे प्रणाली।
इन सबके अलावा DMRC ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों का पालन करते हुए निर्माण कराया है।
रोजगार और आर्थिक असर – सिर्फ इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं, रोज़गार का पुल
इस परियोजना के कारण न केवल यातायात सुविधा बढ़ी, बल्कि हज़ारों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार भी मिला। इंजीनियर, मज़दूर, आर्किटेक्ट, सुरक्षा गार्ड, सप्लाई चेन वर्कर – हर किसी को इससे रोज़गार मिला।
आर्थिक लाभ:
स्थानीय व्यवसायों में बढ़ोतरी (खासकर भजनपुरा और यमुना विहार क्षेत्र में)।
प्रॉपर्टी वैल्यू में 20-30% की वृद्धि।
यात्रा समय कम होने से अधिक उत्पादकता।
वैश्विक मान्यता – दुनिया भी सीख रही है दिल्ली से
दिल्ली का यह डबल-डेकर वायाडक्ट सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी ध्यान आकर्षित कर रहा है। जापान, यूके और UAE की मेट्रो एजेंसियों ने DMRC से इस परियोजना की डिटेल रिपोर्ट मांगी है, जिससे वे अपने देशों में इसे दोहराने का प्रयास करें।
यह गर्व की बात है कि भारत अब मेट्रो तकनीक का “नॉलेज एक्सपोर्टर” बन रहा है।
भविष्य की सोच – दिल्ली 2047
स्वतंत्रता के 100 साल पूरे होने पर जब भारत 2047 में अमृत काल मनाएगा, तो दिल्ली की तस्वीर बदल चुकी होगी। इस तरह के स्मार्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स की मदद से:
हर इलाका मेट्रो से जुड़ा होगा।
दिल्ली के 70% यात्री पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करेंगे।
पर्यावरणीय दबाव कम होगा और हरियाली बढ़ेगी।
Delhi Double-Decker वायाडक्ट सिर्फ एक शुरुआत है।
Delhi Double-Decker Viaduct FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
Q1. Delhi Double-Decker वायाडक्ट कहाँ बना है?
उत्तर: यह वायाडक्ट भजनपुरा से यमुना विहार के बीच बनाया गया है और यह दिल्ली मेट्रो की मौजपुर से मजलिस पार्क कॉरिडोर का हिस्सा है।
Q2. Delhi Double-Decker वायाडक्ट क्या होता है?
उत्तर: यह एक ऐसी संरचना होती है जिसमें नीचे की मंजिल पर सड़क मार्ग (बस/वाहन) और ऊपर की मंजिल पर मेट्रो ट्रैक होता है। इससे भूमि की बचत होती है और दो परिवहन साधन एक ही पिलर सिस्टम पर चल सकते हैं।

Q3. इस वायाडक्ट की कुल लंबाई कितनी है?
उत्तर: Delhi Double-Decker वायाडक्ट लगभग 1.4 किलोमीटर लंबा है।
Q4. इस परियोजना की क्या खासियत है?
उत्तर:
पहली बार दिल्ली में Delhi Double-Decker निर्माण हुआ है
दो लेवल पर ट्रैफिक का संचालन होगा
सीमित जगह में अधिकतम उपयोग
पर्यावरणीय दृष्टि से भी अनुकूल
Q5. इस प्रोजेक्ट से किसे सबसे ज़्यादा फायदा होगा?
उत्तर:
स्थानीय निवासी: तेज़ ट्रैवल सुविधा
व्यापारी वर्ग: व्यापार में बढ़ोतरी
यात्री: ट्रैफिक से मुक्ति
स्कूल/कॉलेज छात्र: समय की बचत
Q6. क्या यह प्रोजेक्ट पर्यावरण के लिए सही है?
उत्तर: हाँ, यह परियोजना पर्यावरण के लिए अनुकूल है क्योंकि इससे कम भूमि अधिग्रहण हुआ है, हरियाली बची है और मेट्रो जैसे सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा मिला है जिससे निजी वाहन घटेंगे।
Q7. मेट्रो और सड़क पर एक साथ संचालन कितना सुरक्षित है?
उत्तर: DMRC ने इस संरचना को अत्याधुनिक सुरक्षा मानकों के अनुसार डिज़ाइन किया है। इसमें भूकंपरोधी पिलर्स, सेंसर तकनीक, अग्नि सुरक्षा, और 24×7 निगरानी की व्यवस्था है।
Q8. दिल्ली मेट्रो का कौन-सा फेज़ है ये प्रोजेक्ट?
उत्तर: यह फेज-IV का हिस्सा है, जो दिल्ली मेट्रो का विस्तार चरण है।
Q9. क्या भविष्य में ऐसे और Delhi Double-Decker वायाडक्ट बनाए जाएंगे?
उत्तर: हाँ, DMRC की योजना है कि फेज-IV के अन्य रूट्स जैसे बुराड़ी, लोनी बॉर्डर, और रोहिणी में भी Delhi Double-Decker संरचनाओं का निर्माण किया जाए।
Q10. इस निर्माण से कितने लोगों को रोज़गार मिला?
उत्तर: प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हज़ारों लोगों को रोजगार मिला – इंजीनियर, मज़दूर, सामग्री आपूर्तिकर्ता, और स्थानीय व्यापारी शामिल हैं।
Q11. इस प्रोजेक्ट को बनने में कितना समय लगा?
उत्तर: इस वायाडक्ट का निर्माण लगभग 3 वर्षों में पूरा हुआ, कोविड महामारी की चुनौतियों के बावजूद।
Q12. Delhi Double-Decker प्रोजेक्ट की अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया क्या रही?
उत्तर: जापान, UAE और ब्रिटेन जैसी देशों की मेट्रो एजेंसियों ने DMRC से इस मॉडल की जानकारी ली है ताकि इसे अपने देश में लागू कर सकें।
Q13. क्या यह आम आदमी के लिए भी उपयोगी है?
उत्तर: बिल्कुल! यह आम लोगों के लिए ही बनाया गया है – कम समय में, सस्ता, सुरक्षित और प्रदूषण-मुक्त यात्रा प्रदान करना इसका प्रमुख उद्देश्य है।
Q14. क्या इस पर केवल मेट्रो चलेगी या अन्य साधन भी होंगे?
उत्तर: Delhi Double-Decker का ऊपरी हिस्सा मेट्रो के लिए और नीचे का हिस्सा BRT (Bus Rapid Transit) तथा सामान्य सड़क ट्रैफिक के लिए है।
निष्कर्ष: प्रगति की नई परिभाषा – Delhi Double-Decker
भजनपुरा और यमुना विहार के बीच बना Delhi Double-Decker वायाडक्ट केवल एक इंजीनियरिंग चमत्कार नहीं है, बल्कि यह राजधानी के तेजी से बदलते शहरी परिवहन और विकास की जीती-जागती मिसाल है।
सीमित जगह में अधिकतम उपयोग, ट्रैफिक की चुनौती का समाधान, पर्यावरण की सुरक्षा और तकनीकी नवाचार – यह प्रोजेक्ट हर दृष्टिकोण से एक आदर्श उदाहरण है।
यह निर्माण सिर्फ सीमेंट और स्टील की संरचना नहीं, बल्कि करोड़ों दिल्लीवासियों की उम्मीदों का पुल है – जो उन्हें तेज़, सुरक्षित और सुगम यात्रा की ओर ले जाता है।
DMRC और दिल्ली सरकार की यह पहल बताती है कि जब नीयत साफ़ हो और सोच दूरदर्शी हो, तो कोई भी चुनौती बाधा नहीं बन सकती।
आज Delhi Double-Decker वायाडक्ट भविष्य की दिशा में एक ठोस कदम है – जो देश के अन्य शहरों के लिए भी एक मार्गदर्शक बन सकता है।
इस परियोजना ने यह साबित कर दिया है कि भारत अब न केवल विश्वस्तरीय संरचनाएं बना सकता है, बल्कि उन्हें समयबद्ध और जनहित में पूरा भी कर सकता है।
इस ऐतिहासिक कदम के साथ, दिल्ली ने एक बार फिर अपने आप को आधुनिकता, नवाचार और विकास की रफ्तार से जोड़ लिया है।
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