El Nino: रहस्य, प्रभाव और समाधान – कैसे यह वैश्विक जलवायु को चुपचाप बदल देता है?
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Toggleधरती का मौसम जितना सुंदर दिखता है, उतना ही जटिल भी है। समुद्र की लहरों से लेकर आसमान के बादलों तक, सब कुछ एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। इन सारे प्राकृतिक सिस्टमों में एक नाम बहुत खास है — El Nino। यह कोई साधारण जलवायु घटना नहीं है; यह ऐसा चुपचाप आने वाला परिवर्तन है, जो कभी-कभी पूरी दुनिया की मौसम प्रणाली को हिला देता है।

El Nino क्या है?
El Nino दरअसल प्रशांत महासागर की एक समुद्री घटन है, जिसमें समुद्र की सतह का तापमान विशेष रूप से भूमध्यीय (equatorial) क्षेत्र में सामान्य से अधिक हो जाता है।
यह स्थिति 2 से 7 वर्षों के अंतराल पर बनती है और कई महीनों तक बनी रहती है। इस घटना के कारण विश्वभर के मौसम चक्र प्रभावित होते हैं — कहीं सूखा पड़ता है, तो कहीं बाढ़ आती है।
नाम का अर्थ और इतिहास
“El Nino” एक स्पेनी शब्द है, जिसका अर्थ होता है “बालक” या “ईसा मसीह का बाल रूप”। इसे यह नाम पेरू के मछुआरों ने इसलिए दिया क्योंकि यह घटना अक्सर क्रिसमस के आसपास दिखाई देती है।
उन्हें यह अनुभव था कि हर कुछ वर्षों में एक बार मछलियों की संख्या अचानक कम हो जाती थी और समुद्र का पानी गर्म हो जाता था। बाद में वैज्ञानिकों ने इसे गहराई से समझा और इसे एक वैश्विक जलवायु घटना के रूप में पहचाना।
El Nino की प्रक्रिया को समझना
प्रशांत महासागर का भूमध्यीय क्षेत्र, विशेष रूप से दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच का क्षेत्र, सामान्य तौर पर व्यापारिक हवाओं (trade winds) से प्रभावित होता है। ये हवाएं गर्म पानी को पश्चिम की ओर धकेलती हैं, जिससे ऑस्ट्रेलिया की ओर बारिश और दक्षिण अमेरिका की ओर ठंडा, सूखा वातावरण बनता है।
लेकिन जब El Nino की स्थिति आती है:
व्यापारिक हवाएं कमजोर हो जाती हैं।
गर्म पानी वापस पूर्व की ओर यानी दक्षिण अमेरिका की ओर लौट आता है।
दक्षिण अमेरिका में बारिश और बाढ़ की स्थिति बनती है, जबकि ऑस्ट्रेलिया और भारत जैसे क्षेत्रों में सूखा पड़ता है।
El Nino के कारण
वैज्ञानिक अब भी एल-नीनो के सटीक कारणों को पूरी तरह नहीं समझ पाए हैं, लेकिन माना जाता है कि:
- समुद्र और वायुमंडल के बीच असामान्य अंतःक्रियाएं इसकी जड़ में हैं।
- कभी-कभी पृथ्वी की घूर्णन गति, सौर गतिविधियां, और महासागरीय धाराएं भी इसमें भूमिका निभाती हैं।
भारत पर El Nino का प्रभाव
भारत एक कृषि-प्रधान देश है, जहां खेती का बड़ा हिस्सा मानसून की वर्षा पर निर्भर करता है। El Nino का भारत पर असर सबसे अधिक मानसून के दौरान ही देखने को मिलता है।
1. कमजोर दक्षिण-पश्चिम मानसून
जब El Nino सक्रिय होता है, तो व्यापारिक हवाएं कमजोर पड़ जाती हैं और इसके चलते अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से आने वाली नमी भारत तक ठीक से नहीं पहुंच पाती। इसका सीधा असर मानसून की बारिश पर पड़ता है — जो सामान्य से काफी कम हो जाती है। कई बार तो यह स्थिति सूखे में बदल जाती है।
2. सूखा और जल संकट
कम बारिश का मतलब है — सिंचाई के लिए पानी की कमी, नदियों और जलाशयों का सूखना, और जल संकट।
गांवों में कुएं, तालाब, और हैंडपंप सूखने लगते हैं। शहरों में भी पानी की कटौती शुरू हो जाती है।
3. कृषि उत्पादन में गिरावट
El Nino के वर्षों में भारत में प्रमुख खरीफ फसलें जैसे कि:
धान (चावल),
मक्का,
सोयाबीन,
दालें
का उत्पादन घट जाता है। क्योंकि ये फसलें वर्षा पर निर्भर होती हैं, सूखा इनकी पैदावार पर सीधा असर डालता है।
4. किसानों की आर्थिक स्थिति पर असर
जब फसल खराब होती है, तो किसान का कर्ज बढ़ जाता है।
उनके पास बीज, खाद, कीटनाशक, और सिंचाई पर खर्च करने के लिए धन नहीं होता।
कई बार यह स्थिति किसान आत्महत्याओं तक पहुंच जाती है, जो देश के लिए बहुत दुखद है।
वैश्विक स्तर पर El Nino का प्रभाव
El Nino सिर्फ भारत ही नहीं, पूरी दुनिया को प्रभावित करता है। हर महाद्वीप पर इसका असर अलग-अलग तरीके से होता है।
1. दक्षिण अमेरिका
El Nino के दौरान पेरू, इक्वाडोर जैसे देशों में भारी वर्षा और बाढ़ आती है। निचले इलाकों में लोग बेघर हो जाते हैं, मछलियों की संख्या घट जाती है, और समुद्र के किनारे के शहरों में तबाही मचती है।
2. ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया
यहां El Nino की वजह से बारिश कम होती है और सूखा फैलता है। जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ जाती हैं, पेड़-पौधे और वन्यजीव बुरी तरह प्रभावित होते हैं।
3. अफ्रीका
El Nino के कारण अफ्रीका के कई हिस्सों में खाद्यान्न संकट गहराता है। किसानों की फसलें खराब हो जाती हैं और भुखमरी की स्थिति बनती है।
4. उत्तरी अमेरिका
यहां El Nino कभी-कभी सर्दी को असामान्य रूप से गर्म कर देता है, जिससे बर्फबारी कम होती है। वहीं, कहीं-कहीं पर भारी वर्षा भी देखने को मिलती है।
स्वास्थ्य पर असर
El Nino सिर्फ मौसम नहीं बदलता, यह बीमारियां भी बढ़ाता है।
1. पानी से फैलने वाली बीमारियां
भारी बारिश और बाढ़ के कारण दूषित पानी फैलता है और इसके साथ हैजा, टाइफाइड, डायरिया जैसी बीमारियों का प्रकोप होता है।
2. मच्छरों से फैलने वाली बीमारियां
जब बाढ़ के बाद पानी रुकता है, तो मच्छर तेजी से पनपते हैं और डेंगू, मलेरिया जैसी बीमारियां फैलती हैं।
3. मानसिक स्वास्थ्य
सूखा और फसल की बर्बादी किसानों में मानसिक तनाव और अवसाद को जन्म देती है, जिससे आत्महत्याएं भी होती हैं।
El Nino और ला-नीना: बहनें लेकिन उल्टी प्रवृत्तियाँ
El Nino में समुद्र का तापमान बढ़ता है, बारिश कम होती है।
ला-नीना में समुद्र का तापमान सामान्य से कम होता है, और बारिश अधिक होती है।
ला-नीना भारत के लिए लाभकारी मानी जाती है क्योंकि यह मानसून को मजबूत करती है, जबकि एल-नीनो नुकसानदेह होता है।
वैज्ञानिक निगरानी और पूर्वानुमान प्रणाली
El Nino जैसी वैश्विक जलवायु घटनाओं की निगरानी और अनुमान लगाना बहुत जरूरी है, ताकि सरकारें और किसान पहले से तैयार रह सकें। इसके लिए विभिन्न देशों और एजेंसियों ने आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।
1. उपग्रह और सेंसर का उपयोग
आज के दौर में समुद्र की सतह के तापमान को मापने के लिए सैटेलाइट्स और समुद्री बुआ (buoys) लगाए गए हैं। ये उपकरण निरंतर डेटा भेजते हैं, जिससे समुद्र की स्थिति की निगरानी की जाती है।
- प्रमुख संस्थाएँ जो El Nino पर नजर रखती हैं:
NOAA (अमेरिका) – National Oceanic and Atmospheric Administration
IMD (भारत) – India Meteorological Department
WMO (विश्व मौसम संगठन) – World Meteorological Organization
ये संस्थाएं हर महीने अपडेट देती हैं कि El Nino की स्थिति बन रही है या कमजोर पड़ रही है।
3. मॉडल और पूर्वानुमान तकनीक
आजकल कंप्यूटर सिमुलेशन मॉडल जैसे CFSv2, ECMWF आदि की मदद से आने वाले महीनों में एल-नीनो की संभावना और प्रभाव का पूर्वानुमान लगाया जाता है।

भारत में तैयारी और सरकारी प्रयास
El Nino के प्रभाव से निपटने के लिए भारत सरकार और राज्य सरकारें मिलकर विभिन्न योजनाएं बनाती हैं, ताकि कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नुकसान से बचाया जा सके।
1. मानसून का पूर्वानुमान और चेतावनी प्रणाली
भारतीय मौसम विभाग (IMD) हर साल जून से पहले मानसून का अनुमान जारी करता है। अगर एल-नीनो की स्थिति बनती है, तो अलर्ट भी जारी किया जाता है।
2. सूखा राहत योजनाएं
राज्य सरकारें सूखा प्रभावित जिलों में:
पानी के टैंकर भेजती हैं,
कृषि ऋण माफ करती हैं,
और रोजगार के लिए MGNREGA जैसी योजनाओं को सक्रिय करती हैं।
3. फसल बीमा योजना
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसान को फसल नुकसान पर मुआवजा मिलता है, जिससे वह दोबारा खेती के लिए तैयार हो सके।
कृषि में अनुकूलन रणनीतियाँ
El Nino के प्रभाव से किसानों को सुरक्षित रखने के लिए अनुकूलन (adaptation) बेहद जरूरी है। इसके लिए वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों ने कई उपाय सुझाए हैं:
1. सूखा-प्रतिरोधी बीजों का प्रयोग
ऐसे बीज विकसित किए जा रहे हैं जो कम पानी में भी अच्छी पैदावार दे सकें, जैसे- बाजरा, मूंग, उड़द आदि।
2. जल संरक्षण तकनीक
टपक सिंचाई (drip irrigation)
मल्चिंग तकनीक
खेतों में पानी रोकने के लिए छोटे तालाब और गड्ढे
3. वैकल्पिक फसलें अपनाना
किसान को वर्षा पर कम निर्भर रहने वाली फसलें चुननी चाहिए। इससे जोखिम कम होगा और आय में स्थिरता बनी रहेगी।
जलवायु परिवर्तन और El Nino का रिश्ता
हाल के वर्षों में वैज्ञानिकों ने देखा है कि मानवजनित जलवायु परिवर्तन का असर अब El Nino जैसी प्राकृतिक घटनाओं पर भी पड़ रहा है।
1. एल-नीनो की तीव्रता में वृद्धि
आजकल एल-नीनो की घटनाएं अधिक तीव्र और लम्बी होती जा रही हैं। इसका कारण पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ना है।
2. मौसम का असामान्य व्यवहार
जहां पहले एल-नीनो का असर कुछ खास क्षेत्रों तक सीमित रहता था, अब इसका प्रभाव कहीं अधिक क्षेत्रों तक फैल रहा है।
भविष्य में एल-नीनो से निपटने की रणनीति
जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन की समस्या गंभीर होती जा रही है, एल-नीनो जैसी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता भी बदल रही है। ऐसे में भविष्य के लिए दीर्घकालिक रणनीति बनाना जरूरी हो गया है।
1. जलवायु-संवेदनशील नीतियां बनाना
सरकारों को ऐसी नीतियां बनानी होंगी जो:
मौसम की अनिश्चितता को ध्यान में रखते हुए कृषि योजना बनाएं।
वर्षा पर निर्भरता कम करें।
आपदा प्रबंधन को सशक्त करें।
2. शिक्षा और जनजागरूकता
ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में जलवायु के बदलाव और एल-नीनो के प्रभाव के बारे में शिक्षा और प्रशिक्षण देना बेहद जरूरी है। इससे लोग सतर्क रहेंगे और उचित निर्णय ले सकेंगे।
3. तकनीक आधारित समाधान
स्मार्ट फसल निगरानी प्रणाली: IoT और डाटा एनालिटिक्स से फसलों की निगरानी।
AI आधारित मौसम पूर्वानुमान: जो सटीक जानकारी प्रदान कर सके।
क्लाइमेट स्मार्ट फार्मिंग: जिसमें डेटा के आधार पर बीज, खाद और सिंचाई तय की जाए।
El Nino और वैश्विक राजनीति
कई बार प्राकृतिक आपदाओं का असर अंतरराष्ट्रीय संबंधों और नीतियों पर भी पड़ता है। जैसे:
खाद्य संकट के कारण निर्यात पर प्रतिबंध लगाना।
तेल की मांग और आपूर्ति में असंतुलन।
मानवीय सहायता और आप्रवास (migration) की स्थिति।
El Nino जैसे प्रभावों के चलते संयुक्त राष्ट्र, FAO, और WHO जैसी संस्थाएं आपदा प्रबंधन और खाद्य सुरक्षा पर ध्यान देती हैं।
निष्कर्ष: El Nino – समझ, सतर्कता और समाधान की राह
एल-नीनो एक स्वाभाविक जलवायु घटना है, लेकिन इसका प्रभाव अत्यंत व्यापक और गहरा होता है। यह केवल एक मौसमीय परिवर्तन नहीं, बल्कि एक ऐसा संकेत है जो हमें बताता है कि प्रकृति कितनी संवेदनशील और आपसी संतुलन पर आधारित है।
भारत जैसे कृषि-प्रधान देश में एल-नीनो के कारण मानसून में गड़बड़ी, सूखा, खाद्य संकट और अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। हालांकि विज्ञान, तकनीक और वैश्विक सहयोग से इसके पूर्वानुमान और प्रभावों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
हमें समझना होगा कि प्राकृतिक घटनाओं को रोका नहीं जा सकता, लेकिन उनके असर को सही जानकारी, समय रहते चेतावनी, जल संरक्षण, सतत कृषि, और नीति आधारित रणनीतियों से नियंत्रित किया जा सकता है।
एल-नीनो से लड़ाई केवल मौसम विभाग या सरकार की नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग की है। जब हर किसान, छात्र, नीति-निर्माता और आम नागरिक सतर्क होगा – तभी हम एक जलवायु-संवेदनशील, लचीला और टिकाऊ भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं।
अतः, एल-नीनो को समझना ही नहीं, उससे सीखना और अनुकूलन करना ही हमारा सच्चा उत्तरदायित्व है।
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