Fiscal Health Index 2025: क्या राजस्व और व्यय प्रबंधन से आर्थिक स्थिरता संभव है?
Fiscal Health Index: भारत में राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति का देश की समग्र अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसी को ध्यान में रखते हुए नीति आयोग ने “वित्तीय स्वास्थ्य सूचकांक” (Fiscal Health Index – FHI) तैयार किया है। यह सूचकांक राज्यों की वित्तीय स्थिरता और उनके आर्थिक प्रदर्शन का आकलन करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
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Toggleवित्तीय स्वास्थ्य सूचकांक का उद्देश्य
इस सूचकांक का मुख्य उद्देश्य राज्यों की वित्तीय स्थिति को मापना, उनकी राजकोषीय नीतियों का मूल्यांकन करना और उन्हें वित्तीय अनुशासन की ओर प्रेरित करना है। यह राज्यों के राजस्व, व्यय, ऋण प्रबंधन और समग्र वित्तीय स्थिति का विश्लेषण करता है, ताकि यह समझा जा सके कि कौन से राज्य आर्थिक रूप से अधिक सक्षम हैं और किन्हें सुधार की आवश्यकता है।
कौन-कौन से राज्य इस सूची में शामिल हैं?
इस रिपोर्ट में भारत के 18 प्रमुख राज्य शामिल किए गए हैं, जो देश की GDP, जनसंख्या, सार्वजनिक व्यय और राजस्व में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। इन राज्यों का विश्लेषण विभिन्न वित्तीय मानकों के आधार पर किया गया है, जिससे उनके आर्थिक प्रबंधन की स्पष्ट तस्वीर सामने आती है।
शीर्ष प्रदर्शन करने वाले राज्य
नीति आयोग द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, ओडिशा इस सूचकांक में पहले स्थान पर है। इसके बाद छत्तीसगढ़, गोवा, झारखंड और गुजरात ने शीर्ष पांच में जगह बनाई है। इन राज्यों ने अपने मजबूत वित्तीय प्रबंधन, संतुलित राजकोषीय नीति और प्रभावी खर्च नियंत्रण के कारण बेहतर प्रदर्शन किया है।
राज्यों की वित्तीय स्थिति क्यों महत्वपूर्ण है?
भारत में कुल सार्वजनिक व्यय का लगभग दो-तिहाई (2/3) खर्च राज्यों द्वारा किया जाता है, जबकि कुल राजस्व का एक-तिहाई (1/3) हिस्सा राज्यों से आता है। ऐसे में, यदि कोई राज्य आर्थिक रूप से अस्थिर होता है तो इसका सीधा प्रभाव देश की समग्र अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। वित्तीय स्वास्थ्य सूचकांक यह सुनिश्चित करता है कि राज्यों की वित्तीय स्थिति पारदर्शी और सुदृढ़ बनी रहे।
कैसे किया गया विश्लेषण?
इस सूचकांक को तैयार करने के लिए भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा जारी वित्तीय वर्ष 2022-23 के आंकड़ों का उपयोग किया गया है। विभिन्न वित्तीय मानकों को ध्यान में रखते हुए एक संयुक्त वित्तीय स्वास्थ्य सूचकांक (Composite Fiscal Health Index) विकसित किया गया है, जिससे राज्यों की तुलनात्मक स्थिति का सही आकलन किया जा सके।
Fiscal Health Index रिपोर्ट का महत्व
1. सुधार की संभावनाएँ: जिन राज्यों की वित्तीय स्थिति कमजोर है, वे इस रिपोर्ट से सीखकर अपनी नीतियों में सुधार कर सकते हैं।
2. बेहतर नीति निर्माण: इस सूचकांक के माध्यम से नीति-निर्माताओं को यह समझने में मदद मिलेगी कि किन क्षेत्रों में वित्तीय सुधार की आवश्यकता है।
3. वित्तीय पारदर्शिता: Fiscal Health Index रिपोर्ट से राज्यों की वित्तीय स्थिति को सार्वजनिक किया जाता है, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ती है।

Fiscal Health Index 2025: राज्यों की आर्थिक स्थिति का व्यापक मूल्यांकन
भारत के राज्यों की वित्तीय स्थिति का आकलन करने के लिए वित्तीय स्वास्थ्य सूचकांक 2025 तैयार किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य राज्यों की वित्तीय प्रबंधन क्षमताओं को मापना, उनकी कमजोरियों को उजागर करना और वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा देना है।
यह सूचकांक विभिन्न वित्तीय मानकों के आधार पर राज्यों का तुलनात्मक विश्लेषण करता है, जिससे नीति निर्धारकों को सटीक निर्णय लेने में सहायता मिलती है।
Fiscal Health Index के प्रमुख उद्देश्य
1. राज्यों की वित्तीय स्थिति का तुलनात्मक विश्लेषण
राज्यों के वित्तीय स्वास्थ्य की तुलना करने के लिए एक मानकीकृत पैमाना उपलब्ध कराना।
2. मजबूती और चुनौतियों की पहचान
राज्यों की वित्तीय नीतियों में सुधार की संभावनाओं और जोखिम वाले क्षेत्रों को चिन्हित करना।
3. पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को बढ़ावा
आंकड़ों के आधार पर वित्तीय निर्णयों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना।
4. नीति निर्माताओं के लिए दिशा-निर्दश
वित्तीय स्थिरता और संतुलित आर्थिक प्रबंधन के लिए उपयोगी जानकारी प्रदान करना।
Fiscal Health Index के प्रमुख मानक
1. कर लचीलापन (Tax Buoyancy)
कर लचीलापन किसी राज्य के कर राजस्व में बदलाव और उसके सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) में परिवर्तन के बीच संबंध को दर्शाता है। यदि किसी राज्य का कर लचीलापन अधिक है, तो इसका मतलब है कि आर्थिक गतिविधियों के बढ़ने के साथ-साथ कर संग्रह भी बेहतर हो रहा है।
2. राजस्व संग्रह और संसाधन जुटाव
राज्यों की अपनी आय (टैक्स और गैर-टैक्स राजस्व) का विश्लेषण।
कर संग्रह नीतियों की प्रभावशीलता।
3. ऋण-से-GSDP अनुपात (Debt-to-GSDP Ratio)
राज्य की कुल सार्वजनिक ऋण राशि को उसके सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) के अनुपात में देखा जाता है। यह राज्य की ऋण चुकाने की क्षमता को दर्शाता है। यदि यह अनुपात बहुत अधिक होता है, तो राज्य की वित्तीय स्थिति को अस्थिर माना जाता है।
4. व्यय प्रबंधन और प्राथमिकता निर्धारण
राज्य सरकारों द्वारा पूंजीगत व्यय को प्राथमिकता देने की प्रवृत्ति।
वित्तीय अनुशासन के पालन का आकलन।
सरकारी खर्च की दक्षता और प्रभावशीलता।
5. ऋण प्रबंधन
राज्यों के ऋण-से-GSDP अनुपात का विश्लेषण।
ब्याज भुगतान के बोझ का आकलन।
दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए ऋण रणनीतियों की जांच।
6. राजकोषीय घाटा प्रबंधन (Fiscal Deficit Management)
राज्य के राजकोषीय घाटे को उसके सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) के अनुपात में देखा जाता है। यदि यह अनुपात बहुत अधिक है, तो राज्य की वित्तीय स्थिति संकटपूर्ण हो सकती है। इस सूचकांक में यह भी आंका जाता है कि क्या राज्य अपने वित्तीय घाटे को नियंत्रित करने के लिए लागू नियमों का पालन कर रहे हैं।
7. समग्र वित्तीय स्थिरता (Overall Fiscal Sustainability)

राजस्व, व्यय, घाटा और ऋण के विभिन्न संकेतकों का समग्र मूल्यांकन किया जाता है ताकि किसी राज्य की वित्तीय दीर्घकालिक स्थिरता को मापा जा सके।
ओडिशा ने वित्तीय स्वास्थ्य सूचकांक में पहला स्थान प्राप्त किया
ओडिशा ने 67.8 के शीर्ष स्कोर के साथ Fiscal Health Index में पहला स्थान प्राप्त किया है। राज्य ने ऋण सूचकांक (99.0) और ऋण स्थिरता (64.0) में शानदार प्रदर्शन किया है। ओडिशा का राजकोषीय घाटा कम है, ऋण प्रोफाइल मजबूत है और इसका पूंजीगत व्यय/जीडीपी अनुपात भी उच्च है।
शीर्ष प्रदर्शन करने वाले राज्य
छत्तीसगढ़ (55.2) और गोवा (53.6) ने भी शानदार प्रदर्शन किया है। छत्तीसगढ़ ऋण सूचकांक में और गोवा राजस्व जुटाव (Revenue Mobilization) में आगे रहा।
राजस्व जुटाव में उत्कृष्टता
ओडिशा, झारखंड, गोवा और छत्तीसगढ़ गैर-कर राजस्व जुटाव में अव्वल रहे। ये राज्य कुल राजस्व का औसतन 21% गैर-कर स्रोतों से प्राप्त कर रहे हैं।
ओडिशा को इसकी खनन प्रीमियम से बड़ा लाभ हुआ।
छत्तीसगढ़ को कोयला ब्लॉक नीलामी से अच्छी आय प्राप्त हुई।
वित्तीय संकट से जूझते राज्य
पंजाब, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और केरल गंभीर वित्तीय चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। इन राज्यों में—
1. व्यय की गुणवत्ता खराब है।
2. ऋण स्थिरता कमजोर है।
3. राजकोषीय घाटा अधिक है।
पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure) में असमानता
उच्च पूंजीगत व्यय (27%) देने वाले राज्य – मध्य प्रदेश, ओडिशा, गोवा, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश।
कम पूंजीगत व्यय (10%) देने वाले राज्य – पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, पंजाब और राजस्थान।
ऋण स्थिरता और राज्यों की स्थिति
ऋण स्थिरता का महत्व
ऋण स्थिरता का अर्थ है कि राज्य बिना डिफ़ॉल्ट किए या असाधारण वित्तीय सहायता लिए अपने वर्तमान और भविष्य के ऋण दायित्वों को पूरा कर सके। इसमें राज्य की भुगतान क्षमता (solvency) और तरलता (liquidity) दोनों का आकलन किया जाता है।
ऋण सूचकांक (Debt Index)
ऋण सूचकांक का मूल्यांकन ब्याज भुगतान/राजस्व प्राप्ति अनुपात (IP/RR Ratio) से किया जाता है। इसका अर्थ है कि कुल राजस्व का कितना प्रतिशत राज्य द्वारा ऋण के ब्याज के भुगतान में उपयोग किया जा रहा है।
ऋण बढ़ने की चिंता
पश्चिम बंगाल और पंजाब में ऋण-से-जीडीपी अनुपात लगातार बढ़ रहा है।
इससे इन राज्यों की ऋण स्थिरता पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
निष्कर्ष: Fiscal Health Index
Fiscal Health Index: ओडिशा, छत्तीसगढ़ और गोवा जैसे राज्य मजबूत वित्तीय नीतियों के कारण Fiscal Health Index में शीर्ष पर हैं। इन राज्यों ने ऋण स्थिरता, गैर-कर राजस्व जुटाव और पूंजीगत व्यय पर विशेष ध्यान दिया है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ बनी हुई है।
वहीं, पंजाब, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्य उच्च ऋण बोझ, राजकोषीय घाटे और निम्न व्यय गुणवत्ता के कारण वित्तीय संकट का सामना कर रहे हैं। इन राज्यों में ऋण-से-जीडीपी अनुपात लगातार बढ़ रहा है, जो दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता के लिए एक गंभीर चुनौती है।
राज्यों की आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए गैर-कर राजस्व स्रोतों का विस्तार, व्यय प्रबंधन में सुधार और ऋण नियंत्रित रखने की आवश्यकता है। उच्च पूंजीगत व्यय वाले राज्य दीर्घकालिक विकास में आगे बढ़ रहे हैं, जबकि निम्न पूंजीगत व्यय वाले राज्यों को अपने निवेश प्राथमिकताओं को पुनः व्यवस्थित करने की जरूरत है।
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